लेखक : हरिमोहन झा

बहुत दिनपर परदेशसॅं चल अबैत रही। घरक हाल-चाल बुझना सात वर्ष भऽ गेल रहय। बुझितहुँ कोना? चिट्ठी-पत्री होइत तखन ने? परन्तु हम त रूसल रही। कहाँ-कहाँ घुमलहुँ रुपैयाक हेतु-जमदेशपुर, कलकत्ता, रंगून। और सात घाटक पानि पीबि आइ पुनः देश जा रहल छी। जहाँ नूनूकका छथि, भाइ छथि, भौजी छथि, मुन्ना अछि। सभक लेल सनेस नेने जाइत छिऎन्ह। मुन्ना मोटर देखितहि नाचय लागत। भौजीके साड़ीक कोर खूब पसिन्द पड़तैन्ह। भाइ ओ नूनूककाक आगाँ रुपैयाक मोटरी पटकि देबैन्ह। जे 'लियऽ आब भेल? एही खातिर दिन-राति महाभारत मचैत छल। आब त खुशी भेलहुँ! पहिने लिखि देने रहितिऎन्ह त स्टेशनपर घोड़ी अबैत। आब एकाएक हमरा देखि कऽ सभ गोटे अकचकाइ जैताह!

यैह सभ सोचैत, मनमे नाना प्रकारक भावना करैत चल अबैत छलहुँ। जखन ट्रेन बरौनी पहुँचल त मातृभूमिकें मनहिमन वन्दना कय कहल-आब भगवानक इच्छा हैतैन्ह त एके पहरमे अहाँक दर्शन भऽ जाएत। एहि सात वर्षमे नहि जानि की-की परिवर्तन भेल हैत? गामपर के कोना अछि? कोनो गौआसॅं भेट भऽ जाइत त सभटा हाल-चाल बुझि जैतहुँ।

हम यैह सोचैत छलहुँ कि देखाइ पड़लाह घूटर कका-झोरी, कम्बल ओ गंगाजलक सुराही हाथमे नेने, प्लेटफार्मपर दौड़ैत! जेना कोनो निधि भेटि गेल हो, तहिना प्रसन्नता भेल। खिड़कीसॅं माथ बाहर कय सोर कैलिऎन्ह-'घूटर कका!

घूटर कका हमरा देखि चकित भऽ गेलाह-'के? श्रीकान्त? हौ, तों कतयसॅं? इह। कतेक दिन पर तों ऊपर भेलाह? एना केओ घर-द्वार छोड़ैत अछि?

हम प्रेमपूर्वक हुनक चरण-धूलि लऽ अपना लग बैसा कऽ पुछलिऎन्ह- कहू घूटर कका, सभ कुशल-मंगल छैक?

घूटर कका बजलाह-बड़ बढियाँ। तों अपन कहह, कोना छलाह? एकटा चिट्ठीओ-पत्री त कहियो दितहुन।

हम बात बदलैत कहलिऎन्ह-एखन कहाँसॅं आबि रहल छिऎक?

घूटर कका बजलाह-सिमरियाघाट गेल छलहुँ। गंगाजल लेबक हेतु।

हम- कहू, घूटर कका, बैदगीरी खूब चलैत अछि कि नहि?

घूटर-देहातमे की चलत? केओ कि दाम खर्च करऽ चाहैत अछि?

ई कहैत घूटर कका हमरा दिस गंभीर दृष्टिसॅं तकलैन्ह। जेना कोनो बात लक्ष्य करैत होथि। पुनः दोसरा दिस ताकि एक दीर्घ निःश्वास छोड़लन्हि। हमरा हृदयमे धुकमुक्की होमय लागल-रे बाप! की बात छैक?

पुछलिऎन्ह-घूटर कका, हमरा ओहि ठाम सभ लोक निकें अछि कि ने? कोनो अनिष्ट घटना त नहि भेलैक अछि?

घूटर कका बटुआसॅं तमाकू बाहर करैत बजलाह-अहाँक घोड़ी मरि गेल।

हम-अहा! घोड़ी मरि गेल? हम कहैत छलहुँ जे एहि बेर गाम जाएब त ओहिपर खूब बूलब। कोना मुइलैक?

घूटर-दलानक पछुअतिमे बान्हल रहय। जखन दलानमे आगि लगलैक त ओही संग ओहो जरि गेल।

हम-आहि रौ बाप! हमर दलानो जरि गेल? से कोना?

घूटर-जखन घरमे आगि लागल त दलानोमे धऽ लेलकैक। जा लोक मिझाबय-मिझाबय ता साफ भऽ गेलैक। रातिक समय रहैक कि ने!

शंकित चित्तसॅं पुछलिऎन्ह-कोनो लोक त नहि नोकसान भेलैक?

घूटर-नहि। लोक नहि जरल। किएक त....

हम फक दऽ निसास छोड़ल। खैर, लोक त बाँचल। चीज-वस्तु जान बचतै त फेर भऽ जेतैक। परन्तु जौं मुन्ना.....। ई सोचैत देह सिहरि उठल। पुछलिऎन्ह-की? ई आगि कोना लगलैक?

घूटर कका बजलाह-अहाँक नूनूककाक एकादशाह दिन जे दूध औंटल गेलैन्ह तकरे आगि....

ई सुनैत हमरा आँखिक आगाँ अन्हार भऽ गेल। ऎं! आब नूनूककाकें नहि देखबैन्ह। हे भगवान! हम केहन पापी भेलहुँ!

हमरा आँखि पोछैत देखि घूटर कका बजलाह-एना केओ अधीर होअए? जन्म-मरण त लोककें लागले रहैत छैक। एहि संसारमे केओ जीबय आयल अछि?

हम हिचकैत-हिचकैत पुछलिऎन्ह- हुनका की भेल छलैन्हि?

घूटर-कोनो तेहन रोग-व्याधि त नहि छलैन्हि। अहाँक भौजीक एकोदिष्ट कएने रहथि, ताहि दिन पेटमे तेहन दर्द उठलैन्ह जे.....

हाय! हाय! भौजी पहिनहि बिदा भऽ गेलीह! आब बैगनी कोरक ओ साड़ी के पहिरत?

हम फफकि-फफकि कऽ कानय लगलहुँ। घूटर कका चुप करैत बजलाह-एना केओ बताह होअए? ओ लक्ष्मी छलीहि। चलि गेलीह। जे दिन जिबतथि से त कष्टे होइतैन्ह!

हमरा मुँहपर विस्मयबोधक चिह्न देखि घूटर कका बजलाह-ओ तॅं जहियेसॅं विधवा भेलीह तहियेसॅं....

आहि रौ बा! भैयो नहि रहलाह! हम पुक्की पाड़ि कानय लगलहुँ। भैया-भौजी दुनू विदा भऽ गेलीह! आ मुन्नाकें के रखने हैतैक? कोना हैत?

बड़ीकाल धरि नोर-झोरक आवेशसॅं बाजि नहि सकलहुँ। ओम्हर घूटर कका निर्विकार भावसॅं तमाकू चुनबैत रहलाह। कतेक कालपर कोनहुना कंठसॅं पुछलिऎन्ह- मुन्ना कोना अछि?

घूटर कका ठोरमे तमाकू रखैत बजलाह-ओकरे शोकमे त अहाँक भाय मुइलाह। कोना ने होउन्ह? ने खैनाइ ने पिनाइ....

हम निष्पन्द रहि गेलहुँ। जे अन्तिम बन्धल छल सेहो टूटि गेल। भैया, भौजी, नूनूकका, मुन्ना सभ समाप्त। आब ककरा खातिर गाम जाउ? और जा कऽ की देखब? संसारे उजड़ि गेल! ने ओ राम ने ओ अयोध्या! आब के मोटर पाबि नाचत? के साड़ी देखि कऽ खुशी हैत। ककरापर स्नेहक अभिमान करबैक?

तावत गामक स्टेशन पहुँचि गेल- समस्तीपुर जंक्शन। हम छातीकें वज्र कऽ कऽ बजलहुँ- घूटर कका, हम त आब सोझे हरिद्वार जायब। संन्यासीकें रुपैया-पैसासॅं कोन काज? अहाँ ई मोटरी लऽ लियऽ और साले-साले हुनका लोकनिक निमित्त ब्राह्मण-भोजन करा देल करबैन्ह।

घूटर कका पुनः हमरा दिस गम्भीर दृष्टिसॅं तकलन्हि। जेना किछु लक्ष्य करैत होथि। पुनः बजलाह-हॅं, ठीक। आब उतरह।

हम अनुरोध करैत कहलिऎन्ह-अहाँके एको रती दया नहि होइत अछि? हमर घर उजड़ि गेल, निर्वंश भऽ गेलहुँ और अहाँक लेखे धन सन! जाउ, हमर जे डीह-डाबर अछि से अह्नीं जोति कऽ खाएब।

परन्तु घूटर ककापर एको रत्ती प्रभाव नहि पड़लैन्ह। ओ तमाकूक सिट्ठी फेकैत हमरा हाथ धऽ नीचा उतारय लगलाह। हम हाथ झाड़ैत कहलिऎन्ह-देखू घूटर कका! हम कहि दैत छी! जबरदस्ती नहि करू। हम अपना होशमे नहि छी।

घूटर कका बजलाह-तों वैह श्रीकान्त रहि गेलाह। एखन धरि नेनमति नहि छुटलौह अछि। तोहर घर-द्वार लोक-बेद सभ ओहिना अनामति छौह। चलह, उतरह।

हम कहलिऎन्ह-घूटर कका! परतारू जुनि। आब हम बच्चा नहि छी।

घूटर कका-तोरा विश्वास नहि होइत छौह त चलि कऽ देखि लैह।

हम-त मुन्ना जीबिते अछि?

घूटर-हॅं।

हम-और भैया?

घूटर-ओहो।

हम-भौजी?

घूटर-ओहो।

हम-आ, नूनूकका?

घूटर.-खूब मस्त छथुन्ह।

हम-और घर?

घूटर-ओहो बाँचल छौह।

हम -तखन दलानो नहि जरल?

घूटर-नहि।

हम-और घोड़ी?

घूटर-खूब हिनहिनाइत छौह।

हम-तखन अहाँ एतेक बना कऽ किऎक कहलहुँ?

घूटर-हौ! बरौनीमे हम देखल जे तोरा हिचकी उठल छौह। ओना बन्द नहि होइतौह। तैं हम एतेक काल धरि तेहने-तेहने बात कहैत ऎलिऔह जाहिसॅं खूब आतंक भऽ जाओ। ई हिचकीक टोटमा थिकैक। देखै छह नहि, आब हिचकी कहाँ गेलौह?

हमरा फक्क दऽ प्राण आएल। घूटर ककाक पैर पर खसैत कहलिऎन्ह-धन्य छी महाराज! हमर प्राण छुटैत छल और अहाँ टोटमा करैत छलहुँ। तेहन चिकित्सा करय लगलहुँ जे हमर प्राणे जाय लागल! बाप-रे-बाप! ओतेक अशुभ बात सभ कोना फुरल? हमरा त एखन धरि देह काँपि रहल अछि।

घूटर कका-की करबहक? हुनका लोकनिक आयुर्दा और बढि गेलैन्ह। हिचकीक 'टोटमा' एहिना होइत छैक।