19. चौपाड़िपरक गप्प चर्चरी
आहि दिन पं० जीक चौपाड़िपर नोतिहारी सभ बैसल रहथि। बिझौ भऽ गेल रहैक, परन्तु भोजनमे किछु विलंब रहैक।
ताही बीचमे पहुँचि गेलाह भोलबाबा। हुनका अबितहि सभ उल्लसित भऽ उठल जे आब गप्पक छुरुक्का उड़त।
काशीनाथ कहलथिन्ह - आउ बाबा ! भल्लह बेर पर जुमलहुँ । एखन यैह बहस छिड़ल अछि जे पहिनेक लोक सुखी कि आबक लोक ?
भोल बाबा बटुआ सॅं नसिदानी बहार करैत बजलाह - हौ, ताहि दिनक लोक जतेक दुध-घी कुरुड़ कऽ कऽ फेकि दैत छल ततेक आवक लोक कें पानि जूमब कठिन छैक । हमरा लोकनिक पुरषा एक घैल दूध एक छाक मे पीबि जाइत छलाह । ताहि जोर पर एक हजार दंड-वैसक खींचि लैत छलाह । आब लोक एक सितुआ दूध चाह मे घोरि कऽ चुसैत अछि । जेना छौमसिया नेना कें घोंटी देल जाइ छैक । तखन साबिक बला बल-वीर्य कहाँ सॅं हैतैक ?
शोभाकान्त कहलथिन्ह - ताहि दिन मोट चालि रहैक । आब फैंसी - - -
भोलबाबा उत्तर देलथिन्ह - हौ, हमरा तूरक लोक चमड़उ पनही मे एक चुडू अंडीक तेल दऽ कऽ एक सुर मे बीस कोस चलि जाय । आबक बाबू भैया जे पैतावा पर पालिशदार अंगरेजी जूता मे मचमच करैत छथि से दू कोस खातिर चारि घंटा रेलक बाट तकै छथि । पहिनेक लोक कोस भरि मैदान लोटा लऽ कऽ चलि जाइत छल । आब त भानसे घर लग पैखाना बनबैत अछि ।
चुनचुन पुछलथिन्ह - एकर कारण की , बाबा ?
भोलबाबा नाकक दुनू पूरा मे नोसि कोचैत बजलाह - हौ, ताहि दिनक लोक पचीस वर्ष धरि एकछाँह ब्रह्मचर्यक पालन करैत छल । आब त पाँचमे वर्ष सॅं सिनेमाक गीत गाबय लगै अछि - 'तेरा मेरा प्यार हो गया !' हमरा लोकनिक पुरुखा भरि-भरि बट्टा खोआ खाइत छलाह और मास मे एक बेर भोग करै छलाह । आबक लोक कैं पाव भरि अहार पचैबाक हेतु सोडावाटरक काज पड़ै छैन्ह, और विहार नित्य भेले चाहय । तखन जे गति होमक चाही सैह होइ छैन्ह । जहाँ पहिनेक पुरुष कंचनजंघा पर विजय प्राप्त करैत छलाह , तहाँ आइकाल्हुक युवक कुचबिहार सॅं कटिहार धरि पहुँचैत-पहुँचैत हाँफय लागि जाइत छथि !
पं० जी अनुमोदन कैलथिन्ह - ई यथार्थ कहल । आबक लोक मे ओ बलवीर्य नहि रहलैन्ह ।
भोलबाबा बटुआ सॅं सुपारी-सरौता बहार करैत बजलाह - लोकक कोन कथा जे अन्नो मे आब ओ वीर्य नहि रहलैक । एकटा नवकनियाँ गहुमक चीकस सनैत रहथि । ताहि मे कौआ लोल मारि कऽ एक लोइया लऽ गेलैन्ह । से देखि हुनक अजिया सासु हॅंसि देलथिन्ह ।
कनियाँ पुछलथिन्ह - ई हॅंसै छथि किएक ?
सासु कहलथिन्ह - एकटा पहिलुक बात मन पड़ि गेल । एक बेर हमरो चीकस मे एहिना कौआ लोल मारने रहय से ओही मे अटकल रहि गेल । जखन हाथ सॅं छोड़ौलिएक तखन लोल छुटलैक । ताहि दिनक गहूमो तेहन लसगर होइक ।
यारकका बजलाह - तखन ने लोको वीर्यवान होइत छल ।
भोलबाबा बजलाह - हौ, तैं ने सत्तरि वर्षक बूढ़ सत्रह वर्षक भार्या सॅं पुत्र उत्पन्न कय लेथि । हुनका लोकनिक लघीक धार मे तेहन बेग रहैन्ह जे पाथर मे भूर भऽ जाइक । आबक युवक बुतें त माटिओक ढेप फूटब कठिन ।
फोंचाइ पाठक बजलाह - ताहि दिनक वीर्य दोसर रहैक ।
भोलबाबा सुपारी कटैत बजलाह - हौ, पुरुषक कोन कथा , स्त्रीओ सभ तेहने वीर्यवती होइत छलीह । यैह देश थीक जहाँ एकटा महिसक चरबाहिनी घोड़ा सहित घोड़सवार कैं उनटा देलकैन्ह ।
श्रोतागण कै रस लैत देखि भोलबाबाक जोस बढ़ि गेलैन्ह बजलाह - हौ, ताहि दिनक यौवने तेहन विशाल होइक । हाथीक मस्तक सन । तैं कुम्भ सॅं उपमा देल जाइक । आब तेहन रंग-ढंग देखैत छी जे खियाइत-खियाइत किछु दिन मे कुम्भक स्थान मे किशमिश सॅं उपमा देल जाएत । तखन बोतलक दूध पीबय बला सन्तान बोतल झा सन पहलमान कोना बनताह ।
लंबोदर चौधरी अनुमोदन कैलथिन्ह - अपने बहुत ठीक कहैत छी ।
भोल बाबा कतरा बॅंटैत बजलाह - ओहन-ओहन विशाल छातीक दूध पीबि कऽ जे संतान पुष्ट होय तकर हृदयो विशाल होइक । आइकाल्हुक लोक त संकीर्ण भेल जा रहल अछि ।
कमलाकान्त पुछलथिन्ह - से कोना ?
भोलबाबा बजलाह-देखू,ताहि दिनक लोक घर ओठाबय त ततेक टा दलान बनाबय जाहिमे हजार पाँच सै ब्राह्मण बैसि कऽ खा सकथि। आब त तेहन अँटकरसॅं दरबाजा बनबैत अछि जे चारि टा कुर्सीसॅं फाजिल नहि आँटय। एहन सन क्रम जे दू टा गप्प कऽ लियऽ और अपन बाट धरू।
दीर्घनारायण समर्थन कैलथिन्ह-ठीक कहै छी, बाबा। आब सभ वस्तु छोट भेल जा रहल अछि।
भोलबाबा बजलाह-हौ, ताहि दिनक स्त्रीगण चालिस हाथक साड़ी पहिरैत रहथि। हमरा लोकनिक अमलमे बिसहत्थी चलय। आब त पाँच गजसॅं फाजिल केओ रखितहि ने छथि। तहिना अँगियो छोट होइत-होइत आब एक बीतपर आबि गेलैन्ह अछि। परन्तु नवयुवतीएकें किएक दोष दिऔन्ह? पंडितो लोकनि पहिने साठि हाथक पग्गड़ बन्हैत छलाह। आब एक बीतक पाग पहिरैत छथि।
पं० जी अनुमोदन कैलथिन्ह-अपने सत्य कहै छी। आब सभ वस्तुक लघु संस्करण भऽ रहल छैक।
भोलबाबा कतरा चिबबैत बजलाह-पहिनेक लोक पैघ वस्तु पसंद करैत छल। पैघ पोखरि, पैघ इनार। पैघ लोटा पैघ थारी। तेहन-तेहन खाँखर बनय जाहिमे एक बोरा चाउरक भात रान्हि लियऽ। हमरे सासुरसॅं ततबा टा डाला आएल जे चारि टा भरिया ओकरा उठा कऽ लाएल। आब त लोक कनियाँ-पुतराक खैल करै अछि। हमरा पोताक सासुरमे जे सॅंचार लगौलक से साइकिलक घंटी सन-सन बाटी आगाँमे राखि देलक। कमलाकान्त बजलाह-सत्य कहै छी, बाबा! पहिने लोक पैघ वस्तु पसिंद करैत छल।
भोलबाबा बजलाह-देखह, काव्ये बनैत छल त रामायण महाभारत सन जे पुश्त दर पुश्त काज आबय। आबक कविता भगजोगनी जकाँ भक्क दऽ उगत, फक्क दऽ मिझाएत। पहिलुक रचल पुराण सभ भरि जन्म पढैत रहू, तथापि अन्त नहि लागत। आबक कथा-पिहानी घंटा भरिमे पढि कऽ लोक फेंकि दै अछि। पहिने मास-मास धरि रामलीला चलैत छल और भरि-भरि राति जागि कऽ देखैत छ्ल। आब तेहन सिनेमा चलल अछि जे दुइए घंटा मे दशरथसॅं लऽ कऽ लवकुश पर्यन्त देखा देत। पहिने एकटा ध्रुपद प्रारंभ होइ छल से अढाइ घंटा मे जा कऽ समाप्त होइ छल। आब त अढाइ मिनटमे एक टा गीत खतम। जतबा कालमे लोक लग्घी करैत अछि।
यारकका पुछलथिन्ह-एकर कारण की?
भोलबाबा नोसि लैत बजलाह-असलमे बूझह त आबक लोकमे धैर्य नहि छैक। चट मॅंगनी पट विवाह। आइकाल्हुक आनन्द बूझह त खढक आगि थिक। तुरंत धधकल, तुरंत मिझाएल। ताहि दिनक आनन्द कोइलाक आगि होइत छ्ल। देरीसॅं पजरैत छल, देरी धरि रहैत छल।
पं० जी बजलाह-पहिनेक लोक उदार होइत छ्ल।
भोलबाबा बजलाह-एहिमे कोन संदेह? ताहि दिन पाहुनक आँगामे एक अढैया चाउरक भात जाँति कऽ परसल जाइ छलैन्ह। डब्बू लऽ कऽ घृत परसल जाइत छल। आब चम्मच चलल अछि। ई चम्मच कोन अभागल आविष्कार कैलक से नहि कहि। ओ भारी क्षुद्रघंटी छल हैत।
थोड़ेक काल धरि भोलबाबा क्षुब्ध रहलाह। लोक गुम्म रहल। तखन पुनः निस्तब्धता भंग करैत बजलाह-हौ, लोकेकें किऎ दोष दिऔक? प्रकृतिओमे वैह संकीर्णता आबि गेलैक अछि।
फोंचाइ पाठक पुछलथिन्ह-से कोना?
भोलबाबा बजलाह- ताहि दिनक बाते दोसर रहैक। सभ वस्तु पैघ होइक। हमर बाबक भुतही गाछीमे एकटा पुरान फलेनाक गाछ रहैन्ह। से एक एक टा जामुन आधा- आधा पावक गुलाबजामुन जकाँ होइक। बौकू बाबूक कर्जानमे तेहन केराक घौर फुटैन्ह जे एक एक टा घौर एक एक गाड़ीपर लदा कऽ अबैन्ह। हमरा पीसाक ओहिठामसॅं एक टा कटहर आएल रहय से फाड़ल गेल त साढे तीन हाथक नेढा ओहिमे सॅं बहराएल।
अजगैबीनाथकें विस्मित देखि भोलबाबा कहलथिन्ह- तों मुँह की बबैत छह? हम एही आँखिसॅं दू-दू हाथक बालि देखने छी। मकोय सन-सन मकइक दाना। कुसियारे तेहन झमटगर होइक जे एक बेर एक टा साँढ छौ मास धरि फॅंसल रहि गेल। हमरा नानाक चारपर एकटा राहड़ि कौआक मुँहसॅं खसि पड़लैक । से जनमि गेलैक। हौ बाबू! ओ गाछ जे झाड़ल गेल त एक पसेरी राहड़ि ओहिमेसॅं बहराएल। आब ई बात हैतैक?
मौजेलाल बजलाह-बाप रे बाप!
भोलबाबा डॅंटैत कहलथिन्ह- तों एतबेमे बपाहटि तोड़ैत छह। हम ब्रह्मपुत्रमे ततेका टा इचना माछ देखल, जे ओकर सूँग लऽ कऽ लाठी बनैत छ्ल। एक वेर हमरा मौसाक खाटसॅं एकटा उड़ीस बहरैलैन्ह से हमरा नसिदानी एतेक टा। आब त लोकक देहमे शोणिते नहि छैक। ओतेक टा उड़ीस कोना हैतैक?
पंडित जी कहलथिन्ह-पहिने सभ वस्तु पुष्ट होइ छल। लोकक जेहने शरीर छलैक तेहने बुद्धियो। एकसॅं एक गुणी होइ छलाह।
भोलबाबा बजलाह-गुणी त तेहने होइ छलाह जे फूलक नाम पूछि कऽ कहि देथिन्ह जे मुट्ठीमे की अछि। एक बेर हमरा मामक घोड़ी हेरा गेलैन्ह। मानेचौकक ज्योतिषी हुनक जन्मकुंडली देखि कऽ कहि देलथिन्ह जे घोड़ी एखन पछबरिया खढौरमे चरि रहल अछि।
फोंचाइ पाठक बजलाह-वाह रे गुणी!
भोलबाबा बटुआ सॅं सुपारी बहार कैलन्हि । पुनः कतरा करैत बजलाह - एक बेर ढंगावाली कें ज्वर लगलैन्ह । पाही टोलक वैद्य रहथिन्ह । ओ नाड़ी कोना धरथिन्ह ? तखन ढंगावलिक हाथ मे सूत बान्हि देल गेलैन्ह , से वैद्य जी कैं धरा देल गेलैन्ह । वैद्यजी सूत लग मूँह लगा कऽ ज्वर कैं बुझा कऽ कहलथिन्ह - 'तों तेरह दिन धैर्य राखह । हिनका माइक श्राद्ध मे नैहर जैबाक छैन्ह । ओतय सॅं औतीह त चौदहम दिन हिनका पर चढ़िअहुन । किछु सुदिओ लगा कऽ लऽ लिअहुन ।' और ठीक एही तरहें भेलैन्ह । आवक डाक्टर वैद्य मे ई सामर्थ्य छैन्ह ?
झारखंडी बजलाह - अरौ तोरीक रौ तोरी !
भोलबाबा हुनका डॅंटैत बजलाह - हौ, मिसर टोलीक एक वैद्य तेहन रहथि जे एकटा वंध्या कें दवाइक जोर पर जौंआ बच्चा जनमा देलथिन्ह । एक बुन्द दवाइ खाटक पासि पर खसि पड़लैक ! ताहि मे तुरंत हरियर पनकी दऽ देलकैक । शेष दवाइ हड़ाही मे फेकि देलथिन्ह । सभ माछ मे अंडा भऽ गेलैक ।
लम्बोदर चौधरि बजलाह - बाह रे चमत्कार ! ताहि दिन जे गुणी होथि से अपना विषय मे बेजोड़ होथि ।
भोलबाबा बजलाह - हमर वृद्ध प्रपितामह तेहन उद्भट वैयाकरण छलाह जे शब्द मुँह सॅं बहार भ जाइन्ह तकरा सिद्ध कइए कऽ छोड़थि । एक दिन भुजा फकैत काल पुत्रक जन्म भेलैन्ह तकर नाम राखि देलथिन्ह - 'भुजानाथ' । लोक पुछलकैन्ह - एकर अर्थ की ? ई कहलथिन्ह - रामचन्द्र । लोक पुछलकैन्ह से कोना ? ई कहलथिन्ह - 'भू' भेली पृथ्वी, तनिक 'जा' भेली सीता, तनिक 'नाथ' भेलाह रामचन्द्र ।
फोंचाइ पाठक बजलाह - अहा ! की विलक्षण प्रतिभा ?
भोलबाबा बजलाह - हुनकर पुत्रो तेहने दुर्द्धर्ष बहरैलथिन्ह जे विवाहो मे अपन तर्कशास्त्र नहि छोड़लन्हि । तीन ठाम सॅं बर्तुहार आएल रहैन्ह - लोहा, हथौड़ी ओ काँटी। ई तर्क लगौलन्हि जे काँटी सॅं हथौड़ी प्रबल । परन्तु काँटी ओ हथौड़ी दुहूक मूल लोहा । अतएव लोहे मे अपन विवाह कैलन्हि । ओ कहियो ककरो सॅं परास्त नहि भेलाह । एक बेर क्यो बरियातक हेतु घोड़ा मंगनी कैलकैन्ह। ई अपन शतरंजक घोड़ा पठा देलथिन्ह। ओ आबि कय कहलकैन्ह-हम त चलयबला घोड़ा मंगने रही। ई उत्तर देलथिन्ह-इहो अढाइ घर चलैत अछि।
चुनचुन बजलाह-इह! ताहि दिन एहन-एहन दुर्दान्त नैयायिक होइत छलाह।
भोलबाबा किछु मन पारैत कहलथिन्ह- परन्तु हौ बाबू, एक बेर ओ नैनायिक अपना स्त्रीएसॅं परास्त भऽ गेलाह।
कमलाकान्त कहलथिन्ह-से कोना, बाबा?
भोलबाबा नोसि लैत बजलाह-एक बेर हुनका भोजन करैत काल सौंसे लौंगिया मिरचाइ मुँहमे पड़ि गेलैन्ह। छिलमिला उठलाह। स्त्रीकें कहलन्हि-झट दऽ एक रत्ती दही- चीनी दिअ। स्त्री दौड़ि कऽ कतय गेलीह तकर पता नहि। तावत नैयायिकक जीभ भकभकाइत रहलैन्ह। जखन बड़ीकालपर स्त्री ऎलथिन्ह त नैयायिक खिसिया कऽ पुछलथिन्ह-अहाँ कतय गेल छलहुँ? स्त्री कहलथिन्ह -हम सोनारक ओतय गेल छलहुँ। नैयायिक क्रुध होइत पुछलथिन्ह-'एखन सोनारक कोन काज छल? स्त्री उत्तर देलथिन्ह-अहीं कहने छलहुँ जे एक रत्ती दही-चीनी चाही। तैं नुकतीक काज पड़ल। नैयायिक कहलथिन्ह-'हम आजन्म ककरोसॅं परास्त नहि भेल छलहुँ। परन्तु हे लोहावाली! आइ हम अहाँक लोहा मानि लेल। अहाँ हमरा पानि पिया कऽ छोड़लहु ।'
यारकका कहलथिन्ह-अहा! ताहि दिनक स्त्रीओ तेहने अपूर्व होइत छलीह। जेहने बुद्धिमती, तेहने सुन्दरी।
भोलबाबा मेही कतरा करैत बजलाह-सुन्दरी त तेहन-तेहन छलीह जे वर्णन नहि हो। चन्द्रावती बहुरियाक देह तेना सीसा जकाँ झलकैत रहैन्ह जे स्वामीकें कहियो दर्पणक काज नहि पड़लैन्ह । स्त्रीक पीठ पाछाँ ठाढ भऽ कऽ अपन मुँह देखि लेथि। कंचनपुरवाली तेहन सुकेशी छलीह जे सासुर गेलीह त एक महफामे अपने चढलीह , दोसरमे केश चढलैन्ह। कमलदहवाली एक बेरि पोखरिमे ऍंड़ी माँजय लगलीह से पोखरिक पानि लाल भऽ गेल।
झारखंडी बजलाह-हद्द भऽ गेल, बाबा!
भोलबाबा डॅंटैतकहलथिन्ह-तों देखलह कहिया? फुलकुम्मरि दाइ तेहन सुकुमारि रहथि जे दही कटने आँगुरमे फोंका पड़ि जाइन्ह। एक बेर बताशा पर पैर पड़ि गेलैन्ह त तरवामे ठेला भऽ गेलैन्ह। गन्धवारिवाली किशमिशकें सोहि कऽ खाथि। शशिपुरबाली इजोरिया रातिमे चलथि त माथपर केराक वीर धऽ लेथि जे धाह नहि लागि जाय। आब त ई सभ बात उपन्यास जकाँ लगतौह।
शोभाकान्त बजलाह-हाय रे कोमलता!
भोलबाबा एक चुटकी कतरा मुँहमे रखैत बजलाह- परन्तु ई नहि बुझै जाह जे ओ लोकनि केवल फुलचठैले होइ छलीह। तेहन-तेहन कलाकौशल जनैत छलीह जे आबक स्त्रीकें हैब दुर्लभ छैन्ह। हिरनीवाली अपना केशोसॅं पातर कतरा करैत छलीह। जमशमवाली तेहन मेही सूत कटैत छलीह जे दू जोड़ जनउ एक छोटकी अणाचीक खोइयामे भरि दैत छलीह। भ्रमरपुरवाली जे पीढी लिखैत छलीह से देखि गलीचाक भ्रम भऽ जाइत छलैक। एक बेर नागपंचमीमे साँपक चित्र भीतपर काढलन्हि से ओहिपर सेपनौर पहुँचि गेलैन्ह।
यारकका बजलाह - अहा ! ओ लोकनि यथार्थ गृहलक्ष्मी होइत छलीह । आबक लोक मे ओहन चमत्कार कहाँ
भोलबाबा कतरा करैत बजलाह - चमत्कार त तेहन-तेहन देखने छी जे कहबौह त गप्प जकाँ बुझि पड़तौह । भटसिम्मरिवाली जे पू बनाबथि से तूरक फाहा सॅं बेसी मोलायम । महिनाथपुरबाली तेहन बड़ बनाबथि जे एकरत्ती खोंटि कऽ मुँह मे दियऽ और घैलक घैल पानि पिबैत रहू । पिलखबारवाली कैं एक बेर पाहुन ऎलथिन्ह । घर मे केवल चाउरे टा रहैन्ह । परन्तु ई ओही सॅं हलुआ, पूड़ी, तरकारी तरि चटनी बना कऽ खोआ देलथिन्ह ।
काशीनाथ बजलाह - एकर नाम छैक पाक विद्या ।
भोलबाबा बजलाह - हमर अपने सासु एहन फुर्तिगर छलीह जे जतवा काल मे हम हाफी कऽ कऽ तीन टा चुटकी बजबै छी ततबा काल मे तीन टा तरकारी तरि लेथि ।
मुकुन्द बजलाह - से ओ कोन मंत्र जनैत रहथि ?
भोलबाबा बजलाह - ओ एक्के बेर दुचुल्हिया जोड़ि कऽ सभ पर कड़ाही चढा देथिन्ह । तखन जेबो नाचिनाचि कऽ सभ मे टनटन करछु-तरंग बजाबय लागथि से की मनहर बरबे जल तरंग बजौताह ! एके घंटा मे छत्तिस टा सॅंचार लगा देथि ।
रसिकनंदन बजलाह- बाबा! और जे कहियौक परन्तु आइकाल्हि बला फैशन ताहि दिनक स्त्रीगणकें नहि रहैन्ह।
भोलबाबा उत्तेजित भऽ गेलाह। जोशमे आबि बजलाह-हु, आइकाल्हि नकली मोलम्मा चलै छैक। ताहि दिन असली बस्तु रहैक। पुरसुन्दरी डेउढीक पनिभरनी तेहन निट्ठाहि रहय जे छती पर कलश लऽ कऽ चलय त कलशमे छेद भऽ जाइक। आबक युबतीकें त नैनसुखसॅं देह छिलाइ छैन्ह।
लंबोदर चौधरी बजलाह-ताहि दिनक यौवने दोसर छलैक।
भोलबाबा बटुआमे सरौता रखैत बजलाह-यौवन त तेहन दृढ होइत छलैक जे वज्रसुन्दरी चौधराइन एकटा हरिण पोसने रहथि। से एक दिन खेलाइत-खेलाइत हुनका छातीमे सिंघ मारि देलकैन्ह। ओकर सिंघ टूटि गेलैक। ओ टुकड़ा एखन धरि अजायबघरमे राखल अछि। आबक युवतीमे ई सामर्थ्य हैतैन्ह?
एतबहिमे भीतरसॅं बिझौ आबि गेल । सभ लोक लोटा लऽ कऽ आंगन दिस विदा भेलाह।