लेखक : हरिमोहन झा

खट्टर कका भांग घोंटैत रहथि कि हम जा कऽ कहलिऎन्ह - खट्टर कका, निमंत्रण दैत छी ।

खट्टर कका अत्यन्त प्रसन्न होइत बजलाह – अहा हा ! आबह, बैसह।आइ कोनो नीक लोक क मूंँह देखि उठल छलहुंँ । कथी क उपलक्ष्य में खोऎबह ?

हम कहलिऎन्ह - आइ हमरा ओहि ठाम ब्राह्मणभोजन अछी ।

खट्टर कका बजलाह - वाह , अत्यन्त सुन्दर ! एहि देश क मर्यादा कथी में छैक से जनै छह ?

हमरा मुंँह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह - एहि देशक मर्यादा छैक ब्राह्मण भोजन में । पृथ्वी पर आन कोनो देश में ई बात नहि । एही पुण्य क प्रसादात भगवान क सभटा अवतार एही भूमि पर भेल छैन्ह ।

हम - परन्तु ब्राह्मण कैं भोजन करैबाक विधान किऎक ?

ख० - किऎक त 'ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीत' । हमरा लोकनि ब्रह्मा क मुंँह थि कहुंँ । मुख कैं त भोजन सॅं प्रयोजन । जे सभ हाथ-पैर छथि से सभ काज क रथु । हमरा लोकनि मुख क जे काज थिकैक - भोजन और भाषण- सैह टा क रबाक हेतु उत्पन्न भेल छी । जखन आदि पुरुष ब्रह्मे चारिटा मूंँह बौने प्रकट भे लाह, तखन हमरा लोकनि हुनक सन्तान भऽ अपना वंशक टेक कोना छोडि सकैत छी ? तैं ब्राह्मण लोकनि खैबाक हेतु सतत मुंँह बौने रहै छथि ।

हम - परन्तु जौं हमरा लोकनि सरिपों ब्रह्माक मुंँह सॅं बहरायल छी त ओ तेज कहांँ अछि ।

ख० - तेज अछि उदरकुंड में। ओहि में निरन्तर ब्रह्मतेज धधकैत रहैत अछि । बेशी ज्वाला भेला उत्तर जिह्वा क बाटें बहराइत अछि । तैं हमरा लोकनि क बात में लुत्तीक असर रहैत अछि । जिनके पर लगैत छिऎन्ह तिनका भस्म कऽ कऽ छोडि दैत छिऎन्ह ।

हम - परंच ताहि दिन क ब्राह्मण में विशेष सामर्थ्य रहैन्ह ।

ख०- औखन क्षीरसमुद्र कैं सोखयबला अगस्त्य हमरे लोकनि में विद्यमान छथि । हौ, जाही धातु सॅं 'ब्रह्म' बनल छथि ताही सॅं 'ब्राह्मणो' बनल छथि । तैं ‘ब्रह्माण्ड' ओ 'ब्रह्मोदर' दूनू कैं सहोदरे बूझक चाही । दूनू विराट, दूनू पृथुल , दूनू गोलाकार, दूनूक पार पायब असंभव ।

हम - परन्तु ताहि दिनक ब्राह्मण में वरदानो देवाक शक्ति रहैन्ह ।

ख० - औखन वर ठीक करबाक भार ब्राह्मणे पर रहैत छैन्ह । पूर्वक ब्राह्मण सिद्धान्त क परिपाक करैत छलाह , आबक ब्राह्मण सिद्धान्न क परिपाक करैत छथि । ओ लोकनि अग्निहोत्री छलाह , इहो लोकनि दूनू सांँझ अग्निहोत्र करित हि छथि अन्तर एतबे जे पूर्वज लोकनि 'बाबा' कहबैत छलथिन्ह, वंशज सभ ‘बाबाजी' ! एक अक्षरक वृद्धिए भेलैन्ह ।

हम - खट्टर कका, अहांँ त व्यंग्य करैत छी । परन्तु ब्राह्मण जाति क एहन दुर्दशा किएक भेलैक ।

ख० – बेसी तेजक कारण ।

हम - से कोना ?

ख० – देखह, एक ब्राह्मण खिसिया कऽ लक्ष्मी क स्वामी कैं एक चरण लगा देलथिन्ह । तहिया सॅं लक्ष्मी ब्राह्मण सॅं हडकि गेलीह और हमरा सभक कपा र पर जे दरिद्रा सटि गेलीह , से सटले छथि । ई त धन्य सरस्वती जे हमरा लोकनि क पुरुखा लक्ष्मीवाहन सभ सॅं किछु-किछु झिटैत ऎलाह अछि ।

हम - परन्तु समस्त धर्मशास्त्र क निर्माण त ब्राह्मणे द्वारा भेल अछि ।

ख० - धर्मशास्त्र नहि कहह, अर्थशास्त्र । आन-आन जाति हर-फार लऽ कऽ खेती करैत छल । ब्राह्मण केवल बुद्धिए क खेती करैत छलाह । यजमान कैं बरद सॅं काज चलैत छलैन्ह । ब्राह्मण कैं केवल यजमाने सॅं काज, चलि जाइत छलैन्ह । तखन ओ बरद किऎक पोसथु ?

          श्रमजीवी   भवेच्छुद्रः   धनजीवी   कृषी  वणिक  ।
          बलजीवी   भवेत्क्षत्री,   बुद्धिजीवी  हि     ब्राह्मणः  ॥
        

एहि बुद्धिक प्रसादात् हमरा लोकनि क पुरुखा भोजन क समस्या कैं जेना हल कैलन्हि - सेहो बिना हल क सहायता सॅं - तेना आइ धरि केओ कय सकल अछि ?

हम पुछलिऎन्ह – ई बात कोना भेलैक, खट्टर कका ?

खट्टर कका भांगक गोला चिकनबैत बजलाह – हौ, ताहि दिन क लोक बुड़ि बक रहय । भूदेव जेना कऽ चाहथिन्ह, ठकि लेथिन्ह। आइ देवता निमित्त खोआ । काल्हि पितर निमित्त खोआ । शुभ होउ त खोआ । असुभ होउ त खोआ । पुण्य कर, ताहि में खोआ । पाप कर, ताहि में खोआ , मरौ, ताहू में खोआ । अगहन मे नव धान होउक त चूड़ा खोआ । वैसाख में रब्बी तैयार होउक, त पूड़ी-ब खोड़ीआ । माघ में गरमागरम घी-खीचड़ि खोआ । आर्द्रा नक्षत्र में आम खोआ । उपजाबौ केओ, परन्तु भोग लगाबय काल - ‘अग्रे-अग्रे विप्राणाम ।' हौ, एहन 'परमुंडे फालाहार' करबाक बुद्धि और ककरो में छैक ?

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका बारहो मास किछु ने किछु लगले रहैत छैन्ह ।

खट्टर कका चीनी घोरैत बजलाह – हौ, बारहो मास की थीक जे ब्राह्मणक बारह टा मास (मिलकीयत) बूझह । आश्विनक कृष्णपक्ष में पितृपक्ष। शुक्लपक्ष में देवीपक्ष । दूहू पक्ष लड्डू । कार्तिको में अन्नकूटे रहैत छैन्ह । अमावस्या में लक्ष्मीपूजा । पूर्णीमा में सत्यदेवक पूजा । एकादशी कैं विष्णु क नाम पर। चतु र्दशी कैं महादेव क नाम पर । चौठ कैं चन्द्रमा क नाम पर । षष्ठी कैं सूर्य क नाम पर। हौ, एक-दू टा रहय तखन ने ! सभटा पर्व त भोजने करक हेतु बनल अछि ।

हम - तखन एतबा रास जे व्रतक विधान कैल गेल छैक तकर आशय की ?

खट्टर कका भांग मे चीनी मिलबैत बजलाह - ‘वृणोति सुन्दरभोजनम् अनेन इति व्रतम्' हम त यैह अर्थ बुझैत छी। छठि क अर्थ ठकुआ। चौठचन्द्र क अर्थ पिडुकिया । तिलासंक्रान्ति क अर्थ चुडलडु । होलिका क अर्थ पूआ । ध्वाजा क अर्थ रोट । सत्यदेव क अर्थ सीतलप्रसाद । दुर्गा क अर्थ महाप्रसाद ।

हम - तखन एतेक उपवास क जे नियम छैक``````````

ख०- से पहिने सॅं लोक उदरी-दरी कैं सोन्हा कऽ रखैत अछि ।

          विशेषभोजनलोभत सामान्यभोजनविरहः उपवासः।
        

दोसर ई, जे पबनैतिन सभ कतहु पहिने अपनहि नहिं भोग लगा लेथि, तैं ब्राह्मण देवता कठोर सॅं कठोर नियम बना देलथिन्ह अछि।

          अन्नहारात  सूकरी स्यात् फलभक्षे  तु मर्कटी ।
          जलपाने  जलौकाः स्यात् पयःपाने भुजंगिनी ॥
        

अर्थात जौं व्रत काल अन्न खा लेथि त सुगरनी भऽ कऽ जन्म हेतैंन्ह; फल खाथि त वनरनी भऽ कऽ । पानि पिबथि त जोंक होथि, दूध पीबथि त सांँपिन । कोनो पबनैतिन क दर्प छैन्हि जे हरतालिका व्रत में एको घोंट पानि पिउतीह ? और एहन-एहन वचन पर हरताल फेरऽ बला केओ नहि । पबनैतिन सभ तीन-तीन दिन सहि कऽ हरिवासर करथु और खैबक बेर पहिने ब्राह्मण देवता पैर धो कऽ तैयार ! एही द्वारे खरना-परना क एतेक जाल रचल गेल अछि। हौ, जखन सोमवारी में झुण्ड क झुण्ड लाल पीयर स्त्रीगण कैं १०८ बेर पीपर क चारू कात घुमैत देखै छिऎन्ह त दौनी क दृश्य मन पडि जाइत अछि । एहि सॅं सोझे किऎक नहि कहब जे 'दे' । ओतेक घुमा कऽ नाक छुइबाक कोन प्रयोजन ? परन्तु सोझ आंगुरे त घी बहराय नहि । तैं 'माघ मास यजमानिनी भोरे स्नान करथु और गर्मी में निर्जला एकादशी !’ ब्राह्मण देवता तेना कऽ सधने छथिन्ह जे की 'सरकस' बला अपना जानवर कैं साधत ?

हम - परन्तु ज्योतिषी-पुरोहित क विना लोक क काजो त नहिं चलि सकैत छैक , खट्टर कका !

खट्टर कका लोटा में भांग घोरैत बजलाह - ओ कर उगाहब छोडि और काजे कोन करैत छथिन्ह ? यजमानक घर में प्रसवो नहि भेलैन्ह कि पहिनहि सॅं ढ्क ना लऽ कऽ तैयार । जन्म होइत देरी बही-खाता लऽ कऽ तैयार । नौ टा ग्रह की भेल, नौ टा हुण्डी भेलैन्ह । किछु राहु क नाम पर दे , किछु केतु क नाम पर दे । शनि क नाम पर उरीद दे । मंगल क नाम पर मसुरी दे । जाहि-जाहि वस्तु क व्यग्रता रहतैन्ह से भिन्न-भिन्न ग्रह क नाम पर उगाहि लेताह । जेना सभ ग्रह क ठीकेदार यैह रहथि । धन्य नवग्रह जे ज्योतिषिआइनक बाँहि में नवग्रही पडैत छैन्ह । धन्य कुण्डली जे नेना क कान में कुण्डल पडैत छैन्ह । यदि यजमान क सोरहो संस्कार नहि होइन्ह त पुरोहित क पत्नीक सोरहो श्रृंगार कथी पर चलैन्ह ? मुंडन होइ छैन्ह यजमान क नेना कैं और मुडा जाइ छथि स्वयं यजमान । दशकर्म करैत-करैत बेचारे कैं सभ कर्म भऽ जाइ छैन्ह। ब्राह्मण देवता तेना ने नथने छथिन्ह जे बात-बात में ओसुलैत छथिन्ह ! जन्म पर कर ! मृत्यु पर कर ! विवाह पर कर ! द्विरागमन पर कर ! यजमान कैं कहि यो उसास नहि । जन्मे सॅं जे ऋणपत्र गर में लटकि जाइ छैन्ह से श्राद्ध पर्यन्त नहि उतरैत छैन्ह । बिनु ब्राह्मणे उद्धार नहि ।

हम - परन्तु ब्राह्मण कैं दान देबा में फलो कतेक छैक, खट्टर कका !

ख०- हॅं, से त अवश्य । ब्राह्मण कैं पेट 'लेटरबक्स' छैन्ह। हुनका लड्डु खोआ दियौन्ह और सोझे पितर कैं पैठ भऽ जाएत । ब्राह्मण कैं कहिया की दान करी सेहो मोसाविदा त ब्राह्मणे क बनाओल छैन्ह । जाडकाला मे तुराइ दन करिऔ न्ह । बरसात में छाता दान करिऔन्ह । सोन भेट जाय त ब्राह्मण कैं दान करु, सोन हेराय तैयो ब्राह्मण कैं दान करु । गाय बियाय त पहिल दूध ब्राह्मण कैं दियऽ । आम फरय प्रथम फल ब्राह्मण कैं दिय । हौ जी, ई लोकनि भारी चला क छलाह । सरकार एतेक सिपाही बन्दूक रखलो उत्तर ओतेक मालगुजारी नहिं वसूल कय सकैत छथि । ब्राह्मण देवता त केवल एक शापक बल पर अ संख्यो कर वसूल करैत आबि रहलाह अछि । तैं कहलकैक अछि जे -

          धिग्बलं  छत्रियबलं  ब्राह्मतेजो   बलं  बलम ।
        

हम देखल जे खट्टर कका कैं सूर चढल छैन्ह । एखन ब्राह्मण पर लागल छथि । कहलिऎन्ह- खट्टर कका, एतेक शास्त्र पुराण त ब्राह्मणे क बनाओल छैन्ह ।

खट्टर कका बजलाह – तैं त ओहू में केवल बसुलबाधार कैने छथि। ब्राह्मण कैं अमुक वस्तु दान करी त अश्वमेध यज्ञ क फल हो, अमुक वस्तु दान करी त सोझे बैकुण्ठ प्राप्त हो । मनु, यज्ञवल्क्य , सभ में त यैह भरल अछि । कतहु ए कादशी क माहात्म्य, कतहु द्वादशी क माहात्म्य । परन्तु सभ तीर्थ-व्रत क उद्ये श्य एकेटा - ब्राह्मण कैं दान ! अन्नदान, वस्त्रदान, शय्यादान, गोदान, स्वर्णदान, भूमिदान, वृक्षदान, फलदान, कन्यादान ! ब्राह्मण कैं चारु वर्ण कैं कन्या में अधि कार । ओ हत्यो करथि त फांँसी नहि परथि । अपने हाथ में कलम रहैन्ह ।जे- जे कानून मन में ऎलन्हि, बना लेलन्हि । पुराणो मे त केवल अपने प्रोपगंडा भरल छैन्ह। राजा हरिश्चन्द्र स्वप्नो में ब्राह्मण कैं समस्त राज्य दान कऽ देल न्हि त ओहि सत्य पर दृढ रहि गेलाह। राजा नृग ब्राह्मण कैं दान कैल धेनु पुनः लय लेलथिन्ह त हजारो वर्ष धरि इनार मे गिरगिट भऽ कऽ रहय पडलैन्ह ! सभ पुराण में त एहने-एहने कथा भरि देने छथिन्ह ।

हम कहलिऎन्ह - परन्तु खट्टर कका, समस्त धर्मशास्त्र क विवेचन ब्राह्मणे कैने छथि ।

          धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं   शौचमिन्द्रियनिग्रहः  ।
          धीर्विद्या  सत्यमक्रोधः   दशकं  धर्मलक्षणम्  ॥
        

खट्टर कका हमरा डॅंटैत बजलाह – तों एखन नेना छह । धर्म क रहस्य की बुझबहौक ? ई सभ स्त्री, शूद्र और यजमान कैं परतारक हेतु छैक ।

खट्टर कका क भांग तैयार भऽ गेल रहैन्ह । ओ दु-चारि बुन्द शिवजी क नाम पर छिटि गट्टगट्ट सौंसे लोटा पीबि गेलाह । तखन हमरा दिस साकांक्ष होइत बजलाह -देखह, ई दशो धर्म ओकरा हेतु बनाओल छैक जकरा सॅं अपन सेवा लेबाक रहय । जेना ब्राह्मण लोकनि खबास सॅं काज लैत रहथि । आब ओकरा ई उपदेश देब जरूरि छलैन्ह जे 'तों धैर्य (धृति) राख, अर्थात मडुआ क रोटी खाय पडौक तथापि सन्तोष कर । मन में विकार नहि आन । अर्थात क्षोभ कैं दमन कर । हमरा घर में कतेको नीक-नीक वस्तु देखबैं से चोरबिहें जुनि । कि ऎक त चोरी करबैं त पाप लगतौक । मलिन रहबैं त तोहर भरल पानि कोना पीबि हैत? तैं सफाई (सौच) राख। तों बाहर-भीतर सभ ठाम जाइ छैं, तैइन्द्रिय निग्रह राख । एकदम बुड़िबक भऽ कऽ हमर सेबा करबैं त नहि उजिऎतौक । तैं किछु बुद्धि (धी) सेहो राख । अपन धर्म (अर्थात ब्राह्मण क सेवा) बुझबाक हेतु थोड़ेक ज्ञान (विद्या) सेहो राख । और फुसि बाजय लगबैं तखन त हमरा कतेक बेर ठकबें , हानि करबें , तैं सत्य बाज । और हम मारिबो करियौक त तों क्रोध नहि कर ।' हौ, यैह द्शो धर्मक तात्पर्य छैक । जैह बात शूद्र क हेतु लागू छैक , सैह स्त्रीओ क हेतु , सैह यजमानो क हेतु ।

हम कहलियैन्ह - खट्टर कका , ब्राह्मण अपनो त एहि सभ धर्मक पालन करै त रहथि ।

खट्टर कका क आंँखि लाल भऽ गेलैन्ह । बजलाह -फूसि बात । जे सामर्थ्य वान अछि तकरा लेल धर्म की ? ई सभ उपदेश अनका हेतु होइत छैक । जौं ब्राह्मण क्रोध कैं त्याज्य कऽ कऽ बुझितथि त विष्णु भगवान कैं लाते मारितथि न्ह । भृगु, दुर्वासा, परसुराम सभ त ब्राह्मणे छलाह । जौं ब्राह्मण कैं धैर्य रहितै न्ह त लगले तिल-कुश-गंगाजल, लऽ कऽ शाप देबऽ पर उद्यत भऽ जैंतथि ? जौं विद्या कैं आवश्यक बुझितथि त 'अविद्यो वा सविद्यो वा ब्राह्मणो मामकी तनुः' एहन वचन बनबितथि ! और यदि ब्राह्मण सत्य पर कायम रहितथि त समाजक ई दुर्दशा होइत ? जहिया सॅं ब्राह्मण लोभ में पडि गेलाह तहिये सॅं छल, क्षुद्रता, स्वार्थ, पाखण्डक सृष्टि होमय लागल । हौ, जखन माथे में मवाद भरि जैतैक त शरीरक की दशा हैतैक ?

हम कहलिऎन्ह - तखन अहाँ असली ब्राह्मण ककरा बुझैत छियैक, खट्टर कका !

खट्टर कका बजलाह – असली ब्राह्मण आइ-काल्हि यूरोप-अमेरिका में छथि।

हम कहलिऎन्ह – अहांँ कै त हॅंसिए रहैत अछि खट्टर कका !

खट्टर कका बजलाह – हॅंसी नहि करैत छियौह । ब्राह्मण-वृत्तिक अर्थ छैक ज्ञानोपार्जन में अपन जीवन लगा देव । से सैकड़ो हजारो वर्षक अनवरत तप स्या सॅं जे जाति विद्या प्राप्त कय रेल, तार, बिजली आदि वस्तु संसार कैं देलक अछि सैह यथार्थ में ब्राह्मण जाति थीक । हम तों त केवल 'उदरम्भरिः ब्राह्मणः' शब्द कैं सार्थक करै छी ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, एहन-एहन बात लोक सुनत त ब्राह्मण भोजनो उठा देत ।

खट्टर कका बजलाह – हौ, हम एहने बताह छी जे अनका आगाँ एहन बात कहबैक । और एगोटा क बजनहि की ? तेहन क पक्का नीव गारल छैक जे एहि देश सॅं ब्राह्मण भोजन नहिं उठि सकैत अछि । 'चार्बाक' चिचिया कऽ रहि गेला ह ।' कम्युनिस्टो' चिचिया कऽ रहि जेताह । हॅं, खोऎबह कखन ?

हम - अपने स्नान पूजा कैल जाओ । हम सबेरे बिझौ कराबय पहुंँचि जाएब।

खट्टर कका बजलाह – पूजा त पाते पर हेतैक । तखन नहा-सोन्हा कऽ तै यार अवश्य रहबौह । परन्तु बिझौ किछु देरिये सॅं करबिहऽ । कारण हम भोज मे हम तीन साँझ क हिसाब-किताब बेबाक कैने अबैत छी । एक साँझ पहिने उपसर्ग रूप में , एक साँझ बाद प्रत्यय रूप में । किऎक त --

          “परान्नं  दुर्लभं  लोके  शरीरं  त  पुनः  पुनः ।”
        

ई कहि खट्टर कका कान पर जनउ चढौलन्हि और लोटा लऽ कऽ बाध दिस बिदा भेलाह ।