लेखक : हरिमोहन झा

बर्तुहारीक प्रसंग मे बहुतो तरहक अनुभव लोक कैं प्राप्त भऽ जाइत छैक । एक ठाम हमरो तेहन भयंकर सत्कार भेल जे स्मरण कय औखन देह सिहरि उठैत अछि।

घटकराज सोनमनि चौधरी कहलन्हि- अमुक गाम मे एकटा बड़ सुन्दर कथा हमरा नजरि मे अबैत अछि। ओ उच्च वंशक छथि, प्रायशः पंजीबद्धे मे सरोकार करैत छथि। घरो बेश सुखितगर। चास-वास, हर- बरद, कथूक कम्मी नहि। अस्सी बीघाक चकला त घरे लग छैन्ह, बढियाँ लाखराज जमीन। पाँच बीघा कलम। कोल्हुआड़ो चलैत छैन्ह। अपना पोखरि मे मछहर होइत छन्हि। गुजराती महिष रखने छथि। बुझू जे कन्या कैं दूध, दही, माछ कथुक कम्मी नहि रहतैक। समाङो सभ अपूर्व संस्कारी। ओहि घर मे कथा भऽ जाय त कन्याक भाग्य बुझू। हमरा दूरक सम्बन्ध मे मसियौत हैताह। तैं ई कथा पटि जाय से संभव।

घटकराज महोदय हुनक सुन्दर गृहस्थीक तेहन आकर्षक वर्णन कैलन्हि जे हमरा हुनका संग लय ओहि गाम जाही पड़ल।

नीक दिन ताकि घटकराजक संग ओहि ठामक हेतु प्रस्थान कैलहुँ। तीन-चारि कोस त एक्का पर गेलहुँ। तदुपरान्त तेहन विकट रास्ता भेटल जे एकमान जबाब दऽ देलक। घटकराज कहलन्हि- आब एहि ठाम सॅं लगातार थाल- कीच भेटैत जाएत।

अगत्या ओहि ठाम सॅं पैदल जाय पड़ल। करीब डॆढ घंटाक उपरान्त गामक सिमान पर पहुँचलहुँ। परन्तु यात्रा नीक छल। किऎक त सिमाने पर घरबैया सॅं भेंट भय गेल। वृद्ध भगीरथ झा घटकराज कैं चीन्हि, भरि पाँज धऽ लेलथिन्ह! कहलथिन्ह - अहोभाग्य! आइ एतेक दिन पर दर्शन भेल। कहू, कोना-कोना मन पड़ल?

घटकराज हमर परिचय दैत कहलथिन्ह- ई एकटा बालक जोहैत छथि।

वृद्ध महोदय कान सॅं किछु ऊँच सुनैत छलाह। पुछलथिन्ह- की? मालदह आम जोहैत छथि? ओ कलम त खटिटकक हाथें बिका गेलैक। आब बिज्जूक गाछी रहि गेल अछि। से जौं बथुआ आम लेबक होइन्ह त ....

घटकराज जोर सॅं सुना-सुना कऽ कहय लगलथिन्ह- ई बर्त्तुहार भऽ कऽ आएल छथि।

ई सुनतहि वृद्ध महोदयक मुद्रा बदलि गेलैन्ह। ओ बजलाह- अहा! तखन चलथु घर पर। हमरा घर मे और सभ समाङक त विवाह- दान भेल छैन्ह। केवल एकटा भातिज वेंकटेश्वर बाबू कुमार छथि। मोंछक पम्ह चललैन्ह अछि। लघुकौमुदी पढैत छथि। बालकक पिता स्वर्गीय छथिन्ह। यदि हुनका माइक विचार भऽ जैतेन्ह त बालक भेटि सकैत छथि।

हम घटकराज कैं कहलिऎन्ह - पुछिऔन्ह त आश्रम सम्मिलित छैन्ह कि भिन्न-भिन्न?

घटकराज चिचिया कऽ पुछथिन्ह - सभ गोटे साझी छी कि फराक-फराक ?

वृद्ध सज्जन चलैत-चलैत अपन परिवारक साङ्गोपाङ परिचय देबय लगलाह - हमरा लोकनि सभ गोटे साझी छी । खूब पैघ आश्रम अछि । हमर स्त्री हथौड़ी क थिकीह । तनिका सॅं दू बालक, तीन कन्या । एक पुतोहु काँटी क , दोसर चहुटा क । कन्या मे एकटा क सोहास भेल छैन्हि । दू कुमारिए छथि । हमर एकटा विधवा बहिन सेहो आश्रमे मे रहैत छथि । तनिका एक बालक , तनिक स्त्री वीरपुरक छथिन्ह और एक कन्या, जनिक विवाह बरहट्टा छैन्ह । हमर ज्येष्ठ भाय छलाह , तनिक स्त्री बनकटहीक थिकथिन्ह । हुनका दू कन्या तीन बालक । ताहि में एक बालकक विवाह ढढ़िया, दोसरक भटसिम्मरि । तेसर बालक कुमार छथिन्ह जनिका प्रति अहाँ लोकनि चलि रहल छी ।

पुनः वृद्ध महोदय जनसंख्याक गर्व करैत बजलाह - हमरा आश्रम में लोकक कम्मी नहि । भगवतीक कृपा सॅं सभ पुतहु कैं शाखा सन्तति छैन्ह । और साले-साल वृद्धियो भेल जा रहल छैन्ह । एखन हमरा घर मे सत्ताइस गोटाक भानस दिन और सत्ताइस गोटाक भानस राति होइत अछि । दुनू साँझ में साढ़े चारि पसेरी चाउर लगैत अछि । तकर नोन, तेल, तरकारी , दालि ,तरकारी । बुझू जे एक भोजक आयोजन नित्य । स्त्रीगण अन्हरौखे सॅं जे सूरसार करय लगैत छथि से खाइत-पिबैत बेर डुबि जाइत छैन्ह । और साँझे सॅं जे उद्योग मे लगैत छथि से बेरा-बेरी सभ कैं खोअबैत-पिअबैत भिनसरबी राति भऽ जाइत छैन्ह । नित्य यैह क्रम चलैत अछि ।

एवं प्रकारें वृद्ध महोदय भरि बाट अपन पारिवारिक विशालताक जमौड़ा करैत गेलाह ।

थोड़ेक कालक उअपरान्त एक बड़का टा दलान दृष्टिगोचर भेल । चालिस हाथ सॅं कम नहि । पुरान झाझनक टाट, माटि सॅं लेबल , ठाम-ठाम भहरल । ऊँच-नीच बाँसक खंभा पर पुरान बेमरम्मती चार । छिन्न-भिन्न कोरो बाती सॅं जड़कल । सड़ल ख़ढ़ माथ पर खसबाक हेतु मुँह बौने पहिलुक चलिसहत्था लड़बड़ पाग जकाँ प्राचीनताक मर्यादा निमाहैत । दलानक अधिकांश भाग खुट्टी ,कुट्टी, घास, गोबर और गोंत सॅं बथान रुप में परिणत छल । ताहि परक गर्दा-झोल झाड़ि घरबैया बजलाह - अपने लोकनि एक क्षण विलमल जाओ, हम ओछाओन नेने अबैत छी ।

ताबत आङ्न सॅं धुआँधार झगड़ाक शब्द बहराय लागल ।

- हे बड़ सौख ! चहुटावाली बैसल रहथु आर ढढ़ियावाली सभटा काज करथु ।

- बनकटहीवाली की बजलीह ? ऎं ! रातियो हमही भानस करी और दिनो में हमही भानस करी ? से नहिं हेतैन्ह । हथौड़ी वाली कहाँ गेलीह ? भटसिम्मरिवालीक माथ दुखाइ छैन्ह त हमरो माथ दुखाइ अछि । तखन जे ढढ़िया वाली खटै छथि । एकसरिए कुटलन्हि अछि, आब भानसो वैह करथु । जकरा भूख होइक से आँच पजारौ गऽ । हम ने आइ खाएब, ने ककरो खाय देबैक । देखैत छी, आइ कोना भानस होइत अछि । ---- इत्यादि ।

वृद्ध महाशय कैं ई सभ सुनबा में नहि ऎलैन्ह । ओ बजलाह - धन्य भाग जे आइ अपने लोकनिक चरण एहि ठाम पहुँचल ! एखन नौकर-चाकर सभ हरबाही में गेल अछि । समाङो सभ , केओ कलम गेल छथि , केओ खेत पर । कोनो नेनो-भुटका नहि अछि जे अपने लोकनिक सेवा करय । बेस, त आज्ञा देल जाओ । हम तुरन्त आङन सॅं भेने अबैत छी ।

गृहस्वामी कैं भीतर जैतहि आङन मे पुनः कलह उठि गेल । वृध्द महाशय नहूँ - नहूँ किछु कहलथिन्ह से त हमरा लोकनि कैं नहि सुनना गेल, किन्तु चंडी स्वरूपा गृहस्वामिनीक प्रचंड स्वर जे टाटक अंतराल कैं फाङि हमरा लोकनिक कर्णकुहर कैं विदारय लागल, ताहि सॅं आशय बुझबा मे भाङठ नहि रहल।

-कहाँ रसय, कहाँ बसय, खैबाक बेर मसियौत भाइ। मसियौत पिसियौत हम नहि जानी। बजा लेलिऎक अछि त अपन खोअबिऔक गऽ। हमरा बुते भानस कैल पार नहि लागत।

गृहस्वामी अनुनयक स्वर मे कहय लगलथिन्ह- ऎ एतेक जोर सॅं नहि बाजू। बर्त्तुहार अछि। सुनत त की कहत?

एहि पर गृहस्वामिनी और जोर सॅं चिकड़ि कय बजलीह- सुनि कऽ हमर की करत? अहाँ कैं उपाय नहि छल त नेने किऎक ऎलिऎक? घर मे खर्च नहि, बाहर ढेकार! नाक कटाएल त अहाँ कैं। हमर की?

गृहस्वामी पुनः विनम्र भाव सॅं बुझबैत कहलथिन्ह- ऎ। एके पहर रहि कऽ चल जाएत। बंगट कैं देखय ऎलैक अछि। लाउ, एक लोटा पानि दियऽ। खड़ाम कतय छैक? सतरंजी बहार करू।

गृहस्वामिनी और अधिक उत्तेजित भऽ उत्तर देलथिन्ह- बंगट पर आएल छैन्ह त बंगटक माय पैर धोअबथुन गऽ। हम कोन दही-दौड़ा पर नाचू! धिया पुता ककरो घीढारी करय मङरो। बस, हमर सतरंजी रह दियऽ।

आब रंग-बिरंगक स्वर भीतर सॅं बहराय लागल । जेना केओ मधुमाछीक छाता छुबि देने हो तहिना सम्पूर्ण आंगन में भनभन होमय लागि गेल । के की बजैत अछि से त नहिं बुझना गेल, किन्तु निम्नोक्त शब्द स्पष्ट सुनबा में आएल -

कनेया काकी कैं नवका सतरंजी छैन्ह । बड़ सौख , हम अपना बिछाओनक सतरंजी देबैन्ह ? हौ बाबू हथौड़ीवालीक कम्बल जुनि छुबहुन । देखतुन्ह त हाथ तोड़ि देथुन्ह ---- । हे दाइ, हमर लोटा जुनि उठबैत जाह । हम अछिंजल रखने छी । ----हाँ-हाँ ओ खराम मझिला बौआक छैन्ह --- कोढ़िया कहाँ सॅं आबि कऽ सभ कैं दुख देलक । खैबाक बेर दू टा गजाधर सन-सन पहुँचि गेल --- इत्यादि ।

थोड़ेक कालक उपरान्त गृहपति संकुचित भेल एकटा कंबल तथा एक लोटा पानि नेने पहुँचलाह । कंबल ओछबैत बजलाह - तावत अपने लोकनि पैर धोएल जाओ । हम दू गिलास शरबत बनबाय नेने अबैत छी ।

ई कहि बिना उत्तरक प्रतिक्षा कैनहि ओ झटकि कय दुरुखा मे प्रविष्ट भऽ गेलाह । आब आंगन मे पुनः रणभेरी बाजि उठल । एगोटा बजलीह - जौं आबिए गेलैक त ई घिनौअलि होए ? एही घर मे सभक धिया-पुता दिन भरि चीनी भकसैत रहैत छैक । एखन केओ बहार करति ?

दोसर कंठ सॅं बहिर्भूत भेल - हॅं हम त पेटी मे ताला बन्द कऽ चीनी रखने छी । नहि बहार करब । केओ की करत ?

तेसर बजलीह - हम त छौ मास सॅं जौं चीनी मुँह मे देने होइ त बुढ़ाक कोढ करेज खैने होइ ।

भगिरथ झा खेखनियाँ करैत बजलाह - कनेक चहुटावाली कनेया कैं अपन द्विरगमनिया पौती झाड़ि कऽ देखय कहुन ।

आध घंटाक बाद भगिरथ झा एक चीनीक पुड़िया नेने बहरैलाह । करीब एक कनमा चीनी कागज मे सटि कऽ एकाकार भऽ गेल छलैक जाहि मे गोर बीसेक चुट्टीक टाँग देखबा मे आएल ।

हम चीनी देखि सिहरि उठलहुँ । किन्तु कैल की जाय ?

भागिरथ झा पुनः आंगन गेलाह । आब घोल पड़ल - दैब रे दैब ! पानि एको चुरु छैहे नहिं । कोन बाटे भरि कऽ लबियौक । बर्तुहरबा सोझे मे बैसल छैक । --- है, के चिन्हतौह ? मरौत काढि कऽ लय आबह । .... नहि हे! कोढिया टुकुर - टुकुर तकैत छैक ।

किछु कालक अनन्तर भगीरथ झा एकटा लोटा और एक पितरिया गिलास नेने बहरैलाह जे सन्दूक मे धैल - धैल बिझा गेल छलैन्ह । लोटा मे चीनी बला कागज घोरि मैलका अँगपोछा लऽ कऽ छानय लगलाह ।

हम सर्दीक बहाना कय बाँचि गेलहुँ । फलस्वरुप घटकराज कैं घटट - घटट कऽ ओ विषय प्याला पीबि जाय पड़लैन्ह ।

गृहपति आङन मे किछु आदेश दय स्नान करय हेतु पोखरि गेलाह । एम्हर हमरा लोकनि कैं श्रव्य - काव्यक आनन्द भेटय लागल ।

केओ फुसुर - फुसुर नेनाक कान मे कहलथिन्ह देखही गऽ तऽ, किछु सनेसो लाएल छौक कि खालिए हाथ डोलबैत आएल छौक।

नेना बाजल- जौं मधुर लाएल होएत तखन त हम पंखो होंकि देबैक।

स्त्री कहलथिन्ह- लाएल रहितौक त पठवितौक नहि? अच्छा, जो देखही गऽ तऽ। केहन मोटरी छैक?

बस, एक दस-बारह वर्षक बालक दौड़ल-दौड़ल आबि कऽ हमरा लोकनिक आगाँ मे ठाढ भऽ गेल। आब की कैल जाओ? हम मनीबैग सॅं एक टाका बाहर कय सोनमनि चौधरी कैं देलिऎन्ह।

घटकराज ओ रुपैया बालकक हाथ मे दैत कहलथिन्ह- जाउ, एकर मधुर कीनि कऽ खाएब।

बालक रुपैया पबैत आङन दिशि भागल। पुनः भीतर सॅं स्त्री-कंठ सुनबा मे आएल- की रे! किछु देबो केलकौक कि नहि?

हमरा लोकनि टाट मे कान अड़ा देलहुँ जे की जबाब दैत छैक। किन्तु बालको छल एक नम्बरक पाजी। कहलकैक-किछु नहि देलक।

हमरा लोकनि जी मसोसि कऽ रहि गेलहुँ।

पुनः स्त्री-कंठ बहिर्गत भेल- आब कोढिये खा लिहथि दही-अमौट! मखानक पात लऽ कऽ मुँह पोछि देबैन्ह।

घटकराज भयभीत भऽ हमर मुँह ताकय लगलाह। हम कहलिऎन्ह- करब? यद भाव्यं तद भविष्यति।

आब ककरो घबराएल शब्द सुनि पड़ल- दैब रे दैब! बंगट महिष लऽ कऽ पानि पियाबय गेलैक अछि। आब चल अबैत हैतैक। बर्त्तुहरबा दलाने मे बैसल छैक आब कोन उपाय हैतैक? कोनो गोटा दौड़ि कऽ जाह। कहि दही गऽ जे पछुआड़क बाटे आबय। बुच्चुन, अहीं दौड़ि जाउ। बाउ ने!

ताबत देखै छी जे एक सोलह वर्षक छौड़ा महिष पर चढल गीत गबैत आबि रहल अछि। पुनः हमरा लोकनि कैं देखि ठिठकि गेल। पुछलक-कहाँ रहैत छी? पुनः हमरा सभ कैं अभ्यागत बूझि बाजल- जाउ, आगू डेरा दियऽ गऽ घरबैया नहि छथि।

तदनन्तर महिष कैं खुट्टा मे बान्हि आङन गेल। आब आङन मे दोसरे ताल उठल।

मोसम्माति बंगट पर ललकैत कहलथिन्ह- रे कोढिया, तों सभ लाहेब कैलैं यैह बेर महीस चराबक छलौह? दरवाजा पर बर्त्तुहार बैसल छौक। आ, तेल-कूड़ लगा दैत छियौक। सोनक यन्त्र पहिरि ले।

ताबत बूढाक कोनो दोसर समाङ गाछी सॅं एक जलखरी काँच- पाकल आम नेने आङन मे गेलथिन्ह। थोड़बे काल मे मचल कोलाहल। 'टुनमा कैं पाकल आम भेटलैक। गुनमा कैं काँचे छैक। भोलबाक आम बंगट छीनि लेलथिन्ह। ... हौ बाबू, ओकर आम दऽ दहक। ... हाँ-हाँ! पछड़ा पछड़ी जुनि करै जाह। वाह! ई की सधोरि? ओकरा केहन ने हैतैक। टुगर छैक, तैं? जाह! बिलटी कैं जाह! बिलटी कैं कना देलथिन्ह।

आब आङन मे नेनाक भोकरब प्रारम्भ भेल। प्रायः कोनो देयादिनी अपना नेनाक हाथ सॅं आम छीनि कऽ फेकि देलथिन्ह और लगलथिन्ह ओकरा डेङाबय। ई देखि दोसरो देयादिनी अपना बेटा कैं डाँटि कय कहलथिन्ह-तोंहू आम फेक रे कोढिया। किन्तु बालक रोहिनिया आमक लोभ संवरण नहि कय सकल। आम नेने पड़ाएल। तदुपरान्त वागयुद्ध होइत-होइत मुशलयुद्ध प्रारम्भ भऽ गेल। कुशल एतबे जे हमरा लोकनि निशानाक बाहर रही। तथापि मूसरक साम एक बेर टाट फाड़ि कऽ कनेक बहराइए गेल।

हम घटकराज सॅं कहलिऎन्ह- आब पूर्णाहुति भऽ गेल। चलू। जान बाँचत त फेरि दोसरा खेप आबि कऽ सत्कार करबा लेब।

ताबत एक दोसरे कांड उठल । ओ बालक जे पड़ाएल से ओकरा डाँड़ सँ रुपैया खसि पड़लैक । से रुपैया कोनो देयादिनीक बेटा लुझि लेलकैक । एहि पर जे तुमुल युध्द मचल तकर ठेकान नहि ।

एक जनी तीव्र स्वरें पुछलथिन्ह - ई रुपैया तों हमरा हाथ मे किऎक ने देलैं ? आब तोरा बान्हि कऽ पिटिऔक ?

बालक बाजल - ई त हमरा मधुर खाय लेल देलक अछि ।

दोसर जनी बोल मारलथिन्ह - आन नेना कैं कि मधुर खैबाक मुँह छैक जे हिस्सा भेटतैक ?

ओम्हर सॅं तेसर जनी कहलथिन्ह - है दाइ ! ओ पाहुन खास हम्मर अछि । बंगट पर ऎलैन्ह अछि । एहि मे किनको हिस्सा-रत्ती नहिं हेतैन्ह । लाबह ओ रुपैया हम्मर भेल ।

तानत भगिरथ झा स्नान कैने आंगन पहुँचलाह । स्त्रीगण कैं पुछलथिन्ह - की ? पाहुनक भोजन तैयार छैन्ह ?

ई सुनैत चारु सॅं सभ केओ बूढा कैं लुलुआबय लगलैन्ह । एक जनी कहलथिन्ह - घर भूजी भाँग, बूढा लेताह चूड़ा ! बड्ड नौड़ी नफर ने रखने छथि जे घर मे चूड़ा कूटि कऽ रखने रहतैन्ह । बजैत लाजो नहि होइत छैन्ह ।

दोसर जनी कहलथिन्ह - कुटि-पिसि आबथि जीरा, माँड़ पसाबथि हीरा । तरबा रगड़ऽ लेल होइ छैन्ह हथौड़ीवाली कैं और हुकुम चढ़ाबय बेर बनकटही वाली पर ।

ताबत तेसर बजलीह - चूड़ा त हमही एक पसेरी कुटने रही से सभक पेट मे चल गेलैक । एखन कि केओ गाल लागऽ देत ? खाय काल सभ केओ कूटय काल केओ नहि ।

भगिरथ झा मृदुल स्वरें एक जनी कैं पुछलथिन्ह - की घर में थोड़बो दही हैत ? एखन प्रतिष्ठाक बात अछि ।

ई प्रश्न पूछब छल कि तड़ातड़ अपन कपार पीटय लगलीह - ई बूढा हमरा दूरि करैत छथि । हम ढुंढी की चोरनी जे अपना लेल जे अपना लेल दही जोगा कऽ राखब ? अपने बूढा कैं एक लाख पूत सवा लाख नाती छैन्ह । सभ छाल्हिए खैनहार । एक मिसिया डाढ़ी त घर में बाँचहि नहि पबैत छैन्ह, ताहि पर दहीक खोज करै छथि ।

ई कहि ओ करुण राग मे घेओना पसारलन्हि । गृहपति क्षुब्ध भय कहलथिन्ह - अच्छा, हम हाथ जोड़ैत छी । आहाँ लोकनि चुप रहू । हम कहुना कोआ देबैक ।

भगिरथ झा ककरो सॅं अमौटक पुछारी करय गेलाह । उत्तर भेटलैन्ह - एक धरिका चहुटा गेलैक, एक धरिका सोहाँस गेलैक, आब एक धरिका बचलैक से बरहबट्टा जैतैक । एहि मे पाहुन की पाहुनक बापो कैं नहि भऽ सकैत छैन्ह ।

किछु कालक बाद आंगन में चूड़ा कुटबाक धमाधम शब्द होमय लागल । प्रत्येक चोट हमरा लोकनिक करेज पर बजरय लागल ।

धमगज्जर सुनैत सुनैत हमरा सभ कैं झक लागि गेल । करीब तीन बजे भगीरथ झा आबि हमरा लोकनि कैं उठा देलन्हि । बजलाह - आब चलल जाओ, भोजन कैल जाओ ।

हमरा लोकनि कैं त पैर उठैबाक साहस त नहि होइत छल । किन्तु गृहपतिक दयनीय दशा देखि हुनका और अधिक दुःख पहुँचाएब उचित नहि बूझि पड़ल । अतएव हुनक तोषार्थ उठहि पड़ल ।

गृहपति दू ट खराम हमरा लोकनिक आगाँ मे राखि देलन्हि । परन्तु दूहू एक्के पैरक, और खुट्टी ढिलढिल करैत । हम घटकराज कैं आग्रह कैलिऎन्ह त बजलाह - भला कहू त ! ई कोना भऽ सकैत अछि ? अहाँ पहिरु ।

अगत्या हमरे पहिरय पड़ल । एक बड़का टा हुरुक्क दने भगिरथ झा हमरा लोकनि कैं भीतर लय चललाह । दसे डेग चलल हैव की खड़ामक खुट्टी पैर सॅं फराक भऽ गेल ।

भगिरथ झा किछु अप्रतिभ भय बजलाह - कोनो हर्ज नहि । एही ठाम छोड़ि दिऔक ।

ओसारा पर मोरीक कङनी पर पैर धोबाक हेतु पीढ़ी और पानि राखल छल । हम घटकराज कैं कहलिऎन्ह - आगाँ बढ़ल जाओ ।

परन्तु ओहि ठाम तेहन पिच्छर छल जे पैर रोपब कठिन । घटकराज जहिना पीढी पर पैर रखलन्हि कि पीढ़ी ससरि कऽ ऎंठार मे चलि गेलैन्ह । घटकराज ओही संग लागल नीचा खसि पड़लाह ।

हम हाथ धऽ कऽ ऊपर खींचि लेलिऎन्ह ।

भगिरथ झा लोटा में पानि लय पैर धोअबैत पुछलथिन्ह - की ? किछु अभिघात त नहिं भेल ?

सोनमनि चौधरी बजलाह - नहि, केवल थाल लागि गेल अछि । कनेक और जल मङाएल जाओ ।

भगिरथ झा सोर पारलथिन्ह - टुना बाबू ! एक कलशी जल नेने आउ । मूना बाबु ! कतय गेलहुँ ? औ गूना बाबू ! गूना बाबू ?

जखन कोनो उत्तर नहि भेटलैन्ह त गृहपति स्वयं घैलसीरी दिस विदा भेलाह । पाद - प्रक्षालनक अनन्तर भगीरथ झा हमरा लोकनि कैं घरक भीतर ल्ऽ गेलाह । सम्पूर्ण घर अन्हार कुप्प । चारु कात सँ निमुन्न । बुझि पड़ल जेना हाथीक पेट मे पैसि गेल होइ । हम थाहि - थाहि कऽ अन्दाज पर चलय लगलहुँ। तथापि एक ठाम मरुआक ढेरी पर पैर पड़िए गेल ।

भगीरथ झा बजलाह - एम्हर आएल जाओ । एहि दिस पीढी - पानि अछि । पीढी पर बैसला उत्तर घरक दृश्य देखल । सोझा मे चाउरक कोठी , जकरा तर मे असंख्य मूस बियरि कैने । और कइएक मासक बहारन - सोहारन जमा कैल , जाहि मे लोइयाक लोइया केश । दोसरा दिस मचान पर टूटल - फूटल पेटी और बाकसक ऊपर मकइक बालि , तमाकू और पटुआक कचरा ढेरी कैल राखल । कतहु सँ मरल मूसक दुर्गन्ध आबि रहल छल । एक त अन्धकारपूर्ण घर ओहिना भभकैत छल , ताहि पर ठाँव तेहन सड़ल गोबर सँ कैल छल जे नाक देब कठिन ।

आब भोज्य पदार्थक वर्णन सूनु ।

आगाँ मे खाली थारी , सूप मे धनहा चूड़ा । एक बट्टा मे मुँहठी काटल आम । पात पर नोन मिरचाइ, करैलक अँचार, और खोरनाठ सन कारी गुड़ ।

एही सामग्री पर भगीरथ झा उचितीयओ करय लगलाह - अपने लोकनि कैं आइ बहुत कष्ट भेल । भोजन मे अतिकाल भऽ गेल । स्त्रीगण आइ एक व्रत कैने छथि तैं किछु विशेष ओरिआओनो नहि भऽ सकल । केवल नोन-चूड़ा मात्र अछि ।

ई कहि ओ दू-दू लप चूड़ा हमरा दूनू गोटाक थारी में राखि देलन्हि । बजलाह - आब चूड़ा भिजाएल जाओ । कोनो संकोच नहि कैल जाय । हॅं , दही त एखन सठल छैक। थोड़ेक दूध छैक से नेने अबैत छी ।

ई कहि भगिरथ झा दोसरा घर में गेलाह । ओतय किछु फुसुर-फुसुर होबय लगलैन्ह । ध्वनि सॅं बुझना गेल जे दूध देबाक प्रस्ताव पर विवाद छिड़ल अछि । और विरोधी पक्षक प्रबलता अछि । किएक त निम्नलिखित प्रश्नोत्तरी स्पष्ट सुनबा मे आएल -

_ ई दूध यैह दूनू कोढिया ढकोसि लेत त राति चुहुटावालीक नेना की पिउतैन्ह इङोर ?

- बेस नेनाक लेल थोड़े क राखि लियऽ , और हम दऽ अबैत छिऎक ।

- बस बस, रहऽ दियऽ । एहि मे सॅं एको मिसिया नहि भेटि सकैत अछि । बंगट पर ऎलन्हि त बनकटहीवाली छाल्ही खोअबथुन गऽ । ई महिष चहुटावालिक नैहरक छैन्ह । ओ अपन दूध केहन देथिन्ह ?

- ऎ! छुच्छ चूड़ा खा कऽ जाएत - मन मे की कहत ? बंगट कैं लैयो नहि जैतैन्ह ।

अहा हा ! बंगट कैं जे रुपैया देतैन्ह से हिनके जेना बाँटि कऽ दऽ देतैन्ह । बस, ओ दूध छुइलहुँ त हम तमाशा लगा कऽ देखा देब, से कहि दैत छी ।

एतबा सुनलो उत्तर दूधक प्रतिक्षा करब मूर्खता होइत । अतः हमरा लोकनि आशा परित्याग कय चूड़ा भिजाबय लगलहुँ । किन्तु सोनमनि चौधरी कैं पानि ढारक काज नहि पड़लैन्ह । किऎक त एक दू-अढ़ाइ वर्षक नेना कोम्हरो सॅं आबि, ठाढ़े-ठाढ़ हुनका थारी पर लघी कऽ देलकैन्ह । ओ जा हुम् हुम् करैत डाँटथि ता चूड़ाक ऊपर जलस्राव भइए गेलैन्ह ।

भोजनक आशा पर पानि फिरि गेल । तावत गृहपति आबि बजलाह - ऎं !अपने लोकनि एखन धरि नैवेद्यो नहि देल अछि । हाथ किएक बारने छी ? ऎं ! ई नेना एतय कोना आबि गेल ? राम - राम !ई कि कऽ देलक ?

ई कहि भगीरथ झा ओकर दुनू बाँहि पकड़ि , अपना सॅं एक हाथ फराके कऽ उठौने, बाहर लऽ गेलथिन्ह। हम अवसर देखि उठि विदा भेलहुँ। घटकराजो हड़बड़ा कऽ उठलाह। किन्तु हुनक खल्वाट चानिक ठीक ऊपर सीक मे अँचार लटकल रहैन्ह। झोंक सॅं जे उठलाह से माथ और पातिल दुनू एके बेर भट्ट दऽ फुटल। माथ सॅं पातिल फुटल अथवा पातिल सॅं माथ फुटल, ई त नैयायिकक विषय थिकैन्ह। परन्तु घटकराज कैं चोट धरि अवश्य लगलैन्ह।

हम कहलिऎन्ह- भोजन-दक्षिणा त भेटि गेल। आब चलू, घरबैयाक आबय सॅं पहिनहि निकसि चलू। नहि त गृहचंडी भांडक दाम वसूल कैने बिना नहि छोड़तीह।

हमरा लोकनि जान छोड़ा कऽ भगलहुँ। ओसारा पर जाँत, चकड़ी, ढेकी, ऊखरि आदि नाना विघ्न- बाधा पार करैत, दुरुखा मे लटकल लालटेन सॅं टकराइत, हुरुक्क मे बान्हल असगनीक फंदा सॅं गरदनि छोड़बैत, कोनहुना बाहर आबि फक दऽ निसास छोड़लहुँ।

ओम्हर आङन मे भगीरथ झा क्रोधोन्मत्त भय चीत्कार कैलन्हि- ई छौड़ा की करय ओहि घर मे गेल छल? आइ हम घेंट दबा कऽ मारि देबैक। पाहुन सभ बिनु खैनहि उठि गेल। हमरा की कहत?

हमरा लोकनि दलान पर ऎलहुँ। ऒम्हर आङन मे भीषण महाभारत मचि गेल। नेनाक माय नेना कैं बाढनि सॅं झाँटय लगलथिन्ह - कोढ़िया कैं अपना घर मे पेट नहि भरलैक । तैं छिछिआएल ओहि कोठरी मे पात चाटय गेल छल । एहि सॅं मरिए जाय सैह नीक ।

एहि पर वाग्युद्ध होइत-होइत परिणाम ई भेल जे नॆनाक माय बच्चाक ठोंठ धैने ओकरा समेत इनार मे खसैबाक हेतु बिदा भेलीह ।

हमरा लोकनि जाहि ठाम बैसल रही ताहि सॅं सटले एक कोल्हकी में इनार छलैक । अतएव सभटा शब्द स्पष्ट रूपें कर्णगोचर होइत छल और भीतरक सभटा गतिविधि अनुमान सॅं लक्षित होइत जाइत छल । हम सोनमनि चौधरी कैं कहलिऎन्ह - घटकराज, आब अनर्थ भऽ रहल अछि । दू-दू टा ब्रह्मवध होमय जा रहल अछि । तकर हत्या हमरे अहाँ पर पड़त । जाउ धरिऔन्ह गऽ । नहि त जौं एहिना चुक्कीमाली पाहुन बनल बैसल रहब त थोड़बे काल मे हथकड़ियो पड़ि जाएत ।

ताबत इनार मे चभ्भ शब्द भेलैक । हम सोनमनि चौधरी कैं कहलिऎन्ह - चलू, पड़ाउ एहि ठाम सॅं । नहि त आब सभटा पहुनाइ बाहर हैत ।

ताबत भीतर कोलाहल मचल - जाह ! वीरपुरवाली इनार मे खसि पड़लीह । ऎं ! खसि पड़लीह ? दैबा रे दैबा ! आब कोन उपाय हैत ? नहि, वीरपुरवाली तऽ ओतऽ ठाढ़ि छथि , चहुटावाली लग । बच्चे खसि पड़लैक । नहिं-नहिं ! वच्चा त वैह छैक ढढ़ियावालीक कोर में । इनारक कँगनी टुटि कऽ खसि पड़लैक अछि । हः हः ! भटसिम्मरिवाली जा कऽ भरि पाँज धऽ लेलेथिन्ह नहि त आइ अनर्थ होइत ।

ई सुनि हमरा लोकनि कैं कतहु सॅं प्राण आएल ।

ताबत गृहपति जनउ-सुपारी नेने पहुँचलाह । ओ बुझैत छलाह जे आभ्यन्तरिक स्थिति बर्तुहार लोकनि कैं किछु टा विदित नहि छैन्ह । तैं सोनमनि चौधरी कैं कहलथिन्ह - अहाँक भाभहु कुशल-क्षेम पुछैत छथि और अनुरोध करैत छथि जे भैया एतेक दिन सॅं कहियो कृपा किऎक नहि करैत छलाह ।

हमरा लोकनि ठाढ़ भय उचितीक उचित उत्तर दैत कहलिऎन्ह - बेश, त आब आज्ञा देल जाओ ।

गृहस्वामी बजलाह - भला कहू त ? कतहु भऽ सकैत अछि ? एखन अपने लोकनिक सौजन्य त भेबे नहिं कैल अछि । राति सिद्ध भोजन कय, आंगन मे ऎंठ पानि हेरा, पवित्र कऽ देल जाओ, तखन काल्हि जैबाक विचार कैल जायत । एहि घरक पीढ़ियो-पानि त देखि लेब ।

भगिरथ झाक ई असीम धैर्य देखि हम चकित रहि गेलहुँ । सोनमणि चौधरी कहलथिन्ह - पीढ़ि-पानि त देखले-देखल अछि । हिनका बड्ड जरूरी काज छैन्ह तैं आइ छोड़ि देल जाउन्ह ।

भगिरथ झा कहलथिन्ह- बेश, त कम-सॅं-कम बालको कैं त देखि लिऔन्ह ।

हमरा लोकनि कैं पुनः बैसि जाय पड़ल । करीब आधा घंटा बालक बनि-ठनि कय बाहर ऎलाह । एखन हुनकर दोसरे साज देखबा मे आएल । थकरल टीक, पोछल मुँह, लाल ठोप, गर में सोनक यंत्र ।

भगिरथ झा बजलाह - यैह थिकाह हमर भातिज बेंकटेश्वर बाबू । हिनका सॅं किछु पुछिऔन्ह ।

सोनमनि चौधरी पुछलथिन्ह - किं पठ्यते ?

बालक टनकि कऽ उत्तर देलथिन्ह - व्याहकरणम् ।

गृहपति प्रशन्न होइत बजलाह - देखू, केहन टनकि कऽ उत्तर देलन्हि । हम त पहिनहि कहलहुँ जे बालक संस्कारी छथि । की ? किछु और पुछबैक ?

हम कहलिऎन्ह - नहि, एतबहि सॅं बुझना गेल । आब किछु पुछबाक काज नहि ।

भगिरथ झा बजलाह - तखन परिचय-पात लिखि लिऔन्ह ।

ई कहि ओ भीतर सॅं दबात, कलम कागज लाबय गेलाह । आंगन में पुनः खढ़भढ़ प्रारम्भ भेल ।

- कागत त कनेयाँ काकीक पेटी मे छलैन्ह । दबात की भेलैक ? चक्का पर राखल छलैक । फूटि गेलैक । के फोड़लक ? पकड़ त भोलबा कैं । मोसि अछि ? उहूँ । अच्छा त ललका रंग बाटी में घोरि लियऽ । कलम की भऽ गेलैक ? काल्हि टुनमा लऽ कऽ खेलाइत छल । कहाँ गेल टुनमा ? इत्यादि ।

करीब आधा घंटाक बाद गृहपति लाल रंग ओ काठी नेने पहुँचलाह । कहलन्हि - एखन मोसि कलम त नहि भेटैत अछि । एही सॅं लिखि लेल जाओ ।

भगिरथ झा घटकराज कैं वरक परिचय लिखबय लगलथिन्ह - 'बालक बुधबारे महिसी । मातृक दरिहड़ै राजनपुरा , सखुआ पाँजि । मातृमातृक हरिअम्बे बलिराजपुर, कछुआ पाँजि। पितृमातृक दिघवै सन्नहपुर, शशिपुर डेरा, फेटकटाइ पाँजि।

घटकराज कहलथिन्ह- बेश,आब गाम गेला उत्तर जे विचार होएत से अपने कॅं सूचित करब ।

भगीरथ झा बजलाह - बेश , से त हैबे करतैक किन्तु अहाँ हमर साक्षात मसिऔत । आबि गेल छी त दू - चारि दिन रहि कऽ आम खाउ एहि बेर 'लाटकम्पू' खूब फरल अछि ।

बहुत कठिनता सँ हमरा लोकनि वृध्द महोदय सँ पिंड छोड़ाओल । जखन ओहि घर सँ बिदा भय किछु दूर ऎलहुँ त भगवान सँ प्रार्थना कैलिऎन्ह जे हे भगवान !एहि आश्रमक रक्षा अहीक हाथ मे अछि । नहि त एहन - एहन सातो टा भगीरथ मिलि कय प्रयत्न करताह तथापि एहि घरक उध्दार नहि भऽ सकैत अछि ।

पुनः ओहि गृहस्थाश्रम कैं इ श्लोक पढि कऽ प्रणाम कैल -

             सर्वदा कलहाक्रान्तं , कोलाहल समाकुलम ।
             अहर्निशं कुरुक्षेत्रं , वन्दे   सम्मिलिताश्रम्    ॥
        

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