लेखक : हरिमोहन झा

ओहि दिन खट्टर कका सॅं शास्त्रचर्चा छिडि गेल । बात ई भेलैक जे खट्टर कका चार छरबैत रहथि । हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, भदबे में छवनी करबैत छिऎक ?

खट्टर कका बजलाह – हौ, अनदिना जन नहिं भेटैत अछि । तैं घरहट कऽ काज हम भदबे में करा लैत छी ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ शास्त्र क वचन नहिं मानैत छिऎक ?

खट्टर कका बजलाह - कोन-कोन वचन मानय कहैत छह ?

हम कहलिऎन्ह - शास्त्र में जे किछु लिखल छैक से हमरा लोकनिक कल्याणार्थे । सभ में किछु ने किछु अभिप्राय भरल छैक । मनु, याज्ञवल्क्य, पराशर आदि की एकोटा वचन निरर्थक लिखने छथि ?

खट्टर कका मुस्कुरा उठलाह । बजलाह - तखन हम एकटा पुछैत छिऔह । मनु क वचन छैन्ह -

          न  दिविन्द्रायुधं  दृष्ट्वा  कस्यचिद्दर्शयेद्बुधः ।
         

जौं आकाश में इन्द्रधनुष देखी त दोसरा कैं नहिं देखाबी । एहि मे कोन अभिप्राय छैक ? और उदाहरण लैह । स्मृति समुच्चय में लिखैत छैक -

          स्वगृहे  प्राक्शिराः स्वप्यात् , श्वाशुरे  दक्षिणाशिराः  ।
          प्रत्यक्शिराः  प्रबासे  च  न  कदाचिदुदङ्ग मुखः     ॥
        

अर्थात अपना घर में पूब मूहें सूती । सासुर में दक्षिण मूहें सूती । परदेश में पश्चिम मूहें सूती एहि में की तात्पर्य छैक ?

हम पुछलिऎन्ह - से किऎक, खट्टर कका !

खट्टर कका ताख पर सोंटा कुंडी उतारैत बजलाह – हौ, गाम क बेटी अपना घर में पूब भर माथ कऽ कऽ सुततीह और वर क सिरमा दक्षिण भर रहतैन्ह । तखन की वर पड़ल-पड़ल बङ्गौर खोटताह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, संभव जे एहू में किछु गूढ आशय होइक ।

खट्टर कका भांग रगरैत बजलाह - तोहर बात सुनि कऽ एकटा कथा मन पड़ि जाइत अछि । एक टा यजमान श्राद्ध करैत छलाह । ओहि ठाम एक टा बिलाड़ि आबि कऽ बारंबार मडराय लागल । से देखि पुरोहित कहलथिन्ह - एकरा बान्हि दिऔक। यजमान क बालक ई बात देखैत रहथिन्ह ।जखन किछु दिनक उपरान्त ओ यजमान मरि गेलाह और वैह बालक हुनक श्राद्ध करय लऽ गेलथिन्ह त अपना पुरोहित सॅं पुछलथिन्ह - एखन धरि बिलारि नहिं बान्हल गेल ? पुरोहित कहलथिन्ह - पद्धति में त एहि कर्म क विधान नहिं छैक। यजमान-पुत्र बजलाह - ‘हमरा कुल क यैह रीति अछि । हम स्वयं अपना आँखि सॅं देखि चुकल छी ।' तखन एक टा बिलाड़ि कतहु सॅं अनाओल गेल और गर में रस्सी बान्हल गेल । तहिया सॅं ओहि वंश में बिलाड़ि बान्हबाक प्रथा चलि अबैत अछि । वंशज लोकनि कैं होइ छैन्ह जे मार्जारबंधन मे गूढ तात्पर्य भरल हेतैक । हौ, एहि तरहें एहि देश में कतेक रासे अन्धविश्वास पसरल अछि तकर ठेकान नहिं ।

हम - तखन आचार्य लोकनि एतेक रासे बचन की अकारण बनौने छथि ?

खट्टर कका भांग में सौफ मरीच दैत बजलाह – हौ, संसार में अकारण कोनो वस्तु होइ छैक ? कोनो पंडित कैं सासुर में घर चुबैत हेतैन्ह दक्षिण भर किछु निचू देखि खाट घुसका नेने हेताह । और श्लोक बनौने हेताह - श्वाशुरे दक्षिणाशिराः । कोनो आचार्य कैं शनि दिन पूबभर ठेस लागि गेल हेतैन्ह । ताहि दिन सिद्धान्त बनौने हेताह - शनिवारे त्यजेत पुर्वाम । हुनके देखादेखी ई नियम चलि गेल हैत । तहिना कोनो आचार्य राति में तिलबा खैने हैताह से नहि पच ल हेतैन्ह । बस, एकटा श्लोक बना देलन्हि -

          सर्वं  तु  तिलसम्बद्धं  नाद्यादस्तमिते  रवौ ।      (मनु ४/७५)
        

'अर्थात राति में तिल सॅं बनल कोनो वस्तु नहिं खैबाक चाही ।' .... और हमरा सभ ओही सभ स्मृति कैं एखन धरि ढोइत आबि रहल छी ।

हम - खट्टर कका, भऽ सकैत अछि, एहू सभ में कोनो वैज्ञानिक रहस्य होइक ।

खट्टर कका व्यंग्यपूर्वक बजलाह – हॅं। जेना कतेक गोटा बुझैत छथि जे टीक रखने मस्तिष्क में विद्युत प्रवाहित होइ छैक। तैं पैघ टीक रखैत छथि । प्रायः ओही बिजली क कारणें हुनका लोकनि कें एहन-एहन बात फुरैत छैन्ह । आनआन देश देश बला त टीक रखितहिं ने अछि, फुरतैक कोना ? हौ, असल में बूझह त हमरा लोकनि कैं बुद्धि क अजिर्ण अछि ।

हम - खट्टर कका, एतेक आचार-विचार और कोनो देश में छैक ?

खट्टर कका सौफ मरीच पिसैत बजलाह – हौ, और देश कैं एतेक फुरसतिए कहाँ छैक ? जौं युरोप-अमेरिका हमरा सभक कृत्यसारसमुच्चय लऽ कऽ आन्हि क कृत्य करऽ बैसय, तखन हवाई जहाज ओ ट्रैक्टर के बनाओत ? हमरा लोकनि क ऋषि कैं कोनो काज रहबे नहिं करैन्ह । बैसल-बैसल वचन गढ़ल करथि । कै आङुरक दातमनि करी ? कै टा कुरुड़ करी ? कोन दिन तेल लगाबि? कहिया केश कटाबी ? कोन समय नव वस्त्र पहिरी ? सभटा बुद्धि एही पर खर्च होमय लगलैन्ह । जे आचार्य ऎलाह से दस टा वचन जोड़ने गेलाह । फलस्वरूप विधि-निषेधक तेहन महाजाल बनि गेल जे लोक कैं नदियो फिरबा में स्वतंन्त्रता नहिं रहलैक ।

हम - से कोना , खटर कका ?

ख०- स्मृति देखह ।

           मुत्रोच्चारसमुत्सर्ग   दिवा  कुर्यादुदङ्गमुखः   ।
           दक्षिणाभिमुखो  रात्रौ  संध्ययोश्च यथा दिवा ॥ (मनु०-४/५०)
        

लघी-नदी कोन मुंँह भऽ कऽ करी तकरो विधान छैक । दिन में उत्तर मुँह । राति में दक्षिण मुँह । हौ, यदि यदि आइ हमरा लोकनि मनुस्मृति क अनुसार चलऽ लागी त देश में लाखो पैखाना तोडि कऽ दोसर बनबाबऽ पडत । दिनक लेल एक तरहक, रातिक लेल दोसरा तरहक ।

हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका पुनः बाजय लगलाह - एतबे नहिं । धर्मशास्त्र क अनुसार चलने सभटा 'सेविंग सैलून' (हजामत क दोकान) टूटि जायत और समस्त 'लौंड्री' (धोबी क दोकान) कैं तीन दिन बन्द राखय पड़त ।

हम - से किऎक, खट्टर कका ?

ख०- देखह , शास्त्र में लिखैत छैक जे -

          नापितस्य  गृहे  क्षौरं  शिलापृष्टे तु  चन्दनम्  ।
          जलमध्ये   मुखं दृष्ट्वा  हन्ति  पुण्यं पुराकृतम ॥  (नीति दर्पण)
      

जौं हजाम क ओहिठाम जाकऽ केश कटाबी त पहिलुको सभटा पुण्य नष्ट भऽ जाय । और,

           आदित्यसौरिधरणीसुत   बा सरेषु
           प्रक्षालनाय रजकस्य न वस्त्रदानम ।
           शंसन्ति   किरभृगुगर्गपराशराद्याः
           पुंसां  भवन्ति विपदः सहपुत्रदारैः ॥ (रुद्रधरीय वर्षकृत्य )
        

जौं शनि, रवि ओ मंगल दिन धोबी कैं कपडा धोबक हेतु दिऎक त स्त्री-पुत्रसमेत नाना विपत्ति में पडि जाइ । शुक्र , भृगु, गर्ग और पराशर आदिक यैह मत थिकैन्ह ।

हम - खट्टर कका, ई सभ आचारक बंधन छैक ।

ख०- परन्तु जखन 'अति' भऽ जाइत छैक त आचारो 'अत्याचार' बनि जाइत छैक । सैह अपना देश में भेलैक अछि । पडिव कें कुम्हर नहिं खाइ, द्वितिया कें कटहर नहिं खाइ , तृतीया कें नोन नहिं खाइ, चौठ कें तिल नहिं खाइ, पंचमी कें आमिल नहिं खाइ, षष्ठी कें तेल नहिं खाइ, सप्तमी कें धात्रीफल नहिं खा ई, अष्टमी कें नारिकेर नहिं खाइ , नवमी कें कदीमा नहिं खाइ, दशमी कें परोर नहिं खाइ.............

हम - खट्टर कका। ई सभ की सरिपहुँ शास्त्रक वचन छैक ?

ख०- त कि हम अपना दिस सॅं बना कऽ कहैत छिऔह ? देखह परासर क वचन छैन्ह -

            कुष्माण्डं  वृहतीफलानि  लवनं  वर्ज्यं  तिलाम्लं तथा
            तैलं चामलकं दिवं प्रवसता    शीर्षं     कपालान्त्रकम  ।
            निष्पावाश्च  मसूरिका  फलमथो      वृन्ताकसंज्ञं  मधु
            द्युतं      स्त्रीगमनं  क्रमात    प्रतिपदादिष्वेव माषोडश  ॥
          

हम- तखन त प्रत्येक गृहिणी कैं ई भक्ष्याभक्ष्य क चार्ट बना कऽ राखय परतैन्ह ?

ख०- केवल भक्ष्याभक्ष्ये क किऎक ? बहुतो बात क । परन्तु तों भातिज थिकाह । सभ बात कोना कहिऔह ?

हम- खट्टर कका, शास्त्र में एहन-एहन-एहन बात किऎक भरल छैक ?

खट्टर कका भांगक गोला बनबैत बजलाह – हौ, पंडित लोकनि चालाक छलाह । जनता मुर्ख छल । तैं ओकरा काबू में करबाक हेतु ई लोकनि नाना प्रकारक बन्धन तैयार कैलन्हि । जेना मालजाल क हेतु छान-पगहा तैयार कैल जाइ छैक । और ई लोकनि तेना कऽ एहि देश के नथलन्हि जे की अङ्ग्रेज नथने छल ! जे काज शस्त्र क बल सॅं नहिं होइतैन्ह से शास्त्र क बल सॅं भऽ गेलैन्ह । ई लोकनि बात बात पर 'कंट्रोल' (प्रतिबन्ध) लगौलन्हि । अंग्रेज त भला रवि दिन छुट्टिओ दैत छलैक । परन्तु ई लोकनि त और लगाम कसि देलथिन्ह । एक आचार्य क हुकुम भेलैन्ह-

               मत्स्यं  मासं  मसूरं  च  कांस्यपात्रे  च भोजनम्  ।
              आद्रकं  रक्तशाकं    च    रवौ    हि   प्रवर्जयेत्  ॥(ब्रह्मबैवर्त)
      

अर्थात रवि दिन केओ माछ, मांस, मसुरीक दालि,आद ओ लाल साग नहिं खाय । कासा क थारी-बाटी में सेहो भोजन नहिं करय । दोसर आचार्य क फरमान बहरैलैन्ह -

             क्षौरं  तैलं  जलं  चोष्णमामिषं  निशि  भोजनम ।
            रतिं  स्नानं  च मध्याह्ने   रवौ  सप्त  विवर्जयेत ॥ (स्मृतिसंग्रह)
      

अर्थात रवि दिन ने केओ केश कटाबौ, ने तेल लगाबौ, ने गर्म पानिक व्यवहार करौ, ने राति में भोजन करौ, ने दुपहर में स्नान करौ, और ने ...... कहाँ धरि कहिऔह ? तों भातिज थिकाह ।

हम- खट्टर कका, एहन, एहन वचन पर लोक कें आस्था कोना कराओल गेलैक ?

खट्टर कका भांग घोरैत कहय लगलाह - स्वर्ग क लोभ ओ नरक क भय देखा कऽ । एही दूनू पहिया पर धर्मक गाडी चलैत छैक । ओना केओ अपन दुधार गाय ब्राह्मण कैं किऎक दितैन्ह ? तैं एहन वचन बना देलथिन्ह जे, जे ब्राह्मण कैं दुधार गाय दान करताह से स्वर्ग जैताह ।' परन्तु गाय ठहरतीह त ओढ़तीह की ? ओढ़ना चाही । और ब्राह्मण दूध पिउताह कथी में ? कासाक बट्टा में । अतएव सभटा विचारि कऽ पक्का मोसविदा बना देलथिन्ह -

            धेनुंच यो द्विजे  दद्यादलंकृत्य  पयस्विनीम्  ।
            कांस्यवस्त्रादिभिर्युक्ता  स्वर्गलोके  महीयते  ॥ (मनुस्मृति
        

बस स्वर्ग क लोभें यजमान लोकनि ओढ़ना ओ बट्टा समेत अपन अपन दुधार गाय लऽ कऽ ब्राह्मण क दरबाजा पर पहुँचय लगलाह । हौ, एहन एकबाल कि नबावीओ हुकूमत में चलल छलैक ?

खट्टर कका चीनी घोरैत बजलाह – हौ, स्वर्ग ओ नरक दूनू त अपने हाथ में छलैन्ह । जे बात पसिन्द पडलैन्ह ताहि पर स्वर्गक मोहर लगा देलथिन्ह । जे बात नापसिंद ताहि पर नरक क छाप लगा देलथिन्ह । कतेक ठाम त एना बुझि पड़ैत छैक जेना खिसिया कऽ शाप दऽ रहल होथि वा गारि पढ़ि रहल होथि । कोनो आचार्य कैं स्त्री सॅं झगड़ा भेल हेतैन्ह । एकटा वचन ठोकि देलथिन्ह -

           ॠतुस्नाता  तु  या नारी भर्तारं  नोपसर्पति ।
           सा  मृता  नरकं  याति विधवा च पुनः पुनः ॥
        

अर्थात 'ॠतुस्नान क उपरान्त जे स्त्री स्वामी क सेवन नहिं करथि से नरकजाथि और अग्रिम जन्म में बारंबार विधवा होथि ।' तहिना कोनो पंडित कें भावी श्वशुर कन्यादान मे किछु विलंब कऽ होइथिन्ह । बस सातो पुरुखा क उद्धार भऽ गेलैन्ह -

           प्राप्ते तु  द्वादशे वर्षे  यः  कन्यां  न प्रयच्छति  ।
           मासि मासि रजस्तस्याःपिबन्ति पितरोऽनिश्म  ॥
        

अर्थात् 'कन्या क बारहम वर्ष भेलो उत्तर यदि विवाह नहिं होइन्ह त हुनकर मासिक सोणित पितर लोकनि पिबैत छथिन्ह ।' एवं प्रकारें जिनका जे मन में ऎलैन्ह से एकटा श्लोक जोड़ि कऽ चला देलनि । 'इदं कुर्यात् इदं न कुर्यात्' यैह दूनू तानी-भरनी लऽ कऽ तेहन महाजाल बूनल गेल जे लोक ओझरा कऽ रहि गेल । एक त संस्कृत क श्लोक , ताहि पर विधिलिंग लकार । एक बेर जे श्लोक बनि गेल से बज्रलेख भऽ गेल । आब के पूछौ जे 'कथं न कुर्यात ?’ यदि केओ साहस कय मुँह खोललक त 'नास्तिक' कहौलक । एहना स्थिति में शास्त्र क विरोध के करौ ? एही द्वारे सत्या-सत्य क परीक्षा एहि देश में नहिं भऽ सकल ।

हम - खट्टर कका, अपना देश में वैज्ञानिक नहिं छलाह जे एहि सभ बात क समीक्षा करितथि ?

खट्टर कका भांग में चीनी मिलबैत बजलाह – हौ, एहि देश क जलवायु विज्ञानक अनुकूले नहिं छैक । जे विज्ञान जन्मो लेलक से शास्त्रक मसियौते बनि गेल । जे बात धर्मशास्त्र सॅं छुटल छलैक से ज्योतिष पूरा कऽ देलक । मनु, याज्ञवल्क्य आदि लोक कैं धर्मक हथकड़िलगौने छलथिन्ह, भृगु ओ गर्ग प्रभृति काल क बेरी पहिरा देलथिन्ह । ई काल बूझह त हमरा देश क महाकाल भऽ गेल । टाट बान्हु त दिन क विचार । खाट घोरू त दिन क विचार बाट चलू त दिन क विचार ।घाट जाउ त दिन क विचार । हाट जाउ त दिन क विचार । पाट कीनू त दिन क विचार । हौ, एतेक कतहु टंट-घंट भेलय ? जहाँ और देश क लोक विद्याक बलें अकाश में उडि रहल अछि तहाँ हमरा लोकनिक हमरा लोकनि क शास्त्र पैर में छान लगा देने अछि । यात्रा करु त मुहूर्त देखि कऽ । विवाह करु त मुहूर्त देखि कऽ । द्विरागमन करु त मुहूर्त्त देखि कऽ। और कहाँ धरि , गर्भाधान करू त मुहूर्त्त देखि कऽ ।

हम- खट्टर कका, ई अहाँ अतिश्योक्ति कय रहल छी । गर्भाधान कतहु पतड़ा देखि कऽ भेलैक अछि ?

ख०- तखन वचन सुनि लैह ।

            षष्ठ्यष्टमी  पंचदशी    चतुर्थी  चतुर्दशीरप्युभयत्र   हित्वा  ।
           शेषाः शुभाः स्युस्तिथयो निषेके वाराः शशांकार्यसितेंदुजाश्च ॥
      

षष्टी, अष्टमी, पूर्णिमा, अमावस्या, चौठ, चतुर्दशी - ई सभ तिथि एहि कार्य में वर्जित थीक । दिन में सोम, वुध, शुक्र, प्रशस्त थीक । नहिं विश्वास हो त ‘बृहज्ज्योतिषसा उनटा कऽ देखह ।

हम - खट्टर कका, अहाँ कैं ज्योतिष पर विश्वास नहिं अछि ?

ख०- हौ, फलित ज्योतिष जौं फलित हो तखन ने विश्वास हो ? परन्तु से होइत त एखन धरि हम कम सॅं कम अढाइ हजार बेर मरि चुकल रहितहुँ ।

ख०- देखह ज्योतिषक वचन छैक जे -

              रविस्तापं  कांतिं  वितरति  शशी  भूमितनयो
             मृतिं  लक्ष्मीं सौम्यः सुरपतिगुरुर्वित्तहरणम्     ।
             विपत्तिं  दैत्यानां  गुरुरखिलभोगानुगमनम्
             नृणां  तैलाभ्यंगात  सपदि कुरुते सूर्यतनयः   ॥
      

अर्थात् रवि दिन तेल लगौने कष्ट , सोम दिन कान्ति , मंगल दिन मृत्यु, बुधदिन लक्ष्मी, बृहस्पति दिन दरिद्रता , शुक्र दिन विपत्ति और शनि दिन सुख क भोग हो। एहि में कोन कारण-कार्य सम्बन्ध छैक से त साइंस बला जाँच करथु। परन्तु हम करीब पचास वर्ष सॅं सभ दिन तेल लगा रहल छी । एतबा दिन में २५०० मंगल त अवश्य पडल हैत । परन्तु आइ धरि हम जिबितहिं छी ।तथापि तों ज्योतिष में विश्वास करय कहैत छह ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, एकर उत्तर त कोनो ज्योतिषीए दऽ सकैत छथि ।

खट्टर कका अङ्गपोछा सॅं भांग छनैत बजलाह – ज्योतिषी की उत्तर देताह? अपने फंदा सॅं गर में फाँसी लागि जैतैन्ह । हौ, एकेटा दृष्टान्त दैत छियौह जे केहन गड़बड़ाध्याय लागि जाइत छैन्ह । देखह, ॠतु प्रकरण में कहैत छथि जे-

आदित्ये विधवा नारी (सोमे चैव मृतप्रजा )

अर्थात जौ कन्याक सर्वप्रथम ॠतुदर्शन रवि दिन होइन्ह त ओ विधवा होथि। और पुनः कहै छथि जे -

पंचम्यां चैव सौभाग्यं [षष्ठ्यां कार्यविनाशनम ]

अर्थात् यदि पंचमी तिथि में ॠतुदर्शन होइन्ह त कन्या सौभाग्यवती होथि । आब हम पुछैत छिऔह जे जौं पंचमी रवि क कन्याक ॠतुदर्शन होइन्ह तखन ओ कीहोथि ?

हमरा चुप्प देखि खट्टर कका बजलाह - और देखह, एक वचन छैन्ह जे -

(पौषे तु पुंश्चली नारी ) माघे पुत्रवती भवेत् ।

अर्थात माघमास में रजोदर्शन भेने पुत्रवती होथि । और दोसर वचन छैन्ह जे -

कृत्तिकायां च वंध्या स्यात् [रोहिण्यां चारुभाषिणी ] ।

अर्थात् कृत्तिका नक्षत्र में रजोदर्शन भेने वंध्या होथि । आब ज्योतिषी सॅं पुछहुन जे यदि माघमास कृत्तिका नक्षत्र में किनको 'रजोदर्शन' होइन्ह तखन त वंध्या-पुत्र क जन्म भऽ जैतैन्ह ?

हमरा निरुत्तर देखि खट्टर कका पुनः बजलाह - और तमाशा देखह । एक ठाम त कहैत छथि जे -

धने पतिव्रता ज्ञेया (मांसहीना च नक्रके)।

अर्थात धन राशि मे रजस्वला भेने पतिव्रता होथि । और दोसर ठाम कहै छथि जे -

मंदे च पुंश्चली नारी (ज्ञेयं वारफलं शुभम् )

अर्थात शनि दिन रजस्वला भेने व्यभिचारिणी होथि । आब तोंही कहह जे यदि धन राशि मे शनि दिन कन्या रजस्वला भऽ जाथि तखन ओ की करथि? हौ, कहाँ धरि कहिऔह ? ततेक पाखण्ड भरल छैक जे सभटा क उदघाटन कैने महाभारत क पोथा बनि जाय । तथापि पंडित लोकनि क आँखि नहिं फुजैत छैन्ह ।

हम छुब्ध होइत कहलिऎन्ह - खट्टर कका तखन की करबाक चाही ?

खट्टर कका बजलाह – हमरा लोकनि शास्त्रक नाम पर जे फुसि फटाका कमाला गाँथि क पहिरने छी तकरा विसर्जन करबाक चाही । बाधित वचन सभ पर हरताल लगैबाक चाही । दू परस्पर-विरोधी श्लोक मे सॅं जे मिथ्या सिद्ध होतकरा ग्रन्थ सॅं दूर करबाक चाही । परन्तु हमरा लोकनिक माथ पर सॅं जे ओ बडका भूत उतरय तखन ने ?

हम - कोन भूत , खट्टर कका ?

ख० - ‘लिखलाहा' क भूत । सभ किछु टरि सकैत अछि किन्तु 'लिख्लाहा'नहिं टरि सकैत अछि । जहाँ कोनो पंडित सॅं गप्प करह कि वैह माथ पर क भूत बाजय लगतैन्ह - “लिखल छैक जे ...।" हुनका कहून्ह जे 'औ बिलाँ ! लिखल छैक त रहऽ दिऔक । ओकरा नामे की अहाँ दमामी पट्टा लिखि देने छिऎक ? अपन बुद्धि कि कतहु बंधक राखल अछि ?” परन्तु यावत धरि ओ भूत माथ पर रहतैन्ह तावत कि पंडित लोकनि अपना मस्तिष्क सॅं किछु सोचि सकै छथि ?

हम - तखन भगैबाक उपाय ?

ख०- उपाय यैह जे पंडित लोकनि किछु दिन हमर सत्संग कैल करथु । परन्तु ओ लोकनि त हमरा गारिए पढ़ैत हेताह ।

हम - खट्टर कका , जे यथार्थ पंडित हैताह से अहाँ कैं गारि नहिं पढ़ताह ।

खट्टर कका लोटा में भांग घोरैत बजलाह - आब जे करथु । परन्तु हम मूँहदेखल त नहिंए कहबैन्ह । एहि देश में अन्धविश्वास क मूल स्रोत अछि शास्त्र। स्मृति, पुराण, ज्योतिष, कर्मकाण्ड । "एकैकम्प्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम् !”सहस्रो वर्ष सॅं लोक अज्ञान क बंधन में पड़ल अछि । भदबाऽ क बंधन, दिकशूल क बंधन , अधपहरा क बंधन , अतिचार क बंधन, ग्रह क बंधन, नक्षत्र कबंधन ! हौ, एतेक कतहु बंधन भेलय ? स्वाइत एहि देश क लोक मोक्ष क पाछाँ बेहाल रहैत अछि ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, ई त मार्मिक गप्प कहल ।

खट्टर कका क भांग तैयार छलैन्ह । हाथ में लोटा उठा बजलाह – हौ, हमही कहाँ धरि सोच करू ? जखन दस दसटा अवतार आबि कऽ एहि देशकउद्धार नहिं कय सकलाह तखन बेचारे एकटा खट्टर झा एसकर की करताह ?एही द्वारे त हम चिन्ताहरण बूटी कें सधने छी ।

ई कहि खट्टर कका भरलो लोटा भांग चढा गेलाह ।

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