लेखक : हरिमोहन झा

पंडित काकाक आङन मे आइ बी० ए० पास कनियाँ आबि रहल छथिन्ह । ई सुनितहि सौंसे गाम मे कुतुहलक बाढ़ि आबि गेल । स्त्रीगणक देह मे गुदगुदी लागय लगलैन्ह । पंडिताइनक करेज भालरिक पात जकाँ काँपय लगलैन्ह। आइ काल्हि ए० बी० पढयबाली कनियाँक शानमे जुमब कठिन। बी० ए० बालीकें के डेबि सकैत अछि। बड़की पुतोहुकेँ पुछलन्हि-ए तुनुकरानी! अङरेजी बाली कनियाँ कैं एहि घरमे नीक लगतैन्ह? हुनका कुर्सीपर बैसि कय अखबार पढबाक हिस्सक हैतैन्ह। एहि ठाम हमर सभक संग चिनवार नीपल पार लगतैन्ह?

मुजौनाबाली तुलसीचौरा पर दीप लेसैत बजलीह-एतबा डर छलैन्ह त अङरेजीबालीक सौखे किएक भेलैन्ह? कोनो हमरे सन हरही सुरही अबितैन्ह त भरि दिन खटैत रहितैन्ह।

सासु गंभीर होइत कहलथिन्ह- ऎ कनियाँ! भावी पर ककरो सक्क चलै छैक? नहि त ओहन-ओहन धनिक जमींदारक बेटीकेँ छोड़ि श्रीकान्त ओहि मास्टरनीक बेटीपर कियेक ढुलि गेलाह? बिनु दामे ओकरा हाथ बिका गेलाह। नहि जानि छौंड़ीक देहमे कोन गुण भरल छैक।

सुमित्रा मिडिलमे पढैत छलि। माइक बात सुनि बाजलि- तोँ सभ ओकरा देहक गुण की बुझबहीक?

मुजौनाबाली कहलथिन्ह-स्कुलिया लड़कीक देह कि दोसर भऽ जाइ छैक? ओकर चाम बदलि जाइ छैक?

सुमित्रा बजलीह-बदलि त जैबे करइ छैक। पंडिताइन कहलथिन्ह- बेसी लुब-लुब नहि कर। तोँहू पढय लगलैह अछि। ला त अपन देह। चुट्टी काटि कऽ देखैत छिऔक।

एतबहिमे मोटरक आवाज सुनाइ पड़ल। तीनू जनी दुरुखा दिस दौड़लीह। देखैत-देखैत सौंसे टोलक आइमाइ पछुआड़ बाटे आबि कऽ जमा भऽ गेलीह। नव-हथबाली अपना आङनमे चाउर छटैत छलीह। ओ मूसर फेंकि कऽ दौड़लीह। नागदहबाली राहड़ि उलबैत छलीह। ओ खापरि पटकि कऽ दौड़लीह। इनारपर तनौताबाली कैं रामवती दाइसॅं एकटा सजमनिक खातिर झगड़ा होइत छलैन्ह। पों-पों सुनैत देरी दूहू गोटे झगड़ा छोड़ि दौड़लीह। सहजो पीसी कैं चलि नहि होइत छलैन्ह। हुनका शुभकला दाइ हाथ धरा कऽ लऽ ऎलथिन्ह। एवं प्रकारें पंडिताइनक आङन मे मेला लागि गेलैन्ह।

तावत मोटर दरबाजापर पहुँचि गेलैन्ह ।

पंडिताइन आइमाइ कैं सम्बोधित कहलथिन्ह - आब शुभ-शुभ कऽ चलै चलथु । पुतोहु कैं उतारथु ।

आइमाइक छाती उधकय लगलैन्ह । मोटर मे ओहार लागल हेतैक । एक कोन मे कनियाँ घोघ तनने दबकलि सुटकलि बैसल हेतीह । सासु मुँह उघारि कऽ लोक कैं देखौथिन्ह । कनियाँ लजा कऽ आँखि मुनि लेतीह । सुनै छिऎक बड़ सुन्दरि छैक । देखा चाही केहन मुँह छैक ।

एक झूण्ड स्त्रीगण मरौत काढ़ने कनियाँ कैं उतारक हेतु दरबाजा दिस बिदा भेलीह । परन्तु बिचहि मे तेहन अभूतपूर्व घटना घटित भेल जे सभ आइमाइ मुँह बौने ठाढ़ि रहि गेलीह ।

नवकनियाँ चमकैत चश्मा लगौने उघारे माथ मोटर सॅं उतरलीह और स्वामिक संग चट्टी पर खट-खट करैत सोझे आङन मे पहुँचि गेलीह । आइ-माइक आँखि चोन्हिया गेलैन्ह । कनियाँ परसनलिटी बाली छलीह । सभ सॅं एक बीत ऊँच । देहो सशा खूब भरल पूरल । सोहल तरकुन जकाँ रस डबडब करैत । पानिए दोसर । जेना पितरिया बासनक बीच मे एकटा स्टेनलेस कतहु सॅं आबि गेल हो ।

कनियाँ अपन रिमलेस चश्मा सॅं एक बेर बिहंगम दृष्टि दैत स्वामी सॅं बजलीह - हम त एहिठाम किनको चिन्हैत नहि छिऎन्हि । परिचय करा दितहुँ त नीक होइत ।

सभ आइमाइ आवाक रहि गेलीह । नवहथबाली नागदहबाली कै चुट्टी काटय लगलथिन्ह ; नागदहबाली तनौताबाली कैं ।

श्रीकान्त अपना माय दिस संकेत कय कहलथिन्ह - ई अहाँक सासु हैतीह ।

कनियाँ अपना पर्स कैं बगल मे दाबि दुनू हाथ सॅं अंचल जोड़ि सासुक चरण स्पर्श कैलन्हि । पंडिताइन लाजे कठुआ गेलीह । निक जकाँ नाक कैं झापि लेलैन्ह ।

ततः पर कनियाँ स्त्रीगणक यथायोग्य अभिबादन करैत कहलथिन्ह - अहाँ लोकनि ठाढ़ किएक छी ? बैसइ जाउ ।

ई कहि कनियाँ आङन मे ओछाओल सतरंजी पर बैसि गेलीह । पुनः ननदि दिस ताकि बजलीह - पहिने एक गिलास ठंढा शरबत पियाउ ।

आइ-माइ दाँत तर जीभ काटय लगलीह । फेर क्रमशः सभ गोटे शतरंजी पर आबि बैसैत गेलीह ।

सुमित्रा भौजी कैं सरबत दय स्त्रीगण कै कहलथिन्ह - अहाँ लोकनि गुम्म किऎक छी ? शुभ समय मे गीत्नाद होमक चाही ।

नागदहबाली उठौलन्हि -

हेजगदम्ब हरु सभ संकट त्रिभुवन तारिणि ए -

गीत त बेस टहंकार मे उठौलन्हि किन्तु सम्हार मे नहि रहलैन्ह । अंतरा पर अबैत-अबैत भसिया गेलैन्ह ।

कनियाँ सरबत पीबि कऽ बजलीह - 'एहि गीत कैं एना लय मे बान्हि कऽ कहिऔक ।' ओ आंगुर सॅं ताल दैत गाबय लगलीह -

हे जऽग । दऽम्ब । हरु सऽभ । संकट । त्रिभुवऽन । तारिणि ए----

पुनः स्वामी दिस ताकि बजलीह - हमर बेहाला त आनि दियऽ । हम तेताला मे ई पद गाबि कऽ सुना दैत छिऎन्ह ।

एम्हर कनियाँक तेताला समाप्तो नहि भेल छलैन्ह कि बाहर सॅं ससुरक चौताला सुरु भऽ गेलैन्ह । पं० जी एकाएक बिहारि उठबैत आङन मे आबि पहुँचलाह और पंडिताइन पर गरजैत बजलाह - एहिठाम नाच भऽ रहल अछि ? कि मोजरा भऽ रहल अछि ? हमरा घर मे ई सभ निर्लज्जता नहि चलत से कहि दैत छी । अहाँ लोकनि कैं नाच करक हो त कटकी बजार मे जा कऽ नाच करू गऽ ! और ई आइमाइ लोकनि जे जमा भेल छथि से सभ अपन-अपन घर जाइ जाथु ।

ई कहैत पं० जी जोरसॅं खड़ाम खटखटबैत बाहर भऽ गेलाह।

सभ केओ सन्न रहि गेल। तखन सहजो पीसी निस्तब्धता भंग करैत बजलीह- की ऎ आइमाइ सभ! आबो घर चलब कि घरबैआक मारि खा कऽ उठब ? आबो किछु सत्कारमे भाङठ अछि? बर्नी, अहाँ लोकनि तेल-सिन्दुर लेल बैसल रहू। हम चलैत छी।

ई कहि सहजो पीसी तरङि कऽ बिदा भऽ गेलीह। हुनका उठितहि सम्पूर्ण मण्डली पाछाँ लागि गेलैन्ह। आब बाट मे गरमागरम समालोचननाक फुलझरी उड़य लागल। सहजो पीसी पेनी छनलन्हि- हः हः हः। जे संसार मे नहि भेल छल से आइ पंडितक आङनमे देखि लेल। हम सत्तरि वर्षक भेलहुँ परन्तु आइ धरि एहन कनियाँ-बर नहि देखने छलहुं।

तनौतावाली टीप देलथिन्ह- तः। ई सभ अकड़हड़ कऽ देलक।

नागदहवाली व्याख्या करैत बजलीह- वास्तवमे ई मौगी जग जितने अछि। लाज संकोच एको रत्ती छूति नहि छैक। जेना आँखिक पानि ढरि गेल होइक। पकठोस केहन ? ससुरोक अयलापर माथ झपलकैक?

रामबती दाइ टिप्पणी कैलथिन्ह-अहू चमत्कारे करैत छी। जे अंग स्त्रीक लज्जा थिकैक से त झपनहि नहि छल, और अहाँ कैं केवल माथे टा सुझैत अछि!

शुभकला दाइ परिष्कार करैत बजलीह-ऎ! आइ काल्हि यैह फैशन चललैक अछि। ओ हमरा सभ जकाँ देहाती नहि छैक जे दोबर कऽ कऽ आँचर राखत।

रामवती दाइ खंडन कैलथिन्ह- मारू बाढनि एहन फैशन कैं। हमरा लोकनि कैं एहि धूआमे एना कऽ हैत।

पिलखबारवाली बजलीह-त! हमरा लोकनि सासुर ऎलहुँ त छौ मास धरि केओ उकासियो नहि सुनलक। बीस वर्ष सासुर बसना भेल तथापि औखन धरि पलटीक बापसॅं अनका सोझाँ बजैत संकोच होइत अछि। और ई त अबितहि साँयसॅं टुभ-टुभ बाजय लागि गेल। जेना श्रीकान्त ओकर सङभैया होथिन्ह।

शुभकला दाइ टिपलथिन्ह-संगभैया तऽ छथिन्हे। दुहु गोटे कलकत्तामे सङहि संग बी० ए० पास कैने छथि, एक्के कालेजसॅं।

नागदहवाली बजलीह- तैं ने श्रीकान्त कैं किछु गोदानैत नहि छैन्हि। एक-पिठिया जकाँ लगैत छैन्ह।

तनौतावाली संशोधन करैत कहलथिन्ह- एकपिठिया नहि, पितियाइन कहू। श्रीकान्त त ओकरा आगाँ छुच्छुम लगैत छथिन्ह। यदि ओ कसि कऽ झापड़ लगबैन्ह त श्रीकान्त कैं उठि कऽ पानि पीबाक होश नहि रहतैन्ह।

सहजो पीसी समर्थन करैत कहलथिन्ह- दुरजो। एहन ताड़गाछ कतहु माउगि भेलय, और पीठ केहन चाकर! लगै छल जेना सुखदेव पहलवान हो।

शुभकला दाइ पक्षान्तर ग्रहण करैत बजलीह-अहाँ जे कहिऔक। परन्तु हमरा त होइ छल जे देखिते रहिऎक। ओहन सुन्दर गठल देह सिनेमे टा मे देखने छिऎक!

नबहथवाली कैं छन्न दऽ लगलैन्ह। चमकि कऽ कहलथिन्ह -ई अहाँ की बजैत छी? एहि गाम मे एकसॅं एक सुन्नरि अछि। पिलखीवाली कि ओकरासॅं कम्म गोरि छथि? हॅं, तखन ई कहु जे ओ मेम जकाँ फैशन बनौने रहै अछि।

शुभकला दाइ प्रतिवाद करैत बजलीह - केवल गोरे भेने नहि होइ छैक । ओकरा मुँह पर जे पानि छैक से पिलखीवाली कैं एहि जेन्म मे हेतैन्ह ? पीयर मुँह, सुखाएल समतोला सन लटकल गाल । और ओकरा देखियौक , अंगूर जकाँ लटकल छलकैत अछि ।

नागदह वाली कैं लेसि देलकैन्ह । व्यंग्य करैत कहलथिन्ह - और अहाँ की सुखा कऽ मोनक्का भऽ गेलहुँ अछि ?

शुभला दाइ प्रत्युत्तर दैत बजलीह - से आब अहाँ कचकचा कऽ जे कहू परन्तु हम बात कहब सत्ते ! अहाँ लोकनि देह कैं घुलाबय जनैत छी । अपना कैं ततेक दबा कऽ, लिबा कऽ, निहुड़ा कऽ रखैत छी जे सिट्ठी बनि जाइ छी । पिलखी वाली कैं लियऽ । बीस सॅं कम्मे मे घुलि कऽ निमकी बनि गेल छथि । और ओहि कनियाँ कै देखिऔ । बाइस-चौबीस सॅं कम नहि हैत । परन्तु डंभक लताम बनल अछि ।

आब रामवती दाइ कै नहि रहि भेलैन्ह । बजलीह हे गय ! बहुत सुनलिऔक । हमरा लोकनिक बेटी पुतोहु ओना उतान भऽ कऽ छमकत से छमकय देबैक ? हमर कनियाँ जौं ओना साँय लग बैसि फदियाय लागय त छाउर लगा कऽ सट्ट दऽ जीभ खीचि लेबैक ।

भोजपड़ौल बाली नहुँ-नहुँ बजलीह - ऎ दाइ । बूझू तऽ हमरो मन मे यैह बात आयल छल । किन्तु डरें नहि बजलहुँ । जौं ई कुलकन्या रहैत त माय सिखौने नहि रहितैक ?

शुभकला दाइ सफाइ दैत कहलथिन्ह-एकर माय स्कूलमे काज करैत छैक। ओहो बराबरि बोर्डिंगमे रहैत आइलि। तैं समाजिक व्यवहार नहि बुझल छैक।

सहजो पीसी उत्तेजित होइत बजलीह- तखन एकर माइयो खेलाइलि हेतैक। केहन अगिया खढ़ खा कऽ एहन बेटी जनमौलक से नहि कहि।

नवहथवाली बजलीह-पंडित कैं कि ई कथा कहिओ फुटलो आँखिऎ सौहैलन्ह? बराबरि विरोधे करैत रहलथिन्ह । ने विवाहमे गेलथिन्ह, ने द्विरागमन मे। ई त बुझू जे श्रीकान्तक जिद्द....

पिलखवाड़वाली पुछलथिन्ह-बेटा कैं रोकलन्हि किऎक ने?

नबहथवाली कहलथिन्ह-आइ काल्हि ककर बेटा दाब मे रहैत छैक? और जेठ भाइक मुइने श्रीकांत दुलरुआ भऽ गेलाह। जौं पं० जी कैं पहिने बूझि पड़ितैन्ह जे अन्तमे एना बिसाएत त श्रीकांत कैं कथमपि कलकत्ता राखि नहि पढ़बितथिन्ह।

सहजो पीसी अध्याय समाप्त करैत बजलीह-जे बड़े गर्जैत अछि तकरा एहिना होइत छैक। ई पंडित अनका बड्ड दुसैत छलथिन्ह! आब लेथु। तेहन कप्पार पर पड़लैन्ह अछि जे सभ पोथी पतड़ा घुसरि जैतैन्ह। है लोकनि, हमर बात गिरह पारि लैत जाह। यदि ई मौगी एक दिन पंडितबेक माथपर नहि नचैन्ह त हमरा नामे एकटा कुकुर पोसि लिह'।

रातिमे भोजन काल पं० जी स्त्री कैं कहलथिन्ह- देखू। अपना पुतोहु कैं सम्हारू। नहि त हमरा गाम छोड़य पड़त।

पंडिताइन पंखा हौंकैत पुछलथिन्ह से कियेक?

पं० जी-ओ जे भोरे उठि क' सड़क पर टहलय जाइत छथि से देखि सौंसे गाम हॅंसैत अछि।

पंडिताइन- ओ कहै छथि जे भोरमे टहलबाक हिस्सक छन्हि। एहिसॅं स्वास्थय बनैत छैक।

पं० जी- हमर नाक कटा रहल अछि और ओ अपन स्वास्थय बनबैत छथि! आब हुनका द्वारे हमरा वाह्यभूमिओक बाट बंद भऽ जाइ अछि।

पण्डिताइअन डराइत-डराइत कहलथिन्ह-की करबैक? कनेक आँखि मूनि लेब।

पं० जी उत्तेजित भय बजलाह-की बजलहुँ? हम आँखि मुनि लियऽ? और ओ चश्मा पहिरि कऽ सौंसे गाम बुलल घुरथु!

पण्डिताइन दही परसैत कहलथिन्ह-ओ कहै छथि जे साँझ प्रात नहि बहरैने जी औनाय लगैत अछि।

पं० जी बजलाह-एहीठाम मुजानावाली कैं देखिऔन्ह। चौदह वर्ष बसना भेलैन्ह। आइ धरि कहियो चौखटसॅं बाहर पैर रखलन्हि?

पण्डिताइन कहलथिन्ह-मुजौनावाली त हमरो लोकनिसॅं भरि मुँह नहि बजैत छथि। और नवकी कनियाँ काल्हि स्कूलक मास्टरोसॅं गप्प कैलन्हि अछि।

पं० जी थारी पटकैत बजलाह - आव हम कतहु पड़ा जाएव । भला मास्टर सँ हुनका कोन काज छलैन्ह?

पण्डिताइन - मास्टरे कैं हुनकासँ किछु बुझबाक छलैन्ह । जखन श्रीकांत बुतें नहि भेलैन्ह त कनियाँ बुझा देलथिन्ह ।

पं० जी बजलाह - श्रीकांत हुनका सिक्कापर चढा रहल छथिन्ह । जखन टीक धरतैन्ह त बूझि पड़तैन्ह । ऎ ! ओम्हर की भ' रहल अछि?

पण्डिताइन-अहींक पुतोहु इसराज बजा रहल छथि ।

पं० जी -आइ इसराज बजा रहल छथि । काल्हि पेशवाज पहिरि क' नचतीह । ताहिसँ बरु कहियौन्ह जे एके बेर ....

पंडिताइन-ओ सुमित्रा कैं सिखा रहल छथिन्ह ।

पं० जी-ओकरो दूरि क' रहल छथिन्ह ।

पंडिताइन कलथिन्ह-ऎ, की करबैक ? जे होइ छैक से होमय दियौक । अहाँ खाउ । थोड़े और दही लिय' ।

पंडिताइन एक बाटी छल्हिगर दही आगाँमे दैत पुछलथिन्ह-एकटा बात कहू ? तामस त ने हैत ?

पं० जी - की ?

पंडिताइन मेहिंया-मेहिंया क' कहय लगलथिन्ह-पुतोहु कैं एहिठाम खाली बैसल नहि मन लगैत छैन्ह । ओ आगाँ पढ़य चाहैत छथि । पटना दरखास्त पठा देने छथिन्ह । कहै छथि जे जुलाइ सॅं नाम लिखाएब । ओतय होस्टल मे रहतीह । कहै छलीह जे बाबूजी कैं कहथुन्ह जे एक सै टाका मास देल करताह ।

पं० जीक आगाँ अन्हार भऽ गेलैन्ह । बजलाह घर मे रस्सी हैत ?

पंडिताइन - से किऎक ?

पं० जी - आब हम फाँसी लगा कऽ मरि जायब । पुनः बजलाह - फाँसी त गरमे ओही दिन लागि गेल जहिया हमर कुलबोरन ओहन ठाम भसिया गेलाह । एहुमे छौ हजार दैत रहैन्ह । अकौर मे सात हजार दैत रहैन्ह । लगमा मे आठ हजार दैत रहैन्ह । से सभटा छोड़ि एहि हड़ाशंखनीक फेर मे पड़ि गेलाह । बॊ० ए० धो कऽ कि लोक चाटत ? एकटा मकुनी कैं उठा लैलाह । आब सै टका मास हिनका चारा देल करियौन्ह । श्रीकांत दोसर ठाम विवाह करितथि त हमर बोझ हल्लुक होइत । पुतोहु अबैत से अहाँक बोझ हल्लुक करैत । और ई एकटा ढोल गरदनि मे लटकौने एलाह अछि ! श्रीकांत त पढ़ि कऽ कमैताह । हुनकर बहु एम० ए० पास कऽ कऽ की करथीन्ह ?

पण्डिताइन कहलथिन्ह - से नहि बुझू । ओहो कमैतीह । तैं पढ़बा लेल एतेक व्यग्र छथि । कहै छलीह जे जौं बाबूजी खर्च नहि देताह त हम गहना बेचि कऽ पढ़ब ।

पं० जी सानल दही चीनी छोड़ि कऽ बजलाह - ओ बिना हमर पाग खसौने नहि रहतीह । हुनका जे मन मे अबैन्ह से करथु । हम हरद्वारक बाट धरैत छी । आब विना वानप्रस्थे दोसर उपाय नहि । यदि एहि ठाम रहब त फाँसी लगाबय पड़त ।

ई कहैत पं० जी तमकि कऽ अचाबक हेतु बिदा भेलाह । परन्तु आङन सॅं बाहर होइतहि किदन मे लटपटा कऽ खसि पड़लाह । ओतहि सॅं चिचिऎलाह - 'ए ! हमरा फाँसी लागि गेल ।' पण्डिताइन लालटेन लऽ कऽ दौड़लीह । पं० जी अपना स्थूल शरीर कैं जाल सॅं छोड़बैत बजलाह - ई रस्सा के टङने अछि ?

पंडिताइन भयभीत होइत कहलथिन्ह-कनियाँ एकटा खेल खेलाह छथि। कीदन कहै छैक बडमिन्टन। तकरे जाल लगौने छथि।

पं० जी क्रोधान्ध होइत बजलाह-श्रीकान्त सेहो खेलाइत छथि? पण्डिताइन चुप्प रहलीह।

पं० जी चिचिया कऽ बजलाह-और गामक छौड़ा सभ सेहो खेलाय आओत? चारि टा लुच्चा लफंगा एहि आङनमे जमा हैत और हमर पुतोहु सभक बीचमे कुदतीह?ई सभ हम नहि होमय देब। लाउ एखने सलाइ खरड़ि कऽ एहि जालमे लगा दिऔक।

पंडिताइन कहलथिन्ह-ऎ! युगे बदलि गेलैक त अहाँ किऎक खौंझाइ छी? चलू दलान पर, हम हरदि-चून लगा दैत छी।

आधा रातिक समय। पं० जी दलान पर सूतल रहथि। परन्तु निन्द नहि पड़ैन्ह। कच्छमच्छ करैत भगवान कैं गोहराबय लगलाह- हे मधुसूदन, कोना कऽ ई जपाल माथ परसॅं उतरत? हे चक्रधारी, कोहुना एहि जाल कैं काटू।

तावत पंडिताइन दौड़ल ऎलथिन्ह। पं० जीक देह झमारि कऽ उठाबय लगलथिन्ह-ऎ उठू, उठू अनर्थ भऽ गेल।

पं० जी- से की?

पंडिताइन-कनियाँ कैं साँप काटि लेलकैन्ह।

पं०जी- से कोना ?

पंडिताइन- घरमे सूतल छलीह। ऊपर चारसॅं साँप खसि पड़लैन्ह। ठोरेमे हबकि नेने छैन्ह।

पं० जी-कोना बुझलिऎक।

पंडिताइन-श्रीकांत अपना आँखिसॅं देखलथिन्ह। जुआएल गहुमन छलैक।

पं० जी हड़बड़ा कऽ उठलाह। घरमे जाऽ कऽ देखैत छथि त कनियाँ अचेत पड़ल छथि; मुँह सॅं गाउजि चलि रहल छैन्ह।

भरि राति झाड़ फूक भेल। अनेको डाक्टर वैद्य ऎलाह । दबाइ पड़लैन्ह । परन्तु कनियाँक आँख नहि फुजलैन्ह । ओ तेहन रुसान रुसलीह जाहिमे बौंसब असम्भव । सासु ननदि देयादनी इत्यादि छाती पीटय लगलथिन्ह । अड़ोसिन-पड़ोसिन घेओना पसारलन्हि । स्वामी जे माथपर हाथ द' क' गुम्म भेलथिन्ह से गुम्मे रहि गेलथिन्ह । पंडित जी लोक सभ कैं सम्बोधित कय कहलथिन्ह-आब तकइ की जाइ छह ? अर्थी उठाबह ।

श्रीकांत कनियाँक बाजा, पुस्तक, कविताक कापी और खेलक सामग्री सभटा वस्तु चितापर सजा देलथिन्ह । देखैत-देखैत आगिक लपट उठल और कनियाँ अपन साज-सामानक संग पं० जीक घर सर्वदाक हेतु खाली क' देलथिन्ह ।

अन्त्येष्टि कियाक अनंतर पं० जी घर ऎलाह त देखै छथि जे पंडिताइन सिसकि रहलि छथि :

पं० जी हुनका बजा क' नहूँ-नहूँ कहलथिन्ह - अहाँ कनै छी किऎक ? श्रीकांत कैं दस हजार ल' क' दोसर विवाह करा देबैन्ह । तेहन कनियाँ आनि देब जे अहाँक तरबा रगड़ैत रहत । ई त बुझू जे गरक घेघ टरि गेल भगवान जे करै छथि से नीकेक हेतु ।

पण्डिताइन कनैत-कनैत कहलथिन्ह-ओ फुलकुम्मारि एहि घरक योग्य नहि छलि । मड़ूआक खेतमे कतहु केसर लगलैक अछि ? भगवानो कैं अनकच्छल लगलैन्ह । तैं उठा लेलथिन।