लेखक : हरिमोहन झा

ओहि दिन भयंकर झपसी लधने रहय। यारकका घूरपर बैसल लोक आगि तपैत रहय। बीच-बीचमे तेहन पुरबैयाक झटक उठैक जे लोक सिहरि उठय। काशीनाथ बजलाह-एहने जाड़मे ब्राह्मण बाछा बेचि कऽ कंबल किनलन्हि। भोलबाब कहलथिन्ह-हौ, तोरा लोकनि जाड़ देखलह कहिया? जाड़ आएल रहय उनासी इसवीमे। एक बेर जे हाड़मे पैसल से छौ मास धरि पैसल रहल। सभक दाँतसॅं दंततरंग बाजय लगलैन्ह। दू-दू तुराइ ओढि कऽ लोक सूतय, तैयो देह 'द' अक्षर बनि जाइक।

मधुकांत पुछलथिन्ह-से की बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह-दाढीमे ठेहुन सटने 'द' अक्षर बनिए जाइ छैक। एहने जाड़मे हमर पीसाकें केओ पुछलकैन्ह जे बाछी बेचब? तखन ई उत्तर देलथिन्ह जे हमरा गाछी नहि।

मुकुन्द कहलथिन्ह-बाबा, एकर अर्थ नहि बुझलिऎक।

भोलबाबा बजलाह-एकर अर्थ यैह जे गाछी नहि रहने जारन-काठीक अभाव अछि। बाछीक गोबरसॅं गोइठा होइत अछि। यदि सेहो नहि रहत त अगियासी कथीसॅं करब?

यारकका कहलथिन्ह-अहा! ताहि दिन बजबाक की चमत्कार रहैक।

भोलबाबा बजलाह-वाक्चातुर्य त तेहन रहैक जे एकटा हजाम कुसुमपुर डेउढीक बहुआसिनकें छका देलकैन्ह।

श्रोतागण पुछलथिन्ह-से कोना, बाबा?

भोलबाबा नोसि लैत बजलाह-नौआकें एक ठाम वर देखक हेतु पठौलथिन्ह। ओ आबि कऽ कहलकैन्ह-'सरकार! हुनकर रईसी की कहू? आइ धरि पैदल नहि चललाह, कहियो अनका जमीनपर नदी नहि फिरलन्हि, ककरो 'नहि' नहि कहलथिन्ह, सभकें एक्के आँखि सॅं तकै छथि। ' ई सुनितहि बहुआसिन गद्गद् भय फलदान पठा देलथिन्ह। पाछाँ कऽ ज्ञात भेलैन्ह जे दुलहा कनाह, बौक ओ लोथ छथि, आँगनेमे नदी फिरै छथि।

अजगैबनी नाथ बजलाह-इह! ताहि दिन केहन-केहन धूर्त्त रहय!

भोलबाबा कहलथिन्ह-हौ, धूर्त्त त तेहन-तेहन रहय जे नमोनारायण सी अक्षर पढल नहि रहथि। तथापि सभ दिन खीरे खा आबथि।

झारखंडी-से कोना, बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह-हौ, हुनका दुइटा श्लोकक अन्तिम पद अबैत रहैन्ह। एक तस्मै श्री गुरवे नमः, दोसर पयसामर्णव इव। यजमान सभकें बुझा देथिन्ह जे 'तस्मै' अर्थात् खीर भोजन करा कऽ 'पयसा' अर्थात् कैंचा देल करह।

मुकुन्द बजलाह-बाप रे! एहन चारि सै बीस!

भोलबाबा सरौता बाहर करैत बजलाह-हौ, मकरन्दावला ज्योतिषी पूरे आठ सै चालीस रहथि। कोनो स्त्री गर्भवती हो त भोजपत्रपर 'बेटा न बेटी' लिखि कऽ यंत्रमे मढि पहिरा देथिन्ह। जौं बेटा होइक त कहथिन्ह -देखू, हम पहिनहि लिखि देने छलहुँ, 'बेटा, न बेटी' अर्थात् कन्या नहि। बेटी होइक त कहथिन्ह जे देखू, हम लिखि देने छलहुँ जे 'बेटा न, बेटी' अर्थात् कन्या। जौं गर्भपात भऽ जाइक त कहथिन्ह-देखू, हम पहिनहि लिखने छलहुँ जे 'बेटा न बेटी' अर्थात् कन्या-बालक किछु नहि।

एतबहिमे झारखंडीकें लघुशंका लगलैन्ह। ओ उठि कऽ कनैलक झोंझसॅं लघुशंका कऽ ऎलाह। ई देखितहि भोलबाबा हुनका रेड़ब शुरू कलथिन्ह-हौ बूड़ि! एक्को चूड़ पानियो लऽ गेल छलाह?

झारखंडीक सिट्टीपिट्टी बंद भऽ गेलैन्ह। भोलबाबा कहय लगलथिन्ह-ई तोहर दोष नहि, युगक दोष थिकैक। ताहि दिन एतेक मर्यादा रहैक जे लोक लघियो करय त ढेका खोलि कऽ। पानिक संग माटियोक व्यबहार करय। आबक छौड़ा त ठाढे ठाढ अर्ध्य दैत अछि।

पं जी कहलथिन्ह-अहा! ताहि दिनक मर्यादाक कोन कथा!

भोलबाबा बजलाह-मर्यादाक त एतेक विचार रहैक जे हमर पीसा वाह्यभूमि दिस जाथि त लोटा गिलास दुहू लऽ कऽ। लोक पुछैन्ह जे गिलास किऎक? तखन कहलथिन्ह जे लघुशंकाक हेतु पृथक् पात्र लऽ जाइ छी।

ठीठर कें हॅंसी लागि गेलैन्ह। भोलबाबा हॅंसैत कहलथिन्ह-ठीठी-ठीठी की करैत छह? बुद्धिनाथ पाठक कहियो स्त्रीकें चुम्म नहि लेलन्हि जे गाल ऎंठ भऽ जैतैन्ह। आबक छौड़ाकें एतबा विचार हेतैक?

यारकका बजलाह-तहि दिनक स्त्रीगणोंकें मर्यादाक विचार रहैन्ह।

भोलबाबा कहलथिन्ह-विचार त तेहन रहैन्ह जे अन्हराठाढीवाली मोसम्माति अपना बेटाक सासुर भार पठबैत रहथि। समधिनक हेतु नूआ-लहठी सॅंठैत रहथि। केओ कहलकैन्ह जे समधिनक पेटमे बच्चो छैन्ह। तखन ओहि गर्भस्थ शिशुक हेतु अंगा-टोपी और आँगी-घघरी दुहू वस्तु सीबि कऽ पठा देलथिन्ह। समधिनो तेहने मर्यादावाली रहथिन्ह। भरियाक संगमे एकटा कुकुर रहैक। तकरो नाङड़ि मे एक जोड़ लाल धोती बान्हि देलथिन्ह। आब एतबा विचार लोक कें हेतैक?

फोंचाइ पाठक समर्थन करैत कहलथिन्ह-कथमपि नहि। ओहि समय जातिक केहन मर्यादा रहैक!

भोलबाबा बजलाह-मर्यादा तेहन रहैक जे हमरा सन-सन बूढ भलमानुस चुटकीमे सिंदूर नेने भेल फिरथि। जहाँ गोर माँग देखथिन्ह कि रगड़ि देथिन्ह। बयसमे अपना सासुओसॅं जेठ होथि! तैं ताहि दिनक सासु ततेक पर्दा करथिन्ह जे केबाड़क दोगसॅं गोरलगीक टका फेकि देथिन्ह। आबक सासु त जमायक संग एक्के रिक्शापर बैसि कऽ बजार करै छथि।

काशीनाथ कहलथिन्ह-आब पहिलुक रीति-नीति कहाँ रहल?

भोलबाबा बजलाह-हौ, हमर अजिया सासु नवमी-दशमीकें बिलाड़ियो क आँखिमे काजर कऽ दैत छलथिन्ह। आबक स्त्रीगण त सभ विधि-व्यवहारकें उठा कऽ कोठीक राखि देलन्हि।

यारकका बजलाह-ताहि दिन लोक कें निष्ठा रहैक।

भोलबाबा-निष्ठा त तेहन रहैक जे केओ तुलादान करय, केओ जीबि श्राद्ध करय। आब त ई सभ बात मूर्खतामे गनल जाइत अछि।

मधुकांत-आबक लोक कृपण भऽ गेल अछि।

भोलबाबा-हौ, कृपण त पहिनहुँ एकसॅं एक होइ छल। तथापि धर्म कर्म मे खर्च करितहि छल। थोल्हाइ चौधरिक नाम सुनने छहून?

श्रोता लोकनि कहलथिन्ह-नहि, हुनकर गप्प कहू।

भोलबाबा कतरा करैत बजलाह-ओ तेहन मोट रहथि जे जाँघ मे जाँघ सटि जाइन्ह। अपन हाथ ओहि ठाम धरि नहि पहुँचैन्ह। तखन खबास शौच करा दैन्ह।

अजगैबीनाथ बजलाह-हद भऽ गेल।

भोलबाबा दमसैत कहलथिन्ह-तौरा एतबेमे आश्चर्य होइ छौह? ओ एक दिन पोखरिमे स्नान करय गेलाह त धोधिक तहमे एकटा पोठिया माछ पैसि गेलैन्ह। ओ माछ सात दिन धरि ओहीमे पड़ल रहलैन्ह। जखन सड़ि कऽ गंध करय लगलैन्ह त एक दिन मालिश काल खबासकें कहलथिन्ह-रौ, देखहीक त, की छैक? तखन ओ धोधिक भीतरसॅं माछ बहार कऽ देलकैन्ह।

मुकुन्द पुछलथिन्ह-तखन की भेलैन्ह, बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह - ओ चारि मन भारी रहथि । परन्तु जखन तुलादान करक भेलैन्ह तखन दू दिन पहिनहि सॅं खैनाइ छोड़ि देलन्हि और जुलाब लेब सुरु कैलन्हि जे कनेक हल्लुक भऽ जाएब तखन तराजू पर बैसब ।

झारखंडी बजलाह - बाप रे बाप ! एहन कृपण !

भोलबाबा कहलथिन्ह - तों एतबे पर बपाहटि तोड़ैत छह । झलबा झा सभागाछी गेलाह त मंदाग्निवला वर जोहय लगलाह जे महुअक मे कम खीर लागत । दमड़ीलाल कैं अपना स्त्रीक यौवन नहि देखि होइन्ह ।

श्रोता सभ पुछलथिन्ह - से किएक, बाबा ?

भोलबाबा कहलथिन्ह - हौ, यौवनक उत्कर्ष देखि हुनका भय होइन्ह जे झुल्ला सिऎबा मे बेसी कपड़ा लागि जाएत ।

रसिकनंन्दन बजलाह - ओ भारी अभागल छलाह ।

भोलबाबा कहलथिन्ह - हौ, अभागल त तेहन-तेहन होइ छथि जे ठाकुर गोबर्धन सिंह भरि राति सासुर मे ओंड़ाचे कसैत रहि गेलाह ।

श्रोतालोकनि उत्सुक भय पुछलथिन्ह - से कोना बाबा ?

भोलबाबा कहलथिन्ह - जखन प्रथम रात्रि कोबर मे गेलाह त बुझि पड़लैन्ह जे खाट किछु झोलंगा अछि । बस, रस्सी उघाड़ि कऽ फेर सॅं बूनय लगलाह । ओम्हर नव यौवना वधु भरि राति ठाढ़ि रहलथिन्ह । जखन भोर भेला पर ओ बहरा गेलीह तखन जा कऽ हिनकर बानि पुरलैन्ह ।

मौजेलाल बजलाह - इह संसार मे केहन-केहन बुड़िबक होइ अछि ।

भोलबाबा कहलथिन्ह - हौ, बुड़िबक त तेहन-तेहन होइ अछि जे हजारीमल परदेश गेलाह त स्तीक डाँड़ मे ताला लगौने गेलाह ! लेकिन स्त्रीयो होसियारि रहथिन्ह । दोसर कुंजी बनबा लेलथिन्ह ।

मुकुन्द बजलाह - हः, एहनो एहन अथाह बूड़ि होइत अछि !

भोलबाबा कहलथिन्ह - हम त एक सॅं एक नकडुब्बा देखने छी । लाला नन्दन लालक बेटा कें गुरु अक्षर सिखबैत रहैन्ह - त थ द ध न । ई सुनि ओ गुरुजी कें बरखास्त कऽ देलथिन्ह ।

काशीनाथ - से किएक, बाबा ?

भोल० - हुनकर इच्छा रहैन्ह जे नेना 'द ध न ' नहि पढ़य , 'ल ध न' पढ़य । अर्थात लेबाक हाल जानय, देबाक नहि । तैं ओकरा नाम मे केवल 'ल' अक्षर भरि देलथिन्ह - लाला लल्लूलाल ।

मधुकान्त - हद्द रहथि !

भोल० - तैं एकटा पंडित हुनका पर श्लोक बनौलकैन्ह -

         आदौ  नकारः  परतो  नकारः
         मध्ये  नकारेण   हतो  दकारः
         त्रिभिर्नकारैः     परिवेष्टितस्य
         का   दानशक्तिर्वद  नन्दनस्य ।
        

अर्थात् , आदियो मे 'न', अन्तो मे 'न' । बीच मे एकटा 'द' अक्षर छैन्हो, त ओकरा पर 'न' सवार । तखन तीन-तीन नकार सॅं युक्त 'नन्दन' कैं दान करबाक शक्ति कहाँ सॅं औतैन्ह ?

यारकका कहलथिन्ह - अहा ! केहन-केहन अपूर्व पंडित होइत छलाह!

भोलबाबा बजलाह-पंडित त तेहन-तेहन होइत छलाह जे जतबा कालमे एकटा ढेप फेकल जाय ततबा कालमे समस्या पूर्त्ति कऽ देथि। सलेमपुरक एकटा पंडित श्लोक बनौलन्हि:-

        नाना नाना नाना नाना निन्नी निन्नी निनी निनी।
        नुन्नू   नुन्नू   नुनू   नुनू    नानानिन्नी    नुनुन्नुनः।
      

आबक पंडित कें एकर अर्थ लगाबय कहून्ह त कटहर, चूड़ा, अमौट तीनू खसय लगतैन्ह।

पं० जी बजलाह-एहि मे कोन संदेह? आब ने ओहन पंडित रहलाह ने ओहन शास्त्रार्थ।

शास्त्रार्थक नाम सूनि भोल बाबा कैं और बेसी जोश आबि गेलैन्ह । बजलाह - शास्त्रार्थी त तेहन-तेहन होइ छलाह जे धुरंधर शास्त्री आजन्म खड़ाम नहि पहिरलन्हि ।

काशीनाथ पुछलथिन्ह - से किएक बाबा ?

भोलबाबा कहलथिन्ह - ओ पुछलथिन्ह जे कोन खड़ाम पहिने पहिरु ? लोक कहैन्ह- दहिना । तखन पुछथिन्ह जे बामा किऎक नहि । लोक कहैन्ह बामा । तखन पुछथिन्ह जे दहिना किएक ने ? एहि प्रश्नक कहियो समाधान नहि भऽ सकलैन्ह । तैं दुनू पबाइ खड़ाम ओहिना पड़ले रहि गेलैन्ह ।

फोंचाइ पाठक बजलाह - अहा ! ताहि दिन केहन-केहन विषय पर शास्त्रार्थ चलैत छल ।

भोलबाबा कहलथिन्ह - शास्त्रार्थ त एहन-एहन विषय पर चलैत छल जे जखन घट फूटि गेल त ओकर 'घटत्व' कहाँ गेल ? शालग्राम चोरौने पाप हो वा पुण्य ? गंगा स्नानक काल कुरुड़ फेकबाक हो त कतय फेकी ? स्त्री कैं मोक्ष हो वा नहि ?

मधुकान्त पुछलथिन्ह - बाबा, अन्त मे की फरिआएल ?

भोलबाबा - अन्त मे यैह निर्णय भेल जे जखन स्त्री कें मोछ पर्यंन्त नहि होइ छैन्ह तखन मोक्ष कहाँ सॅं भऽ सकैत छैन्ह ?

फोंचाइ पाठक बजलाह - अहा ! की विलक्षण युक्ति !

भोलबाबा नोसिदानि बहार कैलन्हि । दुनू पूरा मे नोसि कोंचैत बजलाह- शास्त्रार्थ त तेहन-तेहन देखने छी जे आब लोक कै विश्वासे नहि हेतैक । एकबेर कंकाली मंदिर मे शास्त्रार्थ छिड़ल जे स्त्रीशिक्षा होमय चाही वा नहि ? कारी केश बलाक पक्ष रहैन्ह जे होमक चाही । उज्जर केश वलाक पक्ष रहैन्ह जे नहि होमक चाही । दुनू दिस सॅं युक्ति एवं प्रमाणक वर्षा होमय लागल । १ बजे दिन सॅं जे शास्त्रार्थ चलल से राति मे ११ बाजि गेल । एक अढ़ैया नोसि खर्च भऽ गेल तथापि फरियाएल नहि । तखन एकटा मध्यस्थ मानल गेलाह जिनकर केश आधा कारी अधा उज्जर रहैन्ह । ओ मध्यम मार्गक अबलंबन करैत तालपत्र पर सिद्धान्त लिखलन्हि ;-

          कुचोद्गमावधिः  पाठः  बालिकानां विधीयते ।
        

अर्थात कन्या लोकनि ताबते धरि पढ़थि यावत पर्यंत यौवन अंकुरित नहि होइन्ह । ओ तालपत्र प्रायः औखन धरि दड़िभंगा मे हैबे करत । परन्तु आब जौं ओ पंडित लोकनि आबि कऽ देखितथि त ठामहि चाउन्ह आबि जइतैन्ह ।

श्रोता लोकनि कें रस लैत देखि भोलबाबा बटुआसॅं पुनः सरौता बहार कैलन्हि। तखन कतरा करैत बजलाह-एक बेर त एहन शास्त्रार्थ उठल जे लाठिए चलि गेल। कोनो बरियात रहैक। ताहि ए 'कन्यादान' पर शास्त्रार्थ बजरि गेलैक। बरियातक दिससॅं एकटा दिग्गज पूर्वपक्ष उपस्थित कैलन्हि जे कथं नाम कन्यादानम्। 'दान'क अर्थ अपना वस्तुक स्वत्व त्यागि दोसराकें अर्पित करब। आब कहू जे कन्यादनसॅं पूर्व कन्यापर पिताक स्वत्व रहै छैन्ह वा नहि? यदि 'हॅं' त गारिए पड़ि जाइत छैन्ह, यदि 'नहि' त फेर दान करबाक अधिकार कोना हैतैन्ह? हौ बाबू, एहि पर जे घनघोर मचल से कहाँ धरि कहिऔक? कन्यापक्षमे खलबली उठि गेल जे ई गामक पानि उतारि लेलक। सरियाती कैं तखन उत्तर नहि फुरलैन्ह तखन बरियाती पर लाठी चलाबय लगलाह। कतेक कपार फूटल तकर ठेकान नहि। तखन एकटा नब्बे वर्षक सिद्धान्तगजकेसरी खरखरिया पर अनाओल गेलाह। हुनका चानीमे आधा ब्राह्मी तेल पचाओल गेल। एक भरि चोआ बला नसि हुनका नाकक दूनू पूरामे कोंचल गेल। चारि गोटा भरसाहा दऽ कऽ हुनका ठाढ कैलक। तखन ओ उत्तर पक्ष करय लगलाह-मानि लियऽ जे एकटा भूमि अछि। ताहि भूमि मे एकटा नारिकेर वृक्ष अछि। ताहि वृक्षमे फल लागल अछि। ताहि फलक भीतर मे जल अछि। आब मानि लियऽ जे भूमिवला भूमिदान करै छथि। तखन ओहि भूमिक संगहि ओहि जलक दान सेहो भऽ जाइत छैन्ह। बूझू जे तद्वते'''' तद्वते'''' तद्वते''''।

ई समाधान सुनितहि सनातन धर्मक जयजयकार होमय लागल।

श्रोता लोकनि चकित विस्मित ओ अवाक् छलाह। पं० जी बजलाह-वाह! केहन-केहन बेजोड़ पंडित ओहि समय मे होइत छलाह!

भोलबाबा बजलाह-पंडितक कोन कथा, हुनक खबास पर्यन्त तार्किक होइत छलैन्ह। पं० चूड़ामणि झा झोंटन खबास सॅं पस्त रहथि।

काशीनाथ पुछलथिन्ह-से कोना, बाबा?

भोलबाबा-एक दिन पं० जी कहलथिन्ह जे जो, वैद्य क ओहिठाम जा कऽ दवाइ लऽ आ। ओ पुछलकैन्ह-यदि वैद्यजी नहि होथि, तखन? पं० जी कहलथिन्ह-'अरे, हैबे करताह ओ।' ओ पुछलकैन्ह-यदि हुनका दवाइ नहि होइन्ह, तखन? ई कहलथिन्ह-हैबे करतैन्ह, जो। ओ फेर पुछलकैन्ह-यदि दवाइ नहि देथि तखन? ई कहलथिन्ह -देबे करथुन्ह, जो। तथापि ओ हारि नहि मानलकैन्ह। पुछलकैन्ह-यदि दवाइ फायदा नहि करय, तखन? ताहि पर पं० जी निरुत्तर भऽ गेलाह। जहाँ कोनो काज अढबथिन्ह कि एहिना तर्क करय लगैन्ह।

फोंचाइ पाठक बजलाह-ताहि दिनक शूद्रो एहन वाक्चतुर होइत छल!

भोलबाबा कहलथिन्ह-वाक्चतुर त तेहन होइ छल जे टेकुआ तेली पं० टेकनाथ शास्त्रीकें चुप्प कऽ देलकैन्ह।

मुकुन्द पुछलथिन्ह-से कोना, बाबा?

भोलबाबा कहलथिन्ह-हौ, टेकनाथ शास्त्री तेलीक ओहिठाम गेलाह। कोल्हूक बड़दक गरमे घंटी बाण्हल देखि पुछलथिन्ह-रौ, ई किऎक? ओ कहलकैन्ह-जखन ई चलैत रहै अछि त घंटी बजैत छैक, ताहि सॅं बूझि जाइत छिऎक जे काज कऽ रहल अछि। शास्त्रीजी शंका कैलथिन्ह और यदि ई ठाढे-ठाढ घंटी डोलबय लगौक, तखन? तेली तुरंत जवाब देलकैन्ह-सरकार, ई बड़द न्यायशास्त्र नहि पढने छैक।

यारकका बजलाह-कौखन झिटुकीओ सॅं घैल फूटि जाइ छैक।

भोलबाबा बजलाह-से त हैबे करैत छैक। हमर माम शास्त्रार्थमे दिग्विजय कैने छलाह। हुनकर प्रण छलैन्ह जे हमरा हरा देत तकर आजीवन चाकरी करबैक। परन्तु एहन संयोग जे एक दिन हमर मामिए हुनका परास्त कऽ देलथिन्ह।

श्रोतागण उत्सुकतापूर्वक पुछलथिन्ह- से कोना?

भोलबाबा कतरा मुँहमे दैत बजलाह-हमर माम सभ दिन कऽ विद्यार्थी कें पढबथिन्ह जे -यत्र-यत्र धूमः तत्र-तत्र वह्निः (जहाँ-जहाँ धूआँ होइ छैक तहाँ-तहाँ आगि होइ छैक)। नित्य भानस घरसॅं ई सुनैत-सुनैत हमर मामीक जी अकच्छ भऽ गेलैन्ह। ओ एक घैलमे धूआँ जमा कय सरबासॅं मूँह मूनि देलथिन्ह। जखन हमर माम दलानपर पढबैत रहथि-यत्र धूमः तत्र वह्निः, तखन ओ ओहीठाम घैल पटकि कऽ पुछलथिन्ह-अत्र धूमः कुत्र वह्नि(एहिठाम त धुआँ अछि आगि कहाँ अछि?) गुरु ओ विद्यार्थी अवाक् रहि गेलाह। किछुओ जबाब नहि फुरलैन्ह। तहियास हमर माम प्रतिज्ञानुसार दूनू साँझ चूल्हि फूकय लागि गेलाह।

मधुकान्त बजलाह-ताहि दिनक लोक केहन वचननिष्ठ होथि!

भोलबाबा वचननिष्ठ त तेहन होथि जे एक बेर सत्यदेव झा धोखा सॅं अपना बहु कें 'भौजी' कहि देलथिन्ह। तहियासॅं ओ आजीवन स्त्रीकैं पैर छूबि कऽ प्रणाम करैत रहि गेलाह।

काशीनाथ -अहा! धन्य छल ओहि समयक विचार।

भोलबाबा -विचार त तेहन छल जे नवहथवाली कनियाँ अगिलगी मे जरि कऽ मरि गेलीह, परञ्च कुल-लज्जाकें त्यागि घरसॅं बाहर नहि पड़ैलीह।

यारकका-वाह रे कुलकन्या!

भोलबाब -कुलकन्या त तेहन होइ छलीह जे बबुजन चौधरि भोजन करैत रहथि। हुनक भाभहु कोठीक पाछाँ नुका कऽ बैसल रहथिन्ह। ओहिठाम एकटा जुआएल गहुमन हुनका देह मे लपटि गेलैन्ह। परन्तु किऎक एक्को बेरि मुँह सॅं सिसकीओ बहरैतैन्ह! जा चौधरीजी भोजनक रसास्वादन कय अचाबक हेतु दलान पर गेलाह ता ओ निर्जीव भऽ चुकल छलीह।

पं० जी-अहा हा! एकर नाम मर्यादा।

भोलबाबा-मर्यादा त तेहन छल जे मणिपुरक रानी महफा मे चलि अबैत रहथि। धोखा सॅं कनेक रासे कनगुरिया आँगुर बाहर भऽ गेलैन्ह। ई देखितहि अंगरक्षक सिपाही खच्च दऽ तरुआरि सॅं ओतबा अंश काटि देलकैन्ह। जाहि आँगुर पर परपुरुषक दृष्टि पड़ि गेल, तकर पातिव्रत्य नष्ट भऽ गेल, से अंश शरीर मे रहिए कऽ की करत? जखन राजाकें ई समाचार ज्ञात भेलैन्ह त ओहि सिपाहीकें इनाम मे जागीर लिखि देलथिन्ह।

मुकुन्द बजलाह-अहा! ओ दिन आब फेरि आबि सकत?

भोलबाबा हुनका डॅंटैत कहलथिन्ह-चुप्प रहह। आब स्त्रीगण कुर्सी पर बैसय लागलि अछि। पुरुषक संग बैसि खाय लागलि अछि। घोड़ा पर चढय लागलि अछि। बन्दूक चलाबय लागलि अछि। कुदैत अछि, फनैत अछि, हेलैत अछि, नचैत अछि। केबल एक्केटा काज बाँकी रहि गेलैक अछि। पुरुषकें गर्भ कैनाइ। सेहो किछु दिनमे कइए देतैन्ह। जखन एतेक अतत्तह होमय लागल अछि त कोना भगवानकें देखल जाउन्ह! स्वाइत वर्षा नहि होइ अछि, स्वाइत अकाल पड़ै अछि, स्वाइत भूकंप होइ अछि! परन्तु आब हमरा जीबहिक कतेक दिन अछि?

ई कहैत भोलबाबा अपन रुइभरा मिरजइक ऊपर सलगा लपेटैत ऊठि बिदा भेलाह और मंड्ली बरखास्त भऽ गेल।।