लेखक : हरिमोहन झा

प्रोग्रामक अनुसार सी० सी० मिश्र सासुरक डेरा मे आबि गेलाह और रेवतीरमण हुनक निर्देशानुसार बुच्चीदाइ कैं पढ़ाबय लगलथिन्ह । चिट्ठी-पत्री त बुच्चीदाइ पहिनहि सॅं जनैत छलीह । आब व्याकरण, साहित्य , गणित, इतिहास, और भूगोलक श्रीगणेश भेलैन्ह ।

प्रथम दिन 'कर्त्ता' 'कर्म' 'क्रिया' सॅं प्रारम्भ भेल । लालकाकी कुतुहलवश कोनटा लागि, कान पथने सुनैत रहलीह जे ओ की सब पढै़त अछि । किन्तु बेशीकाल धरि नहि सुनि भेलैन्ह । हतोत्साह भऽ बजलीह - ऎं हौ ! और कोनो नीक बात सभ नहि भेटैत छौह जे अलच्छे बात सभ बुझबैत छहौक। क्रिया कर्म मुइला पर होइत छैक, कर्ता मुँह मे ऊक दैत छैक। ई सभ त कंटाह पुरोहितक धिया-पुता सिखय जकरा यजमानिका पुजाबक होइ। हमर बेटी ई सभ जानि कऽ की करति? अशुभ बात केओ भाखय! हमरा मुइला पर एकर सभक विचार करिहऽ।

राति मे 'ठाकुर' क चीनी देल दालि तथा छेनाक 'डालना'मुँह मे दैत लालकाकीक जी ओकाय लगलैन्ह। ओ प्राते भेने अपन भानस फुटका लेलन्हि।

दोसर दिन रेवतीरमण बुच्चीदाइ कैं 'एकवचन' 'बहुवचन' बुझाबय लगलथिन्ह। लालकाकी आँच पजारैत छलीह। काँच जारनक धुआँ सँ आँखि-नाक भरल छलैन्ह। बारंबार 'बहुवचन' 'बहुवचन' सुनैत-सुनैत लालकाकी कैं काष्ठाग्निक स्थान मे क्रोधाग्नि प्रज्वलित भऽ उठलैन्ह। बजलीह- "ऎं हौ! एक पहर सँ हाय 'बहुवचन' कि हाय 'बहुवचन' ! दोसर कोनो बचने नहि सुनैत छिऔह । माय भकसी झोंकाइत छौ और तोरा बहुवचन मोन पडै़त छौह ! एकोबेरि मायवचन मुँह सॅं बाहर होइतौह तखन ने बुझितिऔह जे सपूत भेलाह !

राति मे जखन लालकाकी 'कार्त्तिक चौरान नाशय' जपैत सुतय गेलीह त बुच्चीदाइ कैं चिन्तित देखि पुछलथिन्ह - तोरा की होइ छौक जे कच्छमच्छ करै छैं ? निन्द किएक नहि पडै़त छौक ?

बुच्चीदाइ कहलथिन्ह - भैया कहने छथि जे छौ टा कोन-कोन भूत होइ छैक तकर सभक नाम और और कोन-कोन भूत मे 'न' लगै छैक से सभ ठेकान राखक लेल । सैह सब मन पाडै़ छिऎक ।

ई सुनितहि लालकाकी क्रोध और भय सॅं थरथर काँपय लगलीह । बेटा कैं सोर पारि कय बजलीह - महावीर जी तोरा कहिया सुमति देथुन्ह ? काल्हि राति त क्रियाकर्म, त आइ राति भूत ! यैह सभ बात तोरा पढ़ाइ मे लिखैत छौह ? हम कहैत छलौंह जे रामायण, महाभारतक नीक-नीक बात सिखौथिन्ह त हमहूँ सूनब । से सिखबैत छथिन्ह की त भूत-प्रेत-वैताल ! कोन-कोन भूतक की नाम होइ छैक ? कोन-कोन भूत नकियाइत अछि ? बाप रे बाप ! आइ भरि राति हम घिघियाइत रहब । खबरदार जे आइ दिन सॅं फेरि कहियो राति कऽ भूतक नाम लैत गेलाह !

ई कहि लालकाकी भयक मारे 'हनुमान चालिसा' पाठ करय लागि गेलीह ।

तेसर दिन बुच्चीदाइ हिसाब शुरु कैलन्हि । साधारण जोर-घटाव त जनिते छलीह । आब 'भिन्न' सॅं प्रारम्भ कैलन्हि । रेवतीरमण 'हर' 'अंश' बुझबितहि छलथिन्ह कि लालकाकी आबि पहुचलथिन्ह । एहि बेर सन्तुष्ट होइत कहलथिन्ह - हॅं, ई सभ बात पहिने जानि लेत से नीक । 'भिन्न' त सासुर मे कहियो ने कहियो होमहि पड़तैक । मिसरक देयाद-गोतिया त पहिने सॅं सभ हड़पने छैन्ह । इहो जौं होशियार भऽ कऽ जाइति तखन ने बाँट बखरा करा कऽ अपन हिस्सा लेति ।'

एक दिन रेवतीरमण छन्दक पुस्तक खोलि बुच्चीदाइ कैं सवैया क मात्रा बुझबैत रहथिन्ह। लालकाकी बजलीह-ई त हमहूँ बुझा देबैक। एक सवें सवाइ, दू सवें अढ़ाइ, तीन सवें ......जरलाहा मने नहि पडै़त अछि।

रेवतीरमण कहलथिन्ह-पहाड़ा वाला सवैया नहि। ई पिंगल पढै़त अछि।

लालकाकी उत्तेजित भऽ कऽ बजलीह-बापक गर मुङ्गरी पूतक गर रुद्राक्ष! तोहर बाप हमरा सामने कहियो 'पिंगल' छँटबे नहि कैलथुन्ह और तोरा सभ एखने 'कठपिंगल' बनै जाइ छह। ई बैसलि-बैसलि पिंगल छाँटति त आश्रमक काज कोना चलतैक?

बुच्चीदाइ 'पिंगल' छोडि गजः गजौ गजाः' घोखय लगलीह।

लालकाकी आँटा सनैत बजलीह-हम मरै छी, तो गजौ छैं। ई कोन पढ़नाइ कहबैत छैक? हम चीकस गीजी और तों हमरा कचकचाबैं-गजं गजौ गजान्। आबि कऽ सोहारी बेल नहि त सभ पंडितारै बहार कऽ देबौक।'

एक दिन रेवतीरमण पठान और मुगल बादशाहक वंशावली बुच्चीदाइ कैं बुझबैत रलथिन्ह । ई देखि लालकाकी पुछलथिन्ह - मियाँक वंशावली सॅं एहि लोक कैं कोन प्रयोजन ?

रेवती - मिसर कहने छथिन्ह जे .....।

लालकाकी - हुनका वंश मे मोगल पठान सॅं विवाह दान चलैत हैतैन्ह, तैं चौदहो पीढ़ीक नाम अभ्यास छैन्ह । हमरा सभ कैं ओकर उतेढ़ि जनने कोन फल ? एहि गोत्राध्याय सॅं त विष्णुसहस्रनाम पाठ करति त धर्मों होयतैक ।

एक राति बुच्चीदाइ कैं ध्यानमग्न देखि लालकाकी पुछलथिन्ह - की सोचैत छैं ?

बुच्चीदाइ कहलथिन्ह - विलायतक पहिल 'जार्ज' बादशाह कहिया मुइलैक से मन पाडै़ छियैक ।

लालकाकी मुँह गोँहछा कऽ बजलीह - अनकच्छल बात सूनि कऽ देहो जरैये ! विलायतक बादशाह सॅं तोरा कोन काज ? ओ तोरा तीन मे की तेरह मे ? कहियो मरौ ? तोरा कि एकोदिष्ट करबाक छौक जे ओहि पाछाँ बेहाल छै ? "धोबी खातिर कुम्हैन सती" आ, पैर दबो हन ।

दोसर दिन प्रातः काल लालकाकी सराइ मे नैवेद्य काढ़ने पूजा करैत छलीह ताबत बुच्चीदाइ अपन अँग्रेजीक 'रीडर' रटब शुरु कैलन्हि -

दि एग इज इन देट डिस - उस तश्तरी में अंडा है ।

बारंबार तश्तरी-अंडाक नाम सूनि लालकाकी खौंझा उठलीह । जप समाप्त होइतहिं बेटी पर फुफुआ कऽ छुटलीह - ऎ गे ! दुइए अक्षर अँगरेजी पढि कऽ नैवेद्य कैं अंडा बना देलैं । कनेक और पढ़ि जैबें तखन हमरो मुर्गी बनबिहैं ।

ई कहैत लालकाकी तमसा कऽ सराइ माँजय चललीह । ओही दिन बुच्चीदाइक हेतु हारमोनियम किना कऽ ऎलैन्ह । किन्तु सिखाबौ के ? तखन ई विचार भेल जे रेवतीरमण पहिने अपने माइजी सॅं सीखि आबथि और तखन बहि कैं सिखाबथि । तदनुसार रेवतीरमण माइजीक ओतय जा 'सरगम' सीखि ऎलाह और बुच्चीदाइ कैं सातो पटरी चिन्हा देलथिन्ह ।

सन्ध्याकाल बुच्चीदाइ रेयाज करय बैसलीह । लालकाकीक कान टनकैत रहैन्ह । जेना-जेना 'आरोह' क स्वर तीव्र भेल जाइक तेना-तेना हुनक टनक बढ़ल जाइन्ह । आखिर हुनका नहि रहि भेलैन्ह । बुच्चीदाइ 'सा नि ध प क आलापे लैत छलीह कि धप्प दऽ एक धमाका पीठ मे लगलैन्ह । लालकाकी लोहछैत बजलीह - बड़ सौख ! हमर पुटपुरी फाटल जाइ अछि और ई फटियाय बैसलि छथि ! तखन सॅं पधनि-पधनि सुनैत-सुनैत कान बहीर भऽ गेल । बड़ पदमिनी बनलीह अछि ! चल पहिने तुलसीक रस बरका कऽ हमरा कान मे ढार, तखन अपन गिरगिरी भरैत रहिहैं ।

एक दिन बुच्चीदाइ 'लैण्ड्स ऎण्ड पिपुल्स' पुस्तक लऽ कऽ चित्र सभ देखैत रहथि । एक जवां द्वीपक युवती कैं देखि बजलीह - देखही गे माय ! केहन छैक !

लालकाकी सिहरि कऽ बजलीह - गे दाइ गे दाइ ! गट्टा सन माउगि और आँचर नदारद ! देखियौ त कोना उत्तान भेलि ठाढ़ि अछि ? एकोरत्ती धाखो संकोच नहि । हमरा लोकनि कऽ एना उघार भऽ कऽ आँखि ताकि होइत ! और एकरा लेल धन सन ! हमरा सभक बेटी पुतोहु एना करैत त ......।

तावत रेवतीरमण एकटा रबरक स्विमिङ्ग सुट नेने पहुँचि गेलाह । किछु संकुचित होइत बजलाह - मिसरक इच्छा होइ छैन्ह जे ई (बुच्चीदाइ) हेलनाइ सीखि जाय । तैं ई हल्लुक पोशाक किनलथिन्ह अछि ।

लालकाकी जमाय कैं नाना उपाधि सॅं विभूषित करैत बजलीह - बड सधोरि ! हमर बेटी मेम ने अछि जे जँघिया पहिरति ? हम अपना सोझाँ मे एहन निर्लज्ज नहि बनऽ देबैक ।

ई कहि लालकाकी रबड़क पोशाक कैं नूड़ी-गुड़ी कय मोड़ी मे फेकलन्हि । आब हुनक जी उचटि गेलैन्ह ।

जाहि दिन बुच्चीदाइक हेतु बैडमिंटनक सेट किना कऽ ऎलैन्ह, ताहि दिन लालकाकी गामक हेतु अपन मोटा-चोटा सरियाबय लागि गेलाह । बेटा कैं कहलन्हि - बाजि ऎलहुँ एहन जमाय सॅं ! आब हमरा नहि देखल जाइ अछि । "देशी कुत्ता विलायती चालि" ! "खंजन चललीह बगराक चालि त अपनो चालि बिसरि गेलीह !" देखैत-देखैत आँखि पाथर भऽ गेल । हमरा आब गाम लऽ चलह । तखन जे-जे मन अवैक से-से करै जाओ ।

बेटीक कतबो कनने-खिजने तथा जमायक बुझौने लालकाकी नहि रुकलीह । ओ बेटाक संग गामक हेतु बिदा भऽ गेलीह ।

लालकाकीक जैतहिं एक नवीन समस्या उपस्थित भय गेल । बुच्चीदाइ एखन धरि स्वामी सॅं बाजलि नहि छलीह । ओ स्वामी कैं देखि लाज करैत छलीह । आब बाजाभुक्की शुरु हो त कोना ?

संयोगवश ई समस्या स्वयं हल भऽ गेल । एक दिन मिश्रजी कैं दुलकी लागि एलैन्ह । ओ पियासे बारंबार 'ठाकुर' कैं सोर पारय लगलथिन्ह । किन्तु दुर्भाग्यवश वा सौभाग्यवश 'ठाकुर' डेरा मे नहि रहय । दू-एक बेरि धरि त संकोचें बुच्चीदाइक कंठ नहि फुजलैन्ह । अन्ततः हृदय मे निहित गृहिणीक संस्कार लज्जा पर विजय प्राप्त कैलकैन्ह । मुँह झपने एक गिलास पानि लऽ कऽ देबय गेलथिन्ह ।

ई अभूतपूर्व घटना देखि मिश्रजी कैं एक विलक्षण रसक अनुभूति भेलैन्ह । मुग्धा स्त्रीक हाथ सॅं पानि पिउबा मे जे माधुर्य छैक तकर प्रथम अनुभव हुनका जीवन मे आइ भेलैन्ह । बालिका पत्नीक कंठस्वर सुनबाक अभिप्राय सॅं ओ पुछलथिन्ह - ठाकुर कतय गेल ?

बुच्चीदाइ आँखि निहुरौने नहूँ-नहूँ उत्तर देलथिन्ह - गंगास्नान करय गेल छैक ।

मिश्रजी पत्नीक हाथ धऽ पुछलैन्ह - अहाँ हमरा दिश तकैत छी किएक नहि ?

बुच्चीदाइ लजा कऽ ओहि ठाम सॅं जाय लगलीह । मिश्रजी कहलथिन्ह - सुनू ! हमरा माथ मे बड्ड जोर धाह फुकने अछि । टो कऽ देखू त !

आब बुच्चीदाइ नहि जा सकलीह । लजाइत-लजाइत कपार पर आङ्गुर दऽ कऽ देखलन्हि त काठ फुटैत ।

मिश्रजी कहलथिन्ह - ठंढा पानिक पट्टी दऽ सकैत छी ?

बुच्चीदाइ अत्यन्त फुर्त्ती सॅं जा कऽ अपना पेटी सॅं साफ लत्ता बाहर कैलन्हि और भानस घर सॅं एक बाटी मे पानि नेने पहुचि गेलीह । सीरम मे ठाढ़ि भय लत्ता भिजा-भिजा पट्टी देबय लगलथिन्ह । मिश्रजी अपूर्व शीतलताक अनुभव करय लगलाह ।

ठंडैला उत्तर मिश्रजी कहलथिन्ह - आब अहाँ जा सकै छी ।

किन्तु बुच्चीदाइ नहि गेलीह । मिश्रजी कैं ओढना तर सॅं ज्ञात भेलैन्ह जे केओ पैथान मे बैसलि पैर दबा रहल अछि । ओ मन मे विचारय लगलाह- हम त एहि बालिकाक प्रति निष्ठुर व्यवहार कैने छिऎक । एकरा हृदय मे स्नेहक अंकुर कोना उत्पन्न भय गेलैक ?

ओहि दिन ठाकुर कैं ऎबा मे बेशी विलम्ब भऽ गेलैक । किन्तु ई अपराध तेहन मधुरफलयुक्त भेलैक जे मिश्रजी कैं दण्डक बदला पुरस्कारे देबाक इच्छा भेलैन्ह ।

शनैः शनैः संकोचक व्यवधान अन्तर्धान भेल । किन्तु जेना-जेना पति-पत्नीक भाव जाग्रत भेल गेलैन्ह तेना-तेना गुरु शिष्यक सम्बन्ध क्षीण होमय लगलैन्ह ।

एकान्त मे युवती पत्नी कैं निर्लिप्त भाव सॅं पढ़ा सकनिहार स्वामी संसार मे बहुत कम भेटताह । शिष्या पत्नीक शासनातीत यौवन सॅं जनिक गाम्भीर्युक्त गुरुत्वक गद्दी नहि डगमगाइन्ह से निश्चय महात्मा थिकाह । किन्तु एहन असिधारा व्रतक पालन करक हेतु जीवन्मुक्त विदेह सन ब्रह्मज्ञान ओ योगबल चाही ।

सामान्य पति मे त पुरुषक पशुत्व 'गुरु' पदक मर्यादा कैं अत्यन्त लघु कऽ दैत छैन्ह । प्रमदा पत्निक एक भ्रू-विलास सॅं 'भूगोल' क पढ़ाइ मे भूडोल आबि जाइछ और इतिहास परिहास मे परिणत भऽ जाइछ । हुनक एक लहराइत अलकक झलक सॅं पलक मात्र में अध्यापकक चित्त विषय-विचार सॅं विषय-विलास पर जा खसैत छैन्ह । भालक एक गोल बिन्दी क्षण भरिक हेतु समस्त अंकगणित कैं शून्य मे तथा रेखागणित कैं बिन्दु मे परिणत कय दऽ सकैछ । एहन परिस्थिति मे कतौक स्वामी पत्नीक भाषा सँवारैत-सँवारैत भूषा सँवारय लागि जाइ छथि, और साहित्य रचनाक संग-संग केश रचना मे प्रवृत्ति भऽ जाइ छथि । शब्दालङ्कार अध्ययन स्वर्णालङ्कारक झंनझनाहट मे विलीन भऽ जाइछ । वर्णसन्धिक विचार ओष्ठसन्धि पर जा कऽ समाप्त होइछ और समासक वर्णन एकशेष पर । अद्वैतवादक मीमांसा होइत-होइत दू हृदयक द्वैतभाव तिरोहित भऽ जाइछ ।

मिश्रजी देखलन्हि जे अपना बुतें पत्नीक हेतु शिक्षा-सरणी प्रस्तुत करब तहिना कठिन जेना कौशिकीक धार मे बालुक पुल बनाएब । अगत्या ओ एक 'मास्टरनी' क खोज मे बहरैलाह । संयोगवश एक क्रिश्चन लेडी भेटि गेलथिन्ह जे जन्मना भारतीय महिला भेनहु कर्मणा विलायती मेमक कान कटैत छलीह । हुनक 'बूट' 'गाउन' तथा 'हैट' देखि केओ हुनका 'हिन्दुस्तानी' स्त्री कहबाक साहस नहि कय सकै छलैन्ह । ओ अपनहुँ 'मिस साहिबा' वा 'मेम साहिबा' कहाएब पसंद करैत छलीह ।

मिस साहिबाक वास्तविक क्वालिफिकेशन की छलैन्ह से त ज्ञात नहि । किन्तु ओ पहिने एक मिसनरी गर्लस्कुल मे 'मिस्ट्रेस' छलीह । कोनो अज्ञात कारण सॅं 'रिटायर' कय, आब 'ट्युशन' आदि द्वारा स्वच्छन्द जीवन व्यतीत करैत छलीह । मिस साहिबा अनुभवी और अनेक कला मे प्रवीण छलीह । पाउडर ब्रेसरी तथा खिजाबक कौशलपूर्ण प्रयोग सॅं ओ अपन असली वयसक अँटकर ककरो नहि लागय दैत छलथिन्ह । ओ एक सै टका मासिक पर बुच्चीदाइ कैं पढ़ाएब गछि लेलथिन्ह ।

जखन मिस साहिबा काँख तर 'फैंसी अम्ब्रेला' (जनानी छतरी) और हाथ मे लेडीज बैग नेने बुच्चीदाइ कै दिक्षित करबाक हेतु पहुँचि गेलथिन्ह त मिश्रजीक एक भारी चिन्ता दूर भऽ गेलैन्ह ।

मिस साहिबा अबितहिं बुच्चीदाइक 'पिछुआ' हटा 'पारसी स्टाइल' कऽ देलथिन्ह, और हुनक नाम 'मिसेज बुची डाइ' राखि देलथिन्ह । दुइए एक दिन मे बुच्चीदाइक काया कल्प भऽ गेलैन्ह । स्पिरिटक प्रयोग सॅं गोदनाक रंग उड़ि गेलैन्ह । कँगनाक स्थान मे 'रिस्टवाच' सुशोभित भऽ गेलैन्ह ।

दुइए मासक अभ्यन्तर बुच्चीदाइ आश्चर्यजनक उन्नति कऽ गेलीह । जहाँ केवल सकरी ओ हड़ाहिक हाल जनै छलीह तहाँ आब लंदन और पेरिसक हाल बूझय लागि गेलीह। जहाँ हिन्दुस्तानोक शहर सभहक नाम नहि जनै छलीह, तहाँ आब इङ्गलैंडक नकशा बनाबय लगलीह। जहाँ पहाड़ा पहाड़ बूझि पड़ैत छलैन्ह, तहाँ आब पाउण्ड शिलिंग पेंसक हिसाब जोड़य लगलीह।

किन्तु एहूसँ बेशी आश्चर्यजनक परिवर्तन भेलैन्ह बुच्चीदाइक आचार-व्यवहार मे। ओ आब माटिक स्थान मे साबुन तथा दातमनिक स्थान मे टूथब्रशक व्यवहार सीखि गेलीह। जहाँ सराइ-अरघी माँजि कऽ पूजा-घर मे रखैत छलीह तहाँ आब चिनिया प्लेट और सीसाक ग्लास धो कऽ टेबुल पर सजाबय लगलीह। बुच्चीदाइ जहाँ चूल्हि पर पटुआक झोर बरकबैत छलीह तहाँ डेकची पर चाय खदकावय लगलीह ।

बुच्चीदाइ आब काशी कै'बेनारेस' और गंगाजी कै 'गैंगेज' कहब सीखि गेलीह। ओ पान कै असभ्यतासूचक बूझि 'लिपस्टिक' कै महत्व देवय लगलीह। अमौटक स्थान मे आमक 'जेली' व्यवहार करय लगलीह। जहाँ गाम पर माटिक महादेव बनबैत छलीह तहाँ आब महादेव कै माटि बनाबय लगलीह।

सी०सी० मिश्र उत्साहित भय पत्नी कै और द्विगुण वेग सँ प्रगतिशीलताक पथ पर अग्रसर कैलन्हि। हुनक इच्छानुसार मिस साहिबा बुच्चीदाइ कै 'लेडीज क्लब' मे लऽ जाय लगलथिन्ह। ओतय ओ नित्य दू एक गेम टेनिस दू एक कप चाय दू एक गत पियानो वा 'डांस' क आनन्द लेवय लगलीह। प्रारम्भ मे त किछु दिन धखाइत रहलीह, किन्तु पाछँ कऽ 'सोसाइटी' मे एतेक मन लागि गेलैन्ह जे घर सँ बेशी ओत्तहि नीक लगैन्ह। चारि बजे जे जथि से आठ बजे सँ पहिने डॆरा पर नहि आबथि।

'ठाकुर' कै ताकीद रहैक जे क्लब सँ अबैत देरी 'मिसेज बी० डाइ' क हेतु टेबुल पर खाना सजाओल जाइन्ह। जहिया ओ दुःखित पड़ि जाय तहिया ई सौभाग्य मिश्रजी स्वतः लूटथि।

एक दिन बुच्चीदाइ एकान्त मे 'डांस' क प्रैक्टिस करैत चलीह। कोनौ कार्यवश मिश्रजी छथ पर गेलाह। किन्तु ओ अपन नृत्य-कलाक अभ्यास मे तन्मय छलीह। ई तन्मयता देखि मिश्रजी तन्मय भऽ गेलाह। ओहि ताल पर हुनक मन मयूरनृत्य करय लगलैन्ह।

दू एक सप्ताहक प्रयत्न सँ बुच्चीदाइ कै हेलनाइयो आबि गेलैन्ह। जाहि दिन सी० सी० मिश्र हुनक हेलैत कालक 'स्पैनशौट' लऽ कऽ 'प्रिंट' कैलन्हि, ताहि दिन आनन्द-समुद्र मे डूबि गेलाह।

आब एकटा कसरि 'मिसेज डाइ' मे रहि गेलैन्ह जे धुड़झाड़ अंग्रेजी बाजिऽ आबि जाइन्ह। तदर्थ सी० सी० मिश्र हिन्दी संस्कृत आदिक बखेड़ा छोड़ा, हुनका एक मात्र अँग्रेजी पर भार देबय कहलथिन्ह। 'बी० डाइ' रात्रिर्दिवा अँग्रेजीक अभ्यास करय लगलीह। मिससाहिबाक संसर्ग सँ ओ किछुए मासक भीतर गिटपिट करय लागि गेलीह।

जखन गुरुआइन अंग्रेजीसभ्यताक एक रंगारंग मे कुंडाबोरि रँगलि छलथिन्ह तखन शिष्या पर कमलपत्रीओ रंग कोना ने चढौ़न्ह ! बुच्चीदाइ आब बुच्चीडाइ बनि गेलीह ।

जहाँ ओ महेशवाणी गबैत छलीह तहाँ आब अँग्रेजी ताल पर गुनगुनाय लगलीह -

ओ गाड ! दाउ आर्ट ग्रे .....ट !

आब एकटा बातक कमी छलैन्ह सेहो मेम साहिबाक प्रसादात् पूर्त्ति भऽ गेलैन्ह । एकमासक अनवरत अभ्यास सॅं क्लबक मैदान मे बुच्चीदाइ साइकिल सीखि गेलीह । पहिने सार्वजनिक स्थान मे साइकिल चलबैत लाज होइन्ह । परन्तु स्वामीक बहुत हठ कैला पर जखन मेम साहिबाक संग पहिले-पहिल साइकिल पर चढ़ि कऽ क्लब सॅं भऽ ऎलीह तखन धाख छूटि गेलैन्ह ; प्रत्युत एक गर्वक अनुभव मन मे करय लगलीह । ओहि दिन सी० सी० मिश्रक एक बडका मनोरथ पूर्ण भऽ गेलैन्ह ।

आब नित्यप्रति सी० सी० मिश्र अपने हाथ सॅं साइकिल मे पम्प कय पहिनहि सॅं तैयार रखथिन्ह । जखन 'मिसेज डाइ' चुमकी सॅं साइकिल पर चढ़ि 'टेनिस शू' सॅं पैडल चलबैत रैकेट युक्त हाथ सॅं हैंडल घुमा क्लब दिस विदा होथि त मिश्रजी कैं तहिना गर्व होन्हि जेना वीराङ्गना कैं अपना स्वामीक विजययात्रा सॅं होइ छैक ।

एक दिन बुच्चीदाइ कैं क्लब जेबा मे देरी होइत देखि सी० सी० मिश्र पुछलथिन्ह - 'आर यू नाट गोइंग टु योर क्लब टुडे ?' (कि आइ अहाँ अपना क्लब नहि जाएब ) ?

बुच्चीदाइ तड दऽ जबाब देलथिन्ह -स्योरली आइ विल बी गोइंग। बट आर वाय केडस रेड्डी? (जाएब त निश्चय। लेकिन हमर टेनिस खेलैबाक जुती तैयार अछि? अर्थात अहाँ पालिश कऽ रखने छी?)

ई सुनि सी० सी० मिश्र कैं बूझि पड़लैन्ह जे जीवनक सभ सॅं पैघ महत्त्वाकाक्षां आइ पूर्ण भऽ गेल। पत्नी में एहन प्रबल व्यक्तित्वक विकास देखि ओ भगवान कें अनेकानेक धन्यवाद देलन्हि और ओहि खुशी मे मिस साहिबा कें एक डिनर (भोज) दऽ देलथिन्ह।

एही बीच मे सी० सी० मिश्र कैं एक सर्विस भेटि गेलैन्हि। ओ 'आर्यन कल्चर (आर्य सभ्यता) नामक अंग्रेजी मासिक पत्रक एडिटर (सम्पादक) नियुक्त भेलाः।

किन्तु आब एक कठिनाइ ई उत्पन्न भेल जे बुच्चीदाइ बिनु द्विरागमने हाउस वाइफ बनि कऽ रहब अस्वीकार कऽ देलथिन्ह।

सी० सी०० मिश्रक संकेतानुसार मिस साहिबा बहुत बुझौलथिन्ह जे- ह्वाइ शुड यू फालो दि रस्टिक कस्टम्स और योर सोसाइटी? डॊण्ट ओबजर्व दि सिली सेरेमनी '(अर्थात समाजक देहाथी प्रथा अहाँ किएक मानब? एहि मूखारू विधि-वाध कैं छोडू)।

किन्तु लालकाकी बेटी कैं मातृ-संस्कार जोर कैलकैन्ह। ओ अपना आत पर अड़ि गेलीह। हारि-दारि कऽ मिश्र जी पुछलथिन्ह-'अच्छा कोन-कोन बिध होइ छैक से अहाँ हमरा नोट करा दियऽ। आब बेशी टाइम नहि अछि। एक हफ्ता के अन्दर द्विरागमन भऽ जैबाक चाही।'

बुच्चीदाइ कहलथिन्ह-'दिन मनाबक हेतु पहिने दही-माछक भार जाइ छैक तखन वर जा कऽ कनेयां कैं बापक घर सॅं लऽ अबै छैक।

सी० सी० मिश्र बजलाह-'माइ गाॅड! तखन त हमर और अहाँ दूनू गोटा क गेनाइ कम्पलसरी भऽ गेल। कि खाली फिश (माछ) और कर्ड (दही) पठा देने काज नहि चलि सकैत छैक?

बुच्चीदाइ कहलथिन्ह-वाह! जौ हमहीं नहि रहबैक त द्विरागमन हेतैक ककर? और जौं अहीं नहि जेबैक त द्विरागमन हैतैक कोना?

मिश्रजी बजलाह-'फिश' कर्ड, पहुँचलाक बाद हम सभ जायब ततेक टाइम आब कहाँ अछि? हँ, ई भऽ सकै अछि जे फिश, कर्ड अपना संगहि नेने चली। लेकिन ओतय पहुँचैत-पहुँचैत 'फिश सड़ि जाएत और कर्ड खराब भऽ जाएत।

बारंबार 'फिश' और कर्ड क नाम सुनि मिस साहिबाक मुँह मे पानि भरि एलैन्ह। सभ बात बूझि ओ अपन विचार इ देलथिन्ह जे टिनक डब्बा मे बन्द कैल जे फिश अबैत छैक से खराब नहिं होएत और दहीक बदला 'चीज' (पनीर) लऽ चलू।

बुच्चीदाइ कहलथिन्ह-'हमर गाम पैघ अछि। सौंसे गाम बाँटक लेल कम सॅं कम एक बक्स चाही। हँ, तखन एकटा विधि और होइत छैक। वरक संग बरियातो जाइ छैक।

सी० सी० मिश्र चिन्तित भऽ बजलाह-'आब त एतेक टाइम नहि अछि जे इनभिटेशन कार्ड (निमन्त्रण पत्र) छपाबी। अच्छा, त बरियात मे मिस साहिबा चलतीह।

मिस साहिबा थोडे़क नाकर-नूकर करैत अन्त में राजी भऽ गेलीह।

सभ ठीक-ठाक कय सी० सी० मिश्र सासुरक पता सॅं तार देलन्हि जे-'हफ्ताक भीतर द्वरागमनक प्रबध करू। हमरा लोकनि बरियातक संग आबि रहल छी।'

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