लेखक : हरिमोहन झा

झारखंडीनाथ तार क अर्थ घोंखैत-घोंखैत गाम दिशि विदा भेलाह । एही धुन मे मस्त भेल बढल चल अबैत छलाह कि पाछां कनपट्टी लग घंटी टनटना उठलैन्ह । जहिना पाछाँ फिरि कऽ ताकय लगलाह कि नीचा साइकिल कऽ अगिला पहिया सरसराइत साँची धोती क मध्यभाग मे सन्हिया गेलैन्ह । तदुपरान्त सड़क क दोष सॅं वा साइकिलबला क दोष सॅं वा पृथ्वी क आकर्षणशक्ति क दोष सॅं झारखंडीनाथ क शरी तुरन्त लम्ब सॅं आधार रुप मे परिणत भय गेलैन्ह । लगभग एक पल धरि साइकिल क चेन मे ओझराएल रहलाह । पुनः देह झाड़ि क उठलाह । देखैत छथि जे साइकिलबला और केओ नहि, वैह सकुड़ी क डाक्टर थिक ।

झारखंडीनाथ पड़ैबाक उपक्रम करय लगलाह । ताबत पीठ मे केओ पम्प लऽ कऽ एहि प्रकारें स्पर्श कैलकैन्ह जे ओकर दोसरो नकशा ओहि ठाम उखड़ि गेलैन्ह ।

झारखंडीनाथ क आगाँ अन्हार भऽ गेलैन्ह । तार कऽ जे जे अर्थ घोंकैत अबैत छलाह से सभटा बिसरि गेलाह । साइकिल हनहनाइत निकसि गेल ।

झारखंडीनाथ जखन घर लग पहुचलाह तखन थोड़ेक काल ठाढ़ भऽ कऽ कानय-कानय सन मुँह बना लेलन्हि । पुनः ठेहुन कैं धेने नङ्गराइत-नङ्गराइत लालकाकी क आङ्गन मे प्रवेश कैलन्हि ।

लालकाकी पिउरि कटैत छलीह । झारखंडी कैं देखितहि वाङ्ग टकुरी कैं छोड़ि ठाढ़ि भऽ गेलीह । कहलथिन्ह- ए बाबू ! अहीं पर मन टाँगल छल राति धरि ततेक अन्देसा भेल जे निन्द नहि पड़ल । आइ भिनसरे अजगैबीनाथ सॅं सगुन कराओल त कहलन्हि जे सीता क घर मे सगुन उचरल अछि से अवश्ये किछु ने किछु भांगठ भेल हेतैन । आब अहाँ क मुँह देखि जी मे जी आएल ! ऎ बाबू ! एतेक बिलम्ब कोना भेल ?

एकरा उत्तर मे झारखंडीनाथ ठोहि छोड़ि कानय लगलाह । हिचकी उठि गेलैन्ह । नाक सॅं पानि खसय लगलैन्ह । ई देखितहि लालकाकी पुक्की देलन्हि - 'अरे दै- - - ऎ बा ! मुद्दैया सभक छाती जुड़लैक रे दैबा !' बस, देखादेखी सौंसे आङ्गन मे कन्नारोहटि पस्रि गेल ।

कन्नारोहटि क शब्द सुनितहि आवेशरानी फुलमतिया क सङ्ग हकासलि पियासलि लालकाकी क आङ्गन पहुँचलीह । बजलीह - हमरा त भेल जे बौआदाइ आइलि अछि । भोलाबाबू ओहि दिशि गेले छथिन्ह । भरिसक लॅअओन करौने आएल होइथिन्ह । से जहिना निपै छलहुँ तहिना नुड़हे हाथे दौड़लहुँ ।

फुलमतिआ अपन फुर्ती देखबैत बाजलि - आ हम तॅं कनटीरवा कैं छोंचबै छलिऎक । जहिना कननाइ सुनलिऎक कि लोटा पानि फेंकि क दौड़लहुँ ।

झारखंडीनाथ देखलन्हि जे हमर कननाइ तॅं दोसरे रङ्गताल पसारि देलक । तैं आब अपन अर्जीदाबी पेश करय लगलाह - अरौ बाप रौ बाप ! ज्योतिषी कका क हम की बिगाड़ने छलिऎन्ह जे हमर बध कराबय पर लागि गेलाह । सकुड़ी क डाकदर सनकाह लोक , तकरा लग खून होमय लेल पठा देलैन्ह ! ओहि ठाम जे मारलक से राम जी क प्रताप सॅं मारबे कैलक, गाम क सिमान धरि नेङ्गरौने आएल छल । कोनो तरहे प्राण बाँचि गेल । ठेहुन-कोहनी सभ फूटि गेल । देखि लियऽ । अहाँ जे नवका धोती देने छलहुँ से राम जी क प्रताप सॅं चिर्री-चिर्री भऽ गेल । जौं फूसि कहैत होइ त वंश तर छी ।

लालकाकी आतुर भय पुछलथिन्ह - ऎ बाबू, ! आब त जे भेलैक से भऽ गेलैक । तार क हाल कहू । अपने जिबैत छथि कि नहि ?

झारखंडीनाथ अपन केहुनाठी कैं तजबीज करैत बजलाह - तार क बात सभ त हम मन पाड़ने अबैत छलहुँ । से राम जी क प्रताप सॅं एहन सटका मारि देलक जे सभटा बिसरि देल ।

एतबहि मे सड़क पर एक्का क खड़खड़ाहट सुनि पड़ल । झारखंडीनाथ पुनः अनिष्ट क भय सॅं झट कान पर जनउ चढबैत अपना बथान दिशि बिदा भेलाह । एक्का लालकाकी क दरबाजा पर पहुँचल । ओहि पर सॅं भोलानाथ और बटुकजी उतरलाह । भोलानाथ झा धुरिआएले पैरे आङ्गन मे जाय बजलाह - भौजी, खुशखबरी नेने ऎलहुँ अछि । इनाम दियऽ ।

लालकाकी भोलानाथ कैं देखितहि आनन्द सॅं अपना कैं बिसरि गेलीह । पुनः बजलीह - ऎ छोटका बाबू ऎ छोटका बाबू ! बड़ संकट मे आबि कऽ उबारि लेलहुँ । आइ दू दिन सॅं पेट क अन्न लाबा-फरभी होइत अछि ।

ढुनमुनकाकी माँड़ पसबैत छलीह । अपना स्वामी क स्वर सुनितहि पसौनाइ छोड़ि घर मे जा नुकैलीह । बुचिया एक लोटा पानि ढारि कय भोलानाथ क आगाँ मे राखि देलकैन्ह । भोलानाथ पैर क औंठा मॅंजैत बजलाह - भौजी ! इनाम क बात अन्ठा देलहुँ । से अन्ठौने काज नहि चलत ।' लालकाकी बिहुँसि कय कहलथिन्ह - इनाम मे चारि मास और बाँकी रहि गेल अछि । जौं ठाकुरजी क कृपा होयत त .......

भोलानाथ लजा कय बात कटैत बजलाह - हम त दोसरे कथा ठीक कैने छलहुँ । घुटर मामा कैं सोरहो आना पसन्द छलैन्ह । ताबत बटुक जी दोसरे संवाद लऽ कऽ पहुँचि गेल जे लालकका अपना सङ्ग वर नेने चल अबैत छथि ।

लालकाकी कैं विधाता पर अत्यन्त पित्त उठलैन्ह जे दुइए टा कान किएक देलन्हि, जौं चारि टा कान देने रहितथि त चारू कान सॅं ई बात सुनितहुँ । आवेशरानी कैं हर्ष क द्वारे सौसे देह मे गुदगुद्दी लागय लगलैन्ह । लालकाकी एके सांस मे एतेक प्रश्न क वर्षा करय लगलीह - कहू कहू ऎ बाबू ! कखन बर ओतैक ? केहन छैक ? कतेक टा ? गोर छैक कि कारी ? नाम की छैक ? घर कोन गाम छैक ?

भोलानाथ कहलथिन्ह - 'बटुकजी सॅं सभटा हाल पूछि लियऽ । हमरा आब स्नान मे अतिकाल भेल ।' ई कहि भोलानाथ मोटरी सॅं धोती और अङ्गपोछा बाहर कय एक चुडू करु तेल माथ मे पचबैत पोखरि दिशि बिदा भेलाह ।

आब स्त्रीगण क गरोहि बटुकजी पर टूटि पड़ल । बटुकजी चारुकात सॅं घेरा गेलाह । लालकाकी पुछलथिन्ह - ऎ बाबू ! कहू, वर देखय-सुनय मे केहन छैक ।

बटुकजी अपन स्वभविक भाषा मे बाजल - वर देखे सूने मे केहन रहतन ? जेहन आदमी होइअऽ । एगो नाक हइन, दूगो कान हइन, हाथ गोर हइन; और केहन रहतन ?

आवेशरानी पुछलथिन्ह - वर के अङ्गौट केहन छैक ?

बटुकजी - न कौआ जैसन करिया छथ न बगुला जैसन उज्जर ।

लालकाकी पुछलथिन्ह - वर कतेक टा छैक ? कैयम वर्ष हेतैक ?

बटुकजी- न बूढ लेखा दाँत टूटल हैन न लड़िका लेखा दूध पिबै छथ । और धुआ मे हमरा न देखली वरे के देख लेली ।

आवेशरानी- ऎ बाबू ! पम्ह चललैन्ह अछि कि नहि ?

बटुकजी - पम्ह के के कहे गलमोछा तक हो गेलैन । लड़कारी ऎखनो तक धैले रहतन ?

ई बात सूनि लालकाकी क मुखमण्डल मुरझा गेलैन्ह । पुछलथिन्ह - हौ बाबू ! जमाय पढ़ल-लिखल छैक कि नहि ?

बटुकजी - हमरा लेखे त कुछ न छथ । 'शंशकीरित' मे हमरा साथ न बोल सकै छथ । एगो कनीगो 'जोतिश' के बात पूछि देलियन, ताहि मे ढेकार हो गेलन । 'शिशुबोध' के एगो इशलोक पूछलिऎन त चूड़ा अमौट दुन्नू खसे लगलन ।

आवेशरानी - घर खूब सुखितगर होयतैक ?

बटुकजी - कुछ न छथ । मङ्गनी मे मॅंहग छथ ।

तखन कोन गुन पर उठा कऽ नेने अबैत छथिन्ह ?

बटुकजी - जाने गेलिऎन ?कैसे पसिन्द पड़ गेलैन ! वर के त बोलहु के लूर न हइन । सभ के 'आप' कहे छथ ।

ई सुनितहि स्त्रीगण क मण्डली मे भारी हॅंसी उठि गेल । आवेशरानी हॅंसैत-हॅंसैत बजलीह - ऎ बहिना ! ई ने कहियो सुनने छलिऎक । 'आप' की कहबैत छैक ?

सूर्यमुखी हॅंसैत-हॅंसैत ओंघराय लागलि । आहि गे माय ! 'आप' की कहैत छथिन्ह ? ताहि सॅं सोझे 'बाप' किएक ने कहैत छथिन्ह ? एहि पर पुनः ठहाका पड़ल ।

ई देखि लालकाकी क जी पित्ते ओट भऽ गेलैन्ह । लोहचि कए बजलीह - हऽ ! अनकर चौल करैत अनका किछु लगैत छैक ? अही गाम मे केहन-केहन जरलाहा जमाय सभ ऎलैक अछि । हम कहाँ ककरो मुँह मे खोरनाठ लगाबय गेलिऎक अछि ? हमरा आङ्गन मे एखन वर ऎबो नहि कैल अछि । तखन नहि जानि छुछी सभ पहिनहि सॅं एतेक किऎक जड़ि लागल रहैत अछि ?

एतेक बाजि लालकाकी नहूँ-नहूँ कानय लगलीह । सूर्यमुखी रङ्ग-कुरङ्ग देखि चुप्पे घसकि देलक ।

आवेशरानी आब बात कैं चिकनाबए लगलथिन्ह - ऎ बहिना ! ई नाहक कियैक सोच करैत छथि ? लालकका किछु आन्हर त छथि नहि जे पंगु कैं उठा अनताह ! हुनका सॅं बढ़ि कय सफली के होएत ?

लालकाकी हुनके पर काट करैत उत्तर देलथिन्ह - हित मुदैया सभ कैं हॅंसबा क मन लागल छैक । से सभ कैं सिहन्ते लागल रहि जेतैन्ह ।

एतबहि मे भोलानाथ झा गङ्गास्तव पाठ करैत आङ्गन मे पहुचलाह । लालकाकी टोकलथिन्ह - ऎ बाबू ! अहाँक भाय केहन कान्ह-कोनि कैं उठौने अबैत छथि से हमरा सरिपों-सरिपों कहि दियऽ, नहि त हम कपार फोड़ि कऽ मरि जाएब । हमर चंग उड़िआएल अछि ।

भोलानाथ हाथ क लोटा तुलसी चौरा पर धरैत बजलाह - राम-राम ! एहन बात केओ बजैए ! शुभ अवसर पर लोक गीत-नाद गबैत अछि कि ई सभ भखैत अछि । वर त भाइसाहेब एहन नेने अबैत छथि जेहन गाम मे केओ नहि अनने छल । बटुकजी बूड़ि अछि । की कहत ?

ई सुनितहि आङ्गन मे जनीजात क मण्डली मे बड़े टहङ्कार सॅं गोसाउनि क गीत उठि गेल ।