लेखक : हरिमोहन झा

भगीरथ बाबा जखन बूढ भऽ गेलाह त सातो बेटा उकछि गेलथिन्ह। एही बेटाक खातरि भगीरथ बाबा कामरु ढोयने रहथि, सालो-साल अजगैबीनाथसॅं गंगाजल बोझि बाबा बैद्यनाथपर ढारने रहथि। वरदान -स्वरूप एकटा के कहय, सात-सात पुत्र भेटलथिन्ह।

भगीरथ बाबा गद्-गद् भऽ गेलाह। बड्ड परिश्रमसॅं घाम चुआकऽ परती भूमिकें तामि-कोड़ि कऽ भीठ खेत बनौने रहथि, बैसाख जेठमे घैलक घैल पानि पटा कऽ कलमबाग लगौने रहथि। बेटासबकें भरल बखारी भेटलैन्ह, फड़ल मालदह भेटलैन्ह। भगीरथ बाबा स्वयं मट्ठा पीबि बेटासभकें छाल्हीपर पोसने रहथि।

सैह सपूतसभ आब मोंछक पम्ह चललापर बूढाकें जरद्गव कहय लगलथिन्ह।

बाबा बहरघरामे सूतथि। सेहो बेटा लोकनिकें आँखि लगैन्ह। कहिया ओ घर खाली हो जे माल-जाल बान्हल जाय। ओना त सातो भायकें सातरंगक विचार रहैन्ह, परंच पिताकें शीघ्रे सद्गति भऽ जाइन्ह एहि बातमे सभ एकमत रहथि।

परन्तु बूढाक हाड़-काट तेहन जे कहियो माथो नहि दुखाइन्ह। बेटासभ खिसिया कऽ बाजथि- ई बूढा कहियो नहि मरताह। लोमश ऋषिक आयु लऽ कऽ आएल छथि। हमरा लोकनिक अँकुड़ी खा लेताह। यमराजकें हिनक बही हेरा गेलैन्ह।

बूढा गटगट सभटा सुनथि और दालि-भातक कौर संग घोंटि जाथि। बूढाक भोजनकाल पाचनशक्तिक तेहन तीव्र आलोचना होइन्ह जे बूढा कनेक काल हाथ बारि कऽ बैसि जाथि। परन्तु के आबि कऽ मनलबौन्ह जे 'बाबूजी, और खाउ'। बूढा अपने रूसथि अपने बौंसथि। एक दिन मन भेलैन्ह जे अमौट खाइ। अमौट त भेटलैन्ह परन्तु संगहिसंग श्लोकक एक चरण सेहो- 'तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णाः'। एक दिन आमाशय उखड़ि गेलैन्ह। डेराइत-डेराइत बजलाह-कनेक काँच बेल पका कऽ केओ दैत। उत्तरमे उपदेश भेटलैन्ह-'औषधं आह्नवीतोयं वैद्यो नारायणो हरिः!' ताहि दिनसॅं बूढा उकासियो नहि करथि जे लगले काशी पहुँचा देत।

बाबाकें ई बुझबामे भाङठ नहि रहलैन्ह जे हुनक स्वास्थ्य ओ दीर्घायुसॅं सभ अकच्छ भऽ रहल अछि। आब जीवित रहि ओ अपराध कऽ रहल छथि।

एक दिन बाबा कछनी काछि कऽ पड़ि रहलाह। एक बेर हिचकी उठलैन्ह। सुपुत्र लोकनि बाटे तकैत छलथिन्ह। तुरन्त गंगा लऽ जैबाक आयोजन भेलैन्ह। अत्यन्त तत्परतापूर्वक काँच बाँस कटबाय, अर्थी बनबाय, बाबाकें ओहीपर सुताय, सातो पुत्र कान्ह लगाय चौमथघाट लऽ चललथिन्ह। बाटमे बाबा जहाँ किछु बाजय चाहथि कि 'रामनाम सत्य'क तुमुल निनादमे ओ विलीन भऽ जाइन्ह।

माघ मास रहैक। पछबाक लहरिमे लोक जाड़े ठिठुरैत रहय। बाबाकें भरि छाती पानिमे-गंगाक हिलकोरमे बैसा देल गेलैन्ह। आब बाबाकें पछतावा होमय लगलैन्ह जे कहाँसॅं एहि फंदमे फॅंसि गेलहुँ। परंच आब घुरब कठिन छलैन्ह। सुपुत्र लोकनि चारूकातसॅं माथ गोंति गंगालाभ कराबय लगलथिन्ह। बूढा थरथर काँपय लगलाह। बर्फ सन शीतल जलमे देह सर्द भऽ गेलैन्ह। पुत्र सभकें हाथ धय-धय नेहोरा करय लगलाह-हौ अजय! जाड़ होइ अछि! हौ विजय! ऊपर लय चलह। हौ संजय! आगि तापब। हौ धनंजय! भूख लागल अछि। हौ मृत्युजंय! कम्बल ओढाबह।' परन्तु सभ टा कानब - कलपब अरण्यरोदन सिद्ध भेलैन्ह। केओ कर्णपात नहि कैलकैन्ह। कारण जे ओहिदिन पुण्य तिथि - माघी पूर्णिमा-छलैक। एहन पर्वमे मृत्यु! एहिसॅं बढि सौभाग्य बूढाकें और की भऽ सकै छैन्ह? आइ नहि मुइने भदबा पड़ि जेतैन्ह। दोसर जे सुपुत्र लोकनिक एखन रब्बीक ताक छैन्ह, कुसियारक पुर्जी कटैबाक छैन्ह, तम्बाकू मरचाइ बेचबाक छैन्ह, हाटसॅं बड़द किनबाक छैन्ह। अतएव आइ बाबाक मृत्यु भेनाइ आवश्यक, नहि त बहुत हर्ज हैतैन्ह।

सातो भाय कृतसंकल्प भऽ ततेक डुबकुनियाँ देलथिन्ह जे वृद्ध संज्ञाशून्य भऽ गेलाह। सातो भाय हाथोहाथ हुनका उठा श्मशानमे लऽ गेलथिन्ह। सात मन लकड़ीक चितापर भीष्म पितामह जकाँ हुनका सुताओल गेल। अकस्मात वृद्धक देह कनेक सुगबुगा उठलैन्ह। बूझि पड़ल जेना ओ हाथसॅं किछु संकेत करैत होथि। से देखितहिं पितृभक्त लोकनि ऊपरसॅं मोटगर सिल्ली राखय लगलथिन्ह। जेना जूड़शीतलमे खरहाक शिकारमे ढेप बरिसै अछि तहिना वृद्धक ऊपर चेरा बरिसय लगलैन्ह। बाबाक सौंसे देह तोपा गेलैन्ह। केवल मुँह टा देखाइ पड़ैन्ह। मुदा बाबा तेहन कठजीव रहथि जे एतेक भेलो पर प्राण नहि गेलैन्ह। ओ प्रायः किछु बाजक हेतु मुँह खोललन्हि त जेष्ठ पुत्र ओहिमे ऊक लगा देलथिन्ह और सभ मिलि बाँसक फट्टा लय बाबाक कपाल-क्रिया करय लगलथिन्ह।

चिता प्रज्वलित भऽ उठल और अग्निदेव सातो जिह्वासॅं चटचट आहार करय लगलाह। देखैत-देखैत बाबाक शरीर भस्मावशेष भऽ गेलैन्ह। केवल किछु अस्थिखण्ड टा रहि गेलैन्ह जे सातो सुपुत्र श्रद्धापूर्वक बीछि गंगाक प्रवाहमे भसा देलथिन्ह।

गामपर आबि सातो भाय श्राद्धक भोज कैलन्हि। सातो गाम जयबार। दही चूड़ा चीनी। जयजयकार भऽ गेल। उतरी टुटलाक बाद उत्तराधिकारी स्वच्छन्द भऽ गेलाह। महापात्र लोकनि नेहाल भऽ गेलाह। केओ बाबाक पनही लेलन्हि, केओ छता, केओ पाग, केओ खड़ाम। एवं प्रकारें बाबाक अस्तित्वक सभटा चेन्ह मेटा देल गेलैन्ह।

द्वादशाक उपरान्त सर्वप्रथम कार्य ई भेल जे सातो भाय भगीरथ बाबाक नाम कटबाय अपन-अपन नाम खतियानमे दर्ज करबौलन्हि। तेहने उल्लास आ उमंगसॅं जेना नव पीढीक किछु कर्मठ किन्तु उताहुल साहित्यकार होथि।

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