लेखक : हरिमोहन झा

ओहि दिन लालककाक दलानपर गप्प जमि गेल। हुनका ओहिठाम चतुर्थीक हकार पूरय लोक आएल रहय। चानन-काजर होइत रहैक। ताही बीचमे पहुँचि गेलाह भोलबाबा । पं० जी पान-सुपारी आगाँ बढ़बैत कहलथिन्ह - लेल जाओ । भोलबाबा कहलथिन्ह - अहाँ विद्वान छी, पहिने अहीं लियऽ । पं० जी कहलथिन्ह- भला ई कोना भऽ सकैत छैक ?

दीर्घनारायण टिप्पणी कैलथिन्ह - एही तिरहुताम सॅं रेल छुटि जाइत छैक ।

एतबा सुनैत भोलबाबा अपन गप्पक बटुआ फोललन्हि - तोरा लोकनि केवल सुनबे टा करै छह, परन्तु हमरा सरिपहुँ गाड़ी छुटल अछि । एक बेर तारसराय मे देखल जे हमर पिसिया ससुर गाड़ीपर चढ़ि रहल छथि । गाड़ी सीटी दऽ देने रहैक । हम चाहितहुँ त गाड़ीक भीतर सॅं हुनका हाथ पकड़ि चढ़ा लितिऎन्ह । परन्तु बिना पैर छुइने हाथ धरितिऎन्ह कोना ? तैं प्रणाम करक हेतु हमरो नीचा उतरय पड़ल । आब ओ बिना आशीर्वाद देने कोना चढ़ितथि और विना गोरलग्गीक टका कैं आशीर्वाद दितथि कोना ? ओ यावत अपना फाँड़ सॅं बटुआ बाहर कय फोलय लगलाह, ताबत गाड़ी ससरय लागल । हम कहलिऎन्ह - 'अपने चढ़ि लेल जाओ ।' ओ बजलाह - ई कोना भऽ सकैत अछि ? ओझा पहिने अपने चढ़ल जाओ ।' ताबत गाड़ी निकसि गेल ।

मधुकान्त बजलाह - बाप रे बाप ! एहन तिरहुताम !

भोलबाबा डँटैत कहलथिन्ह - तोरा लोकनि तिरहुताम देखलह कहिया ? एही तिरहुतामक द्वारे पिलखवारक सामवेदी जी कें कहियो सन्तान नहि भेलैन्ह ।

श्रोतागण उत्सुक भय पुछलथिन्ह - से कोना, बाबा ?

भोलबाबा कतरा करैत बजलाह - सामवेदी जीक स्त्री जाति मे पैघ छलथिन्ह । दुहू बेकती शयनागार मे जाथि त उचती होमय लगैन्ह - अहाँ पूज्य, त अहाँ पूज्य । ई कहथिन्ह - पहिने अहाँ खाटपर चढ़ू । ओ कहथिन्ह पहिने अहाँ खाट पर चढू । एवं प्रकार दुनू गोटा भरि राति ओहिना ठाढ़े रहि जाथि । एहना स्थिति मे संतान होइतन्हि कोना ?

रतिकान्त बजलाह - हद्द भऽ गेल बाबा !

भोलबाबा एक चुटकी कतरा मुँह मे दैत बजलाह-हौ, ताहि दिनक लोक व्यवहारी होइत रहय । ओहन मर्यादा कि आब देखबामे आबि सकैत अछि ? ओही मर्यादाक कारण झलबा झा-कहियो एक संग बैसि कय भोजन नहि कैलन्हि ।

श्रोतागण पुछलथिन्ह-से किएक ?

भोलबाबा बजलाह-हौ, दुनू गोटा पंजीबद्धे रहथि । के पैघ के छोट, से नहि फरियाइन्ह । तखन के सीरामे बैसत, के भट्ठामे ? एही हेतु दुनू गोटे कहियो एक पाँतीमे नहि बैसलाह। कतहु नेओत पूरय जाथि त एक ओसारापर झलबा झाक ठाम होइन्ह, दोसर ओसारापर मलबा झाक।

काशीनाथ बजलाह-ताहि दिन एहनो एहन लोक रहथि!

भोलबाबा कहलथिन्ह-तों देखलह कहिया? एही व्यवहारमे कनेक त्रुटि रहि गेलाक कारण सोनमणि झा अपन बेटाक दोसर विवाह करौलन्हि।

श्रोतागणक उत्सुकता देखि भोलबाबा दोसर चुटकी नसि लैत कथा पसारलन्हि-सोनमनि झा बेटाक द्विरागमन कराबय गेल रहथि। रातिमे भोजन काल जखन दही परसाय लगलैन्ह त कहलथिन्ह-बस, बस, बस। आब पूर्ण भऽ गेलैक घरबैया कहलथिन्ह-थोड़ेक और लेल जाओ।

सोनमनि झा कहलथिन्ह-नहि, नहि, हम रातिमे दही कम खाइ छी।

घरबैया पुनः उचिती कैलथिन्ह-बेस, त दुइए छौ।

सोनमनि झा बजलाह-नहि, एको छौ नहि। हमरा वातरस धैने अछि। बेस, त एतबे रासे। केवल कथा मानि लेल जाओ' -ई कहैत घरबैया दही देबक हेतु निहुरलाह। सोनमनि झा हाँ-हाँ करैत दुहू हाथसॅं थारीकें छापि लेलन्हि। घरबैया बहुत चेष्टा कैलन्हि परन्तु सोनमनि झा कोनहुना दही नहिए देबय देलथिन्ह। अगत्या हारि-दारि कऽ घरबैया शॆष दही फिरा कऽ लऽ गेलाह। ई देखितहि सोनमनि झा कें लेसि देलकैन्ह। जखन अचाएल भऽ गेलैन्ह तखन बेटा कें बजा कऽ कहलन्हि-'चलह एहिठामसॅं। दोसर बिवाह करा देबौह। एहिठाम हिनका लोकनिमे आपकता नहि छैन्ह। पुराइ त लोक करितहि छैक, तखन आगाँ सॅं मटकूर उठा कऽ की लऽ गेलाह? पाछाँ कतेक लोक नेहोरा कैलकैन्ह, परन्तु सोनमनि झा टससॅं मस नहि भेलाह। बेटाक दोसर विवाह कराइए कऽ छोड़लन्हि।

श्रोतागण स्तम्भित रहि गेलाह। मुकुन्द बजलाह-धन्य छलाह सोनमनि झा! हुनका भोजनकाल पटकि कऽ जबर्दस्ती मुँहमे दही कोंचि दितैन्ह तखन आपकता बूझि पड़ितैन्ह! एहन रगड़ियल लोक! बाप रे बाप!!

भोलबाबा हुनका डॅंटैत कहलथिन्ह-तों एतबेमे बपाहटि तोड़ैत छह? एही मर्यादाक खातिर फेटकटाइ झाक डाँड़ टूटि गेलैन्ह।

श्रोतागण से कोना, से कोना?

भोलबाबा पुनः थोड़ेक कतरा मुँह मे दैत बजलाह-फेटकटाइ झा समधियारे गेल रहथि। चलबा काल लाल धोती बिदाइमे देलकैन्ह। फेटकटाइ झा खबास कें कहलथिन्ह -रौ, मोटरीमे बान्हि ले। परंतु फेटकटाइ झाक समधि रहथिन्ह बोचबाबु। ओ अड़ि गेलथिन्ह जे धोती पहिरिए लेल जाओ। फेटकटाइ झा बजलाह-बर्नी। भऽ गेलैक। हम लऽ लेल। बोच बाबू कहलथिन्ह-भला ई कोना भऽ सकैत अछि? एहिठामसॅं अपना ग्राम धरि लोक उज्जर धोती देखत से की कहत? ई कहैत बोचबाबू हिनका डाँड़मे धोती लपेटय लगलथिन्ह। फेटकटाइ झा अपनाकें छोड़ाबय लगलाह। आब दुहू समधिमे हाथाबाँहि होमय लगलैन्ह। परन्तु बोचबाबू जबर्दस्त रहथि। एक बेर लपकि कऽ जे पकड़लथिन्ह से फेटकटाइ झा तरमे आबि गेलाह। ऊपरसॅं बोचबाबूक तीन मनक शरीर। फेटकटाइ झाक डाँड़ टूटि गेलैन्ह। ओ खरखरियामे लदा कऽ गाम गेलाह। परंतु बाहरे बोचबाबू! अपना वंशक टेक नहिए छोड़लन्हि। समधिकें धोती पहिराइए कऽ बिदा कैलन्हि। ताहि दिन मर्यादाक एतबा विचार रहैक।

पं० जी अनुमोदन करैत कहलथिन्ह-ताहिमे कोन संदेह?

भोलबाबा प्रोत्साहन पाबि बजलाह-आब जे केओ बुद्धिनाथ पाठक जकाँ करत से निमहतैक? पाठक जी पुरी गेल रहथि। ओहिठाम जगन्नाथजीक अटकाक महाप्रसाद भेटलैन्ह। परंतु ओ अड़ि गेलाह जे जगन्नाथ भगवान छथि तैं की? बिनु सौजने भात नहि खा सकैत छिऎन्हि। जौ दू जौड़ धोती देताह त प्रसाद खैबैन्ह, नहि त अपना घर रहुथु। अंतमे हुनके जिद्द रहलैन्ह। जगन्नाथजीक दिससॅं दू जोड़ धोती विदाइ भेटलैन्ह, तखन प्रसाद मुँहमे देलन्हि। आबक लोकमे कि एतबा विचार भऽ सकैत छैक?

यारकका कहलथिन्ह-कथमपि नहि। कथमपि नहि।

भोलबाबा और अधिक उत्तेजित होइत बजलाह-हौ, आब जे केओ नैञा चौधरिक परि करत से निमहतैक?

श्रोतागण-से की बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह-नैञा चौधरि सिमरियाघाट जाइत रहथि। संगमे स्त्री, भाभहु सेहो सभ रहथिन्ह। जखन सभकें गाड़ीमे चढाओल भऽ गेलैन्ह त अपने ओहिठाम रहि गेलाह। एक गोटा पुछलकैन्ह त कहलथिन्ह-जाहि गाड़ीपर हमर भाभहु चढलि छथि ताहिपर हम कोना पैर दऽ सकैत छी? हम दोसरा टैनसॅं जाएब। आब एतबा विचार ककरामे छैक?

यारकका बजलाह-अहा! ताहि दिन की अपूर्व मर्यादा छलैक?

भोलबाबा बजलाह-मर्यादा त तेहन छलैक जे बुद्धिनाथ पाठक अपन स्त्रीकें महफापर बिदागरी नहि होमय देलन्हि जे चारि टा पुरुषक कान्हपर चढि कऽ कोना जैतीह? आब त लोक स्त्रीकेँ लौरीपर चढाक' बिदा करैत अछि !

काशीनाथ कहलथिन्ह-बाबा ताहि दिन मर्यादाक बड्ड विचार रहैक ।

भोलबाबा कहलथिन्ह-विचार त ततबा रहैक जे मुंशी सोखतार लाल दास सासुरक इनारमे खसि पड़लाह तथापि माथसँ मौर नहि उतारलन्हि। ताहि दिनक जमाय तेहन संकोची होथि जे तिलौड़ी नहि खाथि जे कुड़कुड़ कऽ उठत । पापर खैबाक होइन्ह त पहिने दालिमे फुला लेथि । जैखन सासु अबथिन्ह तैखन तौनी लऽ कऽ माथ झाँपि लेथि । कहियो स्त्रीगणक सोझाँ उधार छाती नहि राखथि । आबक पुरुषमे एतबा विचार हैतैन्ह ?

शोभाकांत कहलथिन्ह-पुरुषक कोन कथा, आब त स्त्रीगणोकें एतबा विचार उठल जा रहल छैन्ह।

पं० जी बजलाह-ताहि दिनक स्त्रीगणमे दोसरे विचार रहैन्ह।

भोलबाबा कहलथिन्ह-विचार त तेहन रहैन्ह जे हमर समधिन अपन नूआ कहियो धोबीकें नहि देलन्हि, जे चोली आन पुरुषक मुट्ठीमे पड़ि जाएत। आबक स्त्रीकें एतबा विचार हैतैक?

शोभाकांत बजलाह-आब त चोलीक कोन कथा जे ...

फोंचाइ पाठक बजलाह-ताहि दिनक स्त्रीमे विचार अधिक रहैन्ह।

भोलबाबा बजलाह-तेहन विचार रहैन्ह जे हमर पीसी कहियो खरामकें पैर नहि लगौलन्हि।

कमलाकान्त पुछलथिन्ह-से किएक बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह-हमर पीसाक नाम रहैन्ह रामगुलाम खाँ। तैं पीसी खरामकें कहियो पैर नहि लगाबथि जे हिनका अन्तमे पतिक नाम पड़ै अछि। एही द्वारे ओ 'रामझिंगुनी' कें 'श्यामझिंगुनी' कहथि।

यारकका बजलाह-अहा! ताहि दिन केहन धर्म-कर्ममे निष्ठा रहैक!

भोलबाबा नाकक पूरामे नोसि दैत बजलाह-हौ, धर्म-कर्ममे त तेहन निष्ठा रहैक जे हमर मातामह भगवानक स्थापना कैने रहथि। अपना घाम चुबैन्ह त भगवानकें पंखा होंकथि। जाड़ होइन्ह त भगवानकें रजाइ ओढाबथि। गाममे हैजा होइक त सभसॅं पहिने भगवानक बाँहिमे सुइ देयाबथि। आबक लोक त भगवानोसॅं चालाकी करै छैन्ह । दालदा लऽ कऽ आरती कऽ दैत छैन्ह। नवतुरिया सभ त सेहो नहि करतैन्ह। नवका धीयापूता शालग्राम लऽ कऽ मिश्री बुकै जाएत।

लंबोदर चौधरी बजलाह-आब त भक्तिक लोप भेल जाइ अछि। परन्तु ताहि दिन तेहन-तेहन भक्त होथि जे...

भोलबाबा कहलथिन्ह-भक्त त तेहन-तेहन होथि जे भगवानो हुनकासॅं हारि मानथि। ढोंढाइ पाठक तेहन विष्णुभक्त रहथि जे कहियो कंठी नहि बन्हलन्हि।

अजगैबीनाथ पुछलथिन्ह-से किएक ?

भोलबाबा बजलाह हुनक कथ्य रहैन्ह जे तुलसी विष्णुप्रिया थिकीह। तिनका हम अपना गरमे कोना लगैबैन्ह? माय-पितियाइनकें केओ कंठ लगबैत अछि?

पं० जी बजलाह-अहा! की उच्च विचार छलैन्ह?

भोलबाबा कहलथिन्ह-तेहने उच्च विचार हुनका स्त्रीओक रहैन्ह। ओ कहियो शिवलिंग पर जल नहि ढारलन्हि।

दीर्घनारायण पुछलथिन्ह-से किएक?

भोलबाबा कहलथिन्ह-हुनक कथ्य ई रहैन्ह जे महादेव केहनो बड़का रहथु छथि त परपुरुषे!

यारकका बजलाह-अहा! ताहि दिनक स्त्री केहन पतिव्रता होथि!

भोलबाबा बजलाह पतिव्रता त तेहन होथि जे नागदह वालीक साँयके साँप काटि लेलकैन्ह। स्वामी कहलथिन्ह जे अहाँ एहिठाम कसि कऽ बान्हि दियऽ और ऊपरसॅं मुक्का मारू। परंतु स्त्री अड़ि गेलथिन्ह जे एहन नहि भऽ सकै अछि जे अपना स्वामीकें हम बान्हि कऽ मारी। स्वामी अचेत भऽ खसि पलड़थिन्ह, परन्तु ई अपना टेकसॅं विचलित नहि भेलीह!

फोंचाइ ठाकुर बजलाह- वाह रे टेक!

भोलबाबा बजलाह- तनौतीवाली हुनकासॅं कम्म नहि छलीह। एक राति हुनका स्वामीकें चोर पटकि कऽ मारय लगलैन्ह। स्वामी कहलथिन्ह-'एकर एक हाथ अहाँ पकड़ु, दोसर हम पकड़ैत छी। परंतु ओ आँगा नहि बढलीह। उत्तर देलथिन्ह-स्त्री एक्के गोटाक हाथ पकड़ैत छैक। एहि शरीरसॅं हम परपुरुषक स्पर्श नहि कय सकै छी। स्वामीकें मारैत-मारैत भुरकुस कऽ देलकैन्ह, परन्तु ई टससॅं मस नहि भेलीह। ताहि दिन पातिव्रत्यक एहन मर्यादा रहैक।

काशीनाथ बजलाह-धन्य!धन्य! तहि दिनक लोक केहन मनस्वी होइत छल? ओ टेक, ओ स्वाभिमान, आब कतय भेटत?

भोलबाबा नाकक पूरामे नोसि कोचैत बजलाह-एही स्वाभिमानक द्वारे ढाला झा घुसकैत-घुसकैत चौमथ घाट पहुँचि गेलाह।

श्रोतागण उत्सुक भय पुछलथिन्ह-से कोना?

भोलबाबा कहय लगलथिन्ह-ढाला झा घरमे सूतल रहथि। गर्मीक समय रहैक। स्त्री कहलथिन्ह-कनेक घुसुकि जाउ। ई कहि स्त्री त सूति रहलथिन्ह। ओम्हर ढाला झा घुसुकय लगलाह। पहिने घुसकैत-घुसकैत खाटक पासी पर आबि गेलाह। तखन ससरि कऽ नीचा उतरि गेलाह। तदुपरान्त केवाड़ खोलि बाहर भऽ गेलाह। तत्पश्चात् राति भरि घुसकैत-घुसकैत सोझे चौमथघाट पहुँचि गेलाह। घरसॅं चौदह कोस। ओतयसॅं चिट्ठी लिखलथिन्ह जे की, आब और अधिक घुसकू कि एतबेसॅं काज चलि जाएत?

दीर्घनारायण टिप्पनी कैलथिन्ह - ओहो प्रण्म्य देवता छलाह । कनेक घुसकय कहलथिन्ह त ओतेक दूर चलि गेलाह । यदि कतहु लग मे आबय कहितथिन्ह त ने जानी की करतथि !

पं० जी बजलाह - ताहि दिनक लोक मनस्वी होइत छलाह ।

भोलबाबा कतरा करैत बजलाह - एही मनस्विताक कारण लगमाक पं० जी अपना घर मे आगि लगा लेलन्हि ।

पं० जीक घर पर एकटा पाहुँन ऎलथिन्ह । स्त्री कैं पुछलथिन्ह - ऎ ! घर मे चूड़ा अछि ? स्त्री कहलथिन्ह - नहि । ई पुछलथिन्ह - आँटा अछि ? स्त्री कहलथिन्ह - नहि ? पुछलथिन्ह - सातु अछि ? स्त्री कहलथिन्ह - नहि ? पुछलथिन्ह सलाइ अछि ? स्त्री कहलथिन्ह - हॅं । बस, ई सलाइ खरड़ि कऽ चार मे लगा देलन्हि । जहि घर मे किछु नहि , से घर रहिए कऽ की हैत ? सौंसे घर त जरिए गेलैन्ह । अपना घरक संग-संग संपूर्ण गामो स्वाहा भऽ गेलैन्ह ।

काशीनाथ बजलाह - ताहि दिन मर्यादाक एहन महत्व रहैक ।

भोलबाबा बजलाह - मर्यादाक तेहन महत्व रहैक जे नैञा चौधरीक घर मे आगि लगलैन्ह त अगलग्गीक जिज्ञासा मे उनचास टा सरकुटुम्ब पहुँचि गेलथिन्ह । दूर-दूरक सम्बन्धी । जहिना सुनलथिन्ह कि खालिए हाथ , धुरिआएले पैरे पहुँचि गेलथिन्ह । जेठमासक प्रचंड रौद । ऊपर एकटा छपरी नहि । गाछ तर भानस होय । तथापि कतोक गोटाक मासक मास ओहो गाछ तर रहि गेलथिन्ह, जे एहन विपत्तिक समय मे छोड़ि कऽ कोना जेबैन्ह ? नैञा चौधरी कैं ततेक लोक पुछारी करय एलथिन्ह जे सभक सत्कार मे डीह पर्यंन्त बिका गेलैन्ह । तखन दोसर गाम मे जा कऽ बसलाह ।

कमलाकान्त बजलाह - धन्य छलाह एहन-एहन लोक ।

भोलबाबा कहलथिन्ह - हौ, ताहि दिनक लोक अलौकिक होइ छलाह । बुद्धिनाथ बाबू कहियो ब' अक्षरक पेट नहि कटलन्हि । हुनक कथ्य रहैन्ह जे जखन कोनो नोकर चाकरक पेट नहि कटैत छिऎक त 'ब' अक्षरक पेट कोन अपराध कैने अछि ? एही द्वारे 'बुद्धि' कें 'वुद्धि' लिखथि !

फोंचाइ पाठक बजलाह - अहा ! की उच्च विचार !

भोलबाबा कहलथिन्ह - टटुआर मे कोनो ब्रह्मण ईंट पथबौलन्हि त पं० लूटन मिश्र हुनका गोवधक प्रायश्चित दऽ देलथिन्ह ।

काशीनाथ पुछलथिन्ह - से किऎक , बाबा ?

भोलबाबा बजलाह - पं० जी कहलथिन्ह जे माटि खनने खाधि भेले हैत । वर्षा मे पानि भेने ओ भरबे करत । से जल पीबय धेनु ऎबे करतीह । ताहि मे गोटेक डुबबे करतीह । यैह बिचारि पहिनहि गोहत्याक प्रायश्चित करा देलथिन्ह ।

कमलाकान्त बजलाह - की अपूर्व पण्डित ओ लोकनि होइत छलाह ।

भोलबाबा बजलाह - पण्डित त तेहन अपूर्व होइत छलाह जे एक बेर सतलखा मे सात मन वासमतीक चाउरक भात फेकल गेल ।

लंबोदर चौधरि पुछलथिन्ह-से कोना?

भोलबाबा बजलाह-सातो टोलक लोक भोज खाय लेल बैसल रहय। महामहोपाध्याय नेनमनि पाठक सेहो ओहिमे सम्मिलित रहथि। जखन ओ भोजन करय लगलाह त तरकारी खाइत काल पुछलथिन्ह-हौ, ई की थिकैक? केओ कहलकैन्ह-सलगम थिकैक। ई सुनितहि ओ पाते पर वमन करय लगलाह। सभ हुर्र भऽ गेल।

झारखंडी पुछलथिन्ह-से किएक, बाबा?

भोलबाबा बजलाह-महामहोपाध्याय कहलथिन्ह जे सलगम पूर्वजन्मक मुसलमान होइ अछि और अंगरेज जे मरैत अछि से अंगरेजी भाँटा (टमाटर) भऽ कऽ जन्म लैत अछि। एतावता सभकें सिमरियाघाट जा चारू चरण प्रायश्चित करय पड़लैन्ह।

काशीनाथ बजलाह-अहा! की धर्मशास्त्रक विचार हुनका लोकनिकें रहैन्ह!

भोलबाबा कहलथिन्ह-धर्मशास्त्रक त तेहन विचार रहैन्ह जे भुसकौलक शास्त्रा जी कन्या कुमारीसॅं बिना स्नाने कैने फिरि ऎलाह।

रतिकांत पुछलथिन्ह-से किएक, बाबा?

भोलबाबा नाकमे नोसि लैत बजलाह- हौ, हुनक तर्क ई जे एक त कुमारि, दोसर कन्या! ताहिमे प्रवेश कैने त गारिए पड़ि जाय! एतावता ओहि जलसॅं आचनमनो टा नहि कैलन्हि।

चुनचुन चौधरि बजलाह-वाह रे मर्यादा!

भोलबाबा कहलथिन्ह-एही मर्यादाक द्वारे पुबारी डेउढीक बाबू रुद्राणीपति सिंह कहियो अपना टोपी पर इस्त्री नहि देऔलन्हि, जे एकटा स्त्री जखन छथिए त दोसर किएक माथ पर चढाएब। आब एहन विचार लोककें हैतक?

यारकका बजलाह-कथमपि नहि।

भोलबाबा गंभीर श्वास लैत बजलाह-आब त युगे बदलि गेलैक। हाथीकें मोटर खैलक, घोड़ाकें साइकिल खैलक, रामलीलाकें सिनेमा खैलक, भोजकें पार्टी खैलक, भाङकें चाह खैलक, संस्कृतकें अंग्रेजी खैलक, और मर्यादाकें कम्युनिस्ट खैलक। आब किछु दिनमे घसकट्टी ओ चानन काजर, सभ टा उठि जाएत। परन्तु आब हमरा जिबहिक कतेक दिन बाँकी अछि? जे रहताह से सहताह।

ई कहैत भोलबाबा पान-सुपारी लेलन्हि और फराठी टेकैत विदा भऽ गेलाह।