10. वर-बरियातक विधि द्विरागमन
तार पहुँचैत देरी खढ़भढ़ मचि गेल लालकाकी बजलीह कहू त भला एना कतहु द्विरागमन भेलैक अछि !
भोलानाथ अनुमोदन करैत कहलथिन्ह - त ! द्विरागमन मे कतेक ओरिआओन करय पडै़ छैक । कन्याक हेतु कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया.......
ला० - बाजू-बिजौठ, बड़हरी, नकमुन्नी, मङटीका, हैंकल, पहुँची, पाजेब .......।
भोला० - तखन बर्त्तन-बासन चाही ।
ला० - थारी, बाटी, लोटा, गिलास, बटुक, तसला, कड़ाही, करछुल, तमघैल, अढ़िया .....।
भोला० - तखन मेवा-मसाला साँठल जाइ छैक ।
ला० - सुपारी, लौंग, अड़ाँची, दालचीनी, शीतलचीनी, जाफर, जावित्री.........
भोला० - पौती-पेटारक काज होइ छैक ।
ला० - पहिनहि सॅं सीकीक डाली-मौनी बनै छैक । सरकंडाक पौती बनै छैक । जनउ तैयार होइ छैक । डाला बनैत छैक । पीढ़ी लिखल जाइ छैक ।
भोला० - कहार-महफा कैं साइ देल जाइ छैक ।
ला०- सोअसिनक संग खवासिन जाइ छैक।
भोला०- तखन वरक विधि सेहो होबक चाही।
ला०- चुमाओनक ओरिआओन होबक चाही। डाला परक मधुर होबक चाही। दही, अक्षत, पान, मधुर, धोती, तौनी, पाग, डोपटा, चानन, काजर......
भोला०- तखन बरियात कैं सौजन्य कराबऽ पड़ै छैक!
ला०- त! सँचारक हेतु पूरा बनाबऽ पड़ैत छैक। बड़,। बड़ी, अदौरी, दनौरी, तिलौरी, पापड़।.... बाप रे बाप! एतबे दिन मे ई सभ कोना कऽ पार लगतैक? कनेयाँ नैहरे छथि। फुचुकरानी चिल्काउरे छथि। के की करतैक?
भोला०- ताही हेतु त दू मास पहिनहि दिन मनाओल जाइ छैक।
ला०- त! दही माछक भार अबै छैक। कन्याक हेतु कहौतिया नूआ अबै छैक। से पहिर कऽ बेटी कनै छैक। देह मे तेल-उकटन लगै छैक। आङने आङन सँ खायक अबै छैक। द्विरागमन कि कनेंया-पुतराक खेल छैक जे चट मङनी पट विवाह!
भोला०- मानि लियऽ और सभ वस्तु समतूलो भ जाय; किन्तु मुहूर्त्त त अपना हाथक बात नहि। द्विरागमन मे वार, नक्षत्र, तिथि, योग, चन्द्रमा आदि बहुतो विषयक विचार कैल जाइ छैक। लग्न कि ककरो असामी छैक जे तार पाबि कऽ हाजिर भऽ जेतैक? तखन ई अलग्न कथा कोना फुरलैन्ह?
ला०- हुनक सुलग्ने कथा आइ धरि कोन भेलैन्ह अछि? ऊँटक कोन अंग सोझ जे गरदनिए टा टेढ़ कहबैक ! गौंआँ सभ हँसितहिं अछि, आब और थपड़ी पारत ।
भोला० - हँ से त जहाँ दस लोक जमा होइ अछि तहाँ अपने घरक खिधाँस करऽ लगै अछि जे द्विरागमन सॅं पहिनहि बेटी कैं .....
ला० - बेशी झरकी नहि लगाउ । ई सभ अगराही बुचकुन चौधरीक लेसल छैन्ह । और दुलारमनिए दाइ कि कम लुतरी लगाबऽ बाली छथि ? हमरा बेटी-जमाय दऽ सभ कैं कहने फिरै छथिन्ह जे क्रिस्तान भऽ गेलैन्ह ।
भोला० - सत्यदेव चौधरी काशी सॅं ऎलाह त गाम मे एकटा नवे फाल उड़ौलन्हि जे मिसर मेम रखने छ्थि ।
ला० - एहन-एहन बात सूनि कऽ देहो जरै अछि । कनेक हमरा सोझाँ बजितथि त मखानक पात सॅं मुँह पोछि दितिऎन्ह ।
भोला० - एतबे नहि । इहो बजै छथि जे बुच्चीदाइ बाइसिकिल पर चढ़ि कऽ घुमैत अछि ।
ला० - यैह सब सूनि कऽ त बाप-भाइ पुछारियो करय नहि जाइत छथिन्ह । जहिया सॅं हम ऎलिऎक तहिया सॅं केओ खोज खबरि लेलकैक ?
भो० - कंटीर कैं त कानूनक पढ़ाइए सॅं नहि फुरसत छैन्ह । और भाइ साहेब बोधगया मे एक सेठक कन्याक वर्षफल गुनबा मे लागल छथि ।
ला० - हँ, अनकर कन्याक त जन्मकुण्डली गुनैत छथि । और अपन कन्याक टीपैन हेरायल छैन्ह ।
भो० - परन्तु आब त बिनु गाम ऎने उपाये नहि छैन्ह । आब चिट्ठियो देवाक समय नहि रहल । कही त तार दऽ दिऎन्ह ।
ला० - हँ, हँ, भला ओहू मे पुछबाक काज ! दूनू बापपूत कैं आबक हेतु तार दऽ दिऔन्ह ।
भोलानाथ तार दऽ कऽ ऎलाह त बजलाह - आब बरियातक इन्तिजाम होबक चाही । के जाने कहिया कतेक गोटा सॅं पहुचि जाथि ! तैं पहिनहि सॅं सभ समतुल कऽ कऽ राखक चाही ।
लालकाकी कहलथिन्ह - तरकारी मे कदीमा और सजमनि त चारे पर अछि । भाँटा सेहो बाडी सॅं बहराएत । तखन आलू परोर हाट सॅं आनि दियऽ । घाठि घरे मे छैक । तरुआ-फरुआ लगा कऽ अठारह टा पुरा देबैक ।
भोलानाथ कहलथिन्ह - दलान मे ठकबा कुट्टी कटैत अछि से भरि ठेहुन जंगल लगौने अछि । काल्हि भोरे बहरबा-सोहरबा कऽ साफ करा देबैक । एकटा सौंफ त दलान मे छैहे । दू-एक टा बड़का शतरंजी, जाजिम और मसनद मंगनी करऽ पड़त ।
लालकाकी कहलथिन्ह - सुतरी वला बड़का खाट झोलंगा भऽ गेलैक अछि ! ओड़ांच कसाबक हेतैक ।
भोलानाथ ठकबा कैं ल बजार दिस बिदा भेलाह । लालकाकी आङ्गन मे आबि देयादिनी कऽ कहलथिन्ह - ऎ फुचुकरानी ! जमायक ऎला पर परिछन हैतैन्ह, चुमाओन हैतैन्ह । विधिकरी त छथिन्ह नहि । चानन-काजर अहीं कैं करय पड़त ।
तावत आवेशरानी कैं अबैत देखि कहलथिन्ह - आबथु ऎ बहिना ! ई नहि लागि-भीड़ि देथिन्ह त कोना कऽ सम्हरतैक ?
आवेशरानी पुछलथिन्ह - कहिया अबै जैथिन्ह ।
लाल० - दिन त नहि लिखलथिन्ह अछि । तखन एक सप्ताहक भीतरे मे सभटा ओरिआओन भऽ जैबाक चाहीऎक ।
आवेश० - ता त ओहो (लाल) आबि जैथिन्ह ?
लाल० - जनै छी ? तार त गेलैन्ह अछि । नहि औथिन्ह त बनतैन्ह कोना ? (चिन्तित भऽ कऽ) हमरा त डर होइत अछि जे हुनका आबऽ सॅं पहिनहि ने कतहु बरियात पहुँचि जाइक ।
आवेश० - एहन कत्तहु भेलैक अछि ? मिसर पहिने हिनका बेटी कैं एतय धऽ जैथिन्ह । तखन पाछाँ सॅं बरियातक संग औताह ।
लाल० - नहि ए बहिना । आइकाल्हि अङ्गरेजियाक कोन ठेकान ! वरे कन्याक संग-संग बरियातो चलि अबैक सेहो आश्चर्य नहि ।
आ० - तखन त लगले बिदा कऽ देबऽ पडतैन्ह?
ला०- से नहि हैतैन्ह। बरियातक बापो उठकि औथिन्ह तैयो बुचियाक बापक बिनु ऎने द्वारागमन नहि हैतैन्ह। हमर बेटी कि फकिरनी जकाँ विदा हैत?
आ०-नहि। से कोन दुख हैतैक? गहना कपड़ा सभ त एक दिन में दडिभंगा सॅं आबि जैतैक।
ला०-लेकिन एतुक्का ओरिआओन-परिआओन सभ कोना हैतैक? हम त आब अथबल भऽ गेलहुँ। सँचारक भार हिनके पर रहतैन्ह।
आ०-'वेश, जखन ओ समय औतैक त बुझल जैतैक।
ला०-तिलकोरक पात ओ भँटवर जेहन ई तरैत छथि तेहन ककरो नहि होइ छैक। और बड़, बड़ी दनौरी तिलौरी.....
ई वाक्यो ने समाप्त भेल छलैन्ह कि एक मोटर हड़हड़ाईत दलानक सोझा आबि कऽ ठाढ़ भऽ गेलैन्ह। ढुनमुनकाकी साँझ देखाबक हेतु दुरुखा मे गेल छलीह। मोटर देखितहि पडै़लीह और आङ्गन आबि बजलीह-'वर बरियात तऽ आबि गेलैन्ह।
लालकाकी माथ पिटैत बजलीह-दैव-रे-दैव! आब कोन उपाय हैतैक? केओ पुरुषो-पात दरवाजा पर नहि छैक।
तावत पारसी स्टाइलक साड़ी सॅं परिवेष्टित ऊँच एँड़ीक नोकदार शू पर अपन शोभाक भार धरैत बुच्चीदाइ आङ्गन मे आबि सभ कैं प्रणाम कैलथिन्ह।
बुच्चीदाइक ठाट-बाट देखि सभ केओ गुम्म रहि गेलीह। किन्तु एहन बेटी कैं पुष्पाञ्जलि देबक चाही अथवा तिलाञ्जलि? एकर मीमांसा करबाक समय नहि रहैन्ह।
झारखंडीनाथ कैं अबैत देखि लालकाकी कहलथिन्ह-'आउ ए बाउ! बड़ बेरि पर ऎलहुँ। बर- बरियात दरवाजा लागल अछि। जा कऽ सम्भाषण करिऔक गऽ ऎ फुचुकरानी, बड़का सतरंजी, छोटकी चौकी, कलशी, खड़ाम ई सभ झट दऽ दिऔन्ह तऽ।
झारखंडीनाथ सभ किछु लऽ कऽ बहरैलाह। किन्तु दालान पर आबि देखै छथि जे बगल मे छतरी और हाथ मे चमड़ाक बेग नेने एक मेम ठाढ़ि अछि और एक टोपबला साहेब मोटर सॅं सामान उतरबा रहल अछि। टोप देखि हुनका सकुरीक डाकडर स्मरण भऽ ऎलैन्ह जाहि सॅं ओ सशंकित भऽ उठलाह ।
दू एक मिनट झारखंडीनाथ किंकर्त्तव्यविमूढ जकाँ ठाढ़ रहलाह । ता मोटर विदा भऽ गेलैक । तखन हुनका चेत भेलैन्ह । झट दऽ सतरञ्जी ओछा, छोटकी चौकी पर एक गगरा पानि राखि, हाथ मे खड़ाम नेने उचितीक ढंग सँ कहलथिन्ह - आएल होऔ । बैसल होऔ । पैर धोएल होऔ ।
मेम साहिबा हुनक आशय बूझि पुछलथिन्ह - बाथ (स्नानागार) किधर है ?
झारखंडीनाथ माथ कुड़ियबैत बजलाह - बाथ त एहिठाम सौं बहुत दूर है । कोस छबेक-सातेक सौं कम नहीं पडे़गा । 'बाथ' (गाँव) मे आपका के रहता है ?
मेम साहिबा कनेक मुस्कुराइत बङ्गलामिश्रित उर्दू मे बजलीह - बाड़ी (घर) मे गोसुलखाना है ?
झारखंडी कहलथिन्ह - बाड़ी मे त भाँटाक गाछ रोपा हुआ है और गोस-ऊस का खाना हमरा सभक घर मे नही होता है।
बाहर त ई सभ होई छल, और भीतर ऎपन पड़य लागल। लालकाकी बजलीह-ऎ बहिना, परिछन हैतैन्ह तखन ने जमाय आँगन औताह। आब सभ सॅं पहिने हँकार पड़क चाही। ककरा पठबियौक?
आवेश०-'फुलमतिया और सूर्यमुखी जा कऽ हॅंकार दऽ औतैक। दूनू जतय जाइत अछि ततय जोट्टे भऽ कऽ। यैह, नाम लैत दूनू पहुँचि गेल। बहुत दिन जिबै जैबै।
फुल०-हम दूनू त पोखरि सॅं दौड़ले चलि अबै छी। जखने हावागाडी रुकलैक तखने बुझलिऎक जे 'सरौता' आबि गेल।
लाल०-गे बौआ, 'सरौता' सॅं पाछाँ कऽ भेट करिहैं। पहिने जा कऽ सभतरि हँकार दऽ अबहीक । भऽ सकौक त गीतगाइन सभ कैं अपना संगहिं बजौने अबहुन।
ढुनमुनकाकी कै बैसलि देखि लालकाकी कहलथिन्ह-'ऎ फुचुकरानी! ऎपन दऽ कऽ निश्चिन्त भय गेलिऎक? चानन चन्द्रौटा लबियौक। कजरौटा बाहर करिऔक। बाती बटिय़ौक। काछुक लखरोइया तकियौक।
ता झारखंडी कैं अबैत देखि पुछलथिन्ह-की औ बाबू? कतेक गोटे सॅं छथि? ताहि मे सौजन्य कै गोटाक हैतैन्ह?
झारखंडी कहलथिन्ह-'असौजनिया केओ नहि छथि।
लालकाकी भयभीत भऽ बजलीह-बाप रे बाप! सभ केओ सौजनिये छैक? तखन कतेक रासे सँचार लगाबक पड़तैक! एखन धरि धोतियो नहि किनैलैक अछि।
झार०-धोतीक काज नहि पड़त। वर सॅं बरियात धरि धोती बला केओ नहि अछि। जमाय पतलून कसने छथि और बरियात मे जे आयल छथि से घँघरा फलकौने छथि।
ला०-दुरजो! अहाँ त हँसी करै छी।
झा०-नहि, नहि, सरिपों कहै छी। बरियात मे खाली एकटा मेम आएल छथि। ई सुनितहिं आवेशरानी और ढुनमुन काकी भभा कऽ हँसि उठलीह और लालकाकी अवाक रहि गेलीह।
देखैत-देखैत समस्त टोल मे घोल भऽ गेल । 'एतेक दिन पर बुचियाक वर अबैत छथिन्ह से यैह कम कुतुहलक बात नहि । ताहि पर मेमक नाम सूनि विनोदक बाढ़ि आबि गेल । मेमक सम्बन्ध मे नाना प्रकारक कल्पना होमय लागल । उत्सुकतावश झुंडक-झुंड आइ-माइ पहुँचय लागि गेलीह । मेमक झाँकी-दर्शन करक हेतु दुरुखाक मुँह पर मेला लागि गेल ।
आब टिका-टिप्पणी चलय लागल ।
आवेशरानी बजलीह - त ! सरिपों स्त्रीए छैक । हमरा होइ छल जे कोनो बहुरुपिया वरियात मे आयल हैतैक ।
परिहारपुरवाली - त ऎ ! हमहुँ नहि पतियाइ छलिऎक । से सब आँखि सॅं देखलिऎक ।
पुहुपरानी - देखियौ ने केहन शान सॅं बैसलि सिगरेट पिबै अछि !
पलटीमाय - पुरुषे जकाँ झुलफीयो रखने अछि । हाथ मे अखबारो छैक ।
भखराइनवाली - पुरुष सॅं कम्मे कोन बात मे अछि ? एक हमरा लोकनि छी !
सरयू० - लेकिन कोनो तेहन सुन्दरि कहब से नहि अछि फैशन जे कैने रहौ !
पलटी - बिज्जी सन-सन आँखि छैक । नाक केहन ठाढ़ !
परिहारपुरवाली - ठोर कथू लऽ कऽ रङ्गने अछि ।
पुहुपरानी - हाथ-पैर सुकठी छैक ।
भखराइनवाली - लेकिन मुँह पर पानि छैक ।
आवेशरानी - किछु-किछु मुँहठान तारा सन लगै छैक ।
पलटीमाय-नहि। ताराक मुँह गोल छैक। एकर मुँह नमौन पर छैक।
कामेश्वरी-देखऽ मे त बीसे वर्षक सन लगै अछि, लेकिन वयस तीस सॅं कम नहि हैतैक।
सरयू०-कोन आँखि सॅं सुझै छौह? चालिस सॅं कम नहि हैतैक। देखै छही नै जे....
एहि प्रकारें मेमक सम्बन्ध मे तर्क-वितर्क होइत छल कि लालकाकी आबि कऽ कहलथिन्ह- 'आब जमाय कैं परिछि कऽ आङ्गन ने लऽ अबै जाथुन्ह।
लगले गीत उठि गेल और गाइन लोकनि गबैत-गबैत बाहर ऎलीह। सी० सी० मिश्रकै ओहि सेनाक बीच में आत्मसमर्पण करय पड़लैन्ह। परिछन तथा चुमाओनक -'पैरेड' करैत-करैत कोबर पहुँचऽ मे एक घंटा सॅं ऊपर लागि गेलैन्ह।
आब तरह-तरहक व्यंग्यवाण छूटय लागल। एक पछमीनी शह चलौलथिन्ह-'हीन चोर जगती भागल रहथ। एतना रोज पर धराइ देलन है। हिनकर निम्मन तरह से सजाय होवे के चाही।
पुहुपरानी पुछलथिन्ह-की सजाय करबैन्ह?
सरयू०-सजाय यैह जे आब फेरि एहिठाम सॅं जा नहि सकताह। एत्तहि घरजमैया बनि कऽ रहय पड़तैन्ह।
भखराइनवाली-तखन त जङ्गला मे लोहक छड़ लगाबऽ पड़त।
सरयू०-और लंगाझोरी कऽ देखि लेबैन्ह जे रेती ने चोरा कऽ रखने होथि।'
कामेश्वरी-ककरो एना भऽ कऽ उछन्नर करी से उचित नहि। दोसर-दोसर बात पुछिऔन्ह।
आब आवेशरानी चिकना-चिकना कऽ कहय लगलथिन्ह-'अयॅं ए मिसर! हिनका की भऽ गेलैन्ह? चतुर्थीएक राति मे चुपचाप चलि गेलाह। विवाहक यात्रा मे जे गेलाह से फेरि कहियो घूरि कऽ खोजो ने कैलन्हि । मधुश्रावणी, नागपंचमी, जितिया, सभ पावनि मे लोक बाटे तकैत रहि गेल । हिनको जे पुछारी-कोजागराक जइतैन्ह से कतऽ जइतैन्ह ? गामपर अपन लोकवेद केओ छैन्हे नहि । सभ मनोरथ लोक कैं लगले रहि गेलैक ।
तावत सूर्यमुखी पूछि देलकैन्ह - बाहर मे जे बैसलि छथि से अहाँ कैं के होइतीह ?
फुलमती - पिउसी होइथिन्ह नहि त पितिआइन ।
कामेश्वरी - हिनक सासुर कतय छैन्ह ?
आब मिश्रजी कैं उत्तर देब उचित बूझि पडलैन्ह । गंभीरतापूर्वक बजलाह - हिनी कुमारिए छथि ।
ई सुनितहि ठहाका पड़ि गेल ।
"पलटी माय बजलीह - गे दाइ गे दाइ ! सभ परियोग भऽ गेल, बहुरिया पद धैले अछि "! ऎहन बुढ़कनियाँ सॅं के विवाह करतैन्ह ?
भखराइनवाली - झारखंडीक भाग जगलैन्ह । बेचारे दू बेरि सभा सॅं फिरि आएल छथि ।
कोबर मे एहि तरहें हास-परिहास चलैत छल ता भोलानाथ ठकबाक माथ पर एकटा मोटा लदने आङ्गन पहुँचलाह । लालकाकी कैं डाला दैत कहलथिन्ह - एकरे अन्वेषण मे बहुत राति बीति गेल । के जाने कखन काज भऽ पड़य ! दस जोड़ धोतियो नेने ऎलहुँ अछि । ऎं ! ओम्हर घर मे एतेक लोक किएक जमा अछि ? जमाय आवि गेलाह की ?
लालकाकीक मुँह सॅं सभटा समाचार सुनि कऽ भोलानाथ बजलाह - नहि नहि । एहि खातिर अहाँ खिन्न किएक होइ छी ? साहेब-मेम त बड़का-बड़का व्यक्तिक ओहि ठाम नेओत पूरऽ जाइ छैक और जेहन ओकर सत्कार होइ छैक तेहन वरक बापो कैं नहि होइ छैन्ह ! हमरा सभक अहोभाग्य जे बङ्गला मे रहयवाली मेम एहि मडै़या मे ऎलीह । हिनका रहबा मे, भोजन-छाजन मे कनेको कोनो बातक वित्थुति नहि होमय पबैन्ह ।
आब मेम साहिबाक भोजनक प्रबन्ध होमय लगलैन्ह । दुरुखा मे ठाँव-बाट भेलैन्ह । हरद्वारि कम्बल चौपेति कऽ ओछाओल गेलैन्ह । बड़का थार मे एक अढै़या मेंही भात जाँति कऽ परसल गेलैन्ह । अठारह टा बाटी मे सँचार लगलैन्ह । लोटा-गिलास माँजि कऽ पानि धैल गेलैन्ह । पैर धोबक हेतु चिलमची-पीढ़ी राखल गेलैन्ह ।
लालकाकी एक बेरि आपत्ति कैलथिन्ह, किन्तु भोलानाथ बजलाह - नहि । ओ राड़-रोहियाक श्रेणी मे नहि छथि जे अछोप जकाँ बाहर पात पर खोआ देबैन्ह । पाछाँ आगि मे झरका कऽ अपन द्रव्य शुद्ध कऽ लेब । और जखन धोती आबिए गेल अछि तखन सौजन्यक व्यवहार किऎक ने करबैन्ह ? ओ पहिरथु वा नहि पहिरथु । हम अपना घरक मर्यादा किएक छोड़ब ?
सभ किछु ठीक भऽ गेला पर भोलानाथ मिस साहिबा कैं बजाबय गेलथिन्ह । ओ एतीकाल एकसरि बैसलि-बैसलि औंघा गेल छलीह थोडॆ़क काल मे मिस साहिबा चेहा कऽ उठलीह और भोलानाथ कैं ठाढ़ देखि 'सौरी' कहि हुनक पाछाँ चललीह ।
'सौरी'शब्द सुनि भोलानाथ भ्रम मे पड़ि गेलाह । मिस साहिबा कैं 'सौरी माछ' क अपेक्षा छैन्ह वा 'सौरी घर' क ? एहि संशयक निर्णय ओ नहि कऽ सकलाह ।
किन्तु हुनका ई भासित भऽ गेलैन्ह जे मिस साहिबा कें खोएबा-पिएबा आदिक भार आव स्त्रीगणे पर छोड़ि देवक चाही । तैं ओ मिस साहिबा कैं आङ्गन मे आनि जोर सॅं बजलाह - आब अहाँ लोकनि हिनकर आगत स्वागत करै जैयौन्ह । हम मिसर सॅं भेंट करय जाइ छिऎन्ह ।
'मेम भोजन करय आयल अछि' ई बुझितहि सभ स्त्रीगण तमाशा देखक हेतु उमड़ि पड़लीह। ढुनमुनकाकी पैर धोआबक हेतु एक लोटा पानी लऽ कऽ ठाढ़ि भेलीह। किन्तु मेम साहिबा जूता-पैताबा पहिरनहि आसन पर चलि गेलीह। एहि पर पहिल ठहाका पड़ल।
फ्रौक मे रहबाक कारण मेम ठेहुन मोड़ि कऽ नहि वैसी सकलीह। दूनू पैर पसारी कऽ आसन पर बैसय पड़लैन्ह। एहि पर दोसर ठहाका पड़ल।
छुरी-काँटाक अभ्यास-वश मेम कैं भात सानि कऽ कौर नहि बनाबय ऎलैन्ह। आङुर सँ खैबा मे नहि ओरिआइन्ह, खसि-खसि पड़ैन्ह। अगत्या ओ एक एक टा भात मुँह मे देबय लगलीह। एहि पर तेसर ठहाका पड़ल।
मेम अप्रतिभ भऽ उड़ीदक बड़ी कैं ओमलेट जकाँ खोंटि-खोंटि खाय लगलीह। ता ढुनमुनकाकी डाला-धूप लऽ कऽ पहुँचि गेलथिन्ह । मेम कै आग्रह करैत कहलथिन्ह- "बहिनदाइ! और किछु चाहिऎन्ह?"
मेमक तृष्णा डिब्बाक पनीर पर लागल रहैन्ह। कहलथिन्ह- कुछ चीज मँगाइये।
ढुनमुन०- कोन चीज लेतीह ?
मेम मुश्किल मे पड़ि गेलीह। कहलथिन्ह- 'चीज' चीज, वही सी० एच० ई० ई० एस० ई०- चीज।
सभ स्त्रीगण कैं बूझि पड़लैन्ह जे मेम अङ्गरेजी मे गारि पढ़ि रहल छथि । एहि पर पाँचम ठहाका पड़ल ।
मेम साहिबा ढुनमुन काकी सॅं नाम-ग्राम पुछलथिन्ह ।
पलटीक माय बाहर सॅं कहलथिन्ह - स्त्रीक नाम क्या पूछते हैं ? और सासुरक नाम केओ लेता है जे हिनका पूछते हैं ?
एहि पर छठम ठहाका पड़ल ।
एम्हर ठाहाका पर ठहाका पडै़ छल और ओम्हर लालकाकी बीतलि जाइ छलीह । ताबत डहकन उठि गेल ।
गीत होइते छल कि एकाएक बिहारि उड़बैत दुलारमनि पिउसी आबि कऽ पलटीक माय कैं जोर सॅं पहुँचा पकड़ि लेलथिन्ह और गरजैत बजलीह - "सभ सखी झुम्मर पाड़य लुल्ही कहै हमहूँ"! सभ क्रिस्तान भऽ जाएत त अहूँ भठि जाएब ? राम राम ! एहन अनर्थ ! जे सभ कहियो ने भेल छल से सभ आब गाम मे होमय लागल । धर्म-कर्म कोठिक कान्ह पर गेल । मुदा जौं हम नैयाँ चौधरीक बेटी त कहि दैत छी जे एहि पापे सभ सत्यानाश मे मिलि जाएत । तकै छी की ? चलू !
ई कहैत दुलारमनि पिउसी पलटी माय कैं खिचने तिरने लऽ गेलथिन्ह । हुनका जैतहिं सभ आइ-माइ उठि बिदा भऽ गेलीह ।
लालकाकी तेल-सुपारीक खातिर सोरे पारैत रहि गेलथिन्ह । किन्तु केओ फिरि कऽ तकबो नहि कैलकैन्ह ।
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