लेखक : हरिमोहन झा

खट्टर कका कोल्हुआड़ में रस पेरबैत रहथि । हमरा देखि बजलाह - आबह, आबह । तोंहू एक गिलास पीबि लैह । शीतल भऽ जैबह ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, शीतल त लोक अहाँक बाते सॅं भऽ जाइ अछि । अहाँ आनन्द-मूर्त्ति छि ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, जीवन में और छैहे की ? आनन्द ली और दी । एक हमरे सन व्यक्ति बहुत पहिने कहि चुकल छथि -

यावज्जीवेत् सुखं जीवेत ॠणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।

रस पीबी ओ रस बाजी । यावत ई देह छथि तावत् संसारक रस लऽ ली फेर त-

बहुरि एहि जग जन्म नाहीं, नाहिं ऎसो देह ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, परन्तु अपना देशक बड़का-बड़का दर्शनकार त दोसरे रंग कहै छथि ।

खट्टर कका कैं हॅंसी लागि गेलैन्ह। बजलाह – हौ, दर्शनकार सभक आँखि पर तेहन मोक्षक मकड़ जाला लागल छैन्ह जे ओ संसार कैं देखिऎ नहिं सकैत छथि ।

हम - खट्टर कका, जीवनक चरम लक्ष्य थीक मोक्ष। तकरा विषय में अहाँ ए ना बजैत छी ?

खट्टर कका एक बाल्टी रस छनैत कहय लगलाह- यैह चरम लक्ष्य त हमरा लोकनि कैं लाहेब कऽ देलक। 'ई जीवन दुःखमय। संसार दुःखमय।' जे केओ ऎलाह से यैह विरहा गबैत। 'एहि संसार सॅं कोना छुटकारा हैत?’ जेना ई संसार जेल हो! आन आन देशक लोक एहि संसार कैं क्रीड़ागार कऽ कऽ बुझैत अछि । ई लोकनि कारागार कऽ कऽ बुझलन्हि। एही बुद्धि सॅं हमरा लोकनिक विद्ये बताह भऽ गेल। मोक्षक तेहन चसका लागल जे की लोक कैं हफीमक चसका लगतैक! तैं ठाम-ठाम मोक्षक दोकान खुजि गेल। न्याय, सांख्य ओ वेदान्त क कोन कथा जे व्याकरण, छंद ओ आयुर्वेद- इहो सभ मोक्षक एजेंट बनि गेलाह। 'आउ, हमरो गोदाम में मोक्ष भेटैत अछि।' यदि ई नहिं कहितथिन्ह त केओ लग में जैबे नहिं करितैन्ह । कपिल-कणाद सॅं लऽ कऽ कबीर-कवीन्द्र धरि एक्के चरखा ओटैत ऎलाह! जहाँ और और देश में न्यूटन ओ गैलीलियो जन्म लेल न्हि तहाँ हमरा लोकनि में भेलाह के, त नानक ओ दादुदयाल! जहाँ और लोक पृथ्वी पर अपन अपन झंडा फहरा रहल अछि, तहाँ हम सभ खजुरी पर गबैत छी- यह संसार विराना है।

हम- खट्टर कका, यैह दृष्टिकोण त हमरा लोकनिक विशेषता थीक।

खट्टर कका रस में दूध मिलबैत बजलाह- हॅं, से त थीके। कनही गायक भिन्ने बथान। हमरा लोकनि संसार भरि कैं बूड़ि कऽ कऽ बुझैत छिऎक। और अपना मनें बुधियार बनैत छी जे असली घी हमरे टाड़ा में अछि । युरोप-अमेरिकाक सभ्यता कैं हम 'दालदा' बूझि क अवहेलना करैत छिऎक। परन्तु हमरे मोक्षमा र्का कंटर में घी हरल अछि, से के कहि सकैत अछि ? ई कंटर त आइ धरि केओ खोलि कऽ देखलक नहिं ।

हम - परन्तु अपना ओहि ठामक मनीषी लोकनि मोक्ष-प्राप्तिक उपायो देखा गेल छथि ।

खट्टर कका रस मे अणाचीक बुकनी दैत बजलाह – हौ, उपाय की एकटा, दूटा ? ढाकीक ढाकी । 'एना कऽ नाक दबाउ त पुनर्जन्म न विद्यते । ई नाम जप करू त पुनर्जन्म न विद्यते । अमुक जल में स्नान करू त पुनर्जन्म न विद्यते । ई मंत्र जप करू त पुनर्जन्म न विद्यते ।' ```` एहन सन क्रम जे पुनर्ज न्म गरक ढोल थीक । से यावत उतारि कऽ फेकब नहिं तावत् उद्धार नहिं । तैं भरि जन्म ओम वा होम करैत रहू ।

हम - खट्टर कका, अहाँ के मोक्ष में विश्वास नहिं अछि ?

ख० – हौ, मूलं नास्ति कुतः शाखा ! जखन पुनर्जन्मे नहिं मानैत छी, तखन मोक्ष क कोन गप्प ? असल मे पूछह त ने सोनू साह, ने सहिजनक गाछ। लोक व्यर्थ वकांडक-प्रत्याशा मे लागल रहैत अछि । तैं हम कहैत छिऔह जे एहि जीवन में जे आनन्द , सैह असली आनन्द । लैह रस पीबह ।

एतबहि मे पहुचि गेलाह नैयायिकजी । ओ शास्त्रार्थक मुद्रा मे बजलाह – जैं पुनर्जन्म सत्य, तैं ने अबोध शिशु कैं पूर्व संस्कारवशें स्तन देखि पान करबाक प्रवृत्ति होइ छैक ।

खट्टर ककाक ठोर पर मुस्की आबि गेलैन्ह । कहलथिन्ह - यदि यैह तर्क, तखन ओकरा पूर्व संस्कारवशें मर्दन करबाक प्रवृत्ति किऎक नहिं होइ छैक ? पान त केवल एक-दू वर्ष कैने हैत , परन्तु मर्दन त जीवन भरि चलल हेतैक ।

नै० – अहाँ त परिहास करैत छी । परन्तु देखू, कोनो नेना जन्मे सॅं तीव्र होइछ, कोनो मंद । ककरो सभ अंग पूर रहैत छैक, ककरो न्यूनाधिक । एना किऎक होइ छैक ? पुनर्जन्म कऽ कर्मफल सॅं ।

खट्टर कका लोटा मे रस ढारैत बजलाह – औ नैयायिक ! कुसियारक खेत में कोनो कुसियार मोटगर बहराइत छैक, कोनो पातर । कोनो सोझ,कोनो टेढ। कोनो वेसी मीठ, कोनो कम मीठ। तकर की कारण ? बीज, क्षेत्र, खाद्य आदिक प्रभाव सॅं एना होइत छैक । सैह बात नेनो मे बूझू ।

नै० - तखन अहाँ अदृष्ट नहिं मानैत छी ?

ख० – देखू , किछु कारन प्रत्यक्ष होइ छैक। जेना कपार फुटला सॅं टेटर भऽ जाइ छैक । परन्तु किछु कारण अज्ञात होइ छैक । जेना हमरा पीठ पर एकटा मस्सा अछि । कोनो बालि में पीयर दानाक बीच में गोटेक लाल भऽ जाइ छैक। कारण त किछु अवश्ये हेतैक । परन्तु से ज्ञात नहिं । यैह अदृष्ट थीक ।

नै० – अहाँ त दोसरे अर्थ लगा दैत छिऎक । हम पुछै छी जे कर्म-फल अहाँ मानैत छी कि नहिं ?

ख० – जहाँ कार्य-कारण-सम्बन्ध छैक तहाँ अवश्य मानैत छी । जेना भाँटा मे पानि पटायब त बेसी फरत । परन्तु ई नहिं जे एहि जन्म में भाँटा दान करब त दोसर जन्म में भँटबर खा लेब ।

नै० - एकर अर्थ जे अहाँ प्रत्यक्ष वादी छी । परन्तु प्रारब्ध कोनो वस्तु नहिं, तखन एक गोटा राजा भऽ कऽ जन्म लैत अछि , दोसर भिक्षुक भऽ कऽ । से किऎक ?

ख० – औ नैयायिक ! जखन दृष्टि कारण मौजूद अछि तखन अदृष्ट कल्पना किऎक करब ? धनिक ओ गरीब सामाजिक ढांँचा पर निर्भर छैक । आन देश ओहि ढाँचा कैं बदलि रहल अछि । आइ रूस में केओ राजा भऽ कऽ नहिं जन्म लैत छैक , ने अमेरिका में भिक्षुक भऽ कऽ । और अहाँ वैह प्रारब्धक गीत गाबि रहल छी ! लिय रस पीबू ।

नैयायिकजी रस पीबि बजलाह – संचित, प्रारब्ध ओ क्रियमाण, ई तीनू कर्म त मानहि पड़त ।

खट्टर कका लोटा अलगा कऽ भरि छाक रस पिउलन्हि । तखन सुभ्यस्त भऽ कहऽ लगलथिन्ह – औ नैयायिक ! कनेक फरिछा कऽ कहू । जेना बंक में तीन तरहक हिसाब १. Fixed Deposit , २. Seving Bank, ३. Current Account, रहैत छैक, तहिना अहूँ लोकनिक कर्मक तीन टा खाता रहैत अछि । अहाँ लोकनि जे किछु करै छी , से चित्रगुप्त क बही में दर्ज भेल जाइ अछि । ओ तेहन पक्का हिसाब रखैत जे ककरो एको पाइक गड़बडी नहि होइ छैक और जकरा जतवा अंश जहिया भेटबाक चाही से ठीक समय पर किश्त-ब-किस्त अदाय होइत रहै छैक । यैह बात छैक ने ? नैयायिकजी !

नैयायिकजी प्रशन्न भय बजलाह – हॅं, हॅं। अहाँ बेस फरिछा कय कहलहुँ ।

खट्टर कका पुनः कहय लगलथिन्ह - आब विचारू । एहि जन्म में पुण्य करबाक अर्थ की भेल ? अग्रिम जन्मक हेतु सुखक बीमा करायब । और पाप करब की थीक ? एक तरहक उधार खायब, जकर मुल्य अग्रिम जन्म में सधाबय पड़त । यावत धरि ई लेनदेनक सिलसिला जारी रहत तावत पर्यन्त जन्म लेबहि पड़त । जखन हिसाब-किताब साफ भऽ जाएत, तखन फारखती भेटि जायत । अर्थात गरक उतरी टुटि जायत । यैह भेल मोक्ष ! की औ, नैयायिकजी ?

नैयायिकजी उल्लसित होइत बजलाह – ठीक, ठीक, ठीक ।

खट्टर कका कहलथिन्ह - बेस । त एकर अर्थ ई भेल जे ॠणे भरक हेतु हमरा सभक जन्म होइ अछि । एहि जन्म में किछु त चुकता भऽ जाइ अछि और किछु नवो ॠण चढि जाइत अछि । अतएव उचित ई थीक जे कर्जक बोझ नहिं बढाबी और जहाँ धरि भऽ सकय, जल्दी सॅं जल्दी मिनहा-मंसुफ करा कऽ ऋणपत्र सॅं उद्धार पाबि जाइ । की औ नैयायिकजी ?

नैयायिकजी गदगद होइत बजलाह – बस,बस, बस । यैह बात छैक । जतेक जल्दी बंधन सॅं मोक्ष भेटि जाय ततेक नीक ।

खट्टर कका कहलथिन्ह - तखन त नव खाता नहिं खोली ? अर्थात नवीन कर्म आरम्भ नहिं करी ? आब अहीं कहू जे एहि प्र्कारक सिद्धान्त अकर्मन्यता पर लऽ जायत कि नहिं ?

नैयायिकजी कैं बूझि नहिं पड़लैन्ह जे खण्डन करी वा मण्डन । किछु बाजि देबाक चाही, तैं बजलाह -

अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम ।

जिव कैं क्रमानुसार मनुष्य, पशु, पक्षी, सरीसृप, कीट, पतंग वा उदभिज योनि में जन्म लेबय पडैत छैक । सभ अपना प्रारब्धक भोग करैत अछि ।

खट्टर कका कहलथिन्ह – बेस, सामने खेत में धानक गाछ लहरा रहल अछि । तखन त अहाँक हिसाबें लाखो जीवात्मागण पाँती-जोड़ सॅं ठाढ भेल अपना पूर्वकर्मक फल भोगि रहल छथि ।

नै० - (किछु कुण्ठित होइत) – हॅं ।

ख० – बेस, हम पुछैत छी । एकटा बाढि आओत त ई सभ धान दहा जाएत। कि ईहो प्रारब्धक फल हैतैक ?

नैयायिकजी 'हॅं' ‘नहि' किछु नहि बजलाह ।

खट्टर कका कहलथिन्ह - तखन त खेत में बान्ह नहिं बान्ही ? जीवात्मा लोकनि कैं प्रारब्धक भोग करय दिऎन्ह ?

नैयायिकजी चुप ।

खट्टर कका कहलथिन्ह – औ, एकटा भूकम्प में हजारो मनुष्य दबि जाइत अछि । एकटा बिहाड़िक झोंक में लाखो मच्छर नष्ट भऽ जाइ अछि । एहू में कर्मफलदाताक पूर्वरचित योजना रहैत छैन्ह ?

नैयायिकजी गोङ्गियाइत बजलाह - कृतकर्मणा भोगादेव क्षयः ।

खट्टर कका बजलाह - तखन औ नैयायिकजी ! हम पुछैत छी जे देश में लाखक लाख व्यक्ति अकाल सॅं पीड़ित होइ छथि । हम किऎक हुनकर सहाय ता करिऔन्ह ? कोनो अबला पर बलात्कार होइ छैन्ह । हम किऎक दौड़िऔन्ह ? ओ अपन प्रारब्धक फल भोगैत छथि। फल भोगि नेने ओतबा बंधन कटि जैतैन्ह । तखन हम बीच में पड़ि कऽ मोक्ष में बाधक किऎक बनिऔन्ह ?

नैयायिकजी कैं गोङ्गियाइत देखि खट्टर कका पुछलथिन्ह – अच्छा, एकटा त कहू । एखन पृथ्वी पर धर्मक आधिक्य अछि कि पापक ?

नै० - कलियुग में पापक आधिक्य होइछ ।

ख० - जे मनुष्य पाप करैत अछि तकरा त फेर मनुष्यक शरीर नहिं भेटक चाही ?

नै० – नहिं ।

ख० - तखन मनुष्यक संख्या दिनानुदिन कम्म होमक चाही ?

नै० – हॅं , से त चाही ।

ख० - तखन मनुष्यक संख्या दिनानुदिन बढि किऎक रहल अछि ? नैयायिकजी कैं सहसा उत्तर नहिं फुरलैन्ह ।

खट्टर कका पुछलथिन्ह – दुः ख-सुखक भोग त पापे-पुण्य सॅं होइत छैक ?

नै० - अवश्य ।

ख० - तखन त ई कोल्हुआड़क बड़द पूर्व जन्म में भारी पाप कैने छल ?और छीतन बाबूक कुकुर भारी पुण्य कैने छल ? हमरा पोखरिक माछ सभ ओ हि जन्म में ब्रह्महत्या कैने छल ? और मथुराक काछु सभ चान्द्रायण व्रत कैने छल ?

नैयायिकजी फेर गोङ्गियाय लगलाह ।

खट्टर कका पुनः छुटलथिन्ह – देखू , नैयायिकजी । अमेरिकाक लोक दिन में तीन तीन बेर माखन उड़बैत अछि और हमरा सभ कैं मट्ठो नहिं जुडैत अछि । ओ सभ 'मटन' खा कऽ बटन तोड़ैत अछि और हमरा लोकनि साम सुरड़ैत झाम गुड़ैत छी । तखन त अमेरिकन सभ पूर्वजन्मक धर्मात्मा थीक और हम- अहाँ पुरान पापी थिकहुँ । दोसर शब्दे एना कहू जे आइ-काल्हि बेसी धर्मात्मा अमेरिका में जा कऽ जन्म लैत छथि , और अधिकांश पापी एही देशक खातिर बथाएल रहैत छथि !

नैयायिक कैं चुप देखि खट्टर कका बजलाह - देखू, अहाँक सिद्धान्त सॅं धर्मात्मा लोकनि कैं गारि पड़ि जाइत छैन्ह ।

नै० - से कोना ?

खट्टर कका कहलथिन्ह – देखू, गर्भाधान क प्रक्रिया त जनले हैत ? शुक्रशय में जीवित किटाणु विद्यमान रहै छथि । जिनका सुयोग भेटैत छैन्ह से गर्भाशय में जा शरीर धारण कय लैत छथि ।

नै० – हॅं ।

ख० - तखन त ओ वीर्यकीट सूक्ष्म-शरीरधारी जीवात्मा थिकाह जे जन्म लेबाक पूर्व जननेन्द्रिय में निवास करैत छथि !

नैयायिक जी मुँह ताकय लगलथिन्ह ।

खट्टर कका कहलथिन्ह - तखन त ई मानय पड़त जे आइकाल्हि अधिकांश धर्मात्मा लोकनि मृत्युक उपरान्त अमेरिकन योनि में जा कऽ वास करै छथि ?

नैयायिकजी छिलमिला उठलाह । बजलाह – अहाँ त शास्त्रक उपहास करैत छी । तखन जे ओतेक रासे पुनर्जन्म ओ मोक्षक विवेचन कैल गेल छैक से फूसि ?

खट्टर कका शान्त भाव सॅं उत्तर देलथिन्ह - फूसि कि सत्य से तऽ हम नहिं कहब । परन्तु अहाँक मोक्ष अनोन धरि अवश्ये अछि । जाहि मोक्ष मे सुख-दुः खक कोनो अनुभवे नहि, से मोक्ष लऽ कऽ लोक की करत ? एक आलोचक त एतेक दूर धरि कहि गेल छथि जे ओहन मोक्ष सॅं जंगल में सियारक जीवन नीक -

                  वरं  वृन्दावनेऽरण्ये  श्रृगालत्वं  भजाम्यहम्  ।
                 नहिं  वैशेषिकीं  मुक्तिं  प्रार्थयामि कदाचन    ॥
        

नैयायिकजी बजलाह - तखन गौतम ओ कणाद मुर्ख छलाह ?

खट्टर कका कहलथिन्ह - सेहो हम नहिं कहब । परन्तु आलोचक क उक्ति छैन्ह जे -

                  मुक्तये  सर्वजीवानां  यः  शिलात्वं  प्रयच्छति  ।
                 स एकः  गौतमः प्रोक्त  उलूकश्च   तथाऽपरः   ॥
        

गौतम ओ कणाद, दूहू क अनुसार मोक्ष क अर्थ पाथर जकाँ निश्चेष्ट भऽ गेनाइ। तैं एक गोटा 'गौतम' (बड़द) ओ दोसर गोटा 'उलूक' नाम सॅं प्रसिद्ध छथि।

नैयायिकजी कैं आब बेसीकाल धरि ओहिठाम रहब समीचीन नहिं बुझना गेलैन्ह । बजलाह - एखन त विद्यालयक समय भऽ गेल । कहियो दोसरा दिन आबि कऽ हम शास्त्रार्थ करब ।

खट्टर कका मुस्कुराइत उत्तर देलथिन्ह - अवश्य करब । अहाँ लोकनिक अनुमान लिंग-परामर्श पर आधारित होइ अछि । व्यभिचार दोष नहिं लागय । तैं खूब नीक जकाँ व्याप्ति क विचार कऽ कऽ आएब । लियऽ, नोसि लियऽ ।

नैयायिक क गेला पर हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, आइ नैयायिकजी कुयात्रा मे चलल छलाह । परन्तु ई त कहू जे अहाँ कैं सरिपहुँ आत्मा मे विश्वास नहिं अछि ?

ख० – आत्मा सॅं तोहर की अभिप्राय ?

हम - हम अहाँ मे की जूमब ? परन्तु मृत्युक उपरान्त कोनो ने कोनो रुप में चैतन्यक आधार कायम रहैत छैक । सैह आत्मा थीक ।

खट्टर कका सुपारीक कतरा करैत बजलाह – हौ, यैह त हमरा बुझबा में नहिं अबैत अछि । जखन संपूर्ण शरीर जरि कऽ भस्मीभूत भऽ गेलैक तखन ओकर आश्रित चैतन्य रहतैक कथी में ?

हमरा मुँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह - देखह, यदि हम एक भंगघोटना कसि कऽ तोरा ब्रह्माण्ड पर लगबिऔह त चैतन्य कतय जैतौह ? दू मिनट क्लो रोफार्म सुँघा दौह त सभटा बोलती बन्द भऽ जैतौह । एक रत्ती विष शरीर में प्रवेश कैने समस्त ज्ञान लुप्त भऽ जैतौह । एकटा बड़का कर्मकांडी कैं कुकुर काटि लेलकैन्ह से भूकि कऽ मरि गेलाह । एहि सभ सॅं की सिद्ध होइछ ? यैह, जे चैतन्य शरीरक अवस्था पर आश्रित अछि । मस्तिष्क पर कनेक आघात पड़ने चैतन्य क विकार वा तिरोभाव भऽ जाइ छैक । और जखन संपुर्ण शरीरे जरि कऽ छौर भऽ जैतैक तखन चैतन्य की गाछ पर जा कऽ लटकि जैतैक ? ड़जखन घड़िए टूटि गेल त ओकर टिक-टिक् कथी पर टिकतैक ?

हम - परन्तु अपना देशक शास्त्रकार त कहै छथि जे आत्मा अवश्य छथि ।

ख० - हँ । एही भीत पर त परलोकक महल ठाढ अछि । यदि ई मूलस्तंभ उखड़ि जाय त पुनर्जन्म ओ मोक्ष क संपूर्ण अट्टालिका ढ्नमना कऽ खसि पड़ य । जौं आत्मा नहिं , त पुनर्जन्म ककर ? और पुनर्जन्म नहि, त मोक्ष की ? आत्मा क दावा ढहि गेने आस्तिकवाद क गढे मटियामेट भऽ जाइत अछि ।

हम - परन्तु एहि सभ मे किछु तथ्य नहि छैक त एतबा दिन सॅं चलि कोना रहलैक अछि ?

खट्टर कका कहय लगलाह – हौ, अदृष्ट क कल्पना सॅं मन कैं सान्त्वना भेटैत छैक । 'ओहि जन्म में कोनो पाप कैने छलहुँ , तकर फल आइ भोगि रह ल छी ।' जखन दुःख दूर करबाक अन्य कोनो साधन नहिं भेटैत छैक , तखन यैह भावना मलहम क काज करैत छैक । ई एक प्रकारक आत्मवंचना बूझह । हम अपना मन कैं बुझबैत छी - “जे कैलहुँ तकर फल भेटल । एहि में अपन कोन वश ?” संगहि भविष्य़क हेतु सेहो आश्वासन भेटैत छैक । 'एहि जन्म में नीक करब त अग्रिम जन्म में सुख पायब ।' तैं कतेको व्यक्ति एहि जीवन मे नाना कष्ट सहि पुण्य बटोरबाक फेर में लागल रहैत छथि । एहि आशा पर जे पाछाँ एक्के बेर बहुत रासे सुख हाथ लागि जायत । नाल्पे सुखमस्ति । भूमैव सुखम् । एहि द्वारे नाना प्रकारक यज्ञ-जाप, तीर्थ-व्रत , दान-पुण्य कैल जाइत अछि । चाहे मीमांसाक कर्मकाण्ड हो वा योगक अष्टांगसाधन हो वा वेदान्तक ब्रह्मज्ञान हो, सभक मूल में एक्के भावना काज करैत छैक - भविष्य में महत्तम आनन्दक प्राप्ति । केओ स्वर्गक स्वप्न देखैत छथि , केओ अमरत्व क कल्पना करैत छथि , केओ नित्य निरतिशय सुख चाहैत छथि । मोक्ष, कैवल्य, निर्वाण- सभक एके तत्व छैक – आनन्दलिप्सा । साधक-गण चाहै छथि जे एहि जीवन में अधिक सॅं अधिक फीस दऽ कऽ स्वर्ग वा मोक्षक बीमा करा ली । और एहि वणिक् बुद्धि कैं 'धर्म' कहल जाइत अछि । परन्तु हौ बाबू , हमरा एहि बीमा कंपनी मे विश्वास नहिं । हम आजीवन किस्त चुकबैत जाइ और अन्त में ओ कंपनी नकली साबित भऽ जाय तखन ? एही द्वारे हमहूँ चार्वाक बला सिद्धान्त मानैत छी - “वरमद्य कपोतः श्वो मयूरात।" ‘काल्हि कदाचित मोर भेटि जाय' ताहि आशा पर हाथ में आयल कबूतर कैं छोडि देब विशुद्ध मूर्खता थीक ।

हम - खट्टर कका, तखन अहाँ कैं मोक्ष में आस्था नहिं अछि ?

ख० – हौ हम त सोझ-सोझ बुझैत छी - देहोच्छेदो मोक्षः । जाहि दिन ई चोला छूटि जायत ताहि दिन स्वतः सभ दुख सॅं छुटकारा भऽ जायत । ई मोक्ष एक दिन भेटनहि कुशल । तखन ओहि पाछाँ अपस्याँत किऎक होउ ?

हम - तखन मोक्षक हेतु यत्न करबाक प्रयोजन नहिं ?

खट्टर कका हॅंसैत बजलाह – हॅं । एकटा मोक्षक हेतु यत्न करह । मोक्ष क अर्थ अज्ञान सॅं मुक्ति । से सभ सॅं बड़का अज्ञान थीक ई मोक्षक आडम्बर । यदि मोक्षरूपी अन्धविश्वास सॅं तोरा लोकनि मुक्त भऽ जाह त बड़का भारी मोक्ष भेटि जैतौह !

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, तखन जीवन्मुक्त केओ नहिं होइ छथि ?

खट्टर कका मुसकुराइत बजलाह – कोना कहिऔह जे नहिं होइ छथि ? जे अभागल छथि, से मोक्षक पाछाँ डिरियाएल भेल फिरैत छथि । परन्तु जे भाग्य वान छथि, तिनका बैसले-बैसल मोक्ष भेटि जाइत छैन्ह ।

हम - से कोना, खट्टर कका ?

खट्टर कका विनोदपूर्वक बजलाह – हौ, संसार में दू प्रकारक व्यक्ति होइ छथि । एक त अभागल, जे भरि जन्म हकन्न कनैत रहै छथि -

         नारीपीनपयोधरोरुयुगलं स्वप्नेऽपि नालिंगितम ।
        

और दोसर सभागल, जे समस्त बंधन खोलि कऽ सद्यः मोक्ष प्राप्ति क लैत छथि । हुनका खातिर -

नीविमोक्षो हि मोक्षः ।

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