लेखक : हरिमोहन झा

जे समाज कन्या कैं जड पदार्थवत दान देवा मे कुंठित नहि होइत छथि, जाहि समाजक सूत्रधार लोकनि बालक कै पढैबाक पाछाॅं हजारक हजार पानि मे बहवैत छथि और कन्याक हेतु चारि कैञ्चा क सिलेटो कीनब आवश्यक नहि बुझैत छथि, जाहि समाज मे बी०ए० पास पति क जीवन-संगिनी ए बी पर्यन्त नहि जनैत छथिन्ह, जाहि समाज कैं दाम्पत्य-जीवन क गाडी़ मे सरकसिया घोडा क संग निरीह बाछी कै जोतैत कनेको ममता नहि लगैत छैन्ह, ताहि समाज क महारथी लोकनिक कर-कुलिश मे इ पुस्तक सविनय, सानुरोध ओ सभय समर्पित।

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