लेखक : हरिमोहन झा

भादवक पूर्णिमा कैं चन्द्रग्रहण थिकैक । लालकाकी एहि बेरि सदलबल काशी जैबाक न्यार कैने छथि । दल मे रहथिन्ह ढुनमुन काकी, बुच्चीदाइ, आवेशरानी, भखराइनवाली तथा ज्योतिषिआइन । बल मे रहथिन्ह - भोलानाथ झा, बटुकजी तथा पं० नमोनाथ झा ।

दशमीक रात्रिशेष मे भुरुकवा उगला पर लालकाकी प्रभृति गोसाउनिक सीर मे गोर लागि, पूर्णकलश तथा दही देखि, 'जय गणेश'-जय गणेश' करैत घर सॅं बहराइत गेलीह । जहिना देहरि नँघै छथि कि ढुनमुनकाकीक नेना छीकि देलकैन्ह। लगले सभ गोटा पाछाँ फिरैत गेलीह और भोलानाथ शान्तिपाठ करय लगलाह।

पं० नमोनाथ झा पत्रा मे सिद्धियोग ताकि, एक दिन पहिनहि यात्रा कऽ एक जोड़ जनउ ज्योतिषिआइनक चार में खोंसि आएल रहथि। किन्तु एखन चलय काल कतबो टोइया मारला पर नहि भेटलैन्ह। अन्त में हारि दारि कय 'गणानां त्वा गणपतिग्वं हवामहे' करैत बिदा भेलाह।

गामक लोक केओ टोकय नहि, ताहि द्वारें सड़क छोड़ि एकपैरियाक बाट धैल गेल। झोल्हफल्ह मे नीक जकाँ नहि सुझबाक कारण ज्योतिषिआइनक पैर एक बेर थाल मे पड़ि गेलैन्ह। ओ ठेहुन धरि पाँक में धँसि गेलीह। ढुनमुनकाकी नव रेशमी साड़ी पहिरि कऽ चलल रहथि। ओ थाल-कीचक डरें खेतक आड़ि पर दऽ कऽ चलय लगलीह। किन्तु एक ठाम तेहन पिच्छर रहैक जे हुनक पैर छहिलि कऽ आगाँ चलि गेलैन्ह और ओ चितङ्गे खसि पड़लीह। आड़िक कङनी पर सॅं ओ नीचा खत्ता मे ओंघड़ा गेलीह। चोट त बेशी नहि लगलैन्ह, किन्तु साडी कादो में लेढ़ा गेलैन्ह।

एकठाम माछ बझैबाक हेतु अरसी-टभका लागल रहैक। बटुकजी कैं फुरलैन्ह जे यात्रा पहर माछ देखि लेबाक चाही। ओ ओहिठाम जा जहिना पानि मे पैसय लगलाह कि एकटा ढोंढ़ साँप कैं बहराइत देखि 'बाप-बाप' कय पडै़लाह। रास्ता में एक नढे़आ बाट काटि देलकैन्ह ताहि सॅं ओ और भयभीत भऽ उठलाह।

एवं प्रकार भिनसर होइत-होइत यात्रीक दल सकुशल सकरी स्टेशन पर पहुँचि गेल। भोलानाथ झा कहलथिन्ह -'एखन गाड़ी आबऽ मे बहुत देरी छैक। तावत सभ गोटे पोखैर सॅं भऽ अबै जाउ। एत्तहि नहा-सोना कऽ बखेड़ा छोड़ौने रहब से नीक हैत। तावत हम और पं० जी एहिठाम बैसि कय अगोरैत छी।

बटुकजी सभ स्त्रीगण कैं लऽ कऽ पोखरि दिस बिदा भेलाह। ओतय सभ गोटा कैं बेराबेरी कुडुर-आचमन करैत नहाइत-धोइत सूर्योदय भऽ गेलैन्ह। लालकाकी कऽ विचार भेलैन्ह जे नूआ सुखौनहि चली। ढुनमुन काकी अपन रेशमी साड़ी पखारय गेलीह, लेकिन कदवाह पानि मे धखोरने और भटरङ्ग भऽ गेलैन्ह। तखन खिसियाक भीड़ पर पसारि देलथिन्ह। जा नुआ सभ सुखाइ छलैन्ह, ता लालकाकी, आवेशरानी ओ भखराइनवाली आनन्दक उमङ्ग मे गीत उठा देलथिन्ह-

बाबा विश्वनाथ दर्शन पर नैना लागि रही हमरी।

एम्हर गीत प्रारम्भे भेल छल कि तावत ओम्हर स्टेशन पर घंटी टनटनाएल भोलानाथ झा हड़बड़ा कऽ बजलाह-जाह ! गाड़ी चलि अबै अछि। पं० जी, अहाँ दौडू! झटकि कऽ सभ कैं नेने अबियौक। तावत हम टिकट कटबै छी।'

पं० नमोनाथ झाक पैर में बेमाय फाटल रहैन्ह। तैं इँकड़ी बचबैत-बचबैत बड़ी कालें पोखरिक घाट पर पहुँचलाह। ओतय देखै छथि त बडे़ टहंकार सॅं गीत चलि रहल अछि। पं० जी चिचिया कऽ बजलाह 'ब ब ब बटुकजी!

किन्तु बटुकजी भरि डाँड़ पानि में 'अघमर्षण सूक्तस्याघमर्षण ऋषि' क टाङ्ग तोड़ैत छलाह।

पं० जी पुनः जोर सॅं चिचियाकऽ बजलाह-'च च च चलै चलू। घ घ घ घंटी पड़ि गेलैक।

किन्तु गीतगाइन सभ अपना-अपना सुर मे मस्त छलीह। केओ-हिनका दिस ध्यान नहि देलकैन्ह।

भखराइनवाली पं० जीक स्त्री रहथिन्ह और फुचुकरानी भाभहु। अतएव पं० जी ओहिठाम जैतथि कोना? फेर फराके सॅं बाजय लगलाह-अहाँ लोकनि एतय क क क कजरी गबै छी, ओम्हर गाड़ी छोड़ने अछि।

लालकाकी गबैत-गबैत, हाथक इशारा सॅं हुनका रोकि, गीतक अन्तिम पद पुरौलन्हि, तखन पुछथिन-आब की कहै छी से कहू।'

'पं० जी बजलाह- ग ग ग गाड़ी च च च चल...'

तावत तुमुल ध्वनि सॅं सभ कैं हड़हड़बैत सद्यः रेलगाड़ी अपना आगमनक सूचना दऽ देलकैन्ह।

आब तऽ हुलिमलि उठि गेल। लालकाकी माथ पिटैत बजलीह-' दैव रे दैव ! आब कोन उपाय हेतैक? बाट-बाट मे गाड़ी छूटि गेल। आब फुचुकरानी नीक जकाँ अपन पटोर सुखबैत रहथु ।

अपने पटोर पर सभटा दोष थोपाइत देखि ढुनमुन काकी एक आँजुर थाल लऽ कऽ ओहि मे लपेटय गेलीह । किन्तु आवेशरानी बिच्चहि मे थाम-थैया कऽ लेलथिन्ह ।

बटुकजी अङ्गपोछा गारैत बजलाह मङ्गनी मे देखैत-देखैत टैन छूट गेल । आब दिन भर हिंए बैठ कऽ तानारीरी करैत रह ।

ई लोकनि जा स्टेशन पहुँचथि-पहुँचथि ता गाड़ी फूजि गेल ।

भोलानाथ झा बटुकजी दिस तकैत बजलाह - तों एहन भारी पिंडश्लोकी छह से हमरा नहि जानल छल ! खाली सानिमाठ मे गाड़ी छूटि गेलौह । बाट मे कतहु ऎतेक टीङ्ठोप भेलय !

बटुकजी अपन सफाइ दैत बजलाह - हम त पहिले ही कहलिएन्ह जे गाड़ी के टैम लगिचाएल है; फुर्ती करै जाउ । लेकिन हिनका सभ के त भासे चढ़ाबे से न फुरसत रहन । हमर बात के सुनैअऽ ?

पं० नमोनाथ झा कहलथिन्ह - हम त जखने स स सिकन्दर खसल देखलिऎक तखने बुझलौं जे आइ स स सोरहो दण्ड एकादशी स स सकुड़ीए मे करय पड़त ।

भोलानाथ झा अफसोस करैत बजलाह - हमरो सॅं एकटा बुड़ित्व भऽ गेल जे हड़बड़ी मे दस टा टिकट कटा लेलिऎक । आब जोड़ि कऽ देखैत छी त नौए टा लोक अछि ।

लालकाकी बजलीह - हमरा लोकनिक संग-संग कर्मो ने लागल छथि । तिनको एकटा टिकट कटा गेलैन्ह । नहि त एहन कत्तहु भेलय जे पाछाँ सॅं आबयवाला लोक सब चढ़ि कऽ चलि जाय और हमरा लोकनि जे अन्हरोखे सॅं ओगरने छी से मुँह तकैत रहि जाइ !

'सभ धर्मात्मा पार उतरि गेल, पापी रहल किनारे ।'

पं० नमोनाथ झा बजलाह - फ फ फेर गीतक पद होमय लागल । कतहु द द दोसरो गाड़ी ने छूटि जाय !

भोलानाथ झा सभ कैं लऽ जा कऽ मोदियाइनक दोकान मे बैसौलन्हि । पं० जी और ज्योतिषिआइन्ह कैं त एकादशीए रहैन्ह । औरो लोक सभ अफसोसक मारे नहि खैलक । गामक तमहा चूड़ा, टटका दही और भेली गुड़ केवल बटुकजी कैं पैठ भेलैन्ह ।

दू घंटा पहिनहि सॅं सभ गोटे प्लेटफार्म पर बैसि कऽ दुबज्जी गाड़ीक प्रतिक्षा करय लगलाह । भोलानाथ झा बारम्बार बटुक जी कैं बुझाबय लगलथिन्ह - जहिना गाड़ी लगैक तहिना तों छड़पि कऽ जनानी डब्बा फोलिहऽ और हिनका लोकनि कैं ओहि मे बैसा दिअहुन । ताबत हम और पं० जी दोसरा कोठरी मे सभटा वस्तु चढौने रहब । पाछाँ तोहूँ आबि कऽ ओहि मे चढ़ि लिहऽ ।

बटुकजी कहलथिन्ह - अहाँ मडुआ भर फिकिर न करु । हम एसगरे कुल असबाबो चढ़ा लेब और हिनका सबके बैठाइयो देबैन । अहाँ दुनु गोटे जौन जगह खुशफैल बुझाय तौन जगह बैठ जायब ।

निर्दिष्ट समय सॅं पौन घंटा लेट कऽ कऽ गाड़ी अबैत दृष्टिगोचर भेल । यात्री दल सुगबुगाय लगलाह । किन्तु अभाग्यबश ई लोकनि जाहि सामने बैसल रहथि ताहि सॅं चारि लग्गा आगाँ बढ़ि कय गाड़ी लागल । आब त हड़बिड़रौ उठि गेल । पहिलुक सभटा प्रोग्राम गड़बड़ा गेलैन्ह ।

बटुकजी भरकछ भीड़ि कय पेटी उठौलन्हि और दुलकी लगबैत बजलाह - सभ कोने एक-एक ठो चीज लेके हमरा पीछे दौड़ल आउ ।

आब जकरा आगाँ जे पड़लैक से उठा कऽ दौड़ऽ लागल ।

बटुकजी ओ भोलानाथ सभ सॅं आगाँ बढ़ि गेलाह । लालकाकी और बुच्चीदाइ हुनका पैरे लागल गेलथिन्ह ।

ढुनमुन काकी दहीक कोहा लऽ कऽ दौड़य लगलीह । किन्तु गोझनौट मे दूहू पैर फँसि गेने कोहा नेने देने मुँहे भरें खसि पड़लीह । अडाँचीक बुकनी छीटल छल्हिगर दही प्लेटफार्म पर किचकाहैन भऽ गेलैन्ह । हुनका उठाबक हेतु आवेशरानी ठाढ़ि भऽ गेलीह ।

ज्योतिषिआइन तथा भखराइनवाली आगाँ रहि गेलीह कि पाछाँ से पता नहि । पं० नमोनाथ झा फिफहिया भऽ हुनका खोजय लगलथिन्ह ।

ताबत एंजिन सीटी दऽ देलकैक । आब के कत्तह चढ़ल तकर कोनो ठेकान नहि रहल । गाड़ी चलय लागि गेल ।

वटुकजी अपना डब्बा मे तजबीज करैत बजलाह - ले बलैया ! देखू धन्धा ! चार गो मेहरारू एह मे चढ़बे नहि कैलन ! पंडितोजी बुझाइअऽ छूट गेलन ।

ई सुनितहि छिछरी-पटिया उठि गेल । दैबा रे दैबा ! केहन कुयात्रा मे चलल छलहुँ से नहि जानि ! आब कोन उपाय हैतैक ? ई कहि लालकाकी घेओना पसारबाक सुर-सार करय लगलीह ।

भोलानाथ धड़फड़ा कऽ जंजीर खिचबाक हेतु सुरफुरैलाह । किन्तु बटुकजी कहलथिन्ह - अहाँ सभ नाहक घबराएल हती । हम सौंसे मूड़ी बाहर कऽ कऽ देखलीहऽ । लाटफारम पर कोनो न छुटल है । ऊ सभ पं० जीक के जोरे दोसरा कोठरी मे चहर गेल होएतन ।

ई सूनि सभ गोटा कैं किछु धैर्य भेलैन्ह । लालकाकी मनहिमन कुलदेवता कैं गोहरबैत कबुला करय लगलीह जे एहि संकट सॅं उबरला पर कुमारि कैं मधुराएल भोजन करायब ।

भोलानाथ झा बजलाह - चलैत काल एकटा टिटही बाजि देने रहय । हम त तखने कहलहुँ 'बिनु कारण टिटही नहि बाजय' । आब देखा चाही की-की होइ अछि !

लालकाकी सभ सॅं बेशी अपना देयादिनीक हेतु अपस्यांँत होइत अहुरिया काटय लगलीह । बजलीह - सभ गोटाक आँखि पर पाथर पड़ि गेल । गै बुचिया ! तोंहू त देखितहुन ?

बुच्ची दाइ कहलथिन्ह - हमरा त हुनके नेना कैं कोरवाही करैत-करैत विपत्ति ! ताहि पर तोहर वाला साजो और गंगाजली हमरे हाथ मे । लद्दफद्द होइत कोनो तरहें तोरा सभक पाछू धैने ऎलियौ । बटुक भैया क पैर मे जुमनाइ मिश्किल ! पाछाँ फिरि कऽ देखक की होश रहय ?

यावत धरि गाड़ी चलैत रहल तावत धरि लालकाकीक प्राण अवग्रह मे पड़ल रहलैन्ह । 'दरिभङ्गा' पहुँचैत देरी बटुकजी और भोलानाथ कूदि कऽ बहरैलाह ।

बगलवाला कोठरी मे फुचुकरानी और आवेशरानी पुक्की फाड़ि कऽ कनैत छलीह । अपना पुरुष पात कैं देखि कत्तहु सॅं प्राण ऎलैन्ह । दूनू लालकाकीक लग आबि नोर पोटा चुआबऽ लगलीह । लालकाकी भरि पाँज धऽ कऽ कहलथिन्ह - हे दाइ सभ हे दाइ सभ ! तोरा बिनु आँखि हेराएल छल हे दाइ सभ ! ओइल-पाइल मे मन छल जे की करु । भरि बाट लाबा-फरभी होइत ऎलहुँ अछि । ई कहि लालकाकी आँचर सॅं आँखि पोछय लगलीह ।

भोलानाथ झा बजलाह - आब एहि कन्ना-रोहटि सॅं कोन फल ? और-और लोकक पता लगाबक चाही ।

ताबत पं० नमोनाथ झाक स्वर कर्णगोचर भेल - औ कत्तहु भ भ भोलानाथ बाबू ......

भोलानाथ बजलाह - हॅं, हॅं। यैह, यैह ।

पं० जी भखराइनवाली तथा ज्योतिषिआइन कै नेने पहुँचि गेलाह । हतासें सभक प्राण सुखाएल छलैन्ह ।

अपना संग-समाज कैं पुनः जुटल देखि लालकाकी बजलीह - धन्य भगवान ! बड़ रक्षा रखलन्हि । नहि त आइ कोन दशा मे रहितहुँ ?

जखन सभ बैसैत गेलीह तखन मोटरी-चोटरीक हिसाब होबय लागल ।

ढुनमुनकाकी डेराइत-डेराइत कहलथिन्ह- दहीक बासन त हमरा बुतें फूटि गेलैन्ह ।

बटुकजी कैं सकरी मे दुइए छौ दही भेटल छलैन्ह, ताहि सॅं कनेक छुछुआयले जकाँ उठल रहथि । बजलाह - ओह ! जनती त हुँअई खूब ठेल कऽ खा लीती । छुच्छे चिउड़ा से गड़ा लगैत रहे से लेबे न कैली, और मङ्गनी मे सब दही टीसने पर जियान हो गेल ।

ओ दही लालकाकी बडे़ यत्न सॅं पौरने रहथि । कनेक अभिरोष करैत बजलीह - हम अपने हाथ मे नहि लेलहुँ तकर फल थिक ।

ढुनमुनकाकी ठोर बिजुका कऽ बाजऽ लगलीह - हे दिनकर ! जौं हम जानि बुझि कऽ फोड़ने होइऎन्ह त हमरा काया मे घून लागय, हमर समाङ नहि काज आबय ....।

आबेशरानी हुनका मुँह पर हाथ धरैत कहलथिन्ह - हाँ ! हाँ ! शपथ केओ खाय ? दही कोन वस्तु छैक ? लोक रहल चाहय ।

लालकाकी ठकुआ कऽ बजलीह - सैह कहथु बहिना ! हम की कहने छलिऎन्ह जे एतेक लगलैन्ह ? हम त यैह ने बजलहुँ जे अपने हाथ कें किएक ने लेलहुँ । ई कि कोनो गारि भेलैक ?

एकाएक भोलानाथ कैं अपन छाता मन पड़लैन्ह । बजलाह - जाह ! हमर छत्ता की भेल ? हौ बटुक जी ! हम तोरे हाथ मे देने रहियौह ।

बटुकजी कहलथिन्ह हम त पेटी उठाबे के बखत छत्ता हुँअइ रख देने रही । आब हुँआ से कोन सार उठैलक से न मालूम ।

पं० नमोनाथ झा बाजय लगलाह हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ ग ग ग ग गारि नहि दहौक । ह ह हमहीं उठा कऽ रखने छी ।

एवं प्रकारें खोज-पुछारी होइत-होइत अन्ततोगत्वा पता लगलैन्ह जे और सभ वस्तु त सकरी मे चढ़ि गेल, लेकिन एकटा मोटरी ओत्तहि छूटि गेल जाहि मे सभ गोटा कऽ भिजल नूआ लपेटि-सपेटि कऽ बान्हल रहैन्ह; फुचुकरानीक पटोरो ओही मे रहैन्ह । ओ ठोर पटपटबैत बजलीह - ततेक ने पटोर-पटोर भेल जे पटोर जाइते रहल ! नीक भेलैक ।

भखराइनवाली रसगुल्ला कोरक तिनपढ़िया साड़ी कैं लाल रंग मे कुंडाबोर कऽ रङ्गने रहथि । से दु दुइयो दिन नहि पहिरि सकलीह । शाप दैत बजलीह - ओ मोटरी जे नेने होय तकरा भगवान भोग नहि दिहऽथिन्ह ।

ज्योतिषिआइन फेरल साड़ी फाटल-पुरान जकाँ रहैन्ह । कहलथिन्ह - जाय दियऽ । तीर्थ-यात्रा मे जे वस्तु हेरा जाय, तकर बेशी सोच नहि करक चाही ।

पं० नमोनाथ झा बजलाह - 'प प प प्रथमग्रासे मक्षिका पातः' भऽ गेल । आबो च च च चेति कऽ चलक चाही ।

समस्तीपुर पहुँचला पर सभ गोटे उतरैत गेलाह । मालूम भेलैन्ह जे दस बजे राति कऽ गाड़ी भेटत । बटुकजी कहलथिन्ह अभी त पाँचे बाजल हे इतना देर लाटफारम पर बैठ कऽ की करब ? मुसाफिर खाना मे चलै चलू ।

किन्तु भोलानाथ झा कहलथिन्ह-'एतेक वस्तु-जात लऽ कऽ मुसाफिरखाना जाएब और फेरि ढो कऽ आनब ताहि मे त बड़ भीड़ पडै़ जाएत। जतय गाड़ी लगतैक तत्तहि चलि कऽ सभ गोटे बैसइ जाह। ओहि बेरक हड़बड़-दड़बड़ नहि ठीक।

पुल पार कय निर्दिष्ट स्थान पर बटुकजी बड़का सतरंजी खोलि बिछौलन्हि। लालकाकी प्रभृति बैसैत गेलीह। तीनू पुरुष किछु फराक हटि कम्बल पर बैसलाह।

भोलानाथ बटुकजी कैं कहलथिन्ह-"हौ! आइ तोरा छोड़ि कऽ सभ निराहारे छथुन्ह। आबहु त उपवास-भंग करबहुन।

ज्योतिषिआइन बजलीह-हम आइ एकादशी कै कऽलक पानि की पिउब? अहाँ लोकनि खाइ- पिबै जाउ।

पं० नमोनाथ झा बजलाह-'हॅं, से त हमरो एहिठाम फ.....फ.... फलाहार करबाक प्रपन्नता नहि होइत अछि, तथापि क....क....कनेक किछु लऽ कऽ 'उपवास-खण्डन' कऽ लेब।'

लालकाकी चङ्गेरी खोलि कऽ साँच, पिडुकिया, टिकरी और भुसबा बाहर करय लगलीह। बटुकजी एक तमघैल पानि कल सॅं लय ऎलाह। स्त्रीगण कैं त सहल पेट मे अधिक नहि खा भेलैन्हि। किन्तु बटुकजी बड़ी काल सॅं सोन्हाएल छलाह। चङ्गेरा मे जतेक साँच और भुसबा बाँकी बचलैक से चूरमूर समेत अपना आगाँ मे उझीलि, डाला झाड़ि कय ब्रह्मक पूजा करय लगलाह।

भोजन सॅं करीब डेढ़ घंटा बद बटुकजीक पेट मे दर्द उठलैन्ह। टटाएल ठकुआ और सुखाएल आमक फाँड़ा अँतड़ी कैं ऎंड़य लगलैन्ह। ओ कच्छ-मच्छ करय लगलाह।

भोलानाथ कहलथिन्ह-'जा, एक बेर नदी दिस सॅं भऽ आबह। पेट खुलासा भेने मन हल्लुक हैतौह।

बटुकजी एक लोटा पानि लऽ अन्हार माथे बिदा भेलाह।

थोडे़क काल मे बटुकजी आबि कोइलाक छाउर सॅं हाथ मटियाबैत बजलाह-हमरा त कुत्था शुरू हो गेल है। निछक्के पानी झरल है। हे लिउ, फेर खोंच मारे लागल। '

ई कहैत बटुकजी पुनः कान पर जनौ चढ़बैत जेम्हरे सॅं आएल रहथि ताही दिस फेरि झटकैत बिदा भेलाह।

दुइये मिनट बाद एक रेलवे कर्मचारी शब्द सुनाइ पड़ल-कौन है? तदनन्तर किछु हल्ला गुल्ला ओ धड़पकड़ जकाँ बूझि पड़ल। बटुकजी खाली हाथ डोलबैत पहुँचलाह। अपन बुधियारी देखबैत बजलाह - लोटा त सार छीन लेलक, लेकिन हम अपने केनतो कऽ निकस ऎली।'

भोलानाथ खिन्न भऽ बजलाह-'विघ्न पर विघ्न उपस्थित भेल जा रहल अछि। भगवतीक की इच्छा छैन्ह से नहि जानि!

पं० नमोनाथ झा हुनक समर्थन करैत श्लोक पढ़य लगलाह-

'एकस्य दुःखस्य न या या या ......' हुनक कष्ट देखि भोलानाथ झा पूर्त्ति कऽ देलथिन्ह- '........यावदन्तम्, गच्छाम्यहं पारनिर्वाणवस्य! तावद्द्वितीयं समुपस्थितं मे, छिद्रेष्वनेर्था बहुली भवन्ति।।

तावत टप-टप बुंद पड़य लागल। गाड़ी ऎबाक घंटी पड़ि गेल रहैक तैं ओहिठाम सॅं हटबोक उपाय नहि! अगत्या स्त्रीगण भीजय लगलीह। तीन पुरुष मे एकेटा छाता रहैन्ह; अतएव ओ लोकनि और बेशी भिजैत गेलाह। दस मिनटक भीतर सभक कपड़ा भीजि कऽ शरीर मे सटि गेलैन्ह। ज्योतिषिआइनक सौंसे देह जाड़ सॅं भुलकय लगलैन्ह।

तावत कटिहारक एक्सप्रेस ट्रेन प्लैटफार्म कैं दलमलित करैत धड़धड़ाइत आबि पहुँचल। ग्रहणक कारण ओहि मे ठसाठस भीड़। भीतर तिल रखबाक जगह नहि, और बाहर दुहू कात लोक बादूर जकाँ लटकल!

गाड़ीक त ई हाल और प्रत्येक डब्बाक सामने हाँजक हाँज मुसाफिर चढ़क लेल सतुआ-सम्मर बन्हने, फाँड़ कसने तैयार! ई रेड़ बहेड़ देखि भोलानाथक होश गुम भऽ गेलैन्ह। हताश भऽ बजलाह-बटुकजी आब की होबक चाही?

बटुकजी कहलथिन्ह-'हमरा पेट मे त विपता सन्हियाएल छथ। एखनीओ हूर मारैअऽ। न त कोनो अक्किल हम जरूर लगैती।

पं० नमोनाथ कहलथिन्ह-नइँ होए त ई ट्रेन छोड़ि कऽ दोसरा ट ट ट ट्रेन सॅं चलै चली।

भोलानाथ म्लान भऽ बजलाह-'दोसरा ट्रेन मे त अहु सॅं बेशी रेाड़ पडै़त रहत जौ एहि गाड़ी सॅं नहि जा सकलहुँ त बूझू जे काशी नहिए पहुँचि सकब।'

ई सुनितहिं स्त्री-वर्ग में घोर निराशा व्याप्त भऽ गेल। ज्योतिषिआइन जोर सॅं निसास छोडै़त टेर लगौलन्हि-हे बाबा, कोनो तरहें डोरी खीचह; पार घाट लगाबह।

लालकाकी बजलीह-'अही द्वारे हम भुकै छलहुँ जे दू दिन और पहिनहि विदा होइ जाउ। आव केहन बूझि पडै़ छैन्ह?

पुरुष-वर्ग कोनो तरहें नेहोरा कय एक चकैठ सन कुली कैं राजी कैलन्हि । ओ एक आना फी आदमी पर सभ गोटा कैं गछि लेलकैन्ह । भोलानाथ एकटा दुअन्नी अगाउ दैत कहलथिन्ह - ले, एखन तोरे कान्ति चमकैत छौ । आब लऽ चल, जहाँ अऽ चलबैं ।

कुली दुअन्नी कैं तजबीज कय गेंठी मे खोंसैत बाजल - रौआ सभ नाहक घबराइत बानी । एकठो माल के डब्बा एह मे जोड़ाइ । ओही मे सभ जना के चढ़ा देहब नू ?

मालक डब्बा जोड़ाइत देरी दू-अढ़ाइ सै यात्रीक झुण्ड एक्के बेरि रेड़ि कऽ देलक । एक्के टा मुँह, ताहि मे सभ समाएल चाहय ! केओ मुड़िया मारैत सन्हियाएल, केओ घुसकुनिया काटैत पैसल । केओ ककरो देह पिचैत चढ़ल; केओ ककरो मोटा पर लात दैत छड़पल । तेहन अन्धाधुन्ध भेड़िया- धसान मचल जे ककरो धड़-मूड़ीक ठेकान नहि रहल ! धक्का-मुक्की मे ककरो हाथ थुड़ाएल । ककरो आँखि मे एक केहुनाठी लागल; ककरो नाक पर एक हुथुक्का लागल । तथापि खसैत-पडै़त सभ उपरा- उपरी करैत कोनहुना मालक पेट मे सन्हियाय लागल ।

धक्का मे पं० नमोनाथ झाक पाग कतय जा कऽ खसलैन्ह तकर पता नहि । भोलानाथक छाता तिरा गेलैन्ह; केवल डंटी टा हाथ मे रहि गेलैन्ह । बटुकजी एगोटा क माथ पर दऽ छड़पऽ लगलथिन्ह । किन्तु ताबत ओ उचङ्गि गेल, जाहि सॅं बटुक जी भट्ट दऽ औन्हे मुँहें खसि पड़लाह । ओहि वेग मे पड़ि दोसरो गोटे पेटी नेने देने हुनकहि पीठ पर खसल । बटुक जी तर सॅं किकिया उठलाह ।

देखैत-देखैत पाँच मिनट मे सम्पूर्ण डब्बा खचाखच भरि गेल। लालकाकी क कुली पहिने पहिने मोटरी-चोटरी सब भीतर कऽ फेकि देलकैन्ह । तदनन्तर जनी-जात कैं धऽ धऽ कऽ भेड़-बकरी जकाँ रुण्ड-मुण्डक झुण्ड मे कोंचय लगलैन्ह । अन्हार कुप्प मे जनसंकूलक बीच के कतऽ ठुसायल तकर ठेकान नहि ।

लालकाकी बुच्चीदाइ कैं छापि कऽ बैसलीह । ढुनमुन काकी नेना कैं गहियौने पिचैबाक डरें एक कोन मे ठाढ़ि रहलीह । किन्तु बेचारीक आँखि मे कोयलाक बुकनी पड़ि गेलैन्ह जाहि सॅं आँखि मिडै़त-मिडै़त प्रलय भऽ गेलैन्ह । ज्योतिषिआइन कैं घुरमी लागऽ लगलैन्ह । ओ दम्म साधि कैं मोटाक ढेरी पर सुटुकि, कऽ अपनो मोटरी भऽ गेलीह । भखराइनवालीक नुआ मे अलकतरा लागि पोता गेलैन्ह । आवेशरानी कैं पियासे कण्ठ सुखाय लगलैन्ह ।

एवं प्रकारें 'त्राहि कृष्ण ! त्राहि कृष्ण !' करैत ई लोकनि भोर होइत-होइत छपड़ा पहुँचैत गेलीह । आब उतरबाक रेड़ि मचल ! ठेलम ठेला मे स्त्री वच्चाक प्राणरक्षा हेतु भोलानाथ दुर्गाक कीलमंत्र पाठ करय लगलाह ।

थोडॆ़क काल मे डब्बा खाली भेला पर बटुकजी अपन बहादुरी देखबैत बजलाह - आब सभ केओ उतरबो करब की एही मे बैठल रहब ? हियाँ गाड़ी बदली होयत ।

आब गेठरी-मोटरीक जोह होबय लागल । भीजल मोटा सभ असंख्य लतखुर्दनक प्रसादात् मोक्षावस्था प्राप्त कऽ गेल छल। लालकाकीक साजो थकुचा कऽ सरि बराबर भऽ गेल छलैन्ह। ढुनमुनकाकीक पेटी पचकि कऽ निमकीक आकार ग्रहण कैने छलैन्ह। वस्तुजातक ई वत्राचार देखि लालकाकी हकन्न कानय लगलीह।

ता ज्योतिषिआइन कैं चाउन्हि आबि गेलैन्ह। हुनका सभ केओ हाथे-पाथे उठा कऽ बाहर लऽ एलैन्ह। आवेशरानी आँचर सॅं बसात करय लगलथिन्ह। पं० नमोनाथ झा एक चूरू पानि लऽ कऽ मुँह मे देबय लगलथिन्ह। किन्तु बूढ़ी हाथक इशारा सॅं मना कऽ देलथिन्ह। कुहरैत-कुहरैत कहलथिन्ह-'पहिने कुम्हड़क खण्ड सॅं हमरा पारण कराबह, तखन कोनो वस्तु मुँह मे देबौह।'

भोलानाथ बटुकजी कै पोल्हबैत बजलाह-हौ बटुकजी! एहि ठाम तोंही सभ सॅं बेशी चड़-फड़ छह। कत्तहु सॅं कुम्हड़ ऊपर करह।'

बटुकजी अपना चातुर्यक दाबी करैत बजलाह-ई कोन भारी बात है? सजकोंहड़ा त आइ हमरो फैदा करत।

ई कहि बटुकजी बिदा भेलाह। तावत सभ केओ कल पर मुँह हाथ धोइत गेल। दातमनिक अभाव मे छाउर सॅं दाँत रगड़ि टुटलाही साजीक कमची लऽ कऽ जिभिया भेल। स्त्रीगण अपन-अपन समसल नूआ फेरय लगलीह।

बटुकजी हलुआइक दोकान सॅं एक दोना कुम्हड़क मोरब्बा नेने पहुँचलाह। से देखि बूढ़ी फुड़फुड़ा कऽ उठलीह। और-और लोक केरा तथा रामदानाक लड्डु खा कऽ पानि पिबैत गेल।

तावत गर्द उठल जे काशीक गाड़ी आबि रहल अछि। ई सुनितहिं यात्री-दल मे नव जोश भरि गेलैक । हाथें-पाथें गठरी-मोटरी नेने सभ लपकि कऽ बिदा भेल ।

भाग्यवश जनानी गाड़ी मे किछु खाली रहैक । लालकाकी अपन संपूर्ण दलक सहित ओहि मे प्रवेश कैलन्हि । कोनो-कोनो तरहें समावेश भेलैन्ह । किन्तु हाथाबाँहि मे एकटा माउगिक हुक्का मे धक्का लागि लगलैक । तकर पानिक छिटका ज्योतिषिआइनक मुँह पर पड़ि गेलैन्ह । हुक्काक अशुद्ध पानि पड़ने ज्योतिषिआइन माहुरक घोंट पीबि कऽ रहि गेलीह । किछु बजने मुँहक भीतर पानि पहुचि जैतैन्ह, ताहि डरें ओ मुँह घोकचौंने और ठोर मुनने रहलीह ।

ढुनमुन काकीक नेना ठाढे़-ठाढ़ एगोटाक सातुक मोटा पर लघी कऽ देलकैन्ह । ओ माउगि जबर्दस्त रहय । ढुनमुनकाकीक पहुँचा पकड़ि सातुक दाम वसूल करय लगलैन्ह । आवेशरानी हुनकर हाथ छोड़ाबक हेतु उठलीह । ताबत गाड़ी में एंजिनक धक्का लगलैक । ओ तलमलाइत-तलमलाइत बेसम्हारि भऽ एक लहठीक चङ्गेरा पर जा खसलीह । कइएक जोड़ लाल-पीयर लहठी भुरकुस भऽ गेलैक । आब लहेरिन हुनकर कोंचा धैलक । एहि तरहें जनानी गाड़ी मे महाभारत मचि गेल ।

ओम्हर मर्दाना गाड़ी मे कत्तहु जगह नहि । भोलानाथ प्रभृति सूपक भाँटा जकाँ एम्हर सॅं ओम्हर ढेङ्गराय लगलाह । ताबत एंजिन सीटी दऽ देलकैक । बटुकजी छड़पि कऽ हैंडिल पकड़लन्हि और पावदान पर चढ़ि गेलाह । भोलोनाथ तहिना कैलन्हि ।

पं० नमोनाथ झा तहिना फानऽ लगलाह, किन्तु हैंडिल नहि धराइ देलकैन्ह । दोबारा चेष्टा करय चाहलैन्ह, ताबत गार्ड पकड़ि कऽ हटा देलकैन्ह । पं० जी चिचिया कैं भोलानाथ कै कहय लगलथिन्ह - अहाँ अपने त ल ल ल ल लटकल चल जाइ छी, और हम एत्तहि छूटि गेलहुँ । आब हम क क की करु ?

ता गाड़ी धड़धड़ाइत बहुत आगाँ बढ़ि गेल जाहि सॅं पं० जीक अरण्य-रोदन भोलानाथक कान मे नहि पड़लैन्ह।

क्रमशः बलिया, गाजीपुर होइत गाड़ी दू बजेक करीब सारनाथ पहुँचि गेल। आब अगिला स्टेशन काशीए भेटत, ई बुझितहि यात्री-दल बाबा विश्वनाथक जयघोष करय लागल। लालकाकीक दल आनन्दक उमङ्ग मे टहंकार सॅं गीत उठा देलक-

बाबा विश्वनाथक मन्दिर मे सोनमा चमचम चमकै ना।

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