लेखक : हरिमोहन झा

खट्टर कका भांगक हेतु सौफ-मरीच बिछैत रहथि । हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका ! पूजाक हॅंकार देने जाइ छी ।

ख०- कथी क पूजा ?

हम - आइ हमरा ओहि ठाम सत्यदेव क पूजा छैन्ह ।

ख०- सत्ते ?

हम - सत्य नहिं त फूसि ?

हमरा मूॅंह तकैत देखि खट्टर कका बजलाह - परन्तु हौ जी, हमरा त संदेह होइ अछि जे सत्य क नाम पर कतहु असत्य ```````

हम बात कटैत कहलिऎन्ह - खट्टर कका , सत्यनारयण महाराज क बिषय में हॅंसियो सॅं एहन बात नहिं बाजक चाही, नहि त``````

ख० – नहिं त ओ रुष्ट भऽ कऽ अनिष्ट कऽ देताह। जेना महाजन कैं बन्हबा देलथिन्ह । सैह ने ? यदि ओ सरिपों एहन दुष्ट होथि त फेर नर और नारायण में अन्तर की ?

हम - परन्तु जे हुनक पूजा करैत छैन्ह तकरा फलो त दैते छथिन्ह ।

ख० - तखन ई कहह जे खुशामदी छथि । जे हुनक दरबार करतैन्ह तकर उपकार करथिन्ह । जे नहि करतैन्ह करतैन्ह तकरा कुन्नह चढा डॉंड़ लगौथिन्ह । एहन भगवान और बबुआन में भेदे की ?

हम - खट्टर कका, भगवान क प्रभुता अनन्त छैन्ह ।

ख०- परन्तु यदि सत्यनारायणक कथा प्रमाण हुनक हृदय अत्यन्त संकीर्ण छैन्ह । बेचारा महजन कैं पूजा करब बिसरि गेलैक त फुसिए चोरीक तोहमति लगा कऽ सिपाही सॅं धरबा देलथिन्ह । और एहन प्रपंच करयबला कैं तों कहै त छहुन्ह 'सत्यनारायण' !

हम - खट्टर कका हमही कहै छिऎन्ह कि संसारे कहैत छैन्ह ।

ख० – तैं त संसारे कैं हम बताह कऽ कऽ बुझैत छिऎक । हौ, हम पुछैत छि औह जे नारायण अपने छद्म वेष में छल करय गेलथिन्ह से त असत्य नहिं भे ल और बेचारा महाजन जे नाव में लतापत्रादि छैक त से असत्य भऽ गेल । ई कोन न्याय ?

हम - खट्टर कका, ‘हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता ' ।

ख० – हॅं, जैं अनन्त तैं न महाजन कैं बन्हबाइयो देलथिन्ह । और जखन ओकर बेटी पूजा चढौलकैन्ह त फेर छोडबाइयो देलथिन्ह । ई भगवान की भेलाह , जमींदार भेलाह !

हम - खट्टर कका, ओ आदर्श देखौलन्हि अछि ।

खट्टर कका सौफ क काठी फेकैत बजलाह – हौ, कलावती राति भरि दोसर क आङ्गन में हिनक पूजा देखैत रहि गेल से त हिनका बड़ पसिंद पडलैन्ह । परन्तु एक बेर बेचारी कैं प्रसाद खायब छूटि गेलैक त ई ओकरा पतिए कैं डुबा देलथिन्ह । ओ छौडी अपना स्वामी क आगमन-वार्ता सुनि दौडलि त हिनका एतेक डाह किऎक भेलैन्ह ? एतेक काट त सढुआरियो में नहिं चलैत छैक ।

हम - खट्टर कका, अहांँ भगवान कैं मनुष्य सॅं किऎक तुलना करैत छिऎन्ह ?

ख० – हौ, मनुष्य सन रहितथि त रहबे करितथि। ई त बिकौओ भलमानुस क कान कटलन्हि । "हमर पूजा कर त सुख-संतति-सौभाग्य सभटा हेतोक नहि त नहिं त तेहन कऽ देबौक जे भरि जन्म हकन्न कनैत रहि जैबै।" ने ढरैत देरी ने बिगरैत देरी । कनेको धैर्य नहि । एहन अगुताह कतहु लोक होय ?

हम - खट्टर कका , अहांँ एना किएक कहैत छऎन्ह ?

ख० –कोना ने कहिऔन्ह ? पहिने त निर्दोष वणिक कैं जमाता समेत बन्ह बा देलथिन्ह और जखन कलावती क कला सॅं वशीभूत भऽ गेलाह त उनटे चन्द्रकेतुए पर बिगडि गेलथिन्ह । स्वप्न देलथिन्ह - भोरे दूनू ससुर-जमाय कैं छोडि दहीक, यथेष्ट बिदाइयो करहीक । नहिं त राज पाट नाश कऽ देबौक । बेटा क संहार कऽ देबौक । आब सॅं तोरे पर लागि जेबौक । जेना घुसखोर दरोगा डरबैत छैक - “ दे, नहि त फॅंसा देबौक , जेर कऽ कऽ छोडि देबौक । लुटबा लेबौक ।” जे डाला चढौलक तकर सै खून माफ । जे नहिं चढौलक से फांँसी पड़ौ । और एहन चरित्र कैं तों कहै छह सत्यनारायणक कथा ! नारायण ! नारायण !

हम कान मुनैत कहलिऎन्ह - खट्टर कका भगवान क एना निन्दा नहि करक चाही ।

खट्टर कका भांग घोंटैत बजलाह – हौ, हम भगवान कैं निन्दा थोड़बे करैत छियैन्ह ? जे ई कथा गढि कऽ हुनका नाम पर चलौने छैन्ह तकर आलोचना करैत छिऎक । एहि कथा में आदि सॅं अन्त धरि भगवानक छल-क्षुद्रता ओ स्वार्थपरता देखाओल गेल छैन्ह। सुनला उत्तर यैह लगैत छैक जेना नारायण एक नम्बरक लोभी, दुष्ट ओ ईर्ष्यालु रहथि । एहन कथा सॅं लोक में भक्ति की हेतैक ? उनटे अभक्ति भऽ जाइत छैक ।

हम - खट्टर कका, कथा सुनने लोक में भय होइत छैक ।

ख० – एही द्वारे त कथा रचले गेल छैक । सत्यनारायणक पूजा करहुन , नहिं त शनैश्चर जकांँ पछा पड़ि जैथुन्ह । बारह वर्ष धरि डिरियाइत रहि जैबह । हुनका प्रसाद खोअबहुन , नहिं त राहु जकां टप्प द गिड़ि जैथुन। जेना बनि यां कै धऽ लेलथिन्ह , तहिना तोरो धऽ लेथुन्ह । नारायण की भेलाह बुइया भेलाह ! एहन भगवान सॅं लोक कैं की प्रेम हैतैक ?

हम - खट्टर कका, कहल छैक 'बिनु भय होहि न प्रीति ।'

खट्टर कका - ई प्रीति नहिं , भीति । हमर एक पिउसा छलाह – लुट्टी झा। तेहन खिसियाह जे लोक 'खटाँस झा' कहैत छलैन्ह । जहांँ कनेक जलखइ में देरी होइन्ह कि हरकम्प उठा देथि । एक दिन पीसी क नाक खैबा पर उद्यत भऽ गेलथिन्ह । और जहाँ आगाँ में दही चूडा चीनी केरा पडलैन्ह की शान्त। पीसी कैं पुछलथिन्ह जे, ‘कहू, कै भरिक नकमुन्नी चाही ?’ तैं जखन हम सत्य देवक कथा सुनैत छिऎन्ह त लुट्टी झा मोन पड़ि जाइत छथि । एहन देवता कैं डेबब बड्ड कठिन ।

हम - परंच ओहि कथा मे इहो त देखाओल गेल छैक जे एहि पूजा सॅं की सभ लाभ होइत छैक ।

खट्टर कका भांगक गोला बनबैत बजलाह – हॅं कथा की थिक, बीमा कम्पनी क विज्ञापन थीक !

          दुःखशोकादिशमनं   सर्वत्र   विजयप्रदम  ।
          धनधान्यसन्ततिकरं  सर्वेषामीप्सितप्रदम ॥
        

एक लकड़िहारा पूजा कैलक त बिक्री में दुन्ना नफा भेलैक । एक ब्राह्मण दरिद्र सॅं धनिक भऽ गेलाह । एक महाजन कैं बेटी भैलैक । एक राजा कैं बेटा भेलैक । यैह ने चारू कथाक सारांश छैक ? हौ, ई सभ बात त राति-दिन सं सार में होइतहि रहैत छैक । चाहे लोक पूजा करौ वा नहि करौ । एही ठाम अबदुल्ला मियांँ कहिया कथा बचबौलक जे हांँजक हांँज बेटा बेटी छैक । और जकरा नहिं हेबाक रहैत छैक तकरा कतबो शंख फूकने नहिंए होइत छैक । एही ठाम मुसाइ झा मासेमास पूजा करैत छलाह, परन्तु स्त्री क पेट सॅं एकटा मुसरियो नहि बहार भेलैन्ह। हौ, मासिक पूजा सॅं कतहु मासिक धर्म बन्द होइ ? नेनमनि झा भरि जन्म पूजा करैत मरि गेलाह तथापि कहियो चार पर खप ड़ा नहिं चढलैन्ह और दमरी साहु लकडीक रोजगार सॅं दुइए वर्ष में पक्का मका न उठा लेलक । लकड़िहारा कैं सत्यनारायणक कृपा सॅं दुगुन्ना नफा भेलैक । दमडी साहु कैं चोरनारायणक कृपा सॅं दसगुन्ना नफा भेलैक। आब तोंही कहह - कोन बेसी तेज ?

हम - खट्टर कका, केवल लौकिके लाभ नहिं । पूजा सॅं पारलौकिको लाभ छैक ।

ख०- हॅं, से त छैहे । दलाल पक्का छथि -

          धनधान्यसुतारोग्यदाता       मोक्षप्रदस्तथा ।
          न  किंचिंद्विद्यते  लोके यन्न स्यात्सत्यपूजनात ॥
        

रुपैया पैसा सॅं लऽ कऽ मोक्ष पर्यन्त एहन कोनो वस्तु नहिं जे एहि पूजा सॅं उपलब्ध नहिं हो । लकडिहारा पूजा कैलक और सोझे बैकुण्ठ चल गेल ।

          इह लोके  सुखं भुक्त्वा  चान्ते  सत्यपुरं ययौ  ।
        

लोक एक बेरि सत्यदेव-कथा सुनि लेबय और सभ प्रकारक दुःख सॅं मुक्त भ जाय ।

          यत्कृपा सर्वदुःखेभ्यो मुक्तो भवति मानवः  ।
        

हौ, यदि मोक्ष क प्राप्ति एतेक सुगम रहितैक त गामक गाम एखन धरि जीबन्मुक्त भऽ गेल रहैत । कतहु दुःख देखहि में नहि अबैत ।

हम - त अहाँक विचारे ई कथा बनौनिहार फूसि लिखलक अछि ?

ख०– हमरा त यैह देखबा में अबैत अछि आदि सॅं अन्त धरि केवल फुसए छैक - यजमान कैं फॅंसाबक हेतु। जेना हमरा लोकनि नेना कैं परतारैत छिऎक - ‘रौ बाउ, कान छेदा ले, त गुड़ भेटतौक, मिसरी भेटतौक, किशमिश भेटतौक ।' तहिना ओहू में लोभ दैत छैक "रौ बाउ ! ई पूजा कर त बेटा भेटतौक , धन भेटतौक, स्वर्ग भेटतौक ।" बस, लोभीशिरोमणि लोकनि भक्तराज बनि जाइत छथि । परन्तु हम ने ओहन लोभी छी, ने बच्चाबला बुद्धि रखैत छि ।

हम - खट्टर कका ! तखन अहाँक जनैत जे पूजा करैत अछि से बच्चाबला बुद्धि रखैत अछि ।

खट्टर कका भांगक गोला चिकनबैत बजलाह - से कोना कहिऔह ? एक बेर क्षेत्र क मेला में गेलहुंँ । ओहि ठाम रंग-बिरंगक खेलौना बेचैत रहय । "सस्ता बाला आ गया, जापान बाला आ गया, हाथी ले लो दस पैसा" । चारू कात सॅं लोकक झुंड टुटि पडल। हमरो संग मे एकटा नेना रहय । ओ जा कऽ एकटा घडी लऽ आयल - “देखु ककाजी, दसे पाइ में घड़ी ।" परन्तु जहिना हथ मेंं पहिरय लागल कि रबरक फीता टुटि गेलैक और गोल कऽ काटल कागत नीचा खसि पडलैक । हम कहलिऎक - "देखह ! दस पाइक घड़ी एहने होइत छैक । नकली मालक फेर में नहि पड़ी ।" तहिना दू चारि पातिल केरा गूड़ घोड़ि कऽ जे ओकरा बदला में स्वर्ग वा मोक्ष पैबाक आशा रखैत छथि, तनिक और ओहि बच्चा क बुद्धि में हमरा विशेष अन्तर नहिं बुझि पडैत अछि ।

हम - खट्टर कका, जौं सत्यनारायण क कथा में किछु तत्व नहि छैक त लोक में एतेक प्रचार किऎक छैक ?

ख०- किऎक त अधिकांश लोक लोभी और मुर्ख होइत अछि । लोक चाहै अछि जे कम्मे खर्च में , कम्मे समय में , कम्मे प्रयास में ,सभ किछु भऽ जाय।

          स्वल्पश्रमै रल्पवित्तै रल्पकालैश्च    सत्तम  ।
          यथा  भवेन्महापुण्यं   तथा कथय सूत नः  ॥
        

एही द्वारे नकली मालबला पहुंँचि जाइत छैक । एक गोटॆ कोनो दिस सॅं ठाड़ भऽ गेल और बाजि देलक -

          सत्यनारायणस्यैतत्    व्रतं  सम्यगविधानतः  ।
          कृत्वा सद्यः सुखं  भुक्त्वा  परत्र मोक्षमालभेत ॥
        

बस, सभ केओ आंँखि मुनि कऽ ओकरे पाछांँ दौड़ताह । एहन सस्ता माल और कतय भेटत ? सवा टका खर्च करु और मोक्ष लऽ लिय । तैं कागतबला घड़ी क परि होइत छैन्ह । ई मोक्ष की भेल , साग-भांँटा भऽ गेल । हौ बाबू ! एहन सस्तौआ मोक्ष हमरा नहिं चाही ।

हम - परन्तु लिखै छैक "व्रतं सम्यग्विधानतः"। यदि पूजाक फल नहिं भेल त बुझी जे विधानपूर्वक नहिं भेल ।

ख० – हौ, यैह त चलाकी छैक । यदि तंत्र-मंत्र सॅं फल नहिं हैत त तांत्रिक कहताह जे प्रयो में कतहु त्रुटि रहि गेल। परन्तु सत्यदेव क कथा में ई चलाकी नहिं चलतैन्ह ? ओहि में जे विधान छैक से त लोक करितहि अछि ।

          रम्भाफलं  घृतं  क्षीरं  गोधूमस्य च चूर्णकम्   ।
          अभावे   शालिचूर्णं  वा  शर्करा  च गूडं तथा  ॥
        

पाकल केरा, घृत, दूध, शक्कर, गूड़, गहूम क आंँटा, नहिं त चौरट्ठे घोडि कऽ`` `` । हौ जी, जे ब्राह्मण ई बनौलक से छल धरि बेस चटकारी । हमरे सन मधु रक प्रेमी ! बढियांँ प्रसाद चलागेल अछि । ````` हॅं , की कहैत छलिऔह ?

हम - वैह प्रसाद ।

ख० – हॅं तखन -

          प्रसादं  भक्षयेत भक्त्या  नृत्यगीतादिकं  चरेत ।
          ततस्तु स्वगृहं गच्छेत् सत्यनारायणं  स्मरन   ॥
        

लोक प्रेमपूर्वक प्रसाद पाबय , किछु नाच-गान होय और भगवान क स्मरण करैत आनन्द पूर्वक सभ केओ अपन-अपन घर जाय। बेचारा ब्राह्मण बनौलक बेजाय नहिं । और अन्त में अपनो उपाय कऽ गेल अछि -

          विप्राय  दक्षिणां दद्यात्  कथां श्रुत्वा  जनैः  सह  ।
          एवं  कृते  मनुष्याणां  वांछासिद्धिर्भवेद्ध्रुवम        ॥
        

यजमान क वांछा सिद्ध होउन्ह वा नहिं किन्तु पुरोहित क वांछा धरि तत्काले सिद्ध भऽ जाइत छैन्ह ।

हम - खट्टर कका, प्रसाद ओ नृत्यगीत त उपांग मात्र थीक। मुख्य वस्तु थीक भगवानक पूजा ।

खट्टर कका कें हॅंसी लागि गेलैन्ह।बजलाह - भगवान क जे पूजा कैल जाइत छैन्ह से त भगवाने जनैत हैताह । हमरा त ओ खेले बुझना जाइत अछि ।

हम - खट्टर कका, ओतेक विन्यास सॅं भगवान क षोडशोपचार पूजा कैल जाइत छैन्ह से अहांँ कैं खेल बुझि पड़ैत अछि ?

खट्टर कका भांगक गोला एक कात रखलन्हि, तखन कहय लगलाह - भगवान क पूजा तोरा लोकनि कोना करैत छहुन? पहिने आवाहन करैत छहुन जे "इहागच्छ " अर्थात् - आयल होऔ। तखन "इह तिष्ठ" अर्थात बैसल होऔ । तखन तखन "पाद्यार्घः" अर्थात पैर धोएल जाओ । तदुत्तर हाथ मूह धोबक हेतु आचमनीयम्। ततः पर स्नान कराय, नव वस्त्र, नव यज्ञोपबीत पहिरा दैत छहुन। चंदन,पुष्पमाला, धूप ओ कर्पूर क सुगन्ध सॅं हुनक मन प्रसन्न करैत आगांँ में मधुर नैवेद्य राखि दैत छहुन । भोजन क उपरान्त आचमन कराय, मुखशुद्धि दय , जैबाक घंटी बजाय दैत छहुन - “पूजितोऽसि प्रसीद। स्वस्थानं गच्छ।" ‘सत्कार जे हैबाक छल से भऽ गेल । आब अपन -घर गेल जाओ ।' ठाढ भऽ कऽ आरती देखाय आरियाति दैत छहुन । हौ ! ई सभ खेल नहिं त और की थीक ? हमरा त एहि में काव्य क आनन्द भेटैत अछि। कथा-उपन्यास, पूजा-नाटक !

हम - खट्टर कका, तखन नर्मदेश्वर पर अहांँ कैं विश्वास नहिं ?

ख० - नर्मदेश्वर क अर्थ हम बुझैत छी 'नर्म परिहासं ददाति इति ईश्वरः' अर्थात् हॅंसी खेल बला भगवान । तोरा लोकनि हुनका सॅं खेलाइ छह । छौड़ी सभ कनेया-पुतरा सॅं बहिनपा जो कऽ खेलाइ अछि। तों सभ नर्मदेश्वर कैं समधि बनाकऽ खेलाइ छह ।

हम - से कोना, खट्टर कका !

खट्टर कका लोटा क मुंँह में अङ्गपोछा लगबैत बजलाह – देखह, समधि क ऎला पर जे सभ सत्कार होइ छैन्ह सैह सभ त भगवानो क होइ छैन्ह। आसन पानि, धुप, चंदन, माला, भोजन, नव धोती, जनउ, सुपारी । तखन भेद यैह जे शालग्राम कैं एक चुरु जल में स्नानीय, आचमनीय सभ किछु भऽ जाइ छैन्ह। दू जोड़ धोती क स्थान में दू टा सूतो धऽ देने काज चल जाइत छैन्ह । और प्रसाद जे चढाओल जाइत छैन्ह से घरबैया कैं अनामति बांँचि जाइत छैन्ह । एहन पाहुन के नहि चाहय! आधे घंटा मे सभ विधि समाप्त कय बिदा कऽ दि यौन्ह - “स्वस्थानं गच्छ ।" असली समधी देवता कैं एना कहल जाइन्ह त अनर्थे भऽ जाय। परन्तु भगवान त ककरो समधी छथिन्ह नहिं। समधी कअर्थ समान बुद्धिबला। यदि भगवानो में एतवे बुद्धि रहितैन्ह त एतवा टा श्रृष्टि कोना चलबितथि ?

हम - खट्टर कका, एना बजबैक त लोक नास्तिक कहत ।

ख०- से त कहितहि अछि। परन्तु के आस्तिक, के नास्तिक, एकर मिमांसा कैनिहार के अछि ? जखन हम भारी-भारी धोधिबला यजमान कैं प्रसाद क पातिल दूनू हाथे उठा कऽ अधपौआ शालग्राम पर चढबैत देखैत छिऎन्ह वा गुलाबजामुन सन नर्मदेश्वर कैं पहिराबक हेतु पुरोहित कैं अपना बांँहि सॅं नापि कय जनउ गेठियबैत देखइ छिऎंन्ह, त हुनका सभक बुद्धि पर दया आबि जाइ त अछि । परन्तु बडका-बडका पंडित कैं ई नहिं बुझि पडै छैन्ह जे ई सभ के वल स्वांँग मात्र भय रहल अछि ।

खट्टर कका, अङ्गपोछा में भांँग घोरय लगलाह । पुछलिएन्ह - खट्टर कका, अपना देशक पंडित लोकनि एहि पर विचार किऎक नहिं करैत छथि ?

खट्टर कका बजलाह – तैं त हमरा ककरो सॅं नहिं पटैत अछि । हॅं “रम्भाफलं घृतं क्षीरं गोधूमस्य च चूर्णकम्" से सभ सामान पर्याप्त छौह कि ने ? "अभावे शालिचूर्णम " त ने कहबह ?

हम - नहि खट्टर कका ! मालभोग केराक शीतलप्रसाद बनतैक ।

ख० – अहा ! तखन त हम अवश्ये आएव । कथा त जनले अछि । शंख बाजय लगतौक त पहुंँचि जैबौह । हम केवल प्रसादे क लोभ सॅं पूजा में जाइत छी । से हम अपन बडका कलगैयां लोटा नेने ऎबौह ।

खट्टर कका भाङ्ग तैयार कऽ दू बुन्द इष्टदेवताक नाम पर छिटैत बजलाह - “वाह, आइ तरावटिक सामान भऽ गेल । जे हो, ई पूजा जे परचारलक से छल धरि बुद्धिमान्, ताहि में संदेह नहिं ।"

ई कहि खट्टर कका भरलो लोटा भाङ्ग चढा गेलाह ।