लेखक : हरिमोहन झा

जखन सभागाछी पहुँचबा सॅं आध कोस बाँकी रहि गेलैन्ह तखन घुटर झा कैं बाह्यभूमि दिशि जैबाक शंका बूझि पड़लैन्ह । अपन नसिदानी क बटुआ भोलानाथ झा क हाथ मे दैत कहलथिन्ह 'हौ बाबू ! तोरा लोकनि आगाँ बड़ क गाछ तर बैसै जैहऽ । हम एहि पोखरि सॅं भेने अबैत छी ।'ई कहि घुटर झा कान पर जनउ चढाय लग्गा सन-सन डेग दैत बिदा भेलाह ।

ठकबा कैं पछुआयल देखि भोलानाथ झ गर्द कैलथिन्ह- चल रौ ठकबा ! पैर मे जाँत बान्हल छौक की ? एना चलबैं तॅं एही ठाम राति भय जैतौक । ठकबा मुँह गोंहछा कय कुड़बुड़ाय लागल - 'ईह ! दौड़बैत-दौड़बैत जान मारि कऽ छोड़ि देलन्हि । गाड़ी क टेने जेना छुटल जाइ छैन्ह !' तदुपरान्त काँख तर क मोटरी कैं माथ पर राखि कसि कऽ फाँड़ भिड़लक और लगौलक दुलकी चालि ।

बड़ क गाछ तर पहुँचला पर ठकबा पहिने मोटरी कैं नीचा पटकलक । तखन दुइ हाथ भूमि कैं झाड़ि फूकि कैं चिक्कन बनौलक । ताहि पर अपन अंगपोछा ओछौलक । कनेक काल ठेहुन पर माथ राखि बैसल । फेरि मोटरी पर ओठङि गेल। तदुपरान्त एम्हर ओम्हर ताकि शनैः-शनैः दूनू पैर कैं लम्बायमान कैलक । थोड़बहि काल मे अरना महिष जकाँ फोंफ काटय लागल । भोलानाथ झा बेचारे बड़ क सीर पर बैसल अपन फराठी लय एकटा पकोहा कैं पिचैत रहलाह ।

अढ़ाइ दण्डक उपरान्त घुटर झा लोटा डोलबैत पहुँछलाह । अबैत देरी एक चुरु पानि ठकबा क कान मे ढारि देलथिन्ह । ओ कुनमुना कऽ उठल । घुटर झा बजलाह - ऎ रौ ! तोरा देह मे फुर्ती नहि छलौक त मधुबनी मे दू कैञ्चाक कीनि किएक ने लेलैं ? परदेश मे लोक चड़फड़ भेल रहैत अछि और तों जतय जाइत छैं तत्तहि पेटकुनिया देमय लगैत छैं ।

फेरि भोलानाथ झा क दिशि ताकि कऽ बाजय लगलाह- 'हौ बाउ ! ई मेघ क टिक्कड़ नहि मानतौह । पैर झांकि कऽ चलह नहि त भीजै जैबह ।' ई कहि घुटर झा अपन साविक बाला दनहा छाता बाहर कैलन्हि । ई छाता हुनक पिता कैं मातृ-मातृक मे भेटल रहैन्ह । छाता क छिद्र सभ देखला उत्तर बूझि पड़य जे सहस्राक्ष शब्दक ब्यञ्जनाशक्ति एहि मे घटित भय रहल अछि । कमानी सभ देखाबथि जे हम अष्टावक्र मुनिक साक्षाते मसियौत थिकहुँ । छाता कऽ घोड़ा टूटि गेल रहैन्ह तकरा स्थान मे घूटर झा एकटा काठी लगा देलथिन्ह । तदनन्तर नसिदानी सॅं नासिकानन्द चूर्ण लय, नाकक उभय पूरा मे कोंचि एके बेरि पूरक श्वास चढौलन्हि । ई क्रिया समाप्त भेलन्हि तखन ठाढ़ भय विदा भेलाह । पाछाँ-पाछाँ भोलानाथ माथ निहुरौने चललाह । ठकबा तमाकू चुनौने छल, ठोर बिचका कऽ एक जुम्म रखलक, तखन पिच-पिच थूक फेकैंत सभ सॅं पाछाँ चलय लागल।

थोड़ेक दूर गेला पर फूही पड़य लागल। भोलानाथ झा कैं मोन पड़लैन्ह जे पनही भीजैत होयत । हड़बड़ा कऽ ठकबा कैं पुछलथिन्ह- 'रौ ! पनही देखही त भीजै त ने छौक ?' ठकबा मोटरी के उपर ससरफानी लगा कऽ पनही बन्हने रहय । एखन जे टोयलक त एकेटा बूझि पड़लैक । बाजल- 'एक पवाइ त कतहु खसि पड़ल, एकटा बाँचि गेल अछि से लियऽ ।' ई कहि पनही आगाँ मे फेकि देलकैन्ह । भोलानाथ झा ओही पनही लऽ ठकवा कैं मारऽ हेतु उद्यत भेलाह , किन्तु घुटर झा रोकि देलथिन्ह, भोलानाथ झा बजलाह- नबे पनही छल- सालमसाही ! एक रुपैया चौदह आना मे ! एतेक दाम क आइधरि कहियो ने किनने छलहुँ । चलबाक काल एड़ी मे कटैत छल तैं सार कैं कहलिऎक जे नेने चल - आब एक पबाइ लऽ कऽ की करु? एकरो फेकि दैत छिऎक ।

घुटर झा भरिगरहा चुटकी नसि लय आश्वासन देमय लगलथिन्ह - की करब ? 'सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्द्ध त्यजति पण्डितः ।' एके पवाइ ने गेल ? गाम पर नेने चलू । यदि अही जकाँ ककरो एक पवाइ हेरा गेल होयतैक त ओकरा सॅं माँगि कऽ जोड़ लगा लेब । नहि त ओकरा इहो पवाइ दय देबैक । हम त थाल कीच क समय मे पनही रखितहि ने छी । 'नाङ्गट नहायब गाड़ब की ?' जौ पनहिए नहि रहत त हेरायत कोना ?

एतबहि मे मटर सनसन बूंद पड़य लागल, जाहि सॅं तीनू गोटा भागि कय एक दलान मे पहुँचलाह ।

सभागाछी आइ बेश जमकल बूझि पड़ैछ । पाकड़ि क गाछ मौलाइल देखि बहुतो अनुभवी वृद्ध अनुमान करैत छथि जे एक लाख ब्राह्मण पूरि गेलाह । जतय धरि दृष्टि जाइछ पागहि पाग देखि पड़ैछ । एतबहि मे कनेक फूही आएल कि सभ पाग के उपर मे एक-एक टा छाता तना गेल । श्वेत मरालपंक्ति जेना सहसा श्याम काकावली मे परिणत भय गेल हो !

पाठकवृन्द ! एक मन सुझाए-बन्दा बुझए । कत्तहु पर-कत्तहु पर घुटर झा तॅं देखा दियऽ । वैह देखियौन्ह, हाथ मे नसिदानी नेने हॅंसि-हॅंसि कय घटकराज टुन्नी झा सॅं गप्प कय रहल छथि । टुन्नी झा कऽ ठढ़ौका चानन, भगजगार ठोप तथा अष्टोत्तरशत रुद्राक्षमाला देखि बूझि पड़त जे ई कर्मकाण्ड मे धौतपरीक्षोत्तीर्ण हैताह, किन्तु असल बात पूछी त...... किएक देखार करबैन्ह- जाय दियऽ - बेचारे दोसरा दिशि ताकय लगलाह ।

घुटर झा नसि लैत पुछलथिन्ह - बालक कऽ मूल की कहल ?

टुन्नी झा आखि-भौंह चमकबैत बजलाह-मूल त बश मूले छैन्ह। मानि लियऽ जे शोदरिपुरिये शरिशव। बिकौआ बंश ! मानि लियऽ जे चारि टा वंश छैन्ह । एक तॅं ब्राम्हण एहन पैघ, दोशर शुठाम पर क। ई कथा करी त मानि लियऽ शोन मे शुगन्ध भेटत।

घू०- बालक कऽ आस्था कोन तरह कऽ छैन्ह ?

टु०- आश्था ! मानि लियऽ जे कम आस्था नहि छैन्ह । अपन शात बीघा ब्रम्होत्तर छैन्ह आओर शवा बीघा कलम सुदिभरना नेने छथि। चालिश मन त मरुए भेल छलैन्ह ।

भोला०- पढ़ल-लिखल की छैन्ह ?

टु०- पढ़ल कोना ने छैन्ह ? मानि लियऽ जे शीघ्रबोध पढ़ने छथि । मङ्गलाचरण क श्लोक सम्पूर्ण कण्ठस्थ छैन्ह । हमरा लोकनि कऽ पुरुखा त मानि लियऽ जे चिड़चिड़ायो पाड़य नहि जनैत रहथि ताहि शॅं तॅं संस्कार उत्तम छैन्हि ।

घू०- बालक कऽ पिता छथिन्ह कि नहि ?

टु०- मानि लियऽ पिता नहिए छथिन्ह तॅं हर्ज की ? हमरा लोकनि त छिऎन्ह ! मानि लिय माय त एखन जीविते छथिन्ह । आओर भाइ मे शेहो एकश्वरे छथि ।

घू०- कोन तरह सॅं कथा करय चाहैत छथि ?

टु०- मानि लिय शवा शय टाका तत्काल मे अपने कैं दै देताह । भार-दौर मानि लियऽ नहिये जायत त हर्ज की ? शोमक दिन शिद्धान्त लिखा कऽ अपना सङ्गहि नेने जैयौन्ह । ओतय मानि लियऽ एक खण्ड धोतिए पहिरा कऽ विदा कय देबैन्ह ।

ई सभ कथा-वार्त्ता भेलाक उपरान्त घुटर झा अओर भोलानाथ झा ओहि ठाम सॅं हटि कय एकान्ती करय गेलाह । माम कैं कनेक पसिन्दे जकाँ पड़लैन्ह, किन्तु भागिन कलपि कय कहलथिन्ह - औ मामा ! बुचिया योग्य वर हमरा नहि बूझि पड़ैत अछि । आङ्गन मे भरि जन्म खोभाटनि दैत रहतीह ।

अन्ततोगत्वा दुहू माम-भागिन आबि कय टुन्नी झा कैं कहलथिन्ह जे कान्या क प्रति टाका गनायब हमरा लोकनि कऽ अभीष्ट नहि । कनेक नीक कथा चाहैत छी । बेशी त नहि, किन्तु दश-पाँच टाका यदि अपनो दिश सॅं खर्च करऽ पड़य त ताहि सॅं पाछाँ नहि हटब ।

ई सुनि टुन्नी झा मटियार खेत क दराड़ि जकाँ मुँह बाबि कहलथिन्ह - आहि रौ नैयायिक ! ई हमरा पहिनहिं किएक ने कहल ? मानि लियऽ जे हमरा ओहि ठाम त शभ तरहक कथा अबैये । एकटा खनखनौआ- जाहि मे कान्यागत खनखना कैं टाका हँसोथि लैत छथि । दोशर मानि लियऽ टनटनौआ जाहि मे वरपक्ष टनटना कैं हजार-पाँच शौ कऽ तोरा गनबैत छथि ! तेशर मानि लियऽ जे ठनठनौआ जाहि मे वर पक्ष आओर कान्यागत दूहू ठनठन गोपाल भय काज करैत छथि । हमरा त पहिने बुझि पड़ल जे अहाँ खनखनौआ कथा करब, किऎक तॅं अहाँ शन मैल पाग वला कान्यागत मानि लियऽ जे बहुत खरनाएले अबैत छथि- तैं ई कथाक उत्थान कय देल अहाँ बेशी हियाव रखैत छी- टनटनौआ कथा करब - से मानि लियऽ हम की जानय गेलहुँ ? नहि त कथा तॅं मानि लियऽ जे हमरा मुट्ठिए मे अछि । ऎखन चलू बालक पशिन्द कय लियऽ । संयोग सॅं एहन कथा शभागाछी मे आबि गेल अछि । मानि लियऽ ई कथा जौं पटि गेल त कान्या क भाग्य बूझक चाही।

ई सूनि माम-भागिन टुन्नी झाक संग चलबा क हेतु प्रस्तुत भऽ गेलाह । टुन्नी झा भरि बाट हिनका लोकनि कैं सामयिक शिक्षा प्रदान करैत गेलथिन्ह । जकर मुख्य सारंश ई- हम पहिने वर्नी किछु कहि देने छलहुँ- ओ कथा अहाँ योग्य नहि छल - आब जे कथा कहैत छी से यथार्थ मे सोन अछि - एकरा बिगाड़ क हेतु बहुतो लोक प्रयत्न करत - तैं सतर्क रहब - अनका कथा पर ध्यान नहि देव - आब अहाँ अपन लोक भऽ गेलहुँ । हम जौं सपरि कऽ एहि मे पड़ि जाएब त कथा निश्चय भय जायत .......इत्यादि-इत्यादि ।

टुन्नी झा कैं देखितहि एगोटा पाछां सॅं आबि कय नमस्कार कैलथिन्ह । टुन्नी झा बाजि उठलाह नमस्कार ! नमस्कार वैदिक ! छी निकें ?

तदुपरान्त टुन्नी झा घुटर झा क दिशि सं केत कैलथिन्ह जे अहाँ लोकनि ताबत एही ठाम रहू- हम पहिने जा कऽ कथा क रङ्ग-ढङ्ग देखने अबै छी आध घंटा क बाद टुन्नी झा ओही वैदिक कैं सङ्ग नेने प्रत्यागत भेलाह । टुन्नी झा अबितहि बजलाह - औ बाबू ! अहाँ क कार्य त सुतरि गेल । किन्तु पुछिऔन्ह वैदिक शौं हम अहाँक पक्ष सॅं कतेक लड़लहुं अछि ! मानि लियऽ जे गर बाझि गेल । अन्त मे मानि लियऽ स्वीकार करहि पड़लैन्ह । आब अपनहि गप्प-सप्प कय शभ टा फरिछा लियऽ ।

भोलानाथ झा पुछलथिन्ह - वर क की मूल छैन्ह ? कतय रहै छथि ?

टुन्नी झा कान क जड़ि कुड़ियबैत बजलाह- मूह सॅं अहाँ कैं कोन काज ? मानि लियऽ शुरगणें छथि तैं की ? शुद्ध मैथिल ब्राह्मण त छथि । की औ वैदिक ?

वैदिक माथ झुलाय कऽ अनुमोदन कैलथिन्ह। तखन घूटर झा प्रश्न कैलथिन्ह- वर क घर कतय छैन्ह ?

टुन्नी झा कनेक खखसि कऽ बजलाह- मानि लियऽ दक्षिणे भर छैन्ह त हर्ज की ? शेहो बेशी दूर नहि- दलशिंहशराय शॅं चौदह कोश पर घर छैन्ह। हमर देखले अछि। घर-द्वार परम शुखितगर। की औ वैदिक ?

वैदिक पुनः हाथ झुलाय एहि कथाक समर्थन कैलथिन्ह। तखन टुन्नी झा अपन ब्रह्मास्त्र रूपी वचन क प्रयोग करय लगलाह- वर मानि लियऽ जे एफ० ए० मे पढैत छथि। कान्यागत क द्वारे मानि लियऽ जे दरबाजा पर एकटा बरहमशिया चूल्हि बनले रहैत छैन्ह। पहिने मानि लियऽ चलै छल महादेव झा पाँजि, श्री कान्त झा पाँजि, आब चलैत अछि मानि लियऽ डिप्टी पाँजि, वकील पाँजि, मास्टर पाँजि। वरक पिता मानि लियऽ जे नाक पर माछिए नहि बैशऽ दैत छलाह जे यावत बेटा मानि लियऽ बी० ए० पाश नहि करताह तावत मानि लियऽ जे माथ पर मौर नहि देबैन्ह। तखन हम अपने जनउ जोड़ि कऽ ठाढ भऽ गेलिऎन्ह। तखन कहलन्हि जे बेश शात शय टाका अहाँ कहियौन्ह -हम बेटा दए देवैन्ह। शम्भव थिक जे अधिक दबौला शॅं पचीस टाका आओर छूटि जाएत। आब शुभस्य शीघ्रम करबाक चाही। की औ वैदिक?

वैदिकजी महादेव क बसहा जकाँ फेरि माथ झुलाबय लगलाह। घूटर झा एवं भोलानाथ झा घटक छ सङ्ग वरपक्ष सँ गप्प करय गेलाह। पूरे अढाइ घण्टा महोजरो भेला पर ई निष्कर्ष बहरायल जे छौ सै सँ एक कौड़ी कम पर कथा नहि भय सकैछ। भोलानाथ झा बेचारे बहुत साहस कय पौने दू सै टाकाफाँड़ मे नेने आएल छलाह, षटशत मुद्रा क नाम सुनि प्राण सुखा गेलैन्ह । अन्त मे हारि-दारि क' दुहू मामा-भागिन डेरा पर अबैत गेलाह।

डेरा पर पहुँचला उत्तर घुटर झा चपकन क भुंडी फोलैत बजलाह - हौ बाबू ! आइ भरि दिन दाउनि क बरद जकाँ घुमितहि छी । पहिने पाक-शाक क उद्योग करै जाह, तखन बुझल जैतैक ।

भोलानाथ झा टीक सोहरबैत बजलाह - मामा ! हम त भरि जन्म कहियो अपना हाथ सॅं भूमिदाह नहि केने छी । माथ पर दू-चारि पसेरी क बोझ बरु राखि दी, त से धऽ आएव, किन्तु भानस कैल हमरा बुतें पार नहि लागत।

घूटर झा कहलथिन्ह- हौ बाबू! हम तॅं आठमहि वर्ष सॅं चुल्हि क मुँह मे आँच लगबए लगलहुँ। बिनु सिद्धान्ने कल्याण नहि। वेश, हम सीधा सामग्री लय अनैत छी। तावत तों ठकबा सॅं चौका ठीक करबौने रहिहऽ।

ई कहि घूटर झा कैञ्चा लए हाट क दिशि बिदा भेलाह। ओतय आङुर सॅं टनटना कय एकटा छोट-छीन पातिल किनलन्हि। जखन डेरा पर प्रत्यागत भेलाह, तखन ठकबा पर तमसाय लगलाह-'भारी धिम्मड़ अछि। हम कहैत छलहुँ जे चुल्हि बना कऽ आँच पजारने होयत से एखन धरि भूमिए खड़रैत अछि। आध घण्टा क अविरल परिश्रम क अनन्तर घूटर झा क चुल्हि तहिना धधकि उठल जेना कन्यागत द्वारा विशेष बिदाई नहि भेटला पर समधि क कोपाग्नि धधकि उठैत छैन्ह।

जखन घुटर झा अधहन मे दालि लगाबय लगलाह तखन पाछाँ सॅं क्यो व्यक्ति आबि कय प्रणाम कैलथिन्ह । घुटर झा पाछाँ ताकि कैं बजलाह- के मुकुन्द ? निकें रहऽ । हौ ! तों कतय सॅं ?

मुकुन्द झा बजलाह - की कहू मामा ? भारी ठकान मे पड़ि गेलहुँ ।

घुटर झा दालि लगायब छोड़ि कय पुछय लगलथिन्ह - से की ? से की ?

मुकुन्द कहय लागल - हमरा पर जुड़ानपुर क वर्त्तुहार आयल छल। कथा क निश्चय भऽ गेलैक चालीस टा रुपैया पर। हम अपना दिशि सॅं दू टका खर्च कय सिद्धान्तो लिखबौलहु। चलबा क काल मे हमरा कहलक जे रुपैया पहिनहि गना दियऽ। हम गनाबय लगलिऎक ताहि मे संयोग सॅं एकटा रुपैया खराब बहरा गेलैक। दोसर रुपैया संग में रहबे नहि करय। आब लाख-लाख कहलिएक जे एकटा पाछाँ लय लेब से किन्नहु मानबे नहि कैलक । अन्त मे मझौलियाक एकटा द्वितीय वर चालिस रुपैया गनि देलकैक तकरे लऽ गेल । हम मूहें तकैत रहि गेलहुँ ।

भोलानाथ झा नेत्र विस्फारित करैत बजलाह - कहू त केहेन भारी धरकट बाभन छल । हमर पिसियौत भाइ कैं एहिना भेल रहैन्ह । 'भलमानुस' कैं लऽ जाइत रहैन्ह । एक्का ठीक भेल- सभ गोटा चढैत गेलाह । जखन मधुबनी पहुँचैत तखन एकमान अट्ठारह आना भाड़ा माँगय लगलैन्ह । आब झगड़ा उठल जे किराया क कैञ्चा के देतैक । एहि पर त्वञ्चाहञ्च होइत-होइत मारि बजरल । छत्ता-छत्तौअलि, जुत्ता-जुत्तौअलि सभ किछु होमय पर वृत्त भय गेल । ताबत एकटा दोसर बालक सभागाछी सॅं फिरल जाइत रहय । कन्यागत परिचय-पात बूझि कय पुछलकैक - औ बाबू आहाँ भाड़ा देबैक ? बालक तुरन्त अट्ठारह आना ढउआ फेकि देलकैक । कन्यागत ओही बालक कैं नेने-देने चल गेल । हमर पिसियौत भाय टुकुर-टुकुर तकैत रहि गेलाह ।

ई सभ कथा सुनि घुटर झा गम्भीरता पूर्वक बजलाह - हौ बाबू तोरा लोकनि की देखलहौक अछि ? सभागाछी क ठकैती ओ भोजपुर क डकैती दुहू नामी छल । एक बेरि क हाल कहैत छियौह । एकटा साठि वर्ष क बूढ - बेश लक्ष्मीपात्र- तनिका जखन कोहा-कौड़ी जुगताब कऽ समय ऎलैन्ह, तखन जा कऽ विवाह करबाक उक्खी-व्क्खी लेलकैन्ह । बस एकटा दीयर कऽ छोटबभना परतारि कऽ अपना ओहि ठाम लऽ गेलैन्ह । पूरे नौ सै टाका गनबा लेलकैन्ह । राति मे एकटा निमोछिया जवान सॅं विवाह करा देलकैन्ह । कोबर करय गेलाह त बिधिकरी कहलकैन्ह जे कनेयाँ कैं कोदबा भय गेल छैक । चतुर्थी क प्राते वरराम कैं विदा कय देलकैन्ह । जकर हाथ धैलथिन्ह तकर मुँहों नीक जकाँ नहि देखि सकलाह । जखन दुल्हा राम अपन गाम पर पहुँचलाह, तखन ससुर हजाम पठौलथिन्ह जे हमर बेटी कोदबा सॅं शान्त भऽ गेलीह । कहू, एकरा ठकैती कहब की डकैती ?

भोलानाथ झा मुकुन्द कैं आश्वासन दैत बजलाह - की करबहक, मुकुन्द ! रुपैया त बाँचि गेलौह ! कोन ठेकान तोरो कतहु पुरुषे सॅं विवाह करा दितौह त कोन उपाय करितह ?

घुटर झा फेरि एकटा कथा पसारबा क सूर-सार कैलन्हि, तावत आँच मिझा गेलैन्ह । तैं गप्प छोड़ि पाक-क्रिया में तत्पर भय गेलाह । जखन चाउर पूर्ववत् खदकय लगलैन्ह, तखन मुकुन्द दिशि ताकि कय कहलथिन्ह - की हौ मुकुन्द ! भोजन त नहि कैने होयबह ?

मु०- नहि, की होयतैक ? दोकान पर जा कऽ किछु खा लेबैक ।

घू०- ओह ! दोकान पर असिद्ध की खैबह ? घी मे चरबी फेटने रहैत छैक । एहि ठाम सिद्ध अन्न मे जे स्वाद भेटतौह , से बजारु पूड़ी मे कतय पैबह ?

मु०- हॅं से त हमरो आइ चारि साँझ सॅं असिद्ध खाइत-खाइत जी उमठि गेल अछि । किन्तु ......

किन्तु की ? त्रयाणां पाकसम्पन्ने, चतुर्णामपि भोजनम । तों खैबे कतेक करबह ?

मु०- हॅं से त हम बहुत कम खाइत छी । ताहि भूखो कम्मे अछि ।

घूटर झा खिचड़ी क पातिल उतारि चारिटा पात पर परसलन्हि । फेरि ओहि मे सॅं आलू बिछि कय साना कैलन्हि । तखन बजलाह जे बेश, आब अबैत जाउ, नमोनारायण करु ।' दुहू गोटा पैर धो कऽ बैसैत गेलाह । मुकुन्द क पेट तेहने रहैन्ह जे चारु पात पर क खिचड़ि आगाँ मे देल जैतैन्ह, तैयो छुछुआएले उठितथि, किन्तु करताह की ? जैह नैवेद्य भेटलैन्ह ताही पर सन्तोष कऽ उठि गेलाह ।

अचावय काल मुकुन्द बजलाह - मामा ! आइ दालि बड़ दिब सिद्ध भेल, स्वादिष्टो तेहने भेल छलैक । बुझि पड़ैत छल जेना गंगाजल मे बनल हो ।

घुटर झा खरिका करैत ठकबा सॅं पुछलथिन्ह - की रौ ! पानि कतय सॅं अनने छलैं ?

ठकबा गोंहछि कैं बाजल- एही उत्तरवारी पोखरि सॅं अनलहुँ आओर कोन मे सॅं आनब ?

घू०- रौ ! लघियाही पोखरि सॅं त ने अनलैं ?

ठ०- तॅं की हड़ाही पोखरि सॅं नेने अबितहुँ !

घुटर झा बजलाह- हौ बाबु ! आब किछु बाजह जुनि । फिरती बेरि सिमरिया घाट मे एक डूब देबय पड़ैत गेलौह ।

तदनन्तर कम्बल बिछा कऽ गप्प-शप्प करैत तीनू गोटा स्वप्नराज्य मे प्रविष्ट भेलाह ।

प्रात भेने मुकुन्द उठि कय दोसरा दिशि बिदा भेलाह । दूहू मामा-भागिन झट-पट स्नान-भोजन कय सभागाछी मे प्रवेश कैलन्हि । थोड़बहि दूर पर काँख तर एक पुलिन्दा कागज नेने घटकराज टुन्नी झा भेटलथिन्ह । घूटर झा पुछलथिन्ह- औ घटक ! ई की थिक ?

टुन्नी झ आँखि मटकबैत कहलथिन्ह - एही माश शॅं एकटा माशिक पत्र चललैक अछि मानि लियऽ जे 'मिथिला शुधारिणी' । तकरे विज्ञापन थिकैक । हमरा पचाशेक बाँटक हेतु देने छल । हम देखल जे मानि लियऽ एक पीठ खालिए छैक । उत्तेढ़ि लिखबा योज्य त भऽ गेल । यैह कहाँ क थोड़ । आगि लगन्ते झोपड़ा, जे निकशे से लाभ । एकटा अहूँ लऽ लियऽ जे पाग मे धरऽ योग्य त होयत ।

घुटर झा एक चुटकी नसि सुरकैत बजलाह - हॅं,हॅं, हमरो मधुबनी स्टेशन पर एगोटा भेटल रहय । जैखन गाड़ी सॅं उतरलहुँ कि दिक करय लागल जे अपनहु ग्राहक बनि जाउ । हम पुछलिऎक जे औ बाबू ! मङ्गनी देबैक कि किछु नगदो नारायण लेबैक ? ताहि पर कहलक जे तीन टाका साल मे लागत । हम कहलिएक जे एहि पत्र सॅं हमरा एको सांझ क खर्चा चलत ? ओ कहलक से त नहि होयत । हम कहलिऎक - वेश, चुपचाप अपन बाट धरु । सभ सॅं बाढ़ि बुरिढहलेल अहाँ कैं हमहीं बूझि पड़लौह ? तीन टाका मे हमरा दू साल क नोन चलत । एकबार लऽ कऽ कि चाटब ? फेरि एहन कथा बजबैक त लोक उकठि करय लागत ।

टुन्नी झा अपन चातुर्य क दाबी देखबैत बजलाह - हमर नाम त मानि लियऽ जे जबर्दश्ती ग्राहक मे लीखि लेलक । त की अहाँ कैं बूझि पड़ैत अछि जे हम एकोटा कैञ्चा देबैक ?

भोलानाथ झा माथ कुड़ियबैत बजलाह - 'मिथिला-सुधारिणी' पुस्तक हम देखने छलिऎक । ज्योतिषीकाका अनने रहथि । ओ बजैत रहथि जे ई पत्र व्यर्थ टांहि-टांहि कय रहल अछि । मैथिल जाति मे सुधार-तुधार किछु नहि भऽ सकैत छैक ? टुन्नी झा अपन पाण्डित्य क प्रखर प्रकाश देखबैत बजलाह- 'ई पत्र त मानि लियऽ जे अपनहि आर्यशमाजी थिक । ई सुधार की करत ? मानि लियऽ अपनहि जाति कऽ निन्दा करैत अछि । ई परम अनर्गल थिक । जौं अपनहि घर क दोष अपने देखर करय लागब, तखन त दोसर जाति त मानि लियऽ जे धूशि कय छोड़ि देत । हमरा जौं शम्पादक शैं भेंट होइत, त कहितिऎन्ह जे अपने कने ज्ञान झा क योग दय कऽ देखियौक ।'

एहि प्रकार क समालोचना होइत छल कि फराक सॅं टुन्नी झा कैं क्यो सोर पाड़लकैन्ह । टुन्नी झा खरज स्वर सॅं गर्द कय कहलथिन्ह - यैह ऎलहुँ । कनेक थम्हि गेल जाओ ।