लेखक : हरिमोहन झा

भोलबाबा नोसि बनबैत रहथि । हमरा देखि पुछलन्हि - की हौ, कतय चललह अछि ?

हम कहलिऎन्ह - अपनेक ओहिठाम किछु अलंकारक ज्ञान प्राप्त करय आएल छी ।

भोलबाबा एक क्षण गुम्म भऽ गेलाह । पुनः गम्भीरतापूर्वक बजलाह - तखन आङन चलह ।

हमरा थकमकाइत देखि कहलथिन्ह - एहि ठाम दलान पर जतबा मास दिन मे सिखबह, ततबा आङन मे एक्के घंटा मे सीखि जैबह । परन्तु देखिहऽ, खखसिहऽ नहि।

ओ चुपचाप हमरा दुरुखा मे लऽ गेलाह । ओतय सिरकीक भीतर कोठीक अढ़ मे हमरा बैसा लेलन्हि ।

ओम्हर स्त्रीगण मे उतरा-चौरी भऽ रहल छलैन्ह । बाबा नहूँ-नहूँ बजलाह - तों कागत-पेंसिल बाहर करह और जल्दी नोट कैने जाह । अलंकारक वर्षा भऽ रहल अछि ।

एक जनी दोसरा कैं कहलथिन्ह - ऎ ! ओल सन कब कब बोल किऎक बजै छी ?

बाबा कहलन्हि - देखह, एहिठाम 'ओल' ओ 'बोल' मे अनुप्रास छैक । 'ओल' उपमान, 'बोल' उपमेय, 'सन' वाचक 'कबकब' धर्म । ई पूर्णोपमा अलंकार भेलैक ।

ताबत दोसर जनी बजलीह - अहूँक बात त विषे सन होइ अछि ।

बाबा बजलाह - एहिठाम 'विष' उपमान, 'बात' उपमेय, 'सन' वाचक । धर्म लुप्त छैक । तैं ई लुप्तोपमा अलंकार भेल ।

तेसर जनी बजलीह - जेहने ओ छथि तेहने अहाँ छी और जेहने अहाँ छी तेहने ओ छथि ।

बाबा बजलाह - देखह, उपमेयक उपमा उपमान सॅं और उपमानक उपमा उपमेय सॅं देल गेल छैक । ई उपमेयोपमालंकार थीक ।

ताबत चारिम टिपलन्हि - अहूँ सन अहीं छी ।

बाबा बजलाह - ई अनन्वयालंकारक उदाहरण भेल ।

पुनः केओ बजलीह - बाप रे बाप ! राति दिन गदहकिच्चन ! ई घर मछहट्टो सॅं बढ़ि गेल ।

बाबा बजलाह - एहिठाम उपमेय 'घर' मे उपमान 'मछहट्टा' सॅं अधिक उत्कर्ष देखाओल गेल छैक । ई व्यतिरेक अलंकार भेलैक ।

दोसर जनी बजलीह - ऎ ! अहाँ लोकनिक मूँह मे लगाम नहि अछि ? जीभ अछि कि चरखी ?

बाबा बजलाह - देखह, एहिठाम 'लगाम' क वाच्यार्थ नहि लय लक्ष्यार्थ ग्रहण करक चाही - 'लगाम सन निरोधक वस्तु' । जीभ मे चरखीक संशय भेने संदेहालंकार भेलैक ।

पुनः एक गोटा बजलीह - एहि घर मे कम्मे के ? लंका मे बड्ड छोट से उनचास हाथ !

बाबा बजलाह - एहि ठाम काकु द्वारा व्यंजित कैल गेल अछि जे केओ कम झगराउ नहि । तात्पर्य जे अहूँ भारी झगराउ छी । लोकोक्तिक प्रयोग सॅं एहि भाव कैं और अधिक संपुष्ट कैल गेल छैक ।

दोसरि बजलीह - बाजू, बाजू । नहि बाजब त पेटक अन्न कोना पचत ?

बाबा बजलाह - 'बाजू, बाजू' एहि द्विरुक्ति मे वीप्सालंकार छैक । अन्न पचबाक विलक्षण कारण 'बाजब' कल्पित कैल गेल अछि । ई विभावना अलंकार भेलैक ।

तेसरि बजलीह - बात बुझबो ने कैलन्हि, ताबत लेसि देलकैन्ह ।

बाबा बजलाह - एहि ठाम कारण सॅं पहिने कार्यहिक उत्पत्ति कहल गेलैक अछि । अतएव अक्रमातिशयोक्ति अलंकार भेलैक ।

ओ पुनः बजलीह - इह मुँह कोना बनौने छथि जेना केओ आमिल घोरि कऽ पिया देने होइन्ह !

बाबा बजलाह - ई उत्प्रेक्षालंकार भेल । एहिठाम हेतुत्प्रेक्षा छैक । आधार सिद्ध छैक तैं सिद्धास्पद ।

ता दोसर जनी बजलीह - ई घर नहि, नरक थीक । हमर बाप आन्हर छलाह जे एहन ठाम कऽ देलन्हि । जे एहि घर मे एलीह से गेलीह ।

बाबा बजलाह - अलंकारक बाढ़ि आबि गेल । एहिठाम 'घर' उपमेयक निषेध कय 'नरक' उपमानक विधान कैल गेल छैक । ई शुद्धापन्हुति अलंकार भेलैक । दोसर वाक्य मे 'बाप' उपमॆय मे 'आन्हर' उपमानक निषेध-रहित आरोप कैल गेल छैक । तैं रूपक अलंकार भेलैक । तेसर वाक्य मे 'एलीह' ओ 'गेलीह' मे परस्पर विरोधक प्रतीति भेने विरोधाभास-अलंकार छैक ।

पुनः तेसर कंठ सॅं बाहर भेल - हॅं । हिनकर बाप त धन्ना सेठ छथिन्ह ! नैहर सॅं एकटा कार कौआ त ऎबे नहि करै छैन्ह । जौं अबितैन्ह तखन त पृथ्वीपर पैरो नहि धरितथि ।

बाबा बजलाह - देखह, स्वरभंगिमा सॅं ई तात्पर्य बहरैलैक जे हिनक बाप सेठ नहि छथिन्ह , अर्थात दरिद्र छथिन्ह । एहिठाम काकू द्वारा विपरीतार्थक व्यंजना छैक। कौआक अर्थ 'कौआ सन तुच्छ दूत'। एहिठाम वाचक, धर्म ओ उपमेय- तीनू लुप्त छैक। तैं वाचकधर्मोपमेयलुप्ता उपमा अलंकार भेलैक। पृथ्वीपर पैर नहि धरबऽ ई अतिशयोक्ति अलंकार भेल।

चारिम कंठसॅं बहराएल-अहाँक नैहर त धनिक अछि। तैं ने अछिंजलेक व्यवहार होइछ!

बाबा बजलाह-देखह, एहिठाम ध्वनि छैक जे अहाँक नैहर दरिद्र अछि। नैहरक अभिप्राय माय-बाप-भाय-भातिज आदि। ई शुद्धाप्रयोजनवती उपादान-लक्षणा भेलैक। अछिजलमे व्याज निंदा छैक। तात्पर्य जे भृत्यक अभावमे अपने हाथें पानि भरै जाइ छथि। ई गूढ प्रयोजनवती लक्षणा भेलैक।

तावत केओ बाजि उठलीह-चालनि दुसलन्हि सूपकें जिनका सहस्र टा छेद! अहूँक हाथमे त एखन धरि घट्ठे पड़ल अछि।

बाबा बजलाह एहिठाम लोकोक्तिक प्रयोग द्वारा अप्रस्तुत 'चालनि'क व्याजसॅं प्रस्तुत देयादिनी पर आक्षेप कैल गेल छैन्ह। तैं अन्योक्ति अलंकार बूझह। दोसर वाक्यक भाव थिकैक जे नैहरमे कुटाओन-पिसाओन करैत-करैत अहाँक हाथ मेचिन्ह पड़ल अछि। एहूठाम गूढ प्रयोजनवती लक्षणा थिकैक।

पुनः कोनो कंठसॅं बहराएल-हमर बाप फरठिया नहि।

बाबा बजलाह-एहिठाम काकु-वैशिष्ट्यसॅं आर्थी व्यंजना बहराइछ जे 'अहाँक बाप फरठिया थिकाह।'

एतबहिमे सिसकीक स्वर सुनाइ पड़ल। केओ गर कॅंपबैत बजलीह-जे हमरा माथमे सिन्दूर देलन्हि तिनका आँखिपर पट्टी बान्हल छलैन्ह जे फरठियाक बेटीकेँ उठा अनलन्हि।

बाबाबजलाह- सोझे 'स्वामी' नहि कहि 'जे हमरा माथमे सिन्दूर दैलन्हि' एना घुमा-फिरा कऽ द्राविड़ी प्राणायाम कैल गेल अछि। ई पर्यायोक्ति अलंकार भेलैक।

एतबहिमे केओ नहूँ-नहूँ किछु बिन्हलथिन्ह से सुनाइ नहि पड़ल। ताहिपर दोसर जनी उत्तेजित भऽ फुफकार छोड़लन्हि-जे हमरा एना गंजन करबै छथि आब तिनके जा कऽ हम दशा करै छिऎन्ह।

ई कहैत ओ मूसर लऽ कऽ दुरुखा दिस बढालीह।

बाबा बजलाह-आब पड़ाह। नहि त सभटा अलंकार बहार भऽ जैतोह। अजुका पाठ एतबे धरि रहय दैह।