लेखक : हरिमोहन झा

ओहि दिन भोज खा कऽ लोक फिरल चल अबैत रहय कि मकुनाही पोखरि लग वर्षा झहरय लगलैक। लोक पड़ा कऽ ब्रह्मथान तर आबि बैसल। मड़ैयामे बड़का सौंफ पसरल रहैक से लोक सॅं भरि गेल।

लंबोदर चौधरि बजलाह-इह! गर्मी सॅं मिजाज अक्कसक्क छल। आब जा कऽ ठंढा भेल।

दीर्घनारायण कहलथिन्ह-आब एही पुरबैयाक लहरा पर सभ टा मालदह पचि जाएत।

'ओतेक मालदह त लंबोदरकें एक्के लग्घीमे साफ भऽ जैतैन्ह' ई कहैत भोलबाबा सेहो ओहि गोष्ठी मे आबि सम्मिलित भेलाह।

भोलबाबा स्वर सुनितहि सभ केओ उल्लसित भऽ उठल।

'आउ बाबा, आउ बाबा' कहि सभलोक हुनका हेतु स्थान बनाबय लगलैन्ह।

भोलबाबा बीच मे सुभ्यस्त भऽ बैसि गेलाह। तखन बजलाह-लंबोदर खैबे की कैलन्हि अछि? बहुत त पचास टा आम । हमर पीसा खैला पिउलाक बाद सै मालदह देखि लेथिन्ह। हुनकर भोजनक ई हिसाब रहैन्ह जे-

           बीस  सोहारी  तरकारी संग
             दही - दूध संग तीस
         मधुर केर जौं लसफस पाबी
              तॅं   रे   चालीस ।
        

एही द्वारे ओ 'चालीस झा' कहबै छलाह।

भुटकुन बजलाह- बाप रे बाप! एहन खाधुर लोक!

भोलबाबा बटुआ सॅं सुपारी-सरौता बहार करैत बजलाह-बपहारि की तोड़ैत छह? सतलखा क ढोंढाइ पाठक तेहन रहथि जे एक बेर मकइक लाबा संग एक पसेरी गुड़ फाँकि गेलाह। हुनकर सिद्धान्त रहैन्ह जे-

        खस्सी छाँछ कटहर
        तीनू खाइ एकसर ।
        

कटहर, छागर ओ दहीक मटकूर हुनका सौंसे भेल तकैन्ह।

नबोनाथ बजलाह-धन्य रहथि। कहियो पेटो नहि फुलैन्ह?

भोलबाबा कतरा करैत बजलाह-कटहर सॅं अजीर्ण होइन्ह त एक घौर केरा खा लेथि। केराक अजीर्ण होइन्ह त ऊपर सॅं एक बट्टा घृत पीबि लेथि।

दीर्घनारायण बजलाह-ताहि दिनक हाड़ेकाट दोसर रहैक। आबक लोक की खाएत?

काशीनाथ कहलथिन्ह-से जुनि कहू, भाइ। अहूँ आइ एक पसेरी दही सॅं कम्म नहि ढाहने हैबैक।

झारखंडी बजलाह-दही छलैहो तेहने विलक्षण। एहन दही हम आइधरि नहि खैने छलहुँ।

भोलबाबा एक चुटकी कतरा मुँह मे दैत बजलाह-'साओन जनमलाह गीदड़, भादव आएल बाढि कहियो नहि देखल।' तों दही देखबे कैलह कहिया?

झारखंडी गोंगियाय लगलाह तथापि''''

भोलबाबा डॅंटैत कहलथिन्ह-तथापि की? दहीक परीक्षा दू तरहें होइ छैक। भीत पर फेकिऎक त सट्टलरहि जाय । मटकुर उनटा कऽ टाङि दिऎक त खसय नहि ।

मौजेलाल बजलाह - आब ने ओहन दूध भेटत ने ओहन पौरनाहार ।

भोलबाबा कतरा चिबबैत बजलाह - दही पौरैत छलीह हमर अजिया सासु । तेहन सक्कत जे हाथ सॅं नहि कटाइत छलैक । एक बेर ताइ (चङेरा) मे पौरि कऽ भार पठौलन्हि । से तेहन कट्ठिल जे ओहि मे सितुआ गड़ाओल गेलैक से टुटि गेलैक ।

अजगैबीनाथ बजलाह - अरौ तोरीक रौ तोरी !

भोलबाबा कहलथिन्ह - तों एतबे मे उजबुला गेलाह ! मारबाड़ मे हम जेहन देखल से देखितह त बुझितह ।

कमलाकान्त पुछलथिन्ह - से की भेलैक बाबा ?

भोलबाबा बजलाह - स्टेशन पर बोराक गेंट लागल रहैक । हम एकटा टोएलिऎक त बूझि पड़ल जेना गुड़क चेकी कसल होइक । तावत मालगाड़ीमे लादल हेतु कुली सभ पहुँचि गेलैक । पुछलिऎक त कहलक जे दही चलान भऽ रहल छै । हम पुछलिऎक जे ई बहार कोना कैल जैतैक ? त ओ बाजल जे छेनीसँ काटि कऽ ।

ई गप्प सुनि फेर किनको दहीक चर्चा करबाक साहस नहि पड़लैन्ह ।

थोड़ेक कालक बाद लंबोदर चौधरि बजलाह - अजुका भात बड़ विलक्षण छलैक । वेश गमकैत छलैक ।

भोलबाबा कहलथिन्ह - ई की गमकतैक ? चाउरक नमूना लाएल रही हम उज्जैन सॅं । जाहि तौनी मे बान्हि कऽ अनलिऎक से कए बेर धोबिघट्टा सॅं भऽ आएल, चिर्री चिर्री फाटि गेल तथापि ओकर सुगन्ध नहि गेलैक ।

काशीनाथ बजलाह - अहा ! ओकर भात की विलक्षण होइत हैतैक ?

भोलबाबा नोसि लैत कहलथिन्ह - राजा भोजक ओहिठाम जे भात रान्हल जाइन्ह तकरा सौरभ सॅं भनसीया बेहोश भऽ जाय । चाउरक धोएन गुलाब जल बनि जाइक और मांड़ जे पसाओल जाइक से श्रीखंड चन्दन भऽ जाइक ।

मौजेलाल बजलाह - हॅं हॅं । हमरो सासुर मे जे महुअकक खीर भेल रहय से तहिना गमकैत रहय ।

भोलबाबा हुनका रेबाड़ैत कहलथिन्ह - बुड़िबक देखलन्हि झौआ त बुझलन्हि जे यैह वृन्दावन थिकैक । हौ बूड़ि ! ओ चाउर गंधमादन पर्वत पर उपजैत छैक । केसरक कियारी मे । एक योजन धरि ओकर सुगन्ध पसरि जाइत छैक । हरिण चरैत अछि त ओकर नाभि मे कस्तुरी बनि जाइ छैक । ओ वस्तु एम्हर कहाँ पाबी ? तोरा सासुर मे केओ ओकर नामो नहि सुनने हैतौह ।

मौजेलाल सकदम्म भऽ गेलाह । तखन भोलबाबा बजलाह - महारानी द्रौपदी ओकरे खीर बनबैत छलीह । ओकर सौरभे सॅं सभक पेट भरि जाइत छलैक । एक चाउर सॅं बेसी केओ खा नहि सकैत छल । एही द्वारे द्रौपदीक भंडार कहियो नहि घटलैक । राजा नल ओहि चाउरक पोलाव बनबैत छलाह । ओकरा पुष्पोदन कहैत छलखिन्ह । ई सभ बुझबाक हो त गलपाक दर्पण देखह । संप्रति ओ पोथी नेपालक पुस्तकालय मे अछि ।

ताबत बेसी जोर सॅं झटक आबय लगलैक । यारकका कहलथिन्ह - सौफ कैं कनेक और अढ़मे घुसका लइ जैतहुँ त नीक होइत ।

सैह कैल गेल ।

लम्बोदर चौधरि गप्पक लड़ी कायम रखैत बजलाह - भोग त कऽ गेल पहिलका लोक सभ । आबक लोक कहाँ सॅं पाओत ?

भोलबाबा पुनः कतरा करैत कहय लगलथिन्ह - नबाब बाजिद अली शाहक दालि अशर्फीए लऽ कऽ छौंकल जाइक । एक कड़ाह घृत मे केवल एक टा कचौड़ी ओकरा हेतु छानल जाइक । बटेरक जे कबाब बनैक से तेहन जे एक गोली सॅं चारि टा हस्तिनीक दर्प दलन करय । एक बेर नबाबक एक खिल्ली पान कोनो गबैया कैं खैना गेलैक । से ओकरा देह मे ततेक खौंत फूकि देलकैक जे माघक राति मे रजाइ फेकि अङे फर्दमे जा कऽ सूतल, तथापि देहसँ पसेना फेँकि देलकैक । तखन पोखरिमे जा कऽ भरि गर्दन पानिमे ठाढ भय रति भरि मलार राग गबैत रहल । ताहि दिनक मसालामे एहन जोर रहैक ।

रतिकांत पुछलथिन्ह-तखन नबाब कें अपना कोना बरदाश्त होइन्ह?

भोलबाबा कहलथिन्ह-ताही द्वारे ने यौवन धऽ धऽ कऽ सीढी पर चढथि। लड़ाइयोमे जाथि त एक हाथ तरुआरिक मूठ पर रहैन्ह, दोसर चोलक मूठ पर। जखन अङरेज पकड़ि कऽ पुछलकैन्ह जे कोना मरय चाहैत छी त कहलथिन्ह जे नवयौवनाक वक्षस्थल तर पिचा कऽ। तखन कप्तान सोचलक जे हिनका सबसॅं भारी सजाय देल जाय ।

रसिकनंदन बजलाह-इह! ताहि दिनक नबाबी!

भोलबाबा कतरा मेंहियबैत कहलथिन्ह-नबाबक गप्प छोड़ह। एही ठाम कुसुमपुर डेउढीक बबुआन लोकनि जे बबुआनी कऽ गेल छथि से हमरा आँखिक देखल अछि। फूलबाबूक पानमे कहियो चून नहि पड़लैन्ह। दालिमे हरदि नहि देल गेलैन्ह। हुनक धोती खबास नहि खिचलकैन्ह। कहियो जल लऽ कऽ लघुशंका नहि कैलन्हि।

काशीनाथ बजलाह-एकर अर्थ नहि बुझलिऎक, बाबा!

भोलबाबा बजलाह-अर्थ यैह जे पानमे मोतीक बुकनी देल जाइन्ह। दालि मे केसर पड़ैन्ह। धोती फेरथि से पुनः धोबिएक घर जाइन्ह। लघुशंका गुलाबजल सॅं करथि।

दीर्घनारायण बजलाह एहन बबुआनी ठाठ!

भोलबाबा उत्साहित भयबाजय लगलाह हीराजी जे कुकुर पोसने रहथि तकरा खातिर विलायतसॅं मांसक पार्सल अबैक। मोतीबाबूक हाथीक माथमे सभ दिन चमेलिएक तेल लगैन्ह। लालबाबूक पैखानामे चंदनक पोचाड़ा पड़ैन्ह। जवाहर साहेब कैं जाड़ होइन्ह त रुपैयाक नोट जराकऽ पैर सेदथि।

अजगैबीनाथ बजलाह-बाप रे बाप ! ई सभ सुनि त किछु फुरितहि ने अछि।

भोलबाबा कहलथिन्ह-फुरतौह कोना? बिहारी बाबूक महफिलमे एकटा बैश्या आएल रहय से अट्ठारह हजारक छक पहिरने रहय। रतनपुर डेउढीक बहुआसिन साहिबा जे चट्टी पहिरथि ताहिमे एक एक लाखक नगीना जड़ल रहैन्ह। एक बेर कोनो खबासिन पर खिसिया कऽ एक पवाइ फेकि देलथिन्ह। ओकरे बदौलति ओ एकटा चटकल खोलि लेलक।

यारकका बजलाह-ताहि दिनक ऎश्वर्ये दोसर रहैक।

भोलबाबा बजलाह-ऎश्वर्य त तेहन रहैक जे एक बेर छीतन बाबूक चाउर फटकल गेलैन्ह त दस हजार अन सूड़ा बहरैलैन्ह। फूदनबाबूकें एकटा दरबारी कहलकैन्ह- सरकार! ई डबरा भरबा दितिऎक। दोसर गोटे कहलकैन्ह-सरकार चाहथि त रुपैया सॅं भरबा सकै छथि। फूदनबाबू कहलथिन्ह-'ई कोन भारी बात? कोन ईसवीक रुपैया सॅं भरबा दिऔह? लगले पचास बखारी विक्टोरिया वला रुपया ओहिमे उझिलबा देलथिन्ह। आब के एना कऽ सकैत अछि?

श्रोता लोकनि चकित भय गप्पक रस लैत छलाह। तावत् कत्तहु-कत्तहु चार चूबय लागि गेलैक। यारकका बजलाह-एहि बेर छड़ाओल नहि गेलैक। तैं ठाम ठाम चूबि रहल अछि। जे गोटा भिजैत होइ से छाता लगा लियऽ।

दू एक गोटा छाता तानय लगलाह।

भोलबाबा बजलाह-तोरा लोकनि एतबे पानिसॅं घबरा गेलाह? ई त गुलाबजलक फोहारा बूझक चाही। जौं तोरा लोकनि नवासी सालक वर्षा देखितह त होशे उड़ि जइतौह।

नबोनाथ पुछलथिन्ह-केहन वर्षा भेल रहैक, बाबा ?

भोलबाबा नोसि लैत कहय लगलथिन्ह-बाइस दिन बाइस राति एक सूरसॅं मुसलधार बरसैत रहि गेलैक। संपूर्ण गाम डुबि गेलैक। तेहन बाढि ऎलैक जे गाछ वृक्ष सभ जलमग्न भऽ गेल। एहीसॅं बूझि जाह जे एहि पोखरिक भीड़ पर जे बड़क गाछ छैक तकरा ऊपर नाव चलैत रहय। घर-द्वार, चार बखारी गोठुल्ला भुसखाड़-सभ कहाँ बहा कऽ लऽ गेलैक तकर पता नहि। जखन कइएक मास बाद लोक अपन अपन घर जोहय आएल त केवल कादोक ढेरी छोड़ि और किछु नहि भेटलैक।

श्रोता सभकें चकित देखि भोलबाबा पुनः बजलाह-ताहूसॅं बेसी आश्चर्य देखल उनासी सालमे। यैह आषाढ मास रहैक। हम भुतही गाछीमे जामुन बिछैत रही। तावत् दक्षिण भरसॅं घटा उठलैक। हौ बाबू, की कहियौह? एक्के बेर जे धप्प धप्प कबइ माछक वर्षा होमय लागल से थोड़बे कालमे भरि ठेहुन पथार लागि गेलैक। चारू कात उजाहि चढि गेलैक। हमहुँ एक मोटा जिबैत कबइ बीछि कऽ नेने ऎलहुँ। एक एक कबइ सॅं एक एक बीतक अंडा बहराएल।

श्रोता सभक जी चुटपुटाय लगलैन्ह।

ताबत् मटर सन सन बङौरी खसय लागल। ताहि दिस श्रोता लोकनिक ध्यान जाइत देखि भोलबाबा कहलथिन्ह-अरे! ई की देखैत छह! बङौरी त खसय रहय छेहत्तरि सालमे। हौ बाबू, ओहि बेर जे पाथर पड़ल से किछु कहबा सुनबा योग्य नहि। पहिने पौआ सन सन, तखन सेर सन सन, तत्पश्चात अढैया सन सन पड़ापड़ बरसय लागल से खेत-पथार वन-बाघ सभ पाटि देलक। किऎक गाममे एको टा खपड़ा साबित रहत! कतेक के माथ कपार फुटलैक तकर ठेकान नहि। गाछ वृक्षक कोन कथा जे पोखरिक माछ पर्यन्त भुर्त्ता भुर्त्ता भऽ गेल।

श्रोतागण कें साकांक्ष देखि भोलबाबा उत्साह बढि गेलैन्ह। ओ एक चुटकी नोसि नाकक पूरामे कोंचैत बजलाह-एकटा नब्बे ईसवीक गप्प कहैत छिऔह। ई दक्षिण भर जे मैदान देखैत छहौक ताही दऽ कऽ एकटा बरियात जाइत रहैक। तावत् हौ बाबू! तेहन जोर बिहाड़ि उठलैक जे सभ बरियातकें उधिया कऽ फेंकि देलकैक। कनिया समेत महफा जे उड़ियाय लागल से पचास हाथ ऊपर चलि गेल। अन्तमे जाइत जाइत ओहि बड़क फुनगी पर जा कऽ ओ मॅंहफा अँटकल। कनियाँ हुबगरि छलि। लपकि कऽ बड़क डारि पकड़ि लेलक। परन्तु वरक खरखरियाकें उधिया कऽ कहाँ लऽ गेलैक तकर पता नहिए लहलैक।

रतिकान्त पुछलथिन्ह-तखन ओहि कन्याक की भेल हैतैन्ह?

रसिकनन्दन पुछलथिन्ह-से किऎक? अहाँक जी कचटैत अछि?

भोलबाबा किछु मन पारैत बजलाह-हॅं। ओही सालक त बात छैक। एक दिन तेहन बवंडर उठलैक जे हमरा बेढीक खोप कें उधिया कऽ खेतमे लऽ गेल। ओहिठाम एकटा कुटुम्ब नदी फिरैत रहथि। ओ खोप नचैत-नचैत हुनके ऊपर जा कऽ छापि लेलकैन्ह। बेचारे बीचमे पड़ि गेलाह। परन्तु बलिहारी कही ताहि दिनक साहस कें। ओ एक हाथें खोंप के अलगा कऽ टोप जकाँ पहिरि लेलन्हि और दोसरा हाथें लोटा नेने घर पहुँचि गेलाह।

लम्बोदर चौधरि कहलथिन्ह-ताहि दिनक आकारे प्रकार दोसर रहैक।

भोलबाबा बजलाह-से त रहबे करैक। हमर बिसहथ वला पीसा खाट पर ठाढ होथि त बड़ेरीमे माथ ठेकि जाइन्ह। बोचबाबूक कनगुरिया आँगुर जेहन मोट रहैन्ह तेहन आब औंठो नहि होइ छैक। थोल्हाइ मामा तेहन जबर्दस्त रहथि जे अपना कपार पर बेल फोड़ैत छलाह। हुनका कहियो चाकू सरौताक काज नहि पड़लैन्ह । सुपारीकें दाँतसॅं भाङि लेथि। नारियरकें तरहत्थी सॅं दबा कऽ फोड़ि लेथि। एक बेर कछुआकें एक लात मारलथिन्ह से ओकर पीठ टूटि कऽ दू फाँक भऽ गेलैक।

अजगैबीनाथ बजलाह-अलबत्त निठ्ठाह ओ लोकनि रहथि।

भोलबाबा कहलथिन्ह-हौ, निठ्ठाह त तेहन होइ छलाह जे एक बेर दलमर्दन सिंह पर एकटा हथिनी छुटलैन्ह। हिनका पित्त उठलैन्ह जे ई मौगी भऽ कऽ शान देखबैये। तेहन मुक्का कनपट्ठी पर लगौलथिन्ह जे ओकरा ठामहि लिद्दी खसि पड़लैक।

झारखंडी बजलाह -वाह रे बहादुर! मर्द हो त एहन।

भोलबाबा और उत्साहित होइत कहलथिन्ह-एक बेर पशुपति बाबा कें कोशीमे बोच पकड़ि लेलकैन्ह। ओ ओकरा तौनीसॅं बान्हि कऽ घिसियौने घर नेने ऎलाह। आब एहन पुरुषार्थ ककरौ हेतैक?

दीर्घनारायण बजलाह-अहा! ताहि दिनक की हाड़ काट छलैक!

पुरान हड्डीक प्रशंसा सॅं भोलबाबा कें जोश आबि गेलैन्ह। दुन्नू पूरामे नोसि सुड़कैत बजलाह-हमरा पुरुषामे एकटा छलाह मेघनाद बाबा। ओ एक बेर लड़ाइ मे तरुआरि भाँजय लगलाह त एक दिससॅं सत्रह गोटा कें काटि कऽ खसा देलन्हि। तावत् हिनका पाछासॅं केओ तेहन छव मारलकैन्ह जे घेंट कटि कऽ नीचा खसि पड़लैन्ह। परन्तु तथापि ई पहिलुके रोष पर आगाँ बढैत गेलाह और दुन्नू हाथें तरुआरि भजैत रहलाह। जखन और चारि गोटा कें मारि कऽ खसा देलन्हि तखन जा कऽ होश भेलैन्ह जे गर्दनि माथ पर नहि अछि!

श्रोतागण विस्मय सॅं अवाक् रहि गेलाह। भोलबाबा कहलथिन्ह हौ बाबू, बुनछेक भऽ गेलैक। आब चलै चलह।

भोलबाबा सुपारीक बटुआ डाँड़मे खोंसि लेलन्हि और छड़ी छाता लय ठाढ भऽ गेलाह।

सभ लोक अपना अपना घरक बाट धैलक।