लेखक : हरिमोहन झा

(१)

आइसॅं पचास वर्षक बाद। सौराष्ट्रमे सामुदायिक विवाह यज्ञ भऽ रहल अछि। समावर्त्तन भोज्यक अनन्तर पंचमन्दिरक प्रांगणमे सभा बैसल अछि। असंख्य नरनारी समवेत छथि। एक वृद्ध सौराष्ट्रक इतिहास सुना रहल छथि- ''''एहि तरहें ५० वर्ष पहिने एहि सभा गाछीमे बरहट्टा लगैत छल। हजारोक डाक बाजल जाइत छल।' कन्यादान'क अर्थ भऽ गेल छल 'बलिदान', जाहिमे बकरा बनै छलाह कन्याक पिता। ....परन्तु एक दिन शोणितक घट भरि गेलैक और अभिनव सीता प्रकट भेलीह। मिथिलाक नारी-समाजमे नव चेतना आबि गेलैन्ह। ओ गंगाक लहरि जकाँ बढलीह और ओहि लहरिमे समस्त घटक पॅंजियार ओ तिलकग्राही वर अपना बापक समेत भसिया कऽ विलीन भऽ गेलाह। और ओहि कलंककें धो पोछि कऽ सौराष्ट्रक ई पुण्यभूमि यज्ञस्थली बनि गेल छथि, जहाँ प्रतिवर्ष विवाह यज्ञक समारोह होइत अछि। एहि तीर्थस्थानमे जे ई पाँच टा स्वर्णमंदिर चमकि रहल अछि ताहिमे प्रत्येकक अपन इतिहास छैक।"..

ई सभ परिवर्तन कोना भेलैक? देखू, अतीतक चलचित्र देखाओल जा रहल अछि।

(२)

प्रथम रील चलल। १९६१। सौराठ सभा जमकल अछि। बड़क गाछतर वरक मेला लागल अछि। हजारो शतरंजी ओछाओल अछि, जाहिपर हजारो बाप अपना-अपना बालककें ओढा पहिरा कय बैसौने छथि। लाल पीयर धोती, रेशमी चादर ओ कुर्त्ता, सूट ओ टाइ, सभ प्रकारक वेषभूषासॅं सुसज्जित 'माल' विकयार्थ प्रस्तुत अछि। सभठाम एक्के गप्प चलि रहल अछि। 'कै हजार?' कुसियारक पुर्जी जकाँ सिद्धान्तक पुर्जी कटा रहल अछि। कन्यागत लोकनि तहिना गहकी नजरिसॅं तजवीज करैत चलै छथि जेना सीतामढीक हाटमे आएल होथि। घटक लोकनि घट जकाँ मुहँ बौने छथि।

एहि बीचमे एक बड़का पिहकारी उठल। की बात छैक? एकटा नीक घरक स्त्री अपना पतिक संग एहि सभामे पदार्पण कैलन्हि अछि। चारूकातसॅं टीका-टिप्पणीक बौछार भय रहल छल- 'बाप रौ बाप! एहन अजगुत बात? जे कहियो ने भेल छल। आइ धरि सोराठ सभामे स्त्रीक पैर नहि पड़ल छल। ई के थिकीह ? की करय आइलि छथि? एहिठाम कि कोनो तमाशा छैक?.... की बजै छथि?-बन्धुगण! हम अपने सभसॅं आँचर पसारि एक भिक्षा माँगि रहल छी।'

....अरे! ई त तिलक दहेजपर लेक्चर झाड़य आएल छथि। इह! हिनकर मुँह देखि कऽ लोक रुपैया छोड़ि देत। दे कसि कऽ पिहकारी! हा हा हा हा.... ही ही ही...हू हू हू...

महिलाक आँखिमे नोर भरि ऎलैन्ह। एक बुन्द टप्प दऽ पृथ्वीपर खसलैन्ह। रील खतम।

वृद्ध बजलाह-गर्म नोरक ओ प्रथम विन्दु क्रान्तिक प्रथम चिनगी छल! जाहि ठाम ओ खसल ताहि ठाम एकटा मन्दिर बनि गेल। ई जे 'अश्रुमोचिनी' भगवतीक मन्दिर देखैत छिऎन्ह से तकरे स्मारक थीक।

(३)

दोसर रील चलल। १९६२। एहि बेर सौराठ सभामे एक झुण्ड प्रगतिशील नारी आन्दोलन करक हेतु तैयार भऽ कऽ आइलि छथि । ओ लोकनि नारा लगा रहल छथि -'बिक्री बला वर, जाथु अपन घर। जे मॅंगता हजार, से रहता कुमार।... जे गनताह, से कनताह। घटक पॅंजियार, होउ होशियार। आब नहि चलत ई रोजगार।'

ओम्हर पण्डित समाजमे घोंघाउज शुरू होइछ- 'एहि ठाम स्त्रीगणक कोन काज? ई लोकनि अपन-अपन चकमक्की देखाबक आएल छथि। भला, स्त्रीगणकें पुरुषक बातमे दखल देबाक कोन प्रयोजन? जाथु, अपना घरक काज देखथुगऽ। चिनवार नीपथु। चूल्हि फूकथु। गोसाउनिक पूजा करथु। नेनाकें पियाबथुगऽ'। चनचन ठौंठ छैन त मलार गाबथुगऽ। एना चिकरै किएक छथि?'

बरहट्टामे खड़भड़ मचि गेल-'हम सभ दस हजार लेब वा बीस हजार लेब। ताहिसॅं हिनका कोन मतलब? गहकीकें घेघ, सौदागरकें बेत्था! इहो लोकनि त बेटा जनमैबे करतीह। तखन हॅंसोथि कऽ लिहथि। एखनेसॅं अपना सन्तानक भाँजी किएक मारै छथि? ई सभ गृहलक्ष्मी नहि, दरिद्रा छथि! ने अपने लेतीह, ने अनका लेबय देथिन्ह। हड़ाशंखिनी नहितन!.... हे, देखहौक। एम्हरे बढलि चलि अबै छौह। ई सभ सत्याग्रह करति की? देखहौक, धरना देमय लगलैक। एक, दू, तीन, चारि.... ई त हाँजक हाँज गोहि जकाँ पड़ि रहलैक। जेना बाबाधाम मे पेट्कुनियाँ देमय आइलि हो ।'

आब बोच बाबू रुपयाक मोटरी नेने कोम्हर दऽ कऽ निकसताह ? चारुकात बाट छेकने छैन्ह , बोच बाबू भारी अवग्रह मे पड़ल छथि । ने लैत बनै छैन्ह, ने छौड़ैत । हे लियऽ । आश्चर्य ! बोच बाबू टाका फेरि रहल छथिन्ह । सत्याग्रह दलक नायिका हुनका माथ मे रोड़ीक तिलक लगा रहल छथिन्ह ` ` ` । परन्तु ई की ? फट्ट ! दलनायिकाक माथ पर केओ रोड़ा फेकलकन्हि । घोरल सिन्दुर जकाँ रक्तक धार चूबय लगलैन्ह । यह, टप्प दऽ एक बुन्द भूमि पर खसल । रील खतम ।

वृद्ध बजलाह - ई क्रान्तिक दोसर चिनगी छल । जाहि ठाम ओ रक्तबिन्दु खसल , ताहि ठाम एकटा दोसर मंदिर बनि गेल । ई जे 'छिन्नमस्ता' भगवतीक मंदिर देखै छी से तकरे स्मारक थीक ।

सभागाछी मे खलबली मचि गेल । कुमारि सभ लाज धाख कैं घोरि कऽ पीबि गेल विवाहक हेतु खङष्टल अछि । ताहि दिनक अमल रहितैक त गोटेक राजा एक चुटकी सिन्दुर छिटि कऽ सभ कै, रनिवास मे बन्द कऽ लितैन्ह । परन्तु आब त केओ तेहन पुरुषे नहि । हे हरिसिंह देव ! हे महादेव झा ! अहाँ लोकनि कतय छी ?

'हौ यार । तों जे कहह, मुदा ई नवयौवनाक फौज लगै छैक धरि भरि शनगर । की कहै छह ? नवतुरिया सभ कंचन सॅं बेसी कामिनी कैं बुझैत छथि । द्रव्य सॅं गुण कें अधिक महत्व दैत छथि । कन्याक तेजी सॅं वरक भाव मे मंदी आबि गेलैन्ह । ओ बिना दामे कन्याक गुलाम बनि रहल छथि । हे देखह , एकटा वर छान-पगहा तोड़ि ओहि स्वयंवराक दल मे जा मिलल । यैह लैह ! दोसर, तेसर, चारिम` ` ` कहाँ धरि गनबह ? आब बाप गजिया सिया कऽ रखने रहथुन्ह । देखह, ओहि वरक गर मे एक कन्या माला दय रहल छथिन्ह । नवयौवना सभ आरती कय रहल छथिन्ह । तरुणी सभ शंख फूकि रहल अछि ।' रील खतम ।

वृद्ध बजलाह - जहाँ ओ शंख फूकल गेल तहाँ तेसर मंदिर बनि गेल । ओतय जे 'तिलकासुरमर्दिनी' कऽ मंदिर देखैत छी से तकरे स्मारक थीक ।

(५)

चारिम रील। १९६४। एहि बेरक क्रान्ति लुत्ती नहि, दावानल थीक। सहस्त्रोनारी एहिबेर सौराठ सभापर आक्रमण कऽ देने छथि। गाम-गामसॅं, घर-घरसॅं, स्त्रीगण जमा भेल छथि। जे लोकनि पहिने भेड़ी छलीह सेहो सभ भेरीनाद कय रहल छथि। रणचण्डी दलक सदस्या अद्भुत साहस देखा रहल छथि।

एकटा दृश्य देखू। वरक बाप कन्यागतसॅं गना रहल छथिन्ह। चानी पुरबैत-पुरबैत कन्यागतक चानी उड़ल जा रहल छैन्ह। ताही बीचमे एकाएक चंडीदलसॅं बिजली जकाँ कन्या आविर्भूत भय कहै छथिन्ह- 'हमरा हेतु गनी, त हमर सारा खनी'। तावत कन्या ओ वरक माय सेहो ओहिठाम आबि जाइ छथिन्ह। वरक माय थैली छीनि कन्याक मायक हाथमे दैत छथिन्ह और वरक हाथ कन्याक हाथमे। दुनू समधिन गर मिलैत छथि और दुहू समधी अवाक भऽ देखैत छथि। नेपथ्यसॅं जयघोष होइत अछि-'नेहरावालीक जय! दुलारपुरवालीक जय!'

देखैत-देखैत सभाक बागडोर स्त्रीगणक हाथमे आबि गेल! ओ लोकनि समस्त बटुआ, थैली ओ गजिया जमा कय होलिकादहन कैलन्हि। देखू, ओही धधरामे पाँजक पाँज पोथा धू-धू कय जरि रहल अछि। ओही अग्निकें साक्षी कय सहस्त्रो वर-कन्याक विवाह भऽ रहल छैन्ह। रील खतम।

वृद्ध बजलाह-जाहि स्थानमे ई होलिकादहन भेल, तहाँ चारिम मंदिर बनि गेल। ई जे 'ज्वालामुखी' देवीक मंदिर देखि रहल छी से तकरे स्मारक थीक।

(६)

पाँचम रील। १९६५। एहि बेर सभाक दोसर दृश्य अछि। असंख्यो नर-नारी समवेत छथि। विचार होइ अछि जे सौराठक कायाकल्प कय सौराष्ट्र बना दी। तिलक-दहेजक प्रथा त आब उठिए गेल। परन्तु तथापि समाजमे अनेक व्यक्ति छथि जे बेटा -बेटीक विवाह पाछाँ उजड़ि जाइ छथि। भार-दोर ओ विधि-व्यवहारक हेतु खेत बेचय पड़ैत छैन्ह हिनका लोकनिक रक्षार्थ एहिठाम सामुदायिक विवाह-यज्ञक व्यवस्था कैल जाय। सार्वजनिक चन्दासॅं टका संग्रह कय ई पुण्य कार्य हो।

देखैत-देखैत ई प्रस्ताव कार्यरूपमे परिणत होइत अछि। आब सामुदायिक विवाहक दृश्य देखू। सहस्त्रो गामक वर-कन्या एहिठाम अपना माता-पिताक संग उपस्थित छथि। हिनका लोकनिक विवाह भऽ रहल छैन्ह। वैदिक विधिसॅं हवन पुरस्सर। परन्तु कोनो आडम्बर नहि। ब्राह्मी रीतिसॅं। विद्वान आचार्य पुरोहित बैसल छथि। ओ वेदीपर वर-कन्यासॅं प्रतिज्ञा करबैत छथिन्ह-हम सभ मिथिलाक आदर्श पालन करब। मिथिला भारत माताक हृदय स्वरूप थिकीह। हम हुनकामे नवीन शक्ति संचार कय देशकें अनुप्राणित करब। जय माँ मिथिले।

एवं प्रकारे सहस्रो विवाह संपन्न भय रहल अछि। गीतवाद्य, भोजभात, सभक प्रबन्ध सामूहिक रूपसॅं अछि। यज्ञक समावर्तन समदाउनिसॅं होइत अछि। कन्या लोकनि माता-पिताक आशीर्वाद लय अपन-अपन नवीन घर बसाबक हेतु जा रहल छथि। गीत भय रहल अछि-

        "बर रे जतन सौं सियाजीकें पोसलहुँ।
        विद्या   विविध   पढाय ।
        गृहक    कार्यमे    निपुण   बनौलहुँ
        बहु-विधि कला सिखाय।
        सुन्दर    शील    स्वभाव   बनौलहुँ
        उच्चादर्श         देखाय ।
        तेहन   धियाकें   पठा   रहल   छी
        सासुर   योग्य   बनाय ।
        जाउ धिया  निज सासु-ससुर  संग
        पति  सों  प्रेम  लगाय ।
        रहब कुशल सौं,  सदा  प्रफुल्लित
        घरकें    स्वर्ग   बनाय ।"
      

(रील खतम।)

वृद्ध बजलाह-जाहि ठाम एहि सामुदायिक विवाहक लाबा छिड़िआएल तहाँ पाँचम मन्दिर बनि गेल । ई जे 'वरदा' देवीक मंदिर देखैत छी से तकरे स्मारक थीक।

सभ रील समाप्त भ' गेल । वृद्ध बजैत गेलाह-....एहि तरहेँ अपने देखि लेल जे ई सौराठ कोना 'सौराष्ट' बनि गेल । गत पचार वर्षसँ एहि धर्मगाछी मे लाखो धर्म-विवाह भेल अछि । मिथिलाक एहि विवाह-यज्ञक अनुकरण आनो आन प्रांतमे भऽ रहल अछि। ....पचास वर्ष पहिने जे सौराठक गाछी कलंकस्वरूप लगैत छल से आइ देशक पवित्र तीर्थ बनि गेल अछि। जाहि वेदीपर लाखो पिता बलिदान पड़ैत छलाह, ताहिपर आब लाखो कन्याक उद्धार भय रहल छैन्ह। पुरना बड़क गाछ मौला कऽ सुखा गेल, आब नव-नव बरोहर पनकी देलक अछि।

...ई सभ कोना भेलैक? मिथिलाक नारी-समाजमे नव चेतना आबि गेलैन्ह। ओ गंगाक लहरि जकाँ बढलीह और ओहि लहरिसॅं क्रान्तिक गीत उठल-

           भागु, भागु, दूर घटक पॅंजियार ।
          होउ   वरागत   आब   होशियार !
          आब नहि चलत तिलक रोजगार।
          नहि केओ टाका  गनत   हजार !
          समटू      अप्पन     हाट-बजार ।
          एहि बाटे अबै झथि सुरसरि धार।
        

और, ओ सुरसरिक धार सरिपहुँ तेहन वेगसॅं ऎलीह जे सौराठक सभटा सड़ाँठ धो-बहा कऽ साफ कऽ देलन्हि और जे ओहि लहरिमे पड़लाह से....