लेखक : हरिमोहन झा

गामक पंडित-प्रधान कैं एकत्र कऽ बुचकुन चौधरी कहलथिन्ह - आब 'ठोप' मेटा कऽ 'टोप' पहिरै जाउ और टीक कटा कऽ विलायतक टिकट कटबै जाउ । 'ईश' क स्थान मे 'ईशा' और 'गिरिजा' कऽ स्थान मे 'गिरजा' क पूजा होय । 'ब्रह्माण्ड' सॅं 'कुक्कुटाण्ड' और 'ओम' सॅं 'ओमलेट' पर अबै जाउ ।

पं० ढोंढाइ झा कहलथिन्ह - किन्तु एगोटाक अजाति भेने कि सौंसे गाम अजाति भऽ जाएत ? हमरा लोकनि पतितक संसर्गी नहि भऽ सकै छी ।

पं० नमोनाथ झा बजलन्हि - किन्तु ओ प प प पतित कोना भेलाह ?

ज्योतिषीजी कहलथिन्ह - तखन शास्त्रार्थ होय ।

ई कहि जोतिषीजी वीरासन लगा संस्कृत मे बाजऽ लगलाह -

"कथं न पातित्याम् ? म्लेक्षाणां स्पर्शादेव पातित्यं संघट्यते । यथोक्तं धर्मशास्त्रे - म्लेक्षच्छायाभिषङ्गेण चाण्डालत्वं प्रजायते ।"

"छायास्पर्शेनैव यदा चाण्डालत्वं सञ्जायते तर्हि काञ्चिदज्ञातकुलां विधर्मिणीं गोघ्नीं गोघ्नरूपे समादर्य, स्ववेश्मनि प्रवेश्य, स्वासने संस्थाप्य, स्वपात्रे परिषेव्य, यः सिद्धान्नं संभोजयति तस्य कथं न संसर्गदोषः ? अनार्युष्टे सति तन्महानसे कथमस्माकं तेन सह सहभोजित्वम् ? यः लोकविरुद्धमाचर्य, सनातनधर्ममर्यादामुलङ्घितवान् तस्य कथं नाम ब्राह्मणत्वम् ? वेदोक्तविधिवाक्याद्वभिचर्य , स्मृत्युक्तसदाचारसरणेः संस्खल्य, परम्परागतपरिपाटीं प्रत्रोट्य स व्रात्यत्वमुपगतोऽतएव सर्वस्मात् सामाजिककर्मणो वहिष्कार्य इति मे सिद्धान्तः । वर्त्ततेऽत्र कोऽपि सन्देहः ? तस्य प्रायश्चित्तार्हत्वे कोऽप्याक्षेपश्चेत् कस्मिंश्चिच्छङ्काच्छन्नचेतसि तर्हि उद्गीर्यताम्; प्रमाणवचनञ्च्वोद्घाट्यताम् ।"

एहि प्रकारें सिंहगर्जन करैत ज्योतिषीजी पूर्वपक्ष स्थापित कैलन्हि । चारु कात सॅं 'साधु साधु' उच्चरित होमय लागल । कोनो प्रतिपक्षी कैं उत्तरपक्ष करबाक साहस नहि पड़लैन्ह । पं० नमोनाथ झा किछु गोङियाय चाहलन्हि, किन्तु खट्टर चौधरी डाँटि कऽ कहलथिन्ह - दूर जी ! आब की बाजब ? अहाँ कैं मन होय त सागभात करू गऽ । हमरा हमरा लोकनि भटमेर नहि कऽ सकै छी ।

अन्ततोगत्वा सर्वसम्मति सॅं निर्णय भेल जे 'लाल' कैं बारि देल जाइन्ह । जा घर-घराएन 'पतिया' नहि करथि ता समाज नहि उठबैन्ह ।

अतएव जखन लालकाकीक बैन बँटाय गेलैन्ह त केओ नहि रखलकैन्ह । दहीक स्थान मे उज्जर 'चीज' देखि घोल उड़ि गेल जे अंडाक गुद्दी सॅं लालकाकी सभ कैं भटकाबय चाहै छथि । बैन देखि सभ आँगन मे किछु ने किछु व्यंग्यपूर्ण आक्षेप भेल ।

ज्योतिषिआइन बजलीह - हम सत्तरि वर्षक भेलहुँ । दही-माछ देखैत-देखैत केश पाकि गेल । तों आजुक नेना भऽ कऽ हमरा परतारय आएल छह ! जौं काशी मे फच्च दऽ फुटैत नहि देखने रहितिऎक त नहियों चिन्हितिऎक । जाह, जाह ! जखन एतेक दिन निमहि गेल त आब मरक बेरि आब ई की छूबूगऽ ?

पलटीक माय बजलीह - मेम सॅं छुआएल एहन महाप्रसाद फेर कतय पबै जैतीह ? अपनहि लोकनि भरि पेट खाइ जैहथि।

भखराइनवाली कहलथिन्ह-विलायती बैन खैबाक हेतु मुँहो विलायती चाही। हमरा लोकनि कैं ओहन मुँह कहाँ?

परिहारपुरवाली कहलथिन्ह-जौं सभ दिन भेटैत त खैबो करितहुँ। एक दिन खातिर की जाति दियऽ?

पुहुपरानी बजलीह-कनेयाँ अपने जा कऽ वर कैं द्विरागमन करा अनलथिन्ह तखन दही-माछ बँटाइ अछि! हुनका त ऎहबक फर बाँटक चाहिऎन्ह।

आवेशरानी नहूँ-नहूँ बजलीह-हम त राखि लितहुँ, लेकिन दस लोक सॅं फराक भऽ कऽ कोना-रहब?

एवं प्रकारें टीका-टिप्पणीक संग सभ आङ्गन सॅं बैन फिरता आएल।

मेम साहिबा त अपन 'डेरा' कूच कैलन्हि, लेकिन 'डंडा' भोलानाथक माथ पर बजरलैन्ह। भाइबन्धुक संगे-संग पौनियो पसारी छोड़ि देलकैन्ह। लालकाकीक रंग उतरि गेलैन्ह। मिसेज बी. दाइ' अपन बिदाइ बिसरि गेलीह और सी० सी० क 'स्पिरिट' उड़ि गेलैन्ह।

जखन लाल ऎलाह त हालचाल बूझि सभ ताल बिसरि गेलाह। ओ आब लाल पानक बादशाह सँ स्याह पानक गुलाम भेल छ्लाह। 'बटुको' अपैत भऽ गेलथिन्ह। 'कंटीर' 'कनकीट' भऽ गेलाह।

लालक प्रार्थना पर गामक ठाकुरबाड़ी मे सभा बैसल। पंच परमेश्वरक फैसला भेलैन्ह से भोलानाथ तुलसी-ताप लऽ कऽ शपथ खाथु जे मेमक संपर्क सँ सर्वदा बाँचल छथि। तखन लोकापवादक प्रक्षालनार्थ सभ बर्तन-बासन कै फैकि सम्पूर्ण घर-आङन कै गोबर-माटि सँ नीपि, तिल-कुश-गंगाजल सॅं सिक्त करय पड़तैन्ह ।

लाल हाथ जोडि कहलथिन्ह - हमरा सभटा शिरोधार्य अछि ।'जाति गंगा गरीयसी क आज्ञाक विरुद्ध के जा सकै अछि ? आब जाहि सॅं हम उत्तीर्ण होइ से अहीं लोकनिक हाथ मे अछि ।

घर आबि, स्नानादि कऽ, जनउ बदलि, एक सहस्र गायत्री जपि, पञ्चगव्यादि पान कय लाल शुद्ध भेलाह । औरो और लोक शुद्ध भेलाह । केवल सी० सी० मिश्र गोमूत्र पीब अस्वीकार कऽ देलथिन्ह । तैं हुनका चाय मे मिला कऽ देल गेलैन्ह । और गोबर मे पुदीना-बेसन फेंटि कऽ 'चौप' बना देल गेलैन्ह ।

आब लाल 'मांजनि' (मान्य जन) लोकनि सॅं आज्ञा लऽ भोज-भातक तैयारी मे लगलाह । किऎक त सिद्धान्तक परिपाकक हेतु समाज मे सिद्धान्नक परिपाक होयब आवश्यक ।

आइ लालक आङ्गन मे छौ सात टा 'तिउर' खुनल गेल छैन्ह । ताहि पर बड़का-बड़का खाँखर सभ चढ़ल अछि । कोनो मे चाउर, कोनो मे दालि, खदकि रहल अछि । पाकमल्ल लोकनि काछ भिड़ने अपन-अपन मोर्चा पर डटल छथि । केओ टोकना मे बाँसक काँड़ी लगा कऽ माँड पसा रहल छथि । केओ खखनहर मे झाँझ सॅं भात छाँकि रहल छथि । केओ बड़का दलिरन्हा चढौने छथि । सभक देह घामे-पसीने तर-बतर भेल छैन्ह किन्तु हाथ अपैत रहने पोछथु कोना ? एक पाककर्त्ताक ललाटक स्वेदविन्दु नासाग्र पर आबि मोतीक स्वरुप धारण कैलकैन्ह । किन्तु जहिना एक आँजुर आमिल उझीलक हेतु निहुड़लाह कि ओ मोती टप दऽ खदकैत दालि मे जा विलीन भऽ गेलैन्ह ।

ओसारा पर करछुक टनटन संग चूड़ीक झनझन स्वर व्यञ्जित करैछ जे व्यञ्जन वर्ग महिलाश्रित अछि ।

भंडार घर मे धूरेक केराक पात पर भालसरी फूल सन भातक ढेरी लागल अछि । भोज्यान्नक सौरभ सॅं सम्पूर्ण भवन गमगम कऽ रहल अछि ।

पहर राति बितैत-बितैत लालक दलान पर समवेता-बुभुक्षवः भरि गेलथिन्ह ।

एहि दल मे दन्तहीन नेना सॅं लय दन्तहीन वृद्ध पर्यन्त सम्मिलित छलाह । भिन्न-भिन्न आकार प्रकारक लोटा सॅं दलानक कँगनी भरि गेल ।

लाल आबि पुछारी कैलथिन्ह - की ? आब त सभ केओ आबि गेलाह ?

कंटीर कहलथिन्ह - तीन गोटे नहि आयल छथि - बुचकुन चौधरी, खट्टर चौधरी और ढोढ़ाइ झा ।

ढोढ़ाइ झाक महिष एक बेरि भोलानाथक खढ़ौर मे पड़ि गेल रहैन्ह जकरा भोलानाथ फाटक मे दबा देने रहथिन्ह । फलस्वरुप ढोढ़ाइ झा कैं अढ़ाइ टका दण्ड लागल रहैन्ह । एहि खीस सॅं ओ खाय नहि ऎलाह ।

खट्टर चौधरी कैं मुकुन्द सॅं मुकदमा चलैत छलैन्ह । ताहि मे भोलानाथ मुकुन्दक दिस सॅं गवाही देने रहथिन्ह । खट्टर चौधरी हारि गेलाह । आब ओकर कुन्नह भोजक बेरि सधाबय लगलथिन्ह ।

बुचकुन चौधरी कैं कोनो टा देखार कारण नहि रहैन्ह । अतएव ओ खट्टर चौधरीक ईड़ धऽ कऽ रहि गेलाह ।

लालकका भोलानाथ कैं कहलथिन्ह - तों अपने जा कऽ मना लबहुन । की औ ज्योतिषीजी कका ?

ज्योतिषीजी कहलथिन्ह - हँ, हँ, अवश्य ।

भोलानाथ झा झारखंडी कैं संग लऽ कऽ मनौअल मे गेलाह । एहि स्वर्ण सुयोग सॅं लाभ उठबैत कतिपय बुभुक्षु कान पर जनउ चढ़ा, हाथ मे लोटा लेलन्हि और अपना पाकस्थली कैं ताहि प्रकारें शुद्ध कऽ ऎलाह जेना मुमुक्षु अपना अन्तःकरण कैं शुद्ध करैत छथि ।

एक घंटाक बाद भोलानाथ प्रत्यागत भेलाह । ढोढ़ाइ झा त आबि गेलथिन्ह, किन्तु खट्टर चौधरी और बुचकुन चौधरी कोनो तरहें नहि मानलथिन्ह ।

लालकका ज्योतिषीजी दिस ताकि पुछलथिन्ह - आब की होबक चाही ?

ज्योतिषीजी कहलथिन्ह - एक बेरि अपने जा कऽ देखि अबियौन्ह ।

लालकका अपने लालटेन लय बिदा भेलाह । निमन्त्रित ब्राह्मण लोकनि कैं भोजनशक्तिक उपयोग करबा मे पुनः व्यवधान भऽ गेलैन्ह । कतेको गोटा मनहि मन बुचकुन चौधरी कैं ब्रह्मशाप देबय लगलथिन्ह । छोट-छोट नेना सभ औंघाय लागि गेल ।

डेढ घंटाक बाद लालकका खट्टर चौधरी कैं नेने पहुँचलाह । किन्तु बुचकुन चौधरी असक्क होयबाक लाथ कय नहि ऎलथिन्ह ।

एक बजे रातिक अन्दाज घरबैया कहलथिन्ह-'तखन आब बिझौ होऔक!

'बिझौ' शब्द सुनितहि बिजलीक लहरि दौड़ि गेल। सभ केओ साक्षांक्ष भऽ अपन-अपन लोटा हाथ मे उठौलन्हि। जनिक नेना सूति रहल रहैन्ह से जोर सॅं नेनाक नाक मलि निंद तोड़ि देलथिन्ह। भक्तदेवक विशेष भक्त लोकनि पहिनहि पैर धो माँझठाम बीडी पर जा बैसलाह। वयोवृद्ध लोकनि झटकलो उत्तर पछुआ गेलाह, तैं कतेक गोटा कैं ऎठकटार लग वैसय पडलैन्ह। ज्योतिषीजी कैं भट्टा मे वैसव स्वीकार नहि भेलैन्ह, तैं दुरुखाक मुँह पर आसन ओछा देल गेलैन्ह।

आब बारीक गण अपन-अपन चुमकी देखाबय लगलाह । भोजनार्थी लोकनि अपन-अपन सुचिक्कण कदली थंभक पात कैं सिक्त कय भात सरियाबऽ लगलाह । ताहि पर आमिल देल राहड़िक दालि परसल गेल । तदन्तर सजमनि, कदीमा, अदौरी-भाटा, आलू-परोर, साग, तिलौरी, पापड़, तिलक चटनी और तेतरिक खटमिट्ठी परसाय लागल । तत्पश्चात आम्रपल्लव लऽ कऽ घृत परसैला उत्तर ज्योतिषीजी कहलथिन्ह - आब होउ ! 'पवित्री' पड़ि गेल । नैवेद्य दैत जाउ ।

आब भोजनक सपासप ध्वनि एक ताल सॅं बहराय लागि गेल ।

थोडे़क कालक उपरान्त बड़ी उठल ।

पं० नमोनाथ झा दू-चारि टा चाखि कऽ बजलाह - बाह ब ब ब ब बड़ी ब ब ब बड्ड व व विलक्षण ब ब ब ब बनलैक अछि ।

ज्योतिषीकका समर्थन करैत कहलथिन्ह - हॅं बेश मुलायम छैक । घाटि खूब कऽ फेनल गेलैक अछि । झोरो बेश खटतुरुस भेलैक अछि । किन्तु हमरा केराव बाँतर करत तैं खाइत डर होइ अछि ।

पलटू झा जीभ चटपटबैत बजलाह - तेतरीक खटमिट्ठी बड़ दिव भेलैक अछि । खूब चटकार । एहि मे जीरक स्वाद अपूर्व लगैत छैक ।

लाल बजलाह - हौ, खटमिट्ठी एक बेरि और उठाबह ।

किछु कालक उअपरान्त दही-चीनी उठाओल गेल ।

ढोढ़ाइ झा कहलथिन्ह - दही किछु अम्मत भऽ गेलैक अछि । कनेक नोन मँगाउ ।

बटुकजी बजलाह - आइ चार रोज के पौरल है - खट्टा केङत कऽ न होयत ? ओह पर बथनिया सभ भैंसी के .......

लाल हुनका चुप करैत बजलाह - हौ कंटीर, रतुका पौरल मटकूर उठाबह ।

ज्योतिषीजी कहलथिन्ह - हाँ हाँ ! चीनी फराके सॅं परसह । जाह ! दही क ऊपरे मे धऽ देलह । बारीक पक्का नहि भेलाहै ।

अन्त मे सकरौड़ी उठल । भोलानाथ बाटी लऽ कऽ पातेपात परसय लगलाह । किछु अधिक चतुर व्यक्ति गिलास वा लोटा मे सकरौड़ी पीबय लगलाह ।

बौकू झा मौन-भोजन करैत छलाह । हुनका बगल मे एक सात वर्षक नेना बैसल छलैन्ह । सकरौड़ी परसाय काल ओकरा पियास लागि गेलैक । जहिना लोटा उठा कऽ मुँह मे लगौलकैन्ह तहिना बौकू झा ओकरा गाल मे बामा हाथें एक तबड़ाक लगाओल । नेनाक मुँह सॅं लोटा छूटि गेलैक । बौकू झा पानि फेकि जा लोटा अजबारथि ता बारीक पाते पर परसि आगाव बढ़ि गेलैन्ह । बौकू झा पित्तें औंट भऽ गेलाह। किन्तु बाजथु कोना? ओ अपन मृक क्रोध नेना पर उतारय लगलाह। मुँह दूसि इशारा सँ कहय लगलथिन्ह - आब पीबि ले सकरौड़ी ! अभागल ! भोजो मे एलाह त घट-घट पानिए पीबय लगलाह । पानि त अपनो इनार मे भेटितौक । कर्मनेढ़ा ! मुँह ने देखिऔन्ह केहन सुथनी सन बनौने छथि !

ताबत मुकुन्द और झारखंडी मे सकरौड़ी पिउबाक बाजी लागि गेलैन्ह । घरबैयाक छाती धरकय लगलैन्ह । भोलानाथ ऊपर सॅं सकरौड़ी ढारने जाथिन्ह और झारखंडी चुर ओरने घट-घट करैत पिउने जाथि । एक्के बेरि झारखंडीक कंठ मे एतेक रासे सकरौड़ी चलि गेलैन्ह जे ओ उजबुजा गेलाह । कंठनलिका बन्द भऽ गेने दूनू आँखि उनटि गेलैन्ह और नाक दऽ सकरौड़ी बहय लगलैन्ह । आब गर्द पड़ल-पानि लाउ, पानि लाउ ! झारखंडी पर छिटिऔन्ह ।

भोलानाथ एकाएक पानि लाबक हेतु जे घुमलाह से तलमला कऽ पातिल नेनहि मुकुन्दक पात पर खसलाह । आब सकरौड़ीक नदी मुकुन्दक पलथी तर दऽ बहय लगलैन्ह ।

लालकका अपने दौड़ि कऽ ऎलाह और पानिक छिटका देबय लगलथिन्ह । किछु कालक उपरान्त झारखंडीक जी ओकैलैन्ह और गरी-किशमिश सहित खैलहा सकरौड़ी पाते पर बोकरि देलन्हि ।

होश भेला पर झारखंडी आँखि तकलैन्ह और हाथक इशारा सॅं कहलथिन्ह - केवल सरकि गेल छल । कोनो चिन्ता नहि ।

झारखंडीक इच्छा रहैन्ह जे एक लोटा सकरौड़ी पान कैल जाय । किन्तु तावत सभक उठऽ क हुर्र भऽ गेल ।

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