लेखक : हरिमोहन झा

हमरा पुर्नियाँ जैबाक छल। परन्तु जे गाड़ी ७ बजे साँझमे कटिहार पहुँचबाक रहय से पहुँचल ९ बजे रातिमे। परिणाम ई जे कनेक्शन छूटि गेल। आब भोरमे ५ बजे गाड़ी भेटत। राति भरि एत्तहि स्टेशनमे रहय पड़त। अगत्या वेटिंग रूमक बाट धैलहुँ। कुली माथपर ट्रंक बिस्तर लऽ कऽ पाछाँ-पाछाँ चलल।

एतबहिमे एक विशालकाय सज्जन हमरा ठिकिया कऽ ताकय लगलाह। ओ हमर नाम पुछलन्हि और पुर्नियाँ जैबाक बात बुझि अपना आदमीकें हुकुम देलन्हि- रौ मलंगबा, तकै की छैँ! कुलीसॅं सभटा वस्तु छीनि ले।

हमरा बकर-बकर मुँह तकैत देखि ओ बजलाह-अपने हमर सम्बन्धी थिकहुँ। अपनेक माम ओ हमर पीसा दूनू साक्षात साढू। तखन हमरा कटिहारमे अछैत अपने भरि राति वेटिंग रूममे सूती, ई कतहु होय!

हम लाख अनुनय-विनय कैल, परन्तु सभटा व्यर्थ भेल। ओ कहय लगलाह- हम कटिहारमे ठीकेदारी करै छी। अपनो मकान बनि रहल अछि। बड्ड भाग्यसॅं अपनेक पदार्पण भेल अछि। आब चलि कऽ ओहि स्थानकें पवित्र कऽ दिऔक।

ओ पुनः अधिकारपूर्ण स्वर मे अपना आदमी कैं आदेश देलन्हि । आदमियो तेहन जबर्दस्त छल जे सभट वस्तु-जात उठा कऽ काँख तर पजिया लेलक ।

हमरा प्रतिवाद करबाक शक्ति कुंठित भऽ गेल । तथापि विनम्र स्वरें कहलिऎन्ह - भोरगरे पाँच बजे ट्रेन पकड़बाक अछि, तें एहीठाम वेटिंग रुम मे` ` ` `

ओ बात कटैत बजलाह - राम-राम ! एहि ठाम वेटिंग रुम मे रहब । ई हमरा अछैत नहि भऽ सकैत अछि । पाँच बजेक कोन कथा हम चारिए बजे गाड़ी पर बैसा देब ।

हम पुछलिऎन्ह अपने कतबा दूर रहै छी ?

ओ बजलाह दूर किछु नहि । एहि ठाम सॅं दू डेग छैक । ओहि ठाम पाभरि सिद्ध चाउर भेटत । निश्चिन्त भऽ अपना मड़ैया मे सूतब । और एहि ठाम कटिहार मे आबि कऽ भला गाड़ी छूटि जाएत ? लाठीक हाथे रोकि लेबैक ।

हुनका स्वर मे तेहन आत्म-विश्वास भरल रहैन्ह जे पुनः किछू पूछब उचित नहि बुझि पड़ल । ओ आदमी कैं हुकुम देलन्हि - तों आगाँ बढि कऽ ठीक करगऽ । हम हिनका नेने अबै छिऎन्ह ।

ओ आदमी आगाँ बढ़ि गेल और हम हुनका पाछाँ-पाछाँ चलय लगलहुँ । जखन-एक डॆढ़ माइलक करीब चलल भऽ गे तखन हम विनयपूर्वक कहलिऎन्ह- एकटा रिक्सा कऽ लेल जाइत त नीक होइत ।

ओ बजलाह - आब त पहुँचि गेलेहु । दूर रहितैक त स्टेशन पर रिक्सा नहि कऽ लितहुँ ?

आब हम की बाजू ? चुपचाप हुनक पदानुसरण करय लगलहुँ । जखन पुनः एक-डेढ़ माइल भऽ गेल, तखन ओ आश्वासन देमय लगलाह - वैह जे अगिला लालटेमक खाम्ह देखैत छिऎक , ताहि सॅं सटले गली मे अपन मकान अछि । बस एक पौआ बुझू ।

अन्ततोगत्वा हमरा लोकनि एक उभड़-खाभड़ गली मे प्रवेश कैल । ओ बजलाह - आब आबि गेलहुँ कनेक बचा कऽ चलल जाय ।

हम टार्च लेसि कऽ देखल त सामने नेव पड़ल छैलैक । यदि एको डेग आगा बढितहुँ त ओही खाधि मे चल जैतहुँ ।

घरबैया बजलाह - मकान एखन बनिए रहल अछि । दू कोठरी पर छत पीटल छैक, दू टा पर वाँकी छैक, भानस घरक दीवार आधा तैयार भऽ गेल छैक एहि ठाम पैखानाक नेव देल गेल छैक ।

हम हुनका पाछाँ-पाछाँ खाधि कैं टपैत, ईट-सुर्खीक बीच दऽ कऽ बालू चूनक ढेरी सॅं बँचैत ओहि ठाम पहुचहुँ जहाँ राजमिस्त्री बाँस ठाढ़ कैने छल । वह मचान मकानक प्रवेश द्वार छल । हमरा लोकनि बाँसक तर माथ निहुड़ा भीतर कोठरी मे गेलहुँ जे एखन तैयार होइत छल । तकरा पार कय हम सभ एक कोठरी मे ऎलहुँ जाहि मे फर्श पीटक हेतु रोड़ा-गिट्टी बिछाओल छलैक । एकटा चौकी ओहि मे राखल छलैक । ताहि पर ओछाओन ओछाओल छल । एक कोन मे लालटेन मद्धिम प्रकाश सॅं जरि रहल छल ।

गृहपति अपना आदमी कैं सोर कैलन्हि - रौ मलंगबा, पानि ला।

मलंगबा एक बाल्टी पानि लऽ कऽ पहुँचल। चौधरीजी कहलथिन्ह-रौ, लोटा आन, अढिया आन, अङपोछा आन, पैर धोआ दहून।

मलंगबा दौड़िकऽ लोटा अङपोछा लऽ अनलक। चौधरीजी कहलथिन्ह-रौ, अढिया कतय छौक?

मलंगबा कहलकैन्ह-अढियामे त दालि चढल छैक।

चौधरीजी कहलथिन्ह-तखन एकटा थारिए लऽ आन। ई कुटुम्ब थिकाह। एतबो नहि बुझैत छहीक?

हुनकर इशारा पबितहि मलंगबा हमरा हाथसॅं लोटा छीनि लेलक। ओकर सरी खेलाएल देह छलैक। तेहन झटकासॅं हमर एक टा पैर खीचि कऽ उठौलक जे हम तलमलाइत-तलमलाइत खसय लगलहुँ। परन्तु लगेमे पाया छलैक, ताहिसॅं बाँचि गेलहुँ। मलंगबा हमर तरबा तेना रगड़ऽ लागल जेना सईस घोड़ाकेँ रगड़ैत अछि। हमरा शरीरक सन्तुलन राखब कठिन भऽ रहल छल। परन्तु ओहि हरमुंठ कें तकर कोन परबाहि? ओ बहुत दिनपर मौका पाबि अपन कलाक प्रदर्शन कऽ रहल छल।

प्रायः दस मिनटमे जखन ओकरासॅं छुटकारा भेटल तखन हम कानपर जनऊ चढा लोटा हाथमे लेल। चौधरीजी बजलाह-पैखाना एखन नहि बनलैक अछि। ता ओहि पजेबाक ढेरी लग टाट ठाढ करबा देलिऎक अछि। रौ मलंगबा, लोटा लऽ जाहून।

मलंगबा फेर हमरा हाथसॅं लोटा छिनलक और टटघरा लग हमरा पहुँचा कऽ फिरि आएल। हम अन्हारमे टौर्च लऽ कऽ देखलिऎक त दूटा ईट बैसाओल रहैक, तकरा बीचमे प्रायः केओ खूब पाकल कटहर खा कऽ नदी फिरने रहय। तेहन कुंभीपाक भभकैत छल ज नाक देब कठिन। परन्तु एहना स्थितिमे दोसर साध्ये की छल? लोटा रखबाक स्थाने नहि भेटल, हाथमे रखने रहलहुँ। ता अन्धकारमे टाटक बीचमे किछु चमकि उठलैक। टौर्च लऽ कऽ देखैत छी त एकटा जुआएल गहुमन मुँह बौने तकैत अछि। हम टौर्च- लोटा नेनहि पड़ैलहुँ।

ओम्हर खबास साबुन-तौलिया नेने ठाढ छल। समाचार सुनि बाजल- एहि ठाम पजेबाक ढेरीमे साँप सहसह करैत छैक। एहू कोठरीमे काल्हिए राति डेढ हाथक केंचुआ बहराएल रहैक।

आब सिवाय इष्ट देवताकें स्मरण करबाक उपाये की छल?

हम एही गुन-धुनमे चौकीपर पड़ल छलहुँ कि दोसरा कोठरीसॅं शब्द सुनाइ पड़ल-

-भात-दालि, आलूक तरकारी, परोरक भुजिया और आमक चटनी भेल अछि।

-औ, एतबा त सभ दिन होइत अछि। ई कुटुम्ब देवता ने आबि गेल छथि!

-तखन-तिलौड़ी सेहो छानि दैत छिऎन्ह।

-कमसॅं कम सात टा तरकारी होमक चाहिऎन्ह। दू-तीन प्रकारक तरुओ कऽ दिऔन्ह।

-तखन भाँटा कदीमा ओ तिलकोर तरि दैत छिऎन्ह । सात टा पुरि जैतैन्ह ।

-एक बाटी मे घृत देबैन्ह । एक टा मे दही । एक टा मे खोआ । दालिक बाटी लगा कऽ एगारह टा पुरि जैतैन्ह ।

-एतेक बाटी कहाँ सॅं आओत ? घर मे त चारिए टा अछि ।

-सात टा बाटी मेस सॅं मँगबा लियऽ ।

-मेस त आब बन्द भऽ गेल हैतैक ।

-तखन मलंगबा कैं पठबिऔक शीतल झा कैं उठा देतैन्ह । हमर नाम कहतैन्ह । ओम्हरे हलुआइक दोकान सॅं दही मधुर सेहो नेने आओत । पान सेहो मँगा लियऽ । खोआक लेल कम सॅं कम एक सेर दूध कतहु सॅं ऊपर करय पड़त ।

-एतेक राति कऽ दूध कतय भेटत ?

-कुटुम्बवाली बात । एक रातिक हेतु एलाह अछि । खोआ नहि हेतैन्ह त मन मे की कहताह ? एक बात करु । मलंगबा कें कहियैक जे मोटकी मोदिआइनवाली गाय कैं दूहि कऽ नेने आओत । जतबे होइक ।

-परन्तु ओ त मरखाहि छैक । लथार मारतैक ।

-से जे हो । ई गुड़ खैने, कान छेदैने । मर्यादाक पालन त करहि पड़त । हम अपनहि जा रहल छी ।

ई वार्तालाप सुनितहि हमरा आकाशक तारा सूझय लागल । साहसपूर्वक सोर कैलिऎन्ह - चौधरीजी, कनेक सूनल जाओ ।

चौधरी जी आबि कऽ उचिती करय लगलाह अपनेक भोजन मे किंचित बिलम्ब भऽ गेल । कारण जे आइ अपन गाय पिया गेलैक । दोसर ठाम सॅं दूधक प्रबन्ध भऽ रहल अछि ।

हम कहलिऎन्ह - दूध छोड़ि देल जाओ । हमरा पचितो नहि अछि ।

ओ बजलाह - भला, कहू त ! ई किन्नहूँ भ' सकै अछि ? अपने एक दिनक हेतु संयोगसँ आबि गेल छी ।

हम प्रार्थना कैलिऎन्ह-हमरा आमाशय उखड़ल छल । दूध अपकार करत ।

ओ बजलाह-एके रत्ती खोआ मुँहमे द' देबैक । विधि भ' जेतैक । फेर अपने कहिया भेटब ?

ई कहैत ओ तेजीसँ बहरा गेलाह ।

हम मनमे कहल-आइए सभटा विधि पुरा लिय' । कनैको कसरि नहि राखू । फेर के जाने कहिया अवसर भेटय ?

घड़ीमे देखल एगारह बाजि रहल अछि । हम मन मारि क' पड़ि रहलहुँ ।

जखन निसभेर सूतल रही तखन चौधरीजी आबि क' उठौलन्हि-उठल जाओ, भोजन प्रस्तुत अछि ।

हम आँखि मिड़ैत उठलहुँ । घड़ीक दूनू सूइ एक पर रहय । पैर धोबय गेलहुँ त चौधरी जी अपने हाथमे लोटा नेने ठाढ ! हमरा किन्नहुँ अपना हाथे पानि ढारय नहि देलन्हि । हमरा आसन पर बैसाय अपने पंखा लऽ कऽ बैसलाह। हम कहलिऎन्ह-अपनहुँ संग देल जाय।

ओ बजलाह-हम पाछाँ कऽ भोजन करब।

हम देखल, बेस आडम्बरपूर्वक सॅंचार लागल अछि। एगारह टा बाटी। बड़का थारमे डेढ सेर चाउरक भात परसल अछि।

हम निवेदन कैलियैन्ह-हम एकर चतुर्थांशो नहि खा सकब। एकटा बासन मंगाओल जाय। हम अपना योग्य राखि, बाँकी बहार कऽ देबैक।

परन्तु ओ कथमपि राजी नहि भेलाह। बजलाह-ई त परदेशमे किच्छु टा नहि भऽ सकल, घर रहितय त अलबत्त किछु ओरिआओन होइत। यदि एहूमे अपने छोड़ि देबैक त हमर अभाग्य।

एहना स्थितिमे की कैल जाय? हमरा जतबा सक्क लागल ततबा भोजन कय चूर लेबय लगलहुँ। तावत ओ कसि कऽ हमर हाथ धऽ लेलन्हि-ई की करै छिऎक अपने? एखन त केवल नैवेद्य टा खोंटल भेल अछि। अपने भोजन कहाँ कैल अछि? सभटा त पड़ले अछि। और भात सनियौक। अन्न महग छैक। एना दूरि नहि करिऔक।

जे बात हमरा कहक चाही से वैह कहि देलन्हि। आब हम की करू? हम कनेक भात और दही सनलहुँ। ओ बजलाह-दही नहि छोड़बाक चाही। सभटा सनियौक।

हम कोनो-कोनो तरहें ओतबा दहीकें सधाओल। जावत हम पानि पिबय लगलहुँ तावत ओ बाघ जकाँ झपटि कऽ ओतबा दही और हमरा आगाँमे उझीलि देलन्हि।

हमरा आँखिक आगाँ अन्हार भऽ गेल। ई सहजमे पिंड छोड़यबला व्यक्ति नहि छथि। हम कलपैत स्वरसॅं कहलिऎन्ह-आब नहि चलैत अछि। क्षमा कैल जाओ।

ओ सरोष बजलाह-एहनो कतहु क्षमा होइ? दही त पाचक होइत अछि।

हम सभय कहलिऎन्ह-कनेक नोन मॅंगा दियऽ।

ओ बजलाह-भला कहू त, से कि घरमे चीनी नहि छैक? हौ, चीनी दहून।

हुनक आज्ञाकारी भनसीया एक लप चीनी दहीपर उझीलि देलन्हि। हमरा अक्कबक्क किछु ने फुरय जे की करी। परन्तु देखल जे बिना खैने उपाय नहि। तीन-तीन गोटा ठाढ छथि। एहना स्थितिमे उठि कऽ पड़ाएब सम्भव नहि। अगत्या आँगुरमे दही लगा कऽ चटय लगलहुँ।

चौधरीजी बजलाह-ओना मधुपर्क की करै छी? सपासय खैयौक।

हम जान अवधारि कऽ कनहुना सभटा दही उदरस्थ कय जहिना उठय चाहै छी कि घरबैया धैलन्हि हमर गट्टा- ओतेक परिश्रमसॅं खोआ बनल अछि से अपने छुइबोटा नहि कैलिऎक!...

हमर प्राण कंठगत होमय लागल। आब हम खोआ की खायब? खोए हमरा खा जाएत।

परंच ओ टससॅं मस नहि भेलाह। बजलाह-मावाक कतहु अनादर कैल जाय। ई सभटा खाय पड़त।

ई कहि ओ खोआक बट्टा हमरा थारीमे उनटा देलन्हि। हमरा मनमे आएल जे आब भोकारि पारि कऽ कानी। परन्तु के सुनैयै! घरबैयाक एहन सन कम जे ओना नहि खाएब त जबर्दस्ती काँड़ी लगा कऽ खोआएल जाएत। आखिर कुटुम्ब छी कि ठट्ठा?

हम बलिदानक बकरा जकाँ बाध्य भऽ खोआ मुँहमे देबय लगलहुँ। प्रत्येक कौरमे बूझि पड़य जे आब वान्ति भऽ जाएत, आब वान्ति भऽ जाएत।

तावत गृहपति एक थारी मधुर आनि हमरा आगाँमे उझीलि देलन्हि। बजलाह-आब मधुरेण समापयेत्।

हम देखलहुँ जे आब 'समापयेत्'क अर्थ अपनाकें 'समापयेत्'। एक्केटा रसगुल्ला बमगोलाक काज करत। ई त आठ टा अछि। आइ हमर अर्थीए एहि नवका मकानसॅं उठत।

हम भगवानकें गोहराबय लगलहुँ। ता एकटा युक्ति फुरि गेल। हम बजलहुँ- यदि घरमे कोनो पाचक हौ त ....!

एतबा सुनितहि तीनू गोटा दौड़ि कऽ भंडार दिस गेलाह। तावत हम सभटा रसगुल्ला चुपचाप खिड़कीक बाहर फेकि देल।

गृहपति लवणभास्कर लऽ कऽ ऎलाह त मधुरकें निःशेष देखि सन्तोषक श्वास छोड़लन्हि। बजलाह-लियऽ, आब एही जोरपर थोड़ेक आम कटहर सेहो भऽ जाय। हौ, कहाँ गेलाह?

परन्तु जावत और यमदूत सभ आबय-आबय ता हम हाथ-पैर झाड़ि उठि गेल छलहुँ। अस्तु। गृहपति हमरा सुतबाक प्रबन्ध कय स्वयं भोजन करय गेलाह।

हमर जी अकसक रहय। बड़ी काल धरि कच्छमच्छ करैत रहलहुँ। वाह्यभूमि दिस जैबाक वेग बूझि पड़य, परन्तु सर्पक भयसॅं बहरैबाक साहस नहि पड़ल। अन्नकें पचाबक हेतु कोठरीमे एम्हरसॅं ओम्हर टहलय लगलहुँ। दू-चारि बेर लवणभास्कर खा कऽ पानि पियलहुँ। ई सभ करैत-करैत अढाइ बाजि गेल। तखन जा कऽ आँखि लागल। जखन एक निन्द सूति कऽ उठलहुँ त देखैत छी जे साढे चारि बाजि रहल अछि।

केवल आध घंटा ट्रेनमे देरी अछि, और स्टेशन दूर। आब जल्दी विदा हैबाक चाही।

परन्तु मकान मे ककरो आहटि नकि बुझि पड़ल ! हम गर्द कैल - चौधरीजी, बाबाजी , मलंगबा ! परन्तु कोनो उत्तर नहि भेटल । हम चारु कात खोजि कऽ देखल । ककरो पता नहि ।

अगत्या रिक्साक खोज मे विदा भेलहुँ । परन्तु ओहिठाम एकोटा रिक्सा, टमटम वा कुली नहि भेटल । खाली रहितहुँ त पैदलो झटकि कऽ चलि जैतहुँ । परन्तु एतबा सामान लऽ कऽ एतेक दूर कोना जाइ ?

हम एही पेशोपेश मे छलहुँ कि बाबाजी देखाइ पड़लाह । हाथ मे चायक पुड़िया नेने । हम पुछलिऎन्ह की औ बाबाजी ?

ओ बजलाह - मालिक कहलन्हि जे विना चाह पिऔने नहि जय देबैन्ह । तैं आँच जोड़य जा रहल छी ।

हम कहलिऎन्ह - हमरा ट्रेन पकड़बाक अछि । जल्दी सॅं रिक्सा आनि दियऽ ।

ओ बजलाह - एहि ठाम लग मे सवारी नहि भेटत ।

हम कहलिऎन्ह - मलंगबा कतय अछि ? ओकरे कहियौक पहुचा देत ।

ओ बजलाह - ओ दूध लाबऽ गेल अछि । अहींक चाय खातिर ।

हम पुछलिऎन्ह एहि ठाम कुली भेटत ?

ओ बजलाह - एखन एकोटा नहि भेटत । छौ बजे जन मजदूर अबै अछि । तखन जतेक चाही ।

हम पुछलिऎन्ह - मालिक कहाँ छथि ?

ओ बजलाह - अहींक खातिर इञ्जिनियर साहेव सॅं मोटर मॅंगनी करय गेल छथि ।

आब एहना स्थिति मे हम की करु ? चुपचाप ठाढ़ भऽ कऽ घड़ीक प्रगति देखय लगलहुँ । मिनटबला सुइ क्रमशः ८ पर आबि गेल । आब केवल बीस मिनट समय अछि । ई गाड़ी छुटि जायत त फेर १२ बजे धरि कोनो ट्रेन नहि । तखन त सभाक समय धरि पुर्नियाँ पहुँचियो नहि सकब ।

यैह सोचैत छलहुँ कि मलंगबा दूध लऽ कऽ अबैत दृष्टिगोचर भेल । हम कहलिऎक हौ, स्टेशन पहुँचा दैह ।

ओ बाजल - मालिक हबागाड़ी लऽ कऽ अबैत हैताह । वैह स्टेशन पहुँचा देताह ।

पौने पाँच बजे चौधरीजी मोटर नेने पहुँचलाह । हमरा कतहु सॅं जी मे जी आएल । हम मलंगबा कें कहलिऎक - सामान लाद ।

चौधरीजी बजलाह - अपने स्थिर रहू । एखन १५ मिनट देरी छैक । ५ मिनट मे पहुँचि जाएब । ताबत चाह पीबि लियऽ । गाड़ी पकरैबाक भार हमरा ऊपर ।

हम इच्छा नहियो रहैत हुनका डरें जल्दी-जल्दी चाय घोंटय लगलहुँ । परन्तु ओ सुभ्यस्त भऽ फूंकि-फूंकि चुसकी लेबय लगलाह । तखन निश्चिन्ततापूर्वक मलंगबा कें समान लादक आदेश देलथिन्ह । ओहो कोबरक बर जकाँ नहूँ-नहूँ डेग दैत चलल ।

एहन दीर्घसूत्रता देखि मनेमन त बहुत क्रोध भेल । किन्तु बाजू की ?

चौधरीजी कैं कहलिऎन्ह - हम बड़ी काल सॅं तैयार छी ।

ओ बजलाह एहि ठाम सॅं दू डेग स्टेशन । हम सभ त दिन मे चारि बेर भऽ अबै छी । परन्तु अपने राति एतबे दूर मे थाकि गेलहुँ । तैं हम अन्हरौखे उठि कऽ गाड़ीक बन्दोवस्त मे लागि गेलहुँ ।

हम कहलिऎन्ह - कोन काज छलैक ? हम रिक्सा सॅं चलि जइतहुँ ।

ओ बजलाह - भला कहू त ! तखन दोस्तक गाड़ी रहने कोन फल ? आब एहि सॅं विशेष पाहुन के भेटताह ?

जखन मोटर स्टार्ट भेल त ५ बजबा मे केवल ५ मिनट बाकी रहैक । हमर उद्विग्नता देखि चौधरीजी बजलाह - अपने कोनो चिन्ता नहि करू । यदि कटिहार स्टेशन मे गाड़ी छूटि जाएत त हम सात वर्ष सॅं एहिठाम ठीकेदारी किऎक करैत छी ?

हम घड़ी दिस ताकब छोड़ि देल । जा कटिहार स्टेशनपर मोटर पहुँचय-पहुँचय त ट्रेन फक-फक धूआँ छोड़ैत प्लेटफार्म कऽ चुकल छल !

चौधरीजी बजलाह - जाह ! केवल दू मिनट लऽ गाड़ी महारानी छूटि गेलीह । स्टेशन पर धरितिऎन्ह त देखितिऎन्ह जे कोना छुटै छथि ।

आब एहि पर हम की टीका-टिप्पणी करु ? कुली कें कहलिऎक - वेटिंग रूम ले चलो ।

चौधरीजी बजलाह - आब त १२ बजे सॅं पहिने अपने कें कोनो ट्रेन नहिए भेटत । एतबा काल स्टेशन पर बैसि कऽ की करब ? चलल जाओ ,ओहि ठाम स्नान, भोजन विश्राम कय बरहबज्जी ट्रेन सॅं विदा भऽ जाएब ।

पुनः कुली कैं डॅंटैत कहलथिन्ह - रौ, समान फेर मोटर मे धर ।

आब हमरा नहि रहि भेल। चौधरीजीक चरणपर खसैत कहलिऎन्ह- आब हमरापर दया कैल जाओ। हमर जान बकसि देल जाओ। अपने हमरा हेतु बड्ड कष्ट उठाओल। हम कृतज्ञताक भारसॅं दबि गेल छी। आब और भार पड़त त पिचा कऽ मरि जाएब।

एतबा कहैत-कहैत हमरा आँखिमे नोर भरि आएल। चौधरीजी एक क्षण क्षुब्ध रहलाह। पुनः विरक्तिपूर्ण दृष्टिसॅं हमरा तकैत बजलाह-बेस, त जाउ। हम सम्बन्धी जानि अहाँपर जे अपन अधिकार बूझल से अनर्गल कैल।

ई कहि ओ विना नमस्कारे कैने मोटर पर बैसलाह और फुर्र दऽ विदा भऽ गेलाह।

हम किछु काल किंकर्त्तव्यविमूढ भऽ वेटिंगरूममे बैसल रहलहुँ। तदुपरान्त ई कथा लिखय लगलहुँ।

एखन दस बजे वेटिंगरूममे ई कथा समाप्त कय हम सोचि रहल छी जे चौधरीजीकें हमरा लऽ गेने कोन लाभ भेलैन्ह? और हमरे कोन लाभ भेल? उभय पक्षकें नितान्त कष्ट ओ असुविधा। अन्तमे सम्बन्ध सेहो टूटि गेल। एहिसॅं कत्तहु नीक होइत जे रातिमे एत्तहि वेटिंगरूममे खा-पी कऽ आरामसॅं सुतितहुँ। भोरे ट्रेनमे सवार भऽ एखन धरि पुर्नियाँ पहुँचि गेल रहितहुँ। हमरो सुविधा होइत, हुनको तरद्द द नहि करय पड़ितैन्ह। सामंजस्य सेहो कायम रहैत। ककरो कष्ट नहि होइतैक। सर्वोदयवला सिद्धान्त चरितार्थ होइत। परन्तु 'आचार' मे 'अति' लागि गेने 'अत्याचार' बनि गेल! ताही द्वारे हमरो कानय पड़ल और हुनको कानहि पड़ल हैतैन्ह।