लेखक : हरिमोहन झा

रमेश बाबू, ओ कन्या साक्षात् लक्ष्मी थीक। देखबामे दुर्गाक मुर्त्ति, शील-स्वभावमे गंगा। भोजन कराबयमे अन्नपूर्णा। कहाँ धरि वर्णन करू? भोरे उठि फूल तोड़ैत अछि। गोसाउनि सीर निपैत अछि। अर्घी-सराइ मजैत अछि। स्नान कय भगवतीक पूजा करैत अछि। ई सभ कार्य सूर्योदयसॅं पहिनहिं कय लैत अछि। किऎक ने हो! वंश केहन छैक! एक पक्षसॅं कछुआ पाँजि, दोसर पक्षसॅं नरहा पाँजि। दुर्गापाठ जे करैत अछि से अहा हा! की शुद्ध-शुद्ध पवित्र उच्चारण जे सुनिते रही! राति मे रामायण महाभारत पढि कऽ आङनमे सुनबैत अछि। और ताहिपर विनीत केहन जे बिना माय-पितियाइनक पैर दबौने कहियो सूतति नहि। सलज्ज तेहन जे बापोसॅं भरि मुँह नहि बजैत अछि। रमेश बाबू! ओहन कन्या विश्वमे दुर्लभ अछि। यदि ओ अहाँक घरमे आबि जाय त अपन भाग्य बूझू।

एतबा कहि पं० चतुरानन झा रमेश बाबूक मुखाकृति लक्ष्य करय लगलाह जे एहि वक्तृताक केहन प्रभाव हुनकापर पड़लैन्ह अछि। परन्तु रमेश बाबू पूर्ववत सिगरेटक धूआँ उड़बैत रहलाह। पुनः हाथक घड़ी देखि बजलाह- पं० जी, अब टेनिस का टाइम हो गया अच्छा, नमस्ते।

ई कहि रमेश बाबू रैकेट नचबैत विदा भऽ गेलाह। पं० जी एक मिनट धरि मुँह बौने ठाढ रहलाह। तत्पश्चात पाग पहिरि क्षुब्ध होइत विदा भेलाह। बाटमे भेटलथिन्ह त्रिलोचन चौधरी। ओ सभ टा बात बूझि कहछथिन्ह-पं० जी, अहाँ बालुसॅं तेल बहार करय गेलहुँ? रमेश बाबूकेँ हम खूब जनैत छिऎन्ह। कतेको कन्यागत हुनका द्वारपर अपन कपार पटकि कय रहि गेल छथिन्ह, परन्तु हुनका नाकपर माछी नहि बैसलैन्ह। रामायण पाठ करयवाली कन्याकेँ ओ देखय नहि चाहैत छथि। जे अपनाकेँ 'दासी' कहि कऽ स्वामीकेँ चिट्ठी लिखैत अछि, तकरा ओ पशुतुल्य बुझैत छथि। ओ गोली लगा कऽ मरि जैताह से बरु कबूल, किन्तु ओहन कन्यासॅं विवाह नहि करताह। अहाँ व्यर्थे दुर्गापाठक नाम कहि कऽ हुनका और हड़का देलिऎन्ह। आब ओ कथा कथमपि अहाँके हैब संभव नहि।

पं० जी अपन कपार ठोकैत बजलाह-ई हुनकर बुद्धिक दोष कहू किंवा हमरा कर्मक दोष कहू। जखन एहन सर्वगुण-संपन्न कुलीन कन्या हुनका पसिंद नहि, तखन केहन कन्यासॅं विवाह करय चाहैत छथि?

त्रिलोचन चौधरी एक चुटकी कतरा पं० जीक आँगा बढबैत कहलथिन्ह- पं० जी! अहाँ छी साबिक लोक। आइकाल्हुक नवतुरियाक हाल नहि जनैत छिऎक। रमेश बाबूकेँ जाति-पाँजि, वंशमूल वा कुल-मर्यादासॅं कोनो प्रयोजन नहि। हुनका केवल अंग्रेजी पढलि कन्या चाहिऎन्ह। इंगलिशमे गारिओ पढतैन्ह से हुनका पसिंद पड़तैन्ह परन्तु संस्कृतमे स्तोत्रो पढयवाली नापसिंद। से एकटा लड़की -मिस नर्गिस झाक नाम बी० एस० सी०क रिजल्टमे देखने छथिन्ह। ताहीपर ढुलल छथि। कन्याक बाप नहि छैक औऽ माय....

तदुपरान्त चौधरी जी बड़ीकाल धरि पं० जीक कानमे सभ फुसफुसा कऽ कहैत रहलथिन्ह।

सभ किछु सुनि लेलाक उपरान्त पं० जी अपन टीक फोलि लेलन्हि और प्रतिज्ञा करैत बजलाह- आब हमर कन्या जखन ओहि घरमे नहि गेल त ओहो छौंड़ी नहिए आबय पाओति। हम ऎखन जाकऽ रमेश बाबूक पित्तीक कानमे सभटा बात धऽ दैत छिऎन्ह। जेना हैत तेना एहि कथाकेँ भङठाएब।

ई कहि पं० चतुरानन झा चाणक्य जकाँ दृढसंकल्प भय विदा भेलाह।

रमेश बाबू कतहु जैबाक हेतु सूट-बूट लगबैत छलाह ता हुनक पित्ती आबि कऽ कहलथिन्ह- रमेश! तोरासॅं किछु गप्प करबाक अछि।

रमेश बैसि गेलाह। पित्ती कहय लगलथिन्ह-देखह, आब तोरा बापक स्थानपर हमहीं छिऔह। भौजी ई सिहंता मनमे नेनहि गेलीह जे पुतहुक मुँह देखी। तों आब डाक्टरी पास कैलह। घर बसाएब जरूरी छौह। तखन जेहन उच्च कुलक तों थिकाह..

रमेश बाबू टोकैत कहलथिन्ह-चाचा साहब! जरा मुख्तसर में कहिए। मुझे अभी एक लड़की को देखने जाना है।

पित्ती कहलथिन्ह- यैह बूझि कऽ त हम आएल छी। तों जाहि कन्या केँ देखय जाइ छह तकर पूरा हुलिया हमरा भेटि गेल अछि। ओ टेलीफोन आफिसमे काज करैत अछि। ओकर माय तोरा फॅंसाबक चाहैत छौह। जखन कन्याक विषयमे सभ सुनि लेबह तखन ओहिठाम जैबाक काजे नहि पड़तौह।

रमेश बाबू चुप्चाप धैर्यपूर्वक पित्तिक लेक्चर सुनय लगलाह । पित्ति पहिने नाकक पूरा मे नोसि कोंचि लेलथिन्ह । तखन कहय लगलथिन्ह - जनै छह ? कन्याक मूल की छैक ? कर्महै उढ़रा ! बाप तेलिबभना छलैक । माय छोटबभनी छैक । कोन-कोन वृत्ति सॅं ओ मोसम्माति बेटी कैं पढ़ौलक अछि से जगजाहिर अछि हमरा सॅं किऎक खोलैबह ? ओ छौंड़ी अपना मायो सॅं टपलि अछि । अवस्था बाइस वर्ष सॅं कम नहि हेतैक । ताड़ गाछ सन नमछरि । बी० एस० सी० की कैलक जे जग जीति लेलक । धर्म, कर्म, देवता-पितर किछु नै बुझैत अछि । ने ओकरा भदबा लगैत छैक ने दिक्शूल । पंडित सभ कें मुर्ख कऽ कऽ बुझैत अछि । जन्म त एहि देश मे भेलैक अछि , परन्तु मेमक कान कटैत अछि । जुत्ता पैताबा पहिरने, फ्राक कसने, माथ पर जुल्फी रखने , कान मे चोंगा लगौने , सैकड़ो पुरुषक बीच मे टेलीफोनक काज करैत अछि । ओकरा छूआ-छुतिक एकोरत्ती विचार नहि । क्रिस्तान लड़कीक बीच मे रहैत अछि । ओकरा संग खाइत-पिबैत अछि । सिगरेट पिबैत अछि। कनेक अंग्रेजी गिटपिट करय आबि गेल छैक से अपना शान मे ककरो लगबितहि नहि अछि । घंटे-घंटे फैशन बदलति , कौखन साड़ी मे, कौखन सलवार मे कौखन गाउन मे ! जहाँ पाँच बजे साँझ कऽ आफिस सॅं छुट्टी भेटलैक कि उजरका जूता पहिरने फुदकि कऽ दू-दू सीढ़ी एकबेर मे उतरैत जाएत और साइकिल पर सवार भय दन्न दऽ टेनिसक मैदान मे जा कुदति । सुनै छिऎक जे बारह बजे राति कऽ क्लब सॅं डाँस कऽ कऽ अबैत अछि । हौ, लाज-लेहाज त एकोरत्ती छैहे नहि । कतेक यार-दोस्तक संग पार्टी मे जाइत अछि , सिनेमा देखैत अछि तकर ठेकाना नहि । माय कैं खुशी होइ छैक जे बाह ! हमर बेटी खूब कमाइत अछि । कहाँ धरि कहिऔह? ओ लड़की सभटा धाख संकोच घोरि कऽ पीबि गेल अछि । निर्लज्ज तेहन जे जॅंघिया पहिरि कऽ पोखरि मे हेलि जाइत अछि । दस टा छौड़ा आगाँ-पाछाँ घेरने रहैत छैक ? एहन हड़ाशंखनी जॅं घर मे आबि गेल त घरक सत्यानाशे बूझह । तोरा एक सॅं एक कुलीन कन्या भेटि जैतौह । और ओकरा मे की छैक ? ओकर माय की एको छदाम तोरा देतौह ? बल्कि तोरे चूसि लेतौह । ऊपर सॅं पाउडर पोतने रहै अछि ताहि पर ताहि पर त छौड़ी सान सॅं फाटल जाइ अछि , कतहु मेम जकाँ गोरि रहै त नहि जानि की करैत ! एको घड़ी संच नहि । सदिखन बुट्टी-बुट्टी चमकैत रहै छैक । एहन कन्या सॅं की घर चलि सकैत सकैत अछि ? अंग्रेजी नोवेल पढ़तौह, सिनेमा देखतौह , पियानो बजौतौह , डांस करतौह । ओहन लड़की डॆबब हाथी पोसब थीक । मास मे सैकड़ो रुपैया स्नो-क्रीम, सेण्ट-पाउडर , साया-ब्रेसरी ` ` ` ` `

रमेश बाबू और बेसी नहि सुनि सकलाह । पुछलथिन्ह - चाचाजी ! आपने जो कहा है क्या वह सब सच है ?

पित्ती दक्षिण मूँह भऽ कहलथिन्ह हम वंश तर छी, जे एको बात फूसि कहने होइऔह । ओ सभ तेहन मायाविनी अछि जे दुइए मिनट मे लोक कैं मोहि लैत अछि । तोंहू जैअतह त तेना बतियैतहु, तेना मुसकुरैतहु जे तों निश्चय जाल मे फॅंसि जइतह । ई त रक्ष रहल जे हमरा एन मौका पर पता लागि गेल ।

रमेश बाबू अपना पित्तिक पैर पर खसि पड़लाह । पित्ती गद्गद होइत कहलथिन्ह - ई भगवानक कृपा थिक जे तोरा अन्त मे सुबुद्धि भऽ गेलौह । आब त ओहि लड़की कें देखबाक हेतु पटना नहिं जैबह ?

रमेश बाबू हुनक पैर धैनहि कहलथिन्ह - नही, चाचाजी ! अब उसे देखने की कोई जरूरत नही रही ।

पित्ती अपना भातिज कें कंठ लगा लेलन्हि । बजलाह - फेर त योग्यक संतान ! महादेव झा कऽ सोनित ! अपना वंशक शोणित ! अपना वंशक मर्यादा कहियो छुटि सकैत छैक ? हम आइए दूनू माइ-धी कें तेहन कड़ा जवाब पठा दैत छिऎक जे फेर तोरा फुसियैबाक साहस नहि हैतैक ।

रमेश बाबू कहलथिन्ह - चाचाजी ! आप गलत समझे । अभी तक मुझे डिटेल नहि मालूम था । मगर आपने जो 'डिस्क्रिप्शन' दिया, उसे सूनकर मैं अब एक मिनट भी देर करना नही चाहता । अगर उसका आधा क्वैलिफिकेशन भी लड़की मे मौजूद हो तो मैं अपने को 'लकी' समझूंगा । मैं फौरन टेलीग्राम भेज देता हूँ कि मैं मैरिज के लिए तैयार हूँ । ` ` ` ` ` चाचाजी , इसका क्रेडिट आप ही को है ।

ई कहि रमेश बाबू अपना पित्ती सॅं लपटि गेलाह । पित्ती विस्मय सॅं आवाक भय मुँह तकैत रहि गेलथिन्ह ।

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