लेखक : हरिमोहन झा

सी० सी० मिश्र कैं ओहि राति बड़ी काल धरि नीन्द नहि पड़लैन्ह। मिस बिजलीक दमक सॅं निद्रोक आँखि में, चकाचौन्ह लागि गेलैन्ह। हुनक मस्तिष्क तेना विक्षोभित भऽ उठलैन्ह जे घंटो विचार- तरंग मे ऊब-डूब होइत भसियाइत रहलाह।

सी० सी० मिश्र मनहिमन बिजली और बुचियाक मिलान करय लगलाह। एक उन्मुक्त स्वच्छन्द विहारिणी परी, त दोसर छान्ह-पगहा सॅं बान्हल पड़रू। एक स्वच्छन्द मानसरोवर मे विचरण करयवाली राजहंसी, त दोसर भरि जन्म घोंघा-सेमारक बीच अन्हार मे रहयवाली कूपमण्डूकी। एक नारी जागरणक संदेशवाहिनी आधुनिक युगक अग्रदृतिकाः त दोसर अज्ञान और कुसंस्कार सॅं आच्छन्न परम्परागत रुढि श्रृंखलाक बन्दिनी। एक आकाश मे उड़निहार एरोप्लेन, त दोसर लीके-लीके ससरयवाली बैलगाड़ी ।

ई बिजली जकरा प्राप्त भऽ जैथिन्ह, तकरा फेरि बाँकी की रहतैक? ओहि कल्पित भाग्यवान पुरुष सॅं सी० सी० मिश्र कैं ईर्ष्य़ा होबय लगलैन्ह, और अपना भाग्य पर क्रोध। एक आधुनिक शिक्षित युवक कैं बिजली सन प्रगतिशील पत्नी भेटक चाही, से भेटल की त बुचिया! छिः!

शनैः शनैः सी० सी० मिश्र स्वप्नलोक मे विहार करय लगलाह। एक अत्यन्त रमणीय पार्वत्य प्रदेश मे गिरि निर्झरिणीक समीप श्वेत शिला-खण्ड पर आसीन भय ओ प्राकृतिक शोभा निरीक्षण कऽ रहल छथि। नीचा लाल-लाल कमल-पुंज सॅं सुशोभित पुष्करिणी मे एक नौकारोहिणी युवती जल-विहार कय रहल छथि। ओ सुन्दरी अपना करकमल सॅं कमल तोड़य लगलीह। कोमल आङ्गुर कठिन मृणालस खड़राय लगलैन्ह। युवती उत्तेजित भय मृणालदण्ड कैं मूलसहित उखाड़ि लेलन्हि। बल प्रयोग सॅं कमलनाल त टूटि गेल, किन्तु संगहिसंग नाव उलंग भऽ गेलैन्ह और तरणि समेत तरुणी जलमग्न होमय लगलीह।

ई दृश्य देखि मिश्र जी सरोवर मे कूदि पड़लाह। पौरैत-पौरैत यावत ओहि स्थान पर पहुँचथि- पहुँचथि तावत नाव मॅंझदार मे डूबि गेलैक। डुब्बी लगौला पर तरेतर दहाइत कामिनीक कोनो गुलगुल अंग हुनका हाथ में ठेकि गेलैन्ह। ओ कोनो तरहें लटपटाइत-सटपटाइत शिथिलवसना सुन्दरी कैं दृढतापूर्वक अपना बाहुपाश मे आवेष्टित कैने बहरयलाह । मुर्छिता तरुणी कैं चैतन्य लाभ करैबाक हेतु प्राथमिक उपचार करब आवश्यक छलैन्ह । अतएव मिश्रजी परोपकार भावना सॅं युवतीक आर्द्र- वस्त्र हटा कय नीक जकाँ पोछय लगलथिन्ह । युवतीक हृदय-परीक्षा कैला पर ज्ञात भेलैन्ह जे अत्य न्त सूक्ष्म स्पन्दन भऽ रहल छैन्ह । चिकित्साक दृष्टि सॅं हिमवत शीतल शरीर मे कृतिम उष्णताक संचार करब आवश्यक बूझि पड़लैन्ह । अग्निक अभाव मे एकमात्र उपाय छलैन्ह निरन्तर करमुख- व्यापार । अन्ततोगत्वा प्रयत्न सफल भेलैन्ह ।

मूर्छिता तरुणी कनेक आँखि खोलि कय पुछलथिन्ह- अहाँ के थिकहुँ ? ई कोन स्थान छैक ? एतय कोन घटना घटल छैक ?

ई सुपरिचित कण्ठस्वर सुनितहिं सी० सी० मिश्र मिस बिजली कैं चीन्हि गेलथिन्ह । कहलथिन्ह - 'हमर परिचय यैह जे हम एक देवीक अनन्य उपासक थिकहुँ । एहि स्थान कैं अहाँ हमर आराध्य देवीक क्रीडा़ स्थल बूझि सकै छी, और एतय घटना ई घटित भेल छैक जे एक नाव मँझधार मे डूबि गेने दोसर नाव मँझधार मे डुबैत-डुबैत बाँचि गेल अछि ।'

एतबहि मे दृश्य पलटि गेल । बिजली देवी खिलखिला कय हँसि उठलीह । विहुँसि कय बजलीह - अहाँ काव्य करय लागि गेलहुँ, किन्तु हमरा चिन्हलहुँ त नहिए । हम अहीक विधिकरी थिकहुँ । आबो सरिया कऽ चीन्हि लीयऽ ।

सी० सी० मिश्र विस्फारित नेत्र सॅं देखय लगलाह । आब हुनका मायामयी नारीक अंग-प्रत्यंग मे विधिकरी क भान होबय लगलैन्ह । ओ आश्चर्य चकित भय हुनका दिस हाथ बढ़ौलन्हि ।

किन्तु पुनः दृश्य-परिवर्तन भेल । ओ नारी-शरीर अकस्मात अश्रुपूर्ण बुच्चीदाइक स्वरुप ग्रहण करैत कातर स्वर मे बाजल - 'अहाँ हमरा परित्याग कऽ देलहुँ । देखू , अहाँ कैं सन्तुष्ट करबाक हेतु हमरा कोन-कोन नाच नाचय पड़ल अछि ! ई कहि ओ मिश्रजीक पैर धऽ लेलकैन्ह ।

आब मिश्रजी अपना हृदयक आवेग कैं नहि रोकि सकलाह । चट दऽ लपकि कय हाथ पकड़ि लेलथिन्ह । ततेक जोर सॅं बकबका कऽ धैलथिन्ह जे ओ मायाकल्पित मूर्त्ति चीत्कार करय लागल ।

ओहि चीत्कार-ध्वनि सॅं सी० सी० मिश्रक सुखस्वप्न भंग भऽ गेलैन्ह । देखै छथि त होस्टलक नौकर कोठरी बाढ़क हेतु आएल अछि, तकर हाथ ओ जोर सॅं कसि कय पकड़ने छथिन्ह, और ओ जोर सॅं चिचिया कय कहि रहल छैन्ह - बाबू छोड़ि दियऽ । हम झाडू देबऽ आयल छी । अहाँक चादर नीचा खसि पड़ल छल से पैर पर ओढ़बैत छलहुँ । अहाँ बड़ी काल सॅं कीदन बिसुनाइत छी ।

मिश्रजी लज्जित भय ओकर हाथ छोड़ि देलथिन्ह ।

थोडेक कालक उपरान्त सी० सी० मिश्र कैं होस्टल सुपरेंटेंडक चपरासी बजाबय ऎलैन्ह । ओ सशंकित चित्त सॅं हुनका आफिस रुम मे गेलाह । ओहि ठाम एक और सम्भ्रान्त सज्जन बैसल छलाह । हुनका दिस संकेत कय सुपरेंटेंडेंट कहलथिन्ह - बैरिस्टर योगेशचन्द्र बोसक नाम त अहाँ सुननहि हेबैन्ह ।

मि० मिश्र नम्रतापूर्वक अभिवादन कैलथिन्ह ।

सुप० - अपना कालेजक छात्रा मिस बिजली हिनके सुयोग्य पुत्री थिकथिन्ह ।

मि० मिश्रक छाती और जोर-जोर सॅं धक्-धक् करय लगलैन्ह ।

सुप० - हम जनै छी जे अहाँ विश्वविद्यालय मे महत्वपूर्ण गवेषणा-कार्य कय रहल छी, ताहि सॅं अवकाश कम रहैत होयत । तथापि किछु दिनक हेतु थोडे़क समय अहाँ कैं देबय पड़त । हिनक छोट कन्या एहि बेर बी० ए० क परीक्षा मे बैसथिन्ह । तनिका कनेक सहायता कऽ दिऔन्ह ।

मि० बोस बजलाह - 'इंगलिश' त ओकर बहुत बढ़िया छैक । सिर्फ साइकौलोजी (मनोविज्ञान) और पोलिटिक्स (राजनीतिशास्त्र) मे मदद दरकार छैक । यदि अहाँ कैं कष्ट नहि होइत त एखने हमरा संग चलितहुँ । परीक्षा लगिचायल छैक, तैं ओ बहुत व्यग्र भऽ रहल अछि ।

मिश्रजी मंत्रमुग्ध जकाँ हुनका पाछाँ-पाछाँ चललाह -- मि० बोस हुनका कार मे बैसा स्वयं ड्राइव करैत कहय लगलथिन्ह - 'हम अपने हाथ सॅं गाड़ी चलायब पसन्द करै छी । हमर दूनू बेटी त ड्राइविंग मे हमरो सॅं बेसी -'एक्सपर्ट' (निपुण) आछि । बिजली त बारहे वर्षक अवस्था सॅं हमरा सभक संग यूरोप घूमय लागल । विलायत मे जैह देखय सैह सीखऽ लागय । जर्मनी मे मोटर चलायब सिख लक फ्रान्स मे पियानो बजौनाइ सिखलक । स्विटजरलैण्ड मे 'स्केटिङ्ग' (बर्फ पर ससरनाइ) करय लागलि । ब्रिटिश चैनले मे हेलय लागलि । हमर त इच्छा छल जे ओत्तहि लंडन यूनिवर्सिटी सॅं वैरिस्टरी पास करा दियैक । किन्तु जहिया सॅं ओकर माय मरि गेलथिन्ह तहिया सॅं हम दूनू बहिन कैं अपना आँखिक ओझर नहि करैत छिऎक । बेटाक सिहन्ता यैह दूनू पुर्त्ति करै अछि । सात वर्ष सॅं माय-बाप जे बुझी हमही बनल छिऎक ।

ई कहैत-कहैत सहृदय वारिस्टरक आँखि मे नोर ढबढबा ऎलैन्ह। करीब दस मिनट में मोटर एक सुसज्जित बङ्गलाक बरामदाक सामने आबि कऽ लागल। मि० बोस सी० सी० मिश्र कैं ड्राइंग रूम में लऽ जा कऽ बैसोलथिन्ह। भीत परक हस्त निर्मित पर्वत-झरना आदिक रंगीन चित्र, खिड़की परक बारीक जाली काढ़ल झिलमिल पर्दा तथा टेबुल परक सुन्दर फूल काढ़ल झालरदार रेशम देखि, हुनका ई बुझबा मे भाङ्ठ नहि रहलैन्ह जे ई सभ वसुकन्याक सुकुमार हस्तकौशल थिकैन्ह।

मि० मिश्र कलाकौशलक चमत्कार सॅं मुग्धे होइत छलाह, कि कापी, पुस्तक तथा यौवनक भार सॅं सहमलि मिस वीणा मधुर मुस्कान सॅं हुनक अभिवादन कैलथिन्ह। कोसाक दल सन हल्लुक चप्पल पर उडै़त ओ मिश्रजी कैं अपना स्टडी-रूम (अध्ययनागार) मे लऽ गेलथिन्ह। मिश्रजी देखलन्हि जे कमराक प्रत्येक वस्तु सुरुचिपूर्ण ढंग सॅं सजाओल छैक। संगमर्मरक फर्श निर्मल दूध जकाँ झलकैत। श्वेत-स्फटिक-निर्मित टेबुल पर लिखा-पढ़ीक सुन्दर सामान। चारू कात मखमली गद्दीदार मुलायम सोफा। सीसाक आलमारीक प्रत्येक खल मे सनहुला जिल्द मे मढ़ल साहित्य, दर्शन, तथा इतिहासक मोट-मोट अंगरेजी ग्रन्थ यथास्थान राखल। एक कोन में पियानोक टेबुल। दोसरा कोन मे रैकेट टाङ्गल। कमरा मे एकोटा वस्तु फालतू नहि।

'भी' कट ब्लाउजक मध्यभाग मे खोंसल फाउण्टेनपेन बाहर कय, आगाँ मे कापी खोलि, मिस वीणा तैयार भऽ गेलीह। मि० मिश्र अपना कैं कठिन परिस्थिति मे बोध करय लगलाह। हुनका संकट मे पड़ल देखि वीणा देवी वीणा-विनिन्दक स्वर मे बजलीह-हम एक टा 'एसे' (लेख ) लिखने छी; तावत सैह देखि दियऽ।

मि० मिश्र कापी लऽ कऽ मोती सन-सन गोल अक्षर सॅं सुशोभित पृष्ट पर पृष्ट उनटाबय लगलाह । सुन्दर अंग्रेजी मे गंभीर विचारपुर्ण निबन्धक विषय - क्रिटिसिज्म ऑफ मैरेज (वैवाहिक प्रथाक समालोचना) । वीणा देवी वेद पुराण तथा स्मृति सॅं लय कऽ फ्रायड, बर्नार्ड शा, बर्टरेड रशेल प्रभृति आधुनिक समाजशास्त्रीक समीक्षा करैत, प्राच्य तथा पाश्चात्य विचार-धारा क तुलनात्मक विवेचना कैने छलीह ।

रेशमी वीणाक भीतर एहन ठोस फौलादी शक्ति देखि सी० सी० मिश्र मनहि मन विधाताक पक्षपात पर कूही होबय लगलाह । 'वीणाक रचना मे त सृष्टिकर्त्ता सीटि-सीटि कय अपन कला कऽ सभटा चमत्कार भरि देलथिन्ह और बुच्चीदाइ कैं गढ़बाक काल मे जेना कुच्ची हेरा गेल रहैन्ह तेना थोपी लऽ कऽ थोपि देलथिन्ह ।'

एहि तरहें मिश्रजी वीणाक लेखक स्थान मे अपने कर्मलेखक विवेचना करय लगलाह ।

एतबहि मे प्रफुल्ल कमल समान विकसित वदनक छटा सॅं हास्य-विकिरण करैत बिजली देवी कोइली जकाँ कुहुकैत ऎलीह - 'वीणा !' तावत सी० सी० मिश्र पर दृष्टि पड़ने चकित हरिणी जकाँ सहमि गेलीह । 'माफ करब, हमरा नहि जानल छल ।' ई कहैत बिजली जहिना बिजली जकाँ आइलि छलीह तहिना जाय लगलीह ।

किन्तु वीणा देवीक सोर पाडने ओ पुनः थमि गेलीह । सी० सी मिश्रक दोसरा दिस एक सोफा पर ओठङ्गि कऽ बैसि गेलीह । दूहू कात सॅं तीव्र विद्युधाराक सम्पर्क मे पड़ि मिश्रजी हठयोग साधि देलन्हि । वीरता पूर्वक त्राटक मुद्रा लगा जमि कऽ बैसि गेलाह और कुम्भक द्वारा प्राणवायु कैं रोकने ध्यान, धारणा, ओ समाधिक अभ्यास करय लगलाह ।

किन्तु योग-मार्ग मे विघ्नस्वरुप नवयुवती हिनक समाधि भंग करऽ पर जेना तुलल होथिन्ह ।

वीणा परिचय दैत कहलथिन्ह - 'यैह थिकाह हमर नव शिक्षक मि० सी० सी० मिश्रा' बिजली दूहू हाथ जोड़ि हिनका दिसि ताकि देलथिन्ह ।

एतबहि सॅं मिश्रजीक समस्त प्रत्याहार ओ प्राणायाम -पूर्वक जमाओल आसन उखड़ि गेलैन्ह ।

ओ लड़खडा़इत स्वर मे बाजि उठलाह - ओहि दिन अहाँक भाषण बहुत सुन्दर भेल रहय ।

बिजली कने अंठा कऽ पुछलथिन्ह - से कथी सॅं ?

मिश्रजी अपना स्वर कैं स्वाभाविक बनैबाक असफल चेष्टा करैत बजलाह - सभ अंशे सुन्दर । जेहने भाषा, तेहने भाव, तेहने बजबाक चमत्कार ।

अन्तिम शब्द मुँह सॅं बहराइत मिश्रजी लाजे कठुआ गेलाह। पुनः सम्हरि कय बजलाह- ओहि भाषण कैं त छपा कय अशिक्षित स्त्री-समाज मे वितरण करक चाही। अहाँ देश-विदेश घुमने छी, तैं एहन व्यापक दृष्टिकोण अछि। किन्तु बाबा वाक्यं प्रमाणम् मानयवाली देहातक स्त्री-वर्ग कैं त ई सभ आइडिया(विचार) नवे बुझि पड़तैन्ह।

बिजली अपना मुस्कुराहट सॅं बिजली चमकबैत बजलीह-ओहि मे कतेक त हमरा गरियैबो करतीह। स्त्रीक बात जाय दियऽ, देहाती पंडितो 'अग्निश्च वायुश्च' भऽ जैताह। जवाब नहि फुरतैन्ह त लगताह हमरा गारि पढ़य। किऎक जे प्राचीन विचारक पंडित जौ नवीन विचारक पुरुष वा स्त्री सॅं परास्त भऽ जाथु त खिसिया कऽ ओहि पुरुष कैं 'नास्तिक' और स्त्री कैं 'कुलटा' कहय लगै छथिन्ह।

तदनन्तर एहि प्रसंग में बड़ी काल धरि मनोरंजक गप्पशप्प होइत रहल। जखन सी० सी० मिश्र चलक हेतु उद्यत भेलाह त वीणा कहलथिन्ह-'पापा' चाय पीबक हेतु बजबै छथि।

मिश्रजी सिटपिटाइत बजलाह-हम त एहि बेरि कऽ चाय नहि पिबैत छी।

वीणा-तखन बैसि कऽ गप्पे करब। हुनका त केओ बतियाय लेल भेटि जैबाक चाहिऎन्ह। सभ गोटे बोस साहेबक कमरा मे अबैत गेलाह, जहाँ ओ चायक टेबुल पर कन्या सभक प्रतीक्षा मे बैसल छलाह।

वीणा कप में चाय परसय लगलीह और बिजली 'प्लेट' मे 'टोस्ट' सजाबय लगलीह । मि० बोस सी० सी० मिश्रक सामने छुरी, काँटा ओ चम्मच बढ़ा देलथिन्ह । किन्तु मिश्रजी कैं छुरी-काँटा सॅं कैबाक पूरा अभ्यास नहि रहैन्ह तैं धन्यवाद-पूर्वक हाथ बारने बैसल रहलाह । दूनू बहिन बापक संग पुरैत गिलहरी जकाँ कुतरय लगलीह । मिश्रजी कैं टुक्कुर-टुक्कुर तकैत देखि बोस साहेब कहलथिन्ह - 'कम सॅं कम फलो त खाउ ।' मिस बिजली अपना हाथ सॅं फलक प्लेट मिश्रजीक आगाँ बढा देलथिन्ह । ओ ओहि मे सॅं एकटा नारंगी उठा कऽ सोहय लगलाह । हुनका बूझि पड़लैन्ह जेना सम्पूर्ण ब्र्ह्माण्ड क रस आबि कय ओहि नारंगी मे केन्द्रीभूत भऽ गेल होइक ।

नाश्ता-पानीक बाद बिजली एकाएक अपना रिस्टवाच दिस ताकि बजलीह - पापा ! दू-एक मिनट मे लण्डनक प्रोग्राम शुरू हैतैक । सुनब ?

बिजली उठि कय रेडियोक सेट ठीक करय लगलीह । बोस साहेब चुरुटक धूआँ छोड़ैत तन्मय भऽ अंगरेजी गाना सुनय लगलाह । सी० सी० मिश्र कैं अगुताइत देखि कहलथिन्ह - बेस, ई गाना खतम होमय दियौक, तखन जाएब ।

आध घंटाक बाद जखन मिश्रजी अपना होस्टल में पहुँचलाह त बूझि पड़लैन्ह जेना ओ कोनो वस्तु बोस साहेबक कोठी मे छोड़ने आएल होथि ।

ताहि दिन सॅं सी० सी० मिश्र नित्य-प्रति बोस महोदयक ओहि ठाम जाय लगलाह; क्रमशः धाख छुटैत-छुटैत ओ बोस परिवार मे नीक जकाँ घुलि-मिलि गेलाह । रेडियो, सिनेमा, चाय,पिकनिक पार्टी, आदि मे आब ओहो सहयोग देबय लगलथिन्ह ।

बसु परिवार सॅं घनिष्ठ सम्पर्क भेने सी० सी० मिश्र मे एक विलक्षण परिवर्त्तन भेलैन्ह जे हुनक कवित्व शक्ति जागि उठलैन्ह । ओ छायावादी कविता बनाबय लगलाह । हुनक भवुकतापूर्ण उद्गार सॅं एक कापी भरि गेलैन्ह ।

एक कविताक शीर्षक रहैन्ह - 'वीणा वादिनी' । तकर भाव ई जे - "अहाँ जखन वीणा बजाबय लगै छी , तखन अहाँक अधरपान सॅं मत्त भऽ ओ मूक काष्ठ मुखर भय अपन अपूर्व स्वर-लहरी सॅं चारू दिशा कैं गुंजायमान करऽ लगै अछि । जखन जड़ पदार्थ मे अहाँ एहन प्राण फूकि दैत छी, तखन चेतनक कोन कथा ?"

एक कविता छलैन्ह 'कन्दुक-क्रीड़ा' पर । भाव ई जे - "जखन अहाँ अपन रैकेट लऽ कऽ टेनिसक मैदान मे उतरैत छी त विश्वविजयिनी शक्तिक साकार मूर्त्ति बनि जाइ छि । अहाँक रैकेट-प्रहार सॅं अनेक 'बौल' उछिलि जाइत अछि और तकर उछिलिनाइ देखि हजारो हृदय उछिलय लगैत अछि , विश्व थिरकय लगैत अछि और प्रकृति नाचय लगैत अछि ।"

एक कविता छलैन्ह - 'रसवर्षिणी' । भाव ई जे - "अहाँ जेम्हरे ताकि दैत छी तेम्हरे रसक वर्षा भऽ जाइत अछि । सम्पूर्ण चराचर कैं अहाँ माधुर्य-रस सॅं ओत-प्रोत कऽ दैत छी । अहाँक कोमल आंगुर मे केहन चमत्कार भरल अछि जे ओ सितारक तार संग-संग हृत्तन्त्रीओक तार झंकृत कऽ दैत अछि । ओहि आङ्उरक मधुर स्पर्श सॅं ऊनक लच्छा मनोहर फूल बनि जाइत अछि और दूधक फटौन अमृतमय रसमाधुरी ।"

एक कविता छलैन्ह - 'जल-विहारिणी ।' भाव जे "अहाँ जखन आकण्ठ जल मे मग्न रहैत छी त जलक ऊपर एक श्वेत कमल फुला जाइत अछि । जखन अहाव जल सॅं बहराय लगै छि तखन झुंड क झुंड लहराइत कृष्ण सर्पिणी बहराय लगै अछि । जहाँ कनेक और ऊपर होइ छी कि एक जोड़ मनोहर चक्रवाक पानिक ऊपर प्रकट भऽ जाइत अछि ।" इत्यादि इत्यादि ।

कापीक आदि मे एक पृष्ट पर लिखल रहैन्ह - "जाहि देवीक मूर्त्ति कैं अपना हृदय-मन्दिर मे अहर्निश पूजन करैत रहलो उत्तर, प्रत्यक्षतः फूल-अक्षत नहि चढ़ा सकै छिऎन्ह , तनिका सुकुमार हाथ मे ई कवितावली हम अपना समेत समर्पित करैत छिऎन्ह ।"

एक दिन संयोगवश ई गुप्त कापी बिजली देवी कैं कोनो तरहें परि लागि गेलैन्ह । चतुर रमणी कैं ई बुझबा मे भाङ्गठ नहि रहलैन्ह जे सी० सी० मिश्रक अज्ञातनाम्नी प्रेयसी के थिकथिन्ह ।

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