लेखक : हरिमोहन झा

- हॅ ऎ बहिना । यैह त कठिन भऽ गेलैक अछि। जहां वर भारी 'गिलास' मे अङ्ग्रेजी पढि जाइत छैक, तहां वर क बाप हजार सॅं नीचा पर गप्पे नहि करैत छैक। गरिबहा लोक एतेक कतय सं आनत।

- ततबे धरि नहि । विवाह होइत देरी 'मोटर दियऽ, बाइसिकिल दियऽ, आगां पढ क लेल फीसदियऽ। अङ्गरेजिया क फरमाइश में जुमब कठिन छैक ।

- ऎ बहिना । सुनैत छियैक जे अङ्गरेजिया सभ कैं जाति पातिक किछु विचार नहि रहैत छैक ।

- जाति पाति आब ककरा मे छैक ? विशेषरानी क जमाय आयल छलथिन्ह से कोन अङ्गरेजी पढने छथिन्ह । पनहिए पहिरने पानि पिवैत छतिन्ह। लोक कहैन्हि जे 'ओझा, जल लऽ कऽ लघुशंका दिशि जाउ त कहथिन जे से कि हमरा आगि बहराइत अछि ।

- दुर जो। ओहो कोनो लोक छतिन्ह | ज्योतिषीजी एकटा मोचण्ड कै उठा अनलैन्हि । हम त इ दस लोक क बीच मे कहबैन्ह । पढल 'सी' अक्षर नहि बनहुल्लुक जकां एकरा ताकब, ओकरा ताकब , एहन कतहु लोक भेलय।

एतबहि मे बिलटी कैं अबैत देखि लालकाकी झट द' आवेशरानी क पैर क कनगुरिया आंगुर कैं दाबि देलथिन्ह जाहि सं ओ लगले चुप भय गेलीह। तख न लालकाकी चतुरता सं बात कैं बदलि कय बजलीह-तऽ । आब त चौदहेटा दिन बांकी रहि गेलैक अछि। कथा एखन धरि किछु निश्चय नहि। कोना की हेतैक से बुझि नहि परैत अछि।

आवेशरानी- आबह ने बिलटि , बैसह, ठाढि कियेक भेल छह? हंं बुचिया त बिलटिए क दतरी होयतैक?

लालकाकी- ई तेरहम चढ्लैक अछि । एहि बेरि कन्यादान करब परम आव श्यक छैक। बुचियाक बाप त यैह सपनि कऽ गेल छथिन्ह जे इ सभ संं कोडपो च्छू नेना थिक। अपने भीखो दुख मांंगि कय एकरा सुठाम मे क' देबैक। ओना त भावी सर्वोपरि।

आवेशरानी- हंं, लिखलाहा तंं सभ स ऊपर। भगवती अहिबात बनौने रखतुन्ह । अपन लुरिमुंंह नीक होयतैन्हि त सभक आंंखि मे रहतीह।

लालकाकी- हंं ऎ बहिना। यैह आशीर्बाद देथुन्ह । विवाह दान होइन्ह, अपन घर-दुआरि सम्हारथि। सासुर सऽ इ उपराग नहि देयाबथि जे धोंछी कोना के' बेटी कैं पोसलक। यह हम चाहैत छी।

एतबहि मे दक्षिण भर सय भारी घटा उठल। चारु कात संं मेघ उमरि आय ल । थोडबहि काल मे गर्जन-तर्जन कसङ्ग मुसलधार वृष्टि होमय लागल। ओसारा क कोनिया चुबैत देखि लालकाकी बाजय लगलीह- की कहु बहिना । अहिना सभ घर मे सहस्रधार चुबैत छैक । एको हाथ कतहु निचु नहि अछि। अपने घरहटक काज सम्पन्न कय जैतथि से बिचहि मे भदवा पडि गेलन्हि । आब कोबर कोन ठाम होयतैक ताहि लेल झंंखैत छी।

एतबहि मे ढुनमुनकाकी लदफद करैत हॅंफैत-हॅंफैत ओहि ठाम पहुंचलीह । अबैत देरी चिचियाय लगलीह- हे अदौरी जे हम पटिया पर सुखाय देने छलियै क से सभ भीजि गेलैन्ह । हम की करियौक ?

ई सुनितहि लाल काकी लाल-पीयर होमय लगलीह - बाढनि मारी एहन बूद्धि कैं। एहन भसन्नर लोक । जैखन घटा देखलियैक तैखन ने समेटि कय उठा लितहुं। हाथ मे कि मेहदी लागल छल? सभ अदौरी भिजा कऽ तखन समाद नेने आयलि छथि।

फेरि आवेशरानी क दिशि ताकि कय बाजय लगलीह- कहु त भला । आब कोन उपाय होयतैक ? कतेक यत्न सॅं अदौरी खोटने छ्लहुऍ से सभ ई दुरि कय देलन्हि। कहां सॅं आइ हिनका सुखाबहु कहलिऎन्हि। हिनका सन लदगो बरि एहि परो पट्टा मे नहि भेटतन्हि। मरुआ भरि कथुल लूरि नहि छैन्ह। का ल्हि कनेक कहलिऎन्ह जे अचार क बासन मे तेल दय दियौक । बस, जमाय क वास्ते चमेली क तेल मङ्गबौने रही, भरलो बोतल उझीलि देलथिन्हि।

ढुनमुनकाकी कान सॅं कम सुनैत छलीह। तैं ई सभ वार्तालाप हुनका सुन बा मे नहि ऎलन्हि। किन्तु क्रम सॅं बुझि गेलीह जे हमरे शिकायत चलि रहल अछि। ठोर पटपटबैत बिदा भेलीह-मर्र । आङ्गन मे एकटा हमही लोक छियैन्ह जे एतेक ललकैत छथि।

एतबहि मे बिलटी बाजि उठलि- छिया! ए छिया! ढुनमुनकाकी क नुआ मे कीभेलन्हि ? सौंसे पीठ थाल लागल छैन्ह ।

तावत मे बुचिया हॅंसते-हॅंसते आबि कय कहलकैन्हि- थाल लगलैन्ह स्वाइत! गेल छलीह बाड़ी मे मुनिगा तोड़य। एके बेरि दुइटा मुनिगा कैं दुनू हाथ सॅं धऽ कऽ खूब जोर सॅं झीकय लगलथिन्हि। मुनिगाक डंटी तॅं टुटि गेलैक, लेकिन अपने भट्ट द चितङ्गे खसि पड़लीह ।

ई सुनि बिलटी हॅंसैत-हॅंसैत ओंघड़ाय लागलि। आवेशरानी आवेश देखबैत कहलथिन्ह-अहा हा ! बड़ चोट लागल हेतैन्ह। जाउ ऎ फुचुकरानी! झट द नुआ बदलि लियऽ। कोना दन लगैत अछि ।

ढुनमुनकाकी क गेला पर लालकाकी बाजय लगलीह- देखथु बहिना, काज क घर थिकैक। से ने एखन कोबर ढेवरल गेलैक अछि ने अहिबातक पातिल लिखल गेलैक अछि, ने ठक-वक बनलैक अछि। हम एकसरि की-की करू ? जनउ-टकुरी काटू की निपिया बढ़िया करू ? पुतहु छथि तनिका दिन-राति किताबहि सॅं नहि छुट्टी। बुचिया सहजे एकटा खढ़ पर्यंन्त नहि टकसाओत। मैंया पाकल आम छथि, कखन टगि जैतीह तकर ठेकान नहि। फुचुकरानी क हालति देखितहिं छथिन्ह । हम करी तॅं हो नहि करी नहि हो। तिलौरी-दनौरी सभ पड़ले छैक। जॅं कदाचित् झपसी लाधि देलक तॅं औरो प्रलय। फेरि विधक री के होयतैक से फुरतहि ने अछि ।

आवेशरानी - से किएक ? बड़कागामवाली कनियॉंं तॅं छथिए ।

लालकाकी- ओ पढ़ुआरानी छथि । रङ्ग-विरङ्ग क किताब सभ नैने रहैत छथि। एहि पाछा खैनाइयो-पिनाइ बिसरि जाइत छैन्हि। हम मुँह पर कहलिऎन्ह कतहु सुनितो होइतीह। एक दिन पुछलिऎन्हि तॅं कहैत छथि जे नाक-कान धरब मुरखाहा विधि छैक। हमरा बुतैं ई सभ नहि होएतैन्ह।

आवेशरानी- तखन फुचुकरानी होइथिन्हि।

लालकाकी- इहो एकटा स्याख करै छथि ओ विधि की करथिन्हि अङ्गोर? काजर करय जैथिन्ह त वर क ऑंखिये फोड़ि कय बैसि रहथिन्ह। धरक नाक, धय लेथिन्ह कान कोबर मे जैतीह त पोटे सुकरैत जैतीह ।

एतबहि मे बुचिया बाजि उठलि-ढुनमुनकाकी कैं तॅं भरि देह जुड़पित्ती उठि गेलैन्ह अछि ।

ई सुनितहि बड़कागामवाली कनियाँ घर सॅं गर जाँति कय कहलथिन्हि- वेश, कोनो क्षति नहि। कनेयाँ विधिकरी दुनू अपनहि बनि जाएब ।

बुचिया- भौजी कैं तॅं अहिना रहै छैन्हि । सभ बात मे एक-एक टा अर्थ लगबैत रहैत छथि।

लालकाकी- बेजाय कोन कहैत छथुन्ह ? जहाँ विवाहक कोनो चर्चा उठैत छौह कि कोनटा मे ठाढ़ भय कान पाथि कय सुनय लगै छह। जाह, अपन काज देखह गऽ ।

ई सुनि बुचिया लजा कय ओहि ठाम सॅं बिदा भेलि । बिलटियो ओकरा पाछाँ लागलि ।

क्रमशः वर्षा थम्हि गेल। किन्तु मेघ क आटोप बनले रहल। रहि-रहि कय आकाश मे बिजली चमकय लागल । साँझ होयबा मे किछु देरी छलैक । किन्तु मेघाडम्बर सॅं चारु दिशि अन्धकार भय गेल छल। आवेशरानी चलबाक उद्योग मे छलीह। एतबहि मे स्थूल शरीर सॅं केबाड़ कैं धकियबैत अपना बज्रबिनिन्दक स्वर सॅं आङ्गन कें कम्पायमान करैत, दुलारमनि पिउसी पहुँचलीह- अँय् ! ए ! मधुरानी ! अहाँ बेटी कैं कतेक डाढ़ी खोआओल जे पहिनहि सॅं एतेक वर्षा होमय लागल !

एहि प्रश्न क उत्तर मे लालकाकी कनेक बल सॅं हॅंसिकय बुचिया कैं सोर पाड़लथिन्ह- कहाँ गेलैं गे बुचिया ! झट दऽ आसन दऽ जो। बड़कीदाइ ऎलथुन्ह अछि ।

दुलारमनि पिउसी क स्वरे तेहेन रहैन्ह जे बिनु कहनहु बुचिया बुझि जैतैन्ह । किन्तु ओ आङ्गन सॅं टरि गेल छलि । लालकाकी धरफरा कय अपन्हि उठय लगलीह, तावत पुतहु घर सॅं चट्कूनी दय गेलथिन्ह ।

दुलारमनि दाइ फेरि अपना उदात्त स्वर सॅं घर-ओसारा दलमलित करैत बजलीह - अँय् ऎ मधुरानी ! अहाँ के टोल-परोस क एको रत्ती धाख नहिं होई अछि । राम! राम! राम! कन्या अजग्ग भय गेलि । एतेक वयस मे तॅं चारि खेप सासुर सॅं भय आइलि रहैत। नैहरे मे युगपाकड़ि भय जायत त सासुर बसत गऽ बुढ़ारी मे ?

लालकाकी (माथ निहुरा कय) – हॅं ऎ दाइ ! आब कन्या रक्षणी त नहि अछि। किन्तु अपन कोन साध्य ? नीक घर-बर कतहु भेट्लो त चाहय ।

दुलारमनि दाइ एहि बेरि और जोर सॅं चिकरि कय बाजय लगलीह – ई अहाँ की बजलहु ? नीक घर मे नहि देबैक तॅं की इनार मे फेकि देबैक? एहि सॅं त भोथ हांसू लऽ कऽ गरदनि रेति देबैक से नीक। हमर ममियाँ ससुर क प्रपितामह महादेव झा पाँजि। उनतिसटा विवाह कैलन्हि। जखन एकटा विवाह और करय सभागाछी गेलाह तॅं एगोटा कऽ पुछला पर कहलथिन्ह जे मास मे उनतिस दिन त उनतिस ठाम जाएब, तिसम दिन कतय जाएब अहाँक कपार पर ? ताहि दिन एहन वंशक मर्यादा रहैक । आब त लोक छोटबभना कैं उठा अनैय । ऎ! कनेक जोड़न देब ?

लालकाकी - बड़कीदाइ जोड़न त आब नहि हेतैक । मटकूरी मे एक मिसिया दही छलैक से घोरि-घारि कए बुचिया आगाँ दय देलिऎक । कनेक पहिने अबितथि तॅं भय जएतैन्हि ।

ई सुनितहि दुलारमनि दाइ लगले हाथ क बाटी कैं पटकि ठाढ़ि भय गेलीह । फेरि गरजैत बिदा भेलीह कोन पाप लागल जे ऎबो केलहुंँ । जनितहु जे आइ रवि दिन जोड़न नहि देतीह त की करय छिछियायल अबितहुँ ? पहिने आँजन बनाबऽ लेल घी मॅंगैक त घैलम घैल भुभका दैक । आब त सितुआ भरि घोर देवा मे लोक के करेज फटैत छैक ।

जखन दुलारमनि पिउसी के शब्द कर्णपथ सॅं बहिर्भूत भय गेल, तखन लाल काकी बजलीह – ह! ह! यावत धरि ई छलीह तावत धरि हम हड़कम्प कपैत छलहुँ । आब जा कऽ कतहु सॅं प्राण मे प्राण आएल अछि । आवेशरानी सहानु भूति देखबैत कहलथिन्ह- “त! हम त चुप्पे साधि लेलहुँ । कोन ठेकान, किछु अनट-बिलट कथा मुँह सॅं बाहर भए जाएत तॅं हमरे पर उनटि जैतथि ।"

लालकाकी- हिनका मुँह मे जहाँ कनेक कियो टोक देलक कि बुझक चाही जे बिढ़नी क छत्ता कैं खोंचारलक ।

आवेशरानी - हँ ऎ बहिना ! हिनका दऽ जे लोक कहै छैन्ह से हमरा सत्ये बूझि पड़ैत अछि ।(नहूँ-नहूँ) देखैत ने छथिन्ह बजैतकाल दूनू आँखि उनटि जाइत छैन्हि । गुनझिक्कू डाइन कें जतेक लक्षण होइत छैक---

लालकाकी- की करथिन्ह, जाय देथु । आइ-काल्हि भीतो के कान होइत छैक।(ढुनमुनकाकी दिशि) जाउ ऎ फुचुकरानी ! झटपट भानस चढा लियऽ। वर्षा-विकाल क समय अछि। के जाने कखन की होय ?

आवेशरानी वेश बहिना ! आब हमहूँ चलैत छी साँझ देवाक बेरि भऽ गेलैक । फुलमतिया एकसरिये होइति ।

लालकाकी- हिनके पर तँ आस अछि बहिना ! जौ ई नहि सम्हारतीह त सभ काज भण्डुले भय जाएत ।

आवेशरानी- आ हे कहू त भला !हमरा लोकनि सॅं जे सक लागत से किन्नहु उठाए राखब ?

ई कहि आवेशरानी ठाढ़ि भय गेलीह । लालकाकी हुनका अरियातने-अरियातने दरबाजा पर नेबोक गाछ लग धरि नेने गेलथिन्हि । ओहि ठाम दूनू गोटा ठाढ़ि भय फेर गप्प करय लगलीह । पहिने नेबोक चर्चा उठल, जे एहि बाटे जे चलैत अछि से एकटा कऽ तोड़नहि जाइत अछि ।तखन निमकीक गप्प होमय लागल जे जतेक बनल छलैक सभ मे फुफरी पड़ि गेलैक। तदुपरान्त गप्प उठल जे परुकाँ लालकका पटना सॅं बड़ दिव अँचार लाएल रहथि । पटना कऽ नाम सुनैत देरी लालकाकी फुसिए आँचर सॅं नोर पोछैत बाजय लगलीह - जनैत छी, बड़का बौआ पटना सॅं कहिया अबैत छथि ! भुट्टु बाबू परसू कहि गेलाह जे, जे बी०ए० में पढैत छैक तकरा पलटन मे लय जाइत छैक । कालेज त बन्द भय गेलैन्ह, लेकिन ओ ओत्तहि रहि गेलाह। मास दिन बाँकी रहतैन्ह तॅं औताह ।

पलटन क नाम सुनैत आवेशरानी क सौसे देह सिहरि उठलैन्ह- ‘बाप रे बाप! सुनैत छियैक जे पलटन मे दिन राति गोर्रा कऽ पहरा पड़ैत रहैक छैक ।जहाँ कियो बहराएल कि लगले किरिच भोंकि दैत छैक ।' पहरा दऽ सूनि लालकाकी मन पड़लैन्ह जे आइ-काल्हि कोतबाल नीक जकाँ नहि ठहकै अछि । एहि पर चोर क गप्प उठल। अजगैबीनाथ क घर मे सेन्ध पड़ल छलैन्ह से एकटा फुटलो काँसा नहि रहय देलकैन्ह । लालकाकी कहय लगलथिन्ह जे 'राति मे हम जहाँ कनेक पातो खड़खड़ाइत सुनैत छिऎक कि खूब जोर सॅं रामायण पाठ करय लगैत छी । चोर कोढ़िये ई त बुझताह जे एखन सभ जगले अछि ।' ताहि पर आवेशरानी कहलथिन्ह- ‘हम त कुकुर क भुकबे सुनि दम साधि कऽ पड़ि रहैत छी। जे उकलगौना मुर्दो बुझि कऽ छोड़ि देत ।'

तदनन्तर दू-एकटा चोर क खिस्सा-पिहानी चलल । आवेशरानी कनेक और लग मे घुसुकि कय कहय लगलथिन्ह- परसुक्की राति फुलमतिया फुजले केबाड़ छोरि देलकैक । आधाराति कऽ देखी त दूनू पट्टा दुहू दिशि ! आब एतेक साहस नहि पड़य जे खाट खाट सॅं उतरि कय केबाड़ लगा आबी कतहु चौकठिए लग गरदनि दबा देत ! भरि राति भगवान-भगवान गोहरबैत प्रात कैलहुँ । छन-छन डर होय जे कतहु केओ आबि तॅं ने रहल अछि।

फुलमतिया क असावधानी सुनि लालकाकी कैं अपन फुचुकरानी मन पड़लथिन्हि । भरि ढाकी अपन दुःख कहि सुनौलथिन्हि। तखन किछु बड़का गामवाली क समालोचना भेलैन्हि। अन्त मे घुरि फिरि कय फेरि कन्यादान क ओरियाओन पर गप्प पहुँचि गेल ।

एवं प्रकारें पौन घंटा धरि वार्त्तालाप क क्रम बनल रहल । जखन टिप-टिप कऽ फेरि बुन्नि पड़य लगलैक, तखन जा कऽ आवेशरानी कैं मन पड़लैन्ह जे आब साँझ देबाक बेरि भय गेल । लालकाकी चलयकाल पुराइ कैलथिन्ह- 'थम्हू, सूप नेने अबैत छी, ओना भीजि जाएब।' किन्तु आवेशरानी कहलथिन्ह नहि-नहि। एतबहि दूर लेल कोन ! ओहिना झटकि कय चलि जेबैक। आवेश रानी क गेला उत्तर लालकाकी गाछ सॅं दुइटा पैघ नेबो तोड़ि आङ्गन ऎलीह ।

आङ्गन मे पैर दितहि लालकाकी बजलीह – है लोकनि ! आइ चोर-डाकूक गप्प-सप्प भेलैक अछि, खूब सतर्क भऽ कऽ रहैत जैहऽ ।

बुचिया बाजलि- ई सभ कहबहुन तॅं ढुनमुनकाकी भरि राति सूतल मे घिघिऎथुन्ह ।

ढुनमुनकाकी भनसा असोरा पर पटुआ क झोर करैत छलीह । बुचिया क मुहें अपन नाम सुनि भनभनाय लगलीह – ढुनमुनकाकी ककरा लोह दगलथिन्ह अछि ? की दन कहैत छैक तकर परि। हट्ठि घड़ी सभ गोटे हमरे अदगोइ-बदगोइ करैत रहतीह !

एतबहि मे झुनियाँमाय हन-हन पट-पट करैत पानि देबय आइलि ।पाँच मिनट मे कतेक बात बाजि गेल तकर ठेकान नहि । 'घैलची लग लोक पिच्छड़ बनौने रहैत अछि, कतेक रासे पानि उठि जाइत छैक, डोल पुरान भय गेल, उबहन सड़ल जा रहल छैक' इत्यादि। तखन कोनो अज्ञात नाम व्यक्ति सॅं झगड़ा करय लागलि- सौख मे सौख मिरचाइयो क सौख ! हम दिन भरि बही - तरबा क तज्जो ने रहय- और ओम्हर निचिन्त सुतथि पद्मावती बहुरिया। ताहि पर कहनाइ जे मथा मे दर्द होइए । अहा हा हा ! छवि ने छटा मसुरी क दालि बड़ खट्टा ! देहो जरैए ।

ई कहि झुनियाँमाय चमकि कय घैल उठौलक और चलल दरबाजा दिशि दिन मे ककरो सॅं झगड़ा भेल रहैक से मोन पड़ि गेलैक । बस लागल फेर चरखा ओटय । 'हॅं, आँखि देखौला सॅं जेना झुनियाँमाय डेराइये त जाइति । हम थाना दरोगा सॅं डेरैबे ने करी से - - -

ई बजैत-बजैत झुनियाँमायक नजरि सहसा कोनो वस्तु पर पड़ि गेलैक जाहि सॅं डराय ओ जान लऽ कऽ पड़ाइलि । ओतय सॅं पड़ाइलि-पड़ाइलि ओ सोझे लालकाकी क लग आबि भरि पाँज हुनका धऽ लेलकैन्ह और कसकसा कऽ गरदनि पकड़ि लेलकन्ह । मुँह मे बकौर लागि गेलैक । लालकाकी बजलीह – देखै जाह लोक सभ । ई हमरा नीक कऽ चरोबरो कैने अछि । ऎं गे ! तोरा भूत लगलौक अछि जे एना करैत छें ?

एके छन मे आङ्गन क सभ लोक जमा भे गेल । ई देख झुनियाँमाय कें कनेक साहस क संचार भेलैक । पहिने त ओकरा मूँह सॅं बकारे नहि बाहर होइक । तखन लागल ओ लटाढ़म करय- आब नहि भरबैक पानि हम ककरो आङ्गन । आरे बाप ! जीउव त करमी क साग तोरि गुजर करब । उँहु ! आब कहाँ !

क्यो बाजथि जे एकरा साँप काटि लेलकैक अछि, क्यो बाजथि जे आइ दुलार मनि पिउसी कैं जोड़न नहि देलिऎन्हि तकरे फल थिक । अन्त मे ओ बहुत पुछला पर बाजलि - गे मैया गे मैया ! दरबाजा पर पाँच हाथ क सिपाही बन्दुक नेने बैसल छैन्ह । बीचे मुँह घेरि लेलेकैन्ह अछि । हम जौं कि धुरखुर पर लात दै छी कि झपटल हमरा दिशि । हम घैल पटकि कऽ पड़ैलहुँ, नहि त आइ प्राण नहि बचैत हे महतमाइन ।' ई कहि झुनियाँमाय हिचकि-हिचकि कानय लगलीह ।

ई समाचार सुनितहि सभ गोटा क जी सन्न दऽ उड़ि गेल । लालकाकी थर-थर कँपैत बजलीह- कहाँ सॅं छुच्छी सब आबि कऽ गोर्रा पलटन क हाल कहि जाइए । ई सभ तँ चर्चा करैत देरी लगले पहुचि जाइत छैक ।

अन्त मे ई बिचार होमय लागल जे प्राणरक्षा क कोन उपाय करबाक चाही । लालकाकी साहस कय कहलथिन्ह- सभ गोटा मिलि कय सुन्दरकाण्ड रामायण पाठ करैत जाह । कनेयाँ कैं कहुन्ह हनुमान चालिसा पढ़थिन्ह । (जोर सॅं) ‘महावीर विक्रम बजरंगी । सुमति निबारि कुमति कैं संगी' दुर जो उनटे भय गेलैक। नहि जानि की लिखल अछि रे दैबा !

मैंया क बिचार भेलैन्ह जे सभ गोटा मिलि कय एके बेरि घोल करबह तँ ओ आबि कऽ सभक ठोंठ दबाय देतौह । से नहि पछुआड़ क मुँह सॅं एगोटा जा कऽ ज्योतिषीकका कैं बजा लबहुन । ताहि पर झुनियाँमाय बाजलि - 'नहि रे बाप ! ओहू मुँह पर क्यो ठाढ़ होयतैक । हमरा बुट्टी-बुट्टी काटि कऽ घर मे गाड़ि दिय, लेकिन हम आब बाहर नहि जाएब । ई कहि ओ फेर घेवना पसारलक ।

मैंया कहलथिन्ह जे पहिने गनि लइ जाह जे आङ्न में सभ गोटे छह की नहि ? लालकाकी सभ क देह धऽ धऽ कय गनय लगलीह। दू-तीन बेरि गड़बड़ा गेलैन्ह। चारिम बेरि गनैत बजलीह-जाह! फुचुकरानी की भय गेलीह ! दैबा रे दैबा। लऽ गेलैन्ह घिसिया कऽ।

ताहि पर झुनियामाय कहलकैन्ह जे ओ तॅं पहिनहि सॅं जारन घर में जा कऽ किल्ली लगा बैसलि छथि। मैयाँ रुद्राक्ष क माला लय भगवती कैं गोहरबैत कबुला करय लगलीह जे एहि बेरि जॅं प्राण बाँचि गेल तॅं कुमारिभोजन करायव ।

ई हाल देखि बड़कागामवाली टनकि कय बजलीह-’ई लोकनि एतेक डेराइ छथि किऎक? हमरा लोकनि कि चोरी-खून कैने छी जे फाँसी पड़ब ? बुच्चीदाइ कैं पुछय कहथुन्ह जे के अछि। बुचिया सुरफुरा कऽ बिदा भेलि जे 'तोरा लोकनि कैं डरें बग्घा लगैत छह तॅं लैह हमही जा कऽ देखि अबैत छिऎक। डर कथिक छैक ? किछु बाघ तॅं नहिऍं छैक जे लोक कैं टप दऽ गीड़ि जैतैक।

एतबहि मे बाहर चौकी पर लाठी पटकि क्यो कड़कि कय बाजल- कोई है? मैंया झट दऽ लालकाकी क हाथ टीपि कहलथिन्ह- कहि दियोक जे केओ नहि अछि।

तावत सिपाही बाजल-पं० भोलानाथ झा के नाम से एक तार आया है। कोई अन्दर से आकर ले जाइए।

मैंया कहलथिन्ह- तार आया है त दरबज्जे पर रहऽ दीजिए। एकसरि आङन मे क' के उठा आनेगा ?

एतबहि मे बाहर ज्योतिषीकका क शब्द सुनि सभ लोक फक द' निसास छोड़लाक।

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