लेखक : हरिमोहन झा

मिस्टर सी० सी० मिश्रा पड़ल-पड़ल भावी पत्नी क रंग-विरंगी काल्पनिक चित्र खिचबा मे तन्मय भेल छलाह । एहि बीच मे रेवतीरमण पहुँचि कहल्थिन्ह - आपकी खातिर अन्दर से पान आया है, इसे ग्रहण कीजिए और जो सर्वेन्ट (नौकर) इसे लाया है, उसके लिए इसमे जो रिवार्ड (बखशीश) देना हो डाल दीजिए ।

मि० मिश्रा कैं असमञ्जस मे पड़ल देखि रेवतीरमण कहलथिन्ह - देखिए, विलो स्टैण्डर्ड (निम्न स्तर) का कोई काम मत कर बैठिएगा नही तो यू विल कट ए सॉरी फिगर अमॉङ्ग दि लेडिज (भद्र महिला-समाज में उपहासास्पद बनिएगा) । पाँच रुपए से कम रखना एटीकेट (कायदा) के खिलाफ है ।

मि० मिश्रा एक नोट बाहर कए ओहि डब्बा मे राखि देलथिन्ह । एतबहि मे सहसा आङ्गन सॅं परिछनि क श्रोत उठल और मन्द गति सॅं दालान दिस बढ़य लागल -

'आजु शोभा जनक-मन्दिर चलहुँ देखन जाहु रे ।'

मि० मिश्रा अकचका कय पुछलथिन्ह - वेल, ह्वाट इज दि मैटर ? आ हियर ए कोरस नियरवाइ । (मामला क्या है ? कोरस सुनने में आ रहा है ।)

रेवतीरमण कहलथिन्ह - हाँ, आपही को वेलकम (स्वागत) करने के लिए महिलाओं का प्रोसेशन (जुनूस) निकला है । वे लोग रिसेप्सन-साङ्ग (स्वागत-गान) गाती हुई आपको लेने के लिए आ रही है । यू मस्ट प्रुव योरसेल्फ़ बर्दी ऑफ दि ऑकेजन ऎण्ड ऑब्जर्ब ऑल दि रिचुअल्स ऎण्ड सेरिमनिज विथ राइट कर्टसी (आपको चाहिए कि अवसरानुकुल विधियों का पालन शिष्टतापूर्वक करते जायें) दिस इज माइ फ्रेण्डली ऎडवाइअस ( मैं मित्र की हैसियत से आपको यह सलाह दे रह हूँ ।

मि० मिश्रा - बट आइ एम सॉरी, आइ डू नॉट नो दि फॉरमैलिटीज (लेकिन अफसोच है कि मुझे विधियों का कुछ हाल मालूम नहीं ) ।

रे० र० - नेवर माइण्ड, योर फ्युचर ब्राइड विल गाइड यू औल अलौङ्ग (कुछ चिन्ता नही, आपकी भावी पत्नी आपको बराबर सब कुछ बतलाती रहेगी) ।

ई अप्रत्याशित शब्द सुनि मिश्रजी क आश्चर्य क ठेकान नहि रहलैन्ह । विस्फारित नेत्र सॅं उत्सुक्तापूर्वक पुछलथिन्ह - कैन योर सिस्टर फ्रीली टॉक विथ मी बिफोर मैरेज ? (क्या आपकी बहन विवाह से पूर्व मेरे साथ निःसंकोच होकर बातचीत कर सकती है ?)

रेवतीरमण ईषत हास्ययुक्त स्वर सॅं कहलथिन्ह - वेल, शी इज मोर फास्टीडियस इन हर च्वाएस दैन योरसेल्फ (वह तो आप से भी कैइ गुनी बढ़ी-चढ़ी है) आप तो फ्यूचर वाइफ (भावी पत्नी) से सिर्फ इण्टरभ्यू (भेंट) भर चाहते हैं और वह अपने फ्यूचर हसबैण्ड (भावी पति) को पहले ही हर एक पहलू से अच्छी तरह एक्जामिन कर लेना चाहती है । तब जाकर अपना कन्सेण्ट (स्वीकृति) दे सकेगी । अच्छा, तो अब आप तैयार हो जाइए ।

रेवतीरमण पाग और डोपटा लय मि० मिश्रा क आगाँ बढ़ाय देलथिन्ह और कहलथिन्ह - आपको इस वक्त यह नेशनल हैट (स्वदेशी टोप) पहन लेना चाहिए और यह चादर गले मे डाल लेना चाहिए वाइफ (वधू) आपको रिसीव करने के लिए आ रही है ।

ई कहि रेवतीरमण एक परम सुन्दरी युवती क दिशि संकेत कैलथिन्ह । मिश्रजी देखलन्हि जे अठारह-उन्नैस वर्ष क एक लावण्य़मयी युवती हाथ मे पुष्पमाला नेने जुलूस क आगा विद्यमान छथि और मन्द-मन्द मुस्कुराइत क्रमशः बढ़ि रहल छथि । हुनक रूप-यौवन क आभा छनि-छनि कय गुलाबी साड़ी क तर सॅं बहरा रहल अछि । हुनक समुन्नत अञ्चल रेखावली देखि मिश्रजी क छाती पर साँप लोटय लगलैन्ह । ओ निर्निमेष दृष्टि सॅं ओहि दिशि ताकय लगलाह, किन्तु ओहि युवती क चंचल कटाक्ष अपना ऊपर पड़ैत देखि आखि झॅंपि गेलैन्हि ।

एतबहि मे ललनागण क समुदाय समीपतर पहुँचि गेल । मि० मिश्रा धड़कैत हृदय सॅं ओहि दिशि चललाह । मन मे सोचैत छलाह जे भावी पति कैं अपना सम्मुख देखि ओ युवती देखि ओ युवती अवश्य किछु संकुचित भऽ जैतीह । किन्तु हुनक ई अनुमान सर्वथा भ्रमपूर्ण सिद्ध भेलैन्ह । जैखन मिश्रजी ओहि चंचल युवती क समक्ष पहुँचलाह कि ओ बिजली जकाँ चमकि फूल क माला हिनका गर मे पहिरा देलथिन्ह । मिश्रजी क सर्वाङ्ग शरीर रोमांचित भऽ उठलैन्ह । ओ चित्रवत स्तब्ध रहि गेलाह ।

पुनः ओ नवयुवती अपन मृदुल स्पर्श सॅं हिनका पुलकित करैत हाथ पकड़ि लेलथिन्ह और कहलथिन्ह - आपकी आँखें झिप क्यों रही है ? कहीं आ तो नहीं गैई है ? अच्छा, ठहरिए मैं इनमे काजल लगा देती हूँ । और मालूम होता है कि आपका दिमाग भी इस वक्त ठंडा नहीं है । अगर मैं चन्दन का लेप लगा दूँ तो कुछ हर्ज तो नहीं है ?

ई कहि बिना उत्तर क प्रतिक्षा कैनहि युवती चानन-काजर कय देलथिन्ह । मिश्रजी एहि क्रिया क विरोध नहि कय सकलाह ।

एतबहि मे दुलारमनि पिउसी आँगा बढ़ि उद्दात्त स्वरें पुछलथिन्ह -

          'कतै    अवस्थित   की  मूलग्राम  ?
          के  छथि बाप-माय की थिक नाम ?
      

      

एकर भाव बूझि मिश्रजी बजलाह - हमर नाम छय सी० सी० मिश्रा ।

एहि पर सौंसे आङ्गन अट्टहास सॅं गूँजि उठल । दुलारमनि पिउसी बजलीह - 'मर्र ई कोन देश क भाखा बजै छथि ? मोगल क बेटा त ने छथि ?' एकटा प्रौढा चिबुकाग्र पर अनामिका राखि आश्चर्य क भाव प्रदर्शित करैत बजलीह - 'गे दाइ गे दाइ ! कोन माय-बाप एहन नाम बिछलकैन्हि ?' दोसर तरुणी छुबि कय बजलीह - 'सीसी मिसर ? तखन त बोतल मिसर हिनक बापे होइथिन्ह !' एहि पर पुनः ठहाका पड़ल । मिस्टर मिश्र अप्रतिभ भऽ अपना नाम क व्याख्या करय लगलाह - 'हमर पूरा नाम छय चण्डी चरण मिश्रा ।'

एहि पर पुनः हास्य-ध्वनि गुंजायमान भेल । ई देखि ओ युवती हिनका चलबाक हेतु संकेत कैलथिन्ह । मिस्टर सी० सी० मिश्रा कैं धरफराइत चलबाक हेतु अग्रसर होइत देखि युवती कोकिल-विनिन्दक मधुर स्वर सॅं बजलीह - क्षमा कीजिए, आपको साधारण शिष्टाचार का भी ज्ञान नहीं है । इतनी बड़ी-बुढी स्त्रियों के बीच में बेधरक बढे जा रहे हैं । मालूम होता है, मुझे आपके गले मे फन्दा डालकर ले चलना पड़ेगा ।

ई कहि हिनका गर मे डोपटा लपेटि हाथ सॅं धैने बिदा भेलीह । मिश्रजी कैं सभटा सिट्टी-पिट्टी गुम भऽ गेलैन्ह । ओ चुपचाप पाछाँ-पाछाँ चलय लगलाह । गीतगाइन लोकनि परिछनि क गीत गबैत मिश्रजी कैं चारु कात सॅं घेरने शनैः-शनैः आङ्गन दिशि अग्रसर भेलाह ।

गीत क तुमुल निनाद मे मिश्रजी क कर्ण-कुहर कैं अपना मधुर स्वर सॅं आप्लावित करैत ओ युवती नहूँ-नहूँ कहय लगल्थिन्ह - माफ कीजिएगा । कई शताब्दियों से स्वार्थी पुरुष लोग बेचारी अबलाओं को नाक पकड़कर नचाते आ रहे है । इसका बदला मैं आपसे लूँगी । मेरा संकल्प है कि जो पुरुष विवाह करने आवेगा उसको पहले नाक पकड़कर चलाऊँगी, तब पीछे कोई बात करुंगी । आशा है, आपको कोई आपत्ति न होगी ।

ई कहि युवती प्रौढतापूर्वक एक चाकर पान हाथ मे लय मि० सी० सी० मिश्रा क नाक पकड़ हुनक घुमाबय लगलथिन्ह।

मिश्रजी अवाक् भऽ सोचय लगलाह-वाह! यह तो खूब रहा! मैं बीसवीं सदी का हसबैण्ड (पति) होकर आया तो यहाँ बाईसवीं सदी की वाइफ (पत्नी) सिर पर सवार है। मैं समझता था कि दो शताब्दी मुझसें पीछे पड़ी होगी, सो दो शताब्दी और आगे ही निकली। अब लेने के देने पड़ गये। मैं आया इस लड़की का इम्तहान लॆने और यह शोख उल्टे मुझी को नाक पकड़कर नचाने लगी! अच्छा तमाशा है। मैं यहाँ आकर बुरा फँसा!

एतबहि में ओ मुखरा युवती बाजि उठलीह-दुःख की बात है कि आप में कंजूसी भी है। मेरी दाई कब से खड़ी आपकी यात्रा का शकुन बना रही है और आप उसकी ओर ध्यान तक भी नहीं देते? क्या मेरा नाम हॅंसाते हैं? अगर आपके पास कुछ नहीं हो तो मुझसे रुपया ले लीजिए।

मिश्रजी लज्जित भय मनीबैग सॅं एकटा रुपया बाहर कैलन्हि और झुनियामाय क भरल कलश मे राखि देलथिन्ह। झुनिया माय नचैत-कछैत चलि गेलि।

ई अवसर देखि ढुनमुनकाकी दूहू हाथे ठक बक, जान डाला, भालरि और हाथी नेने ढनमनाइत वर क दिशि बढय लगलीह। मि० मिश्रा क समीप अबैत-अबैत सभ किछु नेने-देने सूर्यमुखी क देह पर खसि पड़लीह।

सूर्यमुखी क किकिआएब सुनि दुलारमनि पिउसी क कान ठाढ़ भय गेलैन्ह । ओ सूर्यमुखी क माय कैं हुथुक्का दऽ लोहछि कय कहलथिन्ह - ऎं ! नेना मुइलि और अहाँ गीत गबै छी ? की दऽ फाटै तॅं मलार गाबी !

ई सुनि ओकर माय गीत छोड़ि सूर्यमुखी क हाथ पकड़ि ओकरा पीठ पर एक धमक्का लगबैत बजलीह - गै छुच्छी, हम पहिनहि ने मना कैलियौक जे अधिक छम-छम नहि कर । गेल छलीह वर सॅं सटि कऽ ठाढ़ होमय । आब भेलौह ने ! हाथ-पैर टुटलौह ने !

ई कहि सूर्यमुखी क माय अपन बेटी क हाथ धय अपना आङ्गन चलबाक हेतु उद्यत भेलीह । एहि अकाण्डताण्डव सॅं समस्त महिला-मंडल मे हूलि-मालि मचि गेल । सभ केओ ढुनमुन काकी कैं 'दुरछी' करय लगलैन्ह ।

लालकाकी क्रोध-कम्पित स्वर सॅं बजलीह - हम जनितहि छलहुँ जे ई घिनौतीह । भला हिनका के कहलकैन्ह जे अपने फुरने भारी जान डाला उठा कैं वर कैं देखाबय गेलीह ? हः, आइ मास दिन सॅं वैह सब बनैवा मे लागलि छलहुँ । से सब असले बेर पर फोड़ि देलन्हि ।

ई कहि लालकाकी सूर्यमुखी लग जाय ओकर पीठ हसोथय लगलथिन्ह और ओकरा माय कें बौसैत कहलथिन्ह - हिनका हम्रे सप्पत छैन्ह बहिनदाइ, जे ई कोनो बात क आमर्ष राखथि । बुचियो त हिनके बेटी थिकैन्ह । हमर हॅंसी भेने हिनको हॅंसी छैन्ह । आब यैह लोकनि सम्हारथि त सम्हारथि ।

एम्हर ढुनमुन काकी कनैत दुनू हाथ उठाय बाजय लगलीह - हे दिनकर ! हम जौं जानि बूझि कय जानडाला फोड़ने होइएक त हमर कोख जरि जाय !

ई कहि ढुनमुन काकी ऑंचर सॅं नोर-पोटा पोछैत हिचकि-हिचकि कानय लगलीह । आवेशरानी ई देखि ढुनमुनकाकी क लग आबि कहलथिन्ह-अहाहा! हिनका नहि किछु कहै जैयोन्ह। ई कि जानि-बूझि कऽ थोड़बे खसलीहे। बेचारी अकसक लोक- ई पाँचम मास चैन्ह। की ऎ फुचुकरानी! बेशी चोट त ने लागल? ई कहि आवेशरानी आवेश सॅं ढुनमुनकाकी क पीठ झाड़य लगलथिन्ह।

ई रंग मे भंग देखि उपयुक्त युवती मि० मिश्रा क हाथ दबा कय कहलथिन्ह-आप घबराइये नहीं। आपही की खातिर यह टंटा खड़ा हुआ है । ना आपकी पुरुष जाति स्वार्थी होती और न ठक-बक की मुर्ति बनाकर उसका खाका खिंचा जाता । खैर, आप अन्दर चलकर पहले कपड़े तो बदल लीजिए ।

मि० मिश्र ओहि युवती क हाथ मे कठपुतली जकाँ भेल इशारा पर काज करय लगलाह । पुनः गीत क सिलसिला जारी भऽ गेल ।

ओ सुन्दरी बिहुँसैत मि० मिश्र क कान मे कहय लगलथिन्ह - आपके आज्ञा-पालन से मैं संतुष्ट हूँ । पति को ऎसा ही आज्ञाकारी होना चाहिए । परन्तु मैं आपको एक कष्ट और देना चाहती हूँ । मेरा प्रण है कि जो पति होना चाहेगा, उसे मैं सात पुरुषों के साथ खड़ा कर धान कुटबाऊँगी । यह भी स्त्री जाति के प्रति किए गए अपमानों का बदला है । आशा है, आप बुरा न मानेंगे ।

ई कहि ओ मि० सी० सी० मिश्र क हाथ मे मूसर धराय देलथिन्ह और ऊखरि मे चोट देवाक अनुरोध करय लगल्थिन्ह । मि० मिश्र किंकर्तव्यविमूढ भय गेलाह । एतभि मे गोट दसेक बालक हिनक संग देबक हेतु अपना मे उपरौंझ करय लागल ।

ओ सुन्दरी पुनः मिश्रजी क कान मे कहलथिन्ह - बाबू चण्डीचरणजी, पहले कच्चे सूत से बाँधकर मैं आपकी परीक्षा करती हूँ । यदि इसमे बंधे रह जायेंगे तो समझूँगी कि आप बराबर मेरे स्नेह-सूत्र में बंधे रहेंगे और यदि आपने इसे तोर दिया तो स्नेह-सूत्र भी टूटा ही समझिए ।

सुन्दरी क मूँह सॅं एहि प्रकारें अपन नाम क उच्चारण सूनि मिश्रजी क्षुब्ध भऽ गेलाह । मन मे कहय लगलाह - ओफ ! कितनी ऎडभान्स्ड (बढी) लड़की है मुझको निर्विकार होकर इस प्रकार सम्बोधित कर रही है जैसे यह किसी कालेज की लेडी प्रिन्सिपल (अध्यक्षा) हो और मैं इसका स्टुडेण्ट हूँ ।

एतबहि मे सार क वर्ग 'सहस्रशीर्षा' मन्त्र पढैत मूसर उठौलकैन्ह । मि० मिश्र निरुपाय भय चोट देमय लगलाह । नौआ ठाकुर आबि टकुरी क सूत आठो गोटे क परिवेष्टित करय लागल ।

अठोंगरि क विधि समाप्त भेला उत्तर युवती मिश्रजी सॅं मृदुल परिहास करैत कहलथिन्ह - 'अहा ! आपकी कोमल कलाई तो टेनिस खेलने के लिए है । आज पहले-पहल मूसल पकड़ने में बड़ा क्लेश हुआ होगा । खैर ! इसके बदले आपका मूँह मीठा कर देना चाहिए ।' ई कहि युवती एक सिलवर क तस्तरी मे राखल दही-चीनी दिशि संकेत करैत हिनका आसन पर बैसा देलथिन्ह ।

मिश्रजी मन्त्रमुग्ध जकाँ ओहि पर बैसि गेलाह । दस-पन्द्रह मिनट धरि कोन प्रकारें मधुपर्क क विधि सम्पन्न भेलैक से हिनका किछु नहि बुझि पड़लैन्ह । पं० नमोनाथ झा तोतराइत-तोतराइत कंठ-रूपी कंठ रूपी बोरा सॅं उभड़-खाभड़ मंत्र क रोड़ा सभ उझिलय लगलाह । गाइन क दल अपना अलाप क स्वर खरज सॅं निषाद पर्यन्त पहुँचाबय लगलीह । किन्तु मि० मिश्रा क ध्यान ओहि सभ दिशि नहि छलन्हि । हुनका नेत्र क आगाँ ओहि चपला सुन्दरी क चित्र नृत्य करैत छलैन्ह । ओकरा अपन भावी चिरसंगिनी क रूप मे देखि ओ आनन्द और विस्मय क कल्लोल तरंग मे पड़ि ऊबडूब होमय लगलाह, और कल्पना क प्रबाह मे दहाइत-दहाइत वास्तविक परिस्थिति सॅं बहुत दूर जा भसिऎलाह । ओ मनोराज्य मे विचरण करैत ओहि हास्यमुखी युवती कैं शीघ्रे अपन अङ्कशायिनी बनैबा क मधुर कल्पना क रसास्वादन करय लगलाह । हुनक सुख-निद्रा तखन भङ्ग भेलैन्ह जखन ओ सुन्दरी पुनः आबि करस्पर्श करैत कौतुकागार दिशि लय चललथिन्ह ।

मि० मिश्रा कैं भेलैन्ह जे आब ई हमरा अपन प्राइवेट चेम्बर (खास कोठरी) मे लय जा रहल छथि । ई बिचारि हुनक हृदय खरहा जकाँ उछिलय लगलैन्ह । किन्तु जखने कौतुकागार क द्वारि पर पर पहुँचलाह त देखैत छथि जे सौंसे घर ओही प्रकारें खचाखच भरल अछि जे कार्तिक पूर्णिमा सॅं एक दिन पूर्व सोनपुर जायवाली मालगाड़ी क डिब्बा लोक सॅं भरल रहैत छैक । जखन सुन्दरी क अनवरत सहायता सॅं मिश्रजी ओहि घर मे प्रविष्ट भय आसन पर बैसलाह त देखैत छथि जे एहि समुदाय मे चारि मास क नेना सॅं लय अस्सी वर्ष क वृद्धा पर्यन्त मौजूद छथि । ई देखि मिश्रजी कैं विश्राम क आशा ओहि तरहें परित्याग करय पड़लैन्ह जेना कवि-सम्मेलन क दूरागत सभापति महोदय कैं रेल किरायो मे सन्देह देखि विदाइ क आशा परित्याग करय पड़ैत छैन्ह ।

मि० मिश्रा थोड़ेक काल धरि कोबर क दृश्य देखय लगलाह । ढेबरल-चुनौटल भीत पर पुरैनि क पात, कमल क फूल, कदम्ब क गाछ आदि क रंग-विरंगी चित्र उखड़ल छलैक । अपना आगाँ भीत मे (गौरी-गनेश क पूजार्थ) गोबर क चोत और घोंघा साटल देखि मि० मिश्रा विस्मय मे पड़ि गेलाह ।

दुलारमनि पिउसी गरजैत बजलीह - है लोकनि ! आब नैना-जोगिन मे की भाङ्गठ छैक ! कन्या निरीक्षण करय ने कहुन्ह ।

एहि पर आवेशरानी मिश्रजी क समीप आवि कहलथिन्ह - 'आब अपन कनेयाँ कैं चिन्हू ।' मिश्रजी पाछाँ फिरि कय देखलन्हि जे एक पाँती मे चारि टा कन्या खूब घोघ तानि कय माथ गोतने बैसल छथि । मि० मिश्रा कैं ओहि मे अपन सहायिका युवती कैं चिन्हैत कनेको देरी नहि लगलैन्ह । ओ मन मे शेक्सपीयर क ई पंक्ति दोहराबय लगलाह - 'हूएवर लब्ड दैट लब्ड नॉट ऎट फर्स्ट साइट ?'

पुनः कम्पित स्वर मे बजलाह - मुझे अबतक यही गाईड (पथ-प्रदर्शन) करती आ रही है । और इन्ही को पहचानने मे भला मैं भूल कर सकता हूँ ? इनके समान चिर- संगिनी पाकर मैं अपने को बहुत फारचुनेट (भाग्यवान) समझता हूँ । ये अबतक मेरा हाथ पकड़े हुए थी । अब मुझे इनका हाथ पकड़ने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है । आशा है, इनको कोई आपत्ति नहीं होगी ।

ई लेक्चर झाड़ि मि० मिश्रा अपन सुपरिचित गुलाबी साड़ी वाली सुन्दरी क हाथ धय लेलन्हि और अपना आङ्गुर क अंगूठी बाहर कय हुनका आंगुर मे पैसाबक यत्न करय लगलाह ।

ई अभूतपूर्व दृष्य देखि उपस्थित महिला मण्डली मे एहन भारी हँसी क बिहारि उठल जे कोबरा घर क चार उधियाय लागल । फुलमतिया हॅंसैत-हॅंसैत बाजलि 'दैवा रे दैवा ! हः हः हः हः ! विधिकरिए कैं ..... हा हा हा हा हा ! बहु बना लेलथिन्ह ! ही ही ही ही ही ! आवेशरानी बजलीह - 'अहा हा ! बेश सुलग्न मे सरहोजि सॅं भेट भेल छैन्ह । एहिना मीठे-मीठे रहि जाइन्ह दूहू गोटा मे त ही ही ही ही !' एक टा तरुणी बजलीह - कनेयाँ ! अहाँ हिनका कोन मंत्र पढि कय नोन चटा देलिऎन्ह जे अबितहि अहाँ क हाथे बिका गेलाह ? हा हा हा हा हा हा !' एकटा प्रौढा जमींदारनी बजलीह - 'हिनका अपने सभ की बुझैत हतिएन्ह ई खूब खेलाएल छथ । जौन चिज पर अपन हक होतैन गऽ ओह पर पहले ही से कबजा दखल कर लेबे के चाहै छथ । कैसे के अपन चीज टेब लेलन ? ही ही ही ही !'

एहि हा हा ही ही क बिड़रो मे मिश्रजी कैं किछु नहि बूझि पड़लैन्ह । ओ हतबुद्धि भऽ टुकुर-टुकुर सभ क मुँह ताकय लगलाह ।

ई देखि विधिकरी दाइ हिनका कान मे अपन मुँह सटा कय कहलथिन्ह - देखिए, आपको सबके सामने इस तरह अपने भाव का आवेश नहीं प्रकट करना चाहिए । आपकी कितनी मखौल उड़ रही है ! मैं तो लज्जा के मारे गड़ी जा रही हूँ । देखिए, अब मण्डप पर ऎसी भूल मत कीजिएगा । वहाँ मेरे पिता, चाचा और गाँव भर के लोग रहेंगे । आप उस वक्त मेरी ओर नजर तक मत उठाइएगा । मैं भी चुपचाप वहाँ घूंघट काढ़कर बैठी रहूँगी । अगर विधिपालन में कुछ भी गड़बड़ी की तो समझ जाइए कि फिर मैं आपको मिल नही सकती ।

ई कहि चतुरशिरोमणि बड़कागामवाली छम्म दऽ कोबर घर सॅं बाहर भय दोसरा घर मे चलि गेलीह ।

एतबहि मे पं० नमोनाथ झा क स्वर सुनबा मे आयल - 'ज ज ज ज जनानी विधि भऽ गेल । आब ज ज ज ज जमाय कैं आ आ आबय कहियौन्ह !'