2. अकाण्डताण्डव द्विरागमन
लालकाकी अमौटक हेतु आमक गाड़ा बनबैत छलीह कि आवेशरानी पहुँचि गेलथिन्ह । लालकाकी उल्लसित स्वर सॅं बजलीह - 'आबथु ऎ बहिना ! आइ त बिढ़नीक द्वारें जाने बाँचब कथिन अछि । फुचुकरानी कैं बिच्चे लुल्हुआ पर काटि लेलकैन्ह अछि । ओल लगौने बैसल छथि । आब हमरो पर बघुआइत अछि ।' आवेशरानी आवेश जनबैत बजलीह - 'अहा हा ! कनैलक फूल किऎक ने रगड़ि देलिऎन्ह !'
तदनन्तर बिढ़नीक समालोचना सॅं प्रारम्भ भय जे गप्प उठल से नहि जानि कोना कऽ घुमैत- फिरैत अन्त मे आधुनिक फैशन पर आबि खसल !
आवेशरानी बजलीह - हः हः । आइकाल्हिक छौड़ी सभ जे ने करय । हमरो लोकनि एक दिन नव रही । बूढ़ पुरनियाक एतेक धाख रहय जे आँचर कैं दोबर कऽ कऽ ओढी़ । मुदा आबक छौड़ी सभ त मकुना माधव जकाँ सोझहिं ठाढ़ि। की त लोक शोभा देखौ!'
लालकाकी समर्थन करैत कहलथिन्ह-'हॅं, ऎ बहिना! आब त एहन फैशन चललैक अछि जे आँचर कैं घुमा कऽ पीठ पर फेंकि दैत छैक। देखलथिन्ह ने वैद्यनाथधाम मे?
आवेशरानी - गे दाइ गे दाइ! ओ छौड़ी सभ त और अकरहर करैत रहय । सभक सभ केश उघारने । एहन सन क्रम जे केओ आबि कऽ सिन्दूर धऽ देओ ।
लालकाकी - ऎ बहिना ! आब सिउंथि में सिन्दूरो कहाँ दैत छैक ? हमरा लोकनिक अमल मे त पटमासी सिन्दूर चलैत छलैक । आबक छौड़ी त सुइक नोक सॅं माङ्ग क बीच मे लकीर करत अछि । ताहू मे जकरा कनेक अङ्गरेजी पढ़ल वर भेलैक से त कनपट्टीए लग सॅं टेढ़ी माँग फारय लागत ।
आवेशरानी - ऎ बहिना ! टेढ़ी माङ्ग देखि कऽ त हमर सौंसे देह जरि जाइत अछि ।
ला० का० - हॅं ऎ बहिना ! से त सरिपों कहै छथि । हमरो बड़ तामस होइ अछि । मुदा जे कहथुन्ह, लगै छैक बेश शनगर ।
आ० र० - दुर जो ! हिनको बुढा़री में सौख सुझै छैन्ह । उघार केश देखि कऽ हमरा त एहन पित्त उठै अछि जे होइ अछि पाछाँ सॅं चोटी पकड़ि खीचि ली ।
ला० का० - ऎ बहिना । आइकाल्हि पढ़लि-लिखलि लडकी सभ देहाती मौगी जकाँ माथ नहि झपै छैक । किएक त माथ मे ठंढा हवा लगला सॅं ओकर सभक दिमाग तेज रहै छैक आब त देह मे हवा लगबाक खातिर एहन-एहन गंजी चललैक अछि जे सौंसे बाँहिक संग काँखो उघार रहै छैक ।
आ० रा० - हॅं झाँपल रहने लोक गोर बाँहि कोना देखितैन्ह ? चिक्कन काँख कोना देखतैन्ह ? काँखक दोग सॅं झलकैत देह कोना देखतैन्ह ? एहन-एहन छौड़ी कै त लोह धिपा कऽ दागी ।
ला० का० - ऎ बहिना ! त हिनका डाह किएक होइ छैन्ह ? नवलोक जे करय से सब छजै छैक । हमरो लोकनि नव मे चोली पहिरिऎक त सासु कैं एहिना लगैन्ह ।
आ० रा०- कहू त भला ! हमरा लोकनिक आँखि मे लाज रहय । निहुड़ि कय चली । कनेक आँचर उघार भऽ जाय त चेहा कऽ ताकी जे केओ देखलक त नहि । आबक छौड़ी सभ त उत्ताने भऽ कऽ चलत । बरौनी जंकशन मे देखलथिन्ह नहि ? चोटी उघारने, हाथ मे घड़ी , आँखि मे चश्मा, चट्टी पहिरने, छ्म-छम करैत पुरुष जकाँ हाथ मे बेग नेने गाड़ी मे चढ़ि गेल । हमरा लोकनि सॅं एहि धुआ मे ई होइत ?
लालकाकी आवेशरानी कैं कुढै़बाक अभिप्राय सॅं बजलीह - ओ कोन बेजाय कैलक ? ओहन धीपल पलस्तर पर हमरा सभ कैं पैर नहि रोपल जाय । बुझाय जे आब औंठा मे फोका पड़त । तेहना हालति मे जौं हमरो सभक पैर मे चट्टी रहैत त कोन पाप होइत ?
आवेशरानी उत्तेजित भऽ कऽ बजलीह - मारी बाढ़नि धऽ कऽ ! जुत्ता-चट्टी त ओ पहिरय जेकरा पुरुषक माथ पर नाचक होइ । देखै छथिन्ह नहि तारा कैं ? एतबहि मे चट्टी क चटर-चटर शब्द सूनि दूनू बहिना साकांक्ष भऽ गेलीह । देखै छथि त सद्यः तारा देवी आबि रहल छथि ।
एहि ठाम तारा देवीक किछु परिचय देब आवश्यक । ताराक वयस अट्ठारह । क्रीमक सुगन्ध सॅं गम-गम करैत गोल मुँह । केश टेढ़ कऽ फारल । ताहि सॅं पोमेडक खुशबू बहराइत । बङ्गला स्टाइल सॅं पहिरल नारंगी रंगक जार्जेट सा री । झिलमिल जार्जेटक पारदर्शी जाल सॅं रेशमी ब्लाउजक गुलाबी रंग झलकैत तथा पृष्ट प्रदेश पर नागिन सन लहराइत चोटी झकझक सुझैत । अर्द्धचन्द्राकार केश विन्यास सॅं आच्छादित ईयरिंगक केवल गोल मटरदाना टा बिजलीक बल्ब जकाँ चमकैत । दूनू बाँहि निरावरण तथा निराभरण । हाथ मे केवल एक-एकटा फीरोजा रंगक चूड़ी । चेहरा पर कखनों मुसकुराहट कखनो शान । जेना वर्षा बरसि कय तुरन्त तीक्ष्ण रौद प्रकट भऽ जाय ।
फैशनेबुल युवतीक ई गेब देखितहि दूनू बहिनाक आँखि चौन्हिया गेलैन्ह । तथापि लालकाकी सम्हरि कय बजलीह - 'गे बुचिया कहाँ गेलें ? झट दऽ नवका शतरंजी नेने आ । देख तारादाइ एलथुन्ह अछि । पुनः तारा देवी क स्वागत करैत कहलथिन्ह - आबह तारा दाइ । बहुत दिन पर सासुर सॅं ऎलीह । आब कि ई लोक सभ मन हैतौह ?
तारा दाइ ऎचैत-मैचैत आगाँ बढ़ि अत्यन्त कष्टपूर्वक दूहूक प्रौढाक कनगुरिया छुबैत अपन आलता-रंजित चरण सॅं शतरंजी कैं सुशोभित कैलन्हि ।
लालकाकी पुछलथिन्ह - तों त, सुनै छी, पटनो गेल छलोहय ? कतेक दिन ओतय छलोह ?
तारा दाइ गंभीरतापूर्वक आँखि नीचा कय बजलीह - ओतय तीन मास छलिऎक ।
ला० का० - कथिक इलाज होइ छ्लोह ?
तारा० - कहियोकाल करेज मे कनेक दर्द भऽ जाइ छल ।
एहि पर दूनू बहिना मे व्यंग्यपूर्ण कटाक्षक विनिमय भेलैन्हि।
एयबहि में अत्यन्त चिक्कणताक कारण तारा दाइक माथा सँँ साड़ी ससरि गैलैन्ह ताहि सँँ दूनू कनपट्टी में खोंसल फुलदार काँँटा उघार भऽ गेलैन्ह। ई काँँटा दूनू प्रौढाक आँँखि में गड़य लगलैन्ह।
आब आवेशरानी कैं नहिं रहि भेलैन्ह। बजलीह- ईह! कोन-कोन फैशन आब परचरलैक अछि से नहि जानि।
लालकाकी कैं बूझि पड़लैन्ह जे आब ई कोनो व्यंग्य करथिन्ह, तैं झट दऽ बात लोकि बजलीह- ऎ बहिना! ताहि दिन ककरो सासुर सँँ एकरंगा आबैक त सौंसे गामक लोक तमाशा देखऽ लेल जमा भऽ जाइ। आब त कोन-कोन कपड़ा बहरैलैक अछि तकर नामो नहि जानै छिऎक । ऎं हे तारा! ई कोन-साड़ी कहबैक छैक?
तारा देवी गर्वमिश्रित मुसकान सँँ बजलीह,-आइकाल्हि एकरे फैशन छैक। विलायत सँँ आबै छैक। मुदा बड़ रुपया लगै छैक।
लालकाकी पुराइ करैत कहलथिन्ह- हे दाइ! एहि में खोंइछो कोना कऽ देबौह?एहन सुन्दर साड़ी मे धान कौना कऽ बन्हबह?
तारा देवी एही प्रथा पर बिहुँँसैत बजलीह- काकी, आशीर्वाद दियऽ। धान लऽ कऽ की हैतैक?
ला०- आशीर्वाद त भगवतीए देने छथुन्ह। तोरा सन भाग्य ककरा हैतैक?
ई कहैत लालकाकी कैं अपन बुचिया मन पड़ि गेलैन्ह। आँँखि सँँ टप-टप नोर चुबय लगलैन्ह।
ई असमय रोदन देखि बड़कागामवाली झट भीतर सँँ आबि तारादेवी कैं अपना कोठरी मे लऽ गेलथिन्ह ।
लालकाकी आँँखि पोछैत बजलीह - दुर जो ! आँँखियो अपन सक नै अछि । ओकरा खोमो लागल हेतैक । अभागलि बुचियाक कपार केहन भेलैक से नहि जानि ।
आवेशरानी कहलथिन्ह - भगवान पर भरोस राखथु बहिना ! आइ नहि त काल्हि ओहो रानी बनबे करति । और तारा ओकर परतर की करतैक ? बुच्चीदाइ जे पैर धो कऽ फेकि देत से त ओकरा हैबे नै करतैक । फैशन कैने की हैतैक ?
एतबहि मे दुलारमनि पिउसिक स्वर कर्णगोचर भेल - की ऎ मधुरानी ! जमायक कत्तहु पता लागल ?
लालकाकी पित्त घोंटि कय बजलीह - आबथु बड़की दाइ ! बहुत दिन पर ऎलीह । मिसरक कहाँँ कोनो चिट्ठी-पत्री आएल छैन्ह । बुच्ची दाइक भाग्ये जरल छैन्ह त हमरा सभ की कऽ सकै छिऎन्ह ?
दुलारमनि पिउसी गरजि कय बजलीह - हम त पहिनहिं कहै छलहुँँ जे कुलमर्यादा देखि कय वर करब । छोटबभना दछिनाहा कैं उठा अनने त यैह सब हैत कि ने !
बुच्ची दाइ ढुनमुन काकीक नेना कैं कोड़ मे नेने खेलबै छलथिन्ह । अपना भाग्यक एहि तरहें आलोचना होइत देखि नेना कैं पटकि आङ्गन सॅं बाहर निकसि गेलीह । नेना कैं क्रन्दनध्वनि सुनि ढुनमुन काकी ओल कटनाइ छोड़ि दौड़लि ऎलीह । नेना कैं हँँसोथि कय आँँखि पोछैत बजलीह - 'हः, आङ्गनक सभ काज हम करी । केओ नेनो कैं राखत से नहि !' किन्तु ओलक कबकबी आँँखि मे लगने नेना और जोर सॅं चिचियाय लगलैन्ह । तखन लालकाकीक ध्यान आकृष्ट भेलैन्ह । कहलथिन्ह - ऎ फुचुकरानी ! जाउ; कनेक पिया दिऔ गऽ ।
दुलारमनि पिउसी अपना बात कैं पाछाँँ पड़ैत देखि और जोर सॅं बाजय लगलीह - हुनका गामों पर केओ लोकवेद छैन्ह कि नहि ? की देखि कऽ एहन जमाय कैलहुँँ ? एहि सॅं त हे .... ।
एतबहि मे भोलानाथ झा खुशी होइत आङ्गन ऎलाह । बजलाह - भौजी रेवती क चिट्ठी आएल अछि । ओ आइ जे घड़ी गाम नहि पहुँचलाह अछि । मिसर हुनका पटनाक पता सॅं चिट्ठी लिखने छथिन्ह से नेने अबै छथि ।
ई समाचार सुनितहि लालकाकी आनन्द सॅं गदगद भय दुलारमनि पिउसिक दूहू पैर पकड़ि कहय लगलथिन्ह - बड़की दाइ ऎ बड़की दाइ ! हिनकर पैर लछमिनियाँँ भेल ऎ दाइ । कहाँँ गेलौं ऎ कनियाँँ ? पूजाक सामग्री ओरियाउ । सत्यनारायण महाराजक कबुला मानल अछि । देओर दिस ताकि कऽ बजलीह - ऎ बाबू ! हमरा मधुर मँँगा दियऽ । भरोस नहि छल जे भगवान एहन समाचार सुनौताह ।
भोला नाथ कऽ गेला पर बरकागामवाली तारा दाइक संग बहरैलीह । तारा विहुँँसैत कहलथिन्ह - काकी, हमरो हिस्सा भेटक चाही । सकड़ीक लड्डू सॅं काज नहि चलत । पटनाक पिंटूक रसगुल्ला खोआबऽ पड़त ।
दुलारमनि पिउसी जाहि उद्येश्य सॅं आइली छलीह से तॅं पूर्ण नहि भेलैन्ह, प्रत्युत उनटे भऽ गेलैन्ह । मन मे सोचय लगलीह - दुरजो ! केहन कुयात्रा मे चलल छलहुँ ।
ताबत तारा दाइ टोकलथिन्ह - पिउसी ! गुम्मसुम किएक छिऎ ? मिठाइ खैबैक त पहिने गीत गबियउ ।
ई कहब की छल - बिढ़नीक छत्ता खोचारब । दुलारमनि पिउसी अपन सभटा खीस आब तारा पर उतारय लगलीह - "ऎ गै तारा ! तोरा एको रत्ती धाख नै छौक ? तोहर बाप हमरा सोझा एना बजिते नइँ छथुन्ह । तों हमरा सॅं चोल करै छैं ! बड़ चकमक्की छौ त अपना वर कैं देखो गऽ । चट्टी पहिरि कऽ चलइ छैं, कनेक बाँहि उघारि लइ छैं, त बुझइ छैं जे और केओ लोक नहि । गोर माउगि गर्वहि आन्हरि ! हमरो लोकनि एक दिन नव रही । एना अतत्तह नहि करी । आबक छौड़ी त्त विष मातल रहै अछि । जकरा बड़ खौंत फुकैक से जाठि मे ..........।"
लालकाकी देखलन्हि जे आब अनर्थ भेल जा रहल अछि । झट्ट दऽ बीच मे पड़ि बजलीह - बड़की दाइ ! एहन सुभ अवसर पर ई विगड़ै छथि ! तारा दाइ कहाँ किछु अनर्गल कहलथिन्ह अछि ?
ताराक गंजन देखि आवेशरानीक रोआँ-रोआँ जुराइत छलैन्ह । तथापि ऊपर सॅं बजलीह - एतेक दिन पर भगवान सहाय भेलथिन्ह अछि । आइ कत्तहु कर्र-कर्र होय ?
'कर्र-कर्र शब्द बहरायब छल कि दुलारमनि पिउसि हुनके पर उनटि गेलथिन्ह - अयँ ऎ ! हम कार-कौआ छी जे कर्र-कर्र करब ? कोन छुच्छी एहन कहयवाली अछि ? जे कहत तकर जीभ सट्ट दऽ खीचि लेबैक । मधुरानी हमरा जे ने कराबथि । आइ दिन सॅं फेरि एहि आङ्गन मे पैर दी त ब्राह्मणक बेटी नहि ।
ई कहैत दुलारमनि पिउसी जहिना तमकि कय ठाढ़ि भेलीह तहिना पैर तर एकटा ललका बिढ़नी पड़ि गेलैन्ह । ओ और जोर सॅं चिचिया कय लालक सातो पुरुखाक उद्धार करैत अपना घर दिस बिदा भेलीह ।
हुनका गेला पर तारा दाइ अपन ओटो दिलबहारक खुशबू सॅं तर रुमाल सॅं आँखि पोछैत बजलीह - काकी, हमरो हुकुम दियऽ । खोइछ मे आशीर्वाद भेटिए गेल से नेने जाइ छी ।
लालकाकी हपसि कय कहलथिन्ह - दाइ ! अहाँ कै हमरे सपथ अछि । एकोरत्ती क्षोभ नहि राखब । ओ त जेहन छथि से सभ गोटा कैं जनले अछि ।
आवेशरानी कहलथिन्ह - देखलिऎन्ह ने ? तुरन्त हमरे पर कोना उनटि गेलीह ।
एतबहि मे टमटमक रुनझुन शब्द श्रुतिगोचर भेल । बड़कागामवाली चेहा कय दुरुखा सॅं हुलकी मारलन्हि और दौड़ले अपना घर मे जा कऽ साड़ी बदलय लगलीह ।
रेवतीरमण माय तथा पितिआइन कैं प्रणाम कय आङ्गन मे बैसलाह । पुनः एकान्त देखि नहुँ-नहुँ कहय लगलथिन्ह - मिसर त बड़का ढड्ढर लिखि पठौने छथि । तकर सारंश ई जे हुनका कालेज मे बिजली नामक एक लड़की छैन्ह से व्याख्यान मे सभ सॅं फर्स्ट भेल छैन्ह । ओकरा देखि हुनका ई सिहन्ता होइ छैन्ह जे ओहने स्त्री सॅं विवाह होइत ।
लालकाकी बीचहि मे बजलीह - हम त पहिनहि सॅं जनै छलहुँ जे कोनो निरासी हमरा बेटीक सौतिन बनल अछि । आब बुझा ने गेल । हे भगवान, ओ छौीड़ केहन निर्लज्ज अछि जे छौड़ा सभक बीच मे जा कऽ छमकैत अछि । नाम की छैक त बिजली ! जरलाहो बिजली पर बज्र खसौ ।
ई कहि लालकाकी आँचर सॅं आँखि पोछय लगलीह । रेवतीरमण बजलाह - मिसर लिखैत छथि जे 'अपना गाम मे महिला क्लब कायम करु । स्त्रीगण कैं शिक्षित तथा जागरित करू । हमरा सासुरक लोक योग्य बनि जायत तैखन हम अहाँक ओतय आबि सकै छी ।'
लालकाकी माथ पर हाथ दय बजलीह - आब ई लोक एहि जन्म मे 'योग्य' कोना कऽ बनि जाएत ? जौं 'योग्ये सोति' मे करक छलैन्ह त जयवारक ओहि ठाम ऎलाह किएक ? और हुनकर अपने बाप कोन 'योग्य सोति' छथिन्ह जे सासुर मे 'योग्य' खोजै छथि ?
रेवतीरमण कहलथिन्ह- "नहि-नहि। से 'योग्य' नहि। हुनक आशय छैन्ह जे वुच्ची दाइ कैं शिक्षा देल जाइक......।"
लालकाकी बात काटि कहलथिन्ह- बड्ड बापक बेटा बनलाह अछि जे एखने सँ हमरा बेटी कैं 'शिक्षा' देमय लगलाह अछि। कोन अनुचित हमर बेटी कैलक अछि जे ओ 'शिक्षा' देथिन्ह? एक टूक कपड़ा, एकटा गहना कहियो पठवितथिन्ह से त भेवे ने कैलेन्ह अछि और चललथिन्ह ओत्तहि सँ शिक्षा देमय!
रेवतीरमण बुझाबय लगलथिन्ह- "से नहि। हुनक मतलब छैन्ह जे बुच्ची दाइ लिखि-पढि कऽ ज्ञान प्राप्त कऽ सकय......।"
ला०का०- पहिने हुनका अपना ज्ञान भेलैन्ह अछि? ओ एतेक दिन लिखि-पढि कऽ नेहाल कैलन्हि जे आब बुच्ची दाइ सनाथ करतीह। और बिनु पढने बुचिया कैं जतेक ज्ञान छैक ततेक हुनका भरि जन्म पढ़ला उत्तर नहि हैतैन्ह।
रे० र०- से हुनक तात्पर्य नहि छैन्ह। ओ चाहै छथि जे ई ताहि योग्य भऽ जाय जे हुनका बातक उत्तर दऽ सकैन्ह।
ला० का०- एहन सनकाहो नहि देखल। सभ लोक त एहने स्त्री चाहैत अछि जे कहियो एकोटा बातक उत्तर नहि दैक। 'गौरकट खटिया बतकट जोय'- ई भला के चाहत। और हुनका एही बातक सिहन्ता होइ छैन्ह? सैह छलैन्ह त कोनो कर्कशा सँ विवाह करितथि। हमरा बेटी सँ त ई नहि हैतैन्ह जे ओ कोनो बातक उत्तर देतैन्ह। और हँ। जखन उत्तर देमय लगतैन्ह तखन अपने पड़ा जैताह।
आब रेवतीरमण मुश्किल मे पड़ि गेलाह। समझाबय लगलथिन्ह-'तों हुनक अभिप्राय नहि बुझलहुन। ओ ई चाहै छथि जे स्त्रीगणक मन मे जे कुसंस्कार जमल छैक से हाटाओल जाय। जेना....जेना.... तोरा लोकनि देवता-पितरक कवुला मानै जाइ छैं.....।'
लालकाकी तमकि कय बजलीह-त की लोक देवता पितर नहि मानौ? हुनक जकाँ सभ क्रिस्तान भऽ जाओ? हम त कवुला कैने छी जे जाहि दिन हुनकर मति फिरतैन्ह ताही दिन हनुमानजी कैं रोट चढ़ा देबैन्ह। हमर बेटी तुसारी पुजैत अछि सेहो हुनका मने छोड़ि देओ? वैह बड़ काबिलक नाती बनलाह अछि।
आब रेवतीरमण हिम्मत हारय लगलाह। तथापि साहस कय पुनवरि चेष्टा कलन्हि-'तोरा सभ बुझितहि ने छही त हम कोनो कऽ कहिऔक! मिसर चाहै छथुन जे तोरा सभक अन्ध-विश्वास दूर कैल जाउक.......।'
ला० का०- हौ! अन्ध-विश्वास ककरा कहै छैक? बूढ़ भऽ गेलहुँ, आइ धरि नहि सुनने छलिऎक!
आब रेवतीरमण गोङियाय लगलाह-'अन्ध-विश्वास ई जेना....जेना.....जेना.....तोरा लोकनि डाइन-योगिन मानइ जाइ छैं.......।
ला० का०-त कि हुनका देश मे डाइन-योगिन नहि होइ छैन्ह? डाइन-योगिन कतय नहि रहै छै?
ई कहि लालकाकी अपना बातक पुष्टिक हेतु देयादिनी दिस ताकय लगलीह। ढुनमुनकाकी कैं बूझि पड़लैन्ह जे ई हमरे पर आक्षेप करै छथि। बाजय लगलीह-हँ, हम त नैहरे मे डाइनपन सिखने छी! हमहीं जमाय कैं नोन चटा देने छिएन्ह कि ने! हमरा सन हाँकल डाइन के हैत?
ई कहैत ढुनमुनकाकी कैं घबर-घबर नोर खसय लगलैन्ह। लालकाकी छितनी लऽ कऽ फटाफट अपन कपार पीटय लगलीह।
ई अकाण्डताण्डव देखि रेवतीरमण माथ हँसोथैत आङ्गन सॅं उठि दलान दिस विदा भेलाह।
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