लेखक : हरिमोहन झा

गाम मे दू टा ज्योतिषी रहथि। एक फोंचाइ झा, दोसर खट्टर झा। दुहू ज्योतिषी अगाध विद्वान। परन्तु दुहू मे अश्वमाहिष्य योग लागल रहैन्ह। एक ईर घाट, त दोसर वीर घाट। एक जे बाजथि तकरा दोसर बिनु कटने नहि रहथि।

विशेषतः जितिया और छठि मे दुहू दिग्गजक भिड़ान देखबा योग्य होय। एक पूर्व-दिन त दोसर पर-दिन! पन्द्रह दिन पूर्वहि सॅं विवाद सुनैत-सुनैत लोकक कान भोथ भऽ जाइक। तथापि किछु निष्पत्ति नहि बहराय। परिणाम ई जे आधा गाम खरना होय त आधा गाम परना। दुदिनाक प्रसादात् प्रसाद धरि लोक दुनू दिन खाय और शास्त्रार्थ देखय से मुफ्त।

दुहू ज्योतिषी मे कोना उतरा-चौरी चलैन्ह तकर दृष्टान्त लियऽ।

गामक जमींदार भोल बाबू कैं मोकदमाक तारीख मे दरभंगा जैबाक रहैन्ह। फोंचाइ झा कैं दिन गुनक हेतु बजा पठौलथिन्ह। फोंचाइ झा पतड़ा खोलि बजलाह- 'शनौः चन्द्रेत्यजेत्पूर्वाम। सोम दिन त पूर्व मुँह दिक्शूल हैत। तैं एक दिन पूर्व रविए कैं विदा भऽ जाउ से हमर विचार।'

खट्टर झा ई सुनलन्हि त कहलथिन्ह- रवि दिन जे ओ यात्रा करय कहैत छथि से- 'अर्के क्लेशमनर्थकञ्च गमने.....' मार्ग मे क्लेशो हो और कार्यो सिद्धि नहि हो। और सोम दिन जे दिक्शूल दोष देखबैत छथि तकर शान्तियो त छैक- 'रविवारे घृतं भुक्त्वा सोमवारे पयस्तथा'। सोम दिन दिक्शूल शान्ति दुग्धपान सॅं भऽ जाइत छैक।

ई सुनि भोल बाबू पुनः फोंचाइ झा कैं बजा पठौलथिन्ह। फोंचाइ झा अपन बात कटाइत देखि आगि बबूला भऽ उठलाह। बजलाह- कोन मूर्ख अहाँ कैं दूध पीबि कऽ यात्रा करबाक विचार देलक अछि?

          त्र्यहं क्षीरं  च पञ्चाहं क्षौरं  सप्तदिनं रतिम्  ।
          वर्ज्य  यात्रादिनात पूर्वम् ..............
        
यात्राक तीन दिन पुर्वहि सॅं वर्जित अछि । और यदि ओहि दिन लोक दूध पीबि कऽ यात्रा करय तखन त व्याधिग्रस्त भऽ फिरय ! किऎक त -

         कटुतैलगुड़क्षीर        पक्वमांसाशन       तथा    ।
         भुक्त्वा यो यात्यसौ मोहात व्याधितः स निवर्त्तते  ॥
      

अहाँ रविए दिन दड़िभंगा विदा भऽ जाउ । एक त दिग्बल भेटत । दोसर सम्मुख चन्द्रमा पड़त । हरति सकलदोषं चन्द्रमाः सम्मुखस्थः । त्रयोदशी रवि कैं सिद्धियोग । तखन कार्यसिद्धि में कोन सन्देह ? यैह सभ विचार कऽ त हम रविक दिन बनौने छी ।

एहि पर खट्टर झा बजाओल गेलाह । ओ चुपचाप नक्षत्र कैं चारि सॅं गुणा कय पाँच सॅं भाग देलन्हि, शेष शून्य भेलैन्ह । प्रशन्न होइत बजलाह - देखिऔक फोंचाइ झाक बनाओल दिन मे यात्रा कैने मृत्यु हो, कारण जे -

               पीड़ा स्यात  प्रथमे  शून्ये , मध्यशून्ये  महद्भयम ।
               अन्त्यशून्ये  तु  मरणम्   ........................
     

से नक्षत्र भाग मे शून्य शेष होइत अछि । अतः यात्राक फल मृत्यु हो ।

ई सुनैत फोचाइ झा पोथी-पतड़ा पसारि, भोल बाबूक टीपनि मङ्बौलथिन्ह । हुनका जन्म-नक्षत्र सॅं सोम दिनक नक्षत्र गनि, नौ सॅं भाग देलन्हि , शेष चारि बचलैन्ह । बस ललकारैत बजलाह - जौं हमरा यात्रा में मृत्यु हो त हिनको यात्रा मे मृत्यु हो । देखू -

              रासभे  अर्थनाशश्च      धनलाभश्च   घोटके   ।
              लक्ष्मीप्राप्तिर्गजाख्ये हि मेषे च मरणं ध्रुवम्    ॥
      

से चारि शेष रहने मरण ध्रुव - की नाम जे - निश्चित थीक ।

परिणाम ई भेल जे भोल बाबूक मन भटकि गेलैन्ह । ओ प्राण भय सॅं ने रवि दिन प्रस्थान कैलन्हि , ने सोम दिन । ओतय मुद्दइ पार्टी कैं एकतरफा डिग्री भेटि गेलैक ।

एक बेर और तमाशा लागल । गाम मे बङटू बाबूक बालक पर दू ठामक बर्तुहार ऎलथिन्ह । बङ्टू बाबू कहलथिन्ह - हमरा रुपैयाक लोभ नहि । भगवान अपने बहुत देने छथि । तखन दुहू कन्या मे जिनकर कुण्डली उत्तम हैतैन्ह तिनके सॅं कंटीरक विवाह करबैन्ह ।

बस, दुहू ज्योतिषीजी बजाओल गेलाह । आब भेल जुझौअलि । फोंचाइ झा पुबारि गामबाली कन्याक पक्ष ग्रहण कैलन्हि, खट्टर झा पछबारि गामवाली कन्याक ।

फोचाइ झा बजलाह - जौं पछबारि कन्या कैं एहि बालक सॅं विवाह हैतैन्ह त किन्नहु नहि बाँचि सकैत छथि । कारण जे कन्या छथि सर्प-योनि , और वर छथि नकुल अर्थात सपनौर योनि । अतएव वर कन्या कैं खा जैथिन्ह ।

आब चलल तुमुल शास्त्रार्थ । खट्टर झा उत्तेजित होइत बजलाह - पछबारि कन्या नहि बचतीह त पुबारियो कन्या नहि बचतीह । किऎक त वर-कन्या छथि दुहुक अन्त्य नाड़ी होइ छैन्ह । 'पृष्ठनाड़ीविधा कन्या म्रियते नात्र संशयः' । अतएव कन्याक मृत्यु मे कोनो टा संदेह नहि ।

आब घनघोर मचल । फोंचाइ झा वीरासन लगा बजलाह । तखन गणक विचार करु । अहाँक कन्या छथि राक्षसगण, वर मनुष्यगण । 'मृत्युर्मानवरक्षसाम् ।' अतएव कन्या वर कैं खा जैथिन्ह ।

खट्टर झा बजलाह - तखन अहूँक कन्या वर कैं खैबे टा करथिन्ह । किएक त - मुत्तौं करोति विधवां दिनकृत कुजश्च । से हिनका लग्न मे सूर्य छथिन्ह । तैं निश्चय विधवा होथि ।

फोचाइ झा कहलथिन्ह - अहाँक कन्या त आठमे वर्ष में विधवा भऽ जैतीह , किऎक त आठम स्थान में चन्द्रमा छथिन्ह - म्रियते चाष्टमे वर्षे पतिश्चन्द्रोऽष्टमे यदि ।

खट्टर झा बजलाह - तखन अहूँक कन्या कैं पाँचम ठाम चन्दमा छथिन्ह , से पुत्र नहि होबय देथिन्ह । केबल कन्ये-कन्या हैतैन्ह । 'कन्याप्रसूतिनितरां कुरुते शशाङ्कः ।' एतबे नहि । हुनका दूधो कम हैतैन्ह । किऎक त चारिम ठाम शनि छथिन्ह । 'स्वल्पं पयो भवति सूर्यसुते चतुर्थे ।'

फोंचाइ झा कहलथिन्ह - अहाँक कन्या कैं त पुत्र-कन्या किछु हैबे नहि करतैन्ह । किऎक त लग्न मे राहु छथिन्ह । लग्ने च सिंहिकापुत्रे रण्डा भवति कन्यका । भरि जन्म बाँझे रहि जैतीह ।

खट्टर झा बजलाह - तखन अहूँक कन्या गर्भ सॅं जीबित सन्तान नहिए बहरैतैन्ह । किएक त आठम स्थान मे मंगल छथिन्ह ।

                गुरौ   शुक्रे  मृतापत्या   मृतगर्भा  च  मंगले  ।
                अष्टमस्थो  ग्रहो नूनं नस्त्रियाः सोभनो  मतः ॥
        

फोंचाइ झा उत्तेजित होइत बजलाह - तखन अहूँक कन्या केवल वन्ध्ये टा नहि होइतीह । ओ आङने-आङन छिछिआएलो फिरतीह । किऎक त कर्क राशि मे मंगल छैन्ह - 'कर्कराशिस्थिते भौमे स्वैरा भ्रमति वेश्मसु ।

ई सुनैत खट्टर झाक पारा गरमाएल । बजलाह - अहाँ संकेत गारि पढैत छी । त लियऽ, हम खुलिए कऽ कहैत छी । अहाँक कन्या कुलटा होइतीह । किऎक त अश्लेषा नक्षत्र मे जन्म छैन्ह ।

               विशाखाजा  देवरघ्नी  ज्येष्ठाजा  ज्येषनाशिका ।
               मूलजा च गुणं हन्ति   व्यालजा    कुलटाङ्गना  ॥
      

तैं यदि शास्त्र सत्य त ओ किन्नहु पतिव्रता नहि रहि सकैत छथि ।

फोंचाइ झा पित्ते कॅंपैत बजलाह - तखन अहाँक कन्या और नाम करतीह । किएक त छठम स्थान मे बुध छथिन्ह -

            चन्द्रः करोति  विधवामुशना  दरिद्रां ।
            वेश्यां शशांकतनयः कलहप्रियाञ्च ॥
        

यदि ज्योतिषक वचन प्रमाण त हुनका बिना वेश्या भेने कोनो उपाये नहि छैन्ह । और झगड़ाउ जेहन होइतीह से त नगरक लोक देखतैन्ह ।

खट्टर झा हाथ चमकबैत उत्तर देलथिन्ह - तखन अहाँ कन्या दुनू वंशक नाश करतीह । किऎक त -

             पापयोरन्तरे लग्ने  चन्द्र वा यदि  कन्यका ।
            जायते च तदा  हन्ति  पितृश्वशुरयोः कुलम ॥
      

आब दुहूक कन्याक दोष गुणक जे विवेचन होमय लागल, से कहबा-सुनबा योग्य नहि ।

फोंचाइ झा हाथ पटकैत बजलाह - जौं अहाँक कन्या वन्ध्या, विधवा और दुराचारिणी नहि बहराय त हम जनउ तोड़ि कऽ फेकि दी ।

खट्टर झा किट्किटा कऽ उत्तर देलथिन्ह - जौं अहाँक कन्या कुलटा, पति-घातिनी ओ कुलनाशिनी नहि बहराय त हम चमारक पानि पीबि भठि जाइ ।

एहन - एहन विकट प्रतिज्ञा सुनि बङटू बाबू दुहू कथा अस्वीकार कऽ देल । कुशल एतवे जे ओहिठाम कन्यागत मौजूद नहि रहथिन्ह, नहि त दुहूं ज्योतिषाचार्य कैं दक्षिणो भेटि जइतैन्ह ।

तावत बङटू बाबूक हबेली सॅं पुछारी भेलैन्ह जे आङन मे नवकी कनेयाँ कैं जे नेना भेलैन्ह अछि तकरा कोन छाती लगाओल जाइक ।

आब पुनः मल्लयुध्द प्रारम्भ भेल । फोंचाइ झा गणना कय कहलथिन्ह कनेयाँक बाम स्तन प्रशस्त छैन्ह ।

खट्टर झा कहलथिम्ह - नहि, कनेयाँक दक्षिण स्तन उत्तम छैन्ह ।

आब दुनू स्तन पर ततेक जोर सॅं खण्डन-म्ण्डन होमय लागल जे आङन धरि पहुँचि गेल । नवकी कनेयाँ त लाजे कठुआ गेलीह ।

एक बेर एहन संयोग जे दुहू ज्योतिषीजी एक बरियात मे सम्मिलित भेलाह फोंचाइ झाक विद्यार्थी आदित्यनाथ, खट्टर झाक विद्यार्थी मार्तण्डनाथ । दुहू प्रचण्ड । युद्ध करबा मे मेष, विषय बुझबा मे वृष । विद्या-बुद्धि मे दुहू उपरा-उपरी रहथि । दुहूक सिद्धान्त रहैन्ह - 'श्लोकानां नित्यमावृत्तिः बोधादपि गरीयसी ।

ओहि बरियात मे एकटा वेश्यो जाइत रहय । ओकरा देखि मार्तण्डनाथ पुछलथिन्ह ई के थिक ?

आदित्यनाथ कहलथिन्ह - ई गणिका थिक ।

एहि पर दुहू विद्यार्थी कैं यात्राक श्लोक मन पड़ि गेलैन्ह -

              अग्रेधेनुः   सवत्सा  वृषगजतुरंगा   दक्षिणावर्त   वह्निः   ।
              दिव्यस्त्री पूर्णकुम्भौ द्विजवरगणिका  पुष्पमाला पताका ॥
              मत्स्यो मांसं घृतं वा दधि मधु रजतं काञ्चनं शुक्लवर्णम ।
              दृष्ट्वा स्पृष्ट्वा पठित्वा फलमिह लभते मानवो गन्तुकाम  ॥
        

गणिकाक स्पर्श कैने यात्रा बनि जाय । ताहि मे एके संग रजत, कांचन, शुक्लवर्ण , पुष्पमाला सभक स्पर्श भऽ जायत ।

ई विचारि दुहू मेधावी छात्र वेश्याक सम्मुख पहुँचि , उपर्युक्त श्लोक पढैत , ओकरा अङ्गस्पर्श करबाक हेतु हाथ बढ़ौलन्हि । बाम भाग आदित्यनाथ , दक्षिण भाग मार्तण्डनाथ !

वेश्या त भौंचक ! ताबत ई लोकनि ओकरा चन्द्राकार पर हाथ राखि देलथिन्ह । ओ चित्कार कय उठलि । चारु कात सॅं लोक जमा भऽ गेल । जखन दुहू दैवज्ञ अपन वास्तविक परिचय देलथिन्ह तखन सभ केओ बुझि गेलैन्ह जे ई एक जोड़ा नमूना थिकाह । गणकक बुद्धि पर गणिको हॅंसि देलकैन्ह ।

दुहू विद्यार्थी कैं एतबा भरि फल अवश्य प्राप्त भेलैन्ह जे सम्पूर्ण बरियात मे प्रख्यात भऽ उठलाह ।

जखन बरियात निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचल त लोक विनोदार्थ तरह-तरहक प्रश्न करय लगलैन्ह और दुनू विद्यार्थी अपन प्रकाण्ड ज्योतिर्विद्या सॅं गुरुक नाम उज्ज्वल करय लगलाह ।

बरियात मे एकटा बालटी हेरा गेल रहैक । आदित्यनाथ कहलथिन्ह - प्रश्न करु । हम उचारि दैत छी ।

तदन्तर ओ तिथि, वार, नक्षत्र जोड़ि तीन मिला पाँच सॅं भाग देलन्हि , शेष तीन बचलैन्ह । कहलथिन्ह - बालटी आकाश मे लटकल अछि ।

एहि पर सभ केओ भभा कऽ हॅंसि पड़ल । आदित्यनाथ तमसा कऽ बजलाह - हमरा त गुरु एहिना पढ़ौने छथि -

                 तिथि वारं  च नक्षत्रं लग्नं  वन्हिविमिश्रितम्  ।
                 पंचभिस्तु हरेद्भागं शेषं तत्व   विनिर्दिशेत     ।
                 पृथिव्यां तु स्थिरं ज्ञेयमप्सु व्योम्नि न लभ्यते ॥
         

तैं ई बालटी भेटयवाला नहि अछि ।

ताबत एहन संयोग जे ओ बालटी भेटि गेल ! मार्तण्डनाथ थपरी पाड़य लगथिन्ह ।

एहि पर आदित्यनाथ लाल भऽ उठलाह । लोक कैं कहलथिन्ह - अच्छा, वेश । हिनके किछु पुछिऔन्ह तऽ ।

मार्त्तण्डनाथ शान सॅं बजलाह - जे पुछबाक हो से पुछू ।

ओहि समय कन्याक पिता आबि पँहुचलाह । पुछलथिन्ह - अच्छा बुझू त हमरा मन मे की अछि ?

मार्त्तण्डनाथ आङुर पर गणना करैत कहलथिन्ह - अहाँक मन मे गर्भक चिन्ता अछि ।

ई सुनितहि लोक आवाक रहि गेल । कन्याक पिता ओहिठाम सॅं लगले घसकि गेलाह ।

मार्त्तण्डनाथ बजलाह - हमरा त गुरु एहिना पढ़ौने छथि -

           मेषे च द्विपदां चिन्ता वृषे चिन्ता चतुष्पदाम ।
           मिथुने गर्भचिन्ता च   व्यवसायस्य कर्कटे  ॥
      

से एखन मिथुन लग्न वितैत अछि । एखन जे प्रश्न करत तकर यैह उत्तर हैतेक ।

एहि पर आदित्यनाथ चौल करय लगलथिन्ह । मार्त्तण्डनाथ खिसिया कऽ बजलाह - बेश, अहाँ बड़ सुबोध छी त बुझू त हमरा मुट्ठी मे की अछि?

आदित्यनाथ गणना करैत कहलथिन्ह - अहाँक मुट्ठी मे नील रंगक वस्तु अछि । किऎक त - मेषे रक्तं वृषॆ पीतं मिथुने नीलवर्णकम।

मार्त्तण्डनाथ चट मुट्ठी खोलि कौड़ी देखबैत बजलाह - फुसियाहा कहाँ कैं! आब यैक कौड़ी तोरा नाक मे बान्हि दियौक?

आदित्यनाथ किछु अप्रतिभ होइत बजलाह - मुष्टि- प्रश्न मे उज्ज्वल रंगक उल्लेखे नहि छैक त हम की करु? ई ग्रन्थ - कर्त्ताक दोष थिकैन्ह ।

एहि पर मार्त्तण्डनाथ थपरी पाड़ि हँसय लगलथिन्ह ।

आदित्यनाथ कचकचा कऽ बजलाह - तोहर गुरुए कहि सकै छथुन्ह जे मुट्ठी मे की अछि?

बस, आब भेल टीका-टिकौअलि । आदित्यक टीक मार्त्तण्डक हाथ मे, मार्त्तण्डक टीक आदित्यक हाथ मे । केओ छोड़य बाला नहि । मार्त्तण्ड बेसी जोरगर रहथि , किन्तु एहन संयोग जे हुनक बाम आँखि फड़कय लगलैन्ह । विचारलैन्ह जे आब त युद्ध मे हारिए जाएब , किऎक त - नेत्रस्याधः स्फुरणमसकृत् संगरे भंगहेतुः । अतएव बक्क दऽ आदित्यक टीक छोड़ि देलथिन्ह । आदित्य हुनका पर चढ़ि बैसलथिन्ह । ता दर्शक सभ बीच मे पड़ि दुहू कैं छोड़ा देलकैन्ह ।

जखन ई समाचार गुरुद्वय कैं ज्ञात भेलन्हि त ओहो अपना कैं मुहाबज्जी बन्द कऽ लेलन्हि ।

किन्तु थोड़बे कालक उपरान्त हुनको दुनू गोटा मे बजरिये गेलैन्ह । किऎक त विवाहक मुहूर्त्त लऽ कऽ भारी विवाद उठि गेल । एक गोटाक मत बेआलिस दण्ड छप्पन पल । दोसर गोटाक मत चौआलिस दण्ड सत्रह पल । दुहू ज्योतिषी अपना-अपना सिद्धान्त पर अड़ि गेलाह ।

फोंचाइ झा कहलथिन्ह - जौं हमर बात नहि रहत त हम एखन बरियात सॅं बिदा भऽ जाएब ।

खट्टर झा कहलथिन्ह - जौं हिनके बात रहतैन्ह त हम यैह बिदा भेलहुँ । वरक बाप महा विपत्ति मे ! किनकर बात राखल जाय ?

खट्टर झा कहलथिन्ह - जे कोदो दऽ कऽ पढ़ने हैत सैह चौआलीस दण्ड सत्रह पल कहत ।

फोंचाइ झा बजलाह - जकरा मगज मे भुस्सा भरल हेतैक सैह बेआलिस दण्ड छप्पन पल कहत ।

खट्टर झा क्रुद्ध भय बजलाह - औ फोंचाइ झा ! अहाँ बेशी फर-फर नहि करु । अहाँ छी प फ ब भ म मूषिक वर्ण , हम छी क ख ग घ मार्जार वर्ग । हमरा सॅं बाँचल रहू ।

फोंचाइ झा बजलाह - अहाँ मार्जार वर्ग छी त हम सिंह वर्ग छी । राशिक नाम चवर्ग पर अछि । और हमरा जन्मलग्नक रिपु स्थान मे मंगल छथि । हमरा सॅं जे शत्रुता करताह से नाश कैं प्राप्त हैताह । तैं हमरा सॅं नहि लागू ।

आब दुहू गोटा कऽ तेहन कटाउझि चलल जे अन्त मे छाता-छतौअलि भऽ गेल । परन्तु दुहू ज्योतिषीक छाता पुराने रहैन्ह । युद्धक आदिए मे टूटि गेलैन्ह । ताबत लोक सभ हाँ-हाँ करैत रोकि लेलकैन्ह ।

आब दुहू ज्योतिषी अपना- अपना शत्रुनाशक उपाय सोचय लगलाह । ओहि दिन अष्टमी बुध रहैक । फोंचाइ झा गणना कैलन्हि -

        सैका तिथिर्वारयुता कृताप्ता शेषे गुणेऽभ्रे भुवि वह्निवासः।
         सौख्याय होमे शशियुग्म शेषे प्राणार्थनाशौ दिवि भूतले च ॥
 

अष्टमी मे एक जोड़ने नौ, बुध दिनक चारि, योग भेल तेरह । चारि सँ भाग देने एक बाँचत, जकर फल प्राणनाश । अतः आइ जे होम करताह से जैताह ।

शत्रुनासक एहन सरल युक्ति देखि ओ वरक बाप सँ एकान्त मे कहलथिन्ह - आइ खट्टर झा सँ अवश्य हवन करा लियऽ ।

तावत खट्टर झा दोसरे गणना कैलन्हि -

        तिथिं च द्विगुणीकृत्य वाणैः संयोजयेत ततः ।
        सप्तभिश्व  हरेदभागं शिववासं समुद्यिशेत ॥
         श्मशाने सप्तमे चैव शिववास इतीरितः ।
         श्मशाने मरणं ज्ञेय फलमेवं विचारयेत ॥

आइ अष्टमीक आठ दूना सोलह, सोलह पाँँच एकैस - ताहि मे सात सँँ भाग देने शून्य शेष । अतः आइ महादेवक पूजा कैने मृत्युफल हो ।

बरक बाप सँँ जा कऽ कलथिन्ह - आइ फोंचाइ झा सँँ महादेवक पूजा करबा लियऽ ।

यजमानक आदेशानुसार खट्टर झा होम करय लगलाह, फोंचाइ झा महादेवक पूजा । दुनू कैं एक दोसराक षडयन्त्र दिशि ध्यान नहि गेलैन्ह । दुनू अपना- अपना मन मे प्रसन्न जे प्रतिद्वन्द्वी पर मारण प्रयोग भऽ रहल अछि ।

किन्तु आश्चर्य जे होम- पूजा कैलो उत्तर दुनू मे किनको मृत्यु नहि भेलैन्ह । प्रत्युत दुनू ज्योतिषी बेश बर - बिदाइ नेने सकुशल घर पहुँँचैत गेलाह ।

एक दिन खट्टर झा तेल लगबैत रहथि कि मार्त्तण्डनाथ आबि कऽ एक मुट्ठी माटि तेलक माली मे धऽ देलथिन्ह। गुरुक ताड़न-दण्ड उठल, किन्तु शास्त्रक आगाँँ हुनकर शस्त्र व्यर्थ भऽ गेलैन्ह। मार्त्तण्डनाथ कहलथिन्ह- गुरु! आइ मंगल कैं तेल लगौने अपनेक मृत्यु भऽ जाइत। किऎक जे-तैलाभ्यङ्गे रवौ तापः सोमे शोभा कुजे मृतिः। तैं दोष परिहारार्थ हम एहि मे माटि मिला देलिऎक। कारण जे अपनहि पढौने छी-

         रवौ पुष्पं गुरौ दुर्वां भूमिं भूमिजवासरे।
         गोमयं शुक्रवारे च तैलाभ्यङ्गे न दोषकृत्॥
     

ई भस्मासुर वला प्रयोग देखि गुरु मार्त्तण्डनाथक बाप कैं बजा पठौलथिन्ह। ओ अक्खड़ देहाती। आबि कऽ कहलकैन्ह- महाराज! जौं अहाँँक शास्त्र सत्य तखन त हमर बालक उचिते कैलक अछि। उपराग किऎक दैत छी? और जौं अहाँँक शास्त्रे मे फूसि लिखल अछि त से पढौलिऎक किऎक?

ज्योतिषीजी बापक खीस बेटा पर उतारलथिन्ह। मार्त्तण्डनाथ कैं धुसैत कहलथिन्ह- तों एतेक टा भऽ गेलाह। विवाहो-द्विरागमन भऽ गेलौह। तथापि किछु बोध नहि भेलौह अछि। चुचेवोला अश्विनीए मे लटकल छह। आब तोहर कुंडली देखि लेबौह, तखन आगाँँ पढैबौह।

मार्त्तण्ड जा कऽ कुंडली लऽ ऎलाह। गुरु मीन-मेष करैत कहलथिन्ह- तोरा विद्या नहि भऽ सकैत छौह। कारण जे मकर राशि मे तोहर जन्म छौह- मूर्खत्वं मकरे घटे चतुरता मीनेत्वधीरा मतिः । तैं तोरा पढ़ैबा मे आब हम व्यर्थ परिश्रम नहि करब ।

मार्त्तण्डनाथ फोचाइ झाक पाठशाला मे पहुँचलाह ।

फोंचाइ झा गणना करैत कहलथिन्ह - मकर राशि मे तोहर जन्म भइए नहि सकैत छौह । किऎक त एहि टीपनि के अनुसार तोरा छठम स्थान मे बुद्ध छथुन्ह और से बालक चारि वर्ष सॅं बेशी जिबिए नहि सकैत अछि ।

            षष्ठोऽष्ठमस्तथामूर्तौ  जन्मकाले यथा वुधः ।
            चतुर्थवर्षे  मृत्युश्च  यदि रक्षति   शंकरः     ॥
        

यदि तोहर जन्म ठिक ओहि लग्न मे भेल रहितौह त साक्षात् महादेवो तोरा नहि बचा सकितथुन्ह । अतएव ई टीपनिए अशुद्ध छौह ।

ओहि दिन सॅं मार्त्तण्डनाथ हुनके पाठशाला मे पढय लगलाह । आदित्यनाथ ओ मार्त्तण्ड मे चढ़ा-चढ़ी चलय लगलैन्ह ।

एक आदित्यनाथ हस्तार्क मे अन्हरौखे खंजन देखलन्हि । प्रशन्न भय बजलाह - हौ यार ! आब सुन्दरी स्त्री भेटत । किऎत त उत्तर दिशा मे खंजन देखलहुँ अछि । वायव्यां वरवस्त्रमन्नविभवो दिव्याङ्गना चोत्तरे । तोंहू देखिए लैह ।

किन्तु मार्त्तण्डनाथ जाबत देखक हेतु घुमलाह ता चिड़इ ईशान कोन मे आबि गेल । मार्त्तण्ड अपन कपार पीटय लगलाह । किऎक त - ऎशान्यां मरणं ध्रुवं निगदितम दिगलक्षणं खंजने । दुखी होइत बजलाह - तोरा त सुन्दरी भेटतौह और हमरा त मृत्युक फल भेटत ।

आदित्यनाथ कहलथिन्ह - हम भागवंत छी, तों अलच्छ छह ।

ताबत मार्तण्डनाथक माथ पर चार सॅं एक गिरगिट खसि पड़लैन्ह। मार्त्तण्ड खुशी सॅं फूलि उठला जे राजा बनि जाएब। शीर्षे राज्यश्रियः प्राप्तिः। बजलाह-आब कहह। के भागवंत और के अलच्छ? हमरा त आब राज्ये भेटि जाएत तखन सुन्दरीक कोन कमी?

आदित्यनाथ कहलथिन्ह- बेशी ढकह नहि। उरसि शिरसि कंठे पृष्ठभागे च मृत्युः। माथ पर गिरगिट खसने मृत्यु हो।

दुनू विद्यार्थी शास्त्रार्थ करैत गुरुक समीप पहुँचलाह। ओ स्वप्नावस्था मे घिघिआइत छलाह। मार्त्तण्डनाथ देह धऽ कऽ जगा देलथिन्ह।

गुरु खिसियाइत कहलथिन्ह- किऎक जगा देलह? आब भिंसरबी राति कऽ निंद त नहिए पड़त। दुःस्वप्न देखलहुँ अछि से फलित भऽ जाएत।

             प्रातः स्वप्नश्च फलदस्तत्क्षणं  यदि बोधितः ।
             वदेत् काश्यपगोत्राय यदि निद्रां न कारयेत् ॥
        

जाह, कोनो काश्यप गोत्रबला कैं बजा लबहौक । ओकरो कहि देने दुःस्वप्नक फल कटित भऽ जाएत ।

क्रमशः दुनू विद्यार्थी ज्योतिषिक बहुत रासे विषय सीखि गेलाह । कोन लग्न मे धान रोपी ? कोन मुहूर्त मे काटी ? कहिया खरिहान मे मेह गाड़ी ? कोन दिन दाउनि करी ? कोन नक्षत्र मे ओसौनी करी ? कहिया कोठी मे भरी ? कोन तिथि मे चुल्हि गाड़ी ? कोन लग्न मे नववधु भानस करथि ? इत्यादि कंठस्थ भऽ गेलैन्ह ।

एतबे नहि । वधुक गर्भाधान करबाक मुहूर्त्त, सौरी जैबाक मुहूर्त्त, दबाइ खैबाक मुहूर्त्त, दूध पिऎबाक मुहूर्त्त, स्नान करबाक मुहूर्त्त,नूआ पहिरबाक मुहूर्त्त, नेना कैं खाट पर सुतैबाक मुहूर्त्त, कान छेदैबाक मुहूर्त्त, कोनो विषय बाँकी नहि रहलैन्ह । स्वप्न-विचार, शकुन-विचार, छिक्का-विचार, हस्तरेखा-विचार, "ढकना यंत्र" आदि सभ विषय मे पारंगत भऽ गेलाह

(ढकना-यंत्र- प्रसव वेदना काल वेशी विलम्ब होइत देखि ज्योतिषी ढकना मे किछु अंक लिखि कऽ सूतिकागृह मे पठा दैत छथिन्ह । ज्योतिषी लोकनिक विश्वास छन्हि जे ओ देखितहि गर्भिणी कैं प्रसव भऽ जाइत छैक ।)

एक बेर ज्योतिषी फोंचाइ झा हाथ मे इसरगत बन्हने तकर ज्योतिःशास्त्रोक्त प्रभाव वर्णन करैत कहलथिन्ह -

             शुचिसितदिनकरवारे करमूले बद्धपुलिकमूलस्य  ।
             नागारेरिव नागा  प्रयान्ति  किल  दूरतस्तरस्य     ॥
        

आषाढ़ शुक्लपक्ष मे रवि दिन इसरगत बन्हने साँप तहिना दूर पड़ाय जेना गरुड़ कैं देखि कऽ । तोरो लोकनि अगिला रवि कैं बन्हैत जैहऽ । किऎक त - अकृत्वा पुलकैर्बन्धं प्रायश्चित्तीयते नरः ।

अग्रिम रवि कैं दुहू शिष्य कैं लय नीक लग्न ताकि इसरगत उखाड़क हेतु खढ़ौर दिशि विदा भेलाह । खढ़ौरक बीच मे पहुँचि जहिना ज्योतिषिजी इसरगतक लग पहुँचलाह कि छौह हाथक जुअएल अधसर पैर मे लपटा गेलैन्ह ।

विद्यार्थी कहलथिन्ह गुरुजी , अपनेक हाथ मे त इसरगत बन्हले अछि । छोड़ा लेल जाओ ।

तावत साँप जाँघ पर चढ़ि गेलैन्ह । गुरु जहिना इसरगत वला हाथ बढ़ौलन्हि कि साँप फुफकार छोड़ैत ओही लुल्हुआ कैं हबकि लेलकैन्ह । गुरु सर्पदंश सॅं चित्कार कय उठलाह ।

आदित्यनाथ कहलथिन्ह - गुरु, आब ? गरुड़वला प्रभाव की भेल ?

गुरु कनैत-कनैत कहलथिन्ह - रौ अभगला ! पाँछाँ शास्त्रार्थ करिहैं । एखन लऽ चल झड़बाबय लेल ।

मार्त्तण्डनाथ कहलथिन्ह - गुरु आब कोनो झाड़-फूँक काज नहि देत । कारण जे आइ विशाखा नक्षत्र मे साँप कटलक अछि और अपने स्वयं पढ़ने छी -

           यः कृतिकामूलमघाविशाखासार्पान्तकार्द्रासु  भुजंगदष्टः ।
          स वैनतेयेन  सुरक्षितोऽपि प्राप्नोति  मृत्योर्वदनं   मनुष्यः ॥
        

से आब साक्षात गरुड़ो आबि अपनेक प्राणरक्षा नहि कय सकैत छथि । अतएव हम अपनेक अंत्येष्टि क्रियाक प्रबन्ध करय जाइत छी ।

ई कहि ओ गुरुआइन कैं संवाद देबाक हेतु चललाह ।

आब आदित्यनाथ गुरुक समीप पहुँचलाह । दाढ़ तजबीज करैत काल आदित्यनाथ कैं गुरुक औंठा मे यवक चिन्ह देखबा मे ऎलैन्ह । आदित्यनाथ कैं सामुद्रिको पढ़ल रहैन्ह । प्रसन्न होइत बजलाह - गुरु, आब पट्टी बन्हबाक कोनो प्रयोजन नहि । किऎक त अपनहि पढ़ौने छी जे -

             अङ्गुष्ठोदरमध्य तु  यवो यस्य विराजितः ।
             उन्नतं भोजनं  तस्य शतं जीवति मानवः  ॥
        

अंगुष्ठ भाग मे यव रहने लोक शतायु हो । तखन सर्पक कटनहि की ? हम अन्त्येष्टि क्रियाक प्रबन्ध रोकबाबय जाइत छी।

ओहो शीघ्रता सॅं विदा भेलाह। गुरुआइनक ओतय पहुँचि मार्त्तण्डनाथ गुरुक टीपनि देखय लगलाह। आदित्यनाथ्य गुरुआइनक जन्मकुण्डलीक गणना करय लगलाह। दुहू विद्यार्थी मे घोर शास्त्रार्थ छिड़ि गेलैन्ह।

मार्त्तण्डनाथ कहलथिन्ह- गुरु कैं भारी मारकेश लागल छैन्ह। बाँचब कठिन छैन्ह।

आदित्यनाथ कहलथिन्ह- गुरुआइन कैं वैधव्य योग लगिते नहि छैन्ह। तखन गुरु मरताह कोना?

गुरुऐन कनैत कहलथिन्ह - एखन ई शास्त्रार्थ रहय दैह । हुनक दबाइ विरौ करै जाहुन्ह ।

दुहू सुयोग्य विद्यार्थी उत्तर देलथिन्ह - यदि गुरुक ग्रह प्रतिकूल हैतैन्ह त - 'ग्रहेषु प्रतिकूलेषु नानुकूलं हि भेषजम् । कोनो दवाइ काज नहि करतैन्ह । और यदि ग्रह अनुकूल हैतैन्ह तखन दवाइक प्रयोजने की ?

ता ज्योतिषीजी झाड़-फूक करौने घर पहुँचलाह । अबितहि दुहू विद्यार्थी कैं गुरुहत्याक प्रायश्चित लिखि देलथिन्ह । दुनू शिष्य ग्लानि सॅं आत्महत्या करबा पर तैयार भऽ गेलाह ताबत विशाखा सॅं अनुराधा नक्षत्र भऽ गेल रहैक दुनू विद्यार्थी देखलन्हि जे आइ अनुराधा रवि कैं मृत्यु योग अछि -

             त्यज  रविमनुराधे वैश्वदेवे च सोमम्  ।
             रविसुतमपि हस्ते मृत्युयोगा भवन्ति  ॥
        

अतएव इनार पोखरि मे जा कऽ डुबबाक कोन काज ? एही योग मे यात्रा कऽ दी, अनायासे मृत्यु भऽ जायत । ई विचारि आत्मघात करबाक उद्देश्य सॅं दुनू विद्यार्थी ओही क्षण यात्रा कऽ देलन्हि । किन्तु दुनू मे किनको अभिष्ट सिद्ध नहि भेलैन्ह । अर्थात दुनू जीविते रहि गेलाह ।

मार्त्तण्डनाथ गाम जा कऽ खेती करय लगलाह । किन्तु आदित्यनाथ एक प्रसिद्ध शहर मे किछुए दिन मे सिद्धजी बनि बैसलाह । ओतय सात हाथक साइन बोर्ड बनबौलन्हि -

आश्चर्य ज्योतिष कार्यालय

यदि फलित ज्योतिष का चमत्कार देखना हो तो यहाँ आइये और श्री १०८ त्रिकालदर्शी सिद्धजी से अपना अभिष्ट सिद्ध कराइये । यहाँ जप, पूजा, अनुष्ठान और पुरश्चरण के द्वारा ग्रह शांति कर कठिन रोगों का इलाज किया जाता है और यंत्र, मंत्र, तंत्र के द्वारा सभी मनोरथ सिद्ध किए जाते हैं ।

तदनन्तर निम्नलिखित विज्ञापन छपबौलन्हि -

अद्भुत अविष्कार

१. शान्ति कवच - त्रिकालदर्शी सिद्धजी ने नवों ग्रहों से समझौता करके एक ऎसे यंत्र का आविष्कार किया है कि इच्छामात्र से कार्य सिद्ध हो जाता है । मूल्य- ८१ रु. ।

२. गर्भ कवच - इसके प्रयोग से नपुंसक स्त्री भी गर्भ-धारण कर पुत्र प्रसव करती है। मूल्य - १४ रु.

३. परीक्षा कवच - इसके धारण से मंदबुद्धि विद्यार्थी भी पास कर जाता है । मूल्य - ३२ रु.

४. जीविका यंत्र - इसके प्रभाव से अच्छी नौकरी मिलती है । जितने अधिक पावर का लिया जायगा उससे दूना वेतन मिलेगा जैसे ५० रु. का यंत्र लेने से १०० रु. की नौकरी मिलेगी । मूल्य २५ रु. से लेकर ५०० रु. तक ।

५. विजय यंत्र - इसके प्रयोग से हाकिम की बुद्धि पर ऎसा प्रभाव पड़ जाता है कि लिखा हुआ फैसला भी बदल जाता है ।

६. व्यापार तंत्र - इसके प्रयोग से तेजी - मंदी पर कुछ ऎसा प्रभाव पड़ता है कि व्यपारी को मनचाहा लाभ होता है ।

७. मृत्युंजय मंत्र - इसके प्रभाव से मृत्यु के मुँह में पड़ा हुआ रोगी भी बचा लिया जाता है । दक्षिणा - १०१ रु. ।

एक दिन संयोगवश मार्त्तण्डनाथ घुमैत - फिरैत ओहि शहर मे आवि पहुँचलाह । उपर्युक्त साइनबोर्ड और विज्ञापन देखि चकित रहि गेलाह । तावत देखैत छथि जे दाढी बढौंने एकरंगा पहिरने, लाल ठोप कैने, आदित्यनाथ खड़ामपर चलल अबैत छथि ।

मार्त्तण्डनाथ एतेक दिन पर अपन बालसंगी कैं पाबि, भरि पाँज धरय लेल बढलाह और पुछलथिन्ह- आदित्य, तों एतय ई वेष बनौने की करैत छह?

आदित्यनाथ पाछाँ हटैत कहलथिन्ह- चुप चुप! हम एहि ठाम सिद्ध जी कहबैत छी। एखन कार्यालय मे बैसि कऽ तमाशा देखह। पाँछा राति मे सभ हाल कहबौह।

मार्त्तण्डनाथ ज्योतिष कार्यालयक ठाट - बाट देखि गुम्म रहि गेलाह । एक वैद्यजी अपना स्त्रीक हेतु गर्भकवच लेबय आएल छथि । एक चरिसल्ला विद्यार्थी परिक्षा - कवच लेबक हेतु बैसल छथि । एक सेठजी मंदी - तेजी बूझक हेतु व्यग्र छथि । एक मोखतार साहेब उन्नैस वर्षक कुमारि कन्या कैं नकली टीपनिक जोर सँ चौदह वर्षक बनाबय चाहैत छथि ।

एवं प्रकार केओ बीमारीक मारल, कओ मोकदमाक हारल, केओ नौकरीक उमेदवार, केओ सगुन करौनिहार कतेक आएल, कतेक गेल । सिद्धजी ककरो यंत्र देलथिन्ह, ककरो कवच, ककरो हाथ मे भस्मक पुड़िया, ककरो पुनः एकान्त मे आबय कहलथिन्ह।

राति एगारह बजे धरि एहिना लोकक ताँता लागल रहलैन्ह। बारह बजे राति कऽ जखन दुनू बालसंगी खा-पी कऽ निश्चिन्त भेलाह त सिद्धजी कहलथिन्ह- देखलह तमाशा? कोना रुपैया झहरैत छैक? साँझ सॅं एखन धरि चौरासी रुयैया पड़ल अछि। जतेक गुरुजी कैं सात मासमे पाठशाला सॅं भेटतैन्ह।

मार्त्तण्डनाथ कहलथिन्ह- हौ संगी, तों एतेक ठक-विद्या कोना सीखि गेलाह। एहन भारी टाटक पसारने छह से लोक बुझैत छौह नहि?

सिद्धजी- हौ, हमरा ओहिठाम तेहने-तेहने लोक पहुँचैत अछि जे अपना गरजें आन्हर भेल रहैत अछि। जकर कार्य सिद्ध भऽ जाइ छैक से बुझैत अछि जे हमरे प्रसादात् भेलैक। जकरा नहि होइत छैक से अपना अदृष्ट कैं दोष दैत घर जाइत अछि। सिद्धजी अभिमानपूर्वक एक बड़का पोथा मार्त्तण्डनाथक आगाँ पटकैत कहलथिन्ह- देखह, केहन-केहन सर्टिफिकेट (प्रशंसा-पत्र) छैक। ई कलक्टर साहेबक, ई कमिश्नर साहेबक, ई जज साहेबक, ई सदरआला साहेबक। कहाँ धरि देखबह? जखन ई सभ छपतैक तखन बुझबहक।

मार्त्तण्डनाथ मुग्ध होइत पुछलथिन्ह- ऎं हौ संगी! एहन-एहन लोक कैं कोना परतारि लेलहक?

सिद्धजी अगराइत - अगराइत कहय लगलथिन्ह - हौ, वातो वनैवाक लूरि होइक छैक। हम तेहन अँँटकर सँँ फल कहैत छिऎक जे प्रायशः दस मे पाँँच कैं मिलिए जाइ छैक । देखह, काल्हि हलुअइया मोकदमा जीति गेल त एक परात मधुर दऽ गेल । परसू सिनेमाक मैनेजर कै बेटा भेलैक त मुफ्त टिकट पठा देलक । एहि ठामक वकील-मोखतार सभ हमर यजमाने अछि । बड़का-बड़का आदमीक टीक हाथ मे रखने छी । दोकानदार सभ चेले अछि । हमरा कि किछु अपना दिशि सॅं खर्च लगैत अछि ?

मार्त्तण्ड कहलथिन्ह - हौ संगी, हम गोलाध्याये मे लटकल रहि गेलहुँँ और तों त्रिकालदर्शी बनि गेलाह । ज्योतिषक फल अनका भेटौक वा नहि, तोरा धरि त खूबे फलित भेलौह ।

सिद्धजी जमबैत कहलथिन्ह - यदि तोंहू एहिठाम रहि जाह त हम प्राप्ति करा दऽ सकैत छिऔह । एहि ठाम नित्य दस-बीस ब्राह्मण कैं पुरश्चरण देया दैत छिऎक । सभ ह्रीं ख्रीं करैत हलुआ-पूड़ी उड़बैत अछि और हमर जयजयकार मनबैत अछि । तोरो महामृत्युंजय मंत्रक अनुष्ठान देआ देबौह । प्रतिदिन सवा टका दक्षिणा भेटल करतौह । गाम पर जे खेसारी कटैबहगऽ ताहि सॅं एहि ठाम बैसल-बैसल लड्डू पाङह । यदि कनेक आडम्बर करय अबौह त हम तोरा तान्त्रिकजी कहि कऽ प्रसिद्ध कऽ देबौह ।

मार्त्तण्डनाथ कहलथिन्ह - बेश, ई सभ त होइते रहतैक । आब अपना घर परक हाल-चाल कहह ।

सिद्धजी कहलथिन्ह - हौ ! तोरा सॅं कोन पर्दा ? घरक हाल की कहियौ ? पारिवारिक दुःख सॅं तंग-तंग रहैत छी । एकटा देयादी झगड़ा चलि रहल अछि , जमीन लऽ कऽ । ताहि मे हजारो रुपैया भुरकुस भऽ गेल । आखिर मोकदमो हारि गेलहुँँ । आब वासलात देवय पड़त । छोट भाइ कैं एकटा कपड़ाक दोकान खोलि देने छलिऎन्ह से सबटा पूँँजीए डुबा देलन्हि । भातिज कैं अंग्रेजी स्कुल मे नाम लिखा देने छिऎन्ह, परन्तु तीन साल सॅं फेले कैने जाइत छथि । स्त्री छथि से सभ दिन दुःखिते रहैत छथि । अपने देह लऽ कऽ झखैत रहैत छथि, शाखा-सन्तति की हैतैन्ह ?

ताबत एक व्यक्ति घबराएल जकाँँ आबि कऽ कहलकैन्ह - सिद्धजी ! सिद्धजी ! भारी अनर्थ भऽ गेल । आइ एगारह दिन सॅं जकर पुरश्चरण भऽ रहल छैक तकरा घर मे एखन कन्नारोहटि भऽ रहलैक अछि । बूझि पड़ैत अछि जे नहि बचलैक ।

सिद्धजी कहलथिन्ह - तों छह भारी बूड़ि । हम कहने रहिऔह जे सभटा दक्षिणा पहिनहि हथिया लैह । आब की एको कौड़ी देतौह ?

मार्त्तण्डनाथ कनेक काल धरि गुम्म रहि बजलाह - हौ संगी, हमरा जाय दैह । ई छल-विद्या हमरा बुतें पार नहि लागत । एतेक फूसि-फटाका कऽ कऽ जे टाका उपार्जन करब ताहि सॅं अपना घर परक गृहस्थीए नीक ।

सिद्धजी कहय लगलथिन्ह - तों रहि गेलाह सोझे देहाती बूड़ि ! हौ ! फूसि सॅं केओ बाँँचल अछि ? ई संसारे फूसि थिक । जनता त मुर्ख होइत अछि । हम नहि ठकबैक त आन केओ ठकि लेतैक । चतुर सर्वदा सॅं मूर्ख कैं ठकैत आएल अछि । फलितक जे एतेक महाजाल रचल गेल छैक से कि निष्फल छैक ? हमरा लोकनिक बुद्धिमान पूर्वज नवग्रहक तेहन फाँँस बना गेल छथि जे जन्म सॅं मरण पर्यन्त लोक कैं नथने रहैत अछि । हम ग्रहक नाम पर ग्रहण करैत छी । यजमानक मन मे शान्ति आबि जाइत छैक । दुनू कैं एक दोसरा सॅं लाभ छैक । हम नहि रही त ओकर अदृष्ट के देखतैक ? और ओ नहि रहय त हमर अदृष्ट कोना बनत ? ई व्यवसाय कि उठयवला छैक ? ओ हमरा चातुर्यक दक्षिणा दैत अछि । हम ओकरा सॅं अज्ञानताक कर लैत छिऎक । एहि मे अन्याय कोन ? वैद्य फीस लऽ कऽ शरीर मे शान्ति दैत छथिन्ह, हम फीस लऽ कऽ आत्मा मे शान्ति पहुँचबैत छिऎक । जाहि दिन ई विद्या संसार सॅं लुप्त भऽ जायत ताहि दिन एकटा बड़का सहारा लोकक उठि जैतैक । काव्य और संगीत सॅं क्षणिक आनंद भेटैत छैक , किन्तु अदृष्ट शास्त्र सॅं आजीवन सान्त्वना भेटैत रहैत छैक । फलित ज्योतिष अपूर्व वस्तु थिक ।

मार्त्तण्डनाथ गामक यात्रा स्थगित कैलन्हि ।

दोसरा दिन सिद्धजीक आश्चर्य ज्योतिष कार्यालय मे एक नवीन विज्ञापन दृष्टिगोचर भेल -

तान्त्रिकाचार्य

मौनी बाबा श्री मार्त्तण्डनाथ स्वामी

आप बारह वर्षो तक हिमालय की कन्दरा मे तपस्या करने के अनन्तर नगर-निवासियों के सौभाग्य से यहाँ पधारे हुए हैं । आप हस्त-रेखा और मुखाकृति देखकर ही संकेत द्वारा पूर्व-जन्म और पर-जन्म का वृत्तान्त बतला देते हैं । जिन सज्जनों को अपना भूत-भविष्य जानने की इच्छा हो, वे महात्माजी के दर्शन से लाभ उठावें ।

॥ इति ॥