लेखक : हरिमोहन झा

संसार मे दू वस्तु सॅं बचबाक उपाय नहि । एक यमदूत सॅं , दोसर बीमा कम्पनीक एजेंट सॅं ! यमदूत त जीवन मे एके बेर दर्शन दैत छथिन्ह , किन्तु बीमाक भूत जहाँँ एक बेर प्रवेश कैलन्हि तहाँँ जोंक जकाँँ सटि जाइत छथि । हुनका जतेक झाड़क कोशिश करू ततेक और भीतर पैसल जैताह ।

एक बेर हमरो पर एक भूत लागि गेलाह - ध्रुव नन्दन प्रसाद । सतुआ सम्मर बान्हि कऽ हमरा पाछाँँ लागि गेलाह । नित्य नियम संध्याकाल पहुँँचि जाथि , बैसथि, गप्प करथि और अन्त मे वैह प्रस्ताव जे 'जिन्दगी क बीमा करा लियऽ । एहि मे फायदे-फायदा अछि । कम-सॅं-कम पाँँचो हजार क 'पालिसी' लऽ लियऽ ।'

हम लाख कहलिऎन्ह जे 'औ महराज ! हमरा एखन बीमा करैबाक नहि अछि ।' परन्तु के सुनैत अछि ! ओ जबाब पौलो उत्तर बैसले रहि जाथि । बीच-बीच मे कतेको लोक आबय , कतेको लोक जाय । किन्तु बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद ध्रुव जकाँँ अपना स्थान पर अचल । हमरा खाय लेल बजाबऽ आबय तौखन उठबाक नाम नहि । भोजनोत्तर पुनः गप्प लाधि देथि । भद्रलोक कैं कोना कहल जाय जे आब कृपा करु । अगत्या हुनका खातिर दू घंटा और बैसय पड़य । जखन ११ बजेक बाद हमरा औंघायल सन क्रम देखथि त अपन कागज-पत्र समेटैत बाजथि - बेश, एखन चलै छी । काल्हि सबेरे पुनः सेवा मे हाजिर भऽ जायब ।

नित्य प्रति यैह क्रम चलय लागल । हम महा संकट मे पड़ि गेलहुँँ । कोनो कार्य करब से कठिन । हुनका सॅं जान छोड़ैबाक बहुत चेष्टा कैलहुँँ , किन्तु सभ व्यर्थ ।

अन्त मे एक उपाय कैलहुँँ । हुनका ऎबाक बेर सॅं पहिने कोठरी मे ताला बंद कऽ हरिकीर्तन मे चल गेलहुँँ । जखन डेढ़पहर राति बीति गेलैक और हमरा विश्वास भऽ गेल जे बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद आबि कऽ फिरि गेल हैताह तखन डेरा गेलहुँँ । परन्तु फाटक लग गेलहुँँ त देखैत छी जे ओ खंभा जकाँँ ठाढ़ छथि । बजलाह - हम दू घंटा सॅं एहिठाम ठाढ़ भेल ताकि रहल छी ।

हम चाहलहुँँ जे ठाढ़े-ठाढ़ गप्प कऽ कऽ हुनका विदा कऽ दी । किन्तु ओ त सहज जीव छलाह नहि । हमरा पाछाँँ लागल भीतर चल एलाह और ओहि राति १२ बजे धरि बैसल रहलाह ।

ओकरा बाद जेना-जेना हम अपन दिनचर्या बदलैत गेलहुँँ तहिना ओहो अपना गतिविधि मे परिवर्तन करैत गेलाह । हम डारि-डारि त ओ पात-पात ! खाइत-पिबैत, सुतैत-उठैत जखन देखी, बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद आबि कऽ माथ पर सवार !

आब हुनका सॅं जान छोड़ैबाक हेतु एक कौशल रचलहुँँ । कालेज सॅं अबितहि भीतर सॅं कोठरी बन्द कऽ देलहुँँ और बाहर सॅं ताला बन्द करबा देलिऎक । नौकर कैं सिखा देलिऎक - देख, जौ ओ बाबू अबथुन्ह त ई नहि कहिऔन्ह जे हम भीतर मे छी । ताला बंद देखि कऽ अपने फिरि जैथुन्ह तखन खिड़कीक बाटें हमरा कहि दिहें ।

हम बन्द घर मे अपन लिखा-पढ़ीक काज मे लगलहुँँ । थोड़बे कालक बाद बाबू ध्रुबनन्दन प्रसादक आहटि बुझि पड़ल । ओ एलाह और ताला बन्द देखि ठमकि गेलाह । परन्तु ओ साधारण व्यक्ति त छलाह नहि जे लगले फिरि जैतथि । ओ पहिने ताला कैं खिचि कऽ देखलथिन्ह । नहि फुजलैन्ह । तखन किछु काल बरामदा पर ठाढ़ रहि अछता-पछता कय विदा भेलाह । हमरा जान-मे-जान आएल ।

जखन बूझि पड़ल जे ओ चल गेलाह तखन फक दऽ निसास छोड़लहुँ। तावत पाछाँ मे खिड़कीक झिलमिली उठल। हम बिनु देखनहि पुछलिऎक - की रौ ठगना! ओ गेलथुन्ह?

परन्तु उत्तर सुनैत हृत्कम्प भऽ गेल। ठगनाक स्थान मे स्वयं बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद ठाढ़ छलाह! बजलाह- की! लिखा-पढी भऽ रहल छैक? हमरा तैखन सन्देह भेल जे भितरे मे त नहि छथि। तै पछुआड़ सॅं आबि कऽ देखल। बाहर ताला किऎक बंद छैक?

हम ठगना पर अपन क्रोध उतारैत कहलिऎन्ह- बेबकूफ धोखा सॅं बंद कऽ कऽ कतहु चल गेल अछि। आब आओत तखन ने?

एजेंट महोदय बजलाह-कोनो चिन्ता नहि। हमरा कुंजीक झब्बा मे 'मास्टर की' अछि। लगा कऽ देखैत छिऎक।

दू मिनटक भीतर एजेंट महोदय केवाड़ फोलि भीतर प्रविष्ट भऽ गेलाह।

ईहो चालाकी व्यर्थ गेल। आब कोन युक्ति रचल जाओ? दोसरा दिन रवि रहैक। हम कछनी काछि कऽ पड़ि रहलहुँ। ठगना कैं सिखा देलिऎक- देख, अबथुन्ह त कहि दिअहुन जे मालिक दुखित छथि।

परन्तु ओहि दिन हमरा और सजाय भऽ गेल। बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद अपना कंपनीक डाक्टर कैं बजा कऽ लऽ ऎलाह। और भरि दिन हमरा लग मे बैसि लेक्चर दैत रहलाह जे जिंदगीक कोनो ठेकान नहि। जल्दी बीमा करा लेबाक चाही।

हम मने-मन कहलहुँ - औ महाराज! पहिने अहाँ सॅं जिंदगी बाँचि जाय तखन ने एकर बीमा कराबी!

दू-चारि दिनक बाद पूजाक छुट्टी मे कालेज बन्द भऽ गेल। हम एजेंट महोदय सॅं जान छोड़वैत हजारीबागक टिकट कटौलहुँ।

हजारीबाग पहुँचि कऽ एक मकान किराया लेल और शान्तिपूर्वक रहय लगलहुँ। एजेंट महोदय कृपा सॅं शरीरक जे शोणित सुखा गेल छल से क्रमशः भरय लागि गेल।

एक दिन झीलक कात पुल पर बैसल कमलक शोभा देखैत रही कि एक अप-टु-डेट नवयुवती अबैत दृष्टिगोचर भेलीह। पातर छरहर शरीर मे शान्तिपुरी साड़ीक ऊपर लाल कोट। सौम्य मूर्त्ति। पृथ्वी पर अन्दाज सॅं तौलि-तौलि कऽ चरण दैत। ओ हमरा दिशि बिनु तकनहि, शालीनतापूर्वक अपन बाट धैने, लवेंडरक खुशबू छोड़ैत, आगाँ बढि गेलीह।

दोसरा दिन हम पुस्तकालय मे बैसल रही कि वैह रमणी आबि पहुँचलीह। एहन संयोग जे हमरे लिखल एक पुस्तक ओ माङि बैसलथिन्ह हमरा मुँह पर एक आनन्दमिश्रित कुतूहलक भाव आबि गेल जे तीक्ष्णबुद्धि रमणी कैं लक्षित भऽ गेलैन्ह। पुस्तक उनटबैत-पनटबैत एक बेर हमरा दिस तीव्र दृष्टि सॅं तकलन्हि।

'लाइब्रेरियन' हमर परिचय दैत कहलथिन्ह-यैह पुस्तकक लेखक थिकाह। देवीजी दुनू हाथ जोड़ि कय अभिवादन कैलन्हि और अपना स्मृति पर बल दैत बजलीह- अहाँ कैं प्रायः हम कतहु देखने छी।

हम- काल्हि सन्ध्याकाल झीलक किनार मे बैसल रही।

ओ - हॅं, क्षमा करब। हम ओहि समय चीन्हल नहि। एहि ठाम कतेक दिन रहब?

हम - भरि छुट्टी एत्तहि रहबाक विचार अछि।

ओ - डेरा कतय अछि?

हम अपन पता कहलिऎन्हि।

रमणी बजलीह- हम एकटा कष्ट देबक चाहैत छी। हमरा किछु पढबाक अछि। यदि डेरा पर आबी त किछु समय दऽ सकैत छी?

हम जा किछु सोची-सोची ता मुँह सॅं बहरा गेल - 'अवश्य'। रमणी धन्यवाद दैत विदा भेलीह।

दोसर दिन हम अपन बरामदा पर बैसल अखबार पढैत रही कि वैह सौम्यमूर्त्ति - लाल कोटक परिधि मे अपन सम्पूर्ण सौम्यता आवेष्टित कैने - पहुँचि गेलीह। शिष्टाचारक उपरान्त कुर्सी पर बैसलीह।

हम पुछलिऎन्ह - अहाँक नाम बुझि सकैत छी?

देवीजी एक विलक्षण अन्दाज सॅं नेत्र निहुड़ा, मुसकुरा उठलीह। बजलीह - मं...जु...ला।

ई तीन अक्षर ओ जेहन 'अदा' सॅं उच्चारण कैलन्हि से एखन धरि नहि बिसरैत अछि।

मंजुला देवी 'अटैची केस' सॅं एक किताब बाहर करैत बजलीह-हमरा 'लाॅजिक' मे कइएक ठाम 'डिफिकल्टी' अछि। से सभ ' मार्क' कऽ कऽ नेने आयल छी। आइ.ए. कऽ गेलि रहितहुँ, किन्तु बीच मे किछु कारण सॅं पढाइ छुटि गेल। एहि बेर 'प्राइवेट' सॅं 'ऎपियर' होएबाक विचार अछि।

ओहि दिन सॅं गुरु-शिष्याक सम्बन्ध स्थापित भेल। मंजुला देवी नित्य आबय लगलीह। 'लाॅजिक' क संग-संग किछु काव्यो साहित्यक चर्चा होमय लागल।

एक दिन मंजुला देवी अपना संग एक दोसर कोमलांगी कैं नेने ऎलीह। कञ्चन-लतिका सन सुकुमार देहयष्टि पर कल्पना सन सूक्ष्म रेशमी परिधान। सोनहुला चश्माक भीतर सॅं छनि कय दिव्य तेज बहराइत।

मंजुला देवी हुनक परिचय दैत बजलीह-ई हमर सखी 'ज्योतिर्मयी' सेकेन्ड इयर मे पढैत छथि। कवितो करैत छथि । हिनक रचना 'सुधा' , 'माधुरी' मे बहराइत छैन्ह 'कल्पना' । उपनाम छैन्ह 'कल्पना' ।

मंजुला देंवी हुनका हाथ सँ एक सुन्दर 'नोटबुक' छिनैत बजलीह - ई बड्ड लजकोटरि छथि । ओना अपन कविता नहि सुनौतीह। वैसि कय हिनक गीत सुनल जाय ।

सन्धयाकाल कोकिल-कंठी कल्पना अपन 'निर्झरिणी' शीर्षक कवितां सुनबय बैसलीह । स्वरलहरी सँ झीलक जल मे तरंग उठय लागि गेल । समस्त प्रदेश मधुर आलाप सँ मुखरित भऽ उठल । सायंकालीन वातावरण मे संगीत सुनैत-सुनैत हमरा लोकनि एहन मंत्रमुगध भऽ गेलहुँ जे जेलक घंटा बजला उत्तर चैतन्य भेल । दस बजे राति कऽ डेरा पर अबैत गेलहुँ

प्रात भेने मंजुला ओ कल्पनाक संग एक हृष्टपुष्ट ओजस्वी महिला ऎलीह। वेश चाकर-चौरस, भरल-पूरल चेहरा, गठन शरीर।

मंजुला हुनक परिचय दैत बजलीह-ई छथि पुरुषार्थवती देवी। 'आर्य महिला पीठ' क व्यायाम-विशारद। ई अपन व्यायाम प्रदर्शन करबाक हेतु एतय 'कन्या-विद्यालय' मे आइलि छथि। हिनका लाठी ओ तरुआरि भजबाक हेतु कतेको 'मेडल' भेटि चुकल छैन्हि। ई सभ प्रकारक आसन जनैत छथि। एखन बाइसे वर्षक अवस्था छैन्ह, किन्तु शारीरिक बल मे कोनो पुरुष सॅं कम नहि छथि। बल्कि बहुत कम मर्द हिनका सॅं पंजा भिड़ा सकैत छथिन्ह।

पुरुषार्थवती देवी अपन पुरुषार्थक वर्णन सुनि गर्व सॅं हमरा दिशि ताकय लगलीह। हमरा त इच्छा भेल जे एक बेर बलक परीक्षा भऽ जाय। परन्तु पुरुषार्थवतीक मांसल बाँहि और पुष्ट पहुँचा देखि पंजा लड़ाबक साहस नहि पड़ल। कदाचित हारि गेलहुँ त केहन भारी लज्जाक बात हैत! सेहो सुन्दरी सभक बीच मे!

मंजुला बजलीह - आइ 'गर्ल स्कूल' मे 'मीटिंग' छैक। ई अपन 'मस्ल' देखौतीह और कइएक तरहक 'जिमनैस्टिक' करतीह। ओहिठाम 'प्रेसिडेंट' अहीं कैं बनय पड़त। ताही खातिर हमरा लोकनि आएल छी।

सभा मे जा कऽ पुरुषार्थवतीक पुरुषार्थ देखल। ओ पहिने भिन्न-भिन्न भागक मांसपेशी देखौलन्हि। तदुत्तर शीर्षासन, उत्तानासन आदि नाना प्रकारक आसन करैत अपना सीना पर दू गोटा कैं चढा लेलन्हि, और एके बेर दूनू कैं जोर सॅं झाड़ि कऽ उठि गेलीह। एवं प्रकार ओ रंगबिरंगक खेल देखाय अपन नाम सार्थक करय लगलीह और सभामंडप करतल ध्वनि सॅं गूँजय लागल।

हम अपना भाषण मे कहलिऎन्ह जे प्रत्येक स्त्री कैं एहने पुरुषार्थवती बनक चाही । परन्तु मनहि मन भगवान कैं धन्यवादो देलिऎन्ह जे एहन पुरुषार्थवती अपना माथ पर नहि पड़लीह । अन्यथा कठिनाह समस्या उपस्थित होइत।

एक दिन मंजुला हमरा सँ 'सिलाजिज्म'(अनुमानखंड) पढैत रहथि । हठात बाजि उठलीह - आइ सिनेमा चलब? बहुत बढिया 'शो' छैक ।

हम कहलिऎन्ह - देखल जैतैक । तावत 'आर्ग्युमेन्ट' (तर्क) 'टेस्ट'(जाँच) करु । परन्तु तकरा बाद जे अभिनेता-अभिनेत्रीक अलोचना छिड़ल से कहाँ सँ कहाँ पहुँचि गेल ।

मंजुला 'लाॅजिक' बन्द करैत बजलीह - अहाँ कैं ककर 'ऎक्टिंग' बेशी पसन्द पड़ैत अछि?

हमरा मुँह सँ 'देविकारानी' क नाम सुनैत देरी मंजुला तिनुकि उठलीह । बजलीह - 'दुर्गा खोटे'किऎक नहि?

हम कहलिऎन्ह - माफ करु । अहाँक दुर्गा खोटे मर्दानी स्त्री जकाँ लगैत छथि, जेना पुरुषार्थवती देवी ।

मंजुला बजलीह - तखन अहूँक देविकारानी मे केवल हावे-भाव छैन्ह । अहाँ 'सेक्स अपील' (यौन आकर्षण)पर जाइ छी ।

युवती शिष्याक मुँह सँ एहन दोषारोपण सुनि हम स्तम्भित रहि गेलहुँ ।

ओ बजलीह - काननबाला अहाँ कैं केहन लगैत छथि ?

हम उत्तर देलिऎन्ह - हुनका कंठ मे अपूर्व माधुर्य छैन्ह । जेना कल्पनाक स्वर मे ।

ई सूनि मंजुला देवी कैं ईर्ष्याक भाव मन मे आवि गेलैन्ह जे हमरा प्रत्यक्ष दृष्टगोचर भेल ।

तावत 'कल्पना' ओ पुरुषार्थवती दुहू संगे-संग पहुचि गेलीह ।

मंजुला हॅंसैत-हॅंसैत स्वागत कैलथिन्ह - अबैत जाउ, काननबाला और दुर्गा खोटे ! अहाँ लोकनि कैं यैह 'टाइटिल' भेटल अछि ।

कल्पना देवी प्रायः हमरा लोकनिक वार्तालाप बाहर सॅं सुनैत छलीह । विहुँसैत उत्तर देलथिन्ह - हॅं, परन्तु देविकारानी बनबाक सौभाग्य त अहीं कैं प्राप्त अछि ।

मंजुलाक आभापूर्ण गाल पर लज्जाक लालिमा दौड़ि गेलैन्ह ।

ओहि राति सुन्दरी सभक अनुरोध सॅं हमरो सिनेमा जाय पड़ल ।

एवं प्रकार किछुए दिन मे मंजुला बहुत समीप आवि गेलीह । एक दिन बजलीह - अहाँक 'वाइफ' त एतय छथि नहि । खैबा-पिउवा मे बहुत तकलीफ होइत हैत ।

हम कहलिऎन्ह - नहि । ठगना अछि, से पूरी बना दैत अछि । भात खैबाक मन होइत अछि त अपने बना लैत छी ।

मंजुला बजलीह - ओह ! हमरा अछैत अहाँ कष्ट कऽ रहल छी ! एखन की बनबैत अछि ?

हम कहलिऎन्ह - माछ तरि रहल अछि ।

ओ बजलीह - माछक हाल ओ की जानय गेल ? हम अपने जा रहल छी ।

ई कहि ओ चट्टी पर चटर-चटर करैत भानस घर मे पहुँचि गेलीह । ओहिठाम ललका कोट खुट्टी पर टाँङि, स्टुल पर बैसि गेलीह ।

हमरा मन मे एक अपूर्व भाव उदित होमय लागल ।

थोड़ेक काल मे मंजुला एक 'प्लेट' मे तरल माछ ओ भात नेने ऎलीह । हम कहलिऎन्ह - ओह ! अहाँ आइ बहुत कष्ट कैलहुँ ।

ओ बजलीह - कष्ट कोन ? ई त हमर काजे अछि । आब सॅं हम सभ दिन अपने हाथे बना कऽ खोआएल करब । हॅं, तखन होउ ने ।

हम कहलिऎन्ह - ई कोना भऽ सकैत अछि ? अहूँ खाउ ।

ओ लजाइत बजलीह - वेश, हमहूँ पाछाँ कऽ खायव । पहिने आहाँ त खा लियऽ ।

अन्त मे विशेष आग्रह कैला उत्तर ओहो हमरा संग बैसि गेलीह । ठगना मुँह बनबैत ओहि ठाम सॅं चल गेल ।

छुट्टी पुरबा मे दुइए दिन बाँकी रहि गेल । मंजुला कैं बहुत किछु पढ़वाक शेष रहि गेलैन्ह । आब कोना पुर्ति हेतैन्ह ? हम चिन्ता मे पड़ि गेलहुँ । सोचैत-सोचैत माथ भारी भऽ गेल ।

राति मे ओछाओन पर पड़ल एही भावना मे मग्न रही कि मंजुला आबि पहुँचलीह । हमरा खाट लग कुर्सी खीचि कऽ बैसि गेलीह । हमर हाथ अपना हाथ मे लय बजलीह - ज्वर त नहि अछि । माथ मे दर्द होइत अछि की ?

ओ हमर कपार टोएलन्हि और फुर्र दऽ उठलीह । दस मिनट मे सॅं 'यु-डी-कोलोन' नेने एलीह । लगबैत बजलीह - की, आब किछु 'रिलीफ' (शान्ति) बुझि पड़ैत अछि?

हम मुग्ध होइत कहलिऎन्ह - मंजुले ! अहाँ धन्य छी । आदर्श देवी ! अहाँक उपकार हम आजन्म नहि बिसरब । एहि ऋण सॅं हम कोना उऋण भऽ सकैत छी ?

मंजुला बजलीह - हम की पुरस्कार पाबक हेतु अहाँक सेवा कैलहुँ अछि ? ई त हमर कर्तव्ये थिक । किन्तु यदि अहाँ हमरा पर प्रशन्न छी त एकटा सहायता कऽ सकैत छी ।

ई कहि मंजुला देवी एकटा 'फार्म' बाहर कैलन्हि । बजलीह - हम एक 'इन्श्योरेंस' (बीमा) कम्पनीक 'एजेंसी' नेने छी । यदि अहाँ एकटा 'पालिसी' लऽ ली त हमर किछु उपकार भऽ जाय ।

हम मन मे कहलहुँ - हे भगवान ! धन्य अहाँक माया । एहू ठाम बीमाक चक्र लगले आयल !

हम यंत्रवत फार्म कैं भरय लगलहुँ ।

सुन्दरीक प्रस्ताव कोना अस्वीकार कैल जाय ! ओ हमरा हाथ मे फार्म धरा देलन्हि और कोटक भीतर सॅं 'फाउण्टेनपेन' बहार कय बजलीह - एकरा भरु त ।

ओ सभटा पढ़ि कऽ बजलीह - और सभ त ठीक अछि केवल ५०००) जे अहाँ लिखने छी से ठीक नहि । एहि मे एक अंक अपना दिस सॅं जोड़ि दैत छी ।

ई कहि ओ ५ सॅं पूर्व १ जोड़ि , १५०००) कऽ देलथिन्ह ।

हम मंजुलाक माथ मे सिन्दुरक सूक्ष्म विंदु देखि पुछलिऎन्ह - अहाँक स्वामी कतय छथि ? की करैत छथि ?

मंजुला बजलीह - हुनका कोनो सर्विस त नहि छैन्ह । 'बिजनेस' करैत छथि । किन्तु हम हुनका पर 'बडेन' (भार) भऽ कऽ नहि रहय चाहैत छिऎन्ह । बल्कि अमही अपना 'अर्निङ्ग' (कमाइ) सॅं हुनका 'हेल्प' कऽ दैत छिऎन्ह । एहि 'पालिसी' मे हमरा ६००) कमीशन भेटत । ताहि सॅं हुनकर बहुत काज चलि जैतैन्ह ।

ई कहि मंजुला देवी यत्नपूर्वक अपन सभटा कागत-पत्र समेटि, अटैची केस मे धैलन्हि और कृतज्ञता सूचक शब्द मे बजलीह - एहि कृपाक हेतु हम हार्दिक धन्यवाद दैत छी ।

हम जा किछु उत्तर दिऎन्ह-दिऎन्ह ता बाहर सॅं कर्कश आवाज आएल - प्रोफेसर साहेब !

स्वर चिन्हैत देरी नहि भेल । वैह ध्रुवनन्दन प्रसाद ! ई आखिर एहूठाम धरि खेहारने ऎलाह ! जी अकच्छ भऽ गेल । दालि भात मे मुसरचन्द ! ई एखन कहाँ सॅं आबि गेलाह !

हम लोहछि कऽ उत्तर देलिऎन्ह - हमरा एखन फुरसति नहि अछि । काल्हि दिन मे आएब । एखन एकटा भद्र महिला एहिठाम छथि ।

बाबू ध्रुवनन्दन प्रसाद भीतर अबैत बजलाह - प्रोफेसर साहब ! अपने प्रायः धोखा मे छी । ई हमरे 'वाइफ' थिकीह।

मंजुला देवी शरारत भरल मुसकान सॅं हमरा दिशि ताकि बजलीह- यैह छथि हमर 'हसबैंड' मिस्टर डी. एन. प्रसाद। बेश, त आब एखन आज्ञा भेटौ। नमस्ते।