लेखक : हरिमोहन झा

सी० सी० मिश्रक आदेशानुसार महिला-क्लब स्थापित करबाक उद्देश्य सॅं रेवतीरमण अपना गामक स्त्रीगण कैं सूचना देबक हेतु विदा भेलाह।

पहिने ज्योतिषिआइनक घर सँ श्रीगणेश कैलन्हि। कहलथिन्ह- बाबी; आइ हम अपना ओहिठाम सभा करक चाहै छी।

ज्योतिषिआइन विस्मित मुद्रा सँ मुँह बाबि बजलीह-"ऎं! सभा? एतेक दिन सँ सौराठ मे सभा लगै छलैक। आब सँ तोहरा आङन मे 'सभा' लगतौह?"

रेवतीरमण कहलथिन्ह- नहि, नहि। से सभा नहि। हम चाहै छी जे स्त्रीगण लोकनि एकत्र भय विचार करथि जे देश की थिक.........।

ज्योतिषाइन बीचहि मे लोकैत बजलीह- देश थिक राँटी, मङरौनी, पिलखवाड़, जतय हमर नैहर अछि। तोहर मातृक भदेश मे छौह। तों देशक हाल की बुझबहक?

रेवतीरमण कठिनता मे पड़ि गेलाह। बाजय लगलाह- देशक अर्थ सम्पूर्ण भारत...।

बूढी टोकलथिन्ह- " सम्पूर्ण महाभारत त हमरा अपने आङन मे अछि। अर्थो कइएक बेरि सुनने छिऎक। "भारत मे भरदूलक अंडा लै गजघंट छिपायो।"

एकरा आगाँक पद बूढी़ मन पाड़य लगलीह।

ई देखि रेवतीरमण आगाँ बढ़लाह। बुचकुन चौधरिक ओतय पहुँचलाह। हुनका घरक स्त्रीगण आङन में बैसि अदौरी खोटैत छलथिन्ह। रेवतीरमण कै देखितहिं सभक सभ लत्ते-पत्ते घटियाहे हाथे पड़ा कोनियाँ घर मे नुकैलीह।

रेवतीरमण किंकर्त्तव्यविमूढ भऽ किछु काल ठाढ़ रहलाह। कनेक कालक उपरान्त एक अस्सी वर्षक बूढ़ी जनिक गर्दनि लबि कऽ ठेहुनक समीप पहुँचि गेल रहैन्ह कोनहुना लाठी टेकैत बहरैलीह। पुछलथिन्ह-हौ बाबू, हमरा सुझै अछि नहि। तों के थिकाह?

रेवती पैर छूबि कऽ प्रणाम कैलथिन्ह और अपन परिचय देलथिन्ह। बूढ़ि आशीर्वाद दैत कहलथिन्ह-'तों? मैंयाक पोता! तोरा छठिहारे मे जे हम देखने रहियौ से फेर आइये देखै छिऔह। आब त बड़का टा भऽ गेलह अछि। ऎं! तोरा देखि कऽ पितिआइन सभ किऎक पडै़लथुन्ह? कहाँ गेलौं ऎ बुच्चुन माय? आउ, जाउत कैं बैसक दियऽ।'

किन्तु बूढ़ीक वारंवार उकसैलो पर कोना बहुआसिन घर सॅं टकसबाक नाम नहि लेलेथिन्ह। अन्त मे हारि-दारि कय बूढ़ी अपने कहलथिन्ह-कतेक काल ठाढ़ रहबह? खाट पर बैसि जाह।

किन्तु खाट पर अदौरी पाड़ल रहैक। तैं रेवती ठाढे़-ठाढे़ कहलथिन्ह - हम एके विशेष प्रयोजन सॅं आएल छी।

बूढ़ी कहलथिन्ह-हौ बाबू, त बुचकुन कैं आबय दहुन। बाध गेल छथि।

रेवती कहलथिन्ह-नहि, नहि। हमरा अहीं लोकनि सॅं काज अछि।

बूढ़ी आश्चर्यित भऽ बजलीह- हमरा लोकनि सॅं? एहन कोन बात छैक?

रेवती कहलथिन्ह-हम गामक स्त्रीगण के आइ सायंकाल अपना ओहिठाम एकट्ठा करक चाहै छिऎन्ह।

किछु काल धरि बूढ़ी बकर-बकर मुँह तकैत रहि गेलीह। पुनः रोषा कय बजलीह-अयँ है! वाप बङ्गौरा पूत चौतार! बड़ सौख तोहर भेलौह अछि जे गामक सभ स्त्री तोरा ओहिठाम जा कऽ एकट्ठा हैतौह! से की छैक? कोनो नाच छै कि तमाशा छै, जे तोरा आङ्गन मे लोक जा कऽ जमा हैतौह? भोज ने भात ने हरहर गीत! देखू तऽ भला! लालक बेटाक ई सधोरि ! जाह, जाह। हमरा ओहिठाम ई सभ नहि चलतौह। नव-नौतार कैं फुसियबहौ गऽ।

रेवतीरमण मुटठाह भऽ गेलाह। किछु बजबाक साहस नहि पड़लैन्ह। चुपचाप ओहिठाम सँ घसकहि मे अपन कल्याण बुझलन्हि। अतएव बिनु सुपारिये नेने बिदा भऽ गेलाह। आब ओहन जोश नहि रहलैन्ह।

बाट मे भखराइनवालीक आङन पड़लैन्ह। ओ नूड़ लऽ कऽ चिनवार निपैत छलीह। जाउत कैं देखि बजलीह आउ ऎ बाबू! आइ कोना मन पड़ि गेल? कतहु बाट त ने बिसरी गेल?

रेवतीरमण कहलथिन्ह- घर सँ त यैह सपरि कय बिदा भेल छी जे आइ अहाँ लोकनि कैं बजा कऽ अपना ओहिठाम लऽ चली।

भखराइनवाली परिहासपूर्वक बजलीह- आहि! तखन त बलहुँ चिनवार निपै छलहुँ। गै सूर्यमुखी! आइ भानस बन्द। कंटीर बाबू नेओत देमय ऎलथुन्ह अछि।

रेवतीरमण कहलथिन्ह - बेश, ताहू हेतु कोनो छति नहि । किन्तु एखन त दोसर काजक हेतु आएल छी । हमर विचार अछि जे गामक स्त्री-वर्गक एक समिति कायम करी ।

भखराइनवाली - ताहि मे की सब हेतैक ?

रे० - यैह जे स्त्रीग्ण सम्मिलित भय इतिहास-भूगोलक ज्ञान प्राप्त करथि, अखबार पढ़ि देशक हाल बूझथि, कला-कौशल सीखथि, स्वास्थ्य-सुधारक हेतु खेलकूद ओ कसरत करै जाथि ।

कसरतक नाम सुनितहिं सूर्यमुखी खी-खी-खी-खी कय हॅंसय लागलि । भखराइनवाली बिहुँसैत बजलीह - ऎ बाबू ! त पहिने अपने घर सॅं किऎक ने सुरु करै छिऎक ? हमरो लोकनि देखबैक तखन ने सिखबैक ।

रे० - ई सभ एक गोटाक कैने नहि होइ छैक । जौं सभ केओ मिलि कय चाहै जायब तखने भऽ सकै अछि । तैं अहूँक ओहिठाम आएल छी ।

भ० - अहूँ तमाशा करै छी । चारि नेनाक माय भऽ कऽ आब हम दण्ड करब गऽ ? अहाँ कऽ हम की जबाब दियऽ ? एखन नेना छी ।

रे० - अहाँ लोकनि कैं सभ बात मे हँसिए रहै अछि । व्यायाम प्रत्येक अवस्था मे हितकर होइ छैक । और स्त्रीगण कतेक तरहक खेल खेलि सकै छथि ।

भ० - कोन-कोन खेल अहाँ स्त्रीगण कैं खेलाबक चाहै छिऎन्ह ? कनेक हमहूँ तॅं सुनियैक ।

रे० - खेल त बहूत प्रकारक छैक - जेना टेनिस, बैडमिंटन, पिंगपौंग ।

भ० - ऎ बाबू ! ई सभ त किछु ने बुझलिऎक । 'टेनिस' की कहबै छैक ?

आब रेवतीरमण मुश्किल मे पड़ि गेलाह । बजलाह - कोना कऽ बुझाउ ? रैकेट लऽ कऽ गेन कैं मारल जाइ छैक ।

भ० - ओ कोन अपराध कैने रहै छैक जे ओकरा मारल जाइ छैक ?

रे० - अहाँ त सभ बात हॅंसिए मे उड़ा दैत छी । लकड़ीक बेंट मे ताँतिक मजबूत तार कसल रहै छैक । ताहि पर गेन रोकि कऽ मारय पडै़त छैक ।

भ० - ताँतिक तार पर गेन रोकि कऽ मारने कोन परगन्ना भेटि जाइ छैक ?

रे० - एहि सॅं बाँहि और कलाइ मजबूत होइ छै ।

भ० - जाँत मूसरवाली सॅं कि टेनिसवालीक पहुंँचा बेशी सक्कत होइ छैक ?

रे० - गेन मारबा मे बहुत चुमकीक काज पडै़ छैक । ताहि सॅं शरीर मे फुर्ती बढै़ छैक । सन्ध्या समय मैदानक खुलता हवा देह मे लगै छैक ।

भ०- ऎ बाबू! 'मन उद्गार त गाबी गीत! निश्चिन्त रहने सब किछु नीक लगै छैक। हमरा सभ कैं त एक पहर दिने सॅं रतुका चिन्ता व्याप्त भऽ जाइ अछि। जारन-काठी सुखाएल अछि कि नहि? अन्न-तीमनक ओरिआओन अछि कि नहि? पेटक धन्धा मे जे लगै छी से आधा राति तक जोताएल रहै छी। साँझ कऽ चाउर छाँटय सॅं, दालि दरड़य सॅं, चिनवार नीपय सॅं, चूल्हि फुँकय सॅं, जौं छुट्टी होय तखन ने हमहूँ मैदानक हवा खाइ गऽ। हमर सभक जन्म त एही आइ पाइ मे बीति जाइत अछि। जे भागवन्त अछि-ठहलुआ-भनसीया रखने अछि, तकरा हेतु ई सभ खेल छैक। हमरा सभ कैं ओहन तपस्या कहाँ?

रेवतीरमण मन मे कहय लगलाह - ई त नीक जकाँ बना कऽ धूसलक । वास्तव मे एतय टेनिसक प्रस्ताव करब भारी बुड़ित्व भेल । आब जतेक ई सब बाजब ततेक अधीक हुथाइ मे पड़ब'।

ई विचारि रेवतीरमण ओहिठाम सॅं सोझे अपना घर ऎलाह । बड़कागामवाली कैं सभ समाचार कहि सुनौलथिन्ह । ओ कहलथिन्ह - अहाँ विद्या मे त हमरा सॅं वेशी छी, किन्तु बुद्धि हमरा सॅं सीखल करु । स्त्रीगणक सभा देखबाक हो त एक दिन और थम्हि जाउ । काल्हि अपना आङ्गन मे पूजा हैत, सभ कैं हँकार पड़तैक । तखन देखबैक जे 'झोंटहा पञ्च' क मीटिङ्ग' मे की सब होइ छैक !

आइ लालकाकीक आङ्गन मे बेश छहर-महर भऽ रहल छैन्ह । झुनिया माय गोबर लऽ कऽ आङ्गन - ओसारा निपने अछि । लालकाकी पूजाक चौकी धो कऽ ओहि पर पिठार सॅं अरिपन दऽ रहल छथि । ढुनमुन काकी बाती बाँटि रहल छथि । बड़कागामवाली पान लगा रहल छथि । बुच्चीदाइ हुच्ची मे छथि ।

लालकका सहल छथि । क्षुधाविस्मरणार्थ कदली मण्डप कैं कमलक फूल सॅं सजैबा मे चित्त बहटौने छथि । पुरोहित नमोनाथ झा जनउ गेठिया रहल छथि । कंटीर लाइट लेसबा मे लागल छथि । भोलानाथ शीतलप्रसादक हेतु गुड़ घोरि रहल छथि । बटुकजी केरा सोहै छथि ।

ढोल-पिपहीक ध्वनि कर्णगोचर होइत झुंडक झुंड गीतगाइन हँकार पूरक हेतु लालकाकीक आङ्गन मे जुटय लगलीह । देखैत-देखैत कच्चे-बच्चे ओ जनीजातक जमात सॅं सौंसे ओसारा भरि गेल । एहि दल मे युवती, प्रौढा, वृद्धा, बालिका, सभ सम्मिलित छलिह । युवती-यूथ मे मुख्यतः गामक ससुरवास बेटी यथा सरयूदाइ, कामेश्वरीदाइ, आदि । प्रौढा वर्ग मे आवेशरानी, पुहुपरानी, परिहारपुर वाली, भखराइनवाली प्रभृति । वृद्धाक कोटि मे ज्योतिषाइन, दुलारमनि पिउसी, रामवतीदाइ आदि । बालिकावृन्द मे सूर्यमुखी, फुलमतिया, पलटी इत्यादि । लालकाकी यथायोग्य आगत-स्वागत करबा मे लगलीह ।

सम्पूर्ण समाज जुटि गेला पर लालकाकी बजलीह - ऎ दाई सभ ! हिनके लोकनिक पुण्य-प्रताप सॅं आइ एहन दिन भेल अछि । कबुला छल जे जमायक समाचार पौला पर भगवानक पूजा करबैन्ह । से मनोरथ पूर भेल । आब आशीर्वाद देथुन्ह जे बुच्चीदाइ कैं सोहाग-भाग होइन्ह ।

रामवती दाइ पुछलथिन्ह - जमाय कतय छथिन्ह ?

लालकाकी - एखन काशी मे छथि ।

पुहुपरानी - की सभ लिखलथिन्ह अछि ?

लाल० - सार कैं लिखलन्हि अछि जे अपना बहिन कैं खूब लिखाउ-पढ़ाउ तखन हम आयब ।

पहिहारपुरवाली - धन्य भाग ! एतबा दिन पर जा कऽ भला सासुरक छोह त भेलैन्ह । आखि अपना लोकक ममता कतहु नहि होइक !

एक जमीदारनी बजलीह टिहुकि कय बजलीह - हून जैतन कहाँ ? 'रूसल जमैया करतन की ? धीया छोड़ कऽ लेतन की ?'

लालकाकी बजलीह - ऎ दाइ ! आब हुनका मन योग्य लिखनाइ-पढ़नाइ छौड़ि कैं आवि जाइक तखन ने देवता सन्तुष्ट होथि । हमरो लोकनि त लिखलि-पढ़लि नहिए छी । फेर एतेक दिन वास भेल कि नहि ?

रामवती - हाँ ए! वेशी लिखि-पढ़ि कऽ कि बुचिया कैं कतहु नौकरी करबाक छैक?

पुहुपरानी- से ई की कहै छथिन्ह? हमरा नैहर मे त आब सभ छौंड़ी स्कूल जाय लगलैक अछि। जे पढै़त अछि से कि नौकरीएक द्वारे ?

रामवतीदाइ - ऎ पुहुपरानी ! अपना नैहरक बेशी जमौड़ा नहि करू । 'देखल हे गौरा नैहर तोर !' अहाँक गामक छौड़ी सभ कैं देखने छी सिमरियाघाट मे । सोलह-सोलह वर्षक पकठोसल कुमारि सभ जुआएल पोठा माछ जकाँ वेश चाकर-चौरस, भरल-पूरल । गट्टा सन माउगि और कान्हे पर सॅं ऑंचर देने ! ओ छौड़ी सभ जे ने करय से आश्चर्य !

पुहुपरानी - से कि हिनका गाम मे तेहन कुमारि नहि छथिन्ह ? कतेक त तेहन छथिन्ह जनिका गुड़ कैबाक वयस बीति कऽ आद गुड़ कैबाक वयस भेल जाइ छैन्ह ।

कामेश्वरी दाइक छोट बहिन राजेश्वरी चौदह वर्षक कुमारि छलथिन्ह । हृष्टपुष्ट शरीर में भादवक नदी जकाँ यौवन उमड़ल छलैन्ह । कामेश्वरी दाइ टिरुसि कय बजलीह - हॅं, राजेश्वरी त एखन नेना खेलबैत रहैत ! और ओकरा सॅं छौ-छौ मास जेठ जे कियाएल छौड़ी सभ छैक तकरा सभ कैं एखन घघरीए पहिरबाक वयस छैक !

परिहारपुर वाली कऽ जैधी बिलटी सनटिटही सन सुखाएल छलैक । वयस मे राजेश्वरी सॅं जेठ भेलो पर देखबा मे दसे वर्षक लगै छलि । ओ व्यंगक आशय बूझि बजलीह - ऎ दाइ ! नीक घर-वर नहि भेटैत छैक त कतय कऽ फेकि दिऔक ? देखऽ मे खियौटी लागौ, किन्तु वयस त अवश्ये भेलैक अछि । नहि त एकरा सॅं तीन वर्षक छोट जगदम्बा कैं द्विरागमनक दिन कोना मनाओल गेलैक ?

रामवती दाइ कैं जगदम्बा माय सॅं काट छलैन्ह । एम्हर-ओम्हर ताकि कय बजलीह - ओहि छौड़ीक नाम नहि लियऽ । अरे बाप रे बाप ! एहन कलियुगहि छौड़ी ! सासुर सॅं दही-माछक भार लऽ कऽ जे भरिया आएल रहैक तकरा लेल अपने हाथ सॅं तरकारी तरैत देखलिऎक ! आइकाल्हुक दुरगमनियाँ छौड़ी सभ त ससुरवासो बेटीक कान कटै छैक । 'उपरक मने दाइ गे दाइ । तरक मने सासुर जाइ !'

सरयू दाइ कोनो अज्ञात कारणें अपना सासुर सॅं बिरुझल छलीह । बजलीह - हम त दू वर्ष ओतय (सासुर) बसि आएल छी । तैयो कि एना करबैक ? कोनो कोढ़िया ने आबौ ! हम कि अपना हाथ सॅं भानस कऽ कऽ खोएबैक गऽ ? जरलाहा कैं खोरनाठ ने लगा देबैक !

विवाहिता स्त्रीक मुँह सॅं सासुरक विषय मे एहन शब्द सुनि प्रेमगर्विता तारा दाइ कनेक छवि कऽ कऽ सिहरि उठलीह । ताहि सॅं हुनक ईयर-रिंग चमकि गेलैन्ह ।

तारा दाइक ईयररिंग देखि भखराइनवाली बजलीह - बड़ बढ़ियाँ गढ़नि छैक ! कतेक बनल थिक ऎ दाइ !

तारा दाइ कनेक अगराइत उत्तर देलथिन्ह - ई त ओतुक्के (सासुरक) गढ़ल छैक ! मुदा बड़ भारी छैक । आब तोड़ाकऽ दोसर बनबैबैक । आब कि भारी पहिरक फैशन छैक ?

परिहारपुरवाली क गर मे बेश मोट सूति रहैन्ह, प्रायः बीस भरि सॅं कम नहि । हुनका अपने पर आक्षेप बूझि पड़लैन्ह । ओहो कटाक्ष करैत बजलीह - हॅं, आब त सभ वस्तु हल्लुके नीक लगै छैक । भारी कि केओ चाहैत अछि ?

भखराइनवाली मखौलिया छलीह । बजलीह - ऎ दाइ ! तखन त कोनो-कोनो कैं भारी कठिन ।

पुहुपरानीक स्वामी बेश मोट-डाँट भारी-भरकम छलथिन्ह । तुनकि कय बजलीह - 'जकरा देह मे मांस नहि, सेहो कोनो लोक थिक ? (तारा दिस तकैत) खाली हड्डीए-हड्डी हाथ पैरक सीर बहार-आँखि धँसल, गाल पचकल करांकुल सन बगाय एक बेरि फूकि दैक त खसि पड़य, एहन कोन काजक ?'

भखराइनवाली बिहुँसि कय बजलीह - ऎ बहुरिया ! अहाँ कनेक्के मे देखार भऽ गेलहुँ ,, बात चललैक गहना पर, अहाँ लऽ ऎलहुँ पुरुष पर !

तारा दाइक स्वामी कालेज मे पढै़ छलथिन्ह । अत्यन्त दुब्बर-पातर । पुहुपरानीक सभटा विशेषण हिनका पर चरितार्थ होइत छलैन्ह । अतएव तारा दाइ मनहिमन कट कऽ रहि गेलीह । हुनक मनोभाव बुझि आवेशरानी पक्ष लैत बजलथिन्ह - से जे किछु कहथु, लेकिन मोट लोक कोनो लोक होइ अछि ? लदगोबर जकाँ थुलथुल करैत- पातिल सन धोधि बाहर कैने - फों-फों करैत - मोटाइ सॅं फटैत - चारि धूर मे पसरि कऽ बैसल- एहन भुसखाड़ सन देह भेनाइ भारी पापक फल !

अन्तिम वाक्य दुलारमनि पिउसिक कान मे पड़लैन्ह । स्थूलकाय भेलाक कारणे सभ सॅं पसरि कऽ वैह बैसलि छलीह । उपर्युक्त शब्द सुनैत देरी ओ फुफकार छोडैत आवेशरानी पर छुटलीह - 'अयँ ऎ ! हमरा धोधि अछि तॅं अहाँक आँखि मे किएक गडै़य ? गहकी कैं घेघ सौदागर कैं बेत्था ? हमर मोटाइ सॅं फाटल जाइ छी त अहाँक की फटै अछि ? की दऽ कहै छै जे तेल जरै तेली कें . . . . . . .!'

दुलारमनि पिउसीक गर्जन-तर्जन सूनि लालकाकी दौड़ल ऎलीह - 'ऎं ! की भेलैन्ह अछि बड़की दाइ ?

दुलारमनि पिउसी ठोहरा कऽ बजलीह - 'हैत की ? अहाँ बजा कऽ हमरा गंजन करबैत छी । हम पसरि कऽ चारि गोटाक जगह छेकि कऽ बैसै छी, त हमरा हॅंकार किएक देल ? एक त हमरा आबक मन नहि छल, जबर्दस्ती पलटीक माय धैने ऎलीह । और एतय अबितहिं बैसलहुँ त थुक्कम-फज्जति होमय लागल । की कहै छैक जे 'नरको मे ठेलमठेला !'

एतबहि मे बडे़ टहंकार सॅं पूजाक गीत शुरु भऽ गेल -

नाचौंगी, मैं नाचौंगी । रघुनन्दन के आगे नाचौंगी ॥

पूजा आरती समाप्त भेला पर जखन स्त्रीगण गिलास मे प्रसाद लऽ कऽ जाय पर उद्यत भेलीह, तखन रेवतीरमण आबि कऽ कहलथिन्ह - 'यदि दस मिनट समय भेटय त हम किछु निवेदन करी ।' तदुपरान्त ओ स्त्री-शिक्षा पर एक छोट-मोट लेक्चर देमय लगलाह। इतिहास भूगोलक उपयोगिता बुझबय लगलथिन्ह- कतेको एहन छथि जनिका दिशाक ठेकान नहि, नदीक ज्ञान नहि, जंगल पहाड़क बोध नहि। जिनका शौक होइन्ह, से हमरा पास अबिहथि- हम नक्शा देखा देबैन्ह। "इत्यादि इत्यादि।

यावत धरि रेवतीरमण बजैत रहलाह तावत धरि स्त्रीगण अनासक्त योगीक समान सुनैत रहलीह। हुनका चुप्प होइतहि सभ केओ अपन-अपन गिलास लय उठि बिदा भेलीह। रेवतीरमण उत्तरक प्रत्याशा मे ठाढे़ रहलाह, तावत सभा उठि गेल।

देहरि लग पहुँचैत-पहुँचैत एक बूढ़ी बजलीह- सत्यनारायणक पूजा मे त ई विधि ककरो आङन होइत नहि देखने छलिऎक। तेल-सुपारी बदला मे आब यैह सभ चललैक अछि। जीबी त की की ने देखी!

दोसर बूढ़ी बजलीह- हः हः! हमरा त अकछा कऽ छोड़ि देलक। होइ छल कखन चुप्प होएत। मारि अल्ल-बल्ल हँकने जाइ छल। हम त किच्छु नहि बुझलिऎक।

एक प्रौढ़ा बजलीह-ई नहि बुझलथिन्ह। हम त बुझलिऎक। हमरा लोकनि दिसा-नदीक ठेकान नहि अछि से ओ सिखा देताह! एहि सॅं भारी बात आब केहन हैतैक? हम त काल्हि आबि कऽ माय कैं उपराग देबैन्ह।

दोसर युवती बजलीह-ताहि पर सधोरि केहन जे जकरा सीखक शौक होइक से हुनके पास जाओ। माये-बहिन सॅं मसखरी!

एहि तरहें भरि बाट रेवतीरमणक समालोचना होइत गेलैन्ह।

घर में बड़कागामवाली कहलथिन्ह-'की? गमैया गोष्ठी केहन होइ छैक से आब बुझलिऎक? अहाँ चलल छलहुँ हिनका सभक क्लब खोलय! दूनू सार-बहनोइक बुद्धि एके रंग भेल? यदि बुच्ची दाइ कैं नचैबाक इच्छा हो, त बनारसे लऽ जैयौन्ह। एहिठाम ई सभ नहि चलत।

महिला सभाक प्रथम अधिवेशनक रंग देखि रेवतीरमण कैं पुनः द्वितीय अधिवेशन करबाक साहस नहि परलैन्ह।

अन्ततः सर्वसम्मति सॅं ई प्रस्ताव पास भेल जे रेवतीरमण बहिनोइक मन टोबऽक हेतु काशी जाथि।

----===----