लेखक : हरिमोहन झा

ओहि राति चन्द्र-ग्रहण लागल रहैक । सौंसे गामक लोक उमड़ि कऽ बड़का पोखरि में स्नान करैत छल । ओम्हर खट्टर कका अपना दलान में बैसल घूर तपैत रहथि । हम जा कऽ कहलिऎन्ह- खट्टर कका, ग्रहण स्नान नहिं करबैक ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, ई पूस मास ! पाला पड़ैत ! ताहि में आधा रातिकऽ हम नहाउ गऽ ? से कि हमरा कुकुर कटने अछि ?

हम कहलिऎन्ह - देखिऔक त स्नानक हेतु केहन भेड़ियाधसान मचल छैक?

खट्टर कका सिहरैत बजलाह - हे नारायण ! ई सन सन बसात ! ई कनकन पानि ! कनेक छूबी त आङुर बर्फ बनि जाय ! ताहि में ई सहस्रो नर-नारी भरि छाती पानि में ठाढ छथि ! कतेको बुद्धिमान एकटंगा देने छथि । बच्चा सभ ठिठुरि रहल अछि । मर्द सभ सर्द भऽ रहल छथि । कोमलांगी सभ कठुआ रहल छथि । पुरबैया क लहरा तीतल नुआ कैं चीरि कय युवती क छाती छेदि रहल छैन्ह । वृद्धागण थरथर काँपि रहल छथि तथापि पुण्यक लोभें सभ केओ ठेल मठेला करैत आगाँ बढल जा रहल छथि । हाय रे धर्म प्राण देश !

हम पुछलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ नहिंए नहैबैक ?

खट्टर कका बजलाह – हौ, चन्द्रमा पर पृथ्वीक छाया पड़ल छैन्ह । किछुकाल मे, अपने हटि जैतैन्ह । ताहि खातिर हम किऎक पानि में डूबू ? सौंसे गामक संग हमहूँ बताह भऽ जाउ ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, ओम्हर बोच बाबू कें देखिऔन्ह । कोना मूँह झपने जप कऽ रहल छथि ! हुनका एहि बेर ग्रहण देखबाक नहिं लिखैत छैन्ह। तैं उपर नहिं तकैत छथि ।

ख० - तकताह त की हैतैन्ह ?

हम - मृत्यु ।

ख० - मृत्यु त एक दिन हैबे करतैन्ह । ओ कि मुँह झपने मानतैन्ह ?

हम - राशि क विचारे मृतु फल लिखैत छैन्ह ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, हम त नेने सॅं सभटा ग्रहण देखैत एलहुँ अछि । ओहि में कतेको मृत्ययोग पार कऽ चुकल हैब । कहियो ओं सों सोमाय नमः नहि जपलहुँ । परन्तु राशिक फल कहाँ घटित भेल ? यदि सरिपहुँ एना होइतैक त अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, तुर्किस्तान, इंगलिस्तान - सभ एखन धरि कबिस्तान बनि गेल रहैत। केवल आर्यावर्त में बोच बाबू सन बुद्धिनिधान पृथ्वीक सोभा बढबैत रहितथि । `` ` `` ` ` ` परन्तु एहि देशक दिग्गज लोकनि कैं के बुझाबौ ?

हम - खट्टर कका, तखन एतेक रासे जे ग्रहण फल लिखैत छैक से कपोल-कल्पिते छैक ?

ख० – तों अपने विचारि कऽ देखह । राशिक अनुसार तोरा काकी कैं एहिबेर की फल बहराइत छैन्ह ? स्त्रीनाश ! फल बनाबऽ बला कैं एतबो ध्यान नहिं रहलैन्ह जे ई फल स्त्री, बालक ओ ब्रह्मचारी में कोना घटित हेतैन्ह ? हौ, बारहटा राशि में आठ टा क फल जानि बूझि कऽ अनिष्टे राखल गेल छैक । कोनो में व्यथा, कोनो में चिन्ता, कोनो में घात, कोनो में माननाश ! से जौं नहिं रहितैक त लोक काबू में कोना अबितैन्ह ? बूझह त ई ग्रहण चन्द्रमा कैं नहि लगैतछैन्ह । हमरा सभ कैं लगैत अछि ।

हम - से कोना ?

ख० - प्रथम त ई जे ग्रहण होइतहि हमरा लोकनि कैं अशौच लागि जाइ अछि । जेना जन्माशौच, मरणाशौच , तहिना ग्रहणाशौच ! एक पहर पहिनहिं सॅं भानस भात बन्द ! तदुपरान्त सभटा घैल-पातिल बाहर फेंकू । तीन तीन बेर स्नान करू । जनउ बदलू । और जौं अनिष्ट फल हो त शान्ति कराउ, जप करू, ब्राह्मण कैं दान दक्षिणा दिऔन्ह । हौ, ई सभटा बूझह त लेबक हेतु बनलैक अछि । एहि देश में 'ग्रहण' क अर्थे होइ छैक लेनाइ ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, ई त बेश कटगर कहल ।एतबहि में डोम सभ हल्ला उठौलक - ग्रहणदान ! ग्रहण दान !

खट्टर कका बजलाह – देखह, राहुक भाइ- बन्धु कोना अपन कर उगाहक हेतु दौड़ि रहल छथि । जखन रिशवत भेटि जैतैन्ह तखन सिफारिश कऽ कऽ चन्द्रमा कैं छोडबा देथिन्ह । ता चन्द्रमा राहुक दाँत तर पड़ल किकियाइत रहथु । तैं देखैत छह ने ? कतेक रुपैया अठन्नी बरसि रहल अछि ? हाय रे हमरा सभक बुद्धि !

हम - खट्टर कका, तखन अहाँक की विचार जे ई सभटा व्यर्थ थीक ?

खट्टर कका - व्यर्थ त थीके । आइ सम्पूर्ण देश में धमगज्जर मचैत हैत । सिमरिया में , दशाश्वमेघ मे, त्रिवेणी संगम में - लाखक लाख नरमुंडक समुद्र लहराइत हैत । ओहि में कतेक वच्चा हेराएत, कतेक बुढी पिचा कऽ मरतीह , कतेकयुवती मर्दित होइतीह, तकर ठेकान नहिं । और ई सभटा धर्मक नाम पर हैत । एहन धरमधकेल और कोनो देश में भेटतौह ? जहाँ युरोप अमेरिका कैं एकोपाइ खर्च नहिं हेतैक, तहाँ हमरा देश में आइ करोड़ो रुपया भुरकुस भऽ जायत। हमरा लोकनि केवल छाया क पाछाँ दौरय जनैत छी यदि एतबा टाका ठोस पृथ्वी में लगबितहुँ त आन देश सॅं अन्न नहिं माङ्गय पड़ैत । परन्तु की कहै छह? एहि देश में त सभ बात विचित्रे छैक । पेट में अन्न नहिं रहौक, डाँड़ में दम्मनहिं रहौक, तथापि सभ केओ स्वर्ग जैबाक हेतु फाँड़ कसने ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, एही धर्मान्धताक कारण कुंभस्नान मे कतेक गोटाक प्राण गेलैन्ह ।

ख० – हौ, मुर्खताक कुंभ भरि गेने एहिना होइत छैक ।

हम - खट्टर कका, एहि देश मे एतेक मुर्खता कोना पसरलैक ?

ख०- बेसी अगुताइ त ने छौह ? तखन बैसि जाह । एहि देशक मूर्खताक प्रधान कारण थिकाह पंडित लोकनि ।

हम - खट्टर कका, अहाँ त आश्चर्ये बजैत छी । पंडित कतहु मुर्खताक कारण होथि ?

ख० - हम सत्ये कहैत छिऔह । पंडित लोकनि कैं संयोगवश एकटा विद्या हाथ लागि गेलैन्ह - ग्रहण क ज्ञान । आइ-काल्हि त विज्ञानक साधारणो विद्यार्थी गणित द्वारा एतबा जानि जाइ अछि । परन्तु ताहि दिन ई वस्तु अलौकिक चमत्कार कऽ कऽ बुझना गेल । फलस्वरूप पंडित लोकनि ग्रहण क नाम पर ग्रहण करय लगलाह । सूर्य-चन्द्रमा सोना-चानी बनि गेलथिन्ह । इ विद्या बूझहत हुनका हेतु कामधेनु सिद्ध भऽ गेलैन्ह । दूनू हाथे दूहय लगलाह । लोक कैं हुनका पर अखंड विश्वास जमि गेलैक । "जखन आकाशक हाल ई पहिनहि बूझि जाइत छथि तखन पृथ्वीक हाल किऎक ने बुझताह ?” पंडितो सभ तेहन क्रम बनौलन्हि जे "हम सभटा भविष्य जनैत छी तों खर्च करह । हम गणनाकय सभ बात कहि देबौह ।" बस चन्द्रग्रहण क संग-संग पाणिग्रहणो क हाल कहय लागि गेलथिन्ह । साधारण जनता त मूर्ख छले । पंडित लोकनि और निपट्ट बना देलथिन्ह । सभ बात में ग्रह क फेऱ लगा देलथिन्ह ।

हम - से किऎक, खट्टर कका ?

ख० - लेबक हेतु । सेहो केहन चमत्कार-पूर्वक ! चन्द्रमा ओ शुक्र क नाम पर उज्जर रंगक पदार्थ – जेना उज्जर चाउर, उज्जर वस्त्र, उज्जर बरद, चानी, मोती,दही, कपूर । शनि केतु क नाम पर कारी रंगक पदार्थ –जेना कारी तिल, कारी उरीद, कारी कंबल , कारी छागर, कारी मणि । सूर्य ओ मंगल क नाम पर लालवस्तु जेना- सोना, गहूम, मसुरी, गुड़, केसर, सोन, लाल वस्त्र, लाल गाय, लाल मणि । हौ, हमरा त ई सभ कविता जकाँ बुझि पडैत अछि ।

हम - परन्तु यजमान लोकनि कैं त ई कविता बड्ड महग परल हेतैन्ह ।

ख०- ताहि में कोन संदेह ? ओना त केओ अपना मने एक सितुआ घी नहि दितैन्ह । चन्द्रमाक नाम पर घृतक घैले समर्पण करय लगलैन्ह । देखह, घृत लेबक हेतु केहन सुन्दर श्लोक बनाओल छैक -

            घृतकुंभोपरि निहितं शंखं  नवनीतपूरितं  दद्यात ।
            नाड्यादिदोषशान्त्यै   द्विजाय    दोषाकरग्रहणे  ॥
        

अर्थात "चन्द्रग्रहण में घृतक घैल पर शंख में माखन भरि कऽ ब्राह्मण कैं दान करय त नारी-शान्त होइक ।" पंडित लोकनि तेना कऽ यजमानक नाड़ी अपना मुट्ठी में कैलन्हि जे यजमान भरि जन्म अनाड़ी बनल तहि गेलाह । केवल नाड़िए नहिं , यजमानक नारी सेहो पंडित क मुट्ठी में आबि गेलथिन्ह । तेहन पंचांग क जाल पसारल गेल जे यजमान-यजमानिनीक पाँचो अंग ओहि में फँसि गेलैन्ह ।

हम - खट्टर कका, अहाँ त अलंकारे में गप्प करैत छी ।

ख०- अलंकारे नहिं , यथार्थ कहैत छिऔह । ई पंडित लोकनि यजमानिनीक केश पर्यन्त अपना हाथ में कऽ लेलथिन्ह ।

हम - से कोना ?

ख०- देखह, एखन धरि पंचांग में स्त्रीगणक केश बन्हबाक मुहुर्त छपि रहल अछि ।

हम - खट्टर कका, हमरा विश्वास नहिं होइत अछि ।

खटर कका सीरम तर सॅं 'मिथिलादेशीय पंचांगम' बहार कैलन्हि । बजलाह-तखन देखि लैह । प्रारम्भहि में स्त्रीणां केशबंधन मुहुर्तः । अश्विनी, आर्द्रा, पुष्य,पुनर्वसु नक्षत्रेषु । हम पुछैत छिऔह जे भरणी , कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा नक्षत्रेषु किऎक नहिं ? यदि कोनो स्त्री रोहिणी नक्षत्र में खोपा बान्हि लेतीह त एहि में पंडितक की बिगड़ि जैतन्हि ? जखन ओ अपन टीक पतडा़ देखि कऽ नहिं बन्है छथि त स्त्रीगण किऎक पतड़ा देखि कऽ अपन केश बन्हतीह ?

हम - खट्टर कका, हमरा नहिं जानल छल जे इहो सभ बात पतडा़ में लिखल रहैत छैक ।

खट्टर कका बजलाह - पंडित लोकनि और लिखताहे की ? चूल्हि कहिया गाड़ल जाय, नवबधु कोन दिन भानस में जाथि, प्रसूती कोन तिथि में नख कटाबथि , कोन लग्न में स्नान करथि , कोन समय लहठी पहिरथि, कखन स्तन पान कराबथि, और कोन देशक कलेंडर में एहन एहन बात भेटतौह ?

हम - खट्टर कका, ई सभ की वास्तव में लिखल छैक ?

खट्टर कका पतडा़ हमरा हाथ में दैत बजलाह - तखन तों अपने आँखि सॅं देखि लैह । केहन बडका पुच्छर में देल छैक ! चिल्हिका-स्थापनम। नववध्वाः पाकारम्भः । प्रसूतीनां कखछेदनम । सूती-स्नानम् । स्त्रीणां लाक्षाभरणधारण्म। शिशोः स्तनपानम् ।`` ` ` ` ` ` `` ` सभक मुहूर्त देल छैक । और अपना देशक बड़का-बड़का पंडित एकर अनुमोदन-कर्त्ता छथि । देखह केहन केहन लब्ध प्रतिष्ठ धौतपरीक्षोत्तीर्णक नाम एहि पर छपल छैन्ह !

हम - खट्टर कका, एहन एहन मौगियाही बात में पंडित लोकनि कैं पड़बाक कोन प्रयोजन ? हुनका लोकनि कैं अधिक महत्वपूर्ण विषय में बुद्धि लगाबक चाहिऎन्ह ।

ख०- हौ, एहि देशक पंडित तेहन पुरुखाह रहितथि त कनितहुँ किऎक ? परन्तु ई लोकनि त 'स्त्रीणाम् अङ्गस्फुरणफलम्' में अपन पाण्डित्य खर्च करैत छथि ! स्त्रीक जाँघ फरकैन्ह त स्वामीक दुलार भेटैन्ह, डाँडक समीप फरकैन्हत नीच सॅं प्रेम होइन्ह, नाभि फरकैन्ह त पतिक नाश होइन्ह , स्तन फरकैन्ह त विजय होइन्ह । पंडित हिनका लोकनिक अंग अंग जकडि नेने छथिन्ह । तेहन पंचांग बना कय उपर सॅं धऽ देने छ्थिन्ह जे समाज कैं अर्धांग मारि देने अछि ।

हम - परन्तु पंचांग में महत्वोक बात त रहैत छैक । यथा वृष्टियोग, वर्षफल। खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह - तखन एही वर्षक फल देखह । एहिबेर‘पराभब' नामक संवत्सर लिखैत छथि, जकर फल - पीडिताश्च प्रजाः सर्वे भयभीता पराभवे ।अर्थात प्रजा पीड़ित रहथि; सभ केओ भयभीत रहथि ।

हम - तखन त वर्षफल बड्ड अधलाह छैक ।

ख० - थम्हह । वर्षेश वृहस्पति छथि, तिनकर फल -

            विप्रा  यज्ञरता  भवन्ति  तपसा शस्यैः क्षितिर्व्यापिता
            राजा  मन्त्रियुतो गजैश्च महिषैर्देशः   समृद्धालयः      ।
            रोगं  ध्नन्ति  सुवृष्टयः  प्रतिदिनं क्रूरा विनश्यन्ति  वै
            चौरव्याघ्रभुजंगमाश्च  बहुधा  नश्यन्ति  जीबेऽब्धपे     ॥
        

भावार्थ ई जे अन्न-पानि गाय-महिष सॅं देश समृद्धिशाली रहय, खूब वृष्टि होय,रोग चोर ओ हिंसक जन्तुक नाश हो, राजा-ब्राह्मण अपना कर्म में संलग्न रहथि।

हम - तखन त वर्षफल बड्ड बढिया भेल । प्रजा क कोनो बातक कष्ट नहिं रहतैक ।

ख० - थम्हह । एहिबेर 'संबाहक' नामक सूर्य छथि । तिनकर फल -

            आदित्ये  बहुवित्त नाशनपरा  लोका  ज्वरव्याकुलाः ।
            मेघानां  जलहानिरेव महती  शस्यस्य नाशो ध्रुवम    ॥
        

अर्थात एहि वर्ष धनक नाश हैत, लोक ज्वर सॅं पीड़ित रहत, मेघ नहिं बरसत और अन्न नहिं होयत ।

हम - आहि रौ बाप ! ई त सभटा अधलाहे भेल । रौदी ओ अकाल सॅं लोक तबाह भऽ जायत ।

ख० - थम्हह । एहि बेर 'संबर्त्तक' नामक मेघ छथि, तिनकर फल -

            संबर्त्तके  महावृष्टिः   शस्यवृद्धिकरी  शुभा ।
            जलपूर्णा  मही नित्यं जलदेर्वेष्टतं     नभः  ॥
        

अर्थात एहि वर्ष अत्यन्त वृष्टि हैत, खूब अन्न उपजत, पृथ्वी जलमय भऽ जैतीह और आकाश में सभ दिन मेघ लगले रहत ।

हम - खट्टर कका, ई त ततेक रंगक बात लिखल छैक जे बुद्धिए नहिं काज करैत अछि ।

ख०- यैह त तारीफ छैक । ई जाल तेहन कौशल सॅं बूनल छैक जे केओ पकडि़ये नहि सकैत अछि । देश में अतिवृष्टि भेल त 'संवर्त्तक' नामक मेघक फल थीक । अनावृष्टि भेल त 'संबाहक' नाम सूर्यक फल लिखने छलहुँ । देशमें कतहु अतिवृष्टि कतहु अनावृष्टि भेल, त 'हम दूनू तरहक फल लिखने छलहुँ'। हौ, हिनका लोकनि सॅं पार पाएब कठिन ।

हम - परन्तु पंचांग में कतेक बात त एहनो त छैक जे देखि कय आन देशक विद्वान चकित रहि जाथि ।

खट्टर कका व्यंग्यपूर्वक बजलाह – हॅं , जेना पृथ्वी कोन समय शयन करैत छथि, कोन समय जागल रहैत छथि । अग्नि कोन दिन आकाश में रहैत छथि, कोन दिन पाताल में । कोन साल दुर्गाजी हाथी पर चढि कऽ अबैत छथि, कोन साल महफा में सवार भऽ कऽ । शिवजी कहिया बसहा पर रहैत छथि, कहिया गौरीक संग विहार करैत छथि ।

हम – शिवजी कहिया विहार करैत छथि सेहो पतड़ाबला जानि जाइत छथिन्ह ?

ख०- केवल जानिए नहिं जाइत छथिन्ह, ओहि समय पूजो करबैत छथिन्ह। देखह, श्रावण कृष्ण चतुर्दशी में पंचांगकार लिखैत छथि- कामविद्धो हरःपूज्यः।

हम - खट्टर कका, अहाँ त तेहन तेहन बात देखा दैत छी जे हमरा किछु जबाबे नहिं फुरैत अछि ।

ख०- जबाब की फुरतौह ? एहि देशक पंडित-ज्योतिषी प्रणम्य देवता थिकाह। एकटा दूरबिन आविष्कार करताह से त हेतैन्ह नहिं, घर में बैसल-बैसल “सम्मुखे चार्थलाभश्च वामे चन्द्रे धनक्षयः करैत रहताह । एही द्वारे जहाँ रूस-अमेरिका चन्द्रलोक पर पहुँचबाक तैयारी कऽ रहल अछि , तहाँ अमरा लोकनि एखन धरि हाथ में केरा लय चतुर्थी चन्द्राय नमः कय रहल छी !

हम - खट्टर कका, चन्द्रमाक नाम लेल त चन्द्रग्रहण मन पड़ि गेल । आइ चूड़ामणि योग थिकैक ।

खट्टर कका विहुसैत बजलाह – हॅं। आइ कतेक गोटा यजमान क घर चूड़ा ढाहताह । गोटेक कैं मणिओ हाथ लागि जाइन्ह त आश्चर्य नहिं । तखन चूड़ामणि योग में कोन सन्देह ? हौ, एहन एहन योग बनाबयबला चतुर-चूड़ामणि छलाह ।

हम - खट्टर कका, आइ कतेक गोटा मंत्रो लेताह ।

ख०- हॅं गुरु कान में एकबेर 'ह्रीं' कहि देथिन्ह और चेला सॅं भरि जन्म हींग चुअबैत रहथिन्ह । 'ह्री' क अर्थ छैक लज्जा, परन्तु ह्रीं कहबाक काल हुनका कनेको लज्जा नहिं होइ छैन्ह जे परतारि रहल छिएक । हौ, चेला मुड़बाक एहन सुगम तरीका कोनो देशबला बहार कैने छथि ?

हम - खट्टर कका, हम त एतीकाल गप्पे में बाझल रहि गेलहुँ । आब जाय दिय । कम सॅं कम उग्रासो त नहा ली ।

खट्टर कका बजलाह – हॅं , हॅं , अबश्य, अबश्य । एक डूब हमरो साँती लगौने अबिहऽ ।

हमरा उठैत देखि खट्टर कका पुनः मुसकुराइत बजलाह – चन्द्रमा क सर्वग्रास भेल छलैन्ह से त छुटलैन्ह। परन्तु एहि भारत-भूमिक जे सर्वग्रास भेल छैन्ह ताहि सॅं उद्धार होइन्ह तखन ने ! ई मुर्खता रूपी राहु कहिया हमरा लोकनिक पिंड छोड़ताह से के कहि सकैत अछि ? हम त ओहि उग्रासक बाट ताकि रहल छी। ई कहि खट्टर कका श्लोक पढय लगलाह -

            भारतं   चन्द्रवत   ग्रस्तं  मौर्ख्यरूपेण  राहुणा  ।
            न  जाने  केन  यत्नेन कदा  मोक्षः भविष्याति  ॥
        

----------------------------