लेखक : हरिमोहन झा

ओहि दिन ज्योतिषी मुसाइ झा हमरा ओहिठाम पतड़ा देखैत रहथि कि खट्टर कका भङघोंटना नेने पहुंचि गेलाह। हुनका देखितहि मुसाय झा अपन पोथी-पतड़ा समेटय लगलाह। परन्तु खट्टर कका पुछिए बैसलथिन्ह – की औ मुसाइ झा, की होइ छैक ?

मुसाइ झा सिटपिटाइत बजलाह - दिन ताकि रहल छी।

खट्टर कका- एकर की अर्थ ? दिन त एखन छैहे। चारू कात सूर्यक प्रकाश पसरल छैन्ह। से अहाँ कैं नहिं सुझैत अछि की ?

ज्यो०- से नहिं। हिनका आङ्गन सॅं एखन नैहर छथिन्ह। ओ कहिया औथिन्ह सैह ``````

ख० – जहिया मन हेतैन्ह तहिया आबि जैथिन्ह । ओहि खातिर अहां किऎक व्यग्र भऽ रहल छी ?

ज्यो० - परन्तु औथिन्ह त नीके दिन में ?

ख० – हॅं, जाहि दिन बदरी-व्काल नहिं रहतैक ताहि दिन आवि जैथिन्ह । “मेघाच्छन्नं हि दुर्दिनम् " । से दुर्दिन में त मे त नहिंऎं चलतीह ।

ज्यो० - परंच एहि मास में त एको टा दिन नहिं हैतैन्ह ।

ख० - एहि मास में तीस टा दिन हेतैन्ह । जहिया सुविधा हेतैन्ह , आवि जैतिन्ह।

ज्यो०- परंच काल जे एखन पूब छथिन्ह ?

ख० – औ मुसाइ झा ! हमरा जुनि ठकू। काल की अहांँक चितकबरी घोडी छथि जे एखन पुबरिया हत्ता में चरय गेल छथि ? काल कोन घड़ी कोन ठाम नहिं रहै छथि सें त कहू ।

ज्यो०- अहांँ त शास्त्र मानितहि नहिं छी। एखन सूर्य दक्षिणायन छथि ।

ख०- जाडकाला में सूर्य दक्षिणायन रहबे करैत छथि । गर्मी में अपने उत्तरायण भऽ जैताह । एहि में हिनकर दूनू गोटा क कोन अपराध छैन्ह, जे विदागरी रोकबा रहल छिऎन्ह ?

ज्यो०- हम की करिऔन्ह एखन तीन मास दीन नहिं बनैत छैन्ह ।

ख०- से किऎक ?

ज्यो०- देखू, पूस में त बिदागरी हो नहिं ।

ख०- किऎक नहिं हो ?

ज्यो०- पूस प्रशस्त नहिं ।

ख०- पूस मास कोन दोष कैने अछि ?

ज्यो०- आब अहांँ सॅं के झगड़ा करौ ? माघ-फागुन मे सम्मुख काल पड़ि जाइत छथिन्ह । चैत मे चन्द्रमा वाम भऽ जैथिन्ह ।

ख०- हिनकर विधाते वाम छथिन्ह जे अपन दिन अहांँक हाथ में देने छथि। नहिं त फागुन मास कतहु काल क विचार होइक ? चैतक चन्द्रमा कतहु वाम होथि ?

ज्यो०- तकरा उपरान्त भदबे पड़ि जाइत छैन्ह ।

ख०- भारी भदवा त छिऎन्ह आहाँ। हमरा कहथि त कल्हुके दिन बना दिऎन्ह।

ज्यो०- काल्हि त दिक्शूले लागि जैतैन्ह !

ख०- कोना लागि जैतैन्ह । बाट में कतहु खुट्टी गाड़ल छैक ?

ज्यो०- अहाँ त नास्तिक जकाँ बजैत छी। 'शनौ सोमे त्यजेत पूर्वाम् ```’

ख०- किऎक त्यजेत ? यदि सरिपों त्यजेत् त ओहि दिन सकरी सॅं निर्मली वाली गाड़ी किऎक चलेत् ? मंगल दिन दरभंगा सॅं जयनगर क ट्रेन किऎक फुजेत ?

ज्यो०- जे दिक्शूल में चलै अछि से अनुचित करै अछि । दिग्बल में चलक चाही ।

ख० - अहाँक बात सोरहो आना मानि लितहुँ जौं दिग्बल में चलने कतहु रुपैया क तमघैल बाट में भेटि जाइत । परन्तु हम त सभ दिन सभ ठाम जाइत छी। ने दिक्शूल में कतहु शूल गड़ल अछि, ने दिग्बल में फूल झरल अछि ।

ज्यो०- तखन आहांँक लेखे दिक्शूल किछु नहिं ?

ख०- ओ केवल अहाँक दृक्शूल अर्थात आँखिक दोष थीक ।

ज्यो०- तखन अहाँक लेखे वार-दोष किछु नहिं ? जौ कनियाँ काल्हि यात्रा करतीह त हुनका वार-दोष नहिं लगतैन्ह ?

ख०- रोंइयो भरि नहिं लगतैन्ह ।

ज्यो०- जखन शास्त्रे उठा दी, तखन त कोनो बाते नहिं। एतेक रास जे काल क विचार कैल गेल छैक `````````

ख०- सैह काल त हमरा सभक काल भऽ गेल। आइ मासान्त, काल्हि संक्रान्ति, परसू भदबा । एकटा टाट बान्हक हो त नौ दिन पतरा देखैत बैसल रहू। औ, संसार क और कोनो देश भदबा मानैत अछि ? भद्रा महारानी में वास्तविक सामर्थ्य छैन्ह त ओकरा सभ कैं किऎक नहि धरैत छथिन्ह ? पृथ्वी पर और-और जाति कैं दिक्शूल किऎक नहिं लगैत छैक ? यूरोप-अमेरिका बला कैं अधपहरा किऎक नहिं धरैत छैक ? सभ सॅं बुड़िबक दीनानाथ हमरे लोकनि छी ?

खट्टर कका ई बजितहि छलाह कि ओम्हर सॅं दीनानाथ चौधरी पहुचि गेलाह। मुसाइ झा कैं कहलथिन्ह- औ ज्योतिषीजी, हमरा आङ्गन में ऎखन नेना क जन्म भेलैन्ह अछि । तैं अहाँक घर गेल छलहुँ। दौड़ले आबि रहल छी ।

खट्टर कका बिहुँसैत कहल्थिन्ह - तखन तोरा अपस्यांत हैबाक कोन काज ? तोहर जे काज छलौह से पहिनहि सम्पन्न भऽ चुकलौह ।

दीनानाथ बजलाह - केहन लग्न-कर्म छैक से देखथिन्ह ।

खट्टर कका बजलाह- हाय रे कर्म ! यैह बुद्धि त हमरा लोकनि कैं चौपट कऽ देलक । हौ, कर्म करत अपना बुद्धिएँ । एहि मे मुसाइ झा की देखथिन्ह ?

ज्योतिषीजी अप्रतिभ भऽ चुपचाप पतडा देखय लगलाह । दीनानाथ सॅं पुछलथिन्ह - कतेक काल पहिने नेनाक जन्म भेलैक अछि ?

दीनानाथ बजलाह - यैह दस मिनट होइ छैक ।

ज्योतिषीजी हिसाब जोड़ैत-जोड़ैत एकाएक छिलमिला उठलाह - अरे बाप !

हम पुछलिऎन्ह-की ज्योतिषीजी ? की भेल ? बिढनी त ने काटि लेलक ?

ज्योतिषीजी माथ पर हाथ दय बजलाह – नहिं महाराज, बिढनी कटैत त कोन बात छल ! ई त भारी अनर्थ भेलैक !

दीनानाथक मूह सुखा गेलैन्ह। हुनकर पहिने सॅं करेज धडकैत छलैन्ह । थरथर कपैत पुछलथिन्ह झट द कहू औ ज्योतिषीजी !

ज्योतिषीजी बजलह – कहू की कपार ? सर्वनाश भऽ गेल । मूल नक्षत्र क प्रथम चरण में जन्म भेलैक अछि - गंडयोग में। से अहीं पर जा कऽ बिसायत।

दीनानाथ पर बज्र खसि पडलैन्ह। ओ पुक्की फारि कऽ कानय लगलाह ।

ज्योतिषीजी गंभीर भाव सॅं कहय लगलथिन्ह - एकर दुइएटा उपाय छैक । या त नेना कैं कतहु फेकि दी अथवा बारह वर्ष धरि ओकर मूह नहिं देखी ।

नेना कैं आइए माइक सॅंग मातृक पठा दियौक। नहिं त अहांक प्राण नहिं बांचब कठिन अछि- मूलाद्यपादे पितरं निहन्यात् । ई अहींक नाश करबाक हेतु जन्म लेलक अछि ।

ई कहि ज्योतिषी पुनः गंभीर भऽ गेलाह ।

दीनानाथ हाथ जोड़ि पुछलथिन्ह - किछु शान्ति क उपाय ?

ज्योतिषिजी कहलथिन्ह- से सभ त एखन सॅं करहि पड्त। दद्याद् धेनुं सुवर्णं च ग्रहांश्चापि प्रपूजयेत । गोदान, स्वर्णदान, नवग्रहपूजा ``````

आब खट्टर कका क ब्रह्म तेज भेलैन्ह । ओ भङ्गघोंटना पटकैत बजलाह- जे केओ ई सभ लिखने अछि से पाखंडी थीक ।

ज्योतिषीजी बजलाह - परन्तु मुहर्तचिन्तामणि````````

खट्टर कका डॅंटैत कहलथिन्ह - मुहर्त्तचिन्तामणि नहिं, धूर्तचिन्तामणि !

ज्योतिषीजी गोङ्गियाइत बजलाह - तखन ग्रह-नक्षत्रक जे एतबा विचार कैल गेल अछि से जाल थीक ?

ख०- जाल नहिं, महाजाल । जाहि में बड़का सॅं बडका महाजन फॅंसय । नक्षत्र क अढ में ज्योतिषी अपन नक्षत्र बनबैत छथि ।

ज्योतिषीजी विषण्ण होइत बजलाह - तखन भृगु परासर आदि जे एतबा रासे लिखि गेलाह अछि से सभटा फूसि थीक ?

खट्टर कका फेर डॅंटलथिन्ह - यैह नाम बेचि कऽ त अहाँ सभ हजारो वर्ष सॅं ई ठक विद्या चला रहल छी। जे अपना मन में आबय से श्लोक गढि कऽ जोड़ि दियौक और ठोकि दियौन्ह पराशरक माथ पर । औ, हमहूं भृगुसंहिता, परासर होरासार देखने छी । तेहन-तेहन वचन ओहि में भरल छैक जेना यजमान कैं जानि बूझि कऽ बूड़ि बनाओल गेल होइक ।

ज्योतिषीजी अविश्वासक भाव सॅं पुछलथिन्ह - अपने प्रमाण दऽ सकैत छी ?

खट्टर कका कहलथिन्ह - एक दू नहिं , अनेको ।

तावत भांग तैयार भऽ चुकल छल । हम खट्टर कका क आगां लोटा बढबैत कहलिऎन्ह - पहिने ई भऽ जाय तखन ````````

खट्टर कका एक्के छाक में लोटा खाली कऽ गेलाह । तत्पश्चात ज्योतिषी कैं कहय लगलथिन्ह - आब सुनू । चु चे चो ला ओ गोलाध्याय में लटकल धूर्त राज सभ केहन ढोंग रचने छथि !

          उपपदे  बुधकेतुभ्यां  योग सम्बन्धके   द्विज  ।
          स्थुलांगी  गृहिणी  तस्य जायते  तस्य संशयः॥
        

यजमान क पत्नी मोटाइलि होइथिन्ह सेहो ज्योतिषी कुंडली देखि कऽ बुझि जाइत छथिन्ह । एतबे नहिं, यजमानिनी क स्तन केहन छैन्ह सेहो पर्यन्त पतडा सॅं ज्ञात भऽ जाइत छैन्ह ।

          कठिनोद्र्ध्व  कुजाचार्ये  श्रेष्ठस्थूलोत्तमस्तना ।
        

यजमानक टीपनि देखला सॅं हुनका पता लागि जाइत छैन्ह, जे यजमानक स्त्री अनका सॅं फॅंसलि छथिन्ह ।

          जामित्रे     मंदभौमस्थे  तदीशे    मंदभूमिजे  ।
          वेश्या  वा  जारिणी  वापि तस्य भार्या संशयः ॥
        

नेनाक टीपनिए देखि कऽ ओ जानि जाइत छथिन्ह ओ बापक जनमल नहिं थिक ।

          भग्नपादर्क्षसंयोगाद्   द्वितीया   द्वादशी  यदि  ।
          सप्तमी  चार्कमंदारे  जायते  जारजो  ध्रुवम   ॥
        

ततबे टा नहिं । देवर क वीर्य सॅं ओकर उत्पत्ति भेल छैक सेहो गन्ध हुनका लागि जाइत छैन्ह ।

          ग्रहराजे  स्थिते  लग्ने  चतुर्थे     सिंहिकासुते  ।
          स्वदेवरात्  सुतोत्पत्तिर्जाता  तस्या न संशयः ॥
        

हौ, ई सभ लंठइ नहिं त और की थीक ? और एहन-एहन पाखंडी कैं एहि देश में उपाधि की देल जाइत छैन्ह- ‘ज्योतिर्विद्यार्णव ! छिः ! एहन मूर्ख देश पृथ्वी पर और कतहु भेटतौह ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, जौं ज्योतिष सत्य नहिं त ग्रहणक हाल ई लोकनि पहिनहिं कोना जानि जाइ छथि ?

खट्टर कका बजलाह – हौ, समुद्रक कात जे मलाह रहैत अछि से ज्वार - भाटा क हाल पहिनहि कहि देतौह। परन्तु तकर अर्थ ई नहि जे तोरा काकीक जांघ में कोन ठाम तिलवा छैन्ह सेहो ओ कहि देत। जे आकाशक निरीक्षण करैत अछि से पहिनहि कहि देतौह जे आइ राति भुरकुबा कखन उगत। परन्तु ओकरा सॅं जौं हम पुछियै गऽ जे भुरकुरवा वाली कें नेना कहिया हेतैन्ह त ई केहेन भारी मुर्खता हैत ! सैह मूर्खता एहि देश क लोक कऽ रहल अछि । और धुर्तराज सभ एहि मुर्खता सॅं लाभ उठा रहल छथि । ग्रहण क हाल कहैत-कहै त पाणिग्रहण क हाल सेहो कहय लागि जाइत छथिन्ह । एही विश्वास पर यजमान-यजमानिनी मूँडल जाइ छथि ।

हम कहलिऎन्ह - खट्टर कका, अहाँ जे सभ वचन कहलिऎक अछि से सभ कि वास्तव मॆं ज्योतिष क ग्रन्थ में लिखल छैक ?

खट्टर कका बजलाह – नहिं त कि हम अपना दिस सॅं गढि कऽ कहलिऔह अछि ? ज्योतिष क आचार्य त एहि ठाम बैसले छथुन्ह । पूछि लहुन्ह जे ई सभ श्लोक ग्रन्थ में छैन्ह की नहिं । सेहो ग्रन्थ केहन त 'पराशर होरासार' ।

ज्योतिषीजी माथ कुडियबैत बजलाह – हॅं, वचन त अवश्ये ग्रन्थ में छैक । परञ्च ओकर सत्यता पर अहाँ के विश्वास किऎक नहिं होइत अछि ? जातक विचार कैं अहाँ मिथ्या बुझैत छिऎक ?

खट्टर कका लाल-लाल आँखि कय बजलाह - मिथ्ये नहिं लंठपनी। तेहन- तेहन अश्लील गारि ओहि में भरल छैक जेहन आइ-काल्हि बरियातो में नहिं होइत छैक ।

मुसाइ झा पुछलथिन्ह - अपने दृष्टान्त दऽ सकैत छी ?

खट्टर कका क स्पिरिट और तेज भऽ गेलैन्ह । बजलाह - तखन सूनू -

          धनेशे  सप्तमे   वैद्यः     परजायाभिगामिकः  ।
          जाया तस्य  भवेद्वेश्या  मातापि व्यभिचारिणी ॥
        

की, डहकन में एहि सॅं बेशी गारि होइत छैक ?

हुनका निरुत्तर देखि खट्टर कका बजलाह - एतबहि मे चुप्प भऽ गेलौंह । देखू, सहोदरा बहिन द की कहैत छैक ?

          सहोदरासंगममाहुरन्ये    दारेश्वरे  क्रूरयते  सुखस्थे   ।
          पापेक्षिते  पापसमानमेव   क्रूरादिष्ठ्यंशसमन्विते वा ॥
        

औ, एहन हॅंसी-मसखरी त आब सारो-बहिनोइ में नहिं होइत छैक ।

हम कहलिऎन्ह- खट्टर कका, ज्योतिष में एहनो-एहनो बात सभ हेतैक से हमरा नहिं अंदाज छल ।

खट्टर कका बजलाह – तों ज्योतिष पढलह कहिया ? वृहज्जातक, पाराशर आदि देखह तखन पता लगतौह ।

आब मुसाइ झा कैं नहिं रहि भेलैन्ह । बजलाह – ई सभ फूसि थीक तकर प्रमाण ?

खट्टर कका शास्त्रार्थ क मुद्रा में उत्तर देलथिन्ह - प्रमाण स्वयं हमही । हमरा टीपनि में राजयोग लिखैत अछि ।

          वाहनेशस्तथा  माने  मानेशो   वाहने   स्थितः   ।
          लग्नधर्माधिपाभ्यां  तु   दृष्टो  चेदिह राज्यभाक    ॥
        

परन्तु राज भेटबाक कोन कथा जे टाट लेबक हेतु एकटा राज पर्यन्त नहिं भेटैत अछि ।

मुसाइ झा पुछलथिन्ह - तखन अहाँ कैं टीपनि में विश्वास नहिं अछि ?

खट्टर कका कहलथिन्ह - मडुओ भरि नहिं । अहाँ जे लाल मोसि लऽ कऽ लंझार चक्र बनबै छी से सरासर जाली दस्तावेज थिक। चाहे राजयोग लिखि यौ वा जारयोग, दूनू फर्जी थिक !

ज्योतिषीजी पुछलथिन्ह - से कोना ?

खट्टर कका कहलथिन्ह - राजयोग क असत्यता त प्रत्यक्षे देखा देलहुँ । रहल जारजयोग। से कनेक तर्कशास्त्र क योग लगा कऽ देखियौक। औ, व्यभिचार पतड़ा देखि कऽ नहिं होइ छैक । और ओहि सॅं जे गर्भ होइत छैक सेहो कोनो लग्न क हिसाब जोड़ि कऽ पेट सॅं नहिं बहराइत छैक। तखन ज्योतिषी अनकर कोन कथा जे अपनो सन्तानक जारज योग नहिं पकड़ि सकैत छथि।

मुसाइ झा एहि चोट सॅं तिलमिला उठलाह। बजलाह - ज्योतिष क सभटा वचन सत्य और प्रामाणिक थीक। शास्त्रकार लोकनि स्पष्टवादी छलाह ।

ख०- तखन अहाँ कैं अपना जन्म कुंडली क फल पर पूर्ण विश्वास अछि ?

ज्यो०- अवश्य ।

ख०- वेश, त अपन जन्मकुंडली कनेक हमरा देख दियऽ ।

ज्योतिषीजी किछु धखाइत अपन कुंडली बस्ता में सॅं बहार कऽ खट्टर कका क हाथ में देलथिन्ह ।

खट्टर कका कुंडली देखि कऽ कहलथिन्ह- की औ ज्योतिषी ! हम फल कहू ? अहाँ पड़ायब त नहिं ?

ज्यो०- पड़ायब किऎक ?

ख०- वेश त सुनू पाराशर होरासार क वचन छैक -

          भौमांशकगते   शुक्रे   भौमक्षेत्रगतेऽपि   च ।
          भौमयुक्ते  च दृष्टे च भगचुम्बनभाग् भवेत  ॥
        

ई वचन छैक कि नहि ? आब अपन शुक्र क स्थान देखू । ई योग अहाँ में लगैत अछि की नहिं ? आब यदि अहाँ कही त हम भाषा-टीका कय सभ कैं अर्थ बुझा दिऎक ।

ई सुनैत देरी मुसाइ झा अपन पोथी-पत्रा समेटैत बिदा भऽ गेलाह । खट्टर कका बारंवार सोर करैत रहि गेलथिन्ह - ‘औ ज्योतिषीजी ! औ ज्योतिषीजी ! मुखशुद्धि लऽ लियऽ ।

परन्तु के घुरैये ।