लेखक : हरिमोहन झा

मधुकान्त बाबू जखन कालेज मे नाम लिखौलन्हि त शौक भेलैन्ह जे सूट बनबाबी। जखन सूट बनबौलन्हि त शौक भेलैन्ह जे ई पहिरि कऽ सासुर जाइ।

अतएव फगुआ सॅं चारि दिन पहिने जखन लाल रंगक फूलदार लिफाफ डाकपिउन हाथ मे देलकैन्ह तैखन ओ बुझलन्हि जे आब सूट पर इस्त्री चढाबक अवसर आबि गेल। ओ कोठरी बन्द कय, इष्टदेवताक स्मरण करैत लिफाफ खोललन्हि और उछलैत हृदय सॅं पढय लगलाह। रस भरल दोहा-कविता मे सानल जे तत्त्व बहराएल से ई जे एहि फगुआ मे अवश्य आउ। नडुआरोबला आबय लेल छथि। यदि अहाँ नहि आएब त रंग मे भंग भऽ जाएत।

मधुकान्त बाबू ओहि पत्रक कइएक आवृत्ति पाठ कय गेलाह। तखन 'सुपरेंटेंडेंट'क नाम सॅं एक दरखास्त लिखलन्हि जे हमर माय मरणासन्न छथि, अतएव सात दिन होस्टल सॅं गैरहाजिर रहय पड़त।

तदनन्तर कानय सन मुँह बना शशिकान्तक कोठरी मे गेलाह। कहलथिन्ह- हौ संगी! गाम पर माय बहुत जोर दुःखित छथि। हार्लिक्स, ग्लूकोज, बेदाना, ई सभ लऽ जैबाक अछि। बीस टाका पैंच दैह।

रुपया लय मधुकान्त बाबू सोझे 'न्यू मार्केट' गेलाह। ओतय स्नो, क्रीम, पोमेड आदि जतेक जे उपकरण आवश्यक बूझि पड़लैन्ह से लऽ ऎलाह। फगुआक हेतु अबीर, गुलाबजल, कुमकुम, ओ पिचकारिओ नहि बिसरलाह।

तखन मन पड़लैन्ह जे कपड़ा त बाँकिए रहि गेल। दौड़ल 'फैंसी स्टोर' गेलाह। ओतय साड़ी और 'ब्रेसरी' पसन्द कैलन्हि। दाम भेलैन्ह पैंतालिस टाका। आब ई टाका कतय सॅं आबय?

मधुकान्त बाबू 'होस्टल' आबि कऽ जीवछलाल दासक कोठरी मे गेलाह। ओतय एकान्त मे गम्भीर मुद्रा बना कहलथिन्ह-दासजी, एकटा बड्ड जरूरी काज सॅं आएल छी।

दासजी 'मेस'क मैनेजर छलाह। कोन 'बोर्डर' सॅं कतेक रुपया वसूल भेल छैक और ककरा जिम्मा कतेक बाँकी तकर हिसाब करय मे लागल छलाह। कहलथिन्ह -कोन काज अछि? अहूँक नाम पर किछु बकाया अछि।

मधुकान्त बाबू कहलथिन्ह- हमरा गाम सॅं एक चिट्ठी आएल अछि। कचहरी मे छॅआलीस रुपया पन्द्रह आना दाखिल करब जरूरी छैक। रुपया पठौने छथि। से काल्हि पहुँचत। ताबत मेसक रुपया मे सॅं दऽ कऽ हमर काज चला दियऽ। काल्हि मनिआर्डर आओत त पछिला बकाया समेत जोड़ि कऽ लऽ लेब।

दासजी किछु चिन्तित होइत बजलाह- मेस मे त 'फीस्ट' (भोज) होबय लेल छैक। खैर, अहाँ कैं तेहने जरूरी अछि त रुपया लऽ जाउ, लेकिन काल्हि 'मेस'क 'एकाउन्ट' (हिसाब) बेमाक कऽ देबय पड़त।

मधुकान्त बाबू रुपया लय, अपना 'फ्रेंचकट' पर ताव फेरैत, सोझे ' फैंसी स्टोर'क बाट धैलन्हि और पसन्द कैल वस्तु लऽ ऎलाह।

जखन सभ वस्तु सूटकेस मे तहिया कऽ राखय लगलाह त मन मे ऎलैन्ह- ई सासुर बला सूटकेस नेने जाएब से ठीक नहि हैत। नर्मदेश्वर कैं 'लेदर' बला 'सूटकेस' छैक, सैह लऽ आबी।

मधुकान्त बाबू चमड़ाक सूटकेस माङि कऽ लऽ ऎलाह। किन्तु ओहि मे एक वातक गड़बड़ भऽ गेलैन्ह। ऊपर मे पुष्ट अक्षर सॅं लिखल रहैक एन झा। मधुकान्त बाबू अपना मन मे समाधान कैलन्हि-एम और एन मे कनेके भेद होइ छैक। केओ पूछत त कहि देबैक जे एम केर अन्तिम रेखा मेटा गेने एन जकाँ बूझि पड़ैत अछि।

तदुत्तर अपन रिस्टवाच पर ध्यान गेलैन्ह। ईहो त सासुरेक देल थीक। तखन एकरो किऎक ने बदलि लेल जाए? सभ सॅं बढिया 'डिजाइन'क घड़ी सुरेश कैं छैक। दू- चारि दिनक हेतु कि अदला-बदली नहि करत?

मधुकान्त बाबूक ईहो अभीष्ट सिद्ध भऽ गेलैन्ह।

तखन एकटा और सिहन्ता भेलैन्ह। यदि ककरो सॅं ग्रामोफोन भेटि जाइत त सासुर नेने जैतहुँ। हाय-हाय! यदि फगुआक अवसर पर ग्रामोफोन नहि लऽ गेलहुँ त किछु नहि।

मधुकान्त बाबू दौड़ल वृन्दावन बिहारीक कोठरी मे गेलाह। कहलथिन्ह- हमरा गाम पर काल्हि भातिजक उपनयन अछि। दू दिनक हेतु अपन ग्रामोफोन दियऽ। हम खूब हिफाजत सॅं नेने आएब।

वृदावन कहलथिन्ह-लऽ जाउ। किन्तु अपने 'चार्ज' मे राखब। रेकार्ड सभ जे पसन्द हो से छाँटि लिय।

अन्हरा चाहय दुनू आँखि। मधुकान्त बाबू चुनि-चुनि कऽ एक सॅं एक लहरदार रेकार्ड बहार कऽ लेलन्हि।

आब मधुकान्त बाबूक ठाठ पूर्ण भऽ गेलैन्ह। प्रसन्न भय सोचय लगलाह- 'एहि ग्रामोफोन कैं चारू कात सॅं घेरि कऽ सासुरक रसिका स्त्रीगण बैसइ जैतीह। युवती जेठसारि, सरस-सरहोजि, विनोदिनी विधिकरी। सभ त हमरे मे लपटाएल रहतीह। तखन नडुआरबला लग के बैसतैन्ह?

'हॅं और की सभ लऽ चली जे सासुर मे रंग जमि जाय! ओतय हाथ मटियाबक हेतु एकटा साबुन और मुँह धोबक लेल ब्रश लऽ चलक चाही। जखन खबासिन दतमनि लऽ कऽ आओति त हम डाँटि कऽ कहबैक - यू सिली गर्ल (गमार लड़की) ! कूची लाओ ।

'हॅं, संदेश मे की नेने जाइ ? हम त नरुआरबला जकाँ देहाती त छी नहि जे एक छिट्टा साँच-पिडुकिया नेने जैबैन्ह, नवहथ बालीक खातिर बिसहत्थी साड़ी । छिः ! केहन-केहन देहाती लोक दुनियांँ मे होइत अछि ? एहि ठाम सॅं तेहन-तेहन मिठाइ नेने चली जे ओहि ठाम केओ देखनहुँ नहि होए । 'जैम', 'जैली' , 'मार्मलेट', 'चाकलेट' ....।

'और एहिठाम छुरी-काँटा सॅं पावरोटी खाइ छी से ओतुका लोक कोना बुझत ? एकटा नेने चली । विधिकरी पुछतीह - ओझा ई की थिकैक ? तखन कहबैन्ह - ई 'लोफ' कहबैत छैक । एहि मे मक्खन मिला कऽ साहेब सब 'छोटा हाजिरी' करैत अछि । एना छुरी सॅं काटि कऽ एना काँटा मे देल जाइक छैक । ई देखि चकित विधिकरीक नेत्र और गाल कोना चमकि उठतैन्ह ?'

एहि तरहक आनन्दमय कल्पना करैत मधुकान्त बाबू नाना प्रकारक वस्तु लऽ एलाह ।

राति मे कोठरी मे बन्द भय सभ वस्तु पसारलन्हि । रंग-विरंगक शीशी और डिब्बा सॅं घर चमकि उठलैन्ह । मनोहर खुशबू सॅं मन मस्त भऽ गेलैन्ह । ओ भिन्न-भिन्न आकार-प्रकारक कंचुकी सभ हाथ मे लय उनटा-पलटा कऽ देखय लगलाह । गुलाबी, अंगूरी, नारंगी, बैगनी ! कोनो साँपक केचुआ जकाँ पातर, झलझल करैत ! कोनो केराक वीर जकाँ कोमल, छलछल करैत ! प्रत्येक सपरीक खप्पा जकाँ दू-दू ठाम अलगल !

मधुकान्त बाबूक कल्पना मे रस आबि गेलैन्ह । नवयौवना 'चमेली' । पुर्णयौवना 'रेशमी' । पुष्टयौवना 'अनारकली' । उत्तंगयौवना 'मालदहवाली' सभक चित्र आँखि मे नाचि उठलैन्ह ।

एहि मे कोन किनका अटतैन्ह ? मधुकान्त बाबू कैं अँटकर लगैबा में अपूर्व माधुर्य भेटय लगलैन्ह । ओ एहि रस मे निमग्न छलाह कि बाहर केबार पर ठक-ठक शब्द भेलैन्ह । ओ झटपट चारु 'ब्रेसरी'क उपर 'चैम्बर्स डिक्शनरी' राखि केबाड़ फोललन्हि ।

सुपरेंटेंडेंट पुछ्लथिन्ह - योर मदर इस सिरियसली इल ? ह्वाट डज शी सी सफरिंग फ्रॉम ? (अहाँक माय बेशी दुखित छथि ? की होइत छैन्ह ) ?

मधु० - फ्रॉम एपेण्डिसाइटिस सर (हुनका अँतरीक भीतर घाव भऽ गेल छैन्ह ) ।

सुप०- देन यू आर लीविंग बाइ द मॉर्निग ट्रेन ? (तखन अहाँ भिनसरुका गाड़ी सॅं जाय चाहैत छी?)

मधु.- यस सर (जी हाँ)।

सुपरेंटेंडेंटक गेला उत्तर मधुकान्त बाबू पुनः केबाड़ बंद कय यत्नपूर्वक सभ वस्तु तहिया-तहिया कऽ सूटकेस मे साँठय लगलाह। ओहि आगाँ भूखो-पियास बिसरिग गेलैन्ह । उल्लासक मारे ओहि राति दू कौर सँ बेशी नहि खा भेलैन्ह । सभ किछु समतूल भेला पर आधा रातिकऽ ओछाओन पर गेलाह । परन्तु निंद किऎक पड़ितैन्ह? यदि ओहि राति निंदे पड़ि जइतैन्ह त ओतेक रासे सिनेमाक फिल्म किऎक देखलन्हि?

ओ कवित्वमय कल्पनाक तरंग मे प्रवाहित होमय लगलाह -

'अर्धविकसित बेलीक कलि सन कोमल पत्नी! चन्द्रकलाक फूल सन मधुर जेठसारि। प्रस्फुटित गुलाव सन प्रफुल्ल सरहोजि। शतदल कमल समान विकसित विधिकरी। जुआएल सूर्यमुखीक फूल सन दलगरि मालदहवाली। सासुर की थीक? एक मनोहर उपवन। एक विशाल कमलदह। जाहि मे रंगविरंगक कमल फुलाएल रहैत अछि। कोनो छोट, कोनो पैघ। जे जी मे आबय से तोड़ि लियऽ। अथवा सूँघि कऽ छोड़ि दियऽ।,

तावत 'सिनेमा हाउस'क गीत कान मे पड़लैन्ह। मधुकान्त बाबूक कल्पना मे रंगीन पाँखि लागि गेलैन्ह।

'हमहुँ ओतय पहुँचि कय एहिना ग्रोमोफोन बजाएब। चारूकात सॅं चंचला तरुणी सभ घेरि कय बैसइ जैतीह। सभ यौवनक ज्योति सॅं जगमग करैत। केओ कोमल आंगुर सॅं सुइ बहार करतीह। केओ चूड़ी खनखनबैत चाभी घुमौतीह। केओ अपना आँचर सॅं रेकार्ड पोछि कऽ हमरा हाथ मे देने जैतीह। और हम अंग्रेजी गाना वजाबय लागब। युवतीगण बजतीह- हमरा लोकनि त किछु बुझबे नहि करैत छिऎक। देशी गीत चढबियौक। तखन हम शान सॅं कहबैन्ह जे हमरा सभ हिन्दुस्तानी गाना नहि पसन्द करैत छी। 'बाॅल डान्स' (मेमक नाच) मे 'पियानो' कोना बजैत छैक से सुनू। चित्र-विचित्रक स्वर-ताल सुनि युवतीगण मे विनोदक बाढि आबि जैतैन्ह। कतेक हास-परिहास चलत!

'जखन रंग-रभस होइत-होइत बहुत राति बीति जैतैक त नवहथवाली दुरुखा सॅं किछु फराके ठाढि भय बेटी सभ कैं कहतीह- ऎं गे! तों सभ भरि राति रभसैते रहबैं कि ओझा कैं खोऎबो करबहुन? खाली तोरा सभ कैं देखले सॅं त पेट नहि भरतैन्ह।

विधिकरी दाइ अपन गोर बाँहि उघारि, शरबती चूड़ी कैं कनेक ऊपर खसका, चम्पकवर्ण हाथ सॅं ठाम करय बैसतीह। तखन हम कहबैन्ह- एकर कोन काज? हमरा लोकनि त कुर्सी-टेबुल पर बैसि कय खायबला छी। एही ठाम पलग लग 'स्टूल' धऽ दियौक।

'रसमयी अनारकली शरबत लऽ कऽ पहुँचतीह। हम कहबैन्ह- पहिने एकरा और बेशी मधुर बना दिऔक तखन हम पिउब। ओ कहतीह - से कोना? तखन हम शीशाक गिलास हुनका अधर मे लगा देबैन्ह। ओ चकित भऽ कहतीह-छोड़ि दियऽ। हम कहबैन्ह-चोरिएक रसपान मे त आनन्द छैक।

'बिजलीक बल्ब जकाँ चमकैत रेशमी दाइ तश्तरी मे मालपुआ लऽ कऽ औतीह। मधुमकरन्दशालिनी मालदहवाली बाटी मे मलाइ नेने पहुँचतीह। हम कनेक मालपुआ खोंटि कऽ कहबैन्ह जे आब भूख नहि अछि। तखन रेश्मी दाइ छमछम करैत कहतीह-वाह रे वाह! से कोना हैत? एना लजाइ छी किऎक?

'ओ जबर्दस्ती हमर हाथ धऽ मालपुआ पर लय जैतीह। हम एक रत्ती छुबि कय पुनः हाथ बारि लेबैन्ह। तखन दोलायमान मधुकलश सॅं तरंगायित अंचल कैं सम्हारैत, माहदहवाली आगाँ बढतीह। रस सॅं छलकैत छाल्हीक प्याला आगाँ करैत कहतीह - वाह! एखन मलाइ त बाँकिए अछि।

'ई कहि ओ छलछल कऽ भरलो प्याला छाल्ही मालपुआ पर उझीलि देतीह और रसमलाइ सानि-सानि बरजोरी हमरा खोआबय लगतीह। अहा! माधुर्यक लहरि आबि जाएत! रस सॅं उजबुज भऽ जाएब।'

मधुकान्त बाबू उत्तेजित भऽ फगुआक रंगीन दृश्य देखय लगलाह-'जखन चंचला युवतीगण फगुआ खेलाय औतीह त रंग सॅं नहा देबैन्ह। सम्पूर्ण रेश्मी कैं फोहारासॅं शराबोर कय देबैन्ह। तारुण्य सॅं अरुणायित अनार कैं कुमकुमक वर्षा सॅं लाल कऽ देबैन्ह। मत्त हस्तिनी जकाँ गजकुंभक भार सॅं थलथल करैत मालदहवाली आगाँ औतीह तनिका तिकाय पिचकारी छोड़बैन्ह। तखन कतेक रसक स्रोत फूटि पड़त? थइ-थइ भऽ जाएत। '

मधूकान्त बाबू आँखि मूनि कऽ ओहि रसक तरंग मे ऊबडूब होबय लगलाह। नाना प्रकारक रंगीन चित्र मन मे आबय लगलैन्ह। कुल चारि राति रहबाक अछि। एहि मे सभ किछु भऽ जैबाक चाही। कोन वस्तुक उपयोग कोन ठाम, कोन समय मे करक चाही, यैह प्लैन (कार्यक्रम) बनबैत राति बीति गेलैन्ह।

तखन मधुकान्त बाबू मुँह- हाथ धो 'शेव' कैलन्हि(दाढि बनौलन्हि) और 'सूट' पहिरक हेतु ऎलाक सामने ठाढ भेलाह। 'हैट' लगा कऽ देखलन्हि।

'जखन ई टोप सासुर पहुँचत त धियापुता देखितहि पड़ाएत। वृद्ध स्त्रीगण विस्मित भय पुछथिन्ह-है, ई कोन साहेब थिकैक?

'तखन तरुणीवर्ग सॅं उत्तर भेटतैन्ह- ई त फूल बाबूक जमाय थिकथिन। भारी दर्जा मे पहुँचि गेल छथिन्ह तैं टोप लगौने छथिन्ह।

'नडुआरबला पाग पहिरि कऽ जैताह। ओहि बेचारे कैं के पुछतैन्ह?

मधुकान्त बाबू साहेब बनि, सभ सामान सॅं लैस भय स्टॆशन जैबाक हेतु रिक्शा पर चढलाह। 'वार्ड सर्वेन्ट' कैं कहलथिन्ह- जाओ, एक घड़ा पानी भरकर ले जाओ।

मेसक 'कूक' कैं आर्डर देलथिन्ह-एक छाँछ दही लाकर दिखला दीजिए।

ई सभ सगुन कय मधुकान्त बाबू नवीन उमंग सॅं सासुरक यात्रा कैलन्हि। आब देखा चाही आगाँ जा कऽ केहन फल भेटैत छैन्हि।

मधुकान्त बाबू एगारह बजे घोघरडीहा स्टेशन उतरलाह त एकटा देहाती एक्का भेटलैन्ह। एकमान कहलकैन्ह जे दू बजे तक पहुँचा देब।

ई सुनि मधुकान्त बाबु कैं खुशी नहि भेलैन्ह । किऎक त रसिक व्यक्ति प्रायः सूर्यास्त सँ पहिने सासुर पहुँचक नहि चाहैत छथि । रात्रिक पद्यमय अन्धकार मे गेने 'ड्रामाटिक एफेक्ट' (नाटिकीय प्रभाव) पड़ैत छैक । दिनक शुष्क गद्यमय समय मे ओ रोमांस कहाँ! दोसर बात जे 'साहेबी ड्रेस मे ओहन टिकटिकही एक्का पर चढल लोक देखत त की कहत? राति मे त ककरो बूझि नहि पड़तैक!

ई विचारि मधुकान्त बाबू एकमान कैं नाश्तापानी और इनामक लोभ दय, दिन भरि रोकने रहलाह और साँझ कऽ एक्का पर सवार भेलाह जे ठीक 'रोमांस' क समय सासुर पहुँचि जाइ ।

आब एक्काक हाल सुनू । ओ 'एक्का' नाम सार्थक करैत छल । अर्थात एकटा कोनो वस्तु लादू । एकमान ग्रामोफोन लादय त सूटकेश नहि अटैक । सूटकेश लादय त बैसबाक जगह नहि भेटैक । अस्तु , कोनो-कोनो तरहें समावेश भेलैक ।

जखन साहेब बहादुर बैसि गेलाह त छौ घंटाक गरमाएल घोड़ा अपन करामात देखाबय लगलैन्ह । एकमानक तीन बेर टिटकारी देला पर ओ एक डॆग बढय । और दू डेग आगाँ बढ़ला उत्तर चारि डेग पाछाँ हटि जाय । चाबुक लगला पर जाहि दिशि खाधि देखय ताहि दिशि कऽ मुँह करय । एहि चालि सॅं कोसे भरि जाइत-जाइत पहर राति बीति गेलैन्ह ।

मधुकान्त बाबू त्रैराशिक लगा कऽ देखलन्हि जे यदि यैह गति रहल त 'सासुर बाड़ी' पहुँचैत-पहुँचैत 'ठाकुर बाड़ीक' घड़ी-घंट बाजि जाएत । तखन त सभ 'रोमांस' बाटे मे समाप्त भऽ जाएत ।

एक्काक मंथर गति देखि मधुकान्त बाबूक धैर्य नष्ट होमय लगलैन्ह । परन्तु घोड़ा कैं कोन सासुर पहुँचबाक अगुताइ रहैक ? ओ एक चौराहा पर जा कऽ जे अड़ल से की समधी विदाइक हेतु अड़ताह !

साहेब बहादुर कहलथिन्ह - लगो कसि कऽ चारि सटका ।

सटका लगला पर घोड़ा और बेशी दुलत्ती झाड़य लागल । आब साहेब बहादुर कैं नहि रहि भेलैन्ह । ओ खिसिया कऽ एक 'बूट' लगौलथिन्ह ।

ठोकर लगैत देरी घोड़ा तेहन अलफ उठौलक जे एक्का ठामहि उनटि गेल ।और साहेब बहादुर आकाश सॅं पृथ्वी पर आबि गेलाह । घोड़ा अपन छान पगहा तोड़ि कऽ जे पड़ाएल से सरपट भागले चल गेल । एम्हर तर मे साहेब बहादुर, उपर सॅं रेकार्डक डब्बा , ताहि पर एकमान , तकरा उपर एक्का । यैह नक्शा करीब दू मिनट धरि बनल रहल ।

साहेब बहादुर पर अनभ्र बज्रपात भेलैन्ह । इस्त्री कराओल सूट माटि मे मिलि शान कैं माटि मे मिला देलकैन्ह । रेकार्ड सभ चूर-चूर भय सकल मनोरथ कैं चूर-चूर कय देलकैन्ह ।

दू मिनटक बाद एकमान ससरि कऽ निकसल और साहेब बहादुर कैं एक्काक तर सॅं बाहर कैलकैन्ह । चमड़ाक सूटकेश हत्ता मे ओङढ़ा गेलैन्ह । ओकरा खोलि कऽ टार्च सॅं देखलन्हि त साहेब बहादुरक रहलो सहल धैर्य नष्ट भऽ गेलैन्ह । अबीर और गुलाबजल मिलि कय सभ कपड़ा पर होरी खेला देने छलैन्ह । रेशमी साड़ी पर 'लाइमजूस' क श्वेत धारा टघरि कऽ आलताक लाल रंग सॅं एकाकार भऽ रहल छलैन्ह । धोआएल धोती पर 'शैम्पू' और सोहागविंदिक रस परस्पर संयोग कऽ रहल छल । 'सेंट' क शीशी फूटि कऽ 'ब्रेसरी कै तर कऽ देने छल ।

साहेब बहादुर जी मसोसि कऽ रहि गेलाह । ओ जाहि वस्तु सभक उपयोग अपना हाथ सॅं करितथि से स्वयं भगवाने कऽ देलथिन्ह । अपन सोचल 'प्रोग्राम' श्वशुरग्राम धरि नहि पहुँचि सकलैन्ह !

झमेली साहु अपन टूटल एक्का तजबीज करैत बाजल-'एक्का त बेकार भऽ गेल। एकटा पहिये टूटि गेलैक। आब ई आगाँ नहि बढि सकैत अछि।' ई कहि ओ घोड़ाक तलाश मे चलल।

आब साहेब बहादुर कैं आकाशक तारा सूझल लगलैन्ह। ओ निरुपाय भय एकमानक गट्टा धैलन्हि और अपन सभ क्रोध ओकरे पर उतारय लगलथिन्ह- इडियट (बेवकुफ)! उधर कहाँ जाता है? हमरा पाँच सौ रुपए का नुकसान किया। अभी पकड़कर थाना ले चलते हैं। तुम पर 'डैमेज सूट'(हर्जाना) दायर करेंगे। जानता नहीं कि हम कौन हैं?

साहेब बहादुर ओकरा खिचैत-तिरैत लय चललथिन्ह। एकमान कहलकैन्ह- बेश, लऽ चलू जहाँ लऽ चलब। हम की जानि-बुझि कऽ एक्का उनटौलहुँ अछि? अहीं त जूताक ऍंड़ा मारलिऎक। हमर पूँजिए चौपट भऽ गेल।

साहेब बहादुर लऽ त चललथिन्ह, किन्तु मन मे विचारलन्हि जे एहिठाम ग्रोमोफोन और सुटकेस के ओगरत? एकमान कैं कहलथिन्ह- सब चीज उठाकर ले चलना होगा।

आब एकमानो अड़ि गेलैन्ह- हम कुली नहि छी जे सामान ढोएब।

साहेब बहादुर ओकरा 'डैम-फूल' कहैत एक 'बूट' लगौलथिन्ह। आब एकमानो कैं ताड़ीक नशा जोर कैलकैक। ओ लपकि कऽ नेकटाइ समेत गरदनि पकड़ि लेलकैन्ह। साहेब बहादुर देखलन्हि जे एकमान बुतगर अछि और एहि ठाम लग मे गामो-घर नहि छैक जे चिचिऎला पर लोक जमा भऽ जाएत। अतएव एकरा सॅं लागब ठीक नहि हैत।

ताबत नशा सॅं बुत्त भेल एकमान साहेब बहादुर कैं ततेक जोर सॅं धकेलि देलकैन्ह जे ओ चित्ते खसि पड़लाह। टोप, चश्मा ओ मङनीक घड़ी चकनाचूर भऽ गेलैन्ह।

एकमान अपन एक्का गुड़कबैत 'यैह ले वैह ले' पार भऽ गेल।

साहेब बहादुर कैं होश भेलैन्ह त डाँड़ धऽ कुहरय लगलाह। आब की लऽ कऽ सासुर जैताह? सकल करण-उपकरण व्यर्थ भऽ गेलैन्ह। सासुरक सीमा पर आबि तेहन आसुर प्रयोग भेलैन्ह जे सभटा श्रृंगार-भाव श्रृंगारहार जकाँ चूबि गेलैन्ह। जहाँ रसमय रंगक्रीड़ा हौइतैन्ह तहाँ असमय धूलि क्रीड़ा भऽ कऽ रहि गेलैन्ह। जे कपार रोड़ी सॅं लाल होइतैन्ह से रोड़ा सॅं लाल भऽ गेलैन्ह। जे गरदनि चमेली दाइक कोमल बाहुपाश मे पड़ितैन्ह से झमेली साहुक कठोर बाहुपाश मे पड़ि गेलैन्ह।

केवल एके बातक संतोष मन मे छलैन्ह जे ई दुर्दशा केओ देखलक नहि। यदि एहन फटीचर अवस्था मे केओ सासुरक लोक देखि लैत त कोन मुँह देखबितहुँ? ताहि लज्जा सॅं मरणे नीक।

एहि आशंका सॅं साहेब बहादुर सिहरि उठलाह। तावत किछु दूर पर कंठस्वर सुनाइ पड़लैन्ह। अकानि कऽ सुनलनि त होश गुम भऽ गेलैन्ह। ई त नडुआर वला आवि रहल छथि।

मधुकान्त बाबू कैं आब किछु सोचबा-विचारबाक अवसर नहि रहलैन्ह। झट दऽ थकुचल टोप हाथ मे उठा, नङड़ाइत-नङड़ाइत राहरिक खेत मे जा नुकैलाह।

जखन नडुआरवला ओहिठाम पहुँचलाह त निर्जन सड़कपर ग्रामोफोन देखि धमकि गेलाह। भरिया कैं कहलथिन्ह- रौ! देखहीक त, एहिठाम लोक-वेद केओ नहि, ई वस्तु सभ ककर छैक? हाक पाड़ही त।

भरिया दू-चारि हाक पाड़लक किन्तु कोनो उत्तर नहि।

नडुआरबला आगाँ बढि कहलथिन्ह-रौ, एकटा सूटोकेस देखैत छिऎक। प्रायः मालिक नदी दिशि गेल हैतैक। थोड़ेक काल देखि लेबाक चाही।

परन्तु केओ कतहु नहि। भरिया थरथर कॅंपैत बाजल- सरकार, आब हमरा डर होइत अछि। एहि बाध मे कोस भरि कोनो गाम घर नहि। सामने जे गाछी देखैत छिऎक से भुतही गाछी छैक। ओहि भूतक ई कारवाइ अछि। आब हमरा लोकनिक जान बाँचब कठिन।

नडुआरबला डाँटि कऽ कहलथिन्ह-रौ! भूत-तूत किछु नहि। कोनो एक्का एहि बाटे गेलैक अछि। चिन्ह देखि लहीक। प्रायशः ओही पर सॅं ई सभ खसलैक अछि। देखही ने, कोना ढङरायल छैक। साढू आबय लेल छलाह। कतहु हुनके वस्तु त ने छैन्ह?

ई कहि ओ सूटकेस लग ऎलाह। मधुकान्त बाबूक छाती धड़कय लगलैन्ह।

नडुआरवला बजलाह- नहि, हुनकर नहि छैन्ह- एहि पर एन. झा लिखल छैक। हुनकर नाम त मधुकान्त छैन्ह। ई कोनो दोसर व्यक्तिक थिकैक।

मधुकान्त बाबूक जी आश्वस्त भेलैन्ह। नडुआरबला सूटकेस कैं तजबीज करैत बजलाह-रौ, ई फूजल छैक। ई निश्चय कोनो चोरक काज थिक। हमरा लोकनिक आहट पाबि भागि गेल हैत। कतहु एहि राहरि मे त ने नुकाएल छौक?

मधुकान्त बाबू और बेशी झोंझक बीच मे नुका रहलाह।

नडुआर बला सूटकेस खोलि कऽ देखलन्हि त 'सेंट'क खुशबू सॅं मिजाज तर भऽ गेलैन्ह। बजलाह-ककरो रहौक। आब ई माल लावारिस थिक। एहिठाम पड़ल रहतैक त केओ ने केओ उठा कऽ लइए जैतैक। ताहि सॅं हमही किऎक ने नेने चली? चोरक धन छिपारे खाय।

ई कहि ओ पुनः एक बेर उच्च स्वर सॅं गर्द कैलन्हि-हौ बाबू! जकर हौऔक से आबि कऽ अपन वस्तु लय जाह। नहि त हम यैह नेने जाइत छियौह।

भरिया कैं कहलथिन्ह- बहिड़ा उतार। पकमानक चॅंगेरा तर सूटकेस लादि ले और दहीवला मटकूर पर ग्रामोफोन राख। जखन अनायासे धर्मसाँप खसि पड़ल अछि त छोड़ब किऎक?

भरिया सभटा वस्तु लादि लेलक और मधुकान्त बाबूक छाती पर कोदो दलैत दुलकी लगौलक। साहेब बहादुर चुपचाप देखैत रहि गेलाह और हुनकर ओतेक यत्न सॅं संचित अमूल्य निधि लुटा गेलैन्ह। जाहि शस्त्र सॅं ओ सासुर मे विजय प्राप्त करितथि से अनका हाथ मे पड़ि गेलैन्ह। सेहो के त असली प्रतिद्वन्द्वी!

मधुकान्त बाबू सन्तापक ज्वाला मे दग्ध होमय लगलाह।

जखन निर्जन भऽ गेलैक त मधुकान्त बाबू राहरि सॅं बहरैलाह और रातोराति पुनः स्टेशन पहुँचलाह। ओतय चोर जकाँ वेटिंग रूम मे नुका रहलाह। अन्हार मे खाली बेंच पर ओठङि, भावनाक तरंग मे भसियाय लगलाह- 'हाय हाय! की सोचने छलहुँ और की भऽ गेल!,

'आइ राति सासुर मे की-की नहि भेटैत? एखन एकान्त शयनागार मे पलंग पर ओठङल रहितहुँ। गुलगुल तोशक पर मलाइ सन चिक्कन चादर रहैत। स्वीट ड्रीम वला तकेया पर माथ देने मधुमयी चमेली देवीक प्रतीक्षा करैत रहितहुँ। एकाएक मृदुल पाजेबक झंकार सुनि पड़ैत। हम निःशब्द भऽ मुँह झाँपि पड़ि रहितहुँ। ओ नहूँ- नहूँ आबि कऽ हमरा मुँह पर सॅं चादर हटबितथि। हम व्याज-निद्रा मे पड़ल रहितहुँ। तखन ओ कलबल हमरा देह पर निहुरि कऽ बैसि जैतथि। फुलाइत चमेलीक मधुमय सौरभ सॅं सम्पूर्ण शय्या गमगम कऽ उठैत। जवाकुसुम सॅं सींचल नागिन हमरा ऊपर लहराय लगैत। ताबत जाँघ मे उड़ीस काटि लेलकैन्ह। साहेब बहादुर छिलमिला उठलाह। कल्पनाक रंगीन तार टूटि गेलैन्ह। आब वस्तुस्थिति पर ध्यान गेलैन्ह- बेंच मे उड़ीस भरल अछि। कोठरी मे मच्छर भनभना रहल अछि। खिड़की सॅं सर्द पुरबाक लहरि आबि रहल अछि।

मधुकान्त बाबू जाड़ सॅं ठिठुरय लगलाह । भूखें अँतरी कुलबुलाय लगलैन्ह । जेबी मे हाथ देलन्हि त पावरोटी बहरैलैन्ह । छिः छिः । कहाँ ओ रेशमी दाइक मधुर मालपुआ ! मालदहवालीक सरस मलाइ ! और कहाँ ई सुखाएल पावरोटी ।

मधुकान्त बाबू ओकरा खिड़कीक बाहर फेकलन्हि । पुनः प्रकृतिस्थ भेला उत्तर पछताबय लगलाह - आब एहिठाम की खायब ? घोघरडीहाक घुघनी ?

साहेब बहादुर कैं नरुआरवलाक मौज दिशि ध्यान गेलैन्ह । ओ एखन सासुरक मालपुआ पर हाथ फेरैत हैताह । मलाइक रस लैत हैताह, और हम एहि ठाम बैसल मच्छर मारैत छी । ओ कोबरक आनन्द लैत हैताह और हम एहि हवालात मे पड़ल छी । हमर जाँघ कचकि रहल अछि से केओ ससारय वला नहि । ओतय नरुआरवला कैं मालिश होइत हैतैन्ह ।

साढुक सौभाग्य सोचि-सोचि मधुकान्त बाबु क कूही होमय लगलैन्ह । जतेक अधिक सोचथि ततेक अधिक ज्वाला बढल जाइन्ह ।

ताबत कतहु सॅं फगुआ सुनाइ पड़लैन्ह । देहाती सभ डंफ-झालि पर धमार उड़ौने छल -

कंत हमर नहि ऎला सखी ! ककरा संग खेलू अबीर !

मधुकान्त बाबूक करेज पर डंफो सॅं बेशी चोट पड़य लगलैन्ह । ओ बाहर प्लेटफार्म पर आबि टहलय लगलाह ।

ताबत लाइन क्लियरक घंटी पड़लैक । तमुरिया सॅं गाड़ी छोड़लक । निशीथकालीन नीरव स्टेशन किछु क्षणक हेतु मुखरित भऽ उठल ।

मधुकान्त बाबु पुनः गाम कोना गेलाह ? इम्तिहानक नाम पर कोनो तरहें घर सॅं रुपैया झिटलन्हि ? और होस्टल पहुचला उत्तर जीबछलाल दास तथा वृन्दावन बिहारी सॅं कोन तरहें फरिऎलैन्ह ? सभ वृत्तान्त लीखब एहि कथाक उद्देश्य नहि ।

नौ मासक बाद मधुकान्त बाबू कैं पुनः सासुर जैबाक मौका भेटलन्हि । किएक त बाप लिखलथिन्ह जे अग्रहण शूदि पंचमी कैं द्विरागमनक दिन होइत छौह । हम दुःखित छी । एहि ठाम सॅं केओ नहि जा सकतौह । तों अपने जा कऽ बिदागरी करौने अबिहऽ । विधि-व्यवहारक हेतु 'मनिआर्डर' जाइत छौह । फिहरिस्तक मोताबिक वस्तु सभ कीनि कऽ नेने जैअऽहौक ।

जे रोगी के भाबय से वैदा फरमाबय ! मधुकान्त बाबू साड़ी लहठीक देहाती फिहरिस्त कैं फाड़ि रद्दीक टोकरी मे फेकलन्हि । और अपना मन सॅं लिस्ट तैयार करय लगलाह - 'लेडीज वाच', 'हाइहील शू' , 'व्यूटी बाक्स', (जनानी हाथक घड़ी। ऊँच एँड़ीक जूता , श्रृंगार मंजुषा) इत्यादि ।

एहि बेर एक संगी सॅं फोटोक 'कैमरा' और दोसरा सॅं बन्दुक मॅंगनी कैलन्हि । तखन शिकारी सूट पहिरि, हाथ मे चाबुक घुमबैत, शान सॅं सासुर पहुँचलाह ।

सासुर पहुँचि साहेब बहादुर चारि दिन धरि जेहन आतंक जमौने रहलाह तकर वर्णन एहि लेखनीक सामर्थ्य सॅं बाहर अछि ।

परन्तु भाग्यो त कोनो वस्तु थिकैक । नहि त माछ रन्हैला उत्तर ककरो छुतका किऎक पड़ि जाइत छैक ? परसल रसगुल्ला पात पर सॅं किऎक गुडुकि जाइत छैक ?

सैह अदृष्ट मधुकान्त बाबू कैं सासुर पहुँचलो उत्तर एकाकी शयन करबा पर बाध्य कैलकैन्ह । पुष्पधन्वाक पाँचो वाण पर 'कंट्रोल' क मोहर लागि गेलैन्ह ।

तीन राति धरि ओ ब्रह्मचर्यक आनन्द लैत रहलाह । सामाजिक नियमवश एको क्षणिक हेतु भेंटो नहि भऽ सकलैन्ह । और चारिम राति जहिया भेंट होइतैन्ह तहिया दिनगरे विदागरी भऽ गेलैन्ह । मधुकान्त बाबूक सकल संचित मनोरथ बारुदक गोली जकाँ बन्द भेल स्टेशन पहुचलैन्ह । आब एके बेर ट्रेन मे बम फुटतैन्ह ।

'वेटिग रुम' मे मधुकान्त बाबु 'हुनका' सुना कय अपना छोटका सार कैं कहलथिन्ह - देखू , रेल मे अहाँक बहिन कैं 'अपडुडॆट लेडी' (सुसंस्कृत महिला) जकाँ बैसय पड़तैन्ह । केओ चिन्हार त रहतैन्ह नहिए । 'फर्स्ट क्लास' मे हमरा संग बैसतीह । कनेको धखैबाक काज नहि ।

मधुकान्त बाबू कैं एके भावना नृत्य करय लगलैन्ह जे - हे भगवान कहुना 'फर्स्ट क्लास' खाली आबय । तखन वाइफ कैं कालेज गर्ल बला फैशन बना कऽ फोटो खिचबैन्ह । गाम पर एखन मौका कहाँ भेटत ? यदि ई नहि भेल त एकान्त यात्राक आनन्दे की ?

बारह बजे राति कऽ जखन ट्रेन आयल त मधुकान्त बाबु खबासिन, भरिया, तथा छोटका सार कैं सब समान सहित दोसर डब्बा मे चढ़ा देलथिन्ह और अपना हाथ मे बन्दुक लय, 'वाइफ' क हाथ मे कैमरा धरा, 'फर्स्ट क्लास' मे आबि कऽ बैसलाह ।

भाग्यबश डब्बा एकदम खाली रहैन्ह । मधुकान्त बाबू कैं पूर्ण स्वराज्य भेटि गेलैन्ह । आव कोन परवाहि ? दुइए स्टेशन त जैबाक अछि । निर्मली, रहरिया । और एहि बीच मे दोसर के फर्स्ट क्लास मे अबैत अछि ।

घोघरडीहा स्टेशन छुटैत देरी मधुकान्त बाबू नवबधूक घोघ हटा कऽ फेकलन्हि और कहलथिन्ह - आब ई साज-बाज और दोसर 'सेट' जे हम दैत छी से पहिरु । तखन अहाँक फोटो हैत । केवल एक घंटा 'टाइम' अछि । एहि बीच सभटा भऽ जैबाक चाही ।

मुग्धा नववधू कैं लजाइत देखि मधुकान्त बाबू स्वयं अपना हाथ सॅं मङटीका बहार कऽ देलथिन्ह । तखन पहुँची उतारैत कहलथिन्ह - ई छौ छौ टा लहठी जे अछि से बहार कऽ फेकू और 'रिस्टवाच' लगा लियऽ । लाउ हम पहिरा दैत छी । तदुपरान्त कहलथिन्ह - आव ई झालर गोटावला 'ब्लाउज' बाहर करु और हम जे दैत छी से पहिरू ।

षोडशी 'चमेली' ब्लाउज उतारबाक नाम सुनि कदम्ब-पुष्पवत कंटकित भऽ उठलीह ।

तखन मधुकान्त बाबु अधीर होइत कहलथिन्ह - एहि ठाम के देखैत अछि ? झट दऽ करू । नहि, अहाँ ओना नहि मानव ।

आब श्रीमतीजी हस्तक्षेप करैत कहलथिन्ह - बेश अहा छोड़ि दियऽ । हम अपने बाहर करैत छी ।

चमेली दाइ आब बेलीक्कली छलीह । ओ खिलि कऽ बेला भऽ गेल छलीह । मधुकान्त बाबू हुनक आशातीत अभ्यदय देखि चकित रहि गेलाह । किन्तु संगहिसंग एक भारी कठिनता पड़ि गेलैन्ह । किएक त पहिलुक अंदाज सॅं कीनल लघुकंचुकी अत्यन्त तुच्छ प्रमाणित भेलैन्ह ।

कठोर संग्राम छिड़ि गेल । एक दिशि हिंसात्मक बल प्रयोग दोसर दिशि अहिंसात्मक सत्याग्रह । अन्ततः दमनपाशक क्षुद्र परिधि विद्रोही कैं नियंत्रित करबा मे असमर्थ भेल । गवोन्नत अपराधी अनुशासनक सीमा कैं उल्लंघन कय अपना स्वाधीनताक पूर्ण झलक देखबैत रहल ।

आब मधुकान्त बाबू साड़ी सॅं युद्ध ठनलन्हि । बजलाह - हाय-हाय ! ई की देहाती जकाँ कोंचा लटकौने छी और आँचर मे धानक मोटरी बन्हने छी । छिः ! ई पीयर साड़ी खोलि कऽ राखि दियऽ और हम जे 'अंडर वीयर' दैत छी से पहिरु । ई कहि मधुकान्त बाबू एक झिलमिल पारदर्शी साया बाहर कैलन्हि ।

श्री मतीजी कटाक्ष करैत कहलथिन्ह - आब अहाँ नीक जकाँ हमरा बेपर्द करय चाहैत छी से नहि हैत । जे भेल से भेल ।

मधुकान्त बाबू खेखनिया पूर्वक बजलाह - देखू, देखू । आब कनेक लय सभ गुड़ गोबर नहि करु । आधा राति कऽ अन्हार मे बाहर सॅं ककरा सुझतैक ? हे लियऽ हम 'लाइटो' (रोशनी) मिझा दैत छिऎक । आब त भेल ?

बहुत नाज-नखराक बाद श्रीमती अपन द्विरगमनिया साड़ी खोलि कऽ फराक कैलन्हि और कहलथिन्ह - लाउ साया कहाँ अछि ?

चमेली दाइ गुलाबी साया मे पैर देने छलीह की मधुकान्त बाबू स्वीच दबौलन्हि । बिजलीक प्रकाश मे अर्धनग्न सौंदर्य सॅं मादकताक किरण फूटि पड़ल । एहि वेष मे 'वाइफ' केहन स्मार्ट (कटगरि) लगैत छथि ! मधुकान्त बाबू रूपमाधुरी पान कय छकित होमय लगलाह ।

चमेली मुस्कुरा कऽ कहलथिन्ह - आब साड़ियो देब कि तकिते रहब ?

मधुकान्त बाबूक ध्यान भंग भेलैन्ह । ओ पेयाजक खोइया सन पातर पेयाजी रंगक साड़ी बहार कैलन्हि और सिखाबय लगलथिन्ह - एकरा बङला 'स्टाइल' सॅं पहिरू । हाँ-हाँ ओना नहि । बाँहिक तर दऽ कऽ जाय दिऔक । नया फैशन मे दहिना बाँहि उघार रहैत छैक । आब चुनिया दैत छी । आँचरक फूल पीठ पर फहराइत रहत । हॅं, आब ठीक भेल ।

एवं प्रकार मधुकान्त बाबू कलापुर्ण ढंग सॅं पत्नी कैं साड़ी पहिरौलन्हि । तदुपरान्त हुनक छड़ और चट्टी बाहर कय ऊँच एँड़ीक 'लेडी शू' कोनहुना पैर मे कसि कऽ अँटा देलथिन्ह । तखन कहलथिन्ह - अहाँ स्कुलिया लड़की सन त भऽ गेलहुँ । आव चलू, तेहन 'मेकअप' कऽ दैत छी जे 'सिनेमा-स्टार वनि जायव । तखन फोटोखींचल जाएत।

मधुकान्त बाबू 'ब्यूटी बाक्स' बहार कैलन्हि और पत्नी कैं वाथरुम मे लऽ गेलाह । ओतय स्नो, क्रीम, पाउडर, लिपिस्टिक, नेल-पालिश आदि श्रृंगार सामग्रीक अमार लागि गेल ।

मधुकान्त बाबू पत्नीक नेत्रनिमीलित मुखमण्डल पर 'स्नो' लगाबय लगलाह। तहिना मनोयोग सँ, जेना कोनो पूजाक देवीक प्रतिमा पर चन्दनक अनुलेप करैत हो।

ओ देवीजीक आँखिपरक फेन पोछक हेतु तौलिया उठौनहि छलाह कि एकाएका गाड़ी रुकि गेल ।

मधुकान्त बाबू पत्नी-पूजा मे तेहन तल्लीन छलाह जे समयक गति दिशि ध्यान नहि छलैन्ह। ट्रेन कोना 'होम सिग्नल'पार कय निर्मलीक प्लेटफार्म पर पहुँचल से हुनका विदित नहि भेलैन्ह । दोसरा हुनका विश्वास छलैन्ह जे भपटयाही सँ एम्हर केओ 'फर्स्ट क्लास' मे नहिए आओत । अतएव ओ निश्चिंत भय पुनः पत्नीक प्रसाधन मे लगलाह ।

परन्तु एकान्तक सुख विधाता सँ नहि देखल गेलैन्ह । केओ दरवाजा पर धक्का मारलकैन्ह । आकस्मिक बाधा पाबि मधुकान्त बाबू स्थग्न नहि गेलाह । ई के असलिए बेर पर आबि रंग मे भंग कैलक? सभटा स्कीमे (योजने) गड़बड़ा देलक ।

तावत पुनः दरवाजा भड़भड़ाएल । मधुकान्त बाबू जळी जळी स्त्री कैं बुझाबय लगलाह - देखू, मुँह पोछि कऽ पाउडर लगा लेव। ई गाल रंगबाक 'पेन्ट' अछि । ई 'लिपिस्टिक' अछि, ठोर रँगयवला । ई 'नेल पालिश' अछि, नख रँगयवला । देखू, एको एको टा किछु छूटय नहि । आब हम जाइ छी । अहाँ भीतर मे अपन सभटा कऽ धऽ कऽ बहराएव । सभ टा बूझि लेलहुँ ने? और हँ, डब्बा मे कोनो 'जेंटलमैन' (भद्रव्यक्ति) आवि रहल अछि । तैं बहरैला पर इंगलिश 'पेपर'(अखबार) उठा कऽ पढय लागब जाहि सँ अहाँ कैं 'एजुकेटेड गर्ल'(शिक्षिता लड़की) बुझय।

ई कहि मधुकान्त बाबू फट्ट दऽ बाथरुमक केबार बाहर सँ बन्द कऽ चुरुट पजारलन्हि । ता ओम्हर दरवाजा फुजल आ कुलीक पाछाँ एक सज्जन भीतर ऎलाह ।

आगन्तुक कैं देखितहि मधुकान्त बाबू जरैत 'सिगार' मुट्टी मे बान्हि लेलन्हि । ओ पुछ्लथिन्ह - की हौ मधुकान्त । तों कतय सँ?

ई मधुकान्त बाबूक पित्ती महेश बाबू छलथिन्ह । मधुकान्त बाबू किछु संकुचित होइत हुनक पर छूवि कहलथिन्ह - द्विरागमन करौने अबै छिऎक।

महेश. - की? नीक जकाँ बिदा कैलकौह कि ने? कनेयाँ कतय छथुन्ह? जनानी गाड़ी मे?

मधुकान्त बाबूक मुँह सँ अनायास बाहर भऽ गेलैन्ह - जी हँ । अपने कतय जा रहल छिऎ?

महेश. - हमहूँ गामे जा रहल छी । एतय निर्मली मे एक गोलेदारक ओहि ठाम किछु रुपया बाँकी छल से वसूल करय आयल छलहुँ ।

ताबत गाड़ी चलय लागि गेल । महेश बाबू हुनका लग बन्दुक देखि पुछलथिन्ह - ई बन्दुको ओत्तहि देलकौह अछि ?

मधुकान्त बाबू विषण्ण होइत कहथिन्ह - जी हॅं । अपने राति मे एतेक तकलीफ कऽ कऽ किऎक बिदा भेलहुँ ? भिनसुरका ट्रेन सॅं ऎने बेशी आराम होइत ।

महेश बाबू हॅंसि कय कहलथिन्ह - लहना-तगादाक कारोबार मे आराम नहि देखल जाइ छैक । काल्हि भोरे एक खदुका कैं तीन हजार देबक अछि । यदि अपन आराम ताकय लागी त गरीबक काज कोना चलतैक ?

ई कहि महेश बाबू कान पर जनउ चढा 'बाथरूम' दिशि बिदा भेलाह ।

मधुकान्त बाबु भयभीत भय कहलथिन्ह - ओहि मे एकटा लेडी 'गेल' छथि ।

महेश बाबू पुनः अपना सीट पर बैसैत पुछलथिन्ह - केहन 'लेडी' छथि ?

मधुकान्त बाबू अनजान बनैत कहलथिन्ह - कहि ने के छथि । प्रायः कोनो बंगालिन लेडी छथि । बेस 'कल्चर्ड' (सुसंस्कृता) बुझि पड़ैत छथि ।

ई गप्प होइतहि छल की 'बाथरुम' फुजल । श्रीमतीजी फैशन कैने बहरैलीह । हुनक चेहराक रंग देखि मधुकान्त बाबूक रंग उड़ि गेलैन्ह । हे भगवान ! ई की ! सभटा चौपट कैलन्हि । नाक पर 'स्नो' लागल ! कनपट्टी पर 'पाउडर' पोतल ! गाल पर लिपिस्टिक ढेउरल ! ठोर पर 'नेल पालिश' चभरल ! हय हाय ! बहुरुपियाक बेश बना लेलन्हि !

मधुकान्त बाबू डरें दोसर दिशि ताकय लगलाह । चमेली दाइ दुहू हाथे 'व्यूटी बाँक्स' नेने कशल जूता मे कष्टपूर्वक तौलि-तौलि कऽ डेग दैत आगाँ बढलीह । किन्तु ओहन ऊँच एँड़ी पर 'बैलेंस' ठीक नहि रहि सकलैन्ह । पैर लड़खड़ाइत देरी ओ नचैत-नचैत 'ब्यूटी बाॅक्स' नेने- देने, महेश बाबूक आगाँ जा खसलीह। हड़बड़ा कऽ उठय लगलीह कि ओतेक विन्यासपूर्वक लपेटल चिक्कन 'जारजेट' साँपक केचुआ जकाँ ससरि कऽ फराक भऽ गेलैन्ह। आब मधुकान्त बाबू कैं बूझि पड़लैन्ह जे पुरुषक हाथ सॅं बान्हल साड़ीक गेंठि बेशी काल नहि टिकि सकैत अछि।

ककाजी एक बेर कनछिया कऽ श्रीमतीजी दिशि तकलथिन्ह और मुसकुरा कऽ अपन कागज देखय लगलाह। मधुकान्त बाबू पर नौ मन पानि पड़ि गेलैन्ह। हे भगवान! सभटा कैल-धैल व्यर्थ भऽ गेल।

दू मिनट बाद मधुकान्त बाबू किछु आश्वस्त भेलाह। किऎक त श्रीमतीजी आब अपना सीट पर जा चुपचाप अखबार लऽ कऽ बैसि गेलीह। मधुकान्त बाबू कैं सन्तोष भेलैन्ह जे खैर, आब अंगरेजी पेपरक अढ मे सभ टा दोष छपि जैतैन्ह।

परन्तु हे भगवान! ई की? श्रीमतीजी उनटे 'सर्चलाइट' हाथ मे लय पढय लगलीह। कोना संकेत कैल जाइन्ह जे सुनटा लियऽ। ककाजी पुनः एक बेर मुसकुरा देलथिन्ह । मधुकान्त बाबू कटि कऽ रहि गेलाह। कतहु काकाजी कैं लक्ष्य त नहि भऽ गेलैन्ह?

महेश बाबू ओहि स्त्री कैं अन्य भाषा-भाषिणी जानि मधुकान्त बाबू कैं पुछलथिन्ह-ई कतय जैतीह?

मधुकान्त बाबू अंठा कऽ कहलथिन्ह-पता नहि कतय जैतीह! प्रायः भपटियाही उतरथि से संभव।

कहवाक त कहि गेलथिन्ह, किन्तु मधुकान्त बाबूक करेज थर-थर काँपय लगलैन्ह। काकाजी त संगे चलैत छथि। तखन आब कोन उपाय हैत?

जेना-जेना रहरिया स्टॆशन लगिचाएल जाय तेना-तेना मधुकान्त बाबूक छाती धड़कय जाइन्ह। अन्ततः रहरिया स्टॆशन पहुँचिए गेल।

महेश बाबू प्लेटफार्म पर महफा लागल देखि कहलथिन्ह- देखह, कनेयाँ कैं सवारी त पहुँचल छैन्ह। तों जा, पहिने हुनका जनानी गाड़ी सॅं उतारि लहुन गऽ। तखन चटपट कहार सभ सॅं सामान उतरबबिहऽ। तीने मिनट गाड़ी ठहरै छैक। ताबत हमहुँ अपन बिस्तर सरियबैत छी।

मधुकान्त बाबू बंदूक नेने फुर्ती सॅं दोसर डब्बा मे गेलाह और भरिया, खबासिन तथा सार कैं उतारलन्हि। सभ वस्तु उतरि गेलैन्ह।

ओम्हर महेश बाबू अपना डब्बाक सामने प्लेटफार्म पर ठाढ छलाह। कनेयाँ कैं नहि देखि पुछलथिन्ह-कनेयाँ कैं किऎक नहि उतारैत छहुन्ह?

मधुकान्त बाबू जनानी गाड़ीक समीप जा घबरायल सन मुद्रा बना कऽ बजलाह-जाह! ककाजी! एक टा भारी गड़बड़ भऽ गेल।

महेश बाबू पुछलथिन्ह- से की?

मधुकान्त बाबू बजलाह- जनानी गाड़ी मे कतहु देखिते नहि छिऎक। घोघरडीहा मे सब केओ सामान चढाबय लागि गेल। ओ प्रायः महफे मे रहि गेलैक।

महेश बाबू क्षुब्ध भय बजलाह- ऎं! तोरा लोकनि ओतेक गोटे छलाह और कनेयाँ ओत्तहि छूटि गेलथुन्ह। वाह रे वाह! ई त औपन्यासिक घटना भऽ गेल। अच्छा चलह, घोघरडीहा तार दहौक।

मधुकान्त बाबू थोड़ेक दूर धरि मुँह बनौने पित्तीक पाछाँ चललाह। ताबत घंटी पड़ि गेलैक।

मधुकान्त बाबू एकाएक हड़बड़ा कऽ कहलथिन्ह - जाह! ककाजी। हमर 'कैमरा' त गाड़िए मे छूटि गेल।

ई कहि ओ दौड़लाह और चलैत गाड़ी मे छड़पि कय चढि गेलाह। ककाजी मुँह बाबि कऽ तकिते रहि गेलाह। भातिज भीतर सॅं दरवाजा बंद कय लेलथिन्ह।

अनुभवी ककाजी कैं आब तार देबाक प्रयोजन नहि बूझि पड़लैन्ह। कहार सभ कैं कहलथिन्ह- वर-कनेयाँ भपटियाही गेलथुन्ह। आव तोंहू सभ भरि राति आराम करै जो।

गामक खबास बाजल-घर पर बूढा मालिक बड्ड जोर खिसिऎथिन्ह। सूर्योदय सॅं पहिनहि कनेयाँ कैं गृह-प्रवेश करबाक मुहूर्त्त छलैन्ह। ताही सॅं राताराती कहार-महफा लऽ कऽ ऎलिऎन्हि। आब हमरा सभ एहिठाम बैसि कऽ की करै जाउ?

ताबत स्टॆशन मास्टर टिकट चार्ज करक हेतु पहुँचि गेलथिन्ह। भरिया खबासिन तथा सार, सभक टिकट मधुकान्त बाबूक संग रहैन्ह। सब केओ जक्क-थक्क भय चुमाओनक डाला लग ठाढ भेल बन्हकी पड़ल

महेश बाबू क्षुब्ध होइत बजलाह- देखू, आइकाल्हिक अङरेजिया छौड़ा सभ केहन आवारा बहराइत अछि? हमरो सभक विवाह-द्विरागमन भेल, मुदा कहियो एना कैलहुँ? ई त सभक नाक कटलक। हमरो सॅं गुण्डइ कैलक। कालेज मे पढि कऽ यैह सभ लखेरपनी सिखैत अछि? भला कहू त! एहि लुचपनी सॅं कोन लाभ? हॅं,एखन युवावस्थाक तरंग छैन्ह। जे ने करबैन्ह! जखन गदहपचीसी छुटतैन्ह तखन लोक हैताह।