लेखक : हरिमोहन झा

एक बेरि लहेरियासराय में कपड़ाक दोकान पर जे दृश्य देखल से एखनो धरि सिनेमाक दृश्य जकाँ आँखिमे नाचि रहल अछि।

हम कुर्ताक कपड़ा लैत रही । ताबत देखै छी जे तीन व्यक्ति उच्च स्वर सॅं बजैत , दोकानक सोझाँ आबि , थक्कमक्क होइत ठाढ भऽ गेलाह ।

पहिने तीनू गोटाक हुलिया सुनि लियऽ । एक व्यक्ति जोलहुक धोती पर मोटिया बाला बर्ज पहिरने, पैर मे चमरउ पनही, हाथ मे बटुआ नेने । अवस्था पचासक लगभग । दोसर गोटे तारक गाछ जकाँ लम्बा नंग-धरंग , कान्हपर एक मैल अँगपोछा, लग्गा सन लाठी नेने, तम्बाकू चुनबैत । अवस्था करीब पैंतीस । तेसर व्यक्ति कुंडाबोर गुलाबी धोती सीटि कय पहिरने, माथ पर ऑरहूलक फूल सन लाल पाग, फूलदार रेशमी चादरि ओढने । अवस्था करीब बीस ।

लाल पागधारी जमाय थिकाह, ई बुझबा मे त कोनो भाँगठे नहि । कनेक काल मे इहो बुझना गेल जे बटुआधारी वृद्ध ससुर थिकथिन्ह और लट्ठधारी युवक हुनक भातिज । जमाय विदा होइथिन्ह तैं अपने पसिंद सॅं कपड़ा कीनक हेतु संग लागल आयल छथिन्ह ।

आब आगाँक गप्प सुनू ।

जमाय कैं धड़धड़ाएल दोकान दिशि बढैत देखि ससुर महोदय भातिज कैं कहलथिन्ह - हौ, ओम्हर अपने मने हनहनाइत कहाँ बढल जाइत छथुन्ह ? जनिका खैबा नहिं से अगिले मांँगि ! ओहन पैघ दोकान मे किनबाक हमर सामर्थ्य नहि अछि । कहुन , आगाँ कोनो छोट-छिन दोकान में जे सक्क लागत से कीनि देबैन्ह ।

ई कहि ससुर महाशय आगाँ बढबाक उपक्रम कैलन्हि । किन्तु जमायो जोड़मजोड़ रहथिन्ह । ओ अड़ि गेलथिन्ह जे बस, हम कपड़ा पसिन्द करबैन्ह त एही दोकान में , नहि तँ एही ठाम सॅं घुरि जैबैन्ह । जौं कीनक सक्क नहिं छलैन्ह त हमरा चारि कोस पैदल हरान किएक कैलन्हि ?

ससुर जमाय में मुँहाबज्जी नहि छलैन्ह । तैं दुहू गोटा मध्यस्त व्यक्ति (अजब लाल) कैं सम्बोधन कय अपन-अपन उद्गार प्रकट करय लगलाह ।

ससुर कहलथिन्ह - हम किऎक हरन करबैन्ह ? अपने दौड़ल ऎलाह ! परन्तु ऎने की ? जतबा हैबाक सैह हैतैन्ह । चारि कट्ठा भरना राखि कऽ हिनका एक मास खोआओल अछि । आब आठ कट्ठा केवाला कऽ कऽ हिनका लेल फोसाक बनबिऔन्ह त हमर धिया-पुता कतय जाएत ?

एहि पर जमाय रिड़िया कऽ स्टेशन दिशि बिदा भेलाह जे बेश, तखन अपन कन्या कैं राखथु । हम यैह बिदा भेलिऎन्ह ।

आब सभ केओ अपन-अपन काज छोड़ि यैह तमाशा देखय लागल ।

नंग-धरंग सार राम बहिनोयक पाछाँ दौरलाह और हुनका सॅं पछड़ा-पछड़ी करैत कोनो तरहें खिचैत तिरैत लऽ ऎलथिन्ह ।

आन्त मे जमाये क जिद रहलैन्ह ।

ससुर कहलथिन्ह - जखन ऊखरि मे माथ देल त मुसरक चोट सहरियारहि पड़त । मुर्दाक देह पर जेहने नौ मन तेहने एक मन और । कहुन , कोन कपड़ा पसन्द करैत छथुन्ह ? सेठजी एकटा कम दामक गंजी बहार कऽ दिऔन्ह । हम गरीब आदमी छी ।

त जमाय चट दऽ कहि उअठलथिन्ह - सबसे बेशी दाम की गंजी निकालिये - रेशमी जालीदार ।

सेठजीक व्यापारिक बुद्धि ओहू काल संग नहि छोड़कैन्ह । ओ जमायक पक्ष ग्रहण करैत बजलाह - आइये , बाबू साहब , एक -से- एक बढिया जालीदार दिखाऊँ । फैन्सी , न्यू डिजाइन , सिल्क , मरसिराइज्ड ।

अग्रेजीमे गिटपिट सुनि लुट्टी झा कैं बुझना गेलैन्ह जे ई माड़वाड़ी हमरा जमाय सँ मिलि हमरा नीक जकाँ मूड़ऽ चाहैत अछि । बजलाह - सेठ जी , रुपैया - कैंचा हमरे संग अछि और हिसाबे सँ अछि । और बहुतो वस्तु गुदरी बाजार मे कीनक अछि । गंजी जेहन सभ पहिरैत अछि , तेहने एकटा मामूली सन बहार कऽ दिऔन्ह जे सभ सॅं कम दामक हो ।

सेठजी वणिक बुद्धिक परिचय दैत कहलथिन्ह - कम दाम की गंजी हमारे यहाँ नहीं मिलेगी । देखिए, यह सब चीज हमारे पास है ।

ई कहि सेठजी रंग-विरंगक बेश कीमती गंजी जमायक अगाँ में पसारि देलथिन्ह । जमाय कैं ओहिमे सभसँ बेशी चटकदार जे बूझि पड़लैन्ह से उठा लेलन्हि ।

ससुर महोदय जान अवधारि कऽ पुछलथिन्ह - सेठ जी , एकर दाम कतेक ? सेठ जी कहलथिन्ह - कुछ नहीं । अभी और कपड़े तो इनको पसंद करने दीजिए । पीछे एक दफा कुल जोड़ देंगे । कमीज का कपड़ा दिखलाऊँ बाबु शाब ?

जमाय त फुलि कऽ कुप्पा भऽ गेलाह । ओम्हर ससुरक प्राण कण्ठगत होमय लगलैन्ह जे केहन भारी संकटमे आबि कऽ फॅंसि गेलहुँ।

ताबत सेठ जी जमाय कैं कहय लगलथिन्ह- देखिये, बाबू साहब! क्रेप, ट्वीड पौपलिन, चैक, सोलूला। पसन्द कीजिये।

ई कहि हुनका आगाँ दस-बारह तरहक डिजाइन पसारि देलकैन्ह। आब जमाय अवग्रहमे पड़ि गेलाह। कोन लियऽ, कोन छाँटू! ओ सब कैं उठा-उठा तजबीज करय लगलाह। कोनो नापसंदे नहि होइन्ह।

ई देखि सेठजी कहलथिन्ह- बाबू साहब, कहिये तो सब में से एक-एक कमीज का कपड़ा फाड़ दूँ।

ई सुनैत ससुरक देहमे आगि लागि गेलैन्ह। सेठ कैं डाँटि कऽ कहलथिन्ह-सेठजी, अहाँ बेशी लुबलुब नहि करू। अहाँ चढबैत छिऎन्ह से हम बुझैत छी। दाम देबय पड़त हमरा। तखन आग्रह करऽ वाला अहाँ के? कनेक अपना दिससॅं बनबा दितिऎन्ह तखन ने बुझितहुँ। और-और लोक कैं जेहन मामूली कपड़ा देखबैत छिऎक तेहने हिनको किऎक ने देखबैत छिऎन्ह? ओ सभ समेटू। जेहन हमर बालाबर्ज अछि तेहन कपड़ा बहार करू।

ई सुनतहि जमाय खिसिया कऽ आगाँवला कपड़ा सभ कैं ममोड़ि-चमोड़ि कऽ फेंकय लगलाह।

ई देखि सेठजी बजलाह-हाँ-हाँ, ए महराज! यह क्या करते हो? कपड़ा हमारा है । ससुर दामाद में झगड़ा है । हमारा माल क्यों नुकसान करते हो ?

पुनः ससुर दिशि सरोष दृष्टि सॅं ताकि कहलथिन्ह - हमारे यहाँ घटिया माल नहिं मिलेगा । मोटिया लेना हो तो किसी जुलाहे के यहाँ जाइये ।

ससुर त चाहिते रहथि । चट उठि विदा भेलाह । परन्तु जमाय भारी-भरकम बनि, मुँह फुलौने बैसले रहलथिन्ह । सार कैं कहलथिन्ह - एना बेज्जति करबाक छलैन्ह त हमरा अनलन्हि किऎक ?

अजब लाल चिचिया कऽ गर्द कैलथिन्ह - हौ काका, ई नहिं मानथुन्ह । एही दोकान मे लेथुन्ह ।

लुट्टी झा सभटा क्रोध हुनके पर उतारैत जबाब देलथिन्ह - तों त गदहा छह । पहिनहि कहलियौह जे हम अपने नहेरियासराय सॅं किनने-बेसाहने आएब, त तोही पैर घीचय लगलह जे 'ओझो चलताह, ओझो चलताह ' आब बूझह !

अजबलाल अपना पर दोषारपण होइत देखि बजलाह - हम की अपना मन सॅं कहने रही ? यैह उकछा कऽ जान मारि देलन्हि जे हमहूँ चलब, अपने पसन्द सॅं कीनब । तखन हमरा की कहै छी ?

लुट्टी झा कहलथिन्ह - बेश नेने ऎलहुन त आब तोंही किना दहुन । हम जाइत छी ।

ई कहि लुट्टी झा लग्गा सन-सन डेग दैत गुदरी बाजार दिशि बढलाह । पुनः भातिज राम हुनका पाछाँ छुटलाह और लपकि कऽ कोनो तरहें हुनका भरि पाँज धैने दोकानपर नेने एलथिन्ह ।

आब ससुर महाशय मौन धारण कैलन्हि । दोकानक एक कात में मन मारने सांख्यक पुरुष जकाँ केवल द्रष्टा बनल देखैत रहलाह ।

जमाय देखलन्हि जे यैह मौका अछि । ससुरक एहि उदासीनता सॅं लाभ नहि उठौलहुँ त किछु नहि । अतएव झट दऽ कमीजक कपड़ा फड़बाय कहलथिन्ह- अब कोट का बढियाँ कपड़ा दिखलाइए ।

पित्ति-भातिज में आँखिए-आँखि इशारा भेल । भातिज आँखि सॅं कहलथिन्ह - आब कोन उपाय करबह , हौ काका ?

पित्ती उपेक्षासूचक मुँह बनौलन्हि। एहन सन क्रम जे जे होइ छैक से होमय दहौक। हमरा कोनो हर्ष विषाद नहि! ओ गीताक अनासक्त योगी जकाँ 'लाभालाभौ जयाजयौ' दुहूमे एक समान अविचलित रहबाक मुद्रा बनौलन्हि।

ताबत एम्हर सर्ज, फलानेन, पशमीना, काश्मीरा आदिक पथार लागि गेल। कोन बढियाँ, कोन घटिया, ई विवेचना करबा मे जमाय असमर्थ भऽ गेलाह। अतएव सेठजी कैं कहलथिन्ह- इसमें सबसे ज्यादा दाम का जो हो सो दे दीजिये।

ससुर महोदय ओही तरहें जान अरोपि कऽ बैसल रहलाह जेना लोक घाव चिराबय काल बैसैत अछि।

सेठ पुछलकैन्ह- किस स्टाइल का कोट वनेगा? जैसा कहिये दर्जी से नपवा दें। जामाता महोदय कैं जीवन मे कोट बनबैबाक ई प्रथमे अवसर छलैन्ह। अतएव ओ तारम्य मे पड़ि गेलाह जे की कहियौक।

दोकानदार पुनः पुछलकैन्ह-कहिये न इंगलिश कोट बनेगा या पारसी?

आब ससुरजी कैं नहि रहल भेलैन्ह। ओ मौन-भंग करैत बुमकार छोड़लन्हि- आब बिनु बाजल नहि रहल जाइत अछि। हिनका कुलखूँटमे केओ देसरो कहियो इंगलिश कोट बनबौलकैन्ह अछि कि यैह आइ पहिले पहिल बनबौताह? बाप पितामह मिर्जै पहिरै छथिन्ह और ई फारसी कोट सियौताह। बापक गर घोंघा, पूतक गर रुद्राक्ष! पढल-लिखल साढे बाइस, कोट धरि भेल चाहय अङरेजीए। साहेबबला कोट पहिरि कऽ गाममे महीस चरौताहगऽ। अपना गामसॅं आयल छलाह से कोन कोट पहिरि कऽ? धन दरभंगा जे दोहरी अंगा! एखन जे लाले लाल छथि से केकर देल?

एतबा सुनैत देरी जमाय बिढनी जकाँ नाचय लगलाह। ओ लाल पाग फेंकैत लाल धोतियो खोलि कऽ फेंकबाक हेतु उद्यम भऽ गेलाह और तमकि कऽ पुनः स्टेशन दिशि बिदा भेलाह।

पुनः अजबलाल हुनका पाछाँ छुटलाह । ससुर महोदय चिकड़ि क बाजय लगलाह - जाय दहुन । पड़ाय दहुन । हम सन्तोष कैल । ई त घसकट्टीएक दिन सॅं पड़ाइत छथि । आब हम कहाँ धरि डेराउ ? जैखन एहन जमाय कैलहुँ तैखन ने कर्म फूटि गेल । जैं एहन विषखोपड़ा छथि तैं ने दोसर फेरि देने रहैन्ह । तखन हम जा कऽ लऽ अनलिऎन्ह । तकरे आब भलमनसाहत चुका रहल छथि । कोन पाप सॅं एहन लंठ कुटुम्ब भेल से नहिं जानि । ई बड़द लेब त ओ महींस लेब ! साइकिल लेब, हरमुनिया लेब, गरामोफोन लेब, सब शौख सासुर में आबि कय पुरौताह ! जेना हिनकर पुरषाक हम किछु धारने रहिऎन्ह । जहिया ई विदा भऽ कऽ जैताह तहिया बुझब जे भारी ग्रह टरल ।

ताबत अजबलाल बहिनोय कैं धैने पहुँचलाह । बजलाह - कका; अहाँ किछु जुनि बाजू । हिनका जेहन मन अबैन्ह तेहने कपड़ा दर्जी सॅं नपबा दिऔन्ह ।

आब दर्जी फीता लऽ कऽ पहुँचल पुछलकैन्ह - कहाँ तक नीचे रहेगा ?

ससुर सॅं पुनः नहि रहि भेलैन्ह । बजलाह - इह ! हमरो लोकनिक विवाह दान भेल रहय लेकिन कहाँ एतेक लष्टम-खष्ठम भेल ? तर में गंजी ताहि पर सॅं कमीज , तकरो ऊपर सॅं कोट ! ई तीन-तीन टा पहिर कऽ चलताह से खौंत नहिं फुकतैन्ह ? हमरा त देखिए कऽ खौत फूकि दैत अछि ।

जमाय दर्जी कैं थकमकाइत देखि कहलथिन्ह - जहाँ तक नीचे जा सके जाने दो ।

ससुर दर्जीक हाथ सॅं फीता लऽ कऽ कहलथिन्ह - से नहिं हेतैन्ह । गंजी अपना पसंद सॅं लेलेन्हि । कमीजो कोट में हमर युक्ति नहिं चलल । आब नापो में यैह अपन टेक रखताह से कोना हेतैन्ह ? एकोटा बात त हमर रहय । जाहि मे कम कपड़ा लगैन्ह तेना कऽ नापि दहुन । हम बहुत सहलिऎन्ह, आब नहिं सहबैन्ह । ई चाहताह जे घुट्ठी भरि सोहरैत रहैन्ह से कोना हेतैन्ह ? डाँड़ धरि नापि लहुन ।

दर्जी जहिना जमायक डाँड़ धेलकैन्ह कि ओकर फीता छीनि कऽ ससुरक कपार पर फेकलैन्हि । ससुरक भौंह मे लगलैन्ह आँखि कनेके सॅं बाँचि गेलैन्ह ।

आब सभ केओ जमाय कैं दुर-छी करय लगलैन्ह । ओ भीजल बिलाइ जकाँ सहमि गेलाह । ई सुयोग देखि ससुर जी दर्जी कैं डॅंटैत कहलथिन्ह - तकै छह की ? डाँड़ धरि नापि लहुन ।

आब जमाय कैं आपत्ति करबाक साहस नहिं भेलैन्ह ।

कपड़ा फड़ौला उत्तर ससुर महोदय जी-जान अवधारि कऽ दोकानदार कैं कहलथिन्ह - सेठजी, आब झटपट अपन दाम जोडू ।

वृद्ध महोदय अपना मन मे हिसाब कैने रहथि - एक टका गंजी, दू टका कमीज, कोट बहुत त चारि टका, ताहि में एक टका मारबाड़ी नफा करत । सभ मिला कऽ आठ टका लेत । ई सोचि ओ एक दसटकही नोट दोकानदारक हाथ में दैत कहलथिन्ह - लियऽ अपन दाम काटि कऽ फिरता दियऽ ।

परन्तु लुट्टीझा पर एकाएक वज्रपात भऽ गेलैन्ह जखन सेठजी कहलकैन्ह - पचास रुपया और लाइये । देखिए तीन रुपया गंजी, कमीज का नौ रुपया, कोट का कपड़ा अड़तालीस कुल जोड़ साठ होता है । आपके दामाद साहब ने खुद पसन्द कर कपड़ा कटबाया है । अब वापस नहीं हो सकता । निकालिये टेंट से रुपया ।

आब ससुर अपन करेज पिटैत चीत्कार प्रारम्भ कैलन्हि - डकूबा ! रौ डकूबा डाका दैलैं रौ ! हम नहिं बुझल जे तों फाँसी दैबैं रौ !

ससुर महोदय काटल गाछ जकाँ तलमला कऽ खसि पड़लाह । आँखि उनटि गेलैन्ह । दाँती लागि गेलैन्ह ।

आब दोसरे ताल लागल । अजबलाल भोकाड़ पाड़ि कऽ कानय लगलाह - हौ काका ! हौ काका ! कतय चलि गेलाह हौ काका ?

दोकान पर भीड़ लागि गेल । सेठ राम विचारलैन्हि जे कदाचित् ई बूढा मरि गेल त भारी बखेड़ा मे फॅंसि जायब । एखने पुलिस आबि कऽ घेरि लेत । अतएव ओ अपना लाभक आशा परित्याग कय अजब लाल कैं कहलथिन्ह - अच्छा दुकान से भीड़ हटाइये । इनको फौरन यहाँ से उठाकर ले जाइये और मैदान में हवा खिलाइये ।

पुनः जमाय कैं गंजन करैत बजलैन्ह- छिः छिः! गाँठ में दाम नहीं, बाँकीपुर की सैर! चले थे सूट बनबाने! शर्म नहीं आती। तुमको तो चुल्लू-भर पानी में डूब मरना चाहिए। कपड़ा कटवाकर नुकसान कर दिया।

जमायक फज्झति सुनि जखन ससुर कैं विश्वास भऽ गेलैन्ह जे आब सेठ नोकसान सहय लेल तैयार भऽ गेल अछि तखन ओ कनछिया कऽ आँखि तकलन्हि।

अजबलाल हुनका भरसाहा दऽ कऽ बैसौलथिन्ह। जमाय मुँह बिथुआ कऽ बैसलए रहलाह।

आब हमरो नहि रहि भेल। जमाय कैं पुछलिऎन्ह- अहाँक की सभ फरमाइश अछि?

जमाय रटाओल सुग्गा जकाँ एके तार मे सुना गेलाह- कोट, कमीज, गंजी। जूता, पैताबा, गार्टर। छड़ी, छाता, टार्च। औंठी, घड़ी, फाउण्टेनपेन। साइकिल, हारमोनियम।

तदनन्तर ससुर महोदय सॅं पुछलिऎन्ह- अहाँ हिनका की सभ करार कैने छिऎन्ह?

ससुर कलपि कऽ बजलाह - औ बाबू , हम किछु करार नहि कैने छिऎन्ह । बजार देखबाक सौख भेलैन्ह , तैं संग लागल ऎलाह । हमहूँ विचारल जे वेश, अपना पैरें चलताह, हमरा की लागत?

हम पुनः प्रश्न कैलिऎन्हि- अहाँक संगमे कतेक रुपया अछि?

एहि प्रश्न सॅं वृद्ध महोदय किछु असमंजस मे पड़ि गेलाह। पुनः बजलाह- जौं धर्मतः पुछैत छी तॅं चालिस टाका लऽ कऽ हम चललहुँ जे एहि मे जे भऽ सकतैन्ह से कीनि देबैन्ह।

ई कहि ओ धोतीक अढ कऽ चारि टा दसटकही नोट बाहर कऽ देखौलन्हि।

जमाय चट्ट दऽ कहि उठलथिन्ह - ई फूसि बजैत छथि। और नोट बटुआ मे चोरा कऽ रखने छथि। नहि त खोलि कऽ देखाबथु।

वृद्ध महोदय हमरा हाथ मे बटुआ दैत बजलाह- देखि लियऽ औ बाबू! अहाँ तेहल्ला छी। देखू जे एहि मे सरौता, सुपारी और चुनौटी-तमाकू छोड़ि और किछु अछि? झाड़ि कऽ देखा दिऔन्ह।

सुपात्र जमाय कहि उठलथिन्ह- तखन डाँड़मे खोंसि कऽ रखने हैताह।

एहि पर लुट्टी झा खिसिया कऽ डाँड़ सॅं एक पचटकही नोट वाहर करैत हमरा कहलन्हि-लियऽ, इहो देखि लियऽ। ई हम फराक कऽ लाएल छलहुँ जे बेर-कुबेर मे घटत त काज आओत। सेहो हिनका आँखि मे गड़ि गेलैन्ह। एहि सॅं फाजिल जौं एको कैंचा हमरा संग मे हो त देह नहि काज आवय।

पकठोसल जमाय कहलथिन्ह- तखन ई पैंतालीस टाका हमरा दऽ देथु और बाँकी वस्तुक दाम जोड़ि कऽ हैंडनोट बना देथु।

परन्तु आब सभ लोक बिगड़ि गेलैन्ह। कहलकैन्ह-नहि, से नहि भऽ सकै अछि। पैंतालिस टाका मे जे लेबाक हो से पसन्द करू। एहि मे हारमोनियम लियऽ अथवा साइकिल लियऽ अथवा कपड़ा बनबाउ।

जमाय असमंजस मे पड़ि गेलाह। किछु काल धरि सोचि कऽ बजलाह-बेस, त साइकिले कीनि देथु।

ई कहि ओ उठय लगलाह कि ढनढनिया सेठ धैलक हुनक गटटा। कहलकैन्ह - उधर कहाँ चले महाराज? कोट का कपडा जो कटवाया है सो लेते जाइये।

ई कहि ओ पैतालिस टाका लऽ लेलकैन्ह और बाकी तीन टाकाक हेतु जमाय कैं गसिया कऽ धैलकैन्ह।

आब जमाय कठिनता मे पड़ि गेलाह। गुप्त रूप सॅं दू टा टाका धोतीक खूँट मे बान्हल रहैन्ह। से दऽ कोनहुना पिंड छोड़ौलन्हि और हारल जुआरी जकाँ ससुरक पाछाँ बिदा भेलाह। बीच मे अजबलाल तमाकू चुनबैत कोटक कपड़ा काँख तर दबौने बिदा भेलथिन्ह।

हम फराके सॅं ओहि मंडली कैं प्रणाम करैत प्रार्थना कैल जे एहन ससुर और एहन जमाय सॅं भगवान बचौने रहथि। किऎक त -

         असाध्यः क्षुद्रजामाता असाध्यः श्वसुरः शठः।
         उभयोर्यदि संयोगः दर्शकानां पराभवः॥
        

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