3. तार कोना पढ़ाओल गेल कन्यादान
फैसला सुनबा क समय यावत मुद्दालह लोकनि कठघरा मे ठाढ़रहैत छथि, तावत पर्यन्त हुनका लोकनि क सौसे देह भुलकैत रहैत छैन्ह । किन्तु हाकिम क मुँह सॅं रिहाइ क आज्ञा सुनैत देरी हुनका लोकनि कैं कत गोट मोक्षानन्द क प्राप्ति होइत छैन्ह, से केवल भुक्तभोगिए अनुभव कय सकैत छथि । दरवाजा पर ज्योतिषी कका क शब्द सुनि लालकाकी लोकनि कैं ओही प्रकार क आनन्द बुझि पड़लैन्ह ।
ज्योतिषी कका पहिने त हरकारा सॅं ओकर जाति पुछलथिन्ह, तदनन्तर गाम, परगन्ना, थाना, बाप क नाम आदि पूछि कय निम्नलिखित प्रश्नावली करय लगल्थिन्ह - 'अहाँ कै भाइ छी ? कतेक घर जयवार अछि ? भोजन मे कै मन चाउर लगैत अछि ? कतेक खेत जोतै छी ? धियापुता सभ विवाहल अछि कि कुमारे ? राति मे भात खायब कि अपना हाथ सॅं पाक करब ?' इत्यादि, इत्यादि ।
हरकारा सभ प्रश्न क यथोचित उत्तर दय हाथ मे तार देलकैन्ह और प्रणाम कय विदा भय गेल । ज्योतिषी कका खराम खटखटकबैत दलान क मुँह पर पहुँचलाह और दू-तीन बेर बल सॅं खखास कैलन्हि । से सुनितहि लालकाकी, फुचुकरानी, बड़कागामवाली सभक सभ अपना-अपना घर दिशि पड़ैलीह । तखन ज्योतिषी कका आङ्गन मे पदार्पण कैलन्हि । मैंया खाट पर बैसबा क संकेत कैलथिन्ह । ज्योतिषी कका केथरी कैं हटा कए अखरा खाट पर बैसि गेलाह ।
तदनन्तर ज्योतिषी कका क उपन्यास प्रारम्भ भेल । कोना भोजन कैलन्हि, कोना आचमन कैलन्हि । कोन तरहें लोटा लऽ कऽ बहरैलाह, कोन तरहें दछिणबरिया खत्ता मे लघुशंका करय गेलाह, कोन रुपें झुनियाँमाय क स्वर कर्णगोचर भेलैन्ह । कोन रुपें जिज्ञासा करबाक हेतु चललाह, से सभ कथा एक घंटा मे सविस्तार कहि सुनौलथिन्ह ।
तदुपरान्त लालकाकी घर सॅं बुचिया द्वारा पुछबौलथिन्ह जे तार मे की लिखल छैक ? ज्योतिषी कका तार कैं उनटबैत-पुनटबैत बजलाह - 'हमरा तर्क मे अबैत अछि जे भोलानाथ कैं कतहुँ सॅं उपनयन अथवा विवाह क निमन्त्रण आएल छैन्हि । से किएक तॅं लाल कागत मे लिखल छैक । जौं श्राद्ध कऽ नेओत रहितैन त कदाचितो लाल नहि पठवितैन्ह । निश्चय शुभकार्यक पाता थिकैन्ह । जौं तिरहुता मे लिखल रहितैक त हम स्वयं बाँचि लितहुँ ।' तदनन्तर ज्योतिषी कका कैं जीवन भरि जतेक निमन्त्रण पत्र लाल आखर अथवा लाल कागत मे आएल रहैन्ह, ताहि सभ क विस्तार पूर्वक उपाख्यान सुनाबय लगलथिन्ह ।
अन्त मे प्रश्न उठल जे आब तार पढाओल कोना जाएत ? ज्योतिषी कका किछु काल बिचारि कय बजलाह - सकुड़ी मे एकटा बड़ पैघ डाक्टर अछि । यदि ओकरे सॅं ई पत्र पढ़वाओल जाइत त यथार्थ समाचार बूझि पड़ैत । अपना गाम क त जे केओ अङ्गरेजिया अछि से सभ बाहरे अछि काल्हि भिनसरे ककरो सकुरी पठेबाक चाही । कतहु तिथि टरि जैतैन्ह त मुफ्त मे बिदाइ मारल जैतैन्ह ।
मैया चिन्तित भाव सॅं कहलथिन्ह - राड़-रोहिया त आइकाल्हि डुम्मरि कऽ फूल भय गेल अछि । जहाँ घर मे चारि पसेरी मरुआ होइत छैक कि कनडेरियो नहि तकैत अछि । काल्हि ककरा पठैबैक से नहि सुझैए ।
ज्योतिषीकका अपना पैरक अंगुठा दिशि तकैत बजलाह - हम त अपनहि भ अबितहुँ, किन्तु परसू ठेस लगला सॅं औठा मुड़ुकि गेल । तैं चलबा मे कष्ट होइत अछि मुकुन्द एहि सभ मे बेश चड़फड़ अछि । किन्तु ओ त एतय अछिए नहि ! झारखंडी कै पठबितिऎक से ओकरा किछु गमले-बुझले नहि छैक ।
झारखंडी कैं नाम सुनितहि लालकाकी बुचिया द्वारा कहबौलथिन्ह - ओकरा छोड़ि और ककरो जुनि पठबथुन्ह । ओ बड सगुनियां लोक अछि । जतहि जाइत अछि, ततहि काज बनौने अबैत अछि ।
अन्ततोगत्वा ई प्रस्ताव सर्वसम्मति सँ स्वीकृत भेल जे भिनसरे झारखंडी कैं किछु पनपियाइ करा सकुड़ी पठाओल जाय। ज्योतिषी कका कनेक काल और बैसितथि, किन्तु उड़िस काटय लगलैन्ह। उठि बिदा भए गेलाह।
झारखंडीनाथ सूति उठि कय दातमनि कैलन्हि और पोखरी मे एक डूब दऽ, भीजल अङ्गपोछा डाँड़ मे लपेटनहि भोलानाथ झा के आङन मे पहुँचलाह। लालकाकी हपसि कय कहलथिन्ह-आउ ऎ बाबू! अहीं क बाट तकैत छलहुँ। बड्ड जरुरी काज भऽ पड़ल, तै बजा पठौलहुँ अछि ।
झारखंडीनाथ बजलाह - सकुड़ी जैबा मे त हमरा दिशि सँ कोनो भाङठ नहि, किन्तु आइधरि हम कहियो ओतय नहि गेल छी, और दोसर जे ओहिठाम अपन चिन्हारो केओ नहि अछि। ताहि पर रामजी क प्रताप सँ धोतियो धोबिए क ओहिठाम अछि।
लालकाकी पोल्हा कए कहलथिन्ह- ऎ बाबू! धोती हम दैत छी। जे किछु सेवा-खर्चा लागय से लय लियऽ। हम की कहू ! बूझब जे अपन काज थिक । बेश, आब पैर धो लियऽ । पितियाइन ठाँव-बाट कैने छथि।
एकरा उत्तर मे झारखंडीनाथ एक लोटा पानि पैर पर उझीलि पीढ़ी पर आबि कय बैसि गेलाह और चूड़ा भिजाबय लगलाह । लालकाकी लग मे बैसि आम क मुँहठी काटि-काटि देबय लगलथिन्ह । झाड़खंडी कैं तृप्तिपूर्वक भोजन करैत देखि लालकाकी नहूँ-नहूँ बजलीह - के जाने कोन बात तार मे लिखल छैक । जे नीक-बेजाय होइक से अपनहि पेट मे राखब । एकर हाल ककरो अनका नहि कहबैक ।
झारखंडी पूर्ववत् चोभा लगबैत बजलाह - भला कहू त ! ई बात क कान मे किन्नहुँ जा सकैत अछि ! हम रामजी क प्रताप सॅं तारक चर्चो टा ककरो आगाँ मे नहि करब ।
लालकाकी प्रसन्न भय सन्दूक सॅं एक खंड धोती बाहर कैलन्हि । पुनः पा तिनियेक चूड़ा, एक धरिका अमौट और चारि आना कैञ्चा आनि कय झारखंडी आगाँ मे राखि देलथिन्ह । झारखंडी बटखर्चा लेब मे कुण्ठित होमय लगलाह । किन्तु लालकाकी अपन सपत देलथिन्ह तॅं चुपचाप सभ वस्तु लय बिदा भेलाह ।
झारखंडीनाथ किछु दूर गेला क उपरान्त कोनी कटैत अपना घर पहुँचलाह । ओतय चूड़ा, अमौट, कैञ्चा सभ राखि देलन्हि । तखन बथान दिशि चललाह । बाट मे जे क्यो भेटैन्हि तकरा सभ कैं तारक वृत्तान्त कहि सुनबथिन्ह और अन्त मे कहि देथिन्ह जे देखब ई बात गुप्त थिक, ककरो आगाँ बाजी जुनि । एहि प्रकारें सभ सॅं एकान्ती करैत झारखंडी बथान पहुँचलाह और ओतय जा कऽ चरबाह सभ कैं तार क हाल सुना कहलथिन्ह जे तोरा लोकनि तावत माल-जाल कैं नीक जकाँ देखैत-सुनैत रहिहें ।
झारखंडी पूरे तिन बजे सकुड़ी क सड़क पर दृष्टिगोचर भेलाह । ओतय एकटा मोदिआइन सॅं पुछलथिन्ह - 'गौ, सकुड़ीक डाकदर कोन ठाम रहता है ?' एवं प्रकारें झारखंडीनाथ सभ सॅं पुछारी करय लगलाह - 'डाकदर क बासा कतेक दूर पड़ता है । हमरा केओ गोटे बाट देखा देते हैं ?' ताहि पर जों क्यो पूछन्हि जे कोन डाक्टर' त कहथिन्ह जे 'सकुरी क डाकदर ।' हिनका अपना भरि बौआइत देखि एगोटा अस्पतालक बाट देखा देलकैन्ह । ई जा कऽ रोगी सभ कऽ बीच मे ठाढ़ भऽ गेलाह । सिपाही पुछलकैन्ह - 'तुमको कौन बीमारी है ?' हिनका बूझि पड़लैन्हि जे ई अपनैति सॅं जिज्ञासा कय रहल अछि । कहलथिन्ह जे 'हमरा आङ्गन मे कनेक-कनेक कब्जियत बूझि पड़ता है । रामजीक प्रताप सॅं कहियो-कहियो पेटो फूलि जाता है । और सभ लोकवेद निकें रहता है ।'
'हमरा आङ्गन' कहला उत्तर स्त्री क बोध होइछ, ई सूत्र प्रायः सिपाही कैं नहि ज्ञात छलैक । ओ बाजल अच्छा, थोड़ी देर मे डाक्टर साहब आ रहे हैं । तबतक यही ठहरो ।
डाक्टर अबितहि रजिस्टर फोललक और एकाएकी सभ रोगी कऽ विवरण लय नुसखा लिखय लागल । जखन झारखंडीनाथ क पार ऎलैन्ह, तखन हिनको सॅं नाम और अवस्था पुछलकैन्ह । ई कहलथिन्ह - सरकार ! हमरा लोक सभ दुलार सॅं 'खट्टर' कहता है, लेकिन असल नाम झारखंडी माय बाप राखि दिया । और उमिर मे सरकार सभ भाइ सॅं छोट हैं ।
डाक्टर चश्मा क भीतर सॅं आँखि गुड़ेरि कय बाजल - 'बीमारी क्या है ? जल्द कहो।' झारखंडीनाथ हड़बड़ा गेलाह । बजलाह- हम त लालकाकी क काज सॅं एहि ठाम - रामजी क प्रताप सॅं - बिमारी तॅं कुछ नही सरकार एकठो तार - कनेक झट दऽ काज भऽ जाय ।
डाक्टर अत्यन्त कुपित भय बाजल - कहाँ गया दरबान ! हटाओ इसको यहाँ से । काहे बदमाश को यहाँ घुसने देता है ?' सिपाही कैं अपना दिशि अबैत देखि झारखंडी 'बाप रे बाप' कहि पड़ैलाह ।
झारखंडी नाथ पड़ाएल-पड़ाएल एकटा 'पवित्र मैथिल भोजनालय' क निकट पहुँचलाह । ओहि ठाम संयोग सॅं अपना मसियौत भाय पर दृष्टि पड़ि गेलैन्ह । ओ देखितहि टोकलथिन्ह - हौ, झारखंडी छऽ हौ ! ऎम्हरे-एम्हरे । एखन गाड़ी कैं बहुत बिलम्ब छौह ।' झारखंडी कैं कतहु सॅं प्राण ऎलन्हि । हृदय मे भ्रातृस्नेह क समुद्र उमड़ि ऎलैन्ह । कलपि-कलपि कय सभटा हाल सुना गेलथिन्ह ।
मसियौत आश्वासन दैत कहलथिन्ह - कोनो चिन्ता नहि। एहिठाम एकटा मोहर्रिर रहैत छथि। हमर बेश चिन्हार छथि ! चलह, हुनके सँ काज भए जैतौह।
झारखंडी अपना मसियौत भाय क पाछाँ-पाछाँ मोहर्रिर क डेरा पर पहुँचलाह। ओहिठाम पटिया पर बैसल एक व्यक्ति हुक्का पिबैत रहय । हिनका लोकनि कै देखि कहलकैन्ह - मोहर्रिर साहब पाखाना गये हैं। करीब एक घंटा मे आवेंगे। '
अगत्या ई दूहू गोटा एक टूटल चौकी पर बैस गेलाह। पूरे पैंतालिस मिनट पर मोहर्रिर साहेब उकासी करैत पैखाना सँ बहरैलाह। अबितहि नौकर कैं डाँटय लगलाह जे 'साला, पैखाना इतना गन्दा काहे कर दिया! जाने को मिजाज नहीं करता है।' पुनः हुक्का पिउनिहार व्यक्ति पर बिगड़य लगलाह जे 'हमारा हुक्का ताख पर से काहे उठा लाते हैं?' फेरि भीतर जा कऽ कोनो कारणवश धियापुता सभ कैं ठोकए लगलाह । जखन ओ सभ चें-भों करए लगलैन्ह तखन मोहर्रिर साहब बाहर ऎलाह ।
हिनका लोकनि कैं बैसल देखि मोहर्रिर तमसा उठलैन्ह - 'ए साहब क्या कर रहे हैं ? चौकिया टूट न जायगी !'
ई लोकनि फुरफुरा कऽ उठि गेलाह और सभ वृत्तान्त कहि सुनौलथिन्ह । मोहर्रिर साहेब कहय लगलथिन्ह- 'ए साहब ! हम तो लिखने-पढने का काम बिलकुल छोड़े हुए हैं । खाँसी के मारे नाकोदम आ गया है । उसमे कब्जियत हो गई है सो पैखाना जल्दी उतरता ही नहीं । खैर, लाइए तो देखें, कैसा तार है ।'
मोहर्रिर साहेब तार कैं तजबीज करैत बजलाह - 'ए साहब ! हमको तो बिना चश्मा के कुछ सूझता ही नहिं है।' नौकर पर खिसिया कऽ कहलथिन्ह - 'रे उलुआ ! ताकता क्या है ? चश्मा न ले आ ।'
चश्मा ऎला उत्तर मोहर्रिर साहेब नाक पर कमानी चढौलन्हि, फेर लत्ता क छोर सॅं ओकरा कान मे बन्हलन्हि । तखन तार पढ़य लगलाह - 'ए साहब ! पहले 'बी' मालूम पड़ता है, तब शायद 'एम' है- नहीं 'डब्ल्यू' है, उसके बाद 'जेड' है, उसके बाद......ए साहब ! यह तो बड़ा गड़बड़ है । हमसे नहीं होगा । नाहक इतना तंग किया । ले जाइये ।' झारखंडीनाथ अपना मसियौत भाय क सङ्ग पुनः भोजनालय मे पहुँचलाह । दीप लेसबाक बेरि भय गेलैक । मसियौत भाय आग्रह कैलथिन्ह जे - 'आब कहाँ जैबह ? राति होटल मे खा-पी कऽ भिनसरे चलि जैहऽ ।'
झारखंडीनाथ जन्म-भरि कहियो होटल क मुँह नहि देखने छलाह। आइ पहिले-पहिल क सिहन्तगर नाम सुनि आह्लादित भए भोजनालय क भीतर मे जा कऽ देखलन्हि जे टोकना क टोकना चढल अछि। एकटा अढेया मे अङपोछा लगाय माँड़ पसाओल जा रहल अछि। एकटा बड़का टोकना मे पीयर राहड़ि क दालि लगाओल जा रहल अछि। एगोटा बड़का सिलौट पर आमक चटनी पिसैत अछि। ई सभ देखि झरखंडी क जीभ सँ पानि खसय लगलन्हि। मसियौत भाय क लग जा कऽ पुछय लगलथिन्ह- भाइ साहेब एतय कोनो भोज-भात क तैयारी भऽ रहल छैक की?
मसियौत भाय कहलथिन्ह- एतय सभ दिन एहिना होइत छैक। दू आना कैञ्चा देला सन्ताँ जे क्यो आबथि तनिका भरिपेट भात,दालि, तरकारी और चटनी खोआए देल जाइत छैन्ह ।
झारखंडी कनेक विस्मित भए बजलाह-और जे क्यो असौजनियाँ छथि तनिका लोकनि कैं की भोजन कराओल जाइत छैन्हि ?
मसिऔत भाय बिहुँसि कय कहलथिन्ह - जे क्यो असौजनिया अबैत छथि तनिका लोकनि कैं नीक जकाँ चानन-काजर कए, पाग-डोपटा बिदाई दय सौजन्य कराओल जाइत छैन्ह । किन्तु डाला पर पहिनहि सभ दाम जोड़ि कय चढाबए पड़ैत छैन्ह ।
झारखंडीनाथ आश्चर्जित भए बजलाह - अरौ तोरी क रौ तोरी ! एहन रंगताल त कहियो ने सुनने छलिऎक ! बेश, ई त कहू जे घरबैया क मूल की थिकैन्हि ?
मसियौत भाय आकुंचित नयन सॅं कहलथिन्ह - घरबैयाक मूल थिकैन्हि अछिंजले भतवार । हिनका ओहि ठाम आब बड़-बड़ पैघ लोक अबैत छैन्हि । वैह देखू एकटा पागधारी औखन आबि रहल छथि । ई उपदेशक जी थिकाह । आन ठाम जैताह त भरि ठेहुन जमाबए लगताह जे हम अरबे चाउर भोजन करैत छी, किन्तु एहि ठाम ऎला सन्ताँ अपैत-सपैत सभटा हविष्ये बनि जाइत छैन्हि ।
एतबहि मे एकटा मैट्रिक फेल जे डाकपिउनगिरि क हेतु सिफारिशी चिट्ठी अनने छल और दू-तीन दिन सॅं दौड़ि-बरहा करैत छल, भोजनालय मे पहुँचल । झारखंडी क मूँह सॅं लगातार तार कऽ चर्चा सूनि ओ कहलकैन्ह - 'महाराजजी ! कैसा तार है ? लाइये न, पढ़ दें ।' झारखंडीनाथ हड़बड़ी मे दूनू हाथें तार बढा देलथिन्ह। ओ तार पढए लागल-
'मैरेज सेट्ल्ड ब्रिंगिंग ब्राइडग्रूम आन ट्यूजडे इवनिंग ऎरेंज।'
पाछाँ भाषा में अर्थ बुझाबय लगलैन्ह- तार पठने से आया है। रेवतीरमण नाम के किसी आदमी ने पटना से तार भेजा है। शादी ठीक हो गई। वह मंगलवार की शाम को दूल्हा लिये आ रहे हैं। तबतक सब इन्तजाम कीजिए।