लेखक : हरिमोहन झा

पहिल दृश्य

[स्थान: स्टेशनक प्लैटफार्म, एक प्रौढ़ा महिला सेकेंड क्लासक जनानी डब्बामे चढय चाहै छथि, ओम्हर रेलक भीतर सॅं एक नवयुवती दरवाजा छेकि कऽ ठाढि भऽ जाइ छथिन्ह, प्रौढाक पाछाँ कुली माँथ पर पेटी बिछौन नेने थक्कमक्क ठाढ अछि। तावत् घंटी पड़ि जाइ छैक। ]

नवयुवती-एहिमे जगह नहि छैक। आगाँ बढू।

प्रौढा आँगा कहाँ बढू? गाड़ी छूटि रहल छैक। (कुली सॅं) सामान भीतर घर। [कुली फुर्त्तीसॅं भीतर सामान राखि दैत छैन्ह। महिला कोनहुना चढि जाइत छथि। तावत् गाड़ी चलय लगैत अछि। आब प्रौढा ओ तरुणीमे बाझि जाइत छैन्ह। ]

प्रौढा-कनेक घुसुकि कऽ बैसू।

तरुणी-हम कनेको नहि टसकब।

प्रौ०-त अहाँ एना पसरि कऽ किऎक बैसल छी?

त०- हॅं, हम चारि धूरमे पसरि कऽ बैसब। अहाँ के रोकनाहरि? गे माय! तोंहू ओहिना ओङठल रह।

वृद्धा माय-गय! कनेक हिनको बैसय दहून ने। कनेक कसमसे हैतौक त की हैतैक?

त०-से त नहि हैतैन्ह। हम पहिनेहि मना कऽ देने छलिऎन्ह। आब ठाढे-ठाढे जैतीह।

प्रौ०-से कि हमरा टिकट नहि अछि? ई गाड़ी किछु अहींक खरीदल त नहि अछि।

त०-एहि बर्थ पर छौ गोटाक सीट छैक और छौ गोटा पहिनहि सॅं बैसल अछि। आब एकटा और अहा कें बैसा कऽ हम अपन देह नहि छिलबाएब।

प्रौ०-एतबा सुकमारि छलहुँ त रिजर्व किऎक ने करबा लेलहु!

त०-से पुछयवाली अहाँ के? हम अहाँकें बैसय नहि देब।

प्रौ०-अहाँक चश्मा-घड़ी देखने त लोक नहि डेरा जाएत।

त०-तखन अहूँक मटरदाना ओ बघमूहाँ देखि कऽ लोक जगह नहि दऽ देत। बड्ड धनिकाइन छी त अप्पन घर।

वृ०-गय! झगड़ा किऎक करइ छैं? कनेक बैसय देबहुन त की हैतौक?

त०-ई त हर्गिज ने भऽ सकै छैन्ह। ई एहि पर बैसि नहि सकै छथि।

प्रौ०-अहाँ हमरा बैसय नहि देब? तखन हम देखै छी, अहाँ कोना रोकैत छी?

त०-तखन हमहूँ देखै छी जे अहाँ कोना बैसैत छी?

प्रौ०-(बैसैत)-त लियऽ। हम बैसि गेलहुँ।

त०-(तमकि कऽ ठेलैत) खबरदार! अहाँ हमरा कोरमे बैसब?

प्रौ०-(पुनः बैसैत)-हम अहाँक कोरमे किऎक बैसब? अहीं हमरा कोरमे बैसय योग्य छी।

त०-शट्प! अहाँ जनै छी जे हम के छी?

प्रौ०-केओ रहू। बड़ चकमक्की अछि त अपना नोकर पर झाड़ब। दू अक्षर अंग्रेजी बाजय आबि गेल त लोककें लोक कऽ नहि बुझैत छिऎक?

त०-तखन हम अंगरेजी सॅं भेंट करा दियऽ। उठू एहि ठाम सॅं। गेट्प। (हाथ धऽ कऽ उठाबय लगैत छथिन्ह)।

प्रौ०-अहाँ एक बापक बेटी होइ त उठाउ हमरा एहि ठाम सॅं।

(दूनूमे हाथापाइ भऽ रहल छैन्ह-कृशांगी तरुणी बारंबार हटैबाक यत्न करै छथिन्ह, परन्तु स्थूलकाय प्रौढा जबर्दस्ती बैसलि रहि जाइ छथिन्ह। एही संघर्षमे प्रौढाक मटरदाना टूटि जाइ छैन्ह और तरुणीक कंचुकी मसकि जाइ छैन्ह। दूनू पित्तें हाँफि रहल छथि)।

[एकाएक तरुणीक वृद्धा माय बेटीक पक्ष लय लड़ाइ मे सम्मिलित होइ छथि। ]

वृ०-(प्रौढ सॅं) अयॅं गय्! धमधुसरी। तों हमरा बेटी सॅं मल्लयुद्ध करबैं? मारि लोटा कें कपार फोड़ि देबौक।

[ई कहैत बूढ़ी लोटा लऽ कऽ प्रौढा पर छुटैत छथिन्ह । सभ लोक 'हाँ हाँ' करैत अछि । प्रौढा उठि कऽ ठाढ़ि भऽ जाइ छथि एक कात मुँह कऽ कऽ खिड़की पर भरसाहा देने रहै छथि । तरुणी दोसरा कात मुँह फेरने बैसलि छथि । गाड़ी स्पीड मे जा रहल अछि ।]

दोसर दृश्य

[स्थान - पहलेजा घाटक प्लेटफार्म - गाड़ी ठाढ़ अछि ]

(एक युवकक प्रवेश)

युवक - माय, उतर ने । घाट आबि गेलौ ।

प्रौ० - हॅं, कुली कै कहऽ सामान उतारत ।

(कुलीक संग दुहू गोटाक प्रस्थान)

प्रौ० - हौ बाबू, तों तेहन जनानी डब्बा मे हमरा चढौलह जे सभ दशा भऽ गेल ।

यु० - से की , माय ?

प्रौ० - हौ, तेहन हड़ाशंखनी मौगी एकटा ओहि मे छल जे किन्नहुँ चढहि नहि दैत छल । आखिर नहिए बैसय देलक ।

युवक - कोनो हुक्का वाली देहाती मौगी छल हेतौक । कोनो-कोनो भारी बज्जाति होइ अछि ।

प्रौ० - नहि, से त पढ़लि-लिखलि छौड़ी छलि । गोर-नार । रेशमी नुआ मे दकदक करैक । मुदा आखिरी बदमाश । बुट्टी-बुट्टी चमकैत छलैक । लागलि हमरा पर ऎस-तैस झाड़य । अंगरेजी जनै छलि ।

यु० - कोनो-कोनो अंगरेजी बाली नंबरी शैतान होइ अछि । लेकिन ओकर बनरघुड़की सॅं नहि डेराइ । ऎं ! ई मटरदाना कोना टुटि गेलौक ?

प्रौ० - अरे ! वैह झिक्कातीरी करय लागलि । ताहि मे टुटि गेल ।

यु० - तखन तोंहू दू धौल ऊपर सॅं किऎक ने लगौलैं ?

प्रौ० - से त हमहूँ दू चारि घुरमेच तेहन देलिऎन्ह जे छौड़ौ बुझनहि होइतीह । ओ बकबका कऽ हमर खोपा धऽ लेलक । तखन हमहूँ कसि कऽ पकड़लहुँ चोटी । जौं बुड़िया बीचमे नहि पड़ैत त हम छौड़ौकें पानि पिया कऽ छोड़ोतहुँ। सभटा अङरेजी घुमरि जइतैन्ह। मुदा वृद्धाक आगाँ हम की कहितहुँ। चुपचाप उठि गेलहुँ।

यु०-(रोषा कय) कहाँ अछि ओ छौंड़ी ? कनेक देखिऎक जे कतेक शान छैक?

प्रौ०-नहि, नहि। जाय दहौक। जे भऽ गेलैक से भऽ गेलैक। रेलमे एहिना भऽ जाइ छैक।

तेसर दृश्य

[स्थान : घाटक प्लैटफार्म-जनानी डब्बाक सोझाँ एक युवकक प्रवेश ]

युवक-नीलम! आब उतरै किऎक ने छह?

नीलम-उतरै छी, भैया!(अटैची हाथमे नेने, चोटी ठीक करैत, चश्मा उतारि कऽ पोछैत इह! आइ गाड़ीमे तेहन महाभारत मचि गेल जे एखन धरि हकमि रहल छी। )

यु०-से की?

नी०-हाजीपुरमे एकटा तेहन बदमाश मौगी चढलि जे सीट खातिर हमरासॅं झोंटाझोंटी करय लागलि। देखू ने, हमर केश पर्यन्त नोचि नेने अछि।

यु०-हमरा किऎक ने सोर कैलह?

नी०-तावत् गाड़ी चलय लागि गेल रहैक।

यु०-तखन चेन खीचि लितह।

नी०-तकर काजे नेहि पड़ल। ओकरा गरेक चेन खिचलासॅं काज चलि गेल।

यु०-तोरा त ने किछु कैलकौह?

नी०-मोटकी भारी गब्बर छल। तेहन हाथाबाँहि कैलक जे हमर रेशमी कपड़ा मसका देलक।

यु०-लगौंलें किऎक ने दू धाप?

नी०-से त गर्दनि ओ छातीमे तेहन निछोरने छिऎन्ह जे मौगोके एखन धरि भकभकाइते हैतैन्ह।

वृद्धा माय-की? ओहि छुच्छी दऽ कहै छै? हौ, ओ धोंछी त तेना एकर गर्दनि दबोचने छलैक जे नेना चरोबरो भऽ गेलि। जखन हम लोटा लऽ कऽ छुटलहुँ तखन मौगी एकर जान छोड़लकैक।

यु०-(आस्तीन चढबैत) कहाँ गेलि ओ? कनेक देखा त दे।

वृ०-की करबहौक? जाय दैह। गाड़ीमे एहिना भऽ जाइ छैक। और बूझह त लाढल एही दाइक छैन्ह। कनेक बैसहि दितऽथिन्ह त की होइतैन्ह? से ई बिढनी जकाँ नाचय लगलीह।

नी०-हमरा त ओकरा पर तेहन पित अछि जे कतहु पबियैक त मुँह नोचि लिऎक।

वृ०-ओकरा सॅं नहि जितबहीक। तोरा सॅं दोबर छौक। ओकरा सॅं बाँचि कऽ रहिहें। कतहु फेर गंगाकात मुठभेर नहि भऽ जाउक। ओहो ग्रहण-स्नान करय आइलि हैत।

नी०-माय! से नहि बुझ। हम एन० सी० सी० वाली लड़की छी। खुलता मैदानमे लड़बाक हाल जनै छी। आब हमरासॅं लगतीह त सभ मोटाइ पचका देबैन्ह।

चारिम दृश्य

[स्थान : गंगा कात। युवक, वृद्धा ओ तरुणीक प्रवेश ]

युवक-माय, जुलुम भऽ गेलौक।

वृ०-से की? बौआ!

यु०-आब किछु नहि पूछ। एतय ऎनाइ व्यर्थ भऽ गेलौक। आब सोझे फिरि चल।

वृ०-हौ बाबू, कनेक बुझा कऽ कहह।

यु०-तखन सुनि लियऽ। जाहि मौगीकें अहाँ सभ मिलि कऽ मारलिऎक अछि, सैह मिसरक माय छथिन्ह।

वृ०-गे माय गे माय! आब कोन उपाय हैतैक?

यु०-ई त पहिनहि बिचारबाक छल! जखन मिसरक माय कें कन्या निरीक्षण हेतु बजौने छलिऎन्ह तखन त ई ध्यान रहैत जे कोनो अनचिन्हारि स्त्रीसॅं झगड़ा नहि बेसाही।

वृ०-हे दैव! मिसरक माय छथिन्ह! आब कोन उपाय हैतैक?

यु०-आब उपाय की हैतैक? जखन ओ देखतीह जे यैह मरतरिया छौड़ी कनियाँ छैक और वर बुझताह जे यैह कनियाँ हमरा माय सॅं एतेक झोंटाझोटी कैलक....

वृ०-(कनैत-कलपैत) हे दैव! कोन यात्रा मे चललहुँ से नहि जानि।

नी०-तों एना कनै छैं? संसारमे दोसर घर-वर नहि भेटतौक की? जो, हम विवाहे नहि करब।

वृ०-सुनह एकर बात। गय् छौंड़ी, बेसी लुबलुब नहि कर। तोरा सन सुलच्छनि जाहि घरमे''''

यु०-माय! एकरे किऎक फज्झति करैत छहींक? तोंहू त लोटा लऽ कऽ कपार फोड़य लगलहीक। पहिनहि समधि-मिलान कऽ लेलैं।

वृ०-हौ, कर्म बिगड़ै छैक त एहिना होइ छैक। कतेक जोगार सॅं त ई कथा पटल और जकरे नेहोरा-मिनती करय आइलि छलहुँ तकरे लोह दागि देलिऎक। आब कोन मुँह देखैबैक?

यु०-अन्हारमे कि तोरा सभकें नीक जकाँ देखने हैतौक? भऽ सकै अछि जे नहियो चिन्हौक।

वृ०-भला कहह त। ओतेक रासे गुत्थीमगुत्थी भेलैक, और मुँह नहि देखने हैत! कीदन कहै छैक जे सभटा परियोग भऽ गेल, और बहुरिया पद धैले अछि!

यु०-तखन त एतबा दिनक कैल धैल सभ टा व्यर्थ!

वृ०-बाबू, बहिन कें और अङरेजी पढाउ। दू-अक्षर और पढि लेत तखन आब दोसरा बेर वर कें टीक पकड़ि गाड़ीसॅं ठेलि देत।

नी०-माय, तों एना नहि बाज। हम कि जानि कय ओना कैलिऎक?

यु०-हमरो ध्यान पर नहि चढल जे मिसर पटोरी लाइन सॅं आबि कऽ एहि ट्रेनमे चढि सकैत छथि। जौं गाड़ीसॅं उतरि कऽ देखितिऎन्ह त ई अनर्थ नहि होइत।

वृ०-एहन आइ धरि कत्तहु नहि भेल हैत। हौ बाबू, हमरा त भोकार पारिकऽ कनबाक मन करै अछि।

यु०-आब कनने कोनो फल नहि। ओ लोकनि यावत् आबथि ताहि सॅं पहिनहि डेरा-डंडा कूच कय बिदा भऽ जाइ। ई बात छाँपले-तोपल रहि जाय से नीक। मोटा-चोटा सरियाबह।

पञ्चम दृश्य

[मधुकान्त एवं हुनक मायक प्रवेश ]

मधुकान्त-माय! गंगामाइ बड्ड रक्ष रखलन्हि।

माय-से की?

म०-वैह तिलबिखनी छौड़ी अहाँक घरमे कनियाँ बनि कऽ अबैत। से भगवान पहिनहि परिचय करा देलन्हि।

मा०-आ गे दाऽऽई! तोरा कोना ज्ञात भेलौह?

म०-काशीनाथ कें हम फराके सॅं देखलिऎन्ह। संगमे एकटा चश्मावाली छौंड़ी, और पाछाँ-पाछाँ बूढि माय। वैह दूनू तोहर ओतेक दुर्दशा कैलकौक।

मा०-हौ, सत्ये कहै छह।

म०-हम अपना आँखिसॅं देखलिऎक अछि। जहिना तों कहै छें तहिना सभटा हुलिया मिलैत छैक।

मा०-हमरा विश्वास नहि होइत अछि। भऽ सकै अछि ओहने कोनो दोसर होइक।

म०-बेस, तखन अपना आँखि सॅं देखि ले। वैह काशीनाथक पाछाँ-पाछाँ स्टेशन दिस जा रहल छौक।

मा०-त हौ! सत्ते। वैह छैक। आब की करक चाही?

क०-करब की? फिरि चलू।(कुली सॅं) हौ, सामान उठाबह।

मा०-हे भगवान्! हम कतेक उमग सॅं आएल छलहुँ। एना बैरंग वापस जैबाक मन नहि करैत अछि।

म०-तखन कि आब ओकरा हाथसॅं मारि खैबाक मन करैत अछि?

मा०-हौ, जानि कऽ त नहिए कैने हैत। ओ सभ त अपने लाजे मरल जाइत हैत। रेलक झगड़ा खढक धधरा थीक।

क०-ई सभ किच्छु नहि। आब एको मिनट एहिठाम ठहरबाक प्रयोजन नहि। घर जा कऽ हम काशीनाथ कें सब टा बात लिखि देबैन्ह।

(माय कें गाड़ी मे बैसबैत छथि)

[ओम्हर सॅं काशीनाथ, नीलम ओ हुनक माय सेहो दोसरा दरबाजा सॅं ओही डब्बामे चढैत छथि। दूहू दल एक दोसरा कें देखि अवाक् भऽ जाइ छथि। तरुणी एक दिस ताकय लगै छथि, प्रौढा दोसरा दिस। वृद्धा कौखन एम्हर तकै छथि, कौखन ओम्हर। मुँह सॅं कोनो शब्द नहि बहराइ छैन्ह। मधुकान्त एहि मौन कें भंग करै छथि। ]

मधुकान्त (काशीनाथ सॅं)-अहाँ हमरा माय कें एहि तरहें बेइज्जत करबाक हेतु बजौने छलिऎन्ह?

काशीनाथ (अप्रतिभ होइत) -अनजान मे गलती भऽ गेलैक। हम सभ एहि हेतु परम लज्जित छी ।

म०-केवल 'हम' कहू । 'हम सभ' किएक कहै छिऎक ?

वृद्धा-(प्रौढा लग आबि)-तकन हमरो अपराध माफ हो । हम नहि चीन्हल ।

म०-(पौढा सँ)माय ! जे असली कसूरी छथुन्ह से तोरा सँ माफी नहि मँगथुन्ह । हमरा त डर होइ अछि जे फेर कतहु बाझि ने जाउ । चल दोसरा डब्बामे ।

तरुणी (वृद्धा सँ )-माय! चल, हमहीं सभ दोसरा डब्बामे चली । एहिमे भरि बाट कटाउझ होइत रहतौक ।

वृ०-(तरुणी सँ)-चुप्प अलगटेंटी । ई कथा त भङठबे कैलौ, आब दोसरो ठाम सुनतौक त हड़कि जैतौक । आब रह भरि जन्म कुमारि !

तरुणी (तमकि कय )-माय !कुमारि रहब पाप नहि छैक । किन्तु अपना केँ हीन कऽ कऽ बुझनाइ पाप छैक । हम अपना अधिकार खातिर लड़लहुँ त कोन अन्याय कैलहुँ ? दूनू दिस सँ झगड़ा भेल-सद्धी बद्धी भऽ गेलैक-बात खतम ।

तखन आब हमहीं सभ किऎ माफी माँगू? एहि खातिर विवाह होए चाहे नहि होए!

वृ०-(प्रौढा कें)-की कहै छी? आइकाल्हुक बात देखि किछु फुरितहि ने अछि। आब समधिन कहबाक मुँह त नहिए रहल। हम अपना बेटीक दिससॅं माफी मॅंगैत छी।

[एकाएक प्रौढाक नेत्रमे एक दोसर प्रकारक चमक आबि जाइ छैन्ह। जेना कोनो दिव्यज्योति आबि गेल होइन्ह। ]

प्रौढा(बूढी सॅं)-परन्तु हमरा त सिहंता होइ अछि जे ई हमरा समधिन कहथि।

बूढी(आश्चर्य सॅं)-ऎं!

प्रौढा-हॅं। हमरो एकटा एहने तेजगरि कन्या रहय। जिबैत रहैत त एतबे टा भेलि रहैत। हमरा एहि कन्याक आँखिमे ओही प्रतिबिम्ब देखाइ पड़ै अछि। ई बेटी हमरा दऽ दियऽ।

म०-माय! तों की बजैत छें?

प्रौ०-बौआ, हम ठीक कहै छिऔह। एहन तेजस्विनी बेटी हमरा घरमे आबि जाएत त बूझब जे साक्षात् दुर्गा आबि गेलीह।

त०-(तमकि कय) अहाँके एना व्यंग्य द्वारा हमरा अपमानित करबाक कोन अधिकार अछि?

प्रौ०-सासुवला अधिकार। अहाँ बैसबाक हेतु ओतेक झगड़ा कैने रही। आब लियऽ। हम अपने कोरामे अहाँ कें बैसा लैत छी।

(ओ तरुणी कें भरि पाँज पकड़ि अपना कोरमे बैसा लैत छथिन्ह। तरुणी फफकि-फफकि कानय लगैत छथि)।

बूढी-धन्य भगवान! अहाँ बड्ड पैघ छी।

म०-माय!

प्रौ०-हॅं, बौआ! हमरा कनिया पसिन्न अछि। बड्ड भाग्य सॅं अहाँ कें एहन रत्न भेटि गेल अछि।

म०-परन्तु....

प्रौ०-परन्तु-फरन्तु किछु नहि। एहने वीरांगना पुतहु हमरा चाही।

म०-ई कोन चक्र घूमि गेल?

प्रौ०-भगवानक चक्र।

त०-माँ, हमर अपराध माफ करू।

म०-आब जाकऽ हमरा संतोष भेल।

बूढी-धन्य भगवान्! धन्य भगवती! हमरा भरोस नहि छल। भगवान एहिना सभक बिगड़ल बनबथुन्ह। समधिन! हमरा मन होइ अछि जे अहाँक मुँह अमृत सॅं भरि दी। हमर आशीर्वादी लियऽ।

(ई कहैत ओ साजी सॅं लड्डू बहार कय प्रौढाक मुँहमे धऽ दैत छथिन्ह। प्रौढा सेहो अपना टिफिनकेरियर मे सॅं रसगुल्ला बहार करैत छथि।)

प्रौढा(तरुणीक मुँहमे रसगुल्ला दैत)-की गै? आब त ने हमरा सॅं झगड़ा करबें? जौं झगड़ा करबें त ई ठोर मीड़ि लेबौक। (ई कहैत तरुणीक ठोर सें चूमि लैत छथिन्ह। तरुणी मुसकुरा कऽ रहि जाइत छथि)।

[गाड़ी सीटी दैत बिदा भऽ जाइत अछि]।