लेखक : हरिमोहन झा

मकुनाही पोखरिपर लूटन मिसर वैद्यकेँ मुँह धोइत देखि काशीनाथ कहलथिन्ह- वैद्यजी, एकटा नव गप्प सुनलिऎक अछि?

वैद्यजी साकांक्ष होइत पुछलथिन्ह- की? कोन बात भेलैक अछि?

काशीनाथ बजलाह- अपना इलाकामे एकटा ग्रामसेविका आएल अछि।

वैद्यजी पुछलथिन्ह- 'ग्रामसेविका' कऽ की अर्थ? कि ओ सम्पूर्ण गामक पैर दबाओति?

काशीनाथ- ओ घर-घर घूमिकऽ स्त्रीगणकेँ शिक्षा देति।

वैद्यजी -की शिक्षा देति?

काशीनाथ-यैह जे पर्दा तोड़िकऽ सभ काज करै जाइ।

वैद्यजी दातमनिक जिभिया फेकैत बजलाह- आब जे-जे ने हो!

फूदन चौधरी घाटपर बैसल लोटा मॅंजैत रहथि। ई गप्प सुनि बजलाह- ओकर वयस की हैतैक?

काशीनाथ ठिकियबैत कहलथिन्ह- यैह करीब अट्ठारह उन्नैस।

चौ०-विवाहिता अछि कि कुमारि?

का०- देखबामे त कुमारिए जकाँ लगैत अछि।

चौ०- तखन ओ अनका की सिखौतैक? नतिनी सिखाबय बुढ दादीकेँ

का०- चौधरीजी, से नहि कहिऔक। ओ बहुत पढलि छैक। तैं सरकार एहि काजपर ओकरा बहाल कैने छैक।

चौधरीजी कुरुड़ करैत बजलाह- हौ, तों सरकारेकेँ की बुझैत छह? अनकर बहु-बेटीकेँ नचाकऽ देखबामे बड़ मन लगैत छैक। पतिव्रतासॅं ओकरा कोन काज ?

तावत् कानपर जनौ चढौने पहुँचि गेलाह पंडितजी। बजलाह-एहि युगमे भ्रष्टक उदय छैक। जे स्वयं भ्रष्टा रहैत अछि से सभकेँ अपने सन बनाबय चाहैत अछि। ओ आबि कऽ सौंसे गामक स्त्रीगणकेँ दूरि कय छोड़ि देत। तखन कि एकोटा बेटी-पुतोहु कथा मानत? ओकरा 'ग्राम सेविका' नहि 'ग्राम-शोधिका' बुझू।

बौकू बाबू एतीकाल धरि ढोंढ़ी पर्यन्त जलमे ठाढ भेल 'अधमर्षण सूक्त' जपैत छलाह। आब नहि रहि भेलैन्ह। बजलाह- हम त किन्नहु अहि छौंड़ीकेँ अपना आङनमे नहि टपय देबैक।

काशीनाथ - बाबा, ओना 'छौंड़ी' नहि कहिऔक। ओ अफसर भऽ कऽ आइलि अछि।

बौकू बाबू उत्तेजित होइत बजलाह- एहि गाममे अफसरी शान नहि चलतैक। जौं हमरा घरकेँ बिगाड़य आओति त झोंट धऽ कऽ मारि करचीकेँ, मारि करचीकेँ घूठ तोड़ि देबैक।

तावत बौकू बाबूक पौत्र हकमैत ओहिठाम पहुँचि गेलैन्ह। बौकू बाबू पुछलथिन्ह- की हौ भुटकुन! एना दौड़ल किऎक ऎलाह अछि? घरमे साँप बहरैलौह अछि की?

भुटकुन हॅंफैत-हॅंफैत कहय लगलथिन्ह-एकटा मौगी खूब उज्जर नूआ पहिरने आइलि अछि। दलानमे कुर्सीपर बैसल अछि। कहै छैक जे आङन जा कऽ सभसॅं भेट करब। माय-काकी त तैयार छथिन्ह। परन्तु दादी कहलन्हि जे दौड़ि कऽ अपना बाबासॅं बुझने आबह।

बौकू बाबू सशंकित होइत पुछलथिन्ह- ओ के थीक? की करय आइलि अछि? हमरा आङनसॅं कोन काज छैक?

भुटकुनकेँ चुप्प देखि काशीनाथ पुछलथिन्ह-की हौ भुटकुन! ओकर माथ उघारे छैक कि ने?

भुटकुन-हॅं!

काशीनाथ-हाथमे बैगो छैक?

भुटकुन-हॅं।

काशीनाथ-तखन निश्चय वैह थीक।

बौकू बाबू क्रोधसॅं बताह होइत बजलाह- हड़ाशंखिनीकेँ और कोनो घर नहि भेटलैक? सभसॅं पहिने हमरे शोधय आएल अछि?

पं० जी, वैद्यजी ओ चौधरीजी आनन्दसॅं मुस्कुरा उठलाह। बौकू बाबू केँ किछु नहि फुरलैन्ह, चट्ट दऽ एक थापड़ कसिकऽ भुटकुनक गालमे लगा देलथिन्ह।

जखन बौकू बाबू आङन पहुँचलाह त चकित भऽ उठलाह। जकरा ओ भरि बाट डाइन, राक्षसी, कुलटा आदि नाना प्रकारक उपाधि दैत आएल छलथिन्ह, तकरा देखै छथि जे आँचर कसने, एक हाथमे झाड़ू ओ दसरामे फेनाइल नेने, हुनका आङनक मोड़ी साफ करबामे लागल अछि और अपना आङनक स्त्रीगण मरौत काढने पाछाँ ठाढि भेल बक्कर-बक्कर ताकि रहल छथिन्ह। बौकू बाबूकेँ आङनमे पैर दितहि मोड़ीक गन्ध लगैत छलैन्ह। नित्य प्राणायामे करैत अबै छलाह। से आइ खुलिक' साँस लेलन्हि। ओसारापर सभ दिन कुड़ा-कचराक ढेरी टपि कऽ जाय पड़ैत छलैन्ह। आइ देखैत छथि त एकदम लाइन क्लीयर! कतहु एकटा फालतू चीज नहि। चौखठ लग एकटा कोइला सन कारी लालटेन टाङल रहैत छलैन्ह से कय दिन माथमे ठेकि जाइत छलैन्ह। आइ देखै छथि त ओ लालटेन साफ चमकैत एक कोनमे खुट्टीसॅं लटकल अछि। ई कायापलट कोना भऽ गेलैक? हुनका घरमे छौ माससॅं जे झोल जमल छलैन्ह तकर आइ नामोनिशान नहि। बौकू बाबू सोचय लगलाह- अहा! एहने संस्कार वाली यदि अपनो घरमे रहैत तखन नित्य किएक गदहकिच्चन होइत?

बौकू बाबू पूजापर बैसलाह त जॅंगलासॅं देखाइ पङलैन्ह जे ओ लङकी पछुआङमे ठाढि अछि। कान्हमे एकटा बैग लटकौने, जाहिपर सुन्दर अक्षरमे 'विमला देवी' अंकित छैक। एकटा नेबोक गाछमे कीड़ा लागल छलैक। ताहिमे ओ कोनो दबाइ घोरि कऽ पिचकारी दय रहल अछि। बीच-बीचमे स्त्रीगणकेँ किछु बुझा रहल छैन्ह।

देखैते-देखैते एकटा आश्चर्य बात भय गेल । जे बरहड़बावाली सासुक देखादेखी सदिखन नाक झपने रहैत छलोह से एकाएक विमला देवीक निर्देशानुसार भरकछ भीड़ि हाथमे कोदारि लेलन्हि और बाड़ीमे नेना द्वारा अपवित्र मैल माटिकेँ काटि कय फेकय लगलीह । देखैत-देखैत बाड़ी साफ भय गेल ।

थोड़ेक कालक बाद विमला देवी साबुन लऽ कऽ हाथ धोएलन्हि । एक मिनट बच्चाकेँ दुलार कैलथिन्ह । तदुपरान्त दुनू हाथ जोड़ि सभकेँ 'नमस्ते' कय बिदा भ' गेलीह । बौकूबाबू मंत्रमुग्ध भय देखैत रहलाह । ई त चांडालिन जकाँ नहि, मुनि-कन्या जकाँ लगैत अछि । जत्तहि जाएत, तत्तहि तपोवन बना देत । बलहुँ बेचारीक प्रति ओतबा अपशब्द कहलिऎक । बौकू बाबू दुर्गापाठ करय लगलाह । किन्तु घुरि-फिरि क' वैह लालठोपवाली श्वेतवसना ध्यानमे आबि जाइन्ह ।

भोजनकाल बौकूबाबू स्त्रीकेँ कहलन्हि- देखलिऎक, बंगालिन लड़कीक पानि?

स्त्री कहलथिन्ह-ओ बंगालिन नहि, देशीए अछि।

बौकूबाबू कहलथिन्ह-ई हम मानि नहि सकैत छी। ओ पानि कहाँ पाबी?

स्त्री कहलथिन्ह बंगला नूआ देखने नहि बुझिऔक। ओ मैथिलानीए थीक। कमलपुर घर छैक।

ई सुनैत बौकूबाबूकेँ धक्क दऽ करेज सालि देलकैन्ह। पहिलुका प्रफुल्लता विलीन भऽ गेलैन्ह। स्याह होइत मनमे सोचय लगलाह- बंगालिन किवा पंजाबिन रहैत त ई सभ टा छजितैक। परन्तु मैथिल कन्या भऽ कऽ एना करैत अछि? अनकच्छल बात। खंजन चललीह बगड़ाक चालि, अपनो चालि बिसरि गेलीह! देशी मुर्गी विलायती बोल! प्रकाश्यतः बजलाह-एकरा माय-बाप नहि छैक की? एखन धरि कुमारिए किएक अछि?

स्त्री कहलथिन्ह- हम पुछलिऎक, हे दाइ! तों एहेन सुन्नरि छह। विवाह किएक ने करैत छह? तखन हॅंसय लागलि। बाजलि- 'बच्चा उत्पन्न करयवाली देश मे बहुत गोटा छथि। एखन सेवा करयवालीक कमी छैक! तेँ हम यैह मार्ग अपनौने छी। हम कहलिऎक-' हे दाइ! तोरा एतबेटामे एतेक बुद्धि कोना भऽ गेलौह? तखन फेर हॅंसय लागि गेल।

बौकूबाबू कहलथिन्ह-अन्यदेशी हैत त हम सभटा बात शिरोधार्य कऽ लितिऎक। परंच एही माटिसॅं बहरा कऽ ई एतबा शान देखाओत से कोना मानि लेबैक? कतबो बंगला नूआ पहिरथु, परन्तु धातु त तिरहुतिए छैन्ह। ई चाली भऽ कऽ साँपक देखाउस करै छथि। किछु भऽ जेतैन्ह त सभटा फुचफुच्ची बहार भऽ जेतैन्ह।

किछुए दिनमे विमलादेवीक ज्योतिसॅं घर-घर आलोकित भऽ उठल। बुचौली वालीक इनारमे कीड़ा सहसह करैत छलैन्ह। से आब ब्लीचिंग पाउडर पड़ि गेलैन्ह। जहाँ सभ घैल सतत मुँह बौने रहैत छ्लैन्ह, तहाँ आब साफ मलमलक टुकड़ासॅं झाँपल रहैत छैन्ह। रुपौलीवालीक नेनाक देह पर सेर भरि रिट्ठा-रिट्ठी लादल रहैत छलैन्ह से उतरि गेलैन्ह। जहाँ बंगटक नाकमे सतत पोंटा लटकल रहैत छलैन्ह, तहाँ आब हाइड्रोजन पेरोक्साइड लऽ कऽ हुनक कान साफ कैल जाइ छैन्ह। ठकौलीबालीक बच्चा जहाँ दुरुखेमे नदी फिरि दैत छलथिन्ह तहाँ आब घरसॅं बाहर जा कऽ लघी कऽ अबैत छथिन्ह। सिसौनीबाली बारह बजे मुँह धोबय बैसैत छलीह से आब सूर्योदयसॅं पहिनहि स्नान कय लैत छथि। मुजौनाबालीकेँ नित्य बेरू पहर खुटौनाबालीसॅं झगड़ा होइत छलैन्ह। से आब दुनू गोटा बैसि कऽ ऊनी मौजा बुनैत छथि। एवं प्रकारेँ गामक आमूल परिवर्त्तन भऽ गेल। विमला देवीक डरसॅं कोनो बच्चाक आँखिमे काँची नहि। सभक नख साफ। कोनो सड़कपर नाक मुनबाक काज नहि। सभक बाड़ी-झाड़ीमे कोबी, टमाटर ओ मटरक छीमी लहराइत। भिट्ठोबाली पर्यन्त भिटैमिन बूझय लागि गेलीह।

नारी-समाजक ई नव जागरण केवल घरे धरि सीमित नहि रहल। बाहरो ओकर किरण प्रस्फुटित होमय लागि गेल।

एक दिन पंच लोकनि दालानपर बैसल रहथि। देखैत छथि जे समौलबाली मोसम्माति सामने खेतमे मोढापर बैसि धान कटा रहल छथि। ई देखैत पंडित जीकेँ लेसि देलकैन्ह। बजलाह- आब गाममे अकरहर भऽ रहल अछि।

काशीनाथ कहलथिन्ह-घरमे पुरुष-पात नहि छैन्ह। तेँ स्वयं कटबा रहल छथि। एहिमे दोष कोन?

पं० जी बजलाह- सैह छलैन्ह त दोग-दागसॅं कटबा लितथि। एना बीच ठाम महोखा जकाँ बैसि कऽ पुरुषक छातीपर मूँग किएक दलैत छथि?

काशीनाथ कहलथिन्ह-ग्रामसेविका.....

ग्रामसेविकाक नाम सुनितहि पं० जीक क्रोधाग्नि भड़कि उठलैन्ह। हुनका पहिने घर-घर सॅं नेओत पड़ैत रहै छलैन्ह। विमला देवीक ऎलासॅं बहुत किछु कम्म भऽ गेलैन्ह! एहि द्वारे ओ खौंझाएल रहैत छलाह। बजलाह- गाममे तेहन ने चंडालिन आइलि अछि जे आब एकोटा धर्म-कर्म एहि गाममे नहि रहय देति। एतबा दिनक संचित मर्यादा आब नासीमे बूड़ल जा रहल अछि।

वैद्योजी ग्रामसेविका पर विशेष प्रसन्न नहि छलाह। कारण जे विमलादेवी बभनटोलीसॅं लय मुसहरटोली धरि घर-घर जाकऽ स्त्रीगण कें मुफ्त दबाइ दऽ अबैत छलथिन्ह। कतेक युवती कैं इंजेक्सनो देनाइ सिखा देने छलथिन्ह । एहि सभ सॅं वैद्यजीक आमदनी मारल जाइ छलैन्ह । ओ फुफकार छोड़ैत बजलाह - सभ फसादक जड़ि थिक ई ग्रामसेविका । वैह केचुआ सभ कैं फूकि-फूकि साँप बना रहल अछि । जौं किछु दिन और एहि गाम मे रहि गेल त हमरा लोकनिक निर्वाह हैब कठिन ।

फूदन चौधरी कें अपना घरक मर्यादा पर बड्ड गर्व छलैन्ह । बजलाह - जौं हमरा घरक स्त्री एना करय त गरदनि मे .......

एतबा बजैत-बजैत चौधरी जी एकाएक चिहुँकि उठलाह । जेना सहसा बिजलीक धक्का लागि गेल होइन्ह ! सड़कक कात कोल्हुआड़ मे हुनक स्त्री स्वयं ठाड़ भऽ कऽ गुड़क चेकी बनबा रहल छलथिन्ह ! चौधरी जी चुप्प भऽ गेलाह ।

वैद्य जी पं० जी दिस आँखि मारलथिन्ह । पं० जी बजलाह - 'कलिकाल जे ने कराबय !' वैद्यजी उत्तर देलथिन्ह- लकिकाल की करतैक । हमरा आङ्गन में कथमपि एना नहि भऽ सकैत अछि ।

परन्तु वैद्योजीक गर्व खर्व होइत देरी नहि लगलैन्ह । कारण जे जैखन ओ पं ०जीक संग सड़क पर एलाह त देखै छथि जे वैदाइन पाँच वर्षक कन्या कैं आङ्गुर धरा कऽ स्कुल मे नाम लिखाबय लऽ जा रहल छथि । वैद्यजी अनठा कऽ दोसर बाट धऽ लेलन्हि ।

पं० जी मुस्कुरा उठलाह । हुनका विश्वास भऽ गेलैन्ह जे ग्रामसेविका सभ स्त्री कैं बहत्रा बना देलकैन्ह । केबल हुनके पंडिताइन टा बाँचल छथिन्ह । एहि विचार सॅं प्रसन्न होइत पं ० जी अपना दलान मे एलाह त स्तंभित रहि गेलाह । पंडिताइन दरबाजा पर ठाढ़ि भेल अपना समधि सॅं निर्धोख गप्प कऽ रहल छलीह । पं० जी कें देखि सहज शान्त स्वर सॅं बजलीह - 'देखू , कतीकाल सॅं समधि बैसल छथि । आब अपन दुनू गोटा गप्प करु । हमरा आङ्गन मे काज अछि ।'

पं० जी ई दृश्य देखि अवाक रहि गेलाह ।

एक दिन सम्पूर्ण गामक लोक आँखि खोलि कऽ देखि लेलन्हि जे नारी-समाजक सामूहिक शक्ति केहन होइ छैक। विमला देवीक नेतृत्वमे गामक समस्त बेटी-पुतोहु आँचर कसने श्रमदान द्वारा महिला-पुस्तकालयक नेव देबय जा रहल छथि। बूढ लोकनिक मुँह तेहन भऽ गेलैन्ह जेना केओ चिरैताक काढा पिया देने होइन्ह। बूढी लोकनिकेँ बुझा गेलैन्ह जे आब जतनाइ पिचनाइ ओ ढील हेरनाइ गेल। किन्तु एहि प्रवाहकेँ रोकब असंभव छल।

थोड़बे दिन मे 'महिला-क्लब' तैयार भऽ गेल। जे बात स्वप्नोमे विश्वास करबा योग्य नहि छल से आब प्रत्यक्ष होमय लागल। बुचौलीबाली नित्य अखबार पढय लागि गेलीह । पंडिताइन औ बैदाइन ग्रामसुधारक योंजना बनाबय लगलीह। बरहड़बावाली ओ भखराइनवाली समाजवादपर बहस करय लगलिह। तनौतावाली तानपुराक सुर चढाबय लगलीह। मुजौना ओ खुटौनावाली बैडमिंटन खेलाय लगलीह।

दुइए वर्षमे गामक काया-कल्प भऽ गेल। तेहन उत्साहक लहरि आएल जे फूदन चौधरीक भाभहु स्कूलमे मास्टरी करय लगलीह, बैदाइनक बेटी नर्सक काज सीखय लगलीह और पंडिताइनक पुतहु रेडियोमे जा कऽ बाजय लगलीह।

ग्रामसेविका नारी-समाजक उन्नति देखि पुलकित भय उठलीह। एतबा कम दिनमे एहन क्रान्ति! हुनका आशातीत सफलता भेटल छलैन्ह। जेना ककरो रोपल कलम दुइए वर्षमे फरय लागि जाइक, तेहने आनन्दसॅं हुनक हृदय भरि गेलैन्ह। परन्तु आइ ओ अपन उद्यानकेँ छोड़ि कऽ जा रहल छथि। हुनका दोसर इलाकामे बदली भऽ गेल छैन्ह।

आइ विमला देवी गामसॅं बिदा भऽ रहल छथि। ताहि उपलक्ष्यमे सभा आयोजित अछि। पुरुषोसॅं बेसी महिलाक संख्या देखबाक अबैत अछि। आबाल-बृद्धवनिता सभक आँखिमे नोर भरल अछि! जेना कोनो बेटी सासुर जा रहल हो। अथवा मन्दिरसॅं प्रतिमाक विसर्जन भऽ रहल हो। नवयुवती सभ विमला देवीकेँ फूलक माला पहिरौलथिन्ह। युवक लोकनि मानपत्र देलथिन्ह। वृद्ध लोकनि दूर्वाक्षत लय आशीर्वाद देलथिन्ह। वृद्धागण खोंइछ देलथिन्ह। सभसॅं वयोवृद्धा छलीह पण्डितजीक पितामही। ओ कहलथिन्ह-बेटी, तोहर गुण हमरा लोकनि कहियो नहि बिसरब। आँखि निपट्ट छल। से तों आबि कऽ फोलि देलह। भगवान तोहर कल्याण करथुन्ह।

विमला देवी अत्यन्त नम्रता ओ शालीनतापूर्वक उत्तर देलथिन्ह - हम अहीं लोकनिक बेटी थिकहुँ । सेवा करब हमर धर्मे थीक । हम केवल अपना कर्त्तव्यक पालन कँलहुँ अछि । एहिमे हमर बड़ाइ कोन ? सफलताक श्रेय अहींलोकनिकेँ अछि जे सभ गोटा मिलि कऽ हमरा सहयोग दैत ऎलहुँ । अहाँ लोकनि हमरा जे स्नेह प्रदान कैलहुँ से हम जीवन भरि स्मरण राखब । एही अधिकारपर हम एक वस्तु मँगैत छी । एहि गाममे जे ज्योति जागल अछि तकरा मिझाय नहि देब । यैह हमर सभसँ बड़का बिदाइ थीक ।

लोकक आँखि भरि ऎलैक । भगवान करथु घर-घरमे एहने विमला सन बेटी होथि । गामक बेटी-पुतोहु श्रद्धावश विमलाक आरती उतारय लगलीह । एक युवती हारमोनियम पर समदाउनि उठौलन्हि ।

ताहीकाल टमटमसँ उतरलाह बतहू बाबू । बौकू बाबूक बड़का भाय, जे आइ तीन वर्षपर कामाख्यासँ आबि रहल छथि । स्त्री-पुरुषक एहन अदभुत सम्मेलन देखि ओ क्षुब्ध भय किछु काल आँखि फाड़ि तकैत रहलाह । एहिठाम एना भैरवी-चक्र किऎक लागल अछि ? पुनः अपन आँखि-कान टोएलन्हि जे कतहु गड़बड़ त ने अछि । तखन अपना पौत्रकेँ सोर कैलन्हि - की हौ, बुच्चन छऽ हौ ? सौंसे गाम बताह भऽ गेल अछि कि हमहीं बताह भऽ गेल छी?

बुच्चुन पैर छुबैत कहलथिन्ह- बाबा, एको शब्द बजियौकजुनि। आबे गाम सम्मत भेल अछि।