लेखक : हरिमोहन झा

काशी स्टेशन पर उतरितहिं, यात्री-दल कैं चारू कात सॅं पंडाक झुण्ड घेरि कऽ चरो-बेरो कऽ लेलेकैन्ह। बाप-पितामहक नाम बूझि एक पंडा भोलानाथ आगाँ लगलैन्ह, दोसर पाछाँ। फाटक सॅं बहराइतहिं भीम पंडा कुली कैं ललकारि एक ताङ्गा पर पेटी लदबाबय लागल! ई देखि हनुमान पंडा लपकि कऽ अपने हाथ सॅं मोटरी सभ उचङ्गि कऽ दोसर ताङ्गा पर राखय लागल। छीनाछोरी मे आधा -छीधा सामान कत्तहु गेल; आधा-छीधा कत्तहु। भोलानाथ कैं कोनो अक्क-बक्क नहि फुरलैन्ह। भीम पंडा हुनकर गट्टा पकड़ि कऽ एक दिस लऽ चललैन्ह। ई देखैत हनुमान पंडा बटुक जी कैं कोर मे उठा कऽ चाँपि लेलकैन्ह। बटुकजी ओकरा काँख तर सॅं गारि पढ़य लगलथिन्ह। किन्तु ओ एकोरत्ती सुनबाहि नहि कैलकैन्ह। तखन बटुकजी किटकिटा कऽ दाँत सॅं भम्होरय लगलथिन्ह। तावत दूनू ताङ्गावाला अपन-अपन घोड़ा कैं टिटकारीदैत ओहिठाम पहुँचि गेल। आब ओहू दूनू कैं आपस मे बाझि गेलैक। स्त्री लोकनि 'शैलाधिराजतनया न ययौ न तस्थौ" जकाँ थकमकाइत रहि गेलीह ।

एतबहि मे रेवतीरमण पालकी गाड़ी नेने पहुँचि गेलाह । पित्तिक पैर छुबैत बजलाह - हमरा त जानल छल जे आइ भोरेक ट्रेन सॅं उतरै जाएब तैं भिनसरे पहुँचल छलहुँ ।

भोलानाथ कहलथिन्ह - हँ, सकुड़ी मे ओ गाड़ी छूटि गेल, ताहि सॅं आबऽ मे देरी भऽ गेल ।

रेवती एम्हर-ओम्हर ताकि बजलाह - पं० जी कैं नहि देखैत छिऎन्ह ?

भोलानाथ बजलाह - हँ, ओ छपरा मे छूटि गेलाह । अगिला ट्रेन कय बजे अबै छैक ?

रेवती कहलथिन्ह - एक गाड़ी दस बजे राति कऽ औतैक । ताहि सॅं ओ पहुँचताह । आब हमरा फेरि स्टेशन पर आबय पड़ल !

ई रंग-ढंग देखि दूनू पंडा घसकि गेल । दूनू तांगा सॅं पालकी गाड़ी पर सामान लादय लागल । तखन पता लगलैन्ह जे बटुक तसला वला बोरा गायब अछि ।

बटुकजी कहलथिन्ह - ई जरूर ओही पंडा के काम है । हम त निम्मन जगती ओकरा बदमाशी के मजा चखा देती, लेकिन ऊ हमर हाथे सकपंज कैने रहे त हम करै छी की ?

भोलानाथ अफसोस करैत बजलाह - देखू एतेक गोटा छलहुँ । ककरो दृष्टि नहि पड़ल । और देखैत-देखैत द्रव्यजात लऽ कऽ पार भऽ गेल !

रेवती कहलथिन्ह तखन ओ दूनू काशीक गुंडा छल । ई सभ 'गाँगा स्वाइत' जकाँ पहिनहि सॅं सीखा-बुद्धी कैने रहै अछि । आब की ओकर पता भेटत ?

'बोरा लऽ गेल' ई सुनैत लालकाकी माथ पीटय लगलीह । थारी-बाटी, लोटा-गिलास, तमघैल, बहुगुना-सभक गुन मन पड़य लगलैन्ह । बजलीह - गैटक गैंट बासन साँठि कऽ लायल छलहुँ। से सभटा उचङि लेलक! कोढ़िया लाहेब कैलक ।

लालकाकी ओकर 'सराध-विट्टारि' कतय लगलीह और भोलानाथ वर्त्तन-वासनक दाम जोड़य लगलाह । रेवती कहलथिन्ह - आब एहि सब सॅं कोन फल ? जकरा अंश मे छलैक से लऽ गेल । आब चलू डेरा पर चलै चलू ।

पालकी गाड़ी ढकर-ढकर करैत असीघाट दिस चलल । बाट मे एक स्कुलिया लड़की कैं साइकिल पर चढ़लि देखि बुच्चीदाइ कहलथिन्ह - देखही गे माय ! कोना हँकने जाइ छैक ?

लालकाकी कैं बासनक सोच रहि-रहि कऽ हूर मारै छलैन्ह । बजलीह - गै छौंड़ी ! बेशी लुचलुच नहि कर । तोंहू ओहिना चढ़ि कऽ चलिहें । हम सोचे मरल जाइ छी, एकरा लेल धन सन !

आवेशरानी कहलथिन्ह - त ! कतेक रासे पात्र छलैक । हमरो जी कचटैत अछि ।

ताबत ढुनमुनकाकीक नेना भूपाली राग पसारि देलकैन्ह । लालकाकी लोहछि कऽ बजलीह - ई छौड़ा त उकछा कऽ छोड़ि देलक । कौखन संचमंच नहि रहत । एहन कनना नेना ने देखलहुँ । एकोबेर मुँह सपटीओ त ने लगैत छैक ।

किन्तु नेना और जोर सॅं चिचियाय और खुरछाही काटय लागलैन्ह । तखन लालकाकी ओकरा झमोरि कऽ ढुनमुनकाकीक कोर मे पटकि देलथिन्ह - राखू अपन बेटा कैं । लंगो चंगो कऽ कऽ छोड़ि देलक ! तखन सॅं उछन्नर कैने अछि !

ढुनमुनकाकी खिचले चाट ओकरा गाल पर लगबैत बजलीह - धमधुसरा मरबो त ने करै छैं ! कहाँ सॅं ऎबो कैल !

डेरा पर पहुँचि रेवती कहलथिन्ह - यैह मकान भाड़ा लेल गेल अछि । अहाँ लोकनि सुचित्त होइ जाउ । तावत हमरा सब बाजार जाइत छी । बटुकजी जौं तेल भरबाक हो त लालटेन लऽ लेब ।

भोलानाथ बजलाह - जाह ! लालटेन त गामे पर बिसरि गेल । चलय काल ककरो सोहे पर नहि रहलैक ।

बटुकजी कहलथिन्ह - हमरा याद त रहे, लेकिन जतरा के बखत लालटेन के नाम लीती ? सब हमरे पर मार-मार कऽ छुटैत !

लालकाकी 'लाल' क नाम द्वारें लालटेन कैं 'रामटेन' कहैत रहथिन्ह । बजलीह - यात्रा पहर 'तेल' क नाम नहि लऽ कऽ 'चिकनइ' बाजक चाही । किन्तु 'रामटेन' कहने कोन दोष ?

पुरुषवर्ग डेराक सल्तनत कय आवश्यक वस्तु किनय-बेसाहय बाजार चललाह ।

स्त्रीगण ओसारा पर शतरंजी बिछा सुस्ताय लगलीह । ज्योतिषिआइन पेटकुनियाँ दऽ कऽ कुहरय लगलीह - आहि, आहि, आहि ! गत्तर-गत्तर टूटल जा रहल अछि ।

भखराइनवाली हुनकर तात्पर्य बूझि पैर जाँतय लगलथिन्ह । ज्योतिषिआइन कहलथिन्ह हँ ओहिना कऽ घुट्ठी दबा दियऽ । भगवान बेटा देथु । .....कनेक और जोर सॅं ....हाँ, हाँ .... ओतेक जोर सॅं नहि । जाउ, लोहछा देलहुँ ।

ज्योतिषिआइन कैं जँतबैत देखि लालकाकी अपना देयादिनी पर अनुरोध करैत बजलीह - गै बुचिया ! पितिआइनक पैर टटाइत हेतौक । कनेक ससारि दहुन ।

ढुनमुनकाकी कैं एहि कथाक गूढ़ मर्म नहि बूझि पड़लैन्ह । ओ पैर पसारि कऽ बुच्चीदाइ सॅं मुक्की लगबाबऽ लगलीह ।

ई देखि लालकाकी कैं विवेक छुटलैन्ह । अभिरोष करैत बाजऽ लगलीह - संसार मे ककरो केओ नहि । जखन अपना कोखिक धी-बेटी अपन नहि होइत छैक, तखन अनकर बाढ़लि देयादनी- गोतनी की काज औतैक ? हम त अन्तकाल धरि मैंयाक अप्पन भरि सेवा करैत गेलिऎन्हि। मुरितो काल आशीर्वाद देलन्हि-'ऎ मधुरानी! अहाँ बड़ सेवा कैल। भगवान हमरा सन मौगति सभ कैं देथुन्ह। मुदा आबक बहुरिया ककरो गोदानैत छैक? जेठ जेठानुस कैं देखि कऽ जाँतक डरें छीह कटैत अछि। कनिया-बहुआसिन अपने फुरने तेल-कूर लगाओति से त आब सिहन्ते रहत। कनेक आङ्गुर फोड़य कहबैक त आङ्गुर तोड़ि कऽ धऽ देति। आब अपने समाङ्ग पर भरोस राखक चाही।'

किन्तु लालकाकीक तीर खाली गेलैन्ह। किऎक त ढुनमुनकाकी एतेक ठेहियाइलि छलीह जे थकनी उतरबैत-उतरबैत हुनका झक लागि गेलैन्ह।

अपना बातक सुनबाहि नहि होइत देखि लालकाकी कैं और बेशी पित्त उठलैन्ह। ढुनमुनकाकी कैं देखि कऽ हुनका ढोंठ, थेथर, अलच्छ ओ कर्कशा स्त्रीक सभटा उपलक्षण मन पड़य लगलैन्ह। ओ दयादिनी कैं वेधक हेतु चुनि-चुनिक अन्धोक्ति, वक्रोक्ति, ओ व्यंग्योक्तिक विषाण वाण छोड़य लगलीह। आवेशरानी कैं संबोधन कय कहऽ लगलथिन्ह-'मैंया कतेक 'फकरा' जनैत रहथि तकर ठेकान नहि! एकटा ढीठ मउगि पर कहथिन्ह-

'आहि ! आहि ! आहि ! बड़ मथवाहि ! धान कुट रे मनुसा ! हम दुख मरै छी ! आहि ! आहि ! आहि ! बड़ सुलवाहि ! घूरि बैस रे मनुसा ! हम सुरपेटै छी ।

एकटा 'अलच्छ' पर कहलथिन्ह-

'लछमिनि दैया !' 'तों कोना बुझलैं रे भैया !' 'ओलतीक खढ़ चढ़ल गऽ टोइया' तैं हम बुझलौं लछमिनि दैया !'

'एकटा 'छुद्रघंटी' पर कहथिन्ह-

'डोला सँ बहु लऽवऽली ऎपन देखि विधुअइली। कोन धी-डाही ऎपन देल? सेर भर चाउर मोर ऎपनहिं गेल! तेहन बनाएब घर तेहन बनाएब! ऎपन पोछि कऽ लिटटी लगाए!'

"एकटा 'भरछुलाहि'पर कहथिन्ह- ओ धीजरुआ तीन तिमन संग, नोन तेल मिरचाई । हम कुलवन्ती छुच्छे खाइ छी, दही दूध मिठाई !

एकटा 'कर्कशा' पर कहथिन्ह

सुतल पड़ल हम सब देखै छी, कनखी केकरा दै छी ? मारि लाठिए हम घूठ तोडै़ छी, तरकी बेचि कऽ बरद किनै छी । ईह ! सुतल पड़ल जे यैह अरजै छथि । आनक तरकी बलहुँ बेचै छथि । 'कहथि 'घुटर कवि' सुनऽ हो काका ! आबक बहुआसिनक की करै छऽ लेखा !

किन्तु ऎतेक कहलो पर ढुनमुनकाकीक ध्यान आकृष्ट नहि भेलैन्ह । ओ पूर्ववत औंघी मे भेर भेलि शान्तिपूर्वक अपन पैर जँतबैत रहलीह । ई देखि लालकाकीक ज्वालामुखी भभकि उठलैन्ह । ओ एक बेरि बुमकार छोडैत देयादिनी पर छुटलीह - अयँ ए ! बड़ सधोरि अहाँक जे पुरुषाइन बनि कऽ हमरा सोझा टाङ्ग पसारने छी !'

आब जा कऽ ढुनमुन काकी कैं होश भेलैन्ह जे एतीकाल सॅं हुनके पर फुलझडी छुटैत छलैन्ह । ओ बुच्चीदाइ कैं झटकारि कऽ कहलथिन्ह - कोन पाप लागल जे हम हिनका बेटी कैं अपन पैरो छूबय देलिऎन्ह ! बुच्चीदाइ हमरा दूरि करबैत छथि । जौं हमरा लग नहि अबितथि त एतेक फज्झति-गंजन किएक होइत ? हम त सोझिया लोक ! एतेक राग-स्याख की जानऽ गेलिऎ ?

ई कहैत-कहैत ढुनमुनकाकी कैं घघा क् नोर बहय लगलैन्ह ।

बुच्चीदाइ पितियाइनक पक्ष लैत बजलीह - ऎं गै ! तों अपने जताबहू कहलहुन और आब उनटे बिगरबो करै छहुन !

लालकाकी लोहछि कऽ बजलीह - गै धोंछी ! तों बीच मे लुब लुब नहि कर । तोरो बुझलिऔक ! एतेक त नहि भेलौक जे माय थाकलि अछि ।

बुच्चीदाइ अपना माइक पैर जाँतऽ गेलीह, किन्तु ओ जोर सॅं हाथ झटकि कऽ कहलथिन्ह - 'आब जे हमर पैर छुबय से हमरे माथ लात देबय। जौं भक्ति रहितौक त पहिनहि ने अबितैं! हम एहन खङ्गष्टल नहि छी जे रकटल जकाँ अपने मने पैर पसारि देबौक।'

तावत आवेशरानी आबि कऽ गोबर-माटि लगाबय लगलीह-'जाय दियऽ। जे भेलैक से भऽ गेलैक। तीर्थ स्थान मे आबि कऽ केओ झगड़ा दन्न करय? ज्योतिषिआइन कहलथिन्ह-'जाउ ऎ भखराइन वाली! अहाँ फुचुकरानी कैं चुप्प कऽ दिऔन गऽ। रूसल कैं बौसी नहि, फाटल कैं सीबी नहि, त बढ़ले जाय!

लालकाकी सरदारक टोन मे बजलीह-'ऎ फुचुकरानी! आबो अपन भाभट समटू। नहि त हमहीं कतहु पड़ा कऽ चलि जाइ छी।'

ढुनमुनकाकी गर घिंचैत अपना कर्मदोषक घमर्थनि करय लगलीह।

तावत ओम्हर सॅं रेवतीरमण, भोलानाथ और बटुकजी बासन, घैल, बाढनि, डिबिया, जारन ओ सीधा-सामग्री नेने पहुँचि गेलाह। रेवतीरमण कनेक झुब्ध होइत कहलथिन्ह-'एहिठाम कथीक घाँउ-माँउ होइत छल? अबतहिं एना घोंघाउज होमय लागल! 'मिसर' औताह त ई सभ देखि कऽ की कहताह?

आब शान्त भेला पर स्त्रीगणक विचार भेलैन्ह जे सभ सॅं पहिने गंगास्नान होएबाक चाही। बटुकजी और भोलानाथ कैं डेरा अगोरऽ लेल छोड़ि रेवतीरमण सभ स्त्री कैं लऽ कऽ घाटक बाट धैलन्हि। असीघाट पर पहुँचि लालकाकी बजलीह-धन्य भाग जे आइ एहन दिन भेल! काशीक गंगा भेटलीह। देखिते सभ पाप कटित भऽ गेल।'

ई कहि ओ उमकि कऽ गीत उठा देलन्हि-

'गंगा माइक लहरी। देखैत सकल पाप गेल बहरी।' स्त्रीगण पहिने एक चूडू़ गंगाजल माथ पर सिक्त कय गंगाजी मे पैसलीह लालकाकी घुमि-घुमि कय अपना घर भरिक साँति डुब देमय लगलीह।

ऊपर भेला पर सभक विचार भेलैन्ह जे आइ गंगाजले मे भानस होऎ। आवेशरानी घैल मे गंगाजल भरि लेलन्हि। थोडे़क दूर ऎला पर सब्जी-मण्डी भेटलैन्हि। रेवती कहलथिन्ह-'जौं कोनो तरकारी पसन्द पड़य त किनने चलू।

बुच्चीदाइ बजलीह-गे दाइ! ई कोन कदीमा छैक? एहि रंगक कदीमा नै कहियो देखने छलिऎक!

लालकाकी कहलथिन्ह-तों देखलैं कहिया? "सावन जनमला गीदड़; भादव आएल बाढ़ि । कहलन्हि जे एहन बाढ़ि कहियो ने देखल !"

रेवतीरमण कहलथिन्ह - नहि नहि ! तोरा सभ नहि चिन्हलही । ई बनारसी भाँटा थिकैक ।

लालकाकी बजलीह - ऎं ! भाँटा छैक ? तखन यैह नेने चली । आइ राति एकरे साना होऎ ।

ज्योतिषिआइन कहलथिन्ह - हम त द्वादशी कैं भाँटा खाएब नहि । भेटैत त किछु फल-फलहारी एम्हरे सॅं किनने चलितहुँ ।

तावत आवेशरानी चमकि कऽ बाजि उठलीह - देखथुन्ह ऎ बहिना ! बनारसी बैर जे सुनै छलिऎक से देखथुन्ह त कतेक टा होइत छैक ! और केहम उज्जर ।

भखराइनवाली आश्चर्यित भय बजलीह - ऎं ! आइकाल्हि भादव मास बैर कतय सॅं ऎलैक ? ई कहि ओ एकटा उठा कऽ ज्योतिषिआइनक हाथ मे देबय लगलथिन्ह ।

तावत रेवतीरमण लग पहुँचि कऽ कहलथिन्ह - हाँ, हाँ । छोडू़ ! छोडू़ ! ई अंडा छैक ।

ई सुनैत देरी ज्योतिषिआइन कैं काठ मारि देलकैन्ह । अंडा हाथ सॅं छूटि कऽ नीचा खसि पड़लैन्ह और फच दऽ फूटि गेलैन्ह । अंडावाली दाम वसूल कऽ लेलकैन्ह । ज्योतिषिआइन ओ भखराइनवाली पुनः स्नान करय गेलीह ।

तावत लालकाकीक नजरि एक चुडिहारिन पर पडलैन्ह । ओ बुच्चीदाइक फानक चूडी मोलाबय लगलीह । जखन ओ लवादुआ नहि गछलकैन्ह, तखन बेटी कैं कहलथिन्ह - चल, ई भारी महघोरनी अछि; एकरा सॅं नहि पटतौक । एखन गंगेस्नान कैने छें । की एकरा सॅं छूति करबैं ?

डेरा पहुँचला पर लालकाकी बजलीह - एक मनोरथ त पूर भेल । आब बाबाक दर्शन भऽ जाइत त जन्म सफल होइत ।

भोलानाथ कहलथिन्ह - बेश, हर्ज की ? अहाँ लोकनि 'कंटिर' क संग दर्शन कऽ आबै जाउ । ताबत हमरा लोकनि भानस-भातक उद्योग मे लगै छी। जखन अहाँ लोकनि आएब त हम और बटुकजी दर्शन कऽ अबै जाएब। की हौ बटुकजी?

बटुकजी चूल्हि पजारैत बजलाह-'और न की? बाबा की कहीं भागल जाइ छथ! जब ऎलीहऽ तब देखबे करबैन कि बाँकी रहतन?

लालकाकी आदि स्त्रीगण हुलसि कऽ बाबाक दर्शन करक हेतु बिदा भेलीह। कइएक गली पार कय मन्दिरक द्वार पर पहुँचलीह। मंदिर में बाबाक श्रृंगारक उपरान्त आरती भऽ रहल छलैन्ह। घंटाध्वनिक संग संग 'बम बाबा विश्वनाथ' क पवित्र नाद सुनि तथा दिव्य धूप-कर्पूर ओ बेलपत्रक सुगन्ध सँ गमगम करैत प्रांगण मे आबि, लालकाकी कैं बूझि पड़लैन्ह जे सद्यः बैकुण्ठ धाम पहुँचि गेलहुँ । ओ आनन्द सॅं विभोर भऽ बारंबार 'साष्टाङ्ग' प्रणाम करय लगलीह ।

हिनका लोकनिक भक्तिभाव सॅं आकृष्ट भय एक ब्राह्मण देवता आबि कऽ संग लागि गेलथिन्ह । कहलथिन्ह जे केवल पाँचे मुद्रा मे विधिवत दर्शन-पूजा करा देब । रेवती किछु बाजक चाहलन्हि, किन्तु माइक मुख-मुद्रा देखि साहस नहि पडलैन्ह । ब्राह्मण झट दऽ धतूर-बेलपात आनि कऽ लालकाकीक हाथ मे देलथिन्ह और संकल्पक मंत्र पढ़ाबय लगलथिन्ह ।

मन्दिर मे रेड़ि पडै़त छल । ई लोकनि कोनहुना भीतर प्रविष्ट भेलीह, किन्तु ओहि अनगित नर समुदाय मे पड़ि कऽ पिसीमाल होमय लगलीह । ब्राह्मण देवता धकियबैत-फकियबैत कोनो-कोनो तरहें हिनका लोकनि कैं जलढरी लग लऽ ऎलथिन्ह और बाबाक दर्शन करा देलथिन्ह । सभ आनन्द सॅं निर्माल्य लैत गेलीह । केवल एकटा दुर्घटना भेल जे ज्योतिषिआइन निहुरि कय जल ढारैत रहथि, ताबत पाछाँ सॅं तेहन धक्का लगलैन्ह जे लोटा नेने देने महादेव पर खसि पडलीह । कपार फूटि गेलैन्ह । सभ लोक हुनका झटपट उठा कऽ बाहर लऽ अनकैन्ह । स्वस्थ्य भेला पर गीत उठि गेल -

हरह सकल दुख मोर, हो भोला बाबा ! हरह सकल दुख मोर !

पं० नमोनाथ झा कैं जखन दस बजे राति कऽ काशी स्टेशन पर पकड़ि लेलकैन्ह तखन टिकटक हेतु 'भ भ भ भोलानाथ कऽ गोहारि कतय लगलाह । किन्तु भोलानाथ ओतय रहथि तखन ने ! टी टी सी हुनका धऽ कऽ स्टॆशन मे लऽ गेलैन्ह । तोतराइत-तोतराइत कहलथिन्ह - छ छ छ छ छपडा मे छ छ छ छ छ बजे गाड़ी छ छ छ छ छ्ड़पऽ मे छ छ छ छ छूटि गेल ।

किन्तु एतेक छ छ छ क छेकानुप्रासक छटा सॅं छानि कऽ छिट्ट-पुट्ट शब्दक अभिप्राय बुझबा मे स्टेशन मास्टरक छक्का छूटय लागल ।

ताबत रेवतीरमण पं० जीक टिकट नेने पहुँचि गेलथिन्ह । पं० जी बिगड़ि कऽ कहलथिन्ह - तों कनेक और पहिनें अबितह त हमरा ट ट ट ट टी टी टी० टी० सी० किएक धरैत ?

डेरा पहुँचला पर पं० जी कैं देखितहि सभ लोक हाल-चाल पूछऽ लगलैन्ह । पं० जी भोलानाथ कैं बहुत बात कहलथिन्ह । तकर सारंश ई जे हम ओतेक चिचिऎलहुँ और अहाँ एको बेर टेरबो नहि कैलहुँ । हमरा बाट मे जे पराभव भेल से हमहीं जनै छी ।

पं० जी कैं सभ सँ बेशी खीस भेलैन्ह भखराइनवाली पर जे " ओ जैं यथार्थ अर्द्धांगिनी रहितथि त स्वामी कैं छपरा मे छुटैत देखि आगाँ नहि बढ़ितथि। "एहि पित्तें ओ अपना स्त्री सँ मुँहाबज्जी बन्द कऽ लेलन्हि।

देखैत-सुनैत दू दिन बीति गेल। एहि बीच में लालकाकी सांग-सायुध-सवाहन काशी विश्वनाथक परिक्रमा करैत ज्ञानवापी, ढुढिराज, साक्षीविनायक,अन्नपूर्णा, दशाश्वमेघ, मणिकर्णिका, सभ सँ परिचित भऽ गेलीह। एक दिन 'माधोरावक धरहरा' पर चढै़त गेलिह। दोसरा दिन 'भारतमन्दिर' देखि ऎलीह। बीच-बीच मे कतेक छोट-मोट मनोरंजक अनुभव प्राप्त भेलैन्ह से विस्तार-भय सँ नहि देल जाइत अछि।

आइ पूर्णिमा थिकैक। राति मे ग्रहण लगतैक। नौ बाजि कऽ चालिस मिनट पर स्पर्श और बारह बाजि कऽ दस मिनट पर मोक्ष। ई अढ़ाइयो घंटा लालकाकी लोकनि गंगाजले मे ठाढ़ि रहतीह।

साँझे सँ हड़बिड़रौ उठय लागल जे "सबेरे-सकाल भोजन-छजनक काण्ड समाप्त भऽ जाय। नहि त कनेको ग्रहणक स्पर्श भऽ गेने सभटा भानस-भात दूरि जाएत।"

आइ काशीक प्रत्येक घाट पर जनताक बाढ़ि उमड़ल अछि। असंख्य नरमुण्डक तरंग लहरा रहल अछि। नीचा गंगाजीक हिलकोर, ऊपर जनसमुद्रक लहरि! दूनू एक दोसर सँ मिलक हेतु व्यग्र भऽ रहल छथि।

एतबहि मे गर्द उठल-"ग्रहण लागि गेल। ग्रहण लागि गेल!

आब त धमगज्जर मचय लागल। हाँजक हाँज लोक अबल-दुबल कैं पिचैत धङैत, आगाँ बला कैं ठेलैत, आड़िक रस्सा फनैत और स्वयंसेवक दल कैं रेड़ैत, गंगाजी मे भेड़ियाधसान करय लागल।

भीड़-भड़क्का मे कतहु नेना भुटका पिचाएल, कतहु वृद्ध पछड़िक खसलाह; कतहु वृद्धा पिछडि कऽ खसलीह। कतहु मारि बजरि गेल। तथापि पुण्य लूटक लोभ मे केओ पाछाँ पैर नहि कैलक।

देखैत-देखैत सम्पूर्ण स्थल-सेना, जल-सेना मे परिणत भऽ गेल। सहस्त्रो नर-नारी आकण्ठ जल मे ठाढ भय ऊपर टकटकी लगौलन्हि। कतेको पंडित राहुरूपी दैत्य सॅं चन्द्र देवताक उद्धारक हेतु नाना प्रकारक श्लोक-मंत्र पाठ करय लगलाह। घाट पर चाण्डालक झुण्ड ग्रहणदान-ग्रहणदान करैत घुमय लागल। ओकर छायाक छूति सॅं नैष्ठिक कर्मकाण्डी पड़ाय लगलाह। किन्तु द्विज देवता कैं डॊमरूपी राहुक ग्रास सँ बाँचब कठिन भऽ गेलैन्ह।

लालकाकीक दल दशाश्वमेध घाट पर एक बड़का धक्काक लहरि मे पड़ि अनायासे भरि ठेहुन पानि धरि पहुँचि गेल। ककरो चलबाक कष्ट नहि पड़लैक। किन्तु एहि लहरि मे पड़ने ढुनमुनकाकीक नेना पिचा कऽ अधमरु भऽ गेलैन्ह। ओ चिचिऎलीह- "दैव रे दैव! देखथुन्ह, कीदन भऽ गेलैक।" लालकाकी कहलथिन्ह- "दाँती लागि गेलैक अछि, औना कऽ बेदम भेल अछि। बसात दिऔक।" भोलानाथ बालग्रहक मन्त्र पढ़ि-पढ़ि आँखि पर पानि छिटय लगलथिन्ह।

ज्योतिषिआइनक मुँह मे केवल एकेटा दाँत छलैन्ह जे भात खैबा काल मिझरा जाइत छलैन्ह। बहुत दिन सँ उखड़बाबक हेतु सपरैत छलीह। आइ ई काज अनायासे सम्पन्न भऽ गेलैन्ह। भीड़ मे ककर हुथुक्का कल्ला मे लगलैन्ह से त नहि बूझि पड़लैन्ह, किन्तु मसकूर छनछनैला पर जखन जीभ सँ टोएलन्हि तखन पता लगलैन्ह जे दाँत नहि अछि। ओ ई बूझि सन्तोष करय लगलीह जे दुर्गतियो सहने दाँत कै त सदगति भेल। किन्तु एक बातक असौकर्य ई भेलैन्ह जे अढ़ाइ घंटा धरि कुड़ुर करबाक उपाय नहि। कारण जे ग्रहणक मध्य मुँह मे जल देने कण्ठ मे घोटैबाक भय छैलैन्ह।

भखराइनवाली गंगाजल सिक्त करक हेतु आँखि-कान पर हाथ देलन्हि त विदित भेलैन्हि जे एकटा बीरझुम्मक वीरगति कैं प्राप्त कैलक। किन्तु ओ कानक जड़ि कै चँछैत अपन स्मारक चिहन छोड़ने गेल छ्लैन्ह। हुनका ज्योतिषक हिसाबें एहि ग्रहणक फल 'मृत्यु' होईत छ्लैन्ह, ताहि डरें ओ एको बेरि ऊपर आँखि उठा कऽ तकबो नहि कैलन्हि।

एवं प्रकारें सभ कैं किछु ने किछु ग्रहणक फल भेटि गेलैन्ह। चन्द्र देवता कै राहुक ग्रास मे पड़ल देखि जनता त्रास सँ हाहाकार करय लागल। लगातार दू घंटा धरि भरि छाती जल मे रहने चन्द्राभिमुखी कोमलांगीगण हिमवत शीतल भऽ गेलीह। ठाढे़ठाढ़ किनको पैर मे बघा लागि गेलैन्ह । किनको झुनझुनी भरि गेलैन्ह । किन्तु बिनु उग्रास भेने एहि सॅं उद्धार कोना होय ?

राहुक पंजा सॅं चन्द्रदेवक छुटैत देरी जयजयकार होमय लागल । दैत्यदलनकारी भगवानक स्तुति चतुर्दिक्षु प्रतिध्वनित भऽ उठल । आनन्द-बधाबा बाजय लागल ।

अर्द्धरात्रिक उपरान्त लालकाकी लोकनि इष्टदेवताक मन्त्र जपैत डेरा पर अबैत गेलीह । पं० नमोनाथ झा प्रभृति यज्ञोपवीत बदलऽ लगलाह । घैल मे कुश गंगाजल देल गेल । माटिक बासन-पातिल फेका गेल ।

ग्रहणक दोसरे दिन मोटरी-चोटरी बन्हाय लागल । यात्रीदल कैं घरक उछाट लेलकैन्ह । किन्तु लालकाकी बेटीक संग मास करक लाथें रहि गेलीह और सभ केओ तैयार भऽ कऽ बिदा भेल ।

चलैत काल सभक आँखि मे पानि भरि ऎलैन्ह । आवेशरानी नोर पोछैत बजलीह - बहिना, संगक सुख बनारस जाइत त भऽ गेल । किन्तु फिरती बेरि संग फुटुकि गेल ।

लालकाकी कहलथिन्ह - की कहिऔन्ह बहिना ! हमरो प्राण त घरे टाङ्गल अछि । कार्तिक स्नानक बाद लगले बिदा भऽ जाएब ।

ढुनमुन काकी देयादिनी कैं प्रणाम करैत कनैत-कनैत कहलथिन्ह - हमरा सॅं बहुत अपराध भेलैन्ह, कहल-सुनल माफ करिहथि ।

लालकाकी हुनका भरि पाँज धऽ कऽ उठबैत कहलथिन्ह - आब घरक सभटा भार अहीं पर । जाइते चिट्ठी देब । जनै छी भगवान कहिया घरक मुँह देखौताह !

ताबत घोड़ागाड़ी आबि गेलैन्ह । पं० नमोनाथ झा चिचिया कैं कहलथिन्ह - आब सभ कैं च च च च चढ़ऽ कहिऔन्ह; नहि त च च च च चरिबज्जी ट्रेन छूटि जाएत ।

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