लेखक : हरिमोहन झा

क्रमशः वर्षा थम्हि गेल। बिहाड़ियो बन्द भऽ गेल । आकाश निर्मल भऽ गेल। जखन भुरुकबा उगि गेलैक तखन बड़कागामवाली चुप्पहि उठि बूच्चीदाइक कोनट लागय ऎलथिन्ह । केबाड़ मे कान सटैलो उत्तर जखन किछु सुनाइ नहि पड़लैन्ह, तखन नहूँ-नहूँ केवाड़ ठोकैत कहलथिन्ह - की ऎ ! अहाँ दूनू गोटा कैं एखन धरि मन नहि भरल अछि की ?

ई कहि बड़कागामवाली जिंजिर फोलि घर मे पैर देलन्हि । कोबरक दृश्य देखितहिं हुनक जी सन्न दऽ उड़ि गेलैन्ह । कोबर घर मे वरक कत्तहु पता नहि । बुच्चीदाइ कोन मे दबकलि अनबरत अश्रुधारा बहा रहल छथि । हुनक ऑंखिक काजर नोर-घोर भय गाल पर टघरि रहल छैन्ह ।

बरकागामवालीक तीक्ष्ण दृष्टि सहसा सीरम महॅंक पत्र पर गेलैन्ह । ओ चट दऽ ओकरा उठा एके साँस मे पढ़ि गेलीह । पत्र पढैत देरी हुनका सभटा घटनावली फरिच्छ भऽ कऽ बुझा गेलैन्ह । ओ एक बेरि टूटल जॅंगला दिशि दृष्टिपात कैलन्हि और दौड़लि पति कैं जगाबय गेलीह ।

भोर होइतहिं सौंसे गाम घोल भऽ गेल जे बुचिया क वर रातिए मे पड़ा गेलैक । ठाम-ठाम तरह- तरह क टीका-टिप्पणी ओ शंका-समाधान होमय लागल सभ केओ अपना बुद्धिक अनुसार अपन-अपन अनुमान लगाबय लागल । जे लोकनि प्रमादवश कहियो लालकाकीक आङ्गन नहि अबै छलथिन्ह सेहो लोकनि आइ स्नेहाभिभूत भय जिज्ञासार्थ पहुँचैत गेलथिन्ह । एतेक गोटे कन्यादानक राति हॅंकारो पुरय नहि आएल रहथिन्ह ।

लालकका दरबाजा पर बैसल विषण्ण चित्त सॅं दातमनि करैत छलाह । बुचकुन चौधरी हुनका देखि दूरहिं सॅं टोकलथिन्ह - की औ लाल ? सुनबा मे आएल अछि जे मिसर पड़ा गेलाह । हमरा त पहिनहिं हुनक लक्षण देखि माथ ठनकल जे ई किछु ने किछु बखे रा करबे करताह । कन्या रत्न होइत अछि । ओकरा बहुत विचारि कय सुपात्रक हाथें दान करबाक चाही । तैं लिखलकैक अछि जे ऎं ऎं ऎं अथी .....देखू एखन खियाले नहिं होइत अछि । हमरा जमाय कैं लाख लोक कहौन्ह, किन्तु ओ एहि तरहें नहि पड़ायल छलाह । अहाँक जमाय त अगड़जित भऽ गेलाह ।

ई कहैत बुचकुन चौधरी अपन आनन्द कैं छपा नहि सकलाह और भभा कऽ हॅंसि पड़लाह ।

लालकका जिभिया फेंकैत कहलथिन्ह - नहिं । हुनका कालेज सॅं एक बहुत जरूरी चिट्ठी आबि गेलैन्ह जे पत्र देखैत प्रिन्सिपल सॅं जा कऽ भेंट करू । तैं हड़बड़ायल रातिए बिदा भऽ कऽ चल गेलाह । हमरो लोकनि आवश्यक कार्य देखि बाधा देब उचित नहि बुझलिऎन्ह । और कोनो बात नहि छैक ।

ता आङ्गन मे दुलारमनि पिउसिक शब्द सुनि पड़ल - की ऎ मधुरानी ! अहाँक जमाय पड़ा कऽ चलगेल ?

ई सुनितहिं लालकाकी तमकि कय बजलीह - हमरा जमाय सन ककर जमाय हेतैक ? हुनका त चारिए दिनक छुट्टी छलैन्ह । तैं बेचारे दौड़ले बनारस गेलाह अछि । वस्तु-जात पर्यन्त एत्तहि छोड़ने गेल छथि । मुद्दइ सभ बलहुँ फाल रचने अछि ।

जखन आङ्गन खाली भेलैन्ह त लालकाकी बेटी लग ऎलीह और घराजोड़ी कऽ कानय लगलीह । बुच्चीदाइक ऑंखि सावनक मेघ बनि गेलैन्ह । हुनक कमल सन कोमल नेत्र सॅं घघा-घघा कय नोर बहय लागल । एकर उत्तरदायी के ?

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