लेखक : हरिमोहन झा

बिजली देखलन्हि जे 'एक अनाड़ी फतिङ्गा मॅंडरा कऽ जान देबा पर वृत्त अछि । दया कऽ कऽ एकरा निर्दयतापूर्वक झाड़ि देवक चाही, नहि त ई झरकि कय जरि जायत ।

एक दिन बिजली सी० सी० मिश्र कैं अपना गाड़ी मे हवा खोआबक हेतु बहुत दूर लऽ गेलथिन्ह । मिश्र जी हवागाड़ी मे बैसल मनोरथक हवाइ जहाज पर उड़य लगलाह ।

एकाएक बिजली कहलथिन्ह - अहाँक कविताक कापी हमरा हाथ लागि गेल अछि । यदि ओकर यथार्थ अधिकारिणी केओ दोसरि हो, त हम तकरे सौंपि दिऎक ।

सी० सी० मिश्र एके संग भय, लज्जा, विस्मय ओ आनन्द सॅं आवाक रहि गेलाह मन मे एलैन्ह जे - 'ओहन-ओहन असंख्य कापी अहाँक चरण रेणु पर निछाउर अछि । अहाँक समक्ष हमर प्रेम कविताक नायिका के भऽ सकै अछि ?'

किन्तु एतेक कहबाक साहस नहि भेलैन्ह । किछु लजायल सन भऽ कऽ बजलाह - 'ओ अहाँ कैं सादर समर्पित अछि ।'

बिजली बजलीह - हम बुझै छी जे ओ कविता सभ अहाँ हमरे लक्ष्य कऽ कऽ लिखने छी ।

सी० सी० मिश्र कैं अपना सफाइक अपेक्षा अभियोगे मे अधिक रस भेटय लगलैन्ह ओ "मौनं स्वीकार लक्षणम्" सॅं अपन दोष कबूल करय लगलाह ।

बिजली हुनका मुँह दिस तकैत पुछलथिन्ह - हम ई जानक चाहै छी जे अहाँक प्रेमोद्गार केवल सोडावाटरक फैन थिक अथवा ओहि मे किछु ठोस सत्यो अछि ?

सी० सी० मिश्र मिमिआइत बाजय लगलाह - एकर साक्षी त अन्तर्यामी परमेश्वरे छथि । यदि हृदय चीरि कऽ देखाओल जा सकितैक त सत्यासत्यक प्रमाण भेटि जाइत ।

बिजली पूछि बैसलथिन्ह - अहाँ कैं हमरा प्रति प्रेम अछि कि वासना ?

युवतीक एहन अद्भुत स्पष्टवादिता देखि सी० सी० मिश्र स्तम्भित रहि गेलाह । सिद्धान्त वादीक सुर मे बजलाह - हम त अहाँक प्रति ओहने शुद्ध आध्यात्मिक प्रेम रखै छी जेहन आराध्य देवताक पवित्र मूर्त्ति पर पूजक कैं श्रद्धा रहैत छैक । यदि हमर भावना मे भौतिक विषय-वासना लेशोमात्र रहैत त अहाँक समीप अपन कलुषित छाया नहि पड़य दितौंह ।

युवती नारी हिनका गर्वोक्ति पर मुस्कुराइत एक तीक्ष्ण कटाक्ष फेकि कऽ पुछ्लथिन्ह - अहाँ सरिपों-सरिपों फरिछा कऽ कहू त जे अहाँ केवल हमरा गुणे पर मुग्ध छी कि हमरा रूपो यौवन पर लुब्ध छी ?

सी० सी० मिश्र कैं एहन कठिन रमणी सॅं भेंट नहि छलैन्ह । ओ अपन आदर्शवादक रक्षा करैत बजलाह - आध्यात्मिक प्रेम मे त शारिरिक रूप-तृष्णा नहि रहैत छैक। यथार्थ सौन्दर्योपासक गुणक सौन्दर्य देखैत अछि , शरीरक नहि ।

बिजली चमकि कय पुछलथिन्ह - हमरा मे एहन कोन गुण भरल अछि जे उपासना करऽ योग्य हो ?

सी० सी० मिश्र - सभटा त तेहने गुण भरल अछि - विद्या, बुद्धि, संस्कार, उच्च विचार, सभ्यता, कला कौशल, सरसता, मधुरता, कोमलता, शालीनता ........ ।

बिजली देवी हठात मोटर रोकि कय कहलथिन्ह - चलू , सामने गंगा तट पर बैसि कय बतियाइ जाएब ।

घाट पर बैसि कय बिजली कहय लगलथिन्ह - हॅं, त आब एक-एक गुणक परीक्षा होबक चाही ।

"हम एम० ए० मे पढै़त छी; धाराप्रवाह अंगरेजी बाजि लैत छी । किन्तु ई त कोनो अलौकिक गुण नहि । हजारो पुरुष धुरझाड अँग्रेजी मे लेक्चर दैत अछि । एहि बेरि कालेजक डिवेट मे हम फर्स्ट भेलहुँ अछि । यदि एही कारणें अहाँ हमरा फोटो मे फ्रेम लगा कऽ राखै चाहै छी, त संगहि संग ओकर सभक फोटो किऎक ने संग्रह करैत छी, जे सभ आन-आन साल डिवेट मे फर्स्ट भेल छल ?"

यदि अहाँ संस्कृति तथा समुन्नत विचारक पूजा करैत होइ, त एक सॅं एक महानुभाव दार्शनिक विद्वान अपने विश्वविद्यालय मे भेटि जैताह जनिका चरण पर अहाँ अपना भक्तिक अर्घ्य समर्पित कऽ सकैत छिऎन्ह ।

'हमर शिल्पकला देखि कय अहाँ हमर प्रशंसक भेल छी । किन्तु यदि अहाँ कला-पारखी छी त ओहि बूढ़ कारीगरक लग किऎक नहि जाइ छी जे दीप लेसि कय आधा राति धरि सलमा- सितारा और कसीदाक काज मे अपन आँखि फोडै़त रहै अछि ? एही शहर मे सैकड़ो एहन दर्जी भेटत जे कटाइ-सिलाइ मे हमरा सॅं कत्तहु बेशी सिद्धहस्त हैत । किन्तु अहाँ ओकरा तारीफ मे एकोटा गजल कहियो बनौलिऎक अछि ?'

'हमर बनाओल रसगुल्ला पर अहाँ कविता रचने छी । 'जनिका मृदुल करस्पर्श सॅं छेना मे एतेक रस-माधुर्य आबि जाइत अछि जे स्वयं केहन मधुर ओ रसमयी होइतीह।" किन्तु एही नुक्कड पर दमड़ी साहु हलुआइ सब दिन कऽ भरि-भरि कठौत रसगुल्ला तैयार करै अछि । अहाँ ओकरो हाथक प्रशंसा मे तेहने कविता किएक नहि बनौने छिऎक ?

'हमर विनोद-प्रियता तथा क्रीड़ा-कौतुक देखितैं अहाँ कैं 'निर्झरणी, सरिता बुलबुल, स्काइ लार्क' (एक पक्षी) प्रभृति मन पड़य लगैत अछि । किन्तु सामने जे मलाहक धिया-पुता सभ ओतीकाल सॅं पानि मे छप-छप करैत चुभुकि रहल अछि तकरा दिस अहाँ कनडेरियो नहि तकैत छिऎक, से किऎक ?'

'हमरा साइकिल पर अहाँ कविता बनौने छी जे 'ओहि पहिया सॅं पिचाइयो गेने लोक कैं सायुज्य मुक्ति प्राप्त भऽ जैतैक । किन्तु जे साइकिल-रिक्सावाला दू-दू गोटा कैं खिंचैत दिन-राति साइकिल चलबैत अछि, तकरा सॅं कनेक धक्का लगैत देरी अहाँक भौंह तनि जाइत अछि । तकर की कारण ?'

हमरा मोटर चलबैत देखि अहाँ 'विद्युतगामिनी' कविता बनौने छी । किन्तु ओम्हर देखू । एक बड़का दाढ़ीवाला ड्राइवर ओहन ऊभड़-खाभड़ सड़क पर भूत जकाँ बेतहाशा हँकने जा रहल अछि । ओकरा पर अहाँ 'झंझावातगामी' कविता किएक नहि बनबैत छिऎक ?

'हम टेनिस खेलैबा काल अहाँक दृष्टि मे 'विश्वविजयिनी' प्रतीत होइ छी । किन्तु अहाँक अपने क्लब मे एक सॅं एक धुरंधर खेलाड़ी अछि, जकरा आगाँ हम नवसिखुआ जकाँ लागब । ओकरा सभक बाँहि अहाँ किऎक ने पूजैत छिऎक ?'

हमर 'हारमोनियम' अहाँक मन हरि लैत अछि, 'जलतरंग' हृदय मे तरंग उठा दैत अछि, और 'बेहाला' बेहाल कऽ दैत अछि । किन्तु एही मोहल्ला मे उस्ताद वशीर खाँ हरएक बाजा बजैबा मे प्रवीण अछि । ओ हमरा भरि जन्म सिखा सकत । किन्तु ओकर वाद्यकला अहाँक हृत्तन्त्रीक तार कैं कहियो तेना भऽ कऽ झंकृत नहि कऽ सकल जे अहाँ ओकरा पर 'वीणावादक' कविता बनबितिऎक ! से किऎक ?

हमर नृत्यकला देखि अहाँक मन-मयूर नाचय लगैत अछि । किन्तु चौक पर एक अस्सी वर्षक कत्थक अछि जे एही कलाक उपासना मे अपन जन्म व्यतीत कैने अछि । ओकर दाढ़ी मोछ पाकि कय सऽन सन उज्जर भऽ गेलैक अछि । तथापि नाचय काल ओ चुमकी देखबैत अछि से नवयुवकक कान कटैत अछि । ओहि बूढ़क अङ्ग सञ्चालन देखि कऽ अहाँक तेहने भावोद्दीपन किऎक नहि होइत अछि ?

'क्षमा करब ! असल बात ई छैक जे अहाँ लोकनि केवल गुण पर नहि लोभाइत छी, लोभाइत छी नारीक सेक्स अपील (यौन आकर्षण) पर ! युवती अभिनेत्री कैं थिरकैत देखि अहाँ कैं होइ अछि जे तकिते रही । किन्तु एक बूढ़ नर्त्तक जौ ओहिना थिरकऽ लागय त अहाँ कैं हैत जे ई कखन सामने सॅं हटत ! हमरा हाथ मे रैकेट देखि अहाँ लट्टू भऽ जाइ छी, किन्तु वैह रैकेट कोनो पुरुषक हाथ मे देखि धन सन ! असल मे टेनिसक बाँल अहाँक मन कैं नहि नचबै अछि, नचबै अछि कोनो दोसर वस्तु !'

जाहि-जाहि गुणक अहाँ ओतेक बखानि कैने छी, से सभ गुण अछैत यदि हम दाढ़ी-मोछ वाला पुरुष बनि जाइ त अहाँक सभटा रोमांस (रसिकता) तहिना विलीन भऽ जाएत जेना मोहिनी क लीला पर मोहित महादेव कैं विष्णुक असली परिचय भेटि गेने सकल श्रृंगार-भावना तिरोहित भऽ गेलैन्ह ।

अहाँक ई 'रोमांस' तावते धरि अछि यावत धरि हमर रूप-यौवन देखि-देखि अहाँ सिहाइत छी । हमर जे-जे गुण अहाँ कैं रिझा रहल अछि सैह सभ गुण युवावस्था ढरि गेने अहाँ कैं खिझाबय लागत । तखन ने हमर नाच अहाँ कैं सोहाएत, ने टेनिस । यदि काल्हिए कोनो दैवी दुर्घटना वा भयङ्कर रोग सॅं शरीर विकृत और अपरूप भऽ जाय, त फेरि हमर कतबो बीन बजौने अहाँ कैं हमरा मे 'वीणा-पाणि सरस्वती' क भान नहि हैत और हमर कतबो नचने-कछने अहाँ कैं 'शैली' तथा 'कीट्स' क पंक्ति नहि मन पड़त ।

अहाँ लोकनिक आकर्षणक केन्द्र-बिन्दु रहै अछि नारीक यौवन । ओ चुम्बक जकाँ अहाँ लोकनिक हृदय कैं खिचि लैत अछि । युवतीक समक्ष होइतहि अहाँ लोकनिक आँखि पर रंगीन चश्मा लागि जाइत अछि, जाहि मे हरियरे हरियर सुझैत अछि । षोडशीक प्रत्येक कार्य अहाँ लोकनि कैं 'पद्यमय ' बूझि पडैत अछि । ओ जैह करै अछि से अहाँ लोकनिक दृष्टि मे कला बनि जाइत अछि !

तरुणी जौं झटकि कय चलति त अहाँ लोकनि कहबैक - अहा केहन चंचला जौं नहूँ- नहूँ चललि त अहा ! की राजहंसीक समान मन्थर गति ! जौं मुस्काइलि त 'बिजली चमकि गेल' ; जौं खिलखिला उठलि त 'अमृत झहरि गेल' जौं कानलि त मोती झड़य लागल ! जौं बाजलि त 'मिश्री घोराय लागल !' ओ गँओ-गँओ सॅं बाजति त अहाँ ओकर 'शोखी' पर फिदा भऽ जाएब । यदि ओ बनलि-ठनलि रहती त अहाँ ओकर 'फैशन' पर लट्टू होयब; यदि मामूली तरहें रहति त अहाँ ओकर 'सरसता' पर बिका जाएब ! यदि ओ सोझ भऽ कऽ अंगैठी करति त अहाँ ओकर 'अल्हरता' पर मरब; यदि कने टेढ़ भऽ कऽ अंगैठी करति त अहाँ ओकर 'पोज' पर जान देब ! यदि लाज कैलक त 'नाजवाली' कहाओति; लाज नहि कैलक त 'स्मार्ट' कहाओति ! सहमलि रहलि त 'सुशीला' भेलि; निडर रहलि त 'वीराङ्गना' भेलि ।

नवयौवना कड़ा नजरि सॅं तकै अछि त शान कहबैत छैक; तिनुकि कय बजैत अछि त 'स्पिरिट' कहबैत छैक ! जौं घाटक सीढ़ी पर खटाखट उतरि गेल त 'तेजी' भेलैक, जौं बिलमि-बिलमि उतरलि त 'नजाकत' भेलैक! जौं निहुरि कऽ चलति त 'अदा' कहौतैक; जौं सोझ भऽ कऽ चलति त 'बोल्डनेस' कहौतैक! गर्ल'क पाछाँ हजारो युवक 'गरल' पीबक हेतु तैयार रहै छथि। हिनके लोकनि पर बङ्गला मे एक पैरोडी बनल छैन्ह-

''आमार मृत्यू हय यदि गर्ल स्कूलेर मोटर तलाय।''

षोडशी पानियो भरैत रहति त कवि कैं कविताक मसाला भेटि जैतैन्ह। ओ स्नान कऽ कऽ बहराइति त चित्रकार कैं तूलिकाक सामग्री भेटि जैतैन्ह। ओ रेल में सफर करति त पुरुष कैं नेत्र -रंजनक साधन भेटि जाइ छैन्ह। ओ जौं कनितो रहै अछि त रसिक पुरुष कैं ओहि मे करुण रागिणीक रस भेटि जाइ छैन्ह। ओकर पसेनो मे हुनका कस्तूरीक गन्ध भेटै छैन्ह। यदि ओ माथक दर्द सॅं बेचैनो रहति तैयो विज्ञापनदाता कैं चित्रक 'मोडेल' भेटि जैतैन्ह। युवती की भेलि, पुरुषक खेलौना भेलि!

'युवती जे किछु करै अछि से ओकरा छजै छैक। यौवन काल मे सभ बात कटगर लगे छैक। किन्तु वयस ढरने सैह सभ अनकच्छल बूझि पडै़ छैक। यौवनवती कैं सौ खून माफ; वृद्धा कैं एकोटा नहि । रसलोलूप पुरुष कैं गतयौवना पत्निक 'शरबत' सॅं बेशी नवयौवना प्रेमिकाक 'शरवत् वचन' मे रस भेटैत छैन्ह ।

सुन्दरी युवतीक पैर सॅं पैर पिचा गेने कतेको पुरुष ओहि अल्हड़ता कैं अपन भाग्य कऽ कऽ बुझताह, किन्तु वैह अल्हड़पना वृद्धा स्त्री सॅं भेने तुरंत उपदेश देबय लगलथिन्ह - 'बूढ़ी ! केहन अबढङ्गाहि छह ! सुझै छौह नहि ?' युवती उघार-पुघार भऽ कऽ सुतल रहतीह त 'निर्विकार' कहौतीह और वृद्धा ओना रहतीह त 'अपचेष्ट' कहौतीह ! यदि वृद्धा खिसिया कऽ बजलीह त 'खबीसनी' कहौतीह । लेकिन तरुणी तमसा कऽ बजतीह त 'तेजस्विनी' कहौतीह ; जे युवावस्था क 'मस्ती' से वृद्धावस्थाक 'पागलपन' ! जे तरुणीक 'भोलापन' से वृद्धाक 'बुड़िबकइ' ! जे युवतीक 'विलाप' से बुढ़ियाक 'भभटपन' !

साधारण सॅं साधारण लूरि युवती मे देखि कऽ पुरुष-वर्ग कैं 'कला' बूझि पडै़त छैन्ह । राड़-रोहिया सभ दिन राति भादवक भरल गंगा हेलि कऽ पार करैत रहै अछि तकर त मोजर नहि, किन्तु जौं एकटा तरुणी हेलि कऽ कनेक दूर गेलीह त हुनकर अखबार मे छपि जाइ छैन्ह । मलाह सभ बड़का-बड़का टा महाजाल बुनैत अछि तकर त कोनो चर्चा नहि, किन्तु युवती एक बीत डोराक जाली बुनलन्हि त प्रदर्शनी मे राखल जाइत छैन्ह !

पुरुष बुझै छथि जे ओ कोनो तरुणी पर एहि द्वारे मुग्ध जे ओकरा मे गुण छैक। किन्तु हम बुझैत छी जे पुरुष ओहि गुण पर एहि द्वारे मुग्ध छथि जे ओ गुण तरुणीक देह पर छैक।

"हमर ई कथ्य नहि जे पुरुष खाली गुणक आदर नहि करै छथि। किन्तु हमर कथ्य ई जे छुच्छ गुण पर ओ नहि मरै छैथि। पुरुषक गुण कैं ओ दाम दऽ कऽ किनै छथि, किन्तु तरुणीक गुण पर ओ बिनु दाम बिका जाइत छथि। पुरुषक कलाक मूल्य होइ छैन्ह 'प्रशंसा', नारीक कलाक मूल्य 'आत्म-समर्पण!' पुरुष कलाकार कैं जाहि कलाक पुरस्कार में सर्टिफिकेट मात्र भेटतैन्ह, नारी कैं ताहि कलाक पुरस्कार मे 'नवधा भक्ति' भेटि जेतैन्ह।

'नारी-यौवनक सहयोग पाबि तुच्छो गुणक-मूल्य तहिना बढ़ि जाइ छैक जेना अंकक सहयोग सँ शून्यक मूल्य बढ़ि जाइत छैक। और जहिना ओ तुच्छ शून्य ओहि अंकक मूल्य दस गुना बढ़ा दैत छैक, तहिना ओ तुच्छ गुण युवतीक आकर्षण कइक बेर चमका दैत छैक। जेना शून्यक समूह 'वामाङ्क' पर पड़ने लाख बनि जाइत अछि, तहिना साधारणो गुणक समुदाय 'वामाङ्क' मे गेने लाख भऽ जाइत अछि ।

ई सभ सेक्स इन्स्टिक्ट (काम-प्रवृत्ति) क लीला थिक । पुरुष यथार्थ मे मोहित त होइ छथि स्वयं युवती पर, परन्तु से कहबाक साहस नहि होइ छैन्ह । तखन प्रशंसा करऽ लगै छथिन्ह ओकर और-और गुणक । 'वाह ! सिलाइ केहन सुन्दर ! रुमालक फूल केहन चिक्कन ! सूत केहन मेंही ! बुनिया केहन विलक्षण ! बाजव की मधुर ! चाय की अपूर्व !

ई सभ प्रवंचना थिक । जखने पुरुष युवती मे गुण देखि कऽ प्रशंसा करऽ लागय तखने बूझक चाही जे ओ 'आधेय गुण' सॅं अधिक 'आधार द्रव्य' पर लट्टू अछि । यदि केओ पुरुष सपथ खा कऽ हमरा कहय जे ओ केवल हमरा गुणे टा पर मोहित अछि, त हम बूझब जे या त ओ सरासर फूसि बजै अछि, अथवा नपुंसक थिक । 'महात्मा' क नाम हम एहि द्वारे छोड़ि देल अछि जे आइ धरि केओ एहन महात्मा हमरा नहि भेटल छथि ।

माफ करब । हम अहाँ पर व्यक्तिगत आक्षेप नहि करैत छी । पुरुष मात्रक ई स्वभाव होइत छैन्हि ।

मिस बिजलीक प्रगल्भतापूर्ण यथार्थवाद सॅं सी० सी० मिश्रक गंभीर 'आदर्शवाद' क धज्जी उड़ि गेलैन्ह । हुनक 'आध्यात्मिक प्रेम' क पताका नीचा खसि पड़लैन्ह । ओ आब अपन ढहैत-ढनमनाइत सिद्धान्तवादक भीत मे सोङ्गर लगाएब व्यर्थ बुझलन्हि ।

किन्तु सायंकालीन सरिता-तट पर एकान्त स्थान मे युवतीक संग विश्रम्भालाप सॅं हुनका भावुकता उद्दीप्त भऽ उठलैन्ह । मुक्त हृदया युवती सॅं घनिष्टता-पूर्ण गप्प कैं एक अलभ्य लाभ बूझि , ओ एहि नारी मित्रक आगाँ अपन हृदय खोलि कऽ 'आत्मनिवेदन' करय लगलाह । आद्योपान्त अपना विवाहक उपाख्यान कहि सुनौलथिन्ह ।

सम्पूर्ण वृत्तान्त कहि गेला पर सी० सी० मिश्र बिजलीक सहानुभूति प्राप्त करबाक उद्देश्य सॅं पुछलथिन्ह - कहूँ ! केहन दुखान्त नाटक ! एहि मे ककर दोष अहाँ दैत छिऎक ?

बिजली कहलथिन्ह - ओहि गमार लड़कीक ।

मिश्रजी फक दऽ निसास छोडै़त बजलाह - अहाँ जौं ओहि लड़कीक स्थान मे रहितहुँ त एहना परिस्थिति मे की करितहुँ ?

बिजली तड़ दऽ जबाब देलथिन्ह - हम ओहन स्वार्थी पुरुष कैं 'शूट' कय दितिऎक ।

सी० सी० मिश्र जे पासा फेकने छलाह से उनटे पड़ि गेलैन्ह ! ओ झमा कऽ आकाश पर सॅं खसि पड़लाह । बूझि पड़लैन्ह जेना कौशलमयी रमणीक पेंच मे पड़ि कऽ ओ अचानक पटका गेल होथि !

बिजली तमकि कऽ बजलीह - विवाहक बाद लड़की कैं नापसंद करबाक अहाँ कैं कोनो हक नहि । ई हक पाणि-ग्रहण सॅं पहिने छल । बिनु जॅंचने-बुझने हाथ धऽ लेलिऎक से अहाँक अपन बेबकूफी भेल । एहि मे लड़कीक कोन कसूर ? अपना गलतीक खातिर अहाँ ओहि लड़की कैं दण्ड नहि दऽ सकै छिऎक । यदि हम ओहि लड़कीक स्थान मे रहितहुँ त अहाँ कैं नाके सूत पानि पिया कऽ छोड़ि दितहुँ । तखन अहाँ कैं स्त्रीक प्रति अभद्रतापूर्ण व्यवहार करबाक साहस नहि होइत ।

सी० सी० मिश्र सिटपिटाइत बाजय लगलाह - हम आजीवन स्त्री-समाज मे शिक्षाक ज्योति जगैबाक हेतु सन्यास ग्रहण करबाक संकल्प कैने छी और ......।

बिजली बात कटैत कहलथिन्ह - अहाँ अपने घर मे शिक्षाक ज्योति नहि जगा सकब त अनका घर मे की जगैबैक ? और हमरा सामने ढोङ नहि रचु । अहाँ सन-सन सैकड़ो युवक सन्या सी कैं हम अपना कनगुरिया आङ्गुरक इशारा पर नचा सकैत छी । मानि लियऽ एखने जौं हम अहाँक सकल्प तोड़बाक संकल्प करी, त के जीतत ? अहाँ कि हम ? अहाँ हमरा लऽ कऽ रहब कि अपन ब्रह्मचर्य लऽ कऽ ?

सी० सी० मिश्र एहन मधुर प्रश्नक हेतु तैयार नहि छलाह । प्रश्नक सरसता सॅं हुनका सौंसे देह मे गुदगुदी लागऽ लगलैन्ह मन मे बजलाह - अहाँक आगाँ त स्वर्ग, मोक्ष और त्रैलोक्यक सम्पदा तुच्छ थिक । एहि क्षुद्र सन्यासक कोन कथा ! किन्तु युवती सरिपों पुछै छथि वा हँसी करै छथि से निश्चय नहि कऽ सकलाक कारण ओ चुप्पे रहलाह ।

बिजली एकाएक गंभीर बनि कहय लगलथिन्ह - हमर त ई सिद्धान्त अछि, जे कोनो पुरुष कैं अपन 'स्वामी' नहि बनाबी । हॅं, योग्य पुरुष कैं देखि 'जीवन-सङ्गी' बना सकैत छी । किन्तु ओ कोनो बात मे हमरा ऊपर हुकुम नहि चला सकत और ने हमरा व्यक्तिगत विषय मे बिनु पुछने दखल दऽ सकत ।

सी० सी० मिश्रक मन मे त ऎलैन्ह जे - 'अहाँक तरबो रगड़बाक सौभाग्य प्राप्त भेने लोक जिबैते तरि जायत !' प्रकाश्यतः बजलाह - अशिक्षिता स्त्रीक 'स्वामी' भेलाक अपेक्षे त अहाँ सन सुशिक्षिता महिलाक 'सेवक' बननाइ लाख कच्छे नीक ।

बिजली देवीक ठोर पर कनेक कठोर मुस्कुराहट दौड़ि गेलैन्ह । बजलीह - थम्हू, हमर औरो सब शर्त त पहिने सुनि लियऽ ।

सी० सी० मिश्र मन मे कहलन्हि - अहाँक सभटा शर्त विनु सुननहि हमरा मंजूर अछि । दुधार गायक लथारो नीक लगै छैक ।

बिजली बजलीह - पहिने हम जे जे गुण पुरुष मे जोहैत छी से सभटा गुण अहाँ मे अछि कि नहि ? ई त बूझी ! अच्छा, अहाँ बौक्सिंग (मुष्टिप्रहार कला) मे त निपुण होएब ?

सी० सी० मिश्र अफसोस करैत बजलाह - नहि, घुस्साक प्रैक्टिस त हम नहि कैने छी ।

बिजली कठोर स्वर मे बजलीह - हम त एहन पुरुष कैं चाहैत छी जे स्त्री पर जोर-जुलुम करयवाला गुंडा कैं एके वज्रमुष्टिक प्रहार सॅं धाराशायी कऽ सकय । अच्छा, अहाँ राइडिंग (अश्वारोहन) मे त प्रवीण होयब ?

सी० सी० मिश्र विषण्ण स्वर सॅं बजलाह - नहि, घोड़ा पर चढ़बाक मौका त हमरा नहि भेटल अछि।

बिजली तिरस्कारपूर्वक बजलीह - हम त एहन पुरुष कैं पसंद करै छी जे बदमाश सॅं बदमाश अरबी घोड़ा कैं सरि कऽ कऽ घंटा मे दस माइलक चालि सॅं सरपट दौड़ा सकय । अच्छा, शूटिंग (बन्दूक चलाबय) मे त अहाँ सिद्धहस्त हैब ?

सी० सी० मिश्र अप्रतिभ होइत बजलीह - नहि, बन्दूक चलैबाक अभ्यास त हमरा नहि अछि ।

ई सुनि बिजली देवी अत्यन्त भर्त्सनापूर्ण स्वर मे बजलीह - छिः छिः ! एहन मर्द की जे बन्दूक नहि चला सकय ! हम त ओहने मर्द कैं मर्द बुझैत छी जे बाघक मुँह मे फायर करयवाला हो । जे एकटा गोली नहि चला सकय, तेहन नामर्द कैं त गोली मारि देबक चाही !

ई कहि बिजली सी० सी० मिश्रक कवितावली कैं हुनका आगाँ मे फेंकैत चमकि कऽ बिदा भेलीह और फुर्र दऽ अपन मोटर उड़बैत चलि जाइत रहलीह । एको बेर पाछाँ घूरि कय नहि तकबो नहि कैलथिन्ह !

बेचारे सी० सी० मिश्र पराजित सैनिक जकाँ अपन उपेक्षित 'प्रेमकाव्य' उठौलन्हि और अछितबैत-पछितबैत, अप्पन सन मुँह कैने चारि कोस दूर डेराक बाट धैलन्हि ।

चंचला युवतीक संग हवाखोरीक मजा आब बहराय लगलैन्ह । जहिना आनन्द सॅं आयल छलाह तहिना घिसिऔर कटैत फिरय लगलाह । हुनक सरस छायावाद रौद देखैत बिला गेलैन्ह और रसिकता सिकता मे मिलि गेलैन्ह ।

बिजलीक निष्ठुर वज्राघात सॅं सी० सी० मिश्रक कल्पना-महल चूर-चूर भऽ गेलैन्ह ।

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