लेखक : हरिमोहन झा

-काग की दोस?

-काग।

-फक्का मुट्ठी बारह। आब लाबह बारहटा अंडी।

-से त नहि होएतौह, हे सरौता! एतेक कन्ना नहि करह।

एतबहि मे ढुनमुनकाकी ओहि ठाम पहुँचि गेलीह और बुच्ची दाई कैं फुलमतिया क संग काग-दोस खेलाइत देखि कहय लगलथिन्ह देखू त भला ई अकड़हड़! आइ हिनकर वर चल अबैत छैन्ह और ई बैसि कय काग-दोस खेलाइत छथिन्ह।

ई शब्द लालकाकी कैं सुनना गेलैन्ह । बस तुरन्त युद्ध मचि गेल ।

- अयॅं ऎ फुचुकरानी ! ओ अहाँ कैं फुटलो आँखिए नहि सोहाइत अछि जे सदिखन जे एना जड़ि लागल रहैत छिऎक ? ओकरा एखन खैबा-खलैबा क वयस नहि छैक त कि चिल्हकाउरि भऽ कऽ बैसबाइक वयस छैक ? अहाँक छाती किएक फटैए ?

ई सुनैत देरी ढुनमुनकाकी एक टुटल छितनी क पेनी हाथ मे लय पड़ापड़ अपन कपार पीटय लगलीह ।

ई लंकाकांड मचैत देखि बुचिया ओ फुलमतिया अंडी फेकि पड़ाइलि । फुलमतिया अपन आङ्गन पहुँचि बाजलि - सरौता, आइ भरि हमरा आङ्गन बैसि लैह । काल्हि सॅं की फेरि हमरा देहरि पैर देबह ?

बुचिया - से की ? काल्हि सॅं की भेलैए ?

एकरा उत्तर में फुलमतिया बुच्चीदाइ क कान मे किछु एहन बात बाजलि जे बुच्चीदाइ तमकि उठलीह और एक चाट अपना सरौता क गाल पर लगाय बाजि उठलीह-भग ! हमरा ने ई सभ नीक लगैत अछि। तोरा त एहिना रहैत छौह।

थोड़बहि काल में दूहू सरौता गोटी-गोटी खेलाय लगलीह। जखन बुच्चीदाइ अन्यमनस्कता क कारणॆं बहुत हुकय लगलीह तखन बजलीह-हे सरौता! आइ हिडुला पर नहि चढबह ?

फूलमती देवी एहि प्रस्ताव क हृदय सॅं समर्थन करैत बजलीह-हँ-हँ, बेश त मन पाड़लह । चलह झूला झूलऽ गऽ ।

पछवरिया घर मे धरनि सॅं पटुआ क रस्सी लटकाओल छलैक । ओहि पर एक चाकर पीढ़ी राखि दूहू सखी ठाढ़ि भऽ गेलीह और मचकी मारैत बारहमासा उठौलन्हि -

'आएल हे सखि सावन मास, मोहि तजि कन्त गेला परदेश, कि मैं ना जैहों । झुलनी तुम ले जा रे सनेस कि मैं ना जैहों ।'

एतबहि मे पुरान रस्सी कड़कड़ा कऽ टूटल और दूहू सरौता कैं लेने-देने पीढ़ी भूमि पर जा खसल । बूच्चीदाइ कैं ठेहुन मे किछु विशेष चोट लगलैन्ह । फुलमतिया नवे चूड़ी पहिरने छलि, से सभटा फूटि गेलैक ताहि डरें ओ कानय लागलि । बुच्चीदाइ चुप्पहि उठि अपना बाड़ी मे एलीह और भालसरि क फूल लोढ़य लगलीह । जखन एक मुट्ठी फूल बीछल भऽ गेलैन्ह तखन अपना ऑंचर क खूट मे बान्हि आङ्गन ऎलीह ।

बुच्चीदाइ कैं देखितहि लालकाकी टोकलथिन्ह - ऎं गै ! तों नित-दिन बहत्रा भेल जाइत छैं ? एतीकाल धरि कतऽ बौआइत छलैं ? तोरा कनेको लाज-धाक नहि छौक ? 'जब छौड़ी सुनलक सासुर क नाँव, बुलि आइली छौड़ी सौंसे गाँव ।' हमरा लोकनिक विवाह क चर्चा होय त लाज सॅं ठामहि गड़ि जाइ । और आइ-काल्हि क कनेयां कैं त देखू ? मकुना-माधव जकाँ भेल जिला-जयवार सॅं धाङ्गि आओत । हऽ हऽ ।

ई सूनि बुच्चीदाइ चुपचाप भाउजिक लग जाए बैसलीह और खोंइछा महॅंक फूल लय माला गाँथए लगलीह ।

- लालकाकी ! कहाँ गेलन लालकाकी ? तनी बाहर निकलके देखू त एगो एक्का खड़खड़ाइत चल अबइयऽ । आब त मकुनाही पुल के ऐ पार पहुँच गेल ।

दरबाजा पर बटुकजी क ई ध्वनि सुनितहि लालकाकी, ढुनमुनकाकी, बड़कागामबवाली सभ धुरखुर पर आवि ठाढ़ि भऽ गेलीह ।

एक्का शनैः शनैः दरबाजा पर आबि कय लागल । ओहि पर सॅं लालकका और भोलानाथ उतरलाह । बटुकजी कपड़ा क मोटरी उतारए लगलैन्ह ।

लालकका आङ्गन आबि पहिने भगवती कैं प्रणाम कैलन्हि । तदनन्तर मैंया क पैर छूबि आङ्गन मे खाट पर बैसि रहलाह । पुनः बटुकजी दिस ताकि कय बजलाह - तों मूँह की तकै छह ? जा, पुरोहित-नौआ कैं बजा आनह । और भोलानाथ कैं कहुन जे जा कऽ अपन्हि सॅं सभ कैं हकार दऽ औथिन्ह । कंटीर और पाहुन कैं तिनगछिया पोखरि पर बैसा आएल छिऎन्ह । ओ लोकनि आध पहर राति बितैत पहुचै जैताह । ता सभ इन्तिजाम भऽ जैबाक चाही ।

ई कहि लालकका मोटरी मे सॅं लोटा बाहर कैलन्हि और कान पर जनउ चढ़बैत पोखरि दिशि विदा भेलाह ।

लालकाकी हपसि कए मोटरी खोलय लगलीह । ढुनमुनकाकी नूर लऽ कऽ मड़बा नीप क हेतु चललीह । फुलमतिया स्त्रीगण क दिशि हॅंकार देब क हेतु विदा भेलि । बड़कागामवाली पान लगाबय लगलीह । बुचिया लाज क मारे कोनियाँ घर मे जा कऽ मुँह झाँपि कय पड़ि रहलि ।

थोड़बहि काल मे ओसारा पर लाल, पीयर, और हरियर रंग क साड़ी चकमक करय लागल । और ई गीत कर्णभेदी नाद सॅं प्रारम्भ भऽ गेल -

'आगे माइ हम नहि आजु रहब एहि ऑंगन, जौं बुढ होयत जमाय ।'

लालकका आङन ऎलाह त देखैत छथि जे पुरोहित महाराज पद्धति नेने मण्डप पर आबि उपस्थित भेल छथि और किछु भाव व्यक्त कर क चाहैत छथि, किन्तु गीत क आटोप मे हुनका दिशि केव कर्णपात नहि करैत अछि।

जखन गीत समाप्त भऽ गेलैक त पं० नमोनाथ झा सप्तम स्वर मे चिचिया कय बाजय लगलाह- एहिठाम क क क क कलश चाही, प प प प पल्लव चाही। ग ग ग ग गीतगाइन सभ कैं क क क क कहियौन्ह जे एखन ग ग ग ग गीत बन्द करतीह।

ऎतबहि में दोसर गीत बेश टहंकार सँ उठि गेल और पुरोहित जी क उक्ति अरण्यरोदन भय गेलैन्ह।

ई दशा देखि लालकका लग मे जा कहलथिन्ह- आब हम आबि गेलहुँ। अहाँ कैं जे किछु कहबाक हो से हमरा कहू। बटुक जी हजाम कैं बजाबक हेतु गेल अछि। आब अबितहि होएत।

पुरो०-म म म म मातृका पूजा अ अ अ अ आभ...

लाल०- हम कहि दैत छी, आभ्युदयिक .....

पुरो०- हाँ, ताहि मे क क की विलम्ब अछि?

लाल०- किछु नहि। दरवाजा पर पाहुन कैं आबय दिऔन्ह। ओम्हर आज्ञा क पान-धूप जैतैन्ह। एम्हर मातृका पूजा प्रारम्भ भऽ जाएत।

ता नौआ ठाकुर कैं नेने बटुकजी पहुँचि गेलाह और पुरोहितजी क फरमाइश क अनुसार सामग्री सभ जुमाबय लगलाह। गाँव मे दुगोला छलैक। अतएव भोलानाथ अपना गच्छ मे हॅंकार दय फिरि ऎलाह और आङ्गन मे ठकबाक पीठ पर ठाढ भय ओकरा सॅं काज लेबय लगलाह।

थोड़ेक काल क उपरान्त धिया-पुता गरोहि बान्हि दरबाजा दिशि छूटल। बटुकजी बाहर झाँकि बाजल-'मेहमान त दूरा पर पहुँच गेलन। ई सुनि लालकका भोलानाथ कैं एकान्त मे लऽ जा कहलथिन्ह-'देखह, पाहुन किछु दोसर प्रकृति क छथुन्ह। एखन थाकल-ठेहियाल मे केओ दिक नहि करय पबैन्ह। हुनका चुपचाप आराम करय लेल छोड़ि दहुन्ह। भोलानाथ झा ठकबा कैं संग लय पाहुन क आगत-स्वागत मे बिदा भेलाह।

एम्हर लालकाकी पुतहु क लग जाय कहलथिन्ह-'ऎ कनेंया! विधिकरी अहीं होएबैक। अपन सभ किछु सॅंभरि लियऽ। हम भनसाघर जाइत छी। बड़कागामवाली किछु बाजहि लेल छलीह कि एतबहि मे रेवतीरमण क आहटि बूझि पड़लैन्ह।

पति क जूता क शब्द सुनि बड़कागामबाली जानि बूझि कय अपन केश क फुलदार चोटी कनेक उघारि लेलेन्हि और पति क नजरि पड़ला उत्तर पुनः लज्जा क भाव देखबैत माथ झाँपि लेलन्हि। तदुपरान्त एक कटाक्ष वाण चलाय मुसकुराइत अपना घर ने आबि कुर्सी पर बैसि गेलीह। रेवतीरमण माय-पितिआइन और पितामही कैं प्रणाम कय अपना घर मे ऎलाह। कोट उतारि खूँटी पर टँगैत बजलाह-ऎ हुजूर! आपसे एक जरूरी काम है।

बड़कागामबाली भृकुटी चढा कय कहलथिन्ह-मैं बिना पेशगी फिस लिये किसी का काम नहीं करती।

रेवतीरमण-'अच्छा, पहले नजराना तो ले लीजिए। 'ई कहैत पत्नी क कोमल अधरदल क मध्य मुँह में पान राखि देलथिन्ह। ई देखि रसिका पत्नी कृत्रिम क्रोध प्रदर्शन करैत बजलीह-'ऎसा नजराना मैं नही चाहती। अभी अपना वापस ले लीजिए। ई कहैत अपना मुँह क पान उगीलि स्वामी क मुँह मे राखि बाहर होमय लगलीह।

रेवतीरमण-पत्नी कैं बहरैबाक उपक्रम करैत देखि हाथ पकड़ि लेलथिन्ह और जबर्दस्ती कुर्सी पर बैसा देलथिन्ह। पत्नी हाथ छोड़ैबा क अभिनय करैत कहलथिन्ह- आबजाय दियऽ। काज क आङ्गन छैक। लोक सभ की कहत?

रेवतीरमण अपनहुँ ओही कुर्सी पर बैसी बजलाह-देखू, हम एकटा जंगली पक्षी कै बझा कय अनने छी। ओकरा सिखा-पढा कय गमैया बनाउ, नहि त ओ फुड़ दऽ उड़ि जायत। ई अहीं बुते पार लागि सकैत अछि।

एकरा बाद थोड़ेक काल धरि पति-पत्नी मे गुप्त परामर्श भेल। दूहूक राय मिलि गेला पर बड़कागामवाली हँसैत बाहर ऎलीह और रेवतीरमण्पान क डब्बा लय प्रसन्न होइत दालान पर गेलाह।